भारत में जैसे IAS (Indian Administrative Service), आस्ट्रेलिया में वैसे APS (Australian Public Service)। भारत में जैसे UPSC (Union Public Service Commission), आस्ट्रेलिया में वैसे APSC (Australian Public Service Commission)। आइए देखते समझते हैं कि IAS व APS के मूलभूत चरित्रों में क्या अंतर है।
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आस्ट्रेलिया में APS :
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आस्ट्रेलिया में जो योग्य है, जो वास्तव में देश के लिए योगदान करना चाहता है, वह APS बनता है। APS बनना योग्यता का मानदंड नहीं है। जो योग्य है वह APS बनता है।
APS की सबसे बड़ी खासियतें यह हैं कि स्वतः प्रमोशन जैसी व्यवस्था नहीं। यदि कोई सामान्य स्नातक है और APS बना है तो वह अपनी योग्यता के आधार पर ही APS के स्तर पर रहेगा, स्वतः प्रमोशन पाते हुए देश का सचिव नहीं बन सकता या नीति निर्माताओं या निर्णय लेने जैसे स्तरों तक नहीं पहुंच सकता है। पहुंचेगा भी तो अपनी योग्यता प्रमाणित करते हुए।
APS के किसी भी स्तर पर कोई भी कभी अपनी योग्यता प्रमाणित करके APS का वह स्तर ज्वाइन कर सकता है। आयु की कोई सीमा नहीं।
मतलब यह कि यदि आप विशेषज्ञ हैं, योग्य हैं तो आप पचास साठ साल की आयु में भी अपनी योग्यता के आधार पर APS का स्तर ज्वाइन कर सकते हैं।
आपने जीवन में कभी भी कोई सरकारी नौकरी न की हो, लेकिन यदि आप योग्य हैं, यदि आप विशेषज्ञ हैं तो आप देश के महत्वपूर्ण विभागों का सचिव बन सकते हैं। आप 21 साल की आयु में देश का सर्वोच्च सचिव बन सकते हैं, आप 80 साल की आयु में सचिव बन सकते हैं।
यही कारण है कि आस्ट्रेलिया में कोई नौकरशाह किसी आम-आदमी का अपमान नहीं करता। क्योंकि क्या मालूम कि आज जो कुर्सी के उस पार बैठा है कल को उस नौकरशाह का बाप बनकर बैठ जाए। वैसे भी आस्ट्रेलिया में नौकरशाही का जो चरित्र है वह आम आदमी के लिए है। आम आदमी वास्तविक मालिक है देश का।
आस्ट्रेलिया में किसी भी नौकरशाह को भले ही देश का सर्वोच्च नौकरशाह हो को आवास जैसी सुविधाएं नहीं मिलती हैं। आपका पड़ोसी भी देश का सर्वोच्च नौकरशाह हो सकता है। बिलकुल आपके ही जैसा आम आदमी। जिसके ऊपर वह सभी नियम कानून लागू होते हैं जो आपके ऊपर लागू होते हैं। उसको भी आपकी ही तरह बिजली पानी इत्यादि के बिल देने पड़ते हैं। वह भी आपकी तरह अपनी कार चलाते हुए ट्रैफिक के नियमों का पालन करता हुआ अपने आफिस पहुंचता है। उसके बच्चे भी आपके बच्चों की ही तरह बस स्टाप में बस का इंतजार करते हैं। कोई अतिरिक्त छूट, सुविधा या महिमामंडन नहीं।
आस्ट्रेलिया में जो नौकरशाह जिस विभाग में है वह उस विभाग के संदर्भ में योग्यता व विशेषज्ञता रखता है। ऐसा नहीं है कि एक इतिहास का स्नातक वित्त या अंतर्राष्ट्रीय विकास या पानी या ऊर्जा या तकनीक या स्वास्थ्य या सुरक्षा की नीतियां बनाना शुरू देगा। ऐसा भी नहीं है कि एक BA पास आदमी किसी अधिक योग्य व विशेषज्ञ को ज्ञान देना शुरू कर देगा। ऐसी कल्पना तक नहीं की जा सकती है।
