Friday, June 29, 2018

जड़ी बूटियों के नाम की सूची।

अगरु
अगस्त्य
अग्निमन्थ
अजमोदा
अतसी
अतिबला
अतिविषा
अध:पुष्पी
अनानास
अन्नामय
अपामार्ग
अफसंतिन
अम्लपर्णी
अम्लवेतस
अयापान
अरण्यजीरक
अरलू
अरिष्टक
अर्क
अर्जुन
अलसी के बीज
अशवगोल
अशवत्थ
अशोक पत्रांग
अश्मन्तक
अश्वकर्ण(गर्जन)
अश्वगन्धा
अस्थिशृंखला
अहिफेन
आकड़ोट
आकारकरभ
आकाशवल्ली
आखुकर्णी
आमलकी
आम्र
आम्रगन्धि हरिद्रा
आरग्वध
आवर्तकी
आवर्तनि
इंद्रवारुणी
इक्षु
इक्ष्वाकु
इडगुदी
ईशवरी
उटनगन
उत्पल
उदर्दप्रश्मन
उदुम्बर
उपविष
उलट कम्बल
उल्टकम्बल
उशीर
उस्तूखूदूस
ऊदसलीब
ऊषक
एरण्ड
एरण्डकर्कटी
एला
कlच्चनार
कंकुष्ठ
कंकोल
कंटकारी
कटुका
कट्फल
कण्टकि. करज्ज
कतक
कदम्ब
कपिकच्छू
कपीतन (पारीष)
कमल
कम्पिलल्क
करज्ज
करवीर
करीर
कर्कटशृ:डगी
कर्चूर
कर्पूर
कलमबक
कशेरुक
काकमाची
काण्डीर
कारवेललर
कार्पास
कालाजाजी
काश
काष्टदारु
कासनी
कासमर्द
किराततिक्त
कीटमारी
कुकुन्दर
कुङ्कुम
कुटज
कुनयन
कुपिलु
कुमारी
कुमुद
कुलत्थ
कुश
कुष्ट
कूष्माण्ड
कृतवेघन
कृष्णजीरक
कृष्णबीज
केतक
केबुक
कॉफी
कोकिलाक्ष
कोकुदुम्बर
कोशाम्र
खत्मी
खदिर
खर्जूर
खूबकलाँ
गन्धप्रसारिणी
गम्भारी
गांगेरुकि
गुग्गुलु
गुज्जा
गुडूची
गोक्षुर
गोजिह्वा
गोरक्ष
गोरक्षगज्जा
चक्रमर्द
चक्षुष्या
चन्दन
चन्द्रशूर
चम्पक
चव्य
चांगेरी
चित्रक
चिरबिल्व
चोपचीनी
चोरक
चौह:र
छीलहिंट
जटामांसी
जपा
जम्बीर
जम्बू
जयन्ती
जलकुम्भी
जलवेतस
जाती
जातीफल
जीरक
जीवन्ति
जूफा
ज्योतिष्मती
झण्डु
झत्रक
झाबुक
तगर
तरुणी
तवक्षीर
तवचय
ताम्बूल
ताम्रपर्ण
तालमूली
तालीश
तिनिश
तिन्तिड़िक
तिन्दुक
तिल
तिलपर्णी
तुलसी
तुलसी
तुवरक
तेजोवती
तैलपर्ण
तोदरी
त्रपुष
त्रायमाणा
त्रिवृत
त्वक (दारुसिता)
दन्ती
दमनक
दाड़िम
दारुहरिद्रा
दुग्धफेनी
दुग्धिका
दूर्वा
देवदारु
देवदाली
द्रवन्ति
द्राक्षा
द्रोणपुप्पी
धतूर
धनव्यास
धन्वन
धमागरव
धव
धातकी
धान्यक
नल
नागकेशर
नागदमन
नागबला
नाड़ीहिंगु
नारिकेल
नाही
निम्ब
निर्गुण्डी
निर्विषा
नीलिनी
पटोल
पद्यक
पनस
पर्णबीज
पर्पट
पलाश
पाटला
पाठा
पारसीक यवानी
पारिजात
पारिभद्र
पाषाणभेद
पिप्पली
पियररांगा
पीत करवीर
पीलु
पुत्रजीवक
पुत्रजीवक बीज
पुनर्नवा
पुन्नाग
पुष्करमूल
पूतिहा(पुदीना)
पृशिनपर्णी
प्रणयवाणी
प्रियंगु
प्रियाल
प्लक्ष
प्लांडू
फल्गु (अजीर)
बंदाक
बब्बूल
बर्बरी
बाकुची
बिभीतक
बिल्ब
बीजक
ब्राह्मी (ऐन्द्री)
भंगा
भरगड़ी
भल्लातक
भाण्डीर
भूनिम्ब (कालमेघ )
भूम्यामलकी
भूर्जपत्र
भृंगराज
मखान्न
मज्जिष्ठा
मण्डूकपर्णी
मदनफल
मदयन्तिका
मधूक
ममीरा
मयूरशिखा
मरिच
मरूवक
मलयवचा
मल्लिका
महानिम्ब
महाबला
मांसरोहिणी
मातुलुंग
मानकन्द
मायाफल
माश
माषपर्णी
मिश्रेया
मुचकुन्द
मुज्जातक
मुण्डी
मुदगपर्णी
मुशली
मुस्तक
मूर्वा
मेथिका
मेदासक
मेषशृंगी
यवानी
यवास
यष्टीमधु
युथिपर्णी
रकतनिर्यास
रक्तचंदन
रक्तप्रसादन
रक्तस्तम्भन
रसोन
राजिका
रास्ना
रुदन्ति
रुद्रवंती (रुद्रवन्ती)
रुद्राक्ष
रूमी मस्तगी
रोहिष
रोहीतक
लंका
लकुच
लज्जालु
लताकस्तूरी
लवंग
लांगली
लोघ्र
लोबान
वंश
वकुल
वचा
वट
वत्सनाभ
वनपशा
वनप्लान्डु
वनहरिद्रा
वन्त्रपुषी
वरुण
वला अतिबला
वाकेरी
वाराहो
वासा
विककंत
विडंग
विदारी
विम्बी
विषघन
वीरतरु
वृक्षाम्ल
वृद्धदारु
वृहती
वृहदेला
वेतस
वोल
शंखपुष्पी
शटी
शण
शतपुष्पा
शतावरी
शनपुष्पी
शमी
शर
शरपुंखा
शल्लकी
शाक
शाखोटक
शाल
शालपर्णी
शाल्मली
शिंशपा
शिरीष
शुष्ठी
शृडांगटक
शैलेय
शैवाल
शोभाजजन
श्योनाक
श्रवक
श्लेष्मातक
संदपुष्पा
सप्तचक्रा
सप्तपर्ण
सफेद मूसली
समुद्रनारिकेल( दरियाई नारियल )
सरल
सर्ज
सर्पगंधा
सर्षप
सहदेवी
सारिवा
सिताब
सिल्हक
सुदर्शन
सुनिषण्णक
सुरज्जान
सुरपुन्नाग
सूची
सूरण
सैरेयक
सोम
सौंफ
स्नुही
स्वर्णक्षीरी
स्वर्णपत्री
हंसपदी
हरमल
हरिदॄ
हरिद्रा
हरीतकी
हापुषा
हिंस्रा
हिज्जल
हिडगु
हृत्पत्रि
हैमवती

