Tuesday, February 23, 2016

विपुलस्वान मुनि और उनके पुत्रों की कथा..

द्वापर युग की बात है मंदनपाल नाम का एक पक्षी था । उसके चार पुत्र थे, जो बड़े बुद्धिमान थे । उनमें द्रोण सबसे छोटा था । वह बड़ा धर्मात्मा और वेद - वेदांग में पारंगत था । उसने कंधर की अनुमति से उसकी पुत्री तार्क्षी से विवाह किया । कुछ समय बाद तार्क्षी गर्भवती हुई और साढ़े तीन मास के पश्चात वह कुरुक्षेत्र चली गयी । वहां वह भविष्यतावश कौरवों और पाण्डवों के भंयकर युद्ध के बीच घुस गयी । तब अर्जुन के बाण से उसकी खाल उधड़ गयी, जिससे उसका पेट फट गया और उसके चार अंडे अपनी आयु शेष रहने के कारण पृथ्वीपर ऐसे गिरे मानो रुई की ढेर पर गिरे हों । उनके गिरते ही राजा भगदत्त के सुप्रतीक नामक गजराज का विशाल घंटा, जिसकी जंजीर अर्जुन के ही बाण से कटी थी, नीचे गिर पड़ा । उसने भूतल को विदीर्ण कर दिया और मांस की ढेर पर पड़े तार्क्षी के उन अंडों को चारों ओर से ढक दिया ।

