Wednesday, January 25, 2023

प्रिय पाकिस्तान।

प्रिय पाकिस्तान

#विजयमनोहरतिवारी

साल 2001 में मेरी पहली पुस्तक आई थी-‘प्रिय पाकिस्तान।’ यह मेरे कुछ छपे हुए आलेखों का संग्रह था, जिसमें अनछपे आलेख भी थे और कुछ ऐसे भी जो कहीं छप नहीं सकते थे। सारे अालेख तीन भागों में थे-‘पत्थर, फूल और खुशबू।’ पाकिस्तान के नाम लिखी एक लंबी चिट्‌ठी से किताब का शीर्षक बना था-‘प्रिय पाकिस्तान।’

पाकिस्तान पत्थर का ठोस विषय है, प्रतिमा का नहीं, न उस कोमल फूल का जो प्रतिमा पर अर्पित होता है। ऊर्दू के बावजूद खुशबू से उसका दूर तक लेना-देना नहीं है। वह जिस महकते हुए विचार की बुनियाद पर खड़ा किया गया, उसमें प्रतिमाओं को पत्थर बनाने की रवायत है, हिदायत है और वह कयामत तक है। वे बिना अपनी अक्ल लगाए गए 1400 सालों से बुतों के सफाए की मजूरी में लगे हैं!

किताब के कवर के लिए मध्यप्रदेश के विदिशा शहर में किले अंदर के एक स्मारक की लाजवाब तस्वीर मनस्वी प्रकाशन के सर्वेसर्वा मुरली मोहन ने खुद आकर क्लिक की थी। वह प्रतिमाओं को पत्थर बनाने में लगे इसी उजड्‌ड विचार की एक प्रतिनिधि तस्वीर है। वह विजय मंदिर के ध्वंसावशेष हैं!

जब किताब आई तब दिल्ली में बीजेपी की ‘बिना टिकट और खाली जेब’ सरकार थी। अटलजी की अचकन की जेबें एनडीए के दरवाजे पर ही खाली करा ली गई थीं। जेब की जमापूंजी थी-‘अयोध्या, 370, काॅमन सिविल कोड।’

ये मुद्रा एनडीए के झुंड में नहीं चलने वाली थी। राजनीति अपनी कारस्तानियों के लिए शब्द उम्दा गढ़ लेती है। जैसे- कॉमन मिनिमम प्रोग्राम। एनडीए के इस प्रोग्राम में बीजेपी को अस्त्रहीन बनाकर सिंहासन पर बिठा दिया गया था। अटलजी को मैं भारतीय राजनीति का देवानंद कहता हूं। एक्शन की गुंजाइश नहीं है तो अदाएं काम आती हैं। भारत उनकी अदाओं पर अरसे तक मुग्ध रहा!

तब बीजेपी के लिए राज्यों में चार-चार बार की लंबी पारियां सपनों में भी नहीं थी। मोदी युग जैसा कोई युग आएगा, िकसने सोचा था? स्वयं मोदी जी महाराज एक प्रचारक की भूमिका में भारत के छोटे शहरों और कस्बों में प्रवास करते हुए अपने हाफ बांह के कुरते और पाजामे धोकर टांग रहे थे। संसदीय आकाश में लालू और मुलायम जैसे नक्षत्र जगमगाया करते थे। कश्मीर के अब्दुल्ला की तीसरी पीढ़ी हगीज छोड़कर 370 के सहारे कुर्सी पकड़कर चलना सीख रही थी।

परवेज मुशर्रफ सीने में 60 इंच की हवा भरकर जब आगरा तशरीफ लाए तो दिल्ली के शिखर संपादक यह भूल गए कि यह मुगलों का आगरा नहीं है। बादशाह की नजरे-इनायत की मोहताजी उनके सवालों में टपकती थी। भारत अमन की आशा में दिल्ली से लाहौर तक बस कंपनी चला रहा था। अटलजी के साथ शायद देवानंद भी पधारे थे। क्या नजारे थे?