Wednesday, June 27, 2018

कौन कहता है इमर्जेंसी में होम्योपैथी का महत्व नहीं है ?

आमतौर: पर लोगो की धारणा है कि होम्योपैथी इमरजेन्सी में काम नहीं करती है क्योकि इसका असर बहुत धीरेध्रीरे होता है ,और जब तक दवा असर करेगी तब तक रोगी का बहुत नुकसान हो जायेगा लेकिन ऐसा नहीं है ,यदि किसी भी इमरजेन्सी केस में सही समय में सही दवा तुंरत दी जाए तो न केवल रोगी की जान बच जायेगी बल्कि उसे कोई गंभीर नुकसान भी नहीं होगा .एक प्रचलित धारणा यह भी है कि होम्योपैथी दवा सिर्फ बच्चो कि मामूली चोट के लिए ही उपयोगी है किन्तु यहाँ तथ्य पूरी तरह से सही नहीं है .
होम्योपैथिक दवा न केवल साधारण चोट में उपयोगी है बल्कि यह हार्ट अटेक ,कोमा आदि गंभीर इमरजेन्सी में भी अति उपयोगी है .
सामान्यतः सभी प्रकार कि इमरजेन्सी को दो भागो में बांटा जा सकता है –

1) सामान्य इमरजेन्सी

2) गंभीर इमरजेन्सी

• सामान्य   इमरजेन्सी –
A) सामान्य चोट
B) रक्तस्त्राव
C) सामान्य या अचानक उत्पन्न होने वाले दर्द
D) संक्रमण
E) मोच

• गंभीर  इमरजेन्सी –
F) जलना
G) हड्डी टूटना
H) लू लगना
I) टिटनेस
J) सदमा
K) हार्ट अटेक
L) बच्चे का पेट में उल्टा होना / प्रसव में समस्या

• सामान्य इमरजेन्सी –

A) सामान्य चोट– बच्चो को खेलते वक्त चोट लगना ,और काम करते समय मामूली चोट या कट लगना अथवा वाहन से मामूली दुर्घटना होना .ये सभी सामान्य चोट के अर्न्तगत आते है .ऐसे समय में कुछ उपयोगी होम्योपैथिक दवाए न केवल कटे हुए घाव भरने , रक्तस्त्राव रोकने में उपयोगी है बल्कि ये दर्द को भी कम कर देती है जैसे –Calendula, Arnica, Hypericum आदि.

