Thursday, November 28, 2019

बंगाली महानायक।

ये वो महानायक हैं जिनका नाम इतिहास में लिखा नहीं गया। क्यों?

क्योंकि यह वह व्यक्तित्व हैं जिन्होंने बंगाल के नोआखाली में हिन्दू मुस्लिम दंगे में मुस्लिमों द्वारा मारे जाने से क्रुद्ध होकर अपने कुछ साथियों के साथ मिल कर मुस्लिम जेहादियों को इस कदर खत्म किया कि हिन्दुओं के मारने पर चुप बैठे गांधी मुस्लिमों के मारे जाने पर इतने दुखी हुए कि अनशन पर बैठ गए।

इस वीर पुरुष का नाम है "गोपाल पाठा खटीक" और इनका कार्य मांस बेचना और काटना था।

16 अगस्त 1946 को कलकत्ता में ‘डायरेक्ट एक्शन' के रूप में जाना जाता है। इस दिन अविभाजित बंगाल के मुख्यमंत्री सोहरावर्दी के इशारे पर मुसलमानों ने कोलकाता की गलियों में भयानक नरसंहार आरम्भ कर दिया था। कोलकाता की गलियां शमशान सी दिखने लगी थी। चारों और केवल हिंदुओं की लाशें और उन पर मंडराते गिद्ध ही दीखते थे।

जब राज्य का मुख्यमंत्री ही इस दंगें के पीछे हो तो फिर राज्य की पुलिस से सहायता की उम्मीद करना भी बेईमानी थी। यह सब कुछ जिन्ना के ईशारे पर हुआ था। वह गाँधी और नेहरू पर विभाजन का दवाब बनाना चाहता था। हिन्दुओं पर हो रहे अत्याचार को देखकर ‘गोपाल पाठा’ (1913 – 2005) नामक एक बंगाली युवक का खून खोल उठा। उसका परिवार कसाई का काम करता था। उसने अपने साथी एकत्र किये, हथियार और बम इकट्ठे किये और दंगाइयों को सबक सिखाने निकल पड़ा।

वह "शठे शाठयम समाचरेत" अर्थात जैसे को तैसा की नीति के पक्षधर थे। उन्होंने भारतीय जातीय वाहिनी के नाम से संगठन बनाया। गोपाल के कारण मुस्लिम दंगाइयों में दहशत फैल गई और जब हिन्दुओ का पलड़ा भारी होने लगा तो सोहरावर्दी ने सेना बुला ली। तब जाकर दंगे रुके। लेकिन गोपाल ने कोलकाता को बर्बाद होने से बचा लिया।

गोपाल के इस "कारनामे" के बाद गाँधी ने कोलकाता आकर अनशन प्रारम्भ कर दिया (क्योंकि उनके प्यारे मुसलमान ठुकने लगे थे)। उन्होंने खुद गोपाल को दो बार बुलाया, लेकिन गोपाल ने स्पष्ट मना कर दिया।

तीसरी बार जब एक कांग्रेस के स्थानीय नेता ने गोपाल से प्रार्थना की “कम से कम कुछ हथियार तो गाँधी जी सामने डाल दो”। तब गोपाल ने कहा कि “जब हिन्दुओ की हत्या हो रही थी, तब तुम्हारे गाँधीजी कहाँ थे? मैंने इन हथियारों से अपने इलाके की हिन्दू महिलाओ की रक्षा की है, मैं हथियार नहीं डालूँगा।"

मेरे विचार से अगर किसी दिन हमारे देश में हिन्दू रक्षकों का स्मृति मंदिर बनाया जायेगा तो उसमें इस महान् हिन्दू वीर का नाम अवश्य होगा ।

Monday, November 25, 2019

जानिए रेलवे स्टेशन पर समुन्द्र तल से ऊंचाई का क्या मतलब होता है ?