फिर यूपीए का झुंड आया और उसके दस साल धमाकेदार थे। कितने शहरों में कितने धमाके? वह पाकिस्तान की धमक थी। वह धमका हुआ भारत था। बचा-खुचा कश्मीर पंडितों को बाहर कर करीब-करीब कब्जा लिया गया था! सेक्युलर आबोहवा में वह मुशायरों का दौर था, मोहब्बतों का दौर था, रोजे-इफ्तारी की रौनकें बरसती थीं और अयोध्या से राम एक बदशक्ल टेंट से यह सब देखा करते थे!

जैसे हाईवे पर धमकदार फर्राटे से चलती गाड़ी अचानक घरघराकर बंद होने लगे, पीछे धुआं रहरहकर निकलने लगे, आगे बोनट से अजीब आवाजें आने लगें, कांपती हुई गाड़ी बमुश्किल साइड में लगने लगे। पाकिस्तान आज इससे बुरी हालत में साइड में आ गया है। भारत के मीडिया में पाकिस्तान के अंदरुनी हालातों पर एक भी ढंग की कवरेज नहीं है। दाने-दाने को मोहताज एक फटेहाल मुल्क, जहां हर नया दिन जिंदगी को और मुश्किल बना रहा है।

हजार साल हिंदुस्तान से लड़ने की बातें उस लड़खड़ाते हुए शख्स की थीं, जो मुफ्त की शराब ज्यादा गटक गया था। मेरे देखे पाकिस्तान मुफ्त के माल पर कब्जे का दूसरा नाम है, वह एक मुल्क कभी नहीं था। भारत का शायद ही कोई शहर हो, जो नाजायज कब्जों की चपेट से बचा हो। पाकिस्तान भारत का सबसे बड़ा नाजायज कब्जा है। एक बड़े भूभाग पर अतिक्रमण, जिसके साइन बोर्ड पर कुछ गुंडों ने लिख दिया-‘पाकिस्तान।’ सारी मालो-दौलत उसकी हो गई। वह दीन के नाम पर हुआ था। आज दीनहीन कैसे हो गया?

पाकिस्तान के ही एक राजनीतिक विश्लेषक की ताजा टिप्पणी है कि मालदार हिंदुओं और सिखों की लूट की दौलत से 70 साल काम चल गया, अब आटा चाहिए ताकि घर में रोटी बन सके। बच्चे कतार में मुंह बाए खड़े हैं, जो अल्लाह की देन हैं! सिंध से आए दिन आने वाली हर खबर घर से निकली किसी बच्ची की है, जिसे इस्लाम कुबूल कराने के लिए उठा लिया गया है और किसी अधेड़ मौलवी ने सवाब कमा लिया है। बलूचिस्तान की बेचैनी बिल्कुल अलग है, जिसकी कोई खबर तक नहीं है कि कितने लोग कहां से उठा लिए गए, उनका कोई अता-पता नहीं है। एक बड़े कब्जे में दूसरे छोटे कब्जे का हाल भी कमाल है, यानी कश्मीर का एक और बदनसीब टुकड़ा, जो उधर झपट लिया गया था। ईमान की रोशनी में बत्ती गुल है। यह आज का कुल पाकिस्तान है।

एक फारसी कहावत है-‘बाअदब बानसीब, बेअदब बेनसीब!’ वे भारत के माथे पर कश्मीर का नसीब लिखने चले थे और खुद बदनसीब निकले। मामूली बदनसीब नहीं, बादशाहे-बदनसीब!

वह एक ऐसा पड़ोसी है, जो अनचाहा है। जैसे अनचाहे बाल, जिनका सफाया ही किया जाता है। सदियों के डेमोग्राफिक विस्तार में नाजायज किलकारियों की फसलें धरती के किसी भी कोने में कभी बहार का सबब बन ही नहीं सकतीं। पाकिस्तान आज अपने आप पर ही एक भारी बोझ बन गया है। लाहौर से लेकर बहावलपुर तक फैले ‘ज्ञान केंद्रों’ में कसाब के बाद की पीढ़ी बेरोजगार और बदहवास है। किसी हाफिज के पास कोई आसमानी नुस्खा नहीं बचा है। वे असल मायने में गालिब को आज महसूस कर रहे हैं, दिल बहलाने के लिए जन्नत का ख्याल अच्छा है!