B) रक्तस्राव– यद्यपि रक्तस्राव किसी भी प्रकार की बाह्य या आन्तरिक चोट का परिणाम होता है लकिन रक्तस्राव को कई प्रकारून मैं विभक्त किया जा सकता है – सामान्य चोट लगने पर होनेवाला रक्तस्राव, नाक से रक्तस्राव (नकसीर), महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान होनेवाला अतिस्राव आदि. कभी-२ किडनी मे पथरी की समस्या होनेपर भी मूत्र के साथ रक्तस्राव संभव है. होम्योपैथी मैं रक्तस्राव फ़ौरन रोकने के लिए भी पर्याप्त दावा उपलब्ध हैं जैसे – Calendula, Millofolium , Hammamalis , Crot-Horआदि. .

C) सामान्य या अचानक उत्पन्न होने वाले दर्द– शरीर के किसी भी भाग मे होनेवाला दर्द स्वयं मे कोई बीमारी नहीं है बल्कि यह अन्य बीमारियों का अलार्म है. दर्द अनेक तरह के हो सकते हैं – शरीर के किसी भी भाग मे बिना किसी कारण के achanak होनेवाला दर्द, चोट लगने का दर्द, बीमारी का दर्द, मासिक धर्म मे दर्द आदि. कुछ ख़ास होम्योपैथिक दवाए न kewal दर्द को स्थायी रूप से ख़त्म करती हैं बल्कि कोई साइड इफेक्ट भी नहीं होता किन्तु दवाए लेने से पहले डॉक्टर से सलाह लेलेना उचित है. उपलब्ध दवाई हैं – Rhus Tox, Mag. Phos, Arnica आदि.

D) संक्रमण– किसी भी प्रकार के संक्रमण को नियंत्रित करने मैं होम्योपैथिक दवाए सक्षम हैं.मौसमी संक्रमण, फोडे, मुहांसे, खुजली, एक्सिमा,एलर्जी आदि के लिए Gunpowder, Silicea आदि होम्योपैथिक दवाए कारगर हैं.

E) मोच– सामान्य कार्य के दौरान,भारी वजन उठाने से, गलत तरीके से कसरत करने से आदि अनेक कारन हैं जो मोच के लिए उत्तरदायी हो सकते हैं.प्रायः मोच शरीर के लचीले भागों जैसे कलाई, कमर, पैर,आदि को प्रभावित करती है. लोगों का सोचना है के मालिश ही इसका सर्वोत्तम उपचार है लेकिन मोच के लिए भी होम्योपैथिक दवाए उपलब्ध हैं जो ना केवल मोच के दर्द से राहत देती हैं बल्कि सुजन को दूर करने मे भी सहायक हैं यथा –Ruta, Rhus Tox आदि.

• गंभीर इमरजेन्सी –

आमजन के मस्तिष्क मैं यह बात बहुत गहराई तक बैठी हुई है कि गंभीर इमरजेन्सी से होम्योपैथिक दवा का कोई नाता नहीं है क्योंकि गंभीर इमरजेन्सी मैं यह नाकाम है लेकिन यह तथ्य पूर्णतः सही नहीं है. कुछ विशिष्ट होम्योपैथिक दवाए गंभीर इमरजेन्सी को फ़ौरन नियंत्रित करने मैं सक्षम हैं. यहाँ मैंने ऐसे हे कुछ गंभीर इमरजेन्सी और उनकी दवाओं का विवरण दिया है –

F) जलना– जलना एक दर्दनाक प्रक्रिया है जो कई कारणों से हो सकती है – महिलाओं का किचेन मैं कार्य करते वक़्त जल जाना, आग या भाप से जलना, सनबर्न आदि. जलने पर उपरोक्त होम्योपैथिकदवाएं प्रयोग मैं लाये जा सकती हैं –Cantharis, Urtica- Uren, Kali mur आदि.

G) हड्डी  टूटना – हड्डी टूटना एक आम इमर्जेंसी है जो प्रायः वृद्ध लोगो मे, बच्चों मैं अथवा दुर्घटना आदि के कारण हो सकती है. लोगो के एक आम सोच है के भला होम्योपैथिक दवाए कैसे इसे ठीक कर सकती हैं?
लेकिन होम्योपथी के खजाने मैं कुछ ऐसे दवाएं भी हैं जो दर्द को दूर करके टूटी हड्डी को पुनः जोड़ने मैं सक्रिय भूमिका निभाती हैं – Sympht, Ruta, Cal. Phos आदि इसी के उदहारण हैं.

H) लू लगना– गर्मी के मौसम मैं बरती गयी लापरवाही या कुछ मामूली गलतियाँ लू लगने के लिए जिम्मेदार होती हैं जैसे – धूप मैं घूमना, धूप से आते ही ठंडा पानी पीना, तेज़ गर्मी से आते ही कूलर या एसी मैं बैठना इन सब कारणों से शरीर तथा बाहरी वातावरण के बीच संयोजन गडबडा जाता है और व्यक्ति लू का शिकार हो जाता है. प्रायः लोग नहीं समझ पाते कि उनको लू का आघात लगा है. इसके मुख्य लक्षण- तेज़ बुखार, वामन, तेज़ सिरदर्द आदि हैं. लक्षण गंभीर होनेपर रोगी की मृत्यु भी संभव है. लू से बचाव के लिए होम्योपैथिक दवाए उपयोगी हैं. लू लगने पैर इनके फ़ौरन दी गई १ या २ खुराक रोगी की जान बचाने के लिए पर्याप्त हैं. जैसे – Nat-Mur, Glonineआदि.

