Thursday, June 23, 2022

जितने सभ्‍य समाज है, उतनी वेश्‍याएँ हैं !

कभी आपने सोचा है कि 
वेश्‍याएँ कैसे पैदा हो गयीं ? 
किसी आदिवासी गाँव में जा कर 
वेश्‍या की खोज सकते हैं आप ! 
आज भी बस्‍तर के गाँव में वेश्‍या खोजनी मुश्‍किल है !
और कोई कल्‍पना में भी मानने को राज़ी नहीं होगा कि
स्त्रियाँ ऐसी भी हो सकती हैं !
जो अपनी इज्‍जत बेचती हों !
अपना सम्भोग बेचती हों !
लेकिन सभ्‍य आदमी जितना सभ्‍य होता चला गया !
उतनी वेश्‍याएँ बढ़ती चली गयी — क्‍यों ?

      
यह फूलों को खाने की कोशिश शुरू हुई है !
और आदमी की ज़िन्दगी में कितने विकृत रूप से
सेक्‍स ने जगह बनायी है, 
इसका अगर हम हिसाब लगाने चलेंगे तो
हैरान रह जायेंगे कि आदमी को क्‍या हुआ है ? 
इसका जिम्‍मा किस पर, किन लोगों पर !

      
इसका जिम्‍मा उन लोगों पर है, 
जिन्‍होंने आदमी को —
सेक्‍स को समझना नहीं लड़ना सिखाया !
जिन्‍होंने सप्रेशन सिखाया है !
जिन्‍होंने दमन सिखाया है !
दमन के कारण सेक्‍स की शक्‍ति 
जगह-जगह से फूट कर 
गलत रास्‍तों से बहनी शुरू हो गयी है !
हमारा सारा समाज रूग्‍ण और पीड़ित हो गया है !
इस रूग्ण समाज को अगर बदलना है तो हमें 
यह स्‍वीकार कर लेना होगा कि काम का आकर्षण है !

      क्‍यों है काम का आकर्षण ?

      
काम के आकर्षण का जो बुनियादी आधार है,  
उस आधार को अगर हम पकड़ लें तो मनुष्‍य को 
हम काम के जगत से उपर उठा सकते है !
और मनुष्‍य निश्‍चित काम के जगत से ऊपर उठ जाये, 
तो ही राम का जगत शुरू होता है !

खजुराहो के मन्दिरों के सामने मैं खड़ा था !
दस-पाँच मित्रों को ले कर मैं वहाँ गया था । 
खजुराहो के मन्दिर के चारों तरफ की दीवाल पर 
जो मैथुन चित्र है, काम-वासनाओं की मूर्तियाँ हैं १
मेरे मित्र कहने लगे कि 
मन्दिर के चारों तरफ यह क्‍या है ?

      
मैंने उनसे कहा, 
जिन्‍होंने यह मन्दिर बनाये थे वे बड़े समझदार थे !
उनकी मान्‍यता थी कि 
जीवन की बाहर की परिधि पर काम है !
और जो लोग अभी काम से उलझे है, 
उनको मन्दिर में भीतर प्रवेश का कोई हक नहीं है !

      
फिर मैंने अपने मित्र से कहा भीतर चलें, 
फिर उन्‍हें भीतर ले कर गया !
वहाँ तो कोई काम प्रतिमा न थी !
वहाँ भगवान की मूर्ति थी !
वे कहने लगे कि भीतर कोई प्रतिमा नहीं है !
मैंने उनसे कहा कि 
जीवन की बाहर की परिधि काम वासना है !
जीवन की बाहर की परिधि दीवाल पर काम-वासना है ! 
जीवन के भीतर भगवान का मन्दिर है !
लेकिन जो अभी कामवासना में उलझे है, 
वे भगवान के मन्दिर में 
प्रवेश के अधिकारी नहीं हो सकते हैं !
उन्‍हें अभी बहार की दिवाल का ही चक्‍कर लगाना पड़ेगा !

      
जिन लोगों ने ये मन्दिर बनवाये थे, 
वे बड़े समझदार थे १
यह मन्दिर एक ‘’मेडिटेशन मन्दिर’’ था !
यह मन्दिर एक ध्‍यान का केन्द्र था !
जो लोग आते थे, उनसे वे कहते थे !
बाहर पहले मैथुन के ऊपर ध्‍यान करो, 
पहले सेक्‍स को समझो और जब 
सेक्‍स को पूरी तरह समझ जाओ और 
तुम पाओ कि मन उससे मुक्‍त हो गया है, 
तब तुम भीतर आ जाना !
फिर भीतर भगवान से मिलना हो सकता है !

      
लेकिन धर्म के नाम पर हमने 
सेक्‍स को समझने की स्‍थिति पैदा नहीं की,
सेक्‍स की शत्रुता पैदा कर दी !
सेक्‍स को समझो मत, आँख बन्द कर लो और 
घुस जाओ भगवान के मन्दिर में आँखें बन्द कर के !
आँखें बन्द कर रके 
कभी कोई भगवान के मन्दिर में जा सका है !
और आँखें बन्द कर के 
अगर आप भगवान के मन्दिर में पहुँच भी गये तो 
बन्द आँखों में आपको भगवान दिखायी नहीं पड़ेंगे !
जिससे आप भाग कर आये है, 
वही दिखायी पड़ता रहेगा !
आप उसी से बन्धे रह जायेंगे !

ओशो - सम्भोग से समाधि की और — 2

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