मैं ‘प्रिय पाकिस्तान’ के इस सूरते-हाल का यह बयान बागेश्वर बालाजी के पाक कदमों में खत्म करूंगा, जिनके सबसे चहेते धीरेंद्र शास्त्रीजी को चैनलों ने इन दिनों स्क्रीन पर उठाया हुआ है। वे सबके दिल की बात जान जाते हैं। किसका भाई कौन, मकान कब बना, भतीजी का नाम क्या?

सांसारिक रूप से जड़ और आत्मकेंद्रित आम भारतीयों के ये लालची सवाल कभी खत्म नहीं होंगे। पांच सौ किलोमीटर चलकर कोई मध्यमवर्गीय परिवार की देवी एक दरबार में बेटे की सरकारी नौकरी का सवाल लाएगी, दूसरे दरबार में उसकी शादी का और पांच साल बाद यह पूछने कि बच्चे नहीं हो रहे!

अगर एक लाख की सभा में से कोई भारतीय यह सवाल दरबार में पूछ सके तो जरूर पूछे कि अगले पाँच साल में पाकिस्तान का क्या हाल होने जा रहा है? बागेश्वर बालाजी की कृपा से अगर गुरूजी महाराज ने इसका कोई जवाब दे दिया तो वह जवाब नहीं होगा, वह दुनिया भर के लिए सबसे बड़ी ब्रेकिंग न्यूज होगी। चैनल चमक जाएगा, कोई मीडियावाला ही पूछ ले!

पाकिस्तान भारत का एक बिछड़ा और बहका हुआ हिस्सा है। जैसा भी हो वह एक पड़ोसी है। वह ईमान का पक्का है, तभी तो पाकिस्तान है। जो ईमान में कमजोर रह गया, वह हिंदुस्तान ही रह गया! पाकिस्तान कहां से कहां जा पहुंचा!

महाराजजी अंधश्रद्धा के दृष्टिहीन आरोपों पर इतना समय और ऊर्जा क्यों नष्ट कर रहे हैं। अजीब बात है, खर्च आप हो रहे हैं, कारोबार चैनलों का चल रहा है।

अत: अपनी परम सिद्धि से मेरा प्रश्न इसी पेज से प्राप्त कीजिए- ‘2024 में पाकिस्तान के क्या हाल दिखाई दे रहे हैं?’

Thursday, January 19, 2023

फस गया ईसाई जब प्रश्नावली चालू हुईं

सवाल:— ईश्वर (God) कौन है ?

ईसाई:— जीसस है।

सवाल:— क्या जीसस मैरी का बेटा है ?

ईसाई:— हां।

सवाल:— तो फिर मैरी को किसने बनाया ?

ईसाई:— ईश्वर ने बनाया।

सवाल:— OK, तो फिर ईश्वर कौन है ?

ईसाई:— जीसस है।

सवाल:— क्या जीसस का जन्म हुआ था ?

ईसाई:— हां, हुआ था।

सवाल:— तो जीसस के पिता कोन हैं ?

ईसाई:— जीसस के पिता ईश्वर है।

सवाल:— तो फिर ईश्वर कौन है?

ईसाई:— जीसस है!

सवाल:— क्या जीसस ईश्वर का सेवक है?

ईसाई:— हाँ है।

सवाल:— क्या जीसस सूली पर मरे थे?

ईसाई:— हाँ मरे थे।

सवाल:— जीसस को पुनर्जीवित किसने किया ?

ईसाई:— ईश्वर ने किया।

सवाल:— क्या जीसस दूत (संदेशवाहक) थे?

ईसाई:— हाँ थे।

सवाल:— तो उनको पृथ्वी पर किसने भेजा था ?

ईसाई:— ईश्वर ने भेजा।

सवाल:— तो ईश्वर कौन है ?

ईसाई:— जीसस है।

सवाल:— क्या जीसस ने धरती पर किसी की पूजा की थी?

ईसाई:— हाँ।

सवाल:— किसकी पूजा की थी ?

ईसाई:— ईश्वर की।

सवाल:— तो ईश्वर कौन है ?

ईसाई:— जीसस है।

सवाल:— क्या ईश्वर का कोई प्रारम्भ है?

ईसाई:— नही है।

सवाल:— तो 25 दिसम्बर को कौन जन्मा था?