यही कारण है कि आस्ट्रेलिया जैसे विकसित हैं और दुनिया के सर्वश्रेष्ठ देशों में आते हैं। क्योंकि वास्तव में योग्यता व विशेषज्ञता का सम्मान होता है, काम करने की छूट मिलती है, आगे बढ़ने के अवसर मिलते हैं। योग्यता व विशेषज्ञता का देशहित में प्रयोग होता है।
आस्ट्रेलिया में APS संसद के प्रति जिम्मेदार होता है। ध्यान दीजिए संसद के प्रति न कि राष्ट्रपति या कैबिनेट या सरकार के प्रति। यही कारण है कि ऊंचे से ऊंचा नौकरशाह भी एक निर्दलीय सांसद तक से नीचे माना जाता है। भारत में तो उपजिलाधिकारी भी गैर-सत्तापक्ष वाले सांसद/विधायक से चाहें तो तहजीब से बात तक न करें, निर्दलीयों की तो बात ही छोड़ दीजिए।
आस्ट्रेलिया में जिलाधिकारी, उपजिलाधिकारी इत्यादि जैसे सामंती व राजसी पद नहीं होते हैं। इस तरह के पद होते भी हैं तो वे स्थानीय सरकारों के अधीन होते हैं। भारत में अंग्रेजो की गुलामियत वाली प्रशासनिक व्यवस्था आजतक बदले हुए नामों के साथ लागू है। भारत में क्या कल्पना की जा सकती है कि जिलाधिकारी जिलापंचायत के अधीन हो। जिला पंचायत जिलाधिकारी की वैकेंसी निकाले, चयन परीक्षा करवाए, वेतन दे। जिलाधिकारी है तो स्थानीय सरकार के स्तर का सरकारी कर्मचारी ही।
जिले का जिलाधिकारी होने का मतलब स्थानीय स्तर पर नौकरी करना, मतलब स्थानीय सरकार के लिए नौकरी करना न कि राज्य या केंद्र सरकार के लिए नौकरी करना। लेकिन भारत के तंत्र का ढांचा ऐसा है कि ये लोग राजा होते हैं बाकी लोग गुलाम, ऊपर से भारत के राष्ट्रपति के प्रतिनिध के रूप में नौकरी करते हैं।
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भारत में IAS :
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भारत में IAS होने के लिए स्नातक होना होता है। स्नातक होने के बाद परीक्षा में बैठना होता है। जो जितना अधिक रट लेता है वह IAS बन जाता है। भारत में समाज के लोग IAS को व जो स्वयं IAS है वह अपने आपको सर्वज्ञाता मानता है। ऐसा माना जाता है कि वह सबसे अधिक विद्वान व योग्य है तभी IAS बन पाया है।
IAS होने की परीक्षा जो महज आवेदकों की संख्या छटनी करने का प्रतियोगी तरीका भर है, को योग्यता व विशेषज्ञता के रूप में महिमामंडित किया जाता है। स्थिति यह है कि बिना किसी विशेषज्ञता का एक सामान्य स्नातक भी IAS बन कर देश की नीतियां तय करने वाला निरंकुश नौकरशाह बन जाता है। नीति निर्माता होने के लिए वास्तविक योग्यता व विशेषज्ञता के लिए न तो दरवाजा रहता है न ही विकल्प। जो दिखावटी सलाहकार समितियां बनती भी हैं तो उनका कोई विशेष मतलब नहीं होता क्योंकि सबके ऊपर तो IAS रूपी नौकरशाह कुंडली मारकर बैठा रहता है।
