Sunday, May 31, 2020

नशा – मनुष्य का महान् शत्रु।

मादक द्रव्यों वा नशा का सेवन व्यक्ति, समाज व देश का प्रबल शत्रु है। आज बहुत से मनुष्य अनेक कारणों से नशीले वा मादक पदार्थों का सेवन करते हैं। यह एक मनोवैज्ञानिक रोग है। सभी जानते हैं कि नशा मन, मस्तिष्क, बुद्धि, अन्तःकरण, शरीर व स्वास्थ्य को बिगाड़ता है। इससे किसी मनुष्य, स्त्री वा पुरुष को कोई लाभ नहीं होता, हानि सबकी निश्चित रुप से होती है। इसी कारण वेदों व हमारे पूर्वज ऋषि-मुनियों ने अपने विस्तृत वैदिक साहित्य में कहीं भी मादक द्रव्यों के सेवन का विधान व कथन नशा करने के लिए नहीं किया है। ऋषि दयानन्द वेदों व वैदिक साहित्य के मर्मज्ञ हुए हैं। उनका वचन है कि मादक द्रव्यों वा नशा करने से मनुष्य की बुद्धि योग-विद्या जैसी सूक्ष्म व अन्य गहन विद्याओं को जानने व उसको अभ्यास द्वारा सिद्ध करने में असफल व अकृतकार्य रहती है। हमारी दृष्टि में नशे का सेवन मनुष्य जीवन का हानिकारक कार्य, व्यवहार अथवा आदत है जिसका सेवन करने वाला मनुष्य समाज में अपमानित होता है, उसके शारीरिक बल वा श्रम की सामर्थ्य कम होती है और वह कुछ समय बाद अनेक रोगों से ग्रसित होकर दुःखी व सन्तप्त रहते हुए संसार छोड़ कर चला जाता है। कर्मफल के सिद्धान्त से भी इस घटना का विश्लेषण करना उचित है। 

विश्लेषण करने पर यह पाया जाता है कि नशा करने से मनुष्य को इस जन्म में तो आर्थिक हानि, सामाजिक अपमान, अल्पायु व शारीरिक रोगों से त्रस्त होना ही पड़ता है अपितु इसका कुपरिणाम उसे ईश्वर की व्यवस्था से भावी जन्म-जन्मान्तरों में भी भोगना पड़ता है। शराब व मादक द्रव्यों के सेवन का कुपरिणाम यह भी देखा गया है कि नशे का सेवन करने वाला व्यक्ति अपनी पत्नी, माता-पिता व बच्चों का भली प्रकार से पालन पोषण नहीं कर पाता। उसके मेधावी बच्चे साधनों के अभाव में सुशिक्षित न होकर अपने ही कम प्रतिभावान् साथियों से पिछड़ जाते हैं, जिसका परिणाम बच्चे व परिवार-जन तो भोगते ही हैं, सारा देश व समाज भी भोगता है क्योंकि यही बच्चें भविष्य के देश के सैनिक, सचित्र डाक्टर-इंजीनियर-व्यापारी-अध्यापक-नेता-वैज्ञानिक आदि हो सकते थे।

 इसके लिए न केवल हमारा धार्मिक व सामाजिक वातावरण ही दोषी है, वहीं इसके लिए हमारी सरकारें भी उत्तरदायी हैं जो राजस्व के उलट-फेर में इसको प्रोत्साहित करती हैं। हमें यह भी लगता है कि सृष्टि के आदिकाल से महाभारतकाल तक के वैदिक राज्य में कभी भी इस प्रकार के नशीले पदार्थों का सेवन करने की अनुमति व व्यवस्था नहीं थी। महाभारत काल के बाद अव्यवस्था होने पर ही सभी बुराईयों का सूत्रपात हुआ जिसमें से एक नशा करने की प्रवृत्ति व सेवन भी हो सकता है परन्तु इसका विस्तार देश में विधर्मियों के आक्रमण व उनकी सत्ता स्थापित होने पर अधिक हुआ।

नशे की आदत मनुष्यों को अपराधी प्रकृति व प्रवृत्ति का बनाती है। नशा करने वाले व्यक्ति को नशीले पदार्थ खरीदने के लिए धन की आवश्यकता होती है। उसे अपनी अन्य सुख-सुविधाओं के लिए भी धन चाहिये होता है, उसके पास धन होता नहीं है, अतः उसे अपराधों में प्रवृत्त होने के अतिरिक्त दूसरा कोई मार्ग दिखाई नही देता। वह नशीले पदार्थ एवं अपनी अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए परिस्थिति-वश नाना प्रकार के अपराध करता है जिसमें चोरी, अपहरण, बलात्कार सहित नशे के प्रभाव से चरित्र हनन के कार्य, हत्यायें, भ्रष्टाचार व अन्य अनेक अपराध सम्मिलित हैं। इसका प्रभाव उस व्यक्ति के जीवन पर तो पड़ता ही है, इसके साथ उसका परिवार भी सारा जीवन उसके इस बुरे काम का फल भोगता है। यदि नशा करने वाले दोषियों में शामिल व्यक्तियों पर विचार करें तो शराब व मादक द्रव्यों का सेवन करने वाला व्यक्ति तो दोषी है ही, वह लोग जो इस नशे करने व कराने के कार्य में किसी न किसी रूप में सम्मिलित हैं, वह सभी दोषी होते हैं। हमारी व्यवस्था में शराबी व्यक्ति को ही दोषी माना जाता है उसके सहयोगी अन्य व्यक्तियों को नहीं। ईश्वर व प्राकृतिक न्याय के अनुसार किसी व्यक्ति को गलत कार्य में प्रवृत्त कराने वाला भी अपराधी ही होता है। 

हमारे देश में नशीले पदार्थों के सेवन का व्यवहार मुख्यतः विेदेशी विधर्मी हमलावरों व शासकों के द्वारा आया। वह इसका सेवन करते थे और उन्हीं के द्वारा इसे देश की जनता में प्रवृत्त किया गया। हमारा देश राम, कृष्ण, हनुमान भीष्म, युधिष्ठिर, विदुर, भीम, अर्जुन, चाणक्य, स्वामी शंकराचार्य व महर्षि दयानन्द आदि का देश रहा है जिसमें कोई भी व्यक्ति नशे के सेवन करने वाला नही होता था। महाभारतकाल से पूर्व के प्रायः सभी लोग ईश्वरोपासक होते थे और बाद के भी सभी धार्मिक लोग नशे को पाप जानकर इसका सेवन नहीं करते थे, आज भी नहीं करते। ईश्वरोपासना का वैदिक स्वरूप योग पद्धति है। योग पद्धति में पांच यम और पांच नियमों का पालन करना पड़ता है। नियमों में एक नियम शौच भी है। शौच का अर्थ न केवल शरीर की बाह्य शुद्धि है अपितु आन्तरिक शुद्धि के लिए शुद्ध आहार व भोजन, गोदुग्धादि तथा फलों के सेवन सहित पवित्र विचारों व चिन्तन-मनन से मन को पूर्णतः शुद्ध व पवित्र रखा जाता है जिसमें मांस, मदिरा, शराब, नशे वा मादक द्रव्यों का सेवन का निषेध समाहित है। अतः वैदिक काल में वैदिक राजा की प्रजा का कोई भी नागरिक मादक द्रव्यों का सेवन नशा कदापि नहीं करता था।

हमारे देश में शराब का सेवन करने वाले लोग अधिकांशतः वह हैं जो निम्न वर्गीय होते हैं अर्थात् जिन परिवारों की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होती। यह स्वभाविक है कि ऐसे परिवार अधिक शिक्षित नहीं होंगे क्योंकि आजकल शिक्षा का व्यवसायीकरण हो गया है जिसे अब मध्यम व उच्च वर्गों के परिवार ही प्राप्त कर सकते हैं। अतः हमारे निम्नवर्गीय भाई बचपन से ही कुसंगति से ग्रस्त होकर अज्ञानतावश शराब वा नशे का सेवन करने लगते हैं। इससे इनका परिवार रसातल में चला जाता है और सरकार का राजस्व और शराब माफियाओं को लाभ होता है। शराब माफिया यद्यपि देश में उत्पन्न हुए शिक्षित व उच्च आर्थिक स्थिति वाले व्यक्ति होते हैं परन्तु ज्ञान की कमी के कारण यह लोग जान ही नहीं पाते कि यह कार्य देश हित का नहीं अपितु देश का अहित करने वाला है। शराब का सेवन न करने देना वा छुड़ाने का अधिक दायित्व तो सरकार का है परन्तु दुर्भाग्य व अज्ञानता के कारण राजस्व की वृद्धि के लिए सरकारें शराब की बिक्री कराती हैं। शराब से प्राप्त होने वाला राजस्व बहुत निकृष्ट श्रेणी का होता है। 

इससे देश का भला होने की सम्भावना नहीं की जा सकती। इसका कारण है कि इसमें करोड़ों गरीब देशवासियों के परिवारों, माताओं, शराबियों की पत्नियों व बच्चों की आहें जुड़ी होती हैं। हम कल्पना भी नहीं कर सकते कि एक वैदिक विचारों का व्यक्ति यदि राजसत्ता पर आसीन हो तो वह राजस्व के लिए शराब जैसे स्वास्थ्य व चरित्र की हानि करने वाले मादक पदार्थों की बिक्री की अनुमति दे सकता है। यह सब विदेशी शिक्षा-दीक्षा के संस्कार व उसके प्रभाव हैं जो मनुष्य की बुद्धि व आत्मा को विवेक, सत्य व यथार्थ स्थिति से दूर कर प्रलोभनयुक्त हानिकारिक चिन्तन में प्रवृत्त करती है।

हम आर्यसमाज पर दृष्टि डालते हैं तो यह विश्व का एकमात्र ऐसा धार्मिक व सामाजिक संगठन है जिसके लगभग 95 प्रतिशत से अधिक लोग शराब व किसी भी प्रकार के नशे का सेवन नहीं करते। इसका कारण वैदिक धर्म के सिद्धान्त व ऋषि दयानन्द के धार्मिक, सामाजिक, व्यक्तित्व विकास संबंधी विचार व वेदों का कर्म-फल सिद्धान्त है। नशाबन्दी सिद्धान्ततः अनुचित व देश व समाज के लिए हानिकारक व्यवस्था है जो कि तर्क व प्रमाणों के आधार पर सिद्ध है। शायद् इसी कारण सरकारों द्वारा शराब की बिक्री की छूट देने पर भी सरकार द्वारा ही नशे के विरुद्ध प्रचार कराया जाता है। सरकार द्वारा शराब के सेवन के विरोध में नियम बनाये जाते है, वाहन चलाते हुए नशा करना निषिद्ध है जिससे दुर्घटनायें न हो और नशे से होने वाले कुप्रभावों की चेतावनियां भी दी जाती है। 