ईसाई:— जीसस जन्मे थे।

सवाल:— क्या जीसस ही ईश्वर है?

ईसाई:— हाँ जीसस ही ईश्वर है।

सवाल:—तो ईश्वर कहाँ है ?

ईसाई:— स्वर्ग में है।

सवाल:— स्वर्ग में कितने ईश्वर हैं ?

ईसाई:— वहां सिर्फ एक ही ईश्वर है।

सवाल:—जीसस कहाँ है ?

ईसाई:— वो अपने पिता (ईश्वर ) के दायीं तरफ विराजमान है!

सवाल:— तो स्वर्ग में कितने ईश्वर हैं ?

ईसाई:— वहां सिर्फ एक ही ईश्वर है।

सवाल:— वहां पर कितनी कुर्सियां हैं ?

ईसाई:— वहां सिर्फ एक कुर्सी है।

सवाल:— जीसस कहाँ है ?हैं

ईसाई:— वे ईश्वर के पास बैठे हैं।

सवाल:— तो वे दोनों एक कुर्सी पर कैसे बैठ सकते ? ईसाई:— ईश्वर पर इतने सवाल ?

आपको शैतान ने गुमराह कर रखा है ईश्वर के बारे में इतना गलत सिर्फ शैतान ही सोच सकता है!

आप शैतान के जाल में फंसे हुए हैं!

क्या मजाक है

Thursday, January 12, 2023

असली हीरो ये होते हैं.

ये है हॉलीवुड के सुपरस्टार हैं- "कियानू रीव्ज़" जो मेट्रिक्स सीरिज के हीरो है... 

जब ये 3 साल के थे तभी उनके सगे बाप ने उन्हें छोड़ दिया। 
19 साल तक ये तीन अलग-अलग सौतेले पिता के साथ रहते हुए बड़े हुए। 
बचपन में वे डिसलेक्सिया नामक बीमारी पीड़ित थे। 
ये हॉकी खिलाड़ी थे मगर एक गंभीर दुर्घटना में चोटिल होने के बाद उनका हॉकी की नेशनल टीम का सपना चकनाचूर हो गया।
 उनकी एक ने बेटी जन्म लेते ही मर गई और उनकी पत्नी का कार एक्सीडेंट में निधन हो गया। 

उनके बचपन के बेस्ट फ्रेंड रिवर फ़ीनिक्स ड्रग ओवरडोज के कारण नहीं रहे और उनकी सगी बहन को ल्यूकेमिया हो गया। 

उनके साथ कोई बॉडीगार्ड नहीं रहता क्योकि वो किसी को परेशान नही करना चाहते उनका कोई लग्जरी घर नहीं। 
वे एक साधारण से अपार्टमेंट में रहते हैं और अक्सर न्यूयॉर्क में उन्हें सबवे में यात्रा करते हुए देखा जा सकता है। 
जब वह फिल्म लेक हाउस की शूटिंग कर रहे थे तो उन्होंने देखा कि उनका कॉस्टयूम असिस्टेंट किसी को रोते हुए बता रहा था कि अगर उसने पैसे नहीं चुकाए तो उसका घर हाथ से निकल जाएगातो  रीव्ज़ ने चुपचाप 20000 डॉलर उसके अकाउंट में ट्रांसफर करा दिए... 

1997 में कुछ  पत्रकारों ने देखा कि सुबह-सुबह रीव्ज़ लॉस एंजिलस में किसी बेघर इंसान के साथ मॉर्निंग वॉक कर रहे थे, और कई घंटे तक वह उसकी बात सुनते रहे बाद मे पता चला की उस इंसान के बेटे की किडनी फेल हो चुकी थी और रीव्ज़ ने उस आदमी के बेटे को अपनी एक किडनी देने का वादा कर दिया है।

अपने करियर में उन्होंने मेट्रिक्स सीरीज़ से कमाए हुए लगभग 75 मिलियन डॉलर की राशि इन्होंने चैरिटी में दान कर दी है।

 दूसरों की सबसे ज़्यादा मदद की चाह रखने वाला ये इंसान, देखने मे नही लगता की ये अंदर से बहुत टूटा और बिखरा हुआ है।

यह व्यक्ति जो सब कुछ खरीद सकता है, सब कुछ अरेंज कर सकता है; लेकिन हर सुबह उठने के बाद ये आदमी घुमने के लिए वो जगह चुनता है जिस जगह को लोग आत्महत्या के लिये चुनते है....ये वैसी जगह पर जाता है! 
और वहां रोज कोई ना कोई इसे मिल ही जाता है जो तकलीफ मे है जीवन को नष्ट करना देना चाहते है...! 
 कियानू रीव्ज़ उनके लिये जी रहा है....! 