युद्ध की समाप्ति के बाद शमीक ऋषि उस स्थान पर आ तब उन्होंने शिष्यों के साथ उस घंटे को ऊपर उठाया और उन अनाथ एवं अजातपक्ष पक्षि शावकों को देखा । फिर तो उन्होंने शिष्यों से कहा - ‘इन पक्षि - शावकों को आश्रम में ले चलो और इन्हें ऐसे स्थान पर रखो, जहां बिलाव आदि का भय न हो ।’
मुनि कुमार पक्षि शावकों को लेकर आश्रम में आये । वहां मुनिवर शमीक ने प्रतिदिन भोजन, जल और संरक्षण के द्वारा उनका पालन पोषण किया । एक मास में ही वे सूर्यदेव के रथमार्ग पर उड़ने लगे, जिन्हें कौतुकवश आंखें फाड़कर मुनिकुमार देखा करते थे ।
जब उन पक्षि शावकों ने नगरों से भरी, समुद्र से घिरी, नदियों वाली और रथ के पहिये के समान गोल पृथ्वी का परिभ्रमण कर लिया, तब वे आश्रम में लौट आये । उस समय ऋषि शमीक शिष्यों पर अनुकंपा करके प्रवचन द्वारा धर्म कर्म का निर्णय कर रहे थे । उन पक्षि शावकों ने उनकी प्रदक्षिणा करके उनके चरणों की वंदना की और कहा - ‘मुनिवर ! आपने हमें भयंकर मृत्यु से मुक्त किया है, अत: आप हमारे पिता हैं और गुरु भी । जब हमलोग मां के पेट में थे, तभी हमारी मां मर गयी और पिता ने बी हमारा पालन पोषण नहीं किया । आपने हमें जीवनदान दिया है, जिससे हम बालक बचे हुए हैं । इस पृथ्वी पर आपका तेज अप्रतिहत है । आपने ही हाथी का घंटा उठाकर कीड़ों की भांति सूखते हुए हगमलोगों के कष्टों का निवारण किया है ।’
उन पक्षि शावकों की ऐसी स्पष्ट शुद्ध वाणी सुनकर शमीक मुनि ने उनसे पूछा - ‘ठीरक - ठीक बताओ, तुम्हें यह मानव वाणी कैसे मिली ? साथ ही यब भी बताओ कि किसके शाप से तुममें रूप और वाणी का ऐसा परिवर्तन हो गया ?’
पक्षियों ने कहा - विपुलस्वान नाम के एक प्रसिद्ध महामुनि थे । उनके दो पुत्र हुए - सुकृष और तुम्बुरु । हम चारों यतिराज सुकृष के ही पुत्र हैं और सदा विनम्रतापूर्वक व्यवहार और भक्तिभाव से उन्हीं की सेवा शुश्रूषा में लगे रहे हैं । तपश्चरण में लीन अपने पिता सुकृष मुनि की इच्छा के अनुसार हमने समिधा, पुष्प और भोज्य पदार्थ सब कुछ उन्हें समर्पित किया है । इस प्रकार जब हम वहां रहते रहे, तब एक बार हमारे आश्रम में विशाल देहधारी टूटे पंखवाले वृद्धावस्थाग्रस्त ताम्रवर्ण के नेभों से युक्त, शिथिल शरीर पक्षी के रूप में देवराज इंद्र पधारे । वे सुकृष ऋषि की परीक्षा लेने आये थे । उनका आगमन ही हमलोगों पर शाप का कारण बन गया । पक्षी रूपी इंद्र ने कहा - ‘बज्य विप्रवर ! मैं बुभुक्षित हूं । आप मेरी प्राणरक्षा करें । मैं भोजन की याचना करता हूं । आप ही हमारे एकमात्र उद्धारक हैं । मैं विध्याचल के शिखर पर रहनेवाला हूं, जहां से उड़ान भरने वाले पक्षियों के पंखों की वेगयुक्त वायु से मैं नीचे गिर पड़ा । गिरने के कारण मैं सप्ताह भर बेसुध पृथ्वी पर पड़ा रहा । आठवें दिन मेरी चेतना लौटी । तब क्षुधा पीड़ित मैं आपकी शरण में आया हूं । मैं बड़ा दु:खी हूं, मेरा मन बड़ा खिन्न है और मेरी प्रसन्नचा नष्ट हो चुकी है । बस, मुझे भोजन की अभिलाषा है । विप्रवर ! आप मुझे कुछ खाने को दें, जिससे मेरे प्राण बच जाएं । ’
ऐसा कहे जाने पर सुकृष ऋषि ने पक्षिरूपधारी इंद्र से कहा - ‘प्राणरक्षा के लिए तुम जो भी भोजन चाहो, मैं दूंगा ।’ ऐसा कहकर ऋषि ने फिर उस पक्षी से पूछा - ‘तुम्हारे लिए मैं किस प्रकार के भोजन की व्यवस्था करूं ?’ यह सुनकर उसने कहा - ‘नर मांस मिलने पर मैं पूर्णरूप से संतृप्त हो जाऊंगा ।’
ऋषि ने पक्षी से कहा - तुम्हारी कुमारवस्था एवं युवावस्था समाप्त हो चुकी है, अब तुम बुढ़ापे की अवस्था में हो । इस अवस्था में मनुष्य की सभी इच्छाएं दूर हो जाती हैं । फिर भी ऐसा क्यों है कि तुम इतने क्रूर हृदय हो ? कहां तो मनुष्य का मांस और कहां तुम्हारी अंतिम अवस्था, इससे तो यही सिद्ध होता अथवा मेरा यह सब कहना निष्प्रयोजन है, क्योंकि जब मैंने वचन दे दिया तब तो तुम्हें भोजन देनी ही है ।
उससे ऐसा कहकर और नर मांस देने का निश्चय करके विप्रवर सुकृष ने अविलंब हमलोगों को पुकारा और हमारे गुणों की प्रशंसा की । तत्पश्चात उन्होंने हमलोगों से, जो विनम्रतापूर्वक हाथ जोड़े बैठे थे, बड़ा कठोर वचन कहा - ‘अरे पुत्रों ! तुम सब आत्मज्ञानी होकर पूर्णमनोरथ हो चुके हो, किंतु जैसे मुझपर अतिथि ऋण है, वैसे ही तुम पर भी है, क्योंकि तुम्हीं मेरे पुत्र हो । यदि तुम अपने गुरु को जो तुम्हारा एकमात्र पिता है, पूज्य मानते हो तो निष्कलुष हृदय से मैं जैसा कहता हूं, वैसा करो ।’ उनके ऐसा कहने पर गुरु के प्रति श्रद्धालु हमलोगों के मुंह से निकल पड़ा कि ‘आपका जो भी आदेश होगा, उसके विषय में आप यहीं सोचें कि उसका पालन हो गया ।’
ऋषि ने कहा - ‘भूख और प्यास से व्याकुल हुआ यह पक्षी मेरी शरण में आया है । तुमलोगों के मांस से इसकी क्षणभर के लिए तृप्ति हो जाती तो अच्छा होता । तुमलोगों के रक्त से इसकी प्यास बुझ जाएं, इसके लिए तुमलोग अविलंब तैयार हो जाओ ।’ यह सुनकर हमलोग बड़े दु:खी हुए और हमारा शरीर कांप उठा, जिससे हमारे भीतर का भय बाहर निकल पड़ा और हम कह उठे - ‘ओह ! यह काम हमसे नहीं हो सकता ।’
हमलोगों की इस प्रकार की बात सुनकर सुकृष मुनि क्रोध से जल भुन उठे और बोले - ‘तुमलोगों ने मुझे वचन देकर भी उसके अनुसार कार्य नहीं किया, इसलिए मेरी शापाग्नि में जलकर पक्षियोंनि में जन्म लोगे ।’
हमलोगों से ऐसा कहकर उन्होंने उस पक्षी से कहा - ‘पक्षिराज ! मुझे अपना अंत्येष्टि संस्कार और शास्त्रीय विधि से श्राद्धादि कर लेने दो, इसके बाद तुम निश्चिंत होकर यहीं मुझे खा लेना । मैंने अपना ही शरीर तुम्हारे लिए भक्ष्य बना दिया है ।’ आप अपना योगबल से अपना शरीर छोड़ दें, क्योंकि मैं जीवित जंतु को नहीं खाता । पक्षी ने कहा । पक्षी के इस वचन को सुनकर मुनि सुकृष योगयुक्त हो गये । उनके शरीर त्याग के निश्चय को जानकर इंद्र ने अपना वास्तविक शरीर धारण कर लिया और कहा - ‘विप्रवर ! आप अपनी बुद्धि से ज्ञातव्य वस्तु को ज्ञान लीजिए । आप महाबुद्धिमान और परम पवित्र हैं ।आपकी परीक्षा लेने के लिए ही मैंने यह अपराध किया है । आज से आपमें ऐंद्र अथवा परमैश्वर्ययुक्त ज्ञान प्रादुर्भूत होगा और आपके तपश्चरण तथा धर्म कर्म में कोई विघ्न उपस्थित न होगा ।’
ऐसा कहकर जब इंद्र चले गये, तब हमलोगों ने अपने क्रुद्ध पिता महामुनि सुकृष से सिर झुकाकर निवेदन किया - ‘पिताजी ! हम मृत्यु से भयभीत हो गये थे, हमें जीवन से मोह हो गया था, आप हम दोनों को क्षमा दान दें । तब उन्होंने कहा - ‘मेरे बच्चों ! मेरे मुंह से जो बात निकल चुकी है, वह कभी मिथ्या न होगी । आजतक मेरी वाणी से असत्य कभी भी नहीं निकला है । मुझे तो ऐसा प्रतीत होता है कि दैव ही समर्थ है और पौरुष व्यर्थ है । भाग्य से प्रेरित होने से ही मुझसे ऐसा अचिंतित अकार्य हो गया है । अब तुमलोगों ने मेरे सामने नतमस्तक होकर मुझे प्रसन्न किया है, इसलिए पक्षी की योनि में पहुंच जाने पर भी तुमलोग परमज्ञान को प्राप्त कर लोगे ।’ भगवन ! इस प्रकार पहले दुर्दैववश पिता सुकृष ऋषि ने हमें शाप दिया था, जिससे बहुत समय के बाद हमलोगों ने दूसरी योनि में जन्म लिया है ।
उनकी ऐसी बात सुनकर परमैश्वर्यवान शमीक मुनि ने समस्त समीपवर्ती द्विजगमों को संबोधित करके कहा - ‘मैंने आपलोगों के समक्ष पहले ही कहा था कि ये पक्षी साधारण पक्षी नहीं हैं, ये परमज्ञानी हैं, जो अमानुषिक युद्ध में भी मरने से बच गये ।’ इसके बाद प्रसन्नहृदय महात्मा शमीक मुनि की आज्ञा पाकर वे पक्षी पर्वतों में श्रेष्ठ, वृक्षों और लताओं से भरे विंध्याचल पर्वतपर चले गये ।
वे धर्मपक्षी आजतक उसी विंध्यपर्वत पर निवास कर रहे हैं और तपश्चरण तथा स्वाध्याय में लगे हैं एवं समाधि सिद्धि के लिए दृढ़ निश्चय कर चुके हैं ।