भारतीय ट्रेन में ड्राइवरों, लाइनमेन, गार्ड और अन्य कर्मचारियों के लिए बहुत से चिन्हों का प्रयोग किया जाता है ताकि ट्रेन के परिचालन को ठीक से चलाया जा सके. आइये इस लेख में ऐसे ही एक नियम (‘समुद्र तल से ऊंचाई’) के बारे में जानते हैं. आप सभी ने कभी न कभी ट्रेन का सफ़र किया होगा और सफ़र करते समय रेलवे स्टेशन भी गए होंगे. क्या आपने कभी ध्यान दिया है कि रेलवे स्टेशन पर बोर्ड लगा होता है जिस पर रेलवे स्टेशन का नाम और समुद्र तल से ऊंचाई (Mean Sea Level, MSL) जैसे की 200 मीटर, 310 मीटर आदि लिखा होता है.
क्या आपने कभी सोचा है कि भारत में समुद्र तल से ऊंचाई के बारे में रेलवे स्टेशन बोर्ड पर क्यों लिखा होता है, इसका क्या मतलब होता है, क्या ये यात्रियों की जानकारी के लिए लिखा जाता है या फिर कोई और वजह है. आइये इस लेख के माध्यम से अध्ययन करते हैं.
सबसे पहले यह अध्ययन करते है कि समुद्र तल से ऊंचाई (Mean Sea Level) का क्या मतलब होता है
जैसा कि हम जानते हैं कि पृथ्वी गोल है, जिसके कारण पृथ्वी की सतह पर थोड़ा-थोड़ा कर्व आता है. अत: दुनिया को पृथ्वी की सतह से नापने के लिए एक ऐसे पॉइंट की जरुरत थी जो हमेशा एक समान रहे और समुद्र से बेहतर ऐसा कुछ नहीं था.
इसे ऐसे भी कह सकते है कि वैज्ञानिकों को दुनिया की एक समान ऊंचाई नापने के लिए एक ऐसे पॉइंट की जरुरत होती है, जो एक समान रहे. इसके लिए समुद्र सबसे अच्छा विकल्प है और MSL की मदद से ऊंचाई की गणना करना बेहद सहज है. ऐसा इसलिए भी क्योंकि समुद्र तल या समुद्र का पानी एक समान रहता है. MSL का इस्तेमाल सिविल इंजीनियरिंग में ज्यादातर किया जाता है, किसी बिल्डिंग या जगह की ऊंचाई नापने के लिए.
 ‘समुद्र तल की ऊंचाई’ (Mean Sea Level, MSL) भारतीय रेलवे स्टेशन बोर्ड पर क्यों लिखा होता है. 
क्या ये यात्रियों को बताने के लिए होता है. ऐसा बिलकुल नहीं है. ये जानकारी रेलवे ट्रेन के गार्ड और ड्राईवर के लिए होती है. उदाहरण से समझते है: अगर ट्रेन 200 मीटर समुद्र तल की ऊंचाई (MSL) से 250 मीटर समुद्र तल (MSL) की  ऊंचाई पर जा रही है. तो ड्राईवर आसानी से यह निर्णय ले सकता है कि इस 50 मीटर की अधिक चढ़ाई को चढ़ने के लिए उसे इंजन को कितने torque की जरुरत पड़ेगी यानी इंजन को कितनी पॉवर देनी पड़ेगी. इससे ड्राईवर अंदाज़ा लगा सकता है. इसी प्रकार से अगर ये ट्रेन नीचे की और जाएगी तो नीचे आते वक्त ड्राईवर को कितना फ्रिक्शन लगाना पड़ेगा, या ड्राईवर को कितनी स्पीड बनाए रखने की जरुरत पड़ेगी. ये सब जानने के लिए समुद्र तल की ऊंचाई (MSL) लिखा जाता है.
इसके अलावा इसकी मदद से ट्रेन के ऊपर लगे बिजली के तारों को एक सामान ऊंचाई देने में भी मदद मिलती है. ताकि बिजली के तार ट्रेन के तारों से हर समय टच होते रहें अर्थात बिजली के तारों से कनेक्शन बनाए रखने में मदद करता है.

तो आप समझ गए होंगे की भारतीय रेलवे स्टेशन बोर्ड पर ‘समुद्र तल की ऊंचाई’ या Mean Sea Level, MSL क्यों लिखा होता है और इसका क्या मतलब होता है?

इसके अलावा इसकी मदद से ट्रेन के ऊपर लगे बिजली के तारों को एक सामान ऊंचाई देने में भी मदद मिलती है. ताकि बिजली के तार ट्रेन के तारों से हर समय टच होते रहें अर्थात बिजली के तारों से कनेक्शन बनाए रखने में मदद करता है.