भारत में कुछ किताबें रटकर IAS बन सकते हैं। कुछ किताबें रटिए, संख्या छटनी प्रतियोगी-परीक्षा में जगह बनाइए फिर जीवन में आपको कुछ नहीं करना है सबकुछ स्वतः होगा। प्रमोशन स्वतः होते हैं। समय से प्रमोशन न हो तो कोर्ट जा सकते हैं, प्रमोशन न होने पर सरकार के खिलाफ मुकदमे दायर कर सकते हैं। प्रमोशन के लिए केवल समय काटना होता है। इन मुद्दों पर सरकार के खिलाफ मुकदमे करके हीरो बना जा सकता है, क्रांतिकारी के रूप में प्रतिष्ठा पाई जा सकती है। सरकार यदि किसी IAS को बर्खास्त करना चाहे या निलंबित करना चाहे तो सरकार को नाकों चने चबाने पड़ जाते हैं।
स्नातक कीजिए, एक खास उम्र तक IAS बनिए। आजीवन देश की दशा व दिशा तय करने के लिए महानता व योग्यता अर्जित हो गई। अब कोई सवाल नहीं खड़ा हो सकता, किसी सुझाव की जरूरत नहीं।
इतिहास से BA स्नातक IAS बनकर भारत का वित्त सचिव बन सकता है, स्वास्थ्य सचिव बन सकता है, नदी मंत्रालय का सचिव बन सकता है, इंजीनियरी विभाग का सचिव बन सकता है, विदेश मंत्रालय का पूरा ठेकेदार बन सकता है। इंजीनियरिंग से स्नातक/परास्नातक IAS बनकर स्वास्थ्य सचिव बन सकता है।
कामर्स स्नातक या MBBS स्नातक या LLB की पढ़ाई किया हुआ IAS, इंजीनियरी से पीएचडी किए इंजीनियर को इंजीनियरी के ऊपर ज्ञान देगा। इंजीनियरी की पढ़ाई किया हुआ IAS, डाक्टर व वित्त व अन्य विशेषज्ञों को उनकी विशेषज्ञता वाले क्षेत्रों में ज्ञान देगा।
एक BA या BSc की पढ़ाई किया हुआ IAS, जिलाधिकारी या उपजिलाधिकारी बनकर पूरे जिले या अपने हलके के इंजीनियर्स, डाक्टर्स, वित्त विशेषज्ञों, व्यापारियों, व प्रोफेसरों को भरपूर ज्ञान देता है। सब उसके जूतों तले रहते हैं। निर्णय वही लेता है। बाकियों को अपने द्वारा लिए गए निर्णयों के संदर्भ में IAS की सहमति लेनी होती है।
यहां तक कि जिलाधिकारी, IAS, सुरक्षा विशेषज्ञ भी होता है, जिला पुलिस अधीक्षक, IPS, को ज्ञान देता है। पूरी नौकरशाही के ढांचे में टाप टु बाटम ऐसा ही है। सर्वज्ञाता होने व योग्य होने की इनकी सीमा असीमित है। फैशन डिज्ञाइन संस्थानों, तकनीकी संस्थानों के निदेशक बन जाते है।
एक लाइन में यह समझिए कि घास के तिनके से लेकर अंतरिक्ष यान तक सभी कुछ के ज्ञाता व धुरंधर विशेषज्ञ होते हैं। ज्ञाता होने व योग्य होने का अहंकार, बाप रे बाप। ईश्वर भी पानी भरे। बिलकुल राजतंत्र वाला अंदाज। एक राजा और बाकी सब जी-हुजूरी करने वाले दरबारी।
जिस-जिस IAS को बहुत संवेदनशील, लोकतांत्रिक व अपवाद इत्यादि माना जाता है। वह स्वयं को अपनी प्रजा का अभिभावक मान कर कुछ थोड़े बहुत काम कर देता है। इसके लिए भी उसको पुरस्कार वगैरह मिल जाते हैं, मनचाहे पद मिल जाते हैं। आइडिया इन्वेंटर मान लिया जाता है। योग्यता व महानता का अहंकार और जबरदस्त कुलांचे मारता है।