Monday, February 15, 2016

ज्वर या बुखार.


ज्वर या बुखार.........आयुर्वेदिक उपचार
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शरीर का एक सामान्य तापक्रम होता है, जिससे ताप बढ़े तो ज्वर का होना कहा जाता है। आयुर्वेद में ज्वर के विषय में विस्तार से विवरण दिया गया है तथा आठ प्रकार के ज्वरों की विस्तृत चर्चा भी है।ज्वर यानी बुखार या तो गलत आहार-विहार के कारण, कुपित हुए दोषों से उत्पन्न या किसी आगंतुक के कारण होता है। इसे आसानऔर मामूली रोग नहीं समझना चाहिए, अगर बुखार बिगड़ जाए, इसका उलेटा हो जाए तो जान आफत में पड़ जाती है।

ज्वर के प्रभाव से शरीर बिना परिश्रम किए ही कमजोर हो जाता है। बेहोशी-सी छाई रहती है और भोजन में अरुचि हो जाती है।

आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के अनुसार अधिकांश बुखार बैक्टीरियल या वायरल इन्फेक्शन्स यानी संक्रमण होने पर होते हैं, जैसे टायफाइड, टांसिलाइटिस, इन्फुएन्जा या मीजल्सआदि बुखार हैं। वैसे बिना संक्रमण के भी बुखार होता है, जैसे जलीयांश की कमी या थायरोटाक्सीकोसिस, मायोकार्डियल इन्फार्कशन और लिम्फोमा आदि।

यदि बुखार किसी इन्फेक्शन के कारण होता है तो ऐलोपौथिक चिकित्सा पद्धति के अनुसार रोगी को एण्टीबायोटिक दवाई दी जाती है और कोर्स के रूप में तब तक दवा दी जाती है, जब तक इनफेक्शन समाप्त नहीं हो जाता।

आयुर्वेद की चिकित्सा पद्धति रोग को दबाने की नहीं, रोग को कारण सहित जड़ से उखाड़ कर फेंकने की है।

आयुर्वेद ने ज्वर के 8 भेद बताए हैं यानी ज्वर होने के 8 कारण माने हैं।
1. वात 2. पित्त 3. कफ 4. वात पित्त 5. वात कफ 6. पित्त कफ 7. वात पित्त कफ। इनके दूषित और कुपित होने से तथा 8. आगन्तुक कारणों से बुखार होता है।

निज कारण शारीरिक होते हैं और आगंतुक कारण बाहरी होते हैं।

निज एवं आगन्तुक ज्वर के भेद निम्नलिखित हैं-

निज :
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1. मिथ्या आहार-विहार करने से हुआ ज्वर।
2. शरीर में दोष पहले कुपित होते हैं लक्षण बाद में प्रकट होते हैं।
3. दोष भेद से ज्वर 7 प्रकार का होता है।
4. चिकित्सा दोष के अनुसार होती हैं।

आगन्तुक :
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1. अभिघात, अभिषंग, अभिचार और अभिशाप के कारण ज्वर का होना।
2.शरीर में पहले लक्षण प्रकट होते हैं, बाद में दोषों का प्रकोप होता है।
3. कारण भेद से अनेक प्रकार का होता है।
4. चिकित्सा का निर्णय कारण के अनुसार होता है।