रेलवे के कुछ ऐसे नियम जिनसे आप अबतक अनजान थे. 
1- ये हम सब जानते हैं कि जब टीटीई रात में टिकट चेक करने के लिए आता है तो हमारी नींद ख़राब होती है परन्तु अब ऐसा नहीं हो सकेगा. रेलवे बोर्ड ने यह निर्णय लिया है अब आरक्षित टिकट को रात 10:00 बजे से लेकर सुबह के 6:00 बजे तक आमतौर पर चेक नहीं किया जाएगा. आरक्षित श्रेणी के रेल यात्रियों के टिकट को यात्रा की शुरुआत में ही चेक कर लिया जाना चाहिए. टिकट चेक करने के बाद यात्रियों से दुबारा बिना किसी कारण के टिकट नहीं मांगा जा सकता है. हालांकि बदले गए नियम में तमाम प्रावधान भी हैं जिसके तहत टीटीई देर रात भी टिकट चेक कर सकते हैं वे हैं :

अगर यात्री ने रात को 10 बजे के बाद अपनी यात्रा शुरू की हो तो टीटीई टिकट चेक कर सकता है और अगर सुबह 6 बजे तक ही यात्रा हो तब भी टिकट चेक किया जा सकता है.

अगर बोर्डिंग के बाद टीटीई ने टिकट चेक नहीं किया हो तब भी उस परिस्थिति में भी टिकट चेक कर सकता है.

2- सुप्रीम कोर्ट की व्यवस्था के अनुसार, अगर किसी आरक्षित यात्री का सामान रेलवे में सफर के दौरान चोरी हो जाता है तो वह रलवे से अपने सामान का मुआवजा ले सकता है. इसके लिए यात्री द्वारा रेल पुलिस को एफआईआर के साथ एक फार्म भी देना पड़ता है, जिसमें उल्लेख किया जाता है कि यदि छह माह में सामान नहीं मिला तो वह क्षतिपूर्ति के लिए उपभोक्ता फोरम भी जा सकता हैं. सामान की कीमत का आंकलन कर फोरम हर्जाने का आदेश रेलवे को देता है. इसमें महत्वपूर्ण नियम यह है कि एफआईआर दर्ज करते ही जीआरपी को यात्री से उपभोक्ता फोरम का फॉर्म भरवा लेना चाहिए.

3- अगर यात्री के पास वेटिंग टिकट है तो ट्रेन के आरक्षित कोच में वह यात्रा नहीं कर पाएगा. अगर वह यात्रा करता है तो उसे कम से कम 250 रूपए जुर्माना देना पड़ेगा और फिर अगले स्टेशन से जनरल कोच में यात्रा करनी पड़ेगी. परन्तु अगर चार में से दो यात्रियों का टिकट कन्फर्म है तो टीटीई से अनुमति लेकर बाकि दो लोग उनकी सीट पर जा सकते है.

4- भारतीय रेलवे में ई बेडरोल की सुविधा भी दी जा रही है जिससे आप ऑनलाइन बेडरोल बुक करा सकते है परन्तु यह सुविधा सिर्फ चार स्टशनों दिल्ली, हजरत निजामुद्दीन, सीएसटी एवं मुंबई सेंट्रल स्टेशनों पर उपलब्ध है. आप इन स्टेशनों पर 140 रु. में दो बेडशीट और एक तकिया किराए पर ले सकते हैं, जबकि 240 रु. में बेडरोल खरीद सकते है.

5- रेल मंत्रालय ने आदेश जारी किया है कि ट्रेन में अगर कोई भी 18 साल से कम उम्र का बच्चा बिना टिकट के सफर करते हुए पकड़ा जाता है तो उससे टिकट चेकिंग स्टाफ जुर्माना नहीं लेगा, बल्कि सिर्फ किराया ही वसूल करेगा. इस नियम में यह भी बताया गया है कि अगर ऐसे बच्चे के खिलाफ करवाई करनी है तो पहले रिपोर्ट तैयार करनी होगी और उसके बाद ही करवाई की जा सकती है.


प्रकृति की ओर।

सोनाली बेंद्रे - कैंसर
अजय देवगन - लिट्राल अपिकोंडिलितिस 
(कंधे की गंभीर बीमारी)
इरफान खान - कैंसर
मनीषा कोइराला - कैंसर
युवराज सिंह - कैंसर
सैफ अली खान - हृदय घात
रितिक रोशन - ब्रेन क्लोट
अनुराग बासु - खून का कैंसर
मुमताज - ब्रेस्ट कैंसर
शाहरुख खान - 8 सर्जरी 
(घुटना, कोहनी, कंधा आदि)
ताहिरा कश्यप (आयुष्मान खुराना की पत्नी) - कैंसर
राकेश रोशन - गले का कैंसर
लीसा राय - कैंसर
राजेश खन्ना - कैंसर,
विनोद खन्ना - कैंसर
नरगिस - कैंसर
फिरोज खान - कैंसर
टोम अल्टर - कैंसर...