I) टिटनेस – लोहे की ज़ंग लगी वास्तु से चोट लगाने पर या वाहन से दुर्घटना होने पर टिटनेस का खतरा पैदा हो जाता है जो जानलेवा भी साबित हो सकता है. होम्योपैथी मैं टिटनेस के लिए दोनों हे विकल्प मौजूद हैं –
1) चोट लगने पर फ़ौरन ली जानेवाली दवाई ताकि भविष्य मैं टिटनेस की सम्भावना न रहे.
2) टिटनेस हो जानेपर उसे आगे बढ़ने से रोकने तथा उसके उपचार हेतु ली जानेवाली दवाई.
जैसे – Hypericum, Led Pal आदि.

J) सदमा– यह एक अत्यधिक गंभीर इमर्जेंसी है जो व्यक्ति पर अस्थायी अथवा दूरगामी दोनों प्रकार के प्रभाव छोड़ सकती है. अचानक कोई ख़ुशी या गम का समाचार, प्रियजनों के मृत्यु, किसी भयानक दुर्घटना या खून आदि के घटना को साक्षात देखना आदि सदमे के मुख्य कारण हो सकते हैं. इसमें व्यक्ति अचानक बेहोश हो जाता है, उसकी आँखें चढ़ जाती हैं, दांत बांध जाते हैं तथा कभी कभी आवाज़ या याददाश्त भी चली जाती है. ऐसी अवस्था मैं प्रति ५-५ मिनट के अन्तराल पर कुछ विशिष्ट होम्योपैथिक दवाओं के खुराक दे कर व्यक्ति की जान बचाई जा सकती है जैसे –Ars Alb, Carbo Veg, Nat. Mur आदि.

K) हार्टअटेक– यह बड़ा प्रचलित तथ्य है कि हार्ट अटेक जैसी अति गंभीर इमर्जेंसी और होम्योपैथिक दवाओं के बीच कोई सम्बन्ध नहीं है क्यूंकि ऐसी हालत मैं हॉस्पिटल हे अंतिम विकल्प है जबकि अनेक बार ऐसा भी होता है कि रोगी हॉस्पिटल पहुँचने से पहले रास्ते मैं हे दम तोड़ देता है क्योंकि हार्ट अटेक के रोगी को फ़ौरन देखभाल तथा उपचार की ज़रूरत होती है.
होम्योपैथिक दवाओं मैं केवल हार्ट अटैक से बचाव करने के ही शक्ति नहीं है बल्कि यह रक्त संचार को नियमित बनाकर भविष्य मे हार्ट अटैक से बचाव प्रदान करती है, हार्ट के नालियों मे खून का थक्का बननेपर उसको घोल के समाप्त कर देती है तथा हार्ट की पेशियों को ताकत प्रदान करती है. सर्वोत्तम बात यह है कि इन दवाओं को जीवनभर प्रयोग करने की आवश्यकता नहीं होती किन्तु इनका प्रभाव स्थाई होता है. जैसे – Glonine, Ammonium Carb आदि.

L)   बच्चेकापेटमेंउल्टाहोना / प्रसवमेंसमस्या– यह एक बहुत ही गंभीर स्थिती है जिससे अधिकांश महिलाएं प्रसव के दौरान गुजरती हैं. अपने विकास काल के दौरान कभी-२ शिशु गर्भाशय मैं आड़ा या उल्टा हो जाता है. यह स्थिति माता और शिशु दोनों के ही जीवन के लिए खतरनाक हो सकती है यहाँ तक कि कई बार ऑपरेशन हे अंतिम विकल्प रह जाता है. इसी प्रकार से कई बार प्रसव के दौरान महिला को प्रसव पीडा अचानक बंद हो जाती है जो शिशु जन्म मैं तकलीफ का कारण बन जाती है.
होम्योपैथी मैं कुछ ऐसे विशिष्ट दवाएं हैं जो इस प्रकार के आपात अवस्था मे देने पर फ़ौरन अपना प्रभाव उत्पन्न करती हैं, ये रुकी हुई प्रसव पीडा को पुनः प्रारंभ करती हैं, शिशु जन्म को सरल बनती हैं तथा गर्भ मे शिशु की स्थिति को भी पुनः सही कर देती हैं लेकिन ये दवाएं किसी कुशल होम्योपैथिक सलाहकार की देख रेख मैं हे लेना उपयोगी होता है. कहा जा सकता है कि यह दवाएं ऑपरेशन से बचाव प्रदान करती हैं. जैसे –Sepia, Pulsatila, Caulophyllum.