ज्वर 104 या अधिक डिग्री तक पहुंच गया हो तो सिर पर ठंडे पानी की पट्टी बार-बार रखने, पैरों के तलुओं में लौकी का गूदा पानी के छींटे मारते हुए घिसने और बाद में दोनों तलुओंमें 1-1 चम्मच शुद्ध घी मसलकर सुखा देने से ज्वर उतर जाता है या हल्का तो होता ही है।
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सामान्य ज्वर के लिए औषधियाँ
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ज्वरनाशक चिकित्सा :
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साधारण ज्वर के लिए
मृत्यंजय रस 2 गोली,
महासुदर्शन घनवटी 2 गोली, महाज्वरांकुश रस 2 गोली (सबगोलियां 1-1 रत्ती वाली) सुबह, दोपहर और शाम को पानी के साथ लेना चाहिए। बच्चों को (12 वर्ष से ऊपर) 1-1 गोली और इससे कम उम्र वाले छोटे बच्चों को आधी-आधी गोली देना चाहिए। तीनों गोलियों को एक साथ लेना होगा। इन गोलियों को लेने के एक घंटे बाद अमृतारिष्ट 2 चम्मच और महासुदर्शन काढ़ा 2 चम्मच आधा कप पानी में डालकर पी लेना चाहिए।

छोटी उम के बच्चों को मात्रा कम करके पिलाएँ।

पथ्य :
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मूँग की दाल और दाल का पानी, परवल, लौकी, अनार, मौसम्बी का रस, दूध, पपीता आदि हल्के पदार्थों का सेवन करना चाहिए।

अपथ्य :
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भारी अन्न, तेज मिर्च-मसालेदार,तले हुए पदार्थ, खटाई, अधिक परिश्रम, ठण्डे पानी से स्नान, मैथुन, ठण्डा कच्चा पानी पीना, हवा में घूमना और क्रोध करना यह सब वर्जित है।

जीर्ण ज्वर चिकित्सा :
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बहुत दिनों तक बुखार बना रहे तो इसे जीर्ण ज्वर कहते हैं। ऐसे जीर्ण की चिकित्सा के लिए
अयमंगल रस 2 ग्राम,
स्वर्ण मालिनी वसन्त 2 ग्राम
और प्रवाल पिष्टी 5 ग्राम
सबको मिलाकर बराबर वजन की 30 पुड़िया बना लें। 1-1 पुड़िया सुबह-शाम थोड़े से शहद के साथ मिलाकर चाट लें। पुरानेबुखार को ठीक करने के लिए यह प्रयोग उत्तम है।

शिशु ज्वर चिकित्सा :
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संजीवनी वटी 1 गोली और महासुदर्शन घन वटी आधी गोली दोनों को पीसकर 1-1 पुड़िया सुबह-शाम शहद से मिलाकर चटा दें।

घरेलू नुस्खे
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असगन्ध चूर्ण 5 ग्राम, गिलोय चूर्ण 5 ग्राम दोनों को मिलाकर गर्म पानी के साथ दिन में एक बार शाम को सेवन करने सेसाधारण ज्वर चला जाता है।

दारुहल्दी 50 ग्राम मोटी-मोटी जौकुट कूटकर आधा लीटर पानीमें उबालें। जब पानी आधा रह जाए तो इसे उतारकर छान लीजिए। 25-25 मिली मात्रा में दिन भर में चार बार पिलाएं और ओढ़कर सो जाने को कहें। थोड़ी देर के बाद पसीना आएगा और बुखार उतर जाएगा।

अडूसे के पत्ते और आँवला दोनों 25-25 ग्राम लेकर मोटा-मोटा कूटकर जौकुट कर लें। इसे मिट्टी के पात्र में डालकर रख दें। 8 घंटे बाद इसे मसल-छानकर पिसी मिश्री मिलाकररोगी को पिलाना चाहिए। इससे ज्वर उतर जाता है।

एक बहुत ही अच्छा और अनेक बार का अनुभूत सफल सिद्ध नुस्खा है, जो सर्दी, जुकाम, टांसिलाइटिस, गले की खराश आदि के कारण होने वाली हरारत, हड़फुटन, शरीर का दर्द और बुखार आदि व्यधियां निरापद ढंग से ठीक कर देता है। यह नुस्खा बच्चे, बड़े, बूढ़े सभी के लिए उपयोगी है-

तुलसी की 11 पत्ती, लौंग 2 नग, अदरक का रस आधा चम्मच या सोंठ का चूर्ण आधा चम्मच और पाव (चौथाई) चम्मच सेंधा नमक, इनसबको 2 कप पानी में डालकर उबालें। जब एक कप पानी बचे तब छानकर ठण्डा कर लें। इसमें दो चम्मच शहद या पिसी मिश्री मिला लें। दो खुराक में सुबह शाम 2-3 दिन पीने से सभी व्याधियां चली जाती हैं।

पीपल का चूर्ण 3 ग्राम थोड़े से अदरक में मिला लें। इसमें 1 चम्मच शहद मिलाकर सुबह-शाम चाटें। इससे बुखार और खांसी दोनों में आराम हो जाता है।

बच्चों को बुखार के साथ सर्दी-खांसी भी हो तो बेल के पत्तों का रस निकालकर शहद के साथ दिन में 2-3 बार चटाना चाहिए।