अपराधों में अधिकांश व सभी अपराधी नशे का सेवन करने वाले होते हैं। यहां देश के पूर्व प्रधानमंत्री श्री मोरारजी देसाई का उल्लेख भी प्रासंगिक है जिन्होंने बिना किसी की मांग व आन्दोलन के स्वात्मप्रेरणा से अपनी जनतापार्टी की सरकार के द्वारा सम्पूर्ण देश में नशाबन्दी लागू की थी। नशे के कारोबार से जुड़े और व्यवस्था में लगे इस कार्य से अनुचित लाभ प्राप्त करने वाले सरकार के लोगों ने शराबबन्दी को सफल नहीं होने दिया था। यदि उसमें सभी का सहयोग मिलता तो देश को बहुत लाभ होता। आज यह उदाहरण एक इतिहास बन कर रह गया है। 

हम समझते हैं कि जिस प्रकार की शिक्षा व मानसिकता वाले नेताओं के हार्थों में सत्ता रहती आ रही है वह लोग शायद कभी शराबबन्दी स्वीकार नहीं करेंगे क्योंकि आजकल वोट प्राप्ति में भी शराब की अहम् भूमिका रहती है। अतः नशाबन्दी वा नशामुक्ति का एकमात्र उपाय जन-जन में नशे के विरोध में प्रचार करना है। वर्तमान के हिन्दुओं के सभी धर्म-गुरुओं वा कथावाचकों को अपनी कथा व अन्य कार्यक्रमों में शराब से होने वाली हानियों पर भी बोलना चाहिये और यह स्पष्ट करना चाहिये कि शराब का सेवन करने वाला व्यक्ति धार्मिक नहीं हो सकता और वह इस कुकृत्य के लिए ईश्वर की न्यायव्यवस्व्था से दण्डित होगा जिससे उसका यह जन्म तो प्रत्यक्ष बिगड़ता ही है उनका परजन्म भी निश्चित रूप से बिगड़ेगा। सौभाग्य से स्वामी रामदेव भी शराब का स्पष्ट शब्दों में अपने प्रसारणों व उद्बोधनों में विरोध करते हैं। 

इसका देश की जनता पर अनुकूल प्रभाव भी पड़ रहा है। वर्तमान में शराब व मादक द्रव्यों के विरुद्ध सबसे अधिक प्रभावशाली कार्य कोई कर रहा है तो वह केवल स्वामी रामदेव ही दृष्टिगोचर हो रहे हैं। सभी माता-पिताओं को भी चाहिये कि वह अपनी सन्तानों को कुसंगति से दूर रखें और बचपन से ही शराब के प्रति उनके मन में घृणा उत्पन्न कर दें और इसके साथ उन्हें सच्चरित्रता के उदाहरण भी सुनाये जिससे भावी जीवन में वह शराब व नशे के सेवन से बच सकें। ऐसा होने पर ही देश, जाति व समाज का कुछ सुधार हो सकता है।

शराब व नशे पर चिन्तन करते हुए हम एक ऐसे समाज की कल्पना करते हैं जहां कोई नशा न करता हो। इसके लिए जागृति की आवश्यकता है। जहां नशा न करने वाले विवेकशील व्यक्ति होंगे वहां मांसाहार व अन्य अभक्ष्य पदार्थों का सेवन भी नहीं होगा। ऐसा समाज सभी बुराईयों व अपराधों से मुक्त होगा, इसका अनुमान होता है। ऐसे समाज में सभी स्वस्थ होंगे, रोगियों की संख्या बहुत कम होगी, विवेकशील लोगों का धर्म भी अन्य कोई नहीं अपितु वैदिक धर्म ही होगा। सभी गोपालन करेंगे व गोदुग्ध व इससे बने घृत, दही, मक्खन आदि का सेवन कर सुदृढ़ व बलवान निरोगी शरीर वाले होंगे। ऐसे लोगों की बुद्धि भी तीक्ष्ण व ज्ञान को ग्रहण करने में प्रबल होगी। ऐसा समाज ही विश्व का ज्ञान, विज्ञान व सभी प्रकार के भौतिक ऐश्वयों से सम्पन्न आदर्श समाज हो सकता है। 
दुःख है कि ऐसा समाज संसार में कहीं नहीं है। यदि कहीं बन जाये, तो हमारा अनुमान है कि सारा संसार उसका अनुकरण करेगा। वर्तमान आधुनिक समय में भारत व सभी देशों में ऐसे समाजों की आवश्यकता है। 

ऐसे समाज को ही हम श्रेष्ठ मनुष्यों का समाज अथवा आर्य-राष्ट्र कह सकेंगे। सारे देश में शराब के दुष्प्रभावों का प्रभावशाली प्रचार हो, सभी लोग शराब से घृणा करें, एक भी व्यक्ति शराब का सेवन न करे, सरकारें इसके लिए मनसा-वाचा-कर्मणा कार्य करें, राजनीति बिलकुल न हो, ऐसा होने पर ही आदर्श व देश का निर्माण होगा। आज ऋषि दयानन्द के समान वेद को ईश्वरीय ज्ञान मान कर शराब व नशा मुक्त भारत का निर्माण करने वाले एक नहीं अपितु सहस्रों शराब विरोधी युवा समर्पित देशभक्तों की आवश्यकता है जिनका मिशन ही शराब व नशीले पदार्थों को देश से समाप्त करना होना चाहिये। हमें यह भी लगता है कि यदि विश्व वैदिक धर्मी आर्य विचारों का बन जाये तो सारे विश्व में शराब, नशा, मादक द्रव्यों का सेवन और सभी बुराईयां समाप्त हो सकती हैं। इसी के साथ लेख को विराम देते हैं।
**ओ३म् सर्वज्ञ*
*वेद, आर्य*

Saturday, May 30, 2020

सत्यार्थप्रकाश।

“सत्यार्थप्रकाश अविद्या दूर करने तथा विद्या वृद्धि करने वाला ग्रन्थ है”
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सत्यार्थप्रकाश ऋषि दयानन्द द्वारा सन् 1874 में लिखा गया ग्रन्थ है। ऋषि दयानन्द ने सन् 1883 में इसको संशोधित किया जिसका प्रकाशन उनकी मृत्यु के पश्चात सन् 1884 में हुआ था। यही ग्रन्थ आजकल ऋषि की प्रतिनिधि संस्था आर्यसमाज द्वारा प्रचारित होता है। सत्यार्थप्रकाश का उद्देश्य इसके नाम में ही निहित है। असत्य को दूर कर सत्य के अर्थ का प्रकाश करने के लिये इसका निर्माण किया गया था। अपने इस उद्देश्य व लक्ष्य में यह ग्रन्थ काफी सीमा तक सफल रहा है। सभी लोगों की सत्य की खोज करने तथा सत्य को ही स्वीकार कर उसका आचरण करने में प्रवृत्ति नहीं होती। यदि होती, तो संसार के प्रत्येक मनुष्य ने अविद्यायुक्त ग्रन्थों का त्याग कर सत्यार्थप्रकाश ग्रन्थ का अध्ययन किया होता। इस ग्रन्थ से सत्य को प्राप्त होकर सभी मनुष्यों ने जीवन निर्माण में उपयोगी व आवश्यक इसकी शिक्षाओं को ग्रहण कर लिया होता। 

संसार में जन्म लेने वाले मनुष्यों की प्रकृति व प्रवृत्तियां भिन्न भिन्न होती हैं। सत्य ज्ञान की प्राप्ति का सभी मनुष्यों को न तो बोध होता है और न ही देश देशान्तर में प्रचलित मत-मतान्तरों की धार्मिक व सामाजिक मान्यताओं में सत्य ज्ञान की प्राप्ति व आचरण की प्रेरणा ही की जाती है। सभी मनुष्य जिस मत-मतान्तर को मानने वाले परिवार में जन्म लेते हैं, उसी की मान्यताओं को बिना विचार किये स्वीकार कर लेते हैं। इसी में उनका सारा जीवन बीत जाता है। वह विचार नहीं करते कि क्या उनके मत के सभी विचार सत्य एवं पूर्ण हैं? सत्य का अनुसंधान किये बिना उनका काम चल जाता है। इस कारण वह सत्य ज्ञान की प्राप्ति के लिये विशेष प्रयत्न नहीं करते और सद्धर्म के पालन से होने वाले धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष से वंचित रह जाते हैं।

ऋषि जीवन में यह देखने को मिलता है कि वह कुछ विशेष संस्कार और प्रकृति लेकर उत्पन्न हुए थे। उनके पिता शिवभक्त थे। शिवरात्रि के अवसर पर उनके पिता ने उनको कुल परम्परा के अनुसार शिवरात्रि का व्रत रखने को कहा था। वह 14हवें वर्ष की आयु में चल रहे थे। पिता ने उनको शिव पुराण पर आधारित कथा सुनाई थी। बालक की उस कथा में रुचि उत्पन्न हुई और उन्होंने बताये गये सभी विधि विधानों का पालन करते हुए व्रत को किया। शिवरात्रि की रात्रि को जब वह अपने पिता के साथ गांव के निकट के मन्दिर में सामूहिक जागरण के लिये गये तो वहां देर रात्रि में भक्तों के सो जाने पर भी कथा की शिक्षा के अनुसार जागते रहे थे। मन्दिर में विद्यमान शिव की पिण्डी पर उनकी टकटकी लगी हुई थी। वह उस शिव लिंग की मूर्ति को ही सचमुच का शिव जान कर व्यवहार कर रहे थे। उन्होंने देखा की मन्दिर के अन्दर बिलों से कुछ चूहे निकले और उन्होंने शिवमूर्ति पर विचरण करना शुरु कर दिया।

 इससे उनके बाल मन में शंका हुई। चूहे बिना किसी बाधा स्वछन्दता से मूर्ति के ऊपर नीचे विचरण व क्रीड़ा कर रहे थे। इससे बालक दयानन्द के हृदय में उस शिव की मूर्ति के चेतन व सर्वशक्तिमान होने में शंका उत्पन्न हो गई थी। एक छोटा बच्चा भी शरीर पर मक्खी बैठने पर उसे हाथ से हटा कर भगा देता है परन्तु शिव चूहों को हटाने की कोई चेष्टा नहीं कर रहे थे। दयानन्द जी ने अपने सोते हुए पिता को नींद से जगाकर शिव की शक्तियों का उल्लेख कर अनेक प्रसन्न किये और उस मूूर्ति को शिव मानने से मना कर दिया। इस घटना की प्रेरणा से उन्होंने अपने जीवन में किसी भी बात व परम्परा को बिना सत्यासत्य का विचार किये और परीक्षा किये मानना छोड़ दिया था। 

इस प्रकार के संस्कारों व स्वभाव ने ही उन्हें सच्चे शिव वा ईश्वर की खोज सहित मृत्यु आदि के सत्यस्वरूप को जानने व उस पर विजय प्राप्त करने की प्रेरणा की थी। इस कार्य में वह सफल रहे और इससे प्राप्त ज्ञान व अनुभव को उन्होंने देश व संसार के लोगों का उपकार करने के लिये जन जन में प्रचार किया। उन्होंने वेदों का अध्ययन भी किया था और अपने ज्ञान व अनुभवों को सर्वथा वेदानुकूल पाया था। इस कारण उन्होंने ईश्वर प्रदत्त वेदज्ञान का प्रचार किया और इसी ज्ञान से युक्त सत्यार्थप्रकाश ग्रन्थ की रचना की थी।