Thursday, June 21, 2018

सिखों को हिन्दू समाज से अलग कर दिया।

मास्टर तारासिंह को मोहरा बनाकर ...
षड्यंत्रकारी अंग्रेजो ने,
सिखों को हिन्दू समाज से अलग कर दिया......
कैसे ... ?
जानने के लिए पूरी पोस्ट पढ़िए
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मास्टर तारासिंह

मास्टर तारासिंह कट्टर सिक्ख नेता थे। उन्होंने अंग्रेज सरकार की सहायता से सिक्खपंथ को बृहत् हिंदू समाज से पृथक् करने के सरदार उज्जवलसिंह मजीठिया के प्रयास में हर संभव योग दिया। सरकार को प्रसन्न करने के लिए सेना में अधिकाधिक सिक्खों को भर्ती होने के लिए प्रेरित किया। उनके कारण ही सिक्खों को भी मुसलमानों की भाँति इंडिया ऐक्ट 1919 में पृथक् सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व प्रदान किया गया। महायुद्ध के बाद मास्टर जी ने सिक्ख राजनीति को कांग्रेस के साथ संबद्ध किया और सिक्ख गुरुद्वारों और धार्मिक स्थलों का प्रबंध हिंदू मठाधीशों और हिंदू पुजारियों के हाथ से छीनकर उनपर अधिकार कर लिया। इससे अकाली दल की शक्ति में अप्रत्याशित वृद्धि हुई। मास्टर तारासिंह शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंध कमेटी के प्रथम महामंत्री चुने गए। ग्रंथियों की नियुक्ति उनके हाथ में आ गई। इनकी सहायता से अकालियों का आंतकपूर्ण प्रभाव संपूर्ण पंजाब में छा गया। मास्टर तारासिंह बाद में कई बार शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष चुने गए।

जीवनी

इनका जन्म रावलपिंडी के समीपवर्ती ग्राम के एक खत्री परिवार में सन् 1883 में हुआ था। वे बाल्यावस्था से ही कुशाग्रबुद्धि एवं विद्रोही प्रकृति के थे। 17 वर्ष की वय में सिक्ख धर्म की दीक्षा ले ली और अपना पैतृक गृह त्यागकर गुरुद्वारे को ही आवास बना लिया। तारासिंह ने स्नातक परीक्षा उत्तीर्ण कर अध्यापक के रूप में अपना जीवन प्रारंभ किया। एक खालसा विद्यालय के अवैतनिक हेडमास्टर हो गए पर मात्र दस रुपए मासिक में अपना निर्वाह करते थे। यह तारासिंह का अपूर्व त्याग था। यद्यपि बाद में धार्मिक आंदोलनों में सक्रिय रूप से भाग लेने के कारण उन्होंने अध्यापन कार्य सदा के लिए छोड़ दिया, तथापि हेडमास्टर तारासिंह, मास्टर तारासिंह के ही नाम से विख्यात हुए।
मास्टर तारासिंह ने प्रथम महायुद्ध के समय राजनीति में प्रवेश किया। उन्होंने सरकार की सहायता से सिक्खपंथ को बृहत् हिंदू समाज से पृथक् करने के सरदार उज्जवलसिंह मजीठिया के प्रयास में हर संभव योग दिया। सरकार को प्रसन्न करने के लिए सेना में अधिकाधिक सिक्खों को भर्ती होने के लिए प्रेरित किया। सिक्खों को इस राजभक्ति का पुरस्कार मिला। सब रेलवे स्टेशनों का नाम गुरुमुखी में लिखा जाना स्वीकार किया गया और सिक्खों को भी मुसलमानों की भाँति इंडिया ऐक्ट 1919 में पृथक् सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व प्रदान किया गया। महायुद्ध के बाद मास्टर जी ने सिक्ख राजनीति को कांग्रेस के साथ संबद्ध किया और सिक्ख गुरुद्वारों और धार्मिक स्थलों का प्रबंध हिंदू मठाधीशों और हिंदू पुजारियों के हाथ से छीनकर उनपर अधिकार कर लिया। इससे अकाली दल की शक्ति में अप्रत्याशित वृद्धि हुई। मास्टर तारासिंह शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंध कमेटी के प्रथम महामंत्री चुने गए। ग्रंथियों की नियुक्ति उनके हाथ में आ गई। इनकी सहायता से अकालियों का आंतकपूर्ण प्रभाव संपूर्ण पंजाब में छा गया। मास्टर तारासिंह बाद में कई बार शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष चुने गए।

मास्टर तारासिंह ने सन् 1921 के सविनय अवज्ञा आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया, पर सन् 1928 की भारतीय सुधारों संबंधी नेह डिग्री कमेटी की रिपोर्ट का इस आधार पर विरोध किया कि उसमें पंजाब विधानसंभा में सिक्खों को 30 प्रतिशत प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया था। अकाली दल ने कांग्रेस से अपना संबंध विच्छेद कर लिया। 1930 में पूर्ण स्वराज्य का संग्राम प्रारंभ होने पर मास्टर तारासिंह तटस्थ रहे और द्वितीय महायुद्ध में अंग्रेजों की सहायता की। सन् 1946 के महानिर्वाचन में मास्टर तारासिंह द्वारा संगठित "पथिक" दल अखंड पंजाब की विधानसभा में सिक्खों को निर्धारित 33 स्थानों में से 20 स्थानों पर विजयी हुआ। मास्टर जी ने सिखिस्तान की स्थापना के अपने लक्ष्य की पूर्ति के लिए श्री जिन्ना से समझौता किया। पंजाब में लीग का मंत्रिमंडल बनाने तथा पाकिस्तान के निर्माण का आधार ढूँढ़ने में उनकी सहायता की। लेकिन राजनीति के चतुर खिलाड़ी जिन्ना से भी उन्हें निराशा ही हाथ लगी। भारत विभाजन की घोषणा के बाद अवसर से लाभ उठाने की मास्टर तारासिंह की योजना के अंतर्गत ही देश में दंगों की शुरुआत अमृतसर से हुई, पर मास्टर जी का यह प्रयास भी विफल रहा। लेकिन उन्होंने हार न मानी; सतत संघर्ष उनके जीवन का मूलमंत्र था।