सैल्यूट है इस महानायक को!!!!

Wednesday, January 11, 2023

कम्युनिस्टो की निगाहें कानपुर पर पड़ीं.

एक जमाना था .. कानपुर की "कपड़ा मिल" विश्व प्रसिद्ध थीं कानपुर को "ईस्ट का मैन्चेस्टर" बोला जाता था।
लाल इमली जैसी फ़ैक्टरी के कपड़े प्रेस्टीज सिम्बल होते थे. वह सब कुछ था जो एक औद्योगिक शहर में होना चाहिए।

मिल का साइरन बजते ही हजारों मज़दूर साइकिल पर सवार टिफ़िन लेकर फ़ैक्टरी की ड्रेस में मिल जाते थे।  बच्चे स्कूल जाते थे। पत्नियाँ घरेलू कार्य करतीं । और इन लाखों मज़दूरों के साथ ही लाखों सेल्समैन, मैनेजर, क्लर्क सबकी रोज़ी रोटी चल रही थी।
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फ़िर "कम्युनिस्टो" की निगाहें कानपुर पर पड़ीं.. तभी से....बेड़ा गर्क हो गया।

"आठ घंटे मेहनत मज़दूर करे और गाड़ी से चले मालिक।" 

ढेरों हिंसक घटनाएँ हुईं, 
मिल मालिक तक को मारा पीटा भी गया।

नारा दिया गया 
"काम के घंटे चार करो, बेकारी को दूर करो" 

अलाली किसे नहीं अच्छी लगती है. ढेरों मिडल क्लास भी कॉम्युनिस्ट समर्थक हो गया। "मज़दूरों को आराम मिलना चाहिए, ये उद्योग खून चूसते हैं।"

कानपुर में "कम्युनिस्ट सांसद" बनी सुभाषिनी अली । बस यही टारगेट था, कम्युनिस्ट को अपना सांसद बनाने के लिए यह सब पॉलिटिक्स कर ली थी ।
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अंततः वह दिन आ ही गया जब कानपुर के मिल मज़दूरों को मेहनत करने से छुट्टी मिल गई। मिलों पर ताला डाल दिया गया।

मिल मालिक आज पहले से शानदार गाड़ियों में घूमते हैं (उन्होंने अहमदाबाद में कारख़ाने खोल दिए।) कानपुर की मिल बंद होकर भी ज़मीन के रूप में उन्हें (मिल मालिकों को) अरबों देगी। उनको  फर्क नहीं पड़ा ..( क्योंकि मिल मालिकों कभी कम्युनिस्ट के झांसे में नही आए !)

कानपुर के वो 8 घंटे यूनिफॉर्म में काम करने वाला मज़दूर 12 घंटे रिक्शा चलाने पर विवश हुआ .. !! (जब खुद को समझ नही थी तो कम्युनिस्ट के झांसे में क्यों आ जाते हो ??)

स्कूल जाने वाले बच्चे कबाड़ बीनने लगे... 

और वो मध्यम वर्ग जिसकी आँखों में मज़दूर को काम करता देख खून उतरता था, अधिसंख्य को जीवन में दुबारा कोई नौकरी ना मिली। एक बड़ी जनसंख्या ने अपना जीवन "बेरोज़गार" रहते हुए "डिप्रेशन" में काटा।
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"कॉम्युनिस्ट अफ़ीम" बहुत "घातक" होती है, उन्हें ही सबसे पहले मारती है, जो इसके चक्कर में पड़ते हैं..! 