सत्यार्थप्रकाश ग्रन्थ में मनुष्य के मन में उठने वाली सभी शंकाओं का तर्क व युक्तियों सहित वेद ज्ञान के आधार पर समाधान किया गया है। सत्यार्थप्रकाश की मान्यतायें सत्य हैं, इसका अनुभव पाठक की आत्मा सत्यार्थप्रकाश को पढ़कर करती है। इस ग्रन्थ का अध्ययन करते समय इस ग्रन्थ का पाठक अपने सभी पूर्वाग्रहों को अपने मन से निकाल देना चाहिये। पूर्वाग्रह युक्त मनुष्य किसी उपदेशक व उसकी पुस्तक की सत्य बातों से भी पूर्णतया लाभान्वित नहीं होता। सत्य ज्ञान के प्राप्त करने के लिये मन की शुद्धता सहित पूर्वाग्रहों से मुक्त मन की भी आवश्यकता होती है। इसके साथ ही ईश्वर की कृपा की भी आवश्यकता होती है। जब यह सब बातें एक साथ होती हैं तो मनुष्य का कल्याण होता है। सत्यार्थ इस सृष्टि के सत्य रहस्यों से परिचित कराता है। 

ईश्वर व जीवात्मा विषयक सत्य व यथार्थ ज्ञान इसके पाठक को प्राप्त होता है। आत्मा की सभी भ्रान्तियां दूर हो जाती है। यह केवल हमारा अथवा किन्हीं एक दो व्यक्तियों का अनुभव नहीं है अपितु बड़े बड़े विद्वान स्वामी श्रद्धानन्द, पं. लेखराम, पं. गुरुदत्त विद्यार्थी, महात्मा हंसराज, स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती, पं. युधिष्ठिर मीमांसक, स्वामी विद्यानन्द सरस्वती, आचार्य डा. रामनाथ वेदालंकार सहित लाखों व करोड़ों लोगों का ऐसा ही अनुभव है। यह जानना भी महत्वपूर्ण है कि इस संसार की सबसे महत्वपूर्ण व मूल्यवान वस्तु क्या है? इसका उत्तर है कि ‘सत्य ज्ञान’ ही संसार की सबसे मूल्यवान वस्तु है। यह सबसे मूल्यावान व उपयोगी वस्तु हमें सत्यार्थप्रकाश के माध्यम से लोकभाषा हिन्दी में प्राप्त होती है। इस ग्रन्थ का जो मनुष्य जितना अध्ययन करता है उसको उतना ही अधिक लाभ होता है।

देश की आजादी की सबसे प्रथम प्रेरणा भी इसी ग्रन्थ से देशवासियों से मिली थी। उस समय न तो कांग्रेस जैसे किसी संगठन की स्थापना हुई थी और न ही किसी ने सोचा था कि देश को आजाद कराना है वा देश आजाद हो सकता है। सत्यार्थप्रकाश से ईश्वर व आत्मा का सत्य स्वरूप प्राप्त होता है। इस ज्ञान प्राप्ति से मनुष्य ईश्वर की उपासना करके ईश्वर साक्षात्कार कर सकता है और जीवन मरण के बन्धनों को काटकर मुक्त होकर दुःखों से सर्वथा रहित होकर परमसुख की मोक्षावस्था को प्राप्त हो सकता है। इस मोक्षावस्था को प्राप्त होने पर अविनाशी व नित्य आत्मा के जन्म व मरण अथवा पुनर्जन्म का चक्र भी रुक जाता है। ऐसी लाभकारी विद्या प्रदान करने वाला ऋषि दयानन्द का ग्रन्थ सत्यार्थप्रकाश है। जिसने इस ग्रन्थ का अध्ययन नहीं किया वह अभागा ही कहा जा सकता है। जिन मनुष्यों ने इस ग्रन्थ को पढ़ा परन्तु इसकी शिक्षाओं में आचरण में लाकर लाभ नहीं उठाया, वह भी अभागे व्यक्ति ही सिद्ध होते हंै।

सत्यार्थप्रकाश केवल ईश्वर व आत्मा विषयक ज्ञान ही नहीं कराता अपितु सम्पूर्ण जीवन दर्शन प्रदान करता है। सत्यार्थप्रकाश में वेदों का पोषण हुआ है। वेदों से ज्ञान सामग्री लेकर ही इस ग्रन्थ का सृजन किया गया है। वेद सब सत्य विद्याओं का ग्रन्थ है। सत्यार्थप्रकाश की प्रमुख विशेषता भी यही है कि यह अज्ञान व अन्धविश्वासों को दूर करता तथा विद्या का प्रकाश करता है। सत्यार्थप्रकाश को पढ़कर इसके प्रभाव में जीवन जीने से मनुष्य की चहुंमुखी उन्नति होती है। ऋषि दयानन्द का पूरा जीवन सत्यार्थप्रकाश की शिक्षाओं से युक्त था। हमारे प्राचीन काल के सभी ऋषि मुनि, मर्यादा पुरुषोत्तम राम, योगेश्वर कृष्ण तथा आचार्य चाणक्य आदि भी वेदों की मान्यताओं को ही मानते थे और उसी से वह महानता को प्राप्त हुए थे। सत्यार्थप्रकाश का पाठक एवं इसकी शिक्षाओं को आचरण में लाने वाला मनुष्य भी महान व उत्तम पुरुष होता है बशर्ते वह उसके अनुसार आचरण करे। 

सत्यार्थप्रकाश की प्रेरणा से ही स्वामी श्रद्धानन्द मुंशीराम से स्वामी श्रद्धानन्द बने। उन्होंने विश्व में चर्चित गुरुकुल कांगड़ी खोला था, देश की आजादी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, जामा मस्जिद के मिम्बर से वेदमन्त्र बोल कर उपदेश किया था तथा बड़े पैमाने पर दलितोद्धार और शुद्धि का कार्य किया था। अमृतसर के ‘गुरु का बाग मोर्चे’ व सत्याग्रह में जाकर अकाल तख्त से भी सिखों को सम्बोधित किया था तथा इसके लिए उन्हें एक वर्ष चार महीने की कारावास की सजा सुनाई गई थी। उनके देश हित के कामों की लम्बी सूची है। यह सब सत्यार्थप्रकाश और ऋषि दयानन्द के जीवन की प्रेरणा के कारण सम्भव हुआ था। सभी महापुरुषों ने सत्यार्थप्रकाश से लाभ उठाया है। 

यदि सत्यार्थप्रकाश को देशवासियों वा हिन्दुओं ने ही अपना लिया होता तो देश की भौगोलिक स्थिति एवं राजनीतिक व्यवस्था कुछ भिन्न और अधिक सुखदायक होती जहां सभी गो, बकरी आदि पशुओं को भी पूर्ण अभय प्राप्त होता। देश में शराब की नदियां न बहती। देश में देशविरोधी वर्ग उत्पन्न न होता। सबके लिये समान नियम होते और सब सत्य के मार्ग पर चलते व चलाये जाते। अनेक दृष्टि से विचार करने पर सत्यार्थप्रकाश संसार का सर्वोत्तम ग्रन्थ सिद्ध होता है। आश्चर्य होता है कि इतना हितकारी व सत्य से युक्त सिद्धान्तों से युक्त होने पर भी लोग ने इस ग्रन्थ का क्यों त्याग कर रखा है?

सत्यार्थप्रकाश से विद्या का प्रकाश होकर मनुष्य की सभी प्रकार की अज्ञानता व बुराईयां भी दूर हो सकती हैं। मनुष्य असाधु से साधु बन सकता है। सत्यार्थप्रकाश को अपनाने से देश व समाज सभी को लाभ होता है। सत्यार्थप्रकाश का पाठक देश विरोधी कृत्यों व षडयन्त्रों को भली प्रकार से समझता है। सत्यार्थप्रकाश पढ़कर मनुष्य विधर्मियों द्वारा छल, बल, लोभ आदि द्वारा किये जाने वाले धर्मान्तरण से भी बच जाता है। 

हम यह समझते हैं कि देश को धर्मान्तरित होने से यदि किसी ने बचाया है तो वह सत्यार्थप्रकाश की शिक्षाओं व इसके अनुयायियों के वेद प्रचार ने ही बचाया है। सत्यार्थप्रकाश ने वेद विरोधियों के सभी षडयन्त्रों को विफल कर दिया है। मनुष्य जीवन हमें सत्य ज्ञान प्राप्त करने व उसके अनुरूप व्यवहार करने के लिये मिला है। सत्यार्थप्रकाश ग्रन्थ इस कार्य में सभी मनुष्यों का सहायक हो सकता है। सभी को इस ग्रन्थ को अपनाना व इससे लाभ उठाना चाहिये। ओ३म् शम्।

-मनमोहन कुमार आर्य

श्रीकृष्ण का वास्तविक स्वरूप।

कृष्ण जी को अपमानित करने वाले भजन 
1-छलिया का वेश बनाया, श्याम चूड़ी बेचने आया। 
2- पत्थर की राधा प्यारी, पत्थर के श्याम बिहारी
पत्थर से पत्थर टकराकर पैदा होती चिंगारी।
3- एक दिन वो भोले भण्डारी बन के बृज नारी गोकुल मे आ गए है। 
इसी तरह के अनेक भजन हैं जो हमारे आदर्शों को अपमानित करते हैं। इस लेख के माध्यम से हम व्यासपीठ के मठाधीशों द्वारा श्री कृष्णजी के विषय में फैलाई जा रही भ्रांतियों का निराकरण करेंगे। 

प्रसिद्ध समाज सुधारक एवं वेदों के प्रकांड पंडित स्वामी दयानंद जी ने अपने अमर ग्रन्थ सत्यार्थ प्रकाश में श्री कृष्ण जी महाराज के बारे में लिखते हैं कि पूरे महाभारत में श्री कृष्ण के चरित्र में कोई दोष नहीं मिलता एवं उन्हें आप्त (श्रेष्ठ) पुरुष कहा है। स्वामी दयानंद श्री कृष्ण जी को महान् विद्वान् सदाचारी, कुशल राजनीतीज्ञ एवं सर्वथा निष्कलंक मानते हैं, 
महाभारत मे श्रीकृष्ण --
1-धर्म और न्याय के पक्षधर:-पाण्डव धर्म परायण थे इसलिए उन्होंने उनका साथ दिया और उनकी जीत करवाई।कौरव सभा में भी श्रीकृष्ण ने यही बात कही-

यत्र धर्मो ह्यधर्मेण सत्यं यत्रानृतेन च।
हन्यते प्रेक्षमाणानां हतास्तत्र सभासदः ।।-(उद्योग० ९५/४८)

