Tuesday, July 25, 2023

बांके इज़ बैक

जौनपर को गौरवान्वित करने वाली इतिहास में गुम कहानी
ईनाम पूरे पचास हज़ार!!!!

कितना इनाम रखे है सरकार हम पर…पूरे पचास हज़ार सरदार….यानी यहां से 50-50 कोस दूर जब कोई बच्चा रोता है तो माँ कहती है सो जा बेटा नहीं तो गब्बर सिंह आजायेगा… ये डायलॉग सभी ने सुना ही होगा….और सलीम मियाँ की कलम की कारीगरी पर खूब ताली भी बजाई होगी…. 
पर इस डायलॉग के पीछे भी एक सच्ची कहानी है….. और कमीनगी भी...

दर असल हिंदुस्तानी गर्व की एक लोकोक्ति को सलीम ने उठाया और एक क्रूर डकैत के किरदार के मुंह में रख दिया….
जानते हैं भारत के आजतक के इतिहास में सबसे बड़ा इनाम किसके सर पर रखा गया??अगर मैं आज 165 साल पहले की उस 50 हज़ार की रकम की कीमत निकालूं तो आज बैठेगी करीब 30 करोड़……. जी हाँ एक हिंदुस्तानी योद्धा के सर की कीमत तब की अंग्रेज सरकार ने तय की थी 50 हज़ार….. और वो भी आज से 166 साल पहले यानी 1857 में…. उसकी पूरी टोली के सर का इनाम तो तब भी #दो_लाख_से_ऊपर था….. और हम ठहरे हिंदुस्तानी पैसे के मामले में बाप के सगे नहीं तो देश भक्त क्रांतिकारी क्या लाये….
1857 की क्रांति में कई जियालों ने गोरों को नाकों चने चबवा दिए थे लेकिन दुर्भाग्य से हिंदुस्तान हिंदुस्तान से लड़ा और हार गया… पर फिर भी कुछ क्रांतिकारी थे जो न अभी तक हार मानने को तैयार थे न लड़ाई से हटने को और ऐसे ही योद्धा थे मछली शहर के #बांके_चमार….. जौनपुर के इलाके में बांके का अंग्रेज़ो पर खौफ तारी था…. उनकी 40-50 की टोली अचानक प्रकट होती और किसी काफ़िले या अंग्रेज़ो के शिविर को नेस्तनाबूद कर देती….. जो गोरा हाथ लगता उसे मौत के घाट उतार दिया जाता….. कानपुर के बाद सबसे ज्यादा अंग्रेज़ो को बांके ने अपना शिकार बनाया….
इस छापामार जंग का जब अंग्रेज़ो को कोई जवाब न सूझा उन्होंने हिंदुस्तानियत की अपनी समझ को ध्यान रख बांके पर 50 हज़ार का इनाम रख दिया….. अब उस समय की दुनियाँ का ये सबसे बड़ा ईनाम था….. जब ये खबर बांके तक पहुंची वो हँस पड़ा और उसने ऐलान किया के आज से 50 कोस के दायरे में कोई अंग्रेज जिंदा नहीं छोड़ा जाएगा….
तब के समय कहावत चल पड़ी की गोरी माएँ अपने बच्चों को इस खौफ से रोने भी न देती थीं के बांके न आजाये….. खैर आगे वही हुआ जो होता आया इतने बड़े इनाम के लालच में स्थानीय जमीदारों ने बांके की मुखबिरी कर दी और धोखे से गिरफ्तार करवा दिया…… अंग्रेज सरकार ने भी बिना एक पल गवाए बांके और 17 अन्य साथियों को फांसी पर लटका दिया….. 
बस यही से आगे बांके चमार का नाम इतिहास से मिटा दिया गया….. न किसी नीले वस्त्रधारी महापुरुष को कभी उनकी याद आयी, न UP के किसी दलित नेता नेत्री को और न ही किसी कथित आर्मी को….. अन्य किसी की बात भी क्या करें….
न बांके की कोई स्मृति बची, न इतिहास और न वो कहावत…. उस 50 हज़ार के ईनाम की कहानी जरूर ब्रिटिश राज की फाइलों में रही और वहीं कहीं से उसे पकड़ लिया सलीम मियाँ ने…..
तो कभी ये भी याद कर लें के कोई बांके चमार था जो इस देश पर मर मिटा…. न अंग्रेज़ो ने उसकी जागीर छीनी थी न उत्तराधिकारी अस्वीकार किया था….. वो बस मिट्टी के लिए लड़ा और बलिदान हो गया…. तो कभी गब्बर इज़ बैक की जगह

‘बांके इज़ बैक भी कह डालिये….. असली तो वही था!!!