मास्टर जी ने संविधानपरिषद् में सिक्खों के सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व को कायम रखने, भाषासूची में गुरुमुखी लिपि में पंजाब को स्थान देने तथा सिक्खों को हरिजनों की भाँति विशेष सुविधाएँ देने पर बल दिया और सरदार पटेल से आश्वासन प्राप्त करने में सफल हुए। इस प्रकार संविधानपरिषद् द्वारा भी सिक्ख संप्रदाय के पृथक् अस्तित्व पर मुहर लगवा दी तथा सिक्खों को विशेष सुविधाओं की व्यवस्था कराकर निर्धन तथा दलित हिंदुओं के धर्मपरिवर्तन द्वारा सिक्ख संप्रदाय के त्वरित प्रसार का मार्ग उन्मुक्त कर दिया। तारासिंह इसे सिक्ख राज्य की स्थापना का आधार मानते थे। सन् 1952 के महानिर्वाचन में कांग्रेस से चुनाव समझौते के समय वे कांग्रेस कार्यसमिति द्वारा पृथक् पंजाबी भाषी प्रदेश के निर्माण तथा पंजाबी विश्वविद्यालय की स्थापना का निर्णय कराने में सफल हुए।

मास्टर तारासिंह ने विभिन्न आंदोलनों के सिलसिले में अनेक बार जेलयात्राएँ की, पर दिल्ली में आयोजित एक विशाल प्रदर्शन का नेतृत्व करने से पूर्व सरदार प्रतापसिंह द्वारा बंदी बनाया जाना उनके नेतृत्व के ह्रास का कारण बना। उन्होंने अपने स्थान पर प्रदर्शन का नेतृत्व करने के लिए अपने अन्यतम सहयोग संत फतेहसिंह को मनोनीत किया। संत ने बाद में मास्टर जी की अनुपस्थिति में ही पंजाबी प्रदेश के लिए आमरण्य अनशन प्रारंभ कर दिया, जिसे समाप्त करने के लिए मास्टर तारासिंह ने कारावास से मुक्ति के पश्चात् संत फतेहसिंह को विवश किया और प्रतिक्रियास्वरूप सिक्ख समुदाय के कोपभाजन बने। अपनी प्रतिष्ठा को बनाए रखने के लिए उन्होंने स्वयं आमरण अनशन प्रारंभ कर दिया, जिसे उन्होंने केंद्रीय सरकार के आश्वासन पर ही त्यागा। सरकार ने वार्तार्थ मास्टर जी के स्थान पर संत को आमंत्रित किया। घटनाक्रमों ने अब तक मास्टर जी के नेतृत्व को प्रभावहीन और संत को विख्यात बना दिया था।

वे हर मोड़ पर उलझते गए और संत जी की लोकप्रियता उसी अनुपात में बढ़ती गई। सरदार प्रतापसिंह के राजनीतिक कौशल ने सिक्ख राजनीतिक शक्ति के अक्षय स्रोत शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंध कमेटी से भी मास्टर को निष्कासित करने में संत को सफल बनाया। मास्टर जी संत जी से पराजित हुए। उनके 45 वर्ष पुराने नेतृत्व का अंत हो गया; उनकी राजनीतिक मृत्यु हो गई। सन् 1962 में उनके दल को विधानसभा में मात्र तीन स्थान प्राप्त हुए। यद्यपि 1966 में हुए पंजाब विभाजन की पूर्वपीठिका तैयार करने का संपूर्ण श्रेय मास्टर तारासिंह को ही है, तथापि पंजाबी सूबा बना मास्टर तारा सिंह के यश:शरीर के शव पर। विजय की वरमाला संत जी के गले में पड़ी। पर उस वयोवृद्ध सिक्खनेता ने आत्मसमर्पण करना सीखा नहीं था। वे अंत तक मैदान में डटे रहे। वे जीवनपर्यंत विवाद के केंद्र बने रहे, लेकिन जड़ कभी नहीं हुए।

22 नवंबर, सन् 1967 को 83 वर्ष की वय में देश के राजनीतिक जीवन का यह इंद्रधनुषी व्यक्तित्व समाप्त हो गया।