ये वो लोग हैं या थे- 
जिनके पास पैसे की कोई कमी नहीं है/थी!
खाना हमेशा डाइटीशियन की सलाह से खाते है।
दूध भी ऐसी गाय या भैंस का पीते हैं 
जो AC में रहती है और बिसलेरी का पानी पीती है।
जिम भी जाते है। 
रेगुलर शरीर के सारे टेस्ट करवाते है। 
सबके पास अपने हाई क्वालिफाइड डॉक्टर है।
अब सवाल उठता है कि आखिर 
अपने शरीर की इतनी देखभाल के बावजूद भी इन्हें इतनी गंभीर बीमारी अचानक कैसे हो गई।

क्योंकि ये प्राक्रतिक चीजों का इस्तेमाल 
बहुत कम करते है। 
या मान लो बिल्कुल भी नहीं करते।
जैसा हमें प्रकृति ने दिया है ,
उसे उसी रूप में ग्रहण करो वो कभी नुकसान नहीं देगा। 
कितनी भी फ्रूटी पी लो ,
वो शरीर को आम के गुण नहीं दे सकती।
अगर हम इस धरती को प्रदूषित ना करते 
तो धरती से निकला पानी बोतल बन्द पानी से 
लाख गुण अच्छा था।

आप एक बच्चे को जन्म से ऐसे स्थान पर रखिए 
जहां एक भी कीटाणु ना हो।
बड़ा होने से बाद उसे सामान्य जगह पर रहने के लिए छोड़ दो, 
वो बच्चा एक सामान्य सा बुखार भी नहीं झेल पाएगा!
क्योंकि उसके शरीर का तंत्रिका तंत्र कीटाणुओ से लड़ने के लिए विकसित ही नही हो पाया।
कंपनियों ने लोगो को इतना डरा रखा है,
मानो एक दिन साबुन से नहीं नहाओगे तो तुम्हे कीटाणु घेर लेंगे और शाम तक पक्का मर जाओगे।
समझ नहीं आता हम कहां जी रहे है। 
एक दूसरे से हाथ मिलाने के बाद लोग 
सेनिटाइजर लगाते हुए देखते हैं हम।

इंसान सोच रहा है- पैसों के दम पर हम जिंदगी जियेंगे।
आपने कभी गौर किया है-- 
पिज़्ज़ा बर्गर वाले शहर के लोगों की 
एक बुखार में धरती घूमने लगती है। 
और वहीं दूध दही छाछ के शौकीन 
गांव के बुजुर्ग लोगों का वही बुखार बिना दवाई के ठीक हो जाता है। 
क्योंकि उनकी डॉक्टर प्रकृति है। 
क्योंकि वे पहले से ही सादा खाना खाते आए है।
प्राकृतिक चीजों को अपनाओ!
विज्ञान के द्वारा लैब में तैयार 
हर एक वस्तु शरीर के लिए नुकसानदायक है!

पैसे से कभी भी स्वास्थ्य और खुशियां नहीं मिलती।।

आइए फ़िर से_  चलें 
*प्रकृति की ओर...* 🙏🏻

Wednesday, November 13, 2019

स्पर्मैटोजोआ।

वीर्य की रक्षा से मानसिक व शारीरीक क्षमता बहुत बढ़ जाती है और अधिक समय तक बनी रहती है। अतः रक्त में इन हार्मोनो की मात्रा अधिक रहे, इसके लिये जरूरी है कि वीर्य रक्षा हो। वीर्य क्षारीय (एल्कलाईन) तथा चिपचिपा एल्बूमिन तरल है। इसमे उत्तम प्रकार का पर्याप्त कैल्शियम, एल्बूमिन, अॉयरन, विटामिन-ई, न्युक्लियो प्रोटीन होते हैं।

१० मि. ली. वीर्य स्खलन में एक बार में लगभग बाईस करोड़ (22,00,00000) से अधिक स्पर्मैटोजोआ निकल जाते हैं।

सैक्स हार्मोन-निर्माण का मूल आधार कॉलेस्ट्राल, लेसिथिन (फास्फोराईज्ड़ फैट्स), न्युक्लियो प्रोटीन, आयरन, कैल्शियम हैं जो

वीर्य स्थलन के साथ शरीर से बाहर निकल जाते हैं।

अनुमान है कि 1.8 ली. रक्त से 30 मि.ली. वीर्य बनता है. अर्थात् एक बार के वीर्य स्राव में 600 मि.ली.रक्त की हानि होती है।

वैज्ञानिकों के कथन

डॉ. फ्रेडरिक के अनुसार पूर्वजों का यह विश्वास बिल्कुल सही है कि वीर्य में शक्ति निहित है.