अजवायन 25 ग्राम एक गिलास पानी में डालकर उबालें। अच्छी तरह से उबालकर छान लें। रोगी को 4-4 चम्मच दिन में तीन बार पिलाने से ज्वर की बेचैनी दूर होती है और ज्वर दूर होता है।

जीर्ण ज्वर में बड़ी इलायची के बीज 10 ग्राम, बेल की जड़ की छाल 10 ग्राम, पुनर्नवा की जड़ 10 ग्राम तीनों को कूटकर काढ़ा बना लें। इसे 4-4 चम्मच दिन में तीन बार पिएं। इस प्रयोग से पुराना बुखार भी चला जाता है।

गाय के दूध में जीरे को डालकर पका लें और जीरे को सुखाकर चूर्ण कर लें। इस चूर्ण में समभाग मिश्री पीसकर मिला लें। इसे 1-1 चम्मच सुबह-शाम पानी के साथ लेने से पुराना बुखार चला जाता है।

Thursday, February 11, 2016

बहुत अच्छी जानकारी हैं।

👉ये है देश के दो बड़े
महान देशभक्तों की कहानी....

👉जनता को नहीं पता है कि भगत सिंह के खिलाफ विरुद्ध गवाही देने वाले दो व्यक्ति कौन थे । जब दिल्ली में भगत सिंह पर अंग्रेजों की अदालत में असेंबली में बम फेंकने का मुकद्दमा चला तो...

👉 भगत सिंह और उनके साथी बटुकेश्वर दत्त के खिलाफ शोभा सिंह ने गवाही दी और दूसरा गवाह था शादी लाल !

👉 दोनों को वतन से की गई इस गद्दारी का इनाम भी मिला। दोनों को न सिर्फ सर की उपाधि दी गई बल्कि और भी कई दूसरे फायदे मिले।

👉 शोभा सिंह को दिल्ली में बेशुमार दौलत और करोड़ों के सरकारी निर्माण कार्यों के ठेके मिले आज कनौट प्लेस में सर शोभा सिंह स्कूल में कतार लगती है बच्चो को प्रवेश नहीं मिलता है जबकि

👉 शादी लाल को बागपत के नजदीक अपार संपत्ति मिली। आज भी श्यामली में शादी लाल के वंशजों के पास चीनी मिल और शराब कारखाना है।

👉 सर शादीलाल और सर शोभा सिंह, भारतीय जनता कि नजरों मे सदा घृणा के पात्र थे और अब तक हैं

👉 लेकिन शादी लाल को गांव वालों का ऐसा तिरस्कार झेलना पड़ा कि उसके मरने पर किसी भी दुकानदार ने अपनी दुकान से कफन का कपड़ा तक नहीं दिया।

👉 शादी लाल के लड़के उसका कफ़न दिल्ली से खरीद कर लाए तब जाकर उसका अंतिम संस्कार हो पाया था।

👉शोभा सिंह खुशनसीब रहा। उसे और उसके पिता सुजान सिंह (जिसके नाम पर पंजाब में कोट सुजान सिंह गांव और दिल्ली में सुजान सिंह पार्क है) को राजधानी दिल्ली समेत देश के कई हिस्सों में हजारों एकड़ जमीन मिली और खूब पैसा भी।

👉 शोभा सिंह के बेटे खुशवंत सिंह ने शौकिया तौर पर पत्रकारिता शुरु कर दी और बड़ी-बड़ी हस्तियों से संबंध बनाना शुरु कर दिया।

👉सर शोभा सिंह के नाम से एक चैरिटबल ट्रस्ट भी बन गया जो अस्पतालों और दूसरी जगहों पर धर्मशालाएं आदि बनवाता तथा मैनेज करता है।
👉 आज दिल्ली के कनॉट प्लेस के पास बाराखंबा रोड पर जिस स्कूल को मॉडर्न स्कूल कहते हैं वह शोभा सिंह की जमीन पर ही है और उसे सर शोभा सिंह स्कूल के नाम से जाना जाता था।

👉 खुशवंत सिंह ने अपने संपर्कों का इस्तेमाल कर अपने पिता को एक देशभक्त दूरदृष्टा और निर्माता साबित करने की भरसक कोशिश की।

👉 खुशवंत सिंह ने खुद को इतिहासकार भी साबित करने की भी कोशिश की और कई घटनाओं की अपने ढंग से व्याख्या भी की।

👉 खुशवंत सिंह ने भी माना है कि उसका पिता शोभा सिंह 8 अप्रैल 1929 को उस वक्त सेंट्रल असेंबली मे मौजूद था जहां भगत सिंह और उनके साथियों ने धुएं वाला बम फेंका था।

👉 बकौल खुशवंत सिह, बाद में शोभा सिंह ने यह गवाही दी, शोभा सिंह 1978 तक जिंदा रहा और दिल्ली की हर छोटे बड़े आयोजन में वह बाकायदा आमंत्रित अतिथि की हैसियत से जाता था।

👉 हालांकि उसे कई जगह अपमानित भी होना पड़ा लेकिन उसने या उसके परिवार ने कभी इसकी फिक्र नहीं की।

👉 खुशवंत सिंह का ट्रस्ट हर साल सर शोभा सिंह मेमोरियल लेक्चर भी आयोजित करवाता है जिसमे बड़े-बड़े नेता और लेखक अपने विचार रखने आते हैं,
और...