Friday, July 14, 2023

नरभक्षी के तर्क ।

मनुष्यों को बेधड़क नरमाँस का सेवन करना चाहिए। इसके पक्ष में तर्क बहुत ठोस और अकाट्य हैं :

1. नरमाँस में प्रोटीन होता है, जो कि जीवन के लिए अत्यावश्यक है।

2. नरमाँस स्वादिष्ट होता है। एक नरभक्षी अफ्रीकी तानाशाह ने बताया था कि मनुष्य और विशेषकर बच्चों के माँस से सुस्वादु कुछ भी नहीं होता। पशुओं का माँस उसकी तुलना में बहुत ही बेस्वाद है। और स्वाद से बड़ी कोई चीज़ नहीं।

3. हम एक लोकतान्त्रिक देश में रहते हैं और संविधान ने हमें अपनी पसंद का भोजन करने की स्वतंत्रता दी है। किसी को जीने की आज़ादी हो न हो, मुझे खाने की आज़ादी अवश्य है।

4. हम क्या खाएँ और क्या नहीं, ये तय करने वाला कोई और कैसे हो सकता है?

5. यही खाद्य-शृंखला है। शक्तिशाली मनुष्यों को दुर्बलों को मारकर खा जाना चाहिए। यही प्रकृति का नियम है। जीव जीव का भोजन है। मछली मछली को खाती है, साँप साँप को, मनुष्य मनुष्य को।

6. प्रकृति ने मनुष्य को कैनाइन दांत माँस खाने के लिए दिए हैं और मनुष्य सर्वभक्षी होते हैं।

7. पेड़-पौधों में भी जीवन होता है। पानी में जीवाणु होते हैं। जो सब्ज़ी खाता है और पानी पीता है, वह भी तो जीव-हत्यारा है। फिर आप किसी को नरमाँस का सेवन करने से कैसे रोक सकते हैं?

8. दुनिया में मनुष्यों की संख्या इतनी अधिक है कि अगर हम उनको मारकर नहीं खाएँगे तो किसी के भी रहने की जगह नहीं बचेगी।

9. पृथ्वी इतनी मात्रा में अनाज और सब्ज़ी का उत्पादन नहीं कर सकती, इसलिए भी मनुष्यों को मारकर खाना हमारे लिए ज़रूरी है। अगर नरभक्षी न हों और सब शाकाहारी बन जाएँ तो लोग भूखों मरने लगेंगे।

10. किन मनुष्यों को मारकर खाना चाहिए? जो कम क्यूट दिखते हों, जो मूर्ख हों, अनुपयोगी हों, गूंगे हों, जो आप पर निर्भर हों, और जिन्हें खाना धर्म में निषिद्ध न हो, उन्हें मारकर खाया जा सकता है।

11. अगर आपका घर आदमखोरों की बस्ती में है और आपके बच्चे रात को लौटकर घर न आएँ तो मान लें उन्हें किसी ने मारकर खा लिया होगा। कृपया इसकी शिक़ायत न करें। अगर आपको इस पर ऐतराज़ होता है तो आप फ़ासिस्ट हैं, आप नफ़रत फैलाते हैं, आप दूसरों की पसंद को स्वीकार नहीं करते, आप अपनी मर्ज़ी औरों पर थोपना चाहते हैं। आपको अपने पर शर्म आनी चाहिए।
कृपया इन तर्कों का विरोध नहीं कीजिये, क्योंकि नब्बे फ़ीसदी मनुष्यजाति पहले ही इन तर्कों का हवाला देकर माँसभक्षण कर रही है और जानवरों को मार रही है। वैज्ञानिक आधार पर एक कारण बता दीजिये कि इन तर्कों को मनुष्यों पर लागू क्यों नहीं किया जा सकता?
कापी पेस्ट |
रावण द्वारा #माता_सीता_का_हरण करके श्रीलंका जाते समय पुष्पक विमान का मार्ग क्या था?