वीर्य में ऐसे अनेको तत्त्व हैं जो शरीर को बलवान बनाते हैं। मस्तिक और स्नायु कोषों (ब्रेन) की महत्वपूर्ण खुराक (न्युट्रिशन) इसमें है.

स्त्री शरीर के प्रजनन अंगों की भीतरी परतें वीर्य को चूस कर, स्त्रियों के शरीर को बलवान और उर्जावान बनाती हैं। इसी प्रकार पुरुष के शरीर में सुरक्षित रहने पर यह वीर्य पुरुषों को तेजस्वी, बलवान, सुन्दर, स्वस्थ बनाता है।

अधिक भोग-विलास करने वालों की दुर्बलता, निराशा, मानसिक अवसाद (डिप्रेशन), थकावट के इलाज के लिए चिकित्सा जगत में लेसिथिन का बहुत सफल प्रयोग होता है। प्राकृतिक लेसिथिन ‘वीर्य’ का महत्वपूर्ण घटक है। लेसिथिन के महत्व, शरीर व मन पर होने वाले इसके गहन प्रभाव का अनुमान लगाया जा सकता है.

पर दवा के रूप लिये जाने वाले कृत्रिम. लेसिथिन के दुष्प्रभाव भी सम्भव हैं।

स्नायुतंत्र की रासायनिक संरचना और वीर्य की संरचना में अद्भूत समानता है। दोनो में स्मृद्ध लेसिथिन, कॉलेस्ट्रीन तथा फॉसफोरस कम्पाऊंड हैं।

जो धटक वीर्य में बाहर निकल जाते हैं, स्नायु कोषों व तन्तुओं (ब्रेन) के निर्माण के लिये उनकी जरूरत होती है। अतः जितना वीर्य शरीर से बाहर जाता है उतना अधिक शरीर और बुद्धि दुर्बल होती है।

वीर्यनाश होते ही दुर्बलता आती है।  लगातार और बार-बार वीर्यनाश होने (बाहर निकलने) पर मानसिक व शारीरिक दुर्बलता बहुत बढ़ जाती है। परिणाम स्वरूप अनेकों शारीरिक और मानसिक रोग सरलता से होने लगते हैं। ‘सैक्सुअल न्युरेस्थीनिया’ नामक स्नायु तंत्र दुर्बलता  जैसे रोग हो जाते हैं.

विशेषज्ञों के अनुसार ‘वीर्यरक्षा’ दिमाग के लिये सर्वोत्तम टॉनिक या खुराक है।

वीर्य के तत्त्वों के विश्लेषण और शरीर व बुद्धी पर होने वाले लाभदायक प्रभावों पर प्रो. ब्राऊन सिकवार्ड तथा प्रो. स्टीनैच ने बहुत काम किया है।

प्रो. स्टीनेच के अनुसार अंडकोष नाड़ी को बांधकर, वीर्य बाहर जाने के रास्ते को रोकर वीर्य रक्षा के स्वास्थ्य- वर्धक प्रभावों पर उन्होने अध्ययन किया।

प्रो. स्टीनेच के अलावा विश्व के अनेक चिकित्सा विज्ञानियों ने इस विषय पर शोध किये हैं। शरीर विज्ञान, मूत्र रोग, विशेषज्ञ, यौन रोग व प्रजनन अंगो के विद्वान, मनोवैज्ञानिक, स्त्रिरोग विशेषज्ञों,

एण्डोक्राईनोलोजिस्ट आदि अनेक विशेषज्ञोंके ने वीर्य रक्षा के महत्व को स्वीकार किया है।

Wednesday, November 6, 2019

कलावा।

क्या आप जानते हैं कि हमारे हिन्दू परम्पराओं के अनुसार हाथ में #मौली (#कलावा) क्यों बांधा जाता है ?