सेंधा नमक।

सेंधा नमक : भारत से कैसे गायब कर दिया गया, शरीर के लिए Best Alkalizer है :-
आप सोच रहे होंगे की ये सेंधा नमक बनता कैसे है ?? आइये आज हम आपको बताते हैं कि नमक मुख्य कितने प्रकार होते हैं। एक होता है समुद्री नमक दूसरा होता है सेंधा नमक (rock salt) । सेंधा नमक बनता नहीं है पहले से ही बना बनाया है। पूरे उत्तर भारतीय उपमहाद्वीप में खनिज पत्थर के नमक को ‘सेंधा नमक’ या ‘सैन्धव नमक’, लाहोरी नमक आदि आदि नाम से जाना जाता है । जिसका मतलब है ‘सिंध या सिन्धु के इलाक़े से आया हुआ’। वहाँ नमक के बड़े बड़े पहाड़ है सुरंगे है । वहाँ से ये नमक आता है। मोटे मोटे टुकड़ो मे होता है आजकल पीसा हुआ भी आने लगा है यह ह्रदय के लिये उत्तम, दीपन और पाचन मे मदद रूप, त्रिदोष शामक, शीतवीर्य अर्थात ठंडी तासीर वाला, पचने मे हल्का है । इससे पाचक रस बढ़्ते हैं। तों अंत आप ये समुद्री नमक के चक्कर से बाहर निकले। काला नमक ,सेंधा नमक प्रयोग करे, क्यूंकि ये प्रकर्ति का बनाया है ईश्वर का बनाया हुआ है। और सदैव याद रखे इंसान जरूर शैतान हो सकता है लेकिन भगवान कभी शैतान नहीं होता।

भारत मे 1930 से पहले कोई भी समुद्री नमक नहीं खाता था विदेशी कंपनीया भारत मे नमक के व्यापार मे आज़ादी के पहले से उतरी हुई है , उनके कहने पर ही भारत के अँग्रेजी प्रशासन द्वारा भारत की भोली भली जनता को आयोडिन मिलाकर समुद्री नमक खिलाया जा रहा है,
हुआ ये कि जब ग्लोबलाईसेशन के बाद बहुत सी विदेशी कंपनियो (अनपूर्णा,कैपटन कुक ) ने नमक बेचना शुरू किया तब ये सारा खेल शुरू हुआ ! अब समझिए खेल क्या था ?? खेल ये था कि विदेशी कंपनियो को नमक बेचना है और बहुत मोटा लाभ कमाना है और लूट मचानी है तो पूरे भारत मे एक नई बात फैलाई गई कि आओडीन युक्त नामक खाओ , आओडीन युक्त नमक खाओ ! आप सबको आओडीन की कमी हो गई है। ये सेहत के लिए बहुत अच्छा है आदि आदि बातें पूरे देश मे प्रायोजित ढंग से फैलाई गई । और जो नमक किसी जमाने मे 2 से 3 रूपये किलो मे बिकता था । उसकी जगह आओडीन नमक के नाम पर सीधा भाव पहुँच गया 8 रूपये प्रति किलो और आज तो 20 रूपये को भी पार कर गया है।

दुनिया के 56 देशों ने अतिरिक्त आओडीन युक्त नमक 40 साल पहले ban कर दिया अमेरिका मे नहीं है जर्मनी मे नहीं है फ्रांस मे नहीं ,डेन्मार्क मे नहीं , डेन्मार्क की सरकार ने 1956 मे आओडीन युक्त नमक बैन कर दिया क्यों ?? उनकी सरकार ने कहा हमने मे आओडीन युक्त नमक खिलाया !(1940 से 1956 तक ) अधिकांश लोग नपुंसक हो गए ! जनसंख्या इतनी कम हो गई कि देश के खत्म होने का खतरा हो गया ! उनके वैज्ञानिको ने कहा कि आओडीन युक्त नमक बंद करवाओ तो उन्होने बैन लगाया। और शुरू के दिनो मे जब हमारे देश मे ये आओडीन का खेल शुरू हुआ इस देश के बेशर्म नेताओ ने कानून बना दिया कि बिना आओडीन युक्त नमक भारत मे बिक नहीं सकता । वो कुछ समय पूर्व किसी ने कोर्ट मे मुकदमा दाखिल किया और ये बैन हटाया गया।

आज से कुछ वर्ष पहले कोई भी समुद्री नमक नहीं खाता था सब सेंधा नमक ही खाते थे ।

सेंधा नमक के फ़ायदे:-

सेंधा नमक के उपयोग से रक्तचाप और बहुत ही गंभीर बीमारियों पर नियन्त्रण रहता है । क्योंकि ये अम्लीय नहीं ये क्षारीय है (alkaline) क्षारीय चीज जब अमल मे मिलती है तो वो न्यूटल हो जाता है और रक्त अमलता खत्म होते ही शरीर के 48 रोग ठीक हो जाते हैं ।

ये नमक शरीर मे पूरी तरह से घुलनशील है । और सेंधा नमक की शुद्धता के कारण आप एक और बात से पहचान सकते हैं कि उपवास ,व्रत मे सब सेंधा नमक ही खाते है। तो आप सोचिए जो समुंदरी नमक आपके उपवास को अपवित्र कर सकता है वो आपके शरीर के लिए कैसे लाभकारी हो सकता है ??