जो IAS हैं, उन्हीं में से चुनाव करना है कि किसको किस पद पर कहां रखा जाए, किसको कहां सचिव बनाया जाए। जो वित्त सचिव है उसे वित्त का ककहरा पता है या नहीं, यह मायने नहीं रखता। बाइचांस भगवान भरोसे यदि कोई वित्त विशेषज्ञ निकल आए तो अलग बात है। यहां भी वित्त विशेषज्ञ का मतलब यह कि किसी ने वित्त या कामर्स इत्यादि जैसे विषयों से स्नातक कर रखा हो।
यहां तक कि सांसद व विधायक निधियों तक के बारे में भी निर्णय लेता है। मतलब यह कि ईश्वर के बाद सबसे अधिक ज्ञाता लोग भारत का IAS. इस ढांचे की सबसे बड़ी विडम्बना यह है है कि भारत में जो भी IAS होता है वह दिखावटी नौटंकी चाहे जो करे, लेकिन वह खुद ही स्वयं को सर्वज्ञाता मानता है।
भारत में पूरा प्रशासनिक ढांचा ही भीषण रूप से सामंती, अलोकतांत्रिक व गैरजिम्मेदाराना चरित्र का है। IAS बनने की प्रक्रिया भी ऐसी है कि वह लोगों के अंदर सामंती चरित्र, गैर-जिम्मेदारानपन, अहंकार व शोषण करने की मानसिकता विकसित करती है। बेहतर लोगों को IAS बनकर देश व समाज के लिए योगदान देने की संभावना नगण्य रहती है।
भारत का IAS लोकतंत्र को कमजोर करता है, सामंती चरित्र का होता है, योग्यता व विशेषज्ञता से लेना-देना नहीं होता है। देश व देश के लोगों के प्रति कोई जिम्मेदारी का भाव कम से कम IAS का ढांचा तो नहीं ही विकसित करता है, हां यदि वह व्यक्ति जो IAS है वह अपने व्यक्तिगत मूल्यों के आधार पर ऐसा महसूस करे तो बिलकुल अलग बात है।
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चलते-चलते :
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भारतीय तंत्र में मूलभूत रूप से गंभीर खामियां होने के कारण ही भारतीय तंत्र का चरित्र सामंती व अलोकतांत्रिक है तथा आम आदमी के प्रति उपेक्षा, उपहास व गैर-जवाबदेह वाली मानसिकता कूट-कूट कर भरी है।
चकाचौंध की बजाय लोकतांत्रिक विकसित देशों से भारत को बहुत कुछ सीखने समझने की महती जरूरत है।
भारत में बहुत चिंतक लोग अपने आपको क्रांतिकारी, समाजवादी व वामपंथी मानते हुए चीन-चीन या अमेरिका-अमेरिका चिल्लाते रहते हैं। जबकि वास्तविकता यह है कि आस्ट्रेलिया व यूरोप के अनेक देशों का चरित्र बेहतर समाजवादी व लोकतांत्रिक है तथा चीन की तथाकथित साम्यवादी व्यवस्था से बेहतर व्यवस्था रखते हैं। भले ही नारे न लगाते हों।
कोई देश व समाज व उसके लोग वास्तव में कितने समाजवादी व लोकतांत्रिक हैं, वह उस देश व समाज के आंतरिक व व्यवहारिक ढांचों व व्यवस्थाओं का सूक्ष्म अध्ययन करने पर ही मालूम पड़ता है। कथा कहानियों भाषणों बयानों या किसी टीवी एंकर के सतही लेखों या सतही टीवी कार्यक्रमों या सेमिनारों या दस्तावेजी लिखापढ़ी की नौटंकी/प्रायोजनों से नहीं।
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सामाजिक यायावर
साभार श्री Rajesh Goyal जी
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