आपने अक्सर देखा होगा कि घरों और मंदिरों में पूजा के बाद पंडित जी हमारी कलाई पर लाल रंग का कलावा या मौली बांधते हैं और हम में से बहुत से लोग बिना इसकी जरुरत को पहचानते हुए इसे हाथों में बंधवा लेते हैं।

सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि, आजकल पश्चिमी संस्कृति से प्रभावित अंग्रेजी स्कूलों में पढ़े लोग #मौली बांधने को एक ढकोसला मानते हैं और, उनका मजाक उड़ाते हैं

हद तो ये है कि कुछ लोग #मौली बंधवाने में अपनी आधुनिक शिक्षा का अपमान समझते हैं एवं, #मौली बंधवाने से उन्हें अपनी सेक्यूलरता खतरे में नजर आने लगती है

परन्तु ,

आपको एक बार फिर से ये याद दिला दे कि एक पूर्णतया वैज्ञानिक धर्म होने के नाते हमारे हिंदू सनातन धर्म की कोई भी परंपरा बिना वैज्ञानिक दृष्टि से हो कर नहीं गुजरता और हाथ में #मौली धागा बांधने के पीछे भी एक बड़ा वैज्ञानिक कारण है...!

दरअसल #मौली का धागा कोई ऐसा-वैसा धागा नहीं होता है बल्कि, यह कच्चे सूत से तैयार किया जाता है और, यह कई रंगों जैसे, #लाल #काला, #पीला अथवा #केसरिया रंगों में होती है।

#मौली को लोग साधारणतया लोग हाथ की कलाई में बांधते हैं...!

और, ऐसा माना जाता है कि हाथ में #मौली का बांधने से  मनुष्य को भगवान ब्रह्मा, विष्णु व महेश तथा तीनों देवियों- लक्ष्मी, पार्वती एवं  सरस्वती की कृपा प्राप्त होती है...।

कहा जाता है कि हाथ में #मौली धागा बांधने से मनुष्य बुरी दृष्टि से बचा रहता है क्योंकि भगवान उसकी रक्षा करते हैं...!

और, इसीलिए कहा जाता है क्योंकि हाथों में #मौली धागा बांधने से मनुष्य के स्वास्थ्य में बरकत होती है कारण कि इस धागे को कलाई पर बांधने से शरीर में वात,पित्त तथा कफ के दोष में सामंजस्य बैठता है।

तथा, ये सामंजस्य इसीलिए हो पाता हैं क्योंकि शरीर की संरचना का प्रमुख नियंत्रण हाथ की कलाई में होता है (आपने भी देखा होगा कि डॉक्टर रक्तचाप एवं ह्रदय गति मापने के लिए कलाई के नस का उपयोग प्राथमिकता से करते हैं ) इसीलिए वैज्ञानिकता के तहत हाथ में बंधा हुआ मौली धागा एक एक्यूप्रेशर की तरह काम करते हुए मनुष्य को  रक्तचाप, हृदय रोग, मधुमेह और लकवा जैसे गंभीर रोगों से काफी हद तक बचाता है एवं,  इसे बांधने वाला  व्यक्ति स्वस्थ रहता है।

और, हाथों के इस नस और उसके एक्यूप्रेशर प्रभाव को ... हमारे ऋषि-मुनियों ने हजारों -लाखों साल पहले जान लिया था...!

परन्तु हरेक व्यक्ति को एक-एक कर हर बात की वैज्ञानिकता समझाना संभव हो नहीं पाता....

इसीलिए हमारे ऋषि-मुनियों ने गूढ़ से गूढ़ बातों को भी हमारी परम्परों और रीति-रिवाजों का हिस्सा बना दिया ताकि, हम जन्म-जन्मांतर तक अपने पूर्वजों के ज्ञान-विज्ञान से लाभान्वित होते रहें

जाने ... समझे और अपने आपको पहचाने हिन्दु

हम हिन्दू उस गौरवशाली सनातन धर्म का हिस्सा हैं..... जिसके एक-एक रीति-रिवाजों में वैज्ञानिकता रची-बसी है

नोट : शास्त्रों के अनुसार पुरुषों एवं अविवाहित कन्याओं को दाएं हाथ में , एवं विवाहित स्त्रियों के लिए बाएं हाथ में मौली बांधने का नियम है।
कलावा बंधवाते समय जिस हाथ में कलावा बंधवा रहे हों उसकी मुठ्ठी बंधी होनी चाहिए और, दूसरा हाथ सिर पर होना चाहिए।
हर हर महादेव