कॉम्युनिज़म का बेसिक प्रिन्सिपल यह है : 

"दो क्लास के बीच पहले अंतर दिखाना, फ़िर इस अंतर की वजह से झगड़ा करवाना और फ़िर दोनों ही क्लास को ख़त्म कर देना"

Friday, January 6, 2023

3 जनवरी 1705 सनातनी वीर मोतीराम मेहरा का बलिदान.

बाबा मोतीराम मेहरा जिनका वर्णन खालसा पंथ के ग्रंथों में है 
। इन्हें औरंगजेब की आज्ञा से सरहिन्द के किलेदार वजीर खान ने नृशंस तरीके से परिवार सहित जीवित कोल्हू में पीस दिया था। इनकी वीरता और बलिदान का उल्लेख संत लक्ष्मणदास बंदा बैरागी ने किया था। और इनकी स्मृति में एक गुरुद्वारा फतेहगढ़ में बना है। 

बाबा मोतीराम मेहरा के चाचा हिम्मत राय एक धर्मनिष्ठ सनातनी थे, जिन्होंने गुरु गोविन्द सिंह जी के आह्वान पर धर्मरक्षा के लिए स्वयं को समर्पित कर दिया था, और गोविन्द सिंह के पंच प्यारों में से एक बनें। उनके चाचा हिम्मत राय का नाम बदलकर हिम्मत सिंह कर दिया गया। 

बाबा मोतीराम मेहरा के पूर्वज जगन्नाथ पुरी उड़ीसा के रहने वाले थे। समय के साथ पंजाब आये और सरहिन्द में नौकरी कर ली। बाबा मोतीराम जी के पिता हरिराम मुहम्मदियों के कारावास की रसोई घर के इंचार्ज थे। 

दिसम्बर 1704 के अंतिम सप्ताह गुरु गोविन्द सिंह के चारों पुत्र बलिदान हुये थे। वह 27 दिसंबर 1704 की तिथि थी जब यातनाएं देकर गोविन्द सिंह जी के छोटे दो पुत्रों को जीवित दीवार में चुनवाया गया था। और माता गूजरी को अमानवीय यातनायें दी गयी। वे भी बलिदान हुईं। 

बाबा मोतीराम का अपराध यह था कि दिसम्बर की बेहद कपकपा देने वाली रात पर जब दो दिन के भूखे बच्चों को दीवार पर पटका गया था, तब बाबा मोतीराम मेहरा जी ने गुरुपुत्रों और दादी को पीने के लिए दूध किसी तरह से पहुँचा दिया था। 

गुरुपुत्रों और माता गूजरी के बलिदान के दो दिन बाद सरहिन्द के किलेदार वजीर खान को यह पता चला कि सनातनी वीर मोतीराम ने रात में गोविन्द सिंह के पुत्रों को दूध पहुँचाया था। किलेदार के आदेश से इस्लामिक फौज पूरे परिवार को उठा लाई। माता, पत्नी, छह वर्ष की बेटी और मोतीराम को। जबकि पिता और दर्जनों लोगों को वहीं मार डाला गया। 

वजीर खान ने पूछा तो बाबा मोतीराम ने अपना अपराध न केवल स्वीकार किया अपितु गर्व भी व्यक्त किया। इससे क्षुब्ध होकर वजीर खान ने इस पूरे परिवार को जीवित कोल्हू में पीसने का आदेश दे दिया। वह तीन जनवरी 1705 की तिथि थी, जब इस परिवार को जीवित कोल्हू में पीसा गया था। 

हालांकि इस घटना की तिथियों को लेकर अलग-अलग विद्वानों की राय में मामूली अंतर आता है। कुछ विद्वानों का मानना है कि बाबा मोतीराम मेहरा और उनके परिवार को 30 दिसम्बर 1704 को पकड़ा गया और एक जनवरी 1705 को कोल्हू में पीसा गया। जबकि कुछ का मानना है कि 30 दिसंबर को मुहम्मदी पिशाच वजीर खान को जानकारी मिली, 31 दिसम्बर को परिवार सहित पकड़ कर लाया गया। 1 जनवरी को पेशी हुई और तीन जनवरी 1705 को कोल्हू में परिवार सहित पीस दिया गया।

सनातन धर्म संस्कृति की मर्यादा व खालसा पंथ के बच्चों की रक्षा के लिए परिवार सहित स्वयं को बलिदान कर देने वाले बाबा मोतीराम मेहरा जी को राष्ट्रीय सनातन पार्टी कोटि-कोटि नमन करती हैं।

जो बोले सो अभय, सनातन धर्म की जय।

जय सनातन, जय भारत।

Monday, January 2, 2023

महमूद गज़नवी/सोमनाथ मंदिर.