जहाँ सभासदों के देखते-देखते अधर्म के द्वारा धर्म का और असत्य द्वारा सत्य का हनन होता है,वहां वे सभासद नष्ट हुए जाने जाते हैं।

2- दृढ़प्रतिज्ञ:-
श्रीकृष्ण दृढ़प्रतिज्ञ थे।उन्होंने दुर्योधन की सभा में जाने से पहले द्रौपदी के सम्मुख जो प्रतिज्ञा की थी उसे निभाया।जब द्रौपदी ने रोकर और बायें हाथ में अपने केशों को लेकर अपने अपमान का बदला लेने की बात कही तब श्रीकृष्ण बोले-

चलेद्धि हिमवाञ्छैलो मेदिनी शतधा भवेत् ।
द्यौः पतेच्च सनक्षत्रा न मे मोघं वचो भवेत् ।।-(उद्योगपर्व ८२/४८)

अर्थ:-चाहे हिमालय पर्वत अपने स्थान से टल जाए,पृथिवी के सैकड़ों टुकड़े हो जाएँ और नक्षत्रोंसहित आकाश टूट पड़े,परन्तु मेरी बात असत्य नहीं हो सकती।

इससे पूर्व उन्होंने यह प्रतिज्ञा की थी-

धार्तराष्ट्राः कालपक्वा न चेच्छृण्वन्ति मे वचः ।
शेष्यन्ते निहिता भूमौ श्वश्रृगालादनीकृताः ।।-(उद्योग० ८२/४७)

अर्थ:-यदि काल के गाल में जाने वाले धृतराष्ट्र-पुत्र मेरी बात नहीं सुनेंगे तो वए सब मारे जाकर पृथिवी पर सदा की नींद सो जाएँगे और कुत्तों तथा स्यारों का भोजन बनेंगे।

3-सहनशीलता:-
उनमें सहनशीलता का गुण भी था।वे राजसूय यज्ञ में शिशुपाल से कहने लगे कि मैं तुम्हारी सौ गालियाँ सहन कर लूँगा परन्तु इससे आगे जब तुम बढ़ोगे तो तुम्हारा सिर धड़ से पृथक कर दूंगा।उन्होंने ऐसा ही किया।

एवमुक्त्वा यदुश्रेष्ठश्चेदिराजस्य तत्क्षणात् ।
व्यापहरच्छिरः क्रुद्धश्चक्रेणामित्रकर्षणः ।।-(सभापर्व ४५/२५)

अर्थ:-ऐसा कहकर कुपित हुए शत्रुनाशक यदुकुलभूषण श्रीकृष्ण ने चक्र से उसी क्षण चेदिराज शिशुपाल का सिर उड़ा दिया।

4-निर्लोभता:-
उन्होंने कंस को मारा,परन्तु उसका राज्य अपने हाथ में नहीं लिया।अपने नाना उग्रसेन को राजा बनाय।

उग्रसेनः कृतो राजा भोजराज्यस्य वर्द्धनः ।-(उद्योग १२८/३९)

जब जरासन्ध को मार दिया तब श्रीकृष्ण ने उसके बेटे सहदेव का राज्याभिषेक किया।

5-ईश्वरोपासक:-
श्रीकृष्ण ईश्वरोपासक थे।ले नित्य-प्रति सन्ध्या,हवन और गायत्री जाप करते थे-

अवतीर्य रथात् तूर्णं कृत्वा शौचं यथाविधि ।
रथमोचनमादिश्य सन्ध्यामुपविवेश ह ।।-(महा० उद्योग० ८४/२१)

अर्थ:-जब सूर्यास्त होने लगा तब श्रीकृष्ण ने शीघ्र ही रथ से उतरकर रथ खोलने का आदेश दिया और पवित्र होकर सन्ध्योपासना में लग गये।

6- महाभारतकाल के सर्वमान्य महापुरुष:-

श्रीकृष्ण महाभारत काल के सर्वमान्य महापुरुष थे।राजसूययज्ञ के अवसर पर भीष्म पितामह ने प्रधान अर्घ्य देते हुए उनके विषय में यह कहा था:-

वेदवेदांगविज्ञानं बलं चाभ्यधिकं तथा ।
नृणांलोकेहि कोsन्योsस्ति विशिष्टः केशवादृते ।।
दानं दाक्ष्यं श्रुतं शौर्यं ह्रीः कीर्तिर्बुद्धिरुत्तमा ।
सन्नतिः श्रीर्धृतिस्तुष्टिः पुष्टिश्च नियताच्युते ।।-(महा० सभापर्व ३८/१९/२०)

अर्थ:-वेदवेदांग के ज्ञाता तो हैं ही,बल में भी सबसे अधिक हैं।श्रीकृष्ण के सिवा इस युग के संसार में मनुष्यों में दूसरा कौन है? दान,दक्षता,शास्त्र-ज्ञान,शौर्य,आत्मलज्जा,कीर्ति,उत्तम बुद्धि,विनय,श्री,धृति,तुष्टि,और पुष्टि -ये सभी गुण श्रीकृष्ण में विद्यमान हैं।

7-जुए के विरोधी:-
वे जुए के घोर विरोधी थे।जुए को एक बहुत ही बुरा व्यसन मानते थे।जब वे काम्यक वन में युधिष्ठिर से मिले तो उन्होनें युधिष्ठिर को कहा-

आगच्छेयमहं द्यूतमनाहूतोsपि कौरवैः ।
वारयेयमहं द्यूतं दोषान् प्रदर्शयन् ।।-(वनपर्व १३/१-२)

अर्थ:-हे राजन् ! यदि मैं पहले द्वारका में या उसके निकट होता तो आप इस भारी संकट में न पड़ते।मैं कौरवों के बिना बुलाये ही उस द्यूत-सभा में जाता और जुए के अनेक दोष दिखाकर उसे रोकने की पूरी चेष्टा करता।

8-एक पत्नि व्रत:-
महाभारत युद्ध प्रारम्भ होने के पूर्व अश्वत्थामा श्रीकृष्ण से सुदर्शनचक्र प्राप्त करने की इच्छा से उनके पास गये,तब श्रीकृष्ण ने कहा -

ब्रह्मचर्यं महद् घोरं तीर्त्त्वा द्वादशवार्षिकम् ।
हिमवत्पार्श्वमास्थाय यो मया तपसार्जितः ।।
समानव्रतचारिण्यां रुक्मिण्यां योsन्वजायत ।
सनत्कुमारस्तेजस्वी प्रद्युम्नो नाम में सुतः ।।-(सौप्तिकपर्व १२/३०,३१)

अर्थ:-मैंने १२ वर्ष तक रुक्मिणी के साथ हिमालय में ठहरकर महान् घोर ब्रह्मचर्य का पालन करके सनत्कुमार के समान तेजस्वी प्रद्युम्न नाम के पुत्र को प्राप्त किया था।विवाह के पश्चात् १२ वर्ष तक घोर ब्रह्मचर्य को धारण करना उनके संयम का महान् उदाहरण है।

ऐसे संयमी और जितेन्द्रिय पुरुष को पुराणकारों ने कितना बीभत्स और घृणास्पद बना दिया है।

फिर श्री कृष्ण जी के विषय में चोर, गोपिओं का जार (रमण करने वाला), कुब्जा से सम्भोग करने वाला, रणछोड़ आदि प्रसिद्ध करना उनका अपमान नहीं तो क्या है? श्री कृष्ण जी के चरित्र के विषय में ऐसे मिथ्या आरोप का आधार क्या है? इन गंदे आरोपों का आधार है पुराण। आइये हम सप्रमाण अपने पक्ष को सिद्ध करते हैं।

पुराण में गोपियों से कृष्ण का रमण करने का मिथ्या वर्णन

विष्णु पुराण अंश 5 अध्याय 13 श्लोक 59-60  में लिखा है-
वे गोपियाँ अपने पति, पिता और भाइयों के रोकने पर भी नहीं रूकती थी रोज रात्रि को वे रति “विषय भोग” की इच्छा रखने वाली कृष्ण के साथ रमण “भोग” किया करती थी।  कृष्ण भी अपनी किशोर अवस्था का मान करते हुए रात्रि के समय उनके साथ रमण किया करते थे।

कृष्ण उनके साथ किस प्रकार रमण करते थे पुराणों के रचियता ने श्री कृष्ण को कलंकित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।
भागवत पुराण स्कन्द 10 अध्याय 33 शलोक 17 में लिखा है-

कृष्ण कभी उनका शरीर अपने हाथों से स्पर्श करते थे, कभी प्रेम भरी तिरछी चितवन से उनकी और देखते थे, कभी मस्त हो उनसे खुलकर हास विलास ‘मजाक’ करते थे। जिस प्रकार बालक तन्मय होकर अपनी परछाई से खेलता है वैसे ही मस्त होकर कृष्ण ने उन ब्रज सुंदरियों के साथ रमण, काम क्रीड़ा ‘विषय भोग’ किया।

भागवत पुराण स्कन्द 10 अध्याय 29 शलोक 45-46 में लिखा है-

कृष्णा ने जमुना के कपूर के सामान चमकीले बालू के तट पर गोपिओं के साथ प्रवेश किया। वह स्थान जलतरंगों से शीतल व कुमुदिनी की सुगंध से सुवासित था। वहां कृष्ण ने गोपियों के साथ रमण बाहें फैलाना, आलिंगन करना, गोपियों के हाथ दबाना , उनकी छोटी पकरना, जांघो पर हाथ फेरना, लहंगे का नारा खींचना, स्तन पकड़ना, मजाक करना नाखूनों से उनके अंगों को नोच नोच कर जख्मी करना, विनोदपूर्ण चितवन से देखना और मुस्कराना तथा इन क्रियाओं के द्वारा नवयोवना गोपिओं को खूब जागृत करके उनके साथ कृष्णा ने रात में रमण (विषय भोग) किया।

ऐसे अभद्र विचार कृष्णा जी महाराज को कलंकित करने के लिए भागवत के रचियता नें स्कन्द 10 के अध्याय 29,33 में वर्णित किये हैं जिसका सामाजिक मर्यादा का पालन करते हुए मैं वर्णन नहीं कर रहा हूँ।

राधा और कृष्ण का पुराणों में वर्णन

राधा का नाम कृष्ण के साथ में लिया जाता है।  महाभारत में राधा का वर्णन तक नहीं मिलता।  राधा का वर्णन ब्रह्मवैवर्त पुराण में अत्यंत अशोभनिय वृतांत का वर्णन करते हुए मिलता है।