उस मार्ग में कौन सा #वैज्ञानिक_रहस्य छुपा हुआ है ?
उस मार्ग के बारे में हज़ारों साल पहले कैसे जानकारी थी ? पढ़िए इन प्रश्नों के उत्तर जो वामपंथी इतिहारकारों के लिए मृत्यु समान हैं.
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मेरे देशबंधुओं,
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रावण ने माँ सीताजी का अपहरण पंचवटी (नासिक, महाराष्ट्र) से किया और पुष्पक विमान द्वारा हम्पी (कर्नाटक), लेपक्षी (आँध्रप्रदेश) होते हुए श्रीलंका पहुंचा.
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आश्चर्य होता है जब हम आधुनिक तकनीक से देखते हैं कि नासिक, हम्पी, लेपक्षी और श्रीलंका बिलकुल एक सीधी लाइन में हैं. अर्थात ये पंचवटी से श्रीलंका जाने का सबसे छोटा रास्ता है।
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अब आप ये सोचिये कि उस समय Google Map नहीं था जो Shortest Way बता देता. फिर कैसे उस समय ये पता किया गया कि सबसे छोटा और सीधा मार्ग कौन सा है?
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या अगर भारत विरोधियों के अहम् संतुष्टि के लिए मान भी लें कि चलो रामायण केवल एक महाकाव्य है जो वाल्मीकि ने लिखा तो फिर ये बताओ कि उस ज़माने में भी गूगल मैप नहीं था तो रामायण लिखने वाले वाल्मीकि को कैसे पता लगा कि पंचवटी से श्रीलंका का सीधा छोटा रास्ता कौन सा है?
महाकाव्य में तो किन्ही भी स्थानों का ज़िक्र घटनाओं को बताने के लिए आ जाता।
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लेकिन क्यों वाल्मीकि जी ने सीता हरण के लिए केवल उन्हीं स्थानों का ज़िक्र किया जो पुष्पक विमान का सबसे छोटा और बिलकुल सीधा रास्ता था?
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ये ठीक वैसे ही है कि आज से 500 साल पहले गोस्वामी तुलसीदास जी को कैसे पता कि पृथ्वी से सूर्य की दूरी क्या है? (जुग सहस्त्र जोजन पर भानु = 152 मिलियन किमी - हनुमानचालीसा), जबकि नासा ने हाल ही के कुछ वर्षों में इस दूरी का पता लगाया है.
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अब आगे देखिये...
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पंचवटी वो स्थान है जहां प्रभु श्री राम, माता जानकी और भ्राता लक्ष्मण वनवास के समय रह रहे थे.
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यहीं शूर्पणखा आई और लक्ष्मण से विवाह करने के लिए उपद्रव करने लगी। विवश होकर लक्ष्मण ने शूपर्णखा की नाक यानी नासिका काट दी. और आज इस स्थान को हम नासिक (महाराष्ट्र) के नाम से जानते हैं। आगे चलिए...
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पुष्पक विमान में जाते हुए सीताजी ने नीचे देखा कि एक पर्वत के शिखर पर बैठे हुए कुछ वानर ऊपर की ओर कौतुहल से देख रहे हैं तो सीता ने अपने वस्त्र की कोर फाड़कर उसमें अपने कंगन बांधकर नीचे फ़ेंक दिए, ताकि राम को उन्हें ढूढ़ने में सहायता प्राप्त हो सके.
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जिस स्थान पर सीताजी ने उन वानरों को ये आभूषण फेंके वो स्थान था 'ऋष्यमूक पर्वत' जो आज के हम्पी (कर्नाटक) में स्थित है.
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इसके बाद... वृद्ध गिद्धराज जटायु ने रोती हुई सीताजी को देखा, देखा कि कोई राक्षस किसी स्त्री को बलात अपने विमान में लेके जा रहा है।
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जटायु ने सीताजी को छुड़ाने के लिए रावण से युद्ध किया. रावण ने तलवार से जटायु के पंख काट दिए.
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इसके बाद जब राम और लक्ष्मण सीताजी को ढूंढते हुए पहुंचे तो उन्होंने दूर से ही जटायु को सबसे पहला सम्बोधन 'हे पक्षी' कहते हुए किया. और उस जगह का नाम दक्षिण भाषा में 'लेपक्षी' (आंधप्रदेश) है।
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अब क्या समझ आया आपको? पंचवटी---हम्पी---लेपक्षी---श्रीलंका. सीधा रास्ता.सबसे छोटा रास्ता. हवाई रास्ता, यानि हमारे जमाने में विमान होने के सबूत
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गूगल मैप का निकाला गया फोटो नीचे है.
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अपने ज्ञान-विज्ञान, संस्कृति को भूल चुके भारतबन्धुओं रामायण कोई मायथोलोजी नहीं है.
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ये महर्षि वाल्मीकि द्वारा लिखा गया सत्य इतिहास है. जिसके समस्त वैज्ञानिक प्रमाण आज उपलब्ध हैं.
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इसलिए जब भी कोई वामपंथी हमारे इतिहास, संस्कृति, साहित्य को मायथोलोजी कहकर लोगों को भ्रमित करने का या खुद को विद्वान दिखाने का प्रयास करे तो उसको पकड़कर बिठा लेना और उससे इन सवालों के जवाब पूछना. एक का भी जवाब नहीं दे पायेगा।
सत्य सनातन धर्म की जय।🚩🚩 साभार 🙏🏼
#काशीमथुरामुक्तिआंदोलन