11वीं सदी में #गज़नी से आया लुटेरा #महमूद_गज़नवी ने सोमनाथ_मंदिर को बार-बार लूटा । आज वही #सोमनाथ मंदिर पूरी भव्यता, पूरे स्वाभिमान से चमक रहा है, जबकि गज़नी(अफगानिस्तान) भारत के ही भीख में भेजे गेंहू पर पल रहा है ।

औरंगजेब की मजार में दिये जलाने के लिए तेल की भीख मांगनी पड़ती है जबकि गुरु_गोविंद_सिंह_जी के नाम पर सैकड़ों लंगर चलते हैं जिसमें हजारों लोग मुफ्त में प्रसाद पाते हैं ।

कहने का मतलब "अत्याचारी कभी सुखी, संपन्न नहीं रहता" ।

जय श्री राम 🚩🪷🕉️🙏🏻

नकली विज्ञान.

नकली विज्ञान ने हमसे 400 प्रकार के टमाटर छीन कर हमें एक अंडे के आकार का टमाटर जो बिल्कुल गुणहीन है चिपका दिया ।
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आजकल आपने देखा होगा कि बाजार में मिलने वाले अधिकतर फल और सब्जियों में स्वाद बिल्कुल नहीं होता । लेकिन दिखने में वह एकदम लाजवाब होगी जैसे कि जामुन ,टमाटर । हाइब्रिड बीज से तैयार होने वाली जामुन इतनी मोटी मोटी ,गोलमटोल होती हैं कि देखते ही खाने के लिये मुहं में पानी आ जाता है । औऱ देशी जामुन बेचारी देखने में बिल्कुल पतली सी । एक कोने में दुबक कर पड़ी रहती कि कोई हम गरीब का भी मोल डाल दे । लेकिन जब आप hybird जामुन को खायो तो स्वाद बिल्कुल फीका फीका सा बेस्वाद सा होता है। हाइब्रिड  मोटी मोटी जामुन गले में एक अजीब तरह की खुश्की करती है । खाने के बाद आपको पानी पीना पड़ता है । दूसरी और देशी जामुन मुहं में रखते सार ही रस घोल देती है ।आनंद आ जाता है कोई गले में खारिश नहीं होती । देशी जामुन जिनकी किस्मत और समझ अच्छी हो कभी कभार  मिल जाती है । 

आज का दूसरा मुद्दा है टमाटर । अंग्रेजी टमाटर देखने में अंडे जैसे लगते हैं इसलिये मैं इनको अंडे वाले टमाटर कहता हूं । यह अंडे वाले टमाटर खाने में देशी टमाटरों (जोकि बिल्कुल गोल होते हैं ) के मुकाबले बिल्कुल असरदार और स्वादिष्ट नही होते । देशी टमाटर जहाँ एक पड़ेगा और सब्जी में रस घोल देगा ।अंडे वाले हाइब्रिड टमाटर तीन पड़ेंगे और सब्जी की ऐसी तैसी कर देंगे वो अलग । 
कैसे हाइब्रिड गेंहू में कैसे ग्लूटामेट की मात्रा अधिक होती है जिससे आजकल तथाकथित विकसित देश अमेरिका जिसकी 25% जनसंख्या मुधमेह नामक रोग से ग्रसित है । दूसरी और देशी गेहूं जैसे शरबती में ग्लूटामेट की मात्रा संतुलित मात्रा में होती है । 
यह लेख लिखने का उद्देश्य है कि आप भी ना केवल जैविक बल्कि भगवान की बनाये हुए फल सब्ज़ियां अनाज ही खरीदें क्योंकि इंसान गलती कर सकता है भगवान नहीं । कुदरती बीजों द्वारा उत्पन्न फल सब्जियां ही आपके स्वास्थ्य के लिये उत्तम हैं ।