👉 बिना शोभा सिंह की असलियत जाने (य़ा फिर जानबूझ कर अनजान बने) उसकी तस्वीर पर फूल माला चढ़ा आते हैं

👉आज़ादी के दीवानों के विरुद्ध और भी गवाह थे ।

1. शोभा सिंह
2. शादी राम
3. दिवान चन्द फ़ोर्गाट
4. जीवन लाल
5. नवीन जिंदल की
    बहन के पति का दादा
6. भूपेंद्र सिंह हुड्डा का दादा

👉दीवान चन्द फोर्गाट DLF कम्पनी का Founder था इसने अपनी पहली कालोनी रोहतक में काटी थी

👉इसकी इकलौती बेटी थी जो कि K.P.Singh को ब्याही और वो मालिक बन गया DLF का ।

👉अब K.P.Singh की
भी इकलौती बेटी है जो कि कांग्रेस के नेता और गुज्जर से मुस्लिम Converted गुलाम नबी आज़ाद के बेटे सज्जाद नबी आज़ाद के साथ ब्याही गई है । अब वह DLF का मालिक बनेगा ।

👉जीवन लाल मशहूर एटलस साईकल कम्पनी का मालिक था।

🙏बाकि मशहूर हस्तियों को तो आप जानते ही होंगे ।

Tuesday, February 9, 2016

हनुमान चालीसा - अर्थ सहित।

हम सब हनुमान चालीसा पढते हैं, सब रटा रटाया |
क्या हमे चालीसा पढते समय पता भी
होता है कि हम हनुमानजी से क्या कह रहे हैं
या क्या मांग रहे हैं ?
बस रटा रटाया बोलते जाते हैं | आनंद और फल शायद
तभी मिलेगा जब हमें इसका मतलब भी
पता हो |
तो लीजिए पेश है श्री हनुमान
चालीसा अर्थ सहित !!
श्री गुरु चरण सरोज रज,निज मन मुकुरु सुधारि।
बरनऊँ रघुवर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि।
📯《अर्थ》→ गुरु महाराज के चरण.कमलों की धूलि
से अपने मन रुपी दर्पण को पवित्र करके
श्री रघुवीर के निर्मल यश का वर्णन
करता हूँ, जो चारों फल धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को देने वाला
हे।
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बुद्धिहीन तनु जानिके,सुमिरो पवन-कुमार।
बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं,हरहु कलेश विकार।
📯《अर्थ》→ हे पवन कुमार! मैं आपको सुमिरन.करता हूँ।
आप तो जानते ही हैं,कि मेरा शरीर और
बुद्धि निर्बल है।
मुझे शारीरिक बल,सदबुद्धि एवं
ज्ञान दीजिए और मेरे दुःखों व दोषों का नाश कर
दीजिए।
जय हनुमान ज्ञान गुण सागर,जय कपीस तिहुँ लोक
उजागर॥1॥
📯《अर्थ 》→ श्री हनुमान जी!
आपकी जय हो।
आपका ज्ञान और गुण अथाह है। हे कपीश्वर!
आपकी जय हो! तीनों लोकों,स्वर्ग लोक,
भूलोक और पाताल लोक में आपकी कीर्ति
है।
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राम दूत अतुलित बलधामा, अंजनी पुत्र पवन सुत नामा॥
2॥
📯《अर्थ》→ हे पवनसुत अंजनी नंदन! आपके
समान
दूसरा बलवान नही है।
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महावीर विक्रम बजरंगी, कुमति निवार
सुमति के संगी॥3॥
📯《अर्थ》→ हे महावीर बजरंग बली!
आप विशेष पराक्रम
वाले है। आप खराब बुद्धि को दूर करते है, और
अच्छी बुद्धि वालो के साथी,सहायक है।
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कंचन बरन बिराज सुबेसा ,कानन कुण्डल कुंचित केसा॥
4॥
📯《अर्थ》→ आप सुनहले रंग, सुन्दर वस्त्रों, कानों में कुण्डल
और घुंघराले बालों से सुशोभित हैं।
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हाथ ब्रज और ध्वजा विराजे,काँधे मूँज जनेऊ साजै॥
5॥
📯《अर्थ》→ आपके हाथ मे बज्र और ध्वजा है और कन्धे
पर मूंज के जनेऊ की शोभा है।
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शंकर सुवन केसरी नंदन,तेज प्रताप महा जग वंदन॥
6॥
📯《अर्थ 》→ हे शंकर के अवतार! हे केसरी
नंदन. !
आपके पराक्रम और महान यश की संसार भर मे
वन्दना होती है।
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विद्यावान गुणी अति चातुर,रान काज करिबे को आतुर॥
7॥
📯《अर्थ 》→ आप प्रकान्ड विद्या निधान है, गुणवान और
अत्यन्त कार्य कुशल होकर श्री राम काज करने के
लिए आतुर रहते है।
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प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया
॥8॥
📯《अर्थ 》→ आप श्री राम चरित सुनने मे आनन्द
रस लेते है। श्री राम, सीता और लखन
आपके हृदय मे बसे रहते है 
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सूक्ष्म रुप धरि सियहिं दिखावा, बिकट रुप धरि लंक जरावा ॥9॥
📯《अर्थ》→ आपने अपना बहुत छोटा रुप धारण करके
सीता जी को दिखलाया और भयंकर रूप
करके.लंका को जलाया।
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भीम रुप धरि असुर संहारे,रामचन्द्र के काज संवारे॥
10॥
📯《अर्थ 》→ आपने विकराल रुप धारण करके.राक्षसों को मारा
और श्री रामचन्द्र जी के उदेश्यों को
सफल कराया।
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लाय सजीवन लखन जियाये,श्री
रघुवीर हरषि उर लाये॥11॥
📯《अर्थ 》→ आपने संजीवनी
बुटी लाकर लक्ष्मण
जी को जिलाया जिससे श्री
रघुवीर ने हर्षित होकर आपको हृदय से लगा लिया।