ब्रह्मवैवर्त पुराण कृष्ण जन्म खंड अध्याय 3 श्लोक 59-62 में लिखा है कि गोलोक में कृष्ण की पत्नी राधा ने कृष्ण को पराई औरत के साथ पकड़ लिया तो शाप देकर कहाँ – हे कृष्ण ब्रज के प्यारे , तू मेरे सामने से चला जा तू मुझे क्यों दुःख देता है – हे चंचल , हे अति लम्पट कामचोर मैंने तुझे जान लिया है। तू मेरे घर से चला जा।  तू मनुष्यों की भांति मैथुन करने में लम्पट है, तुझे मनुष्यों की योनी मिले, तू गौलोक से भारत में चला जा।  हे सुशीले, हे शाशिकले, हे पद्मावती, हे माधवों! यह कृष्ण धूर्त है इसे निकल कर बहार करो, इसका यहाँ कोई काम नहीं।

ब्रह्मवैवर्त पुराण कृष्ण जन्म खंड अध्याय 15 में राधा का कृष्ण से रमण का अत्यंत अश्लील वर्णन लिखा है जिसका सामाजिक मर्यादा का पालन करते हुए मैं यहाँ विस्तार से वर्णन नहीं कर रहा हूँ।

ब्रह्मवैवर्त पुराण कृष्ण जन्म खंड अध्याय 72 में कुब्जा का कृष्ण के साथ सम्भोग भी अत्यंत अश्लील रूप में वर्णित है।

राधा का कृष्ण के साथ सम्बन्ध भी भ्रामक है।  राधा कृष्ण के बामांग से पैदा होने के कारण कृष्ण की पुत्री थी अथवा रायण से विवाह होने से कृष्ण की पुत्रवधु थी चूँकि गोलोक में रायण कृष्ण के अंश से पैदा हुआ था इसलिए कृष्ण का पुत्र हुआ जबकि पृथ्वी पर रायण कृष्ण की माता यसोधा का भाई था इसलिए कृष्ण का मामा हुआ जिससे राधा कृष्ण की मामी हुई।

कृष्ण की गोपिओं कौन थी?

पद्मपुराण उत्तर खंड अध्याय 245 कलकत्ता से प्रकाशित में लिखा है कि रामचंद्र जी दंडक-अरण्य वन में जब पहुचें तो उनके सुंदर स्वरुप को देखकर वहां के निवासी सारे ऋषि मुनि उनसे भोग करने की इच्छा करने लगे। उन सारे ऋषिओं ने द्वापर के अंत में गोपियों के रूप में जन्म लिया और रामचंद्र जी कृष्ण बने तब उन गोपियों के साथ कृष्ण ने भोग किया।  इससे उन गोपियों की मोक्ष हो गई। वरना अन्य प्रकार से उनकी संसार रुपी भवसागर से मुक्ति कभी न होती।

क्या गोपियों की उत्पत्ति का उपरोक्त दृष्टान्त बुद्धि से स्वीकार किया जा सकता है?

श्री कृष्ण जी महाराज का वास्तविक रूप

अभी तक हम पुराणों में वर्णित गोपियों के दुलारे, राधा के पति, रासलीला रचाने वाले कृष्ण के विषय में पढ़ रहे थे जो निश्चित रूप से असत्य है।

अब हम योगिराज, नीतिनिपुण , महान कूटनीतिज्ञ श्री कृष्ण जी महाराज के विषय में उनके सत्य रूप को जानेंगे।

आनंदमठ एवं वन्दे मातरम के रचियता बंकिम चन्द्र चटर्जी जिन्होंने 36 वर्ष तक महाभारत पर अनुसन्धान कर श्री कृष्ण जी महाराज पर उत्तम ग्रन्थ लिखा ने कहाँ हैं कि महाभारत के अनुसार श्री कृष्ण जी की केवल एक ही पत्नी थी जो कि रुक्मणी थी।  उनकी 2 या 3 या 16000 पत्नियाँ होने का सवाल ही पैदा नहीं होता।  रुक्मणी से विवाह के पश्चात श्री कृष्ण रुक्मणी के साथ बदरिक आश्रम चले गए और 12 वर्ष तक तप एवं ब्रहमचर्य का पालन करने के पश्चात उनका एक पुत्र हुआ जिसका नाम प्रदुमन था. यह श्री कृष्ण के चरित्र के साथ अन्याय हैं की उनका नाम 16000 गोपियों के साथ जोड़ा जाता है।  महाभारत के श्री कृष्ण जैसा अलौकिक पुरुष , जिसे कोई पाप नहीं किया और जिस जैसा इस पूरी पृथ्वी पर कभी-कभी जन्म लेता है।  स्वामी दयानद जी सत्यार्थ प्रकाश में वहीँ कथन लिखते है जैसा बंकिम चन्द्र चटर्जी ने कहा है।  पांडवों द्वारा जब राजसूय यज्ञ किया गया तो श्री कृष्ण जी महाराज को यज्ञ का सर्वप्रथम अर्घ प्रदान करने के लिए सबसे ज्यादा उपर्युक्त समझा गया जबकि वहां पर अनेक ऋषि मुनि , साधू महात्मा आदि उपस्थित थे। वहीँ श्री कृष्ण जी महाराज की श्रेष्ठता समझे की उन्होंने सभी आगंतुक अतिथियो के धुल भरे पैर धोने का कार्य भार लिया।  श्री कृष्ण जी महाराज को सबसे बड़ा कूटनितिज्ञ भी इसीलिए कहा जाता है क्यूंकि उन्होंने बिना हथियार उठाये न केवल दुष्ट कौरव सेना का नाश कर दिया बल्कि धर्म की राह पर चल रहे पांडवो को विजय भी दिलवाई।

ऐसे महान व्यक्तित्व पर चोर, लम्पट, रणछोर, व्यभिचारी, चरित्रहीन , कुब्जा से समागम करने वाला आदि कहना अन्याय नहीं तो और क्या है और इस सभी मिथ्या बातों का श्रेय पुराणों को जाता है।

इसलिए महान कृष्ण जी महाराज पर कोई व्यर्थ का आक्षेप न लगाये एवं साधारण जनों को श्री कृष्ण जी महाराज के असली व्यक्तित्व को प्रस्तुत करने के लिए पुराणों का बहिष्कार आवश्यक है और वेदों का प्रचार अति आवश्यक है।

और फिर भी अगर कोई न माने तो उन पर यह लोकोक्ति लागु होती हैं-

जब उल्लू को दिन में न दिखे तो उसमें सूर्य का क्या दोष है?

प्रोफैसर उत्तम चन्द शरर जन्माष्टमि पर सुनाया करते थे

: तुम और हम हम कहते हैं आदर्श था इन्सान था मोहन |

…तुम कहते हो अवतार था, भगवान था मोहन ||

हम कहते हैं कि कृष्ण था पैगम्बरो हादी |

तुम कहते हो कपड़ों के चुराने का था आदि ||

हम कहते हैं जां योग पे शैदाई थी उसकी |

तुम कहते हो कुब्जा से शनासाई थी उसकी ||

हम कहते है सत्यधर्मी था गीता का रचैया |

तुम साफ सुनाते हो कि चोर था कन्हैया ||

हम रास रचाने में खुदायी ही न समझे |

तुम रास रचाने में बुराई ही न समझे ||

इन्साफ से कहना कि वह इन्सान है अच्छा |

या पाप में डूबा हुआ भगवान है अच्छा ||
विस्तृत जानकारी के लिए यह पुस्तक पढिए।
https://drive.google.com/open?id=1wJYhhksGauRmpQXETHeIYwOJ3l7kV6fW

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#thearyasamaj

Monday, May 25, 2020

क्रांतिकारी रास बिहारी बोस।

क्रांतिकारी रास बिहारी बोस शत शत नमन
जन्म 25 मई, 1886
जन्म भूमि वर्धमान ज़िला, पश्चिम बंगाल
मृत्यु 21 जनवरी, 1945
मृत्यु स्थान टोक्यो, जापान 
नागरिकता भारतीय 
प्रसिद्धि वकील, शिक्षाविद और स्वतंत्रता सेनानी
धर्म हिंदू

रास बिहारी बोस प्रख्यात वकील और शिक्षाविद थे। रास बिहारी बोस प्रख्यात क्रांतिकारी तो थे ही, आजाद हिन्द फ़ौज के द्वितीय निर्माता भी थे। देश के जिन क्रांतिकारियों ने स्वतंत्रता-प्राप्ति तथा स्वतंत्र सरकार का संघटन करने के लिए प्रयत्न किया, उनमें श्री रासबिहारी बोस का नाम प्रमुख है। 

रासबिहारी बोस उन लोगों में से थे जो देश से बाहर जाकर विदेशी राष्ट्रों की सहायता से अंग्रेजों के विरुद्ध वातावरण तैयार कर भारत की मुक्ति का रास्ता निकालने की सोचते रहते थे। 1937 में उन्होंने 'भारतीय स्वातंय संघ' की स्थापना की और सभी भारतीयों का आह्वान किया तथा भारत को स्वतंत्र राष्ट्र घोषित कर दिया।

प्रथम महायुद्ध में सशस्त्र क्रांति की जो योजना बनाई गई थी, वह रासबिहारी बोस के ही नेतृत्व में निर्मित हुई थी। सन् 1912 ई. में वाइसराय लार्ड हार्डिंग पर रासबिहारी बोस ने ही बम फेंका था। तत्कालीन ब्रिटिश सरकार की सारी शक्ति रासबिहारी बोस को पकड़ने में व्यर्थ सिद्ध हुई।

सरकारी नौकरी में रहते हुए भी रासबिहारी बोस ने क्रांतिकारी दल का संघटन किया। इसका गठन करने के लिए रासबिहारी बोस को व्यापक रूप से देश का बड़ी ही सतर्कता से भ्रमण करना पड़ता था। रासबिहारी बोस के क्रांतिकारी कार्यों का एक प्रमुख केंद्र वाराणसी रहा है, जहाँ आप गुप्त रूप से रहकर देश के क्रांतिकारी आंदोलन का संचालन किया करते थे। वाराणसी से सिंगापुर तक क्रांतिकारियों का संघटन करने में आपको सफलता मिली थी। 

क्रांतिकारी कार्यों में आपके प्रमुख सहायक श्री पिंगले थे। 21 फरवरी, सन 1915 ई. का एक साथ सर्वत्र विद्रोह करने की तिथि निश्चित की गई थी किंतु दल के एक व्यक्ति द्वारा भेद बता दिए जाने के कारण योजना सफल न हो सकी। इतना अवश्य कहा जाएगा कि सन 1857 की सशस्त्र क्रांति के बाद ब्रिटिश शासन को समाप्त करने का इतना व्यापक और विशाल क्रांतिकारी संघटन एवं षड्यंत्र नहीं बना था।