सेंधा नमक शरीर मे 97 पोषक तत्वो की कमी को पूरा करता है ! इन पोषक तत्वो की कमी ना पूरी होने के कारण ही लकवे (paralysis)  का अटैक आने का सबसे बढ़ा जोखिम होता है सेंधा नमक के बारे में आयुर्वेद में बोला गया है कि यह आपको इसलिये खाना चाहिए क्योंकि सेंधा नमक वात, पित्त और कफ को दूर करता है।

यह पाचन में सहायक होता है और साथ ही इसमें पोटैशियम और मैग्नीशियम पाया जाता है जो हृदय के लिए लाभकारी होता है। यही नहीं आयुर्वेदिक औषधियों में जैसे लवण भाष्कर, पाचन चूर्ण आदि में भी प्रयोग किया जाता है।

समुद्री नमक के भयंकर नुकसान :-

ये जो समुद्री नमक है आयुर्वेद के अनुसार ये तो अपने आप मे ही बहुत खतरनाक है ! क्योंकि कंपनियाँ इसमे अतिरिक्त आओडीन डाल रही है। अब आओडीन भी दो तरह का होता है एक तो भगवान का बनाया हुआ जो पहले से नमक मे होता है । दूसरा होता है “industrial iodine”  ये बहुत ही खतरनाक है। तो समुद्री नमक जो पहले से ही खतरनाक है उसमे कंपनिया अतिरिक्त industrial iodine डाल को पूरे देश को बेच रही है। जिससे बहुत सी गंभीर बीमरिया हम लोगो को आ रही है । ये नमक मानव द्वारा फ़ैक्टरियों मे निर्मित है।

आम तौर से उपयोग मे लाये जाने वाले समुद्री नमक से उच्च रक्तचाप (high BP ) ,डाइबिटीज़, आदि गंभीर बीमारियो का भी कारण बनता है । इसका एक कारण ये है कि ये नमक अम्लीय (acidic) होता है । जिससे रक्त अम्लता बढ़ती है और रक्त अमलता बढ्ने से ये सब 48 रोग आते है । ये नमक पानी कभी पूरी तरह नहीं घुलता हीरे (diamond ) की तरह चमकता रहता है इसी प्रकार शरीर के अंदर जाकर भी नहीं घुलता और अंत इसी प्रकार किडनी से भी नहीं निकल पाता और पथरी का भी कारण बनता है ।

ये नमक नपुंसकता और लकवा (paralysis ) का बहुत बड़ा कारण है समुद्री नमक से सिर्फ शरीर को 4 पोषक तत्व मिलते है ! और बीमारिया जरूर साथ मे मिल जाती है !

रिफाइण्ड नमक में 98% सोडियम क्लोराइड ही है शरीर इसे विजातीय पदार्थ के रुप में रखता है। यह शरीर में घुलता नही है। इस नमक में आयोडीन को बनाये रखने के लिए Tricalcium Phosphate, Magnesium Carbonate, Sodium Alumino Silicate जैसे रसायन मिलाये जाते हैं जो सीमेंट बनाने में भी इस्तेमाल होते है। विज्ञान के अनुसार यह रसायन शरीर में रक्त वाहिनियों को कड़ा बनाते हैं, जिससे ब्लाक्स बनने की संभावना और आक्सीजन जाने मे परेशानी होती है। जोड़ो का दर्द और गढिया, प्रोस्टेट आदि होती है। आयोडीन नमक से पानी की जरुरत ज्यादा होती है। 1 ग्राम नमक अपने से 23 गुना अधिक पानी खींचता है। यह पानी कोशिकाओ के पानी को कम करता है। इसी कारण हमें प्यास ज्यादा लगती है।

निवेदन :पांच हजार साल पुरानी आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति में भी भोजन में सेंधा नमक के ही इस्तेमाल की सलाह दी गई है। भोजन में नमक व मसाले का प्रयोग भारत, नेपाल, चीन, बंगलादेश और पाकिस्तान में अधिक होता है। आजकल बाजार में ज्यादातर समुद्री जल से तैयार नमक ही मिलता है। जबकि 1960 के दशक में देश में लाहौरी नमक मिलता था। यहां तक कि राशन की दुकानों पर भी इसी नमक का वितरण किया जाता था। स्वाद के साथ-साथ स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी होता था। समुद्री नमक के बजाय सेंधा नमक का प्रयोग होना चाहिए।

आप इस अतिरिक्त आओडीन युक्त समुद्री नमक खाना छोड़िए और उसकी जगह सेंधा नमक खाइये !! सिर्फ आयोडीन के चक्कर में समुद्री नमक खाना समझदारी नहीं है, क्योंकि जैसा हमने ऊपर बताया आओडीन हर नमक मे होता है सेंधा नमक मे भी आओडीन होता है बस फर्क इतना है इस सेंधा नमक मे प्राकृतिक के द्वारा भगवान द्वारा बनाया आओडीन होता है इसके इलावा आओडीन हमें आलू, अरवी के साथ-साथ हरी सब्जियों से भी मिल जाता है।।ॐ।।