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रघुपति कीन्हीं बहुत बड़ाई, तुम मम
प्रिय भरत सम भाई॥
12॥
📯《अर्थ 》→ श्री रामचन्द्र ने आपकी
बहुत प्रशंसा की और कहा की तुम मेरे
भरत जैसे प्यारे भाई हो।
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सहस बदन तुम्हरो जस गावैं, अस कहि श्री पति
कंठ लगावैं॥13॥
📯《अर्थ 》→ श्री राम ने आपको यह कहकर
हृदय से.लगा लिया की तुम्हारा यश हजार मुख से
सराहनीय है।
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सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा, नारद,सारद सहित
अहीसा॥
14॥
📯《अर्थ》→
श्री सनक, श्री सनातन, श्री
सनन्दन, श्री सनत्कुमार
आदि मुनि ब्रह्मा आदि देवता नारद
जी, सरस्वती जी, शेषनाग
जी सब आपका गुण गान करते है।
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जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते, कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते॥15॥

📯《अर्थ 》→ यमराज,कुबेर आदि सब दिशाओं के रक्षक, कवि
विद्वान,पंडित या कोई भी आपके यश का पूर्णतः वर्णन
नहीं कर सकते।
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तुम उपकार सुग्रीवहि कीन्हा, राम मिलाय
राजपद दीन्हा॥16॥
📯《अर्थ 》→ आपनें सुग्रीव जी को
श्रीराम से मिलाकर उपकार किया , जिसके कारण वे राजा
बने।
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तुम्हरो मंत्र विभीषण माना, लंकेस्वर भए सब जग
जाना ॥17॥
📯《अर्थ 》→ आपके उपदेश का विभिषण जी ने
पालन किया जिससे वे लंका के राजा बने, इसको सब संसार जानता है।
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जुग सहस्त्र जोजन पर भानू, लील्यो ताहि मधुर फल
जानू॥18॥
📯《अर्थ 》→ जो सूर्य इतने योजन दूरी पर है
की उस पर
पहुँचने के लिए हजार युग लगे।दो हजार योजन की
दूरी पर स्थित सूर्य को आपने एक मीठा
फल समझकर.निगल लिया।
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प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहि, जलधि लांघि गये अचरज
नाहीं॥19॥
📯《अर्थ 》→ आपने श्री रामचन्द्र जी
की अंगूठी मुँह मे रखकर समुद्र को लांघ
लिया, इसमें कोई आश्चर्य नही है।
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दुर्गम काज जगत के जेते, सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥20॥
📯《अर्थ 》→ संसार मे जितने भी कठिन से कठिन
काम हो, वो आपकी कृपा से सहज हो जाते है।
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राम दुआरे तुम रखवारे, होत न आज्ञा बिनु पैसारे ॥21॥
📯《अर्थ 》→ श्री रामचन्द्र जी के
द्वार के आप.रखवाले है, जिसमे आपकी आज्ञा बिना
किसी को प्रवेश नही मिलता अर्थात
आपकी प्रसन्नता के बिना राम कृपा दुर्लभ है।
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सब सुख लहै तुम्हारी सरना, तुम रक्षक काहू.को
डरना ॥22॥
📯《अर्थ 》→ जो भी आपकी शरण मे
आते है, उस सभी को आन्नद प्राप्त होता है, और
जब आप रक्षक. है, तो फिर किसी का डर
नही रहता।
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आपन तेज सम्हारो आपै, तीनों लोक हाँक ते काँपै॥
23॥
📯《अर्थ. 》→ आपके सिवाय आपके वेग को कोई
नही रोक
सकता, आपकी गर्जना से तीनों लोक काँप
जाते है।
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भूत पिशाच निकट नहिं आवै, महावीर जब नाम
सुनावै॥24॥
📯《अर्थ 》→ जहाँ महावीर हनुमान
जी का नाम सुनाया जाता है, वहाँ भूत, पिशाच पास
भी नही फटक सकते।
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नासै रोग हरै सब पीरा, जपत निरंतर हनुमत
बीरा ॥25॥
📯《अर्थ 》→ वीर हनुमान जी! आपका
निरंतर जप करने से
सब रोग चले जाते है,और सब पीड़ा मिट
जाती है।
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संकट तें हनुमान छुड़ावै, मन क्रम बचन ध्यान जो लावै॥26॥
📯《अर्थ 》→ हे हनुमान जी! विचार करने मे,
कर्म करने
मे और बोलने मे, जिनका ध्यान आपमे रहता है,उनको सब
संकटो से आप छुड़ाते है।
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सब पर राम तपस्वी राजा, तिनके काज सकल तुम
साजा॥ 27॥
📯《अर्थ 》→ तपस्वी राजा श्री
रामचन्द्र जी सबसे श्रेष्ठ है, उनके सब कार्यो को
आपने सहज मे कर दिया।
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और मनोरथ जो कोइ लावै,सोई अमित जीवन फल पावै॥
28॥
📯《अर्थ 》→ जिसपर आपकी कृपा हो, वह कोई
भी अभिलाषा करे तो उसे ऐसा फल मिलता है
जिसकी जीवन मे कोई सीमा
नही होती।
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चारों जुग परताप तुम्हारा, है परसिद्ध जगत उजियारा॥29॥
📯《अर्थ 》→ चारो युगों सतयुग, त्रेता, द्वापर तथा कलियुग मे
आपका यश फैला हुआ है,जगत मे आपकी
कीर्ति सर्वत्र प्रकाशमान है।
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साधु सन्त के तुम रखवारे, असुर निकंदन राम दुलारे॥ 30॥
📯《अर्थ 》→ हे श्री राम के दुलारे ! आप.सज्जनों
की रक्षा करते है और दुष्टों का नाश करते
है।
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अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता , अस बर दीन
जानकी माता॥३१॥
📯《अर्थ 》→ आपको माता श्री जानकी
से ऐसा वरदान मिला हुआ है, जिससे आप किसी को
भी आठों सिद्धियां और नौ निधियां दे सकते है।
1.) अणिमा → जिससे साधक किसी को दिखाई
नही पड़ता और कठिन से कठिन पदार्थ मे प्रवेश
कर. जाता है।
2.) महिमा → जिसमे योगी अपने को बहुत बड़ा बना
देता है।
3.) गरिमा → जिससे साधक अपने को चाहे जितना भारी
बना लेता है।
4.) लघिमा → जिससे जितना चाहे उतना हल्का बन जाता है।
5.) प्राप्ति → जिससे इच्छित पदार्थ की प्राप्ति
होती है।
6.) प्राकाम्य → जिससे इच्छा करने पर वह पृथ्वी
मे समा सकता है, आकाश मे उड़ सकता है।
7.) ईशित्व → जिससे सब पर शासन का सामर्थय हो जाता है।
8.)वशित्व → जिससे दूसरो को वश मे किया जाता है।
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राम रसायन तुम्हरे पासा, सदा रहो रघुपति के दासा॥32॥
📯《अर्थ 》→ आप निरंतर श्री रघुनाथ
जी की शरण मे रहते है, जिससे आपके
पास बुढ़ापा और असाध्य रोगों के नाश के लिए राम नाम औषधि है।
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तुम्हरे भजन राम को पावै, जनम जनम के दुख बिसरावै॥
33॥
📯《अर्थ 》→ आपका भजन करने से श्री
राम.जी प्राप्त होते है, और जन्म जन्मांतर के दुःख
दूर
होते है।
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अन्त काल रघुबर पुर जाई, जहाँ जन्म हरि भक्त कहाई॥34॥

