अपनी आदत के मुताबिक कुछ अंबेडकरवादी अग्निहोत्र आदि यज्ञों को पाखंड कह कर उपहास कर रहे हैं। परंतु इन्हें यह तक नहीं मालूम कि गौतम बुद्ध पूर्ण रूप से अग्निहोत्र के समर्थक थे।
हम बुद्धों के ग्रन्थ सुत्तनिपात से कुछ प्रमाण रखते हैं, जिससे हमारा दावा सिद्ध होगा।
सुंदरिकभारद्वाज सुत्त, सुत्तनिपात (३,४) में सुंदरिक नामक ब्राह्मण गौतम बुद्ध को श्रेष्ठ ब्राह्मण समझकर उनको यज्ञशेष भेंट करता है। बुद्ध जी बड़े प्रेम से उसे ग्रहण करते हैं।
उनके संवाद के कुछ अंश संक्षेप में लिखते हैं। हमने डॉ भिक्षु धर्मरक्षित की सुत्तनिपात हिंदी टीका का अनुसरण किया है।
(क):- यज्ञ में किसको दक्षिणा दें, इस विषय पर बुद्ध का उपदेश:-
ब्राह्मण:- इस संसार मे ऋषियों,मनुष्यों, क्षत्रियों और ब्राह्मणों ने किस कारण यज्ञ किये थे?
भगवान बुद्ध:- यज्ञ में पारंगत किसी ज्ञानी को आहुति मिल जाये तो वो यज्ञ सफल होता है, ऐसा मैं कहता हूं।
ब्राह्मण:- मेरा यज्ञ अवश्य सफल होगा क्योंकि मैंने आप जैसे ज्ञानी के दर्शन पाये। कृपया बतायें, मैं यज्ञ करना चाहता हूं। मेरा यज्ञ कैसे सफल होगा?
भगवान बुद्ध:- जो ब्राह्मण पुण्य की कामना से यज्ञ की कामना करता है, उसे चाहिए कि सत्य , इंद्रिय दमन, ज्ञान पारंगत व ब्रह्मचर्य वास समाप्त मुनि को समयानुसार हव्य प्रदान करे। जो कामभोगों को छोड़कर बेघर होकर रह रहा है, ऐसे मुनि को समयानुसार हव्य प्रदान करे। जो राग रहित संयमी मुनि है, उसे हवि प्रदान करे। जो सदा स्मृतिमान् हो, ममत्व को छोड़कर संसार में अनासक्त होकर विचरण करता है, उसे हवि प्रदान करें। जिसने जन्म मृत्यु का अंतर जान लिया, जो गंभीर जलाशय की तरह तथागत है, उसे पूड़ी और चिउरा के योग्य जानें। जिसने क्रोध को शांत कर दिया, लोक परलोक का ज्ञान रखने वाला हो,जो मोहरहित हो, जो अंतिम शरीर धारण करने वाला हो, वो यज्ञ की पूड़ी व चिउरा खाने का अधिकारी है। इत्यादि।
ब्राह्मण:- हे पूज्य! आप साक्षात् ब्रह्म ही हैं। आप मेरा पूड़ी व चिउरा ग्रहण करें।
बुद्ध जी:- धर्मोपदेश से प्राप्त भोजन मुझे त्याज्य है।
ब्राह्मण:- तो फिर मेरी दक्षिणा कौन ग्रहण करेगा?
बुद्ध जी:- जो अहिंसक, परिशुद्ध , कामभोगों व वासनाओं से मुक्त हो, जो मौनेय व्रत धारी मुनि हो, उसके यज्ञ में आने पर आंखे नीची करके अन्न व पेय से उसकी पूजा करो। इस प्रकार दक्षिणा सफल होगी।
ब्राह्मण;- आप बुद्ध पूड़ी और चिउरा के योग्य हैं आप उत्तम पुण्य क्षेत्र हैं। सारे संसार में पूज्य हैं। आपही को देना महाफलदायी है। आपने अनेक प्रकार से धर्म प्रकाशित किया है। इसलिये मैं आपकी शरण में आ रहा हूं।
(ख):- गौतम बुद्ध केवल हिंसामय यज्ञों का खंडन करते थे:-
बुद्ध जी सुत्तनिपात, ब्राह्मणधम्मिक सुत्त (२,७) में प्राचीन ब्राह्मणों, ऋषि मुनियों के प्रति बहुत ऊंचे विचार प्रकट करचे हैं। वे कहते हैं:-
ब्राह्मणों ने प्राचीन ब्रह्मचर्य, शील व क्षमा की प्रशंसा की।।१०।। उन्होंने धार्मिक रीति से चावल,शयन, वस्त्र, घी और तेल की याचना करके यज्ञ का संविधान किया।।१२।। गौएं माता पिता के समान हैं, इनसे औषधियां उत्पन्न होती हैं। ये अन्न,बल,वर्ण, तथा सुख देने वाली है। उन ब्राह्मणों ने कभी गौओं की हत्या नहीं की।।१३,१४।।
गौतम बुद्ध यह भी कहते हैं कि कुछ स्वार्थी ब्राह्मणों ने यज्ञ में पशुबलि आरंभ कर दी, पर पहले के ब्राह्मण अहिंसक यज्ञ करते थे। निर्दोष पशुओं को कटता देख देव,असुर,नाग,मानव आदि सब अधर्म मानकर आश्चर्यचकित हो गये। ये पशुबलि का पाप तब से अब तक चलता आ रहा है। इसे बंद होना चाहिए, ऐसा बुद्ध का मत है।
यहां जान लेना चाहिए कि बुद्ध जी ने स्पष्ट रूप से चावल,घी,तेल आदि से यज्ञ का समर्थन किया है, और हिंसक यज्ञ का खंडन। बुद्ध को अहिंसक= अध्वर यज्ञ से कोई दिक्कत नहीं थी।
(ग):- अग्निहोत्र यज्ञों का मुख है:-
सेल सुत्त (३,७) में आया है कि बिंबसार राजा नेे एक महायज्ञ का आयोजन किया था। उसमें बुद्ध जी साढ़े बारह सौ शिष्यों को लेकर आमंत्रित होते। ( सुत्तनिपात पेज १४७)
इससे पता चलता है कि बुद्ध जी को यज्ञ में आने जाने में कोई दिक्कत न थी।
इसी सेल सुत्त में आगे कहते हैं:-
"अग्गिहुत्तमुखा यञ्ञा , सावित्ती छंदसो मुखं।"
अर्थात छंदो मे सावित्री छंद(गायत्री मंत्र ) मुख्य है ओर यज्ञों में अग्निहोत्र मुख्य है।।२१ वीं गाथा।।
अत: निम्न बातो से निष्कर्ष निकलता है कि बुध्द वास्तव मे यज्ञ विरोधी नही थे बल्कि यज्ञ मे जीव हत्या करने वाले के विरोधी थे। इसलिये गौतम बुद्ध को अपना आदर्श करने वाले अंबेडकरवादियों को अहिंसक यज्ञ का विरोध नहीं करना चाहिए, अपितु यज्ञ का समर्थन व स्वयं अग्निहोत्र करना चाहिए। ।
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