जय हिंद
वन्दे मातरम्

Sunday, May 24, 2020

मैंने गांधी को क्यों मार।

सुप्रीम कोर्ट से अनुमति मिलने पर प्रकाशित किया गया 
60 साल तक भारत में प्रतिबंधित रहा नाथूराम गोडसे 
का अंतिम भाषण -
30 जनवरी 1948 को नाथूराम गोड़से ने महात्मा गांधी की गोली मारकर हत्या कर दी थी लेकिन नाथूराम गोड़से घटना स्थल से फरार नही हुए बल्कि उसने आत्मसमर्पण कर दिया 
नाथूराम गोड़से समेत 17 देशभक्तों पर गांधी की हत्या का मुकदमा चलाया गया इस मुकदमे की सुनवाई के दरम्यान #न्यायमूर्ति_खोसला से नाथूराम जी ने अपना वक्तव्य स्वयं पढ़ कर जनता को सुनाने की अनुमति माँगी थी जिसे न्यायमूर्ति ने स्वीकार कर लिया था पर यह कोर्ट परिसर तक ही सिमित रह गयी क्योकि सरकार ने नाथूराम के इस वक्तव्य पर प्रतिबन्ध लगा दिया था लेकिन नाथूराम के छोटे भाई और गांधी की हत्या के सह-अभियोगी गोपाल गोड़से ने 60 साल की लम्बी कानूनी लड़ाई लड़ने के बाद सुप्रीम कोर्ट में विजय प्राप्त की और नाथूराम का वक्तव्य प्रकाशित किया गया l

                     *मैंने गांधी को क्यों मारा*

नाथूराम गोड़से ने गांधी हत्या के पक्ष में अपनी 
150 दलीलें न्यायलय के समक्ष प्रस्तुति की
नाथूराम गोड़से के वक्तव्य के कुछ मुख्य अंश....
नाथूराम जी का विचार था कि गांधी की अहिंसा हिन्दुओं 
को कायर बना देगी कानपुर में गणेश शंकर विद्यार्थी को मुसलमानों ने निर्दयता से मार दिया था महात्मा गांधी सभी हिन्दुओं से गणेश शंकर विद्यार्थी की तरह अहिंसा के मार्ग पर चलकर बलिदान करने की बात करते थे नाथूराम गोड़से को भय था गांधी की ये अहिंसा वाली नीति हिन्दुओं को 
कमजोर बना देगी और वो अपना अधिकार कभी 
प्राप्त नहीं कर पायेंगे...
1919 को अमृतसर के जलियाँवाला बाग़ गोलीकांड 
के बाद से पुरे देश में ब्रिटिश हुकुमत के खिलाफ 
आक्रोश उफ़ान पे था...
भारतीय जनता इस नरसंहार के #खलनायक_जनरल_डायर 
पर अभियोग चलाने की मंशा लेकर गांधी के पास गयी 
लेकिन गांधी ने भारतवासियों के इस आग्रह को समर्थन 
देने से साफ़ मना कर दिया 
महात्मा गांधी ने खिलाफ़त आन्दोलन का समर्थन करके भारतीय राजनीति में साम्प्रदायिकता का जहर घोल दिया  महात्मा गांधी खुद को मुसलमानों का हितैषी की तरह पेश करते थे वो #केरल_के_मोपला_मुसलमानों द्वारा वहाँ के 
1500 हिन्दूओं को मारने और 2000 से अधिक हिन्दुओं 
को मुसलमान बनाये जाने की घटना का विरोध 
तक नहीं कर सके 
कांग्रेस के त्रिपुरा अधिवेशन में #नेताजी_सुभाष_चन्द्रबोस 
को बहुमत से काँग्रेस अध्यक्ष चुन लिया गया किन्तु गांधी ने #अपने_प्रिय_सीतारमय्या का समर्थन कर रहे थे गांधी ने सुभाष चन्द्र बोस से जोर जबरदस्ती करके इस्तीफ़ा देने के लिए मजबूर कर दिया...
23 मार्च 1931 को भगत सिंह सुखदेव और राजगुरु को फांसी दे दी गयी पूरा देश इन वीर बालकों की फांसी को 
टालने के लिए महात्मा गांधी से प्रार्थना कर रहा था लेकिन गांधी ने भगत सिंह की हिंसा को अनुचित ठहराते हुए देशवासियों की इस उचित माँग को अस्वीकार कर दिया 
गांधी #कश्मीर_के_हिन्दू_राजा_हरि_सिंह से कहा कि 
#कश्मीर_मुस्लिम_बहुल_क्षेत्र_है_अत:वहां का शासक 
कोई मुसलमान होना चाहिए अतएव राजा हरिसिंह को 
शासन छोड़ कर काशी जाकर प्रायश्चित करने जबकि  हैदराबाद के निज़ाम के शासन का गांधी जी ने समर्थन किया था जबकि हैदराबाद हिन्दू बहुल क्षेत्र था गांधी जी की नीतियाँ 
धर्म के साथ बदलती रहती थी उनकी मृत्यु के पश्चात 
सरदार पटेल ने सशक्त बलों के सहयोग से हैदराबाद को 
भारत में मिलाने का कार्य किया गांधी के रहते ऐसा करना संभव नहीं होता 
पाकिस्तान में हो रहे भीषण रक्तपात से किसी तरह से अपनी जान बचाकर भारत आने वाले विस्थापित हिन्दुओं ने दिल्ली की खाली मस्जिदों में जब अस्थाई शरण ली मुसलमानों ने मस्जिद में रहने वाले हिन्दुओं का विरोध किया जिसके आगे गांधी नतमस्तक हो गये और गांधी ने उन विस्थापित हिन्दुओं को जिनमें वृद्ध स्त्रियाँ व बालक अधिक थे मस्जिदों से खदेड़ बाहर ठिठुरते शीत में रात बिताने पर मजबूर किया गया 
महात्मा गांधी ने दिल्ली स्थित मंदिर में अपनी प्रार्थना सभा 
के दौरान नमाज पढ़ी जिसका मंदिर के पुजारी से लेकर 
तमाम हिन्दुओं ने विरोध किया लेकिन गांधी ने इस विरोध को दरकिनार कर दिया लेकिन महात्मा गांधी एक बार भी किसी मस्जिद में जाकर गीता का पाठ नहीं कर सके 
लाहौर कांग्रेस में वल्लभभाई पटेल का बहुमत से विजय 
प्राप्त हुयी किन्तु गान्धी अपनी जिद के कारण यह पद जवाहरलाल नेहरु को दिया गया गांधी अपनी मांग 
को मनवाने के लिए अनशन-धरना-रूठना किसी से बात 
न करने जैसी युक्तियों को अपनाकर अपना काम 
निकलवाने में माहिर थे इसके लिए वो नीति-अनीति का लेशमात्र विचार भी नहीं करते थे
14 जून 1947 को दिल्ली में आयोजित अखिल भारतीय कांग्रेस समिति की बैठक में भारत विभाजन का प्रस्ताव अस्वीकृत होने वाला था लेकिन गांधी ने वहाँ पहुँच कर 
प्रस्ताव का समर्थन करवाया यह भी तब जबकि गांधी  
ने स्वयं ही यह कहा था कि देश का विभाजन उनकी लाश 
पर होगा न सिर्फ देश का विभाजन हुआ बल्कि लाखों 
निर्दोष लोगों का कत्लेआम भी हुआ लेकिन गांधी 
ने कुछ नहीं किया....
धर्म-निरपेक्षता के नाम पर मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति के जन्मदाता महात्मा गाँधी ही थे जब मुसलमानों ने हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाये जाने का विरोध किया तो महात्मा गांधी ने सहर्ष ही इसे स्वीकार कर लिया और हिंदी की जगह हिन्दुस्तानी (हिंदी+उर्दू की खिचड़ी) को बढ़ावा देने लगे  बादशाह राम और बेगम सीता जैसे शब्दों का 
चलन शुरू हुआ...
कुछ एक मुसलमान द्वारा वंदेमातरम् गाने का विरोध करने 
पर महात्मा गांधी झुक गये और इस पावन गीत को भारत 
का राष्ट्र गान नहीं बनने दिया 
गांधी ने अनेक अवसरों पर शिवाजी महाराणा प्रताप व 
गुरू गोबिन्द सिंह को पथभ्रष्ट देशभक्त कहा वही दूसरी 
ओर गांधी मोहम्मद अली जिन्ना को क़ायदे-आजम 
कहकर पुकारते था
कांग्रेस ने 1931 में स्वतंत्र भारत के राष्ट्र ध्वज बनाने के 
लिए एक समिति का गठन किया था इस समिति ने 
सर्वसम्मति से चरखा अंकित भगवा वस्त्र को भारत का 
राष्ट्र ध्वज के डिजाइन को मान्यता दी किन्तु गांधी जी 
की जिद के कारण उसे बदल कर तिरंगा कर दिया गया 
जब सरदार वल्लभ भाई पटेल के नेतृत्व में सोमनाथ 
मन्दिर का सरकारी व्यय पर पुनर्निर्माण का प्रस्ताव पारित किया गया तब गांधी जी जो कि मन्त्रीमण्डल के सदस्य 
भी नहीं थे ने सोमनाथ मन्दिर पर सरकारी व्यय के प्रस्ताव 
को निरस्त करवाया और 13 जनवरी 1948 को आमरण अनशन के माध्यम से सरकार पर दिल्ली की मस्जिदों का सरकारी खर्चे से पुनर्निर्माण कराने के लिए दबाव डाला 
भारत को स्वतंत्रता के बाद पाकिस्तान को एक समझौते के तहत 75 करोड़ रूपये देने थे भारत ने 20 करोड़ रूपये 
दे भी दिए थे लेकिन इसी बीच 22 अक्टूबर 1947 को पाकिस्तान ने कश्मीर पर आक्रमण कर दिया केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल ने आक्रमण से क्षुब्ध होकर 55 करोड़ की 
राशि न देने का निर्णय लिया | जिसका महात्मा गांधी ने 
विरोध किया और आमरण अनशन शुरू कर दिया जिसके परिणामस्वरूप 55 करोड़ की राशि भारत ने पाकिस्तान 
को दे दी महात्मा गांधी भारत के नहीं अपितु पाकिस्तान 
के राष्ट्रपिता थे जो हर कदम पर पाकिस्तान के पक्ष में 
खड़े रहे फिर चाहे पाकिस्तान की मांग जायज हो या 
नाजायज गांधी ने कदाचित इसकी परवाह नहीं की 
उपरोक्त घटनाओं को देशविरोधी मानते हुए नाथूराम 
गोड़से जी ने महात्मा गांधी की हत्या को न्यायोचित 
ठहराने का प्रयास किया...
नाथूराम ने न्यायालय में स्वीकार किया कि माहात्मा गांधी बहुत बड़े देशभक्त थे उन्होंने निस्वार्थ भाव से देश सेवा की  
मैं उनका बहुत आदर करता हूँ लेकिन किसी भी देशभक्त 
को देश के टुकड़े करने के एक समप्रदाय के साथ पक्षपात करने की अनुमति नहीं दे सकता हूँ गांधी की हत्या के 
सिवा मेरे पास कोई दूसरा उपाय नहीं था...!!
#नाथूराम_गोड़सेजी द्वारा अदालत में 
दिए बयान के मुख्य अंश...
मैने गांधी को नहीं मारा
मैने गांधी का वध किया है..
वो मेरे दुश्मन नहीं थे परन्तु उनके निर्णय राष्ट्र के 
लिए घातक साबित हो रहे थे...
जब व्यक्ति के पास कोई रास्ता न बचे तब वह मज़बूरी 
में सही कार्य के लिए गलत रास्ता अपनाता है...
मुस्लिम लीग और पाकिस्तान निर्माण की गलत निति 
के प्रति गांधी की सकारात्मक प्रतिक्रिया ने ही मुझे 
मजबूर किया...
पाकिस्तान को 55 करोड़ का भुगतान करने की 
गैरवाजिब मांग को लेकर गांधी अनशन पर बैठे..
बटवारे में पाकिस्तान से आ रहे हिन्दुओ की आपबीती 
और दुर्दशा ने मुझे हिला के रख दिया था...
अखंड हिन्दू राष्ट्र गांधी के कारण मुस्लिम लीग 
के आगे घुटने टेक रहा था...
बेटो के सामने माँ का खंडित होकर टुकड़ो में बटना 
विभाजित होना असहनीय था...
अपनी ही धरती पर हम परदेशी बन गए थे..
मुस्लिम लीग की सारी गलत मांगो को 
गांधी मानते जा रहे थे..
मैने ये निर्णय किया कि भारत माँ को अब और 
विखंडित और दयनीय स्थिति में नहीं होने देना है 
तो मुझे गांधी को मारना ही होगा
और मैने इसलिए गांधी को मारा...!!
मुझे पता है इसके लिए मुझे फाँसी ही होगी 
और मैं इसके लिए भी तैयार हूं...
और हां यदि मातृभूमि की रक्षा करना अपराध हे 
तो मै यह अपराध बार बार करूँगा हर बार करूँगा ...
और जब तक सिन्ध नदी पुनः अखंड हिन्द में न बहने 
लगे तब तक मेरी अस्थियो का विसर्जन नहीं करना...!!
मुझे  फाँसी देते वक्त मेरे एक हाथ में केसरिया ध्वज 
और दूसरे हाथ में #अखंड_भारत का नक्शा हो...
मै फाँसी चढ़ते वक्त अखंड भारत की जय 
जयकार बोलना चाहूँगा...!!
हे भारत माँ मुझे दुःख है मै तेरी इतनी 
ही सेवा कर पाया....!!
#नाथूराम_गोडसे

प्राचीन भारतीय सृष्टि विज्ञान।

प्राचीन भारतीय सृष्टि विज्ञान एवं दर्शन को रुपायित करती यह घड़ी बहुत अच्छी लगी।
हम सभी को यह स्मरण दिलाती है कि

 जब 1 बजे तो स्मरण हो कि ब्रम्ह एक है...!

2 बजने पर सृष्टि विकास में  युगल देवों अर्थात अश्विनी और कुमार (रात दिन,पृथ्वी स्वर्ग,विद्युत चुम्बक,इडा पिंगला,दोनों नासापुट,सूर्य चंद्र, दान पुण्य,वैद्य यौवन प्रदाता,आदि) का स्मरण।

 3 अर्थात तीन गुण - सत्व, रज और तम। 

4 अर्थात चारों वेद - ऋ क, यजु:,साम,और अथर्व। 

5 अर्थात पांच प्राण - प्राण,अपान, उदान, व्यान और समान। 

6 अर्थात छ रस - अम्ल,नमकीन,कटु, तिक्त,कषाय और मधुर।

 7 अर्थात सात ऋषि प्राण - अत्रि,कश्यप,वशिष्ठ,विश्वामित्र,भारद्वाज,गौतम और जमदग्नि। 

8 अर्थात आठ सिद्धियां - अनिमा,लघिमा,गरिमा,महिमा,प्राप्ति,प्राकाम्य,इशित्व और वशीकरण। 

9 अर्थात नौ द्रव्य - पृथ्वी,जल,अग्नि,वायु,आकाश,दिक - काल, मन और आत्मा।

 10 अर्थात दस दिशाएं - पूर्व,आग्नेय,दक्षिण, नैरित्य,पश्चिम,वायव्य,उत्तर,ईशान,ऊपर और नीचे। 

11 अर्थात ग्यारह रुद्र - कपाली,पिंगल,भीम,विरूपाक्ष,विलोहित,शास्ता,अजपाद, अहिर्बुधन्य,शंभू,चंड,और भव। 

12 बजने पर स्मरण हो कि बारह आदित्य (जो कि 12 मास के रूप में सृष्टि चक्र को संचालित करते हैं ) - अंशुमान, भग, पूषा,धाता,मित्र,अर्यमा,वरुण, विवस्वान,सविता,शुक्र,त्वष्टा और विष्णु। 

सभी भारतीय इस अद्भुत सृष्टि विज्ञान का चिंतन स्मरण इस घड़ी के माध्यम से कर इसका अनुसरण करें

सेकुलरिज्म क्या है?

एक मुस्लिम बच्चे ने अपनी माँ से पूछा-
 *"अम्मी, ये सेकुलरिज्म (धर्म निरपेक्षता) क्या होता है?"*
*बुर्के में लिपटी महिला ने अपने बेटे को बताया- 
"बेटे! सेकुलरिज्म इस देश का वह सिस्टम है 
जिसमें हिन्दू करदाता जी-तोड़ मेहनत कर 
सरकार को इतना टैक्स चुकाता है
 जिससे कि हम जैसे
 *अल्पसंख्यकों* 
को फ्री आवास, 
मदरसों में फ्री शिक्षा,
 फ्री मेडिकल ट्रीटमेंट 
आदि सुविधाएँ मिलती रहें,

 मंदिरों की हुंडियों का धन 
हमारे लिए प्रयोग किया जा सके!
 किन्तु...... 
मस्जिदों में क्या हो रहा है, 
उस तरफ कोई आँख उठाकर देखने की भी
हिम्मत ना कर सके!

हमें कानून का संरक्षण तो मिले किन्तु कोई कानून हम पर लागू नहीं हो!
 *इस प्रकार के जन्नतनुमा माहौल को ही सेकुलरिज्म कहते हैं!!!"*

*“लेकिन अम्मी, इससे हिन्दू करदाता नाराज नहीं होते"- बच्चे ने पूछा।*

*"होते हैं बेटा"!* 
किन्तु 
उनके गुस्से को कुंद करने के लिए हम उनको
 *साम्प्रदायिक* 
बताना शुरू कर देते हैं
ताकि उनको शर्मिंदगी महसूस हो!
 इस तरह कुछेक अड़ियल हिंदुओं को छोड़कर, 
बाक़ी सभी हिन्दू इस 
सेकुलरता नाम के जहर को प्रसाद समझ कर 
ना केवल ख़ुशी ख़ुशी स्वीकार कर लेते हैं बल्कि 
उन्हें अपने आपको सेक्युलर कहलवाने में गर्व भी महसूस होता है
तथा 
वे अपने आपको सेक्युलर सिद्ध करने के प्रयास में 
हमारे सब कर्मों का आँख मूंदकर समर्थन करते हैं!"

बच्चे ने कहा- 
*इसका मतलब हिन्दू तो बहुत अच्छे हैं!*

बुर्के वाली महिला ने कहा,
 *अच्छे नहीं बेवकूफ हैं * 
जो अपना हक छोड़कर हमारे बोझ को उठाते हैं!

बच्चे ने अपनी समझ से कहा- "लेकिन अम्मी वे
हमें अल्पसंख्यक कहते हैं जो
सुनने में अच्छा नहीं लगता!"

महिला ने कहा- 
"तू चिंता मत कर बेटे!
 इसी सेक्युलरिज्म की बदौलत हम बहूसंख्यक हो जाएँगे।

 हमारे लिए कोई रोकटोक नहीं
जितने भी पैदा करो 
और हम
एक दिन हिन्दुस्तान में ही नहीं,
पूरी दुनिया में राज करेंगे!

मैंने तेरे 11 भाई बहन यूँ ही थोड़े न पैदा किए हैं!!!

*बच्चे ने कहा- 
"हाँ अम्मी! मैं समझ गया। 
जब हिन्दू बोझ उठाते हैं 
तो पैदा करने में क्या दिक्कत है!!!*

श्रीमती चित्रलेखा जी का आडम्बर।

श्रीमती चित्रलेखा जी बार बार सफाई दे रही हैं हमको अफवाह फैलाने का दोषी बता रही हैं..
आप सभी एक बार प्रताप चौहान भैया की ये पोस्ट अवश्य पढिये कैसे एक झूठ छिपाने के लिए बार बार झूठ बोला जा रहा है...

श्रीमती चित्रलेखा जी 

झूठ कितना भी प्रबल क्यों न दिखे उसके पाँव नहीं होते ? अर्थात् वो सत्य के सम्मुख टिक नहीं सकता।  अब देखिए न या तो आपकी यह पोस्ट असत्य है या फिर आपका 12 मई 2020 को जारी किया गया वीडियो... क्योंकि ये दोनों एक-दूसरे के नितान्त विरुद्ध हैं।

 👉आपने 12 मई के अपने वीडियो में यह स्पष्ट रूप से स्वीकार किया था कि आपने कथा रोकी थी और आपने उसके अनेक कारण वहाँ प्रस्तुत किये थे, अनेक शास्त्रीय संदर्भ प्रस्तुत करने का प्रयत्न भी किया था, आपने उन विशिष्ट परिस्थितियों का भी कथन किया था, जिनमें आपको कथा रोकनी पड़ी और आपने यह भी स्पष्ट किया कि आपका नमाज के समय कथा रोकने का वह कथन मात्र परिस्थिति वश था, आपने ऐसा कोई नियम रूप में उल्लेख नहीं किया था कि जब भी नमाज की आवाज आये तो भागवत रोक दो.... आपके इस समस्त विवरण से यह पूर्णतया स्पष्ट है कि आपने उस दिन भागवत कथा रोकी थी और उस वीडियो में दिखाई व सुनाई पड़ रहा सम्पूर्ण विवरण सत्य है(भले ही आपके शब्दों में वह सत्य आधा ही हो, परन्तु सत्य है), यह 12 मई के वीडियो में आपकी स्वीकारोक्ति है।

👉 फिर क्या कारण है देवी जी कि आज की इस पोस्ट में आप अपने ही पूर्वकथन के विरुद्ध जाकर उक्त प्रकरण को पूर्णतया नकार रही हैं ?
यह स्ववचनव्याघात क्यों देवी? कल तक आप जिसे आधा सत्य स्वीकार कर रही थी और उसकी शास्त्रीयता को सिद्ध करने का प्रयत्न कर रही थी, आज उस आधे सत्य से भी आपको इन्कार क्यों है ? क्या आप 12 मई को इस तथ्य से अवगत नहीं थी कि आपने कथा रोकी नहीं थी, अपितु भजन गाया था ? या आप आज असत्य सम्भाषण कर अपनी धूलि-धूसरित होती छवि को बचाने का असफल प्रयत्न कर रही हैं ?

👉 आपने 12 मई के वीडियो में यह सिद्ध करने का प्रयत्न किया था कि आपके लगभग दो घण्टे के वीडियो में से मात्र लगभग 1 मिनट का वीडियो दिखाकर कुछ लोग भ्रम उत्पन्न करने का प्रयत्न कर रहे हैं... आपके अनुसार वीडियो के उस अंश से पौर्वापर्य (पहले और बाद) का ज्ञान नहीं होता, इसलिए आपका वह कथन किस सन्दर्भ में तथा किन परिस्थितियों में प्रकट हुआ, इसका ज्ञान उस वीडियो से न हो पाने के कारण ही आप पर ये सभी मिथ्या आरोप लगाए जा रहे हैं.. अर्थात् आपके समस्त स्पष्टीकरण का यह सामान्य आधार था कि जो दिखाया जा रहा है, वह आधा है और आपके ही शब्दों में "आधा सत्य, असत्य से अधिक हानिकारक होता है"..... 

अब आपकी आज की पोस्ट के सन्दर्भ में निम्नलिखित बिन्दुओं पर आपके स्पष्टीकरण की अपेक्षा है -

1. आपके द्वारा अपने पक्ष में प्रस्तुत यह वीडियो भी मात्र 1 मिनट का है अर्थात् यह भी उस वीडियो का 1 अंशमात्र ही है तो यदि 1 अंश मात्र दिखाने से आप दोषी सिद्ध नहीं होती, वैसे ही 1 अंश मात्र को देखकर ही आपको दोषमुक्त भी कैसे मान लिया जाए ?

2. आपके अनुसार उस वीडियो में पूर्ण स्थिति प्रदर्शित नहीं थी, अतः उसके आधार पर आप पर दोषारोपण करना अनुचित है तो इसी नियम से आपकी इस वीडियो में भी स्थिति का पूर्ण ज्ञान न होने से आपको दोषमुक्त मानना भी अनुचित ही होगा... 
 
3. आपके अनुसार आपकी वायरल वीडियो से आगे का यह भाग है और आपने कथा नहीं रोकी थी, अपितु भजन गाया था तो आपने क्यों इस वीडियो में वह पहला भाग प्रदर्शित नहीं किया, जिसमें आप कथा रोककर कुछ समय के लिए उनके भगवान को याद करने का आख्यान कर रही थीं ? यदि वह पूर्वभाग भी इस वीडियो में प्रदर्शित होता तो सबको पौर्वापर्य का सटीक ज्ञान हो पाता और आपका पक्ष भी प्रबल होता ? 

कृपया इस सन्दर्भ में भी अपना मत स्पष्ट करने का प्रयत्न करें। 

श्रीमती जी , मैंने आरम्भ में ही कहा था कि आपका यह पोस्ट असत्य है और झूठ के पाँव नहीं होते... आपके परस्पर विरुद्ध कथन मेरे पक्ष को पुष्ट कर रहे हैं... आपका प्रचलित वीडियो तथा इस पोस्ट के साथ संलग्न वीडियो, दोनों को देखकर 1 बालबुद्धि भी सरलता से आपके असत्य का उद्घाटन कर सकता है क्योंकि आपकी उस वीडियो के अंत में आप स्पष्ट कह रही हैं कि "5 मिनट के लिए कथा रोककर उनके भगवान को याद कर लेते हैं, क्या जाता है?" और इस वीडियो का आरम्भ ठाकुर जी के भजन से हो रहा है तो बताइए देवी जी कि जब आप उनके भगवान( अल्लाह) को याद करने जा रही थी तो अचानक ठाकुर जी का भजन कहाँ से प्रकट हुआ ? वे कब से ठाकुर जी को अपना आराध्य मानने लगे ? 

 सत्य तो यह है देवी जी कि आप आज भी असत्य ही बोल रही हैं... आपकी यह वीडियो उस वीडियो के तुरन्त बाद का भाग है ही नहीं...  कृपया सत्य को स्वीकार करने का साहस करिये...

आपके ही एक अन्य पोस्ट से ज्ञात हुआ कि आज आपकी वैवाहिक वर्षगाँठ है, इस अवसर पर ईश्वर से प्रार्थना है कि वह आपको सत्यमार्ग पर चलने का आत्मबल प्रदान करें, सत्य को स्वीकार करने का नैतिक सामर्थ्य आपको प्राप्त हो, आप सदैव धर्मपथ पर आरूढ़ हों तथा अधर्म के विनाश का सामर्थ्य आपको प्राप्त हो, क्योंकि असत्य के कथन एवं व्यवहार से यदि कोई सम्बन्ध सर्वाधिक प्रभावित होता है तो वह वही है, जिसकी वार्षिकग्रन्थि आप आज मना रही हैं।

देवी जी, पूज्य स्वामी चिदम्बरानन्द सरस्वती जी महाराज,  छोटी बहन आयुषी राणा भारती , भाई अंकुर आर्य अथवा अन्य किसी का भी आपसे व्यक्तिगत विरोध नहीं है, आपसे कोई द्वेष नहीं है... 

हम सबका मात्र इतना ही आग्रह, इतना ही निवेदन है कि आप #व्यासपीठ की मर्यादा का हनन न करें, #व्यासपीठ पर बैठकर अधर्म की अभिवृद्धि में आप सहायक न हों, #गोपालक, #गोसंवर्धक भगवान #श्रीकृष्ण की कथा में आप गोभक्षकों का महिमामण्डन न करें।

यह कुकृत्य किसी भी प्रकार आपको शोभा नही देता। अतः आपसे साग्रह प्रार्थना है कि इस दुराग्रह, इस बालहठ का परित्याग कर सत्य को स्वीकार करते हुए पुनः धर्मपथ पर आरूढ़ हों... ईश्वर आपको सद्बुद्धि प्रदान करें...

स्त्री क्या है।

भगवान स्त्री की रचना कर रहे थे
उन्हें काफी समय लग गया
आज छठा दिन था और स्त्री की रचना
अभी भी अधूरी थी।
देवदूत ने पूछा
भगवन
आप इसमें इतना समय क्यों ले रहे हो...?
भगवान ने जवाब दिया,
"क्या तूने इसके सारे गुणधर्म
(specifications) देखे हैं,
जो इसकी रचना के लिए जरूरी है ?
1. यह हर प्रकार की परिस्थितियों को
संभाल सकती है।
2. यह एक साथ अपने सभी बच्चों को
संभाल सकती है एवं खुश रख सकती है ।
3. यह अपने प्यार से
घुटनों की खरोंच से लेकर
टूटे हुये दिल के घाव भी भर सकती है ।
4. यह सब सिर्फ अपने दो हाथों से
कर सकती है।
5. इस में सबसे बड़ा "गुणधर्म" यह है कि
बीमार होने पर भी अपना ख्याल
खुद रख सकती है एवं
18 घंटे काम भी कर सकती है।
देवदूत चकित रह गया और आश्चर्य से पूछा-
भगवान !
क्या यह सब दो हाथों से कर पाना संभव है ?"
भगवान ने कहा यह स्टैंडर्ड रचना है।
(यह गुणधर्म सभी में है )
देवदूत ने नजदीक जाकर
स्त्री को हाथ लगाया और कहा,
"भगवान यह तो बहुत नाज़ुक है"
भगवान ने कहा हाँ
यह बहुत ही नाज़ुक है,
मगर इसे बहुत Strong बनाया है ।
इसमें हर परिस्थितियों को संभालने की ताकत है।
देवदूत ने पूछा
क्या यह सोच भी सकती है ........?
भगवान ने कहा यह सोच भी सकती है
और मजबूत हो कर मुकाबला भी कर सकती है।
देवदूत ने नजदीक जाकर
स्त्री के गालों को हाथ लगाया और बोला,
"भगवान ये तो गीले हैं।
लगता है इसमें से लिकेज हो रहा है।"
भगवान बोले,
"यह लीकेज नहीं है,
यह इसके आँसू हैं।"
देवदूत:
आँसू किस लिए....... ?
भगवान
यह भी इसकी ताकत हैं ।
आँसू इसको फरीयाद करने
एवं प्यार जताने
एवं अपना अकेलापन दूर करने का तरीका है।
देवदूत
भगवान आपकी रचना अदभुत है
आपने सब कुछ सोच कर बनाया है,
आप महान हैं।
भगवान बोले-
यह स्त्री रूपी रचना अदभुत है
यही हर पुरुष की ताकत है जो
उसे प्रोत्साहित करती है।
वह सभी को खुश देखकर खुश रहतीँ है।
हर परिस्थिति में हंसती रहती है ।
उसे जो चाहिए वह लड़ कर भी
ले सकती है।
उसके प्यार में कोइ शर्त नहीं है
(Her love is unconditional)
उसका दिल टूट जाता है
जब अपने ही उसे धोखा दे देते है ।
मगर हर परिस्थितियों से
समझौता करना भी जानती है।
देवदूत
भगवान आपकी रचना संपूर्ण है।
भगवान बोले
ना......,
अभी इसमें एक त्रुटि है।
"यह अपनी "महत्वत्ता" भूल जाती है"

Thursday, May 21, 2020

रामकथा में अली मौला के साइड इफैक्ट।

एक बच्ची अचानक घर पर 15 पन्ने का एक पत्र छोड़कर गायब हो जाती है और पत्र में लिखती है:-

" जब हिंदू धर्म में अल्लाह को भी पूजने की इजाजत है तब मैं अल्लाह को ही क्यो न पूजूँ ? मैं घर छोड़कर इस्लाम कुबूल करने जा रही हूं।"

पत्र में उसने यह भी लिखा था कि उसके कालेज के मुस्लिम दोस्तों के साथ साथ कुछ हिंदू दोस्त भी हिंदू धर्म का मजाक उड़ाते हैं और मुझे इस्लाम धर्म काफी अच्छा लगता है।

वह लड़की घर से गायब हो जाती है और #आयशा बनकर प्रकट होती है।

आप लोग गूगल पर केरल का #अथिरा उर्फ #आयशा केस सर्च कीजिये।

आश्चर्य की बात यह कि वह लड़की लव जिहाद की शिकार नहीं थी बल्कि वह एक आईडेंटिटी क्राइसिस का शिकार थी और तथाकथित धर्म गुरुओं इत्यादि के द्वारा वह कंफ्यूज हो गई थी हालांकि बाद में उसने वापस हिंदू धर्म में लौटने का फैसला किया और उसने फिर से हिंदू धर्म स्वीकार किया 

एनआईए के सामने उसने विस्तार से बताया कि किस तरह से उसे कॉलेज में साहित्य दिए गए जिसकी वजह से वह कंफ्यूज हो गई थी

इसीलिए मैं कहता हूं जब तक आपको अपने हिंदू धर्म पर हिंदू धर्म की अस्मिता पर हिंदू धर्म की जड़ों पर गर्व नहीं होगा कब तक आप अपने बच्चों को ठीक से संस्कार नहीं दे सकते

यदि आपके बच्चे किसी राम कथा में