📯《अर्थ 》→ अंत समय श्री रघुनाथ
जी के धाम को जाते है और यदि फिर भी
जन्म लेंगे
तो भक्ति करेंगे और श्री राम भक्त कहलायेंगे।
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और देवता चित न धरई, हनुमत सेई सर्व सुख करई॥35॥
📯《अर्थ 》→ हे हनुमान जी! आपकी
सेवा करने से सब प्रकार के सुख मिलते है, फिर अन्य
किसी देवता की आवश्यकता
नही रहती।
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संकट कटै मिटै सब पीरा, जो सुमिरै हनुमत
बलबीरा॥36॥
📯《अर्थ 》→ हे वीर हनुमान जी! जो
आपका सुमिरन करता रहता है, उसके सब संकट कट जाते है
और सब पीड़ा मिट जाती है।
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जय जय जय हनुमान गोसाईं, कृपा करहु गुरु देव की
नाई॥37॥
📯《अर्थ 》→ हे स्वामी हनुमान जी!
आपकी जय हो, जय
हो, जय हो! आप मुझपर कृपालु श्री गुरु
जी के समान कृपा कीजिए।
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जो सत बार पाठ कर कोई,छुटहि बँदि महा सुख होई॥38॥
📯《अर्थ 》→ जो कोई इस हनुमान चालीसा का सौ बार
पाठ करेगा वह सब बन्धनों से छुट जायेगा और उसे परमानन्द
मिलेगा।
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जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा, होय सिद्धि
साखी गौरीसा॥39॥
📯《अर्थ 》→ भगवान शंकर ने यह हनुमान
चालीसा लिखवाया, इसलिए वे साक्षी है कि
जो इसे
पढ़ेगा उसे निश्चय ही सफलता प्राप्त
होगी।
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तुलसीदास सदा हरि चेरा, कीजै नाथ हृदय
मँह डेरा॥40॥
📯《अर्थ 》→ हे नाथ हनुमान जी!
तुलसीदास सदा ही श्री राम का
दास है।इसलिए आप उसके हृदय मे निवास कीजिए।
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पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रुप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुरभुप॥
📯《अर्थ 》→ हे संकट मोचन पवन कुमार! आप आनन्द
मंगलो के स्वरुप है। हे देवराज! आप श्री राम,
सीता जी और लक्ष्मण सहित मेरे हृदय मे
निवास कीजिए।
सीता राम दुत हनुमान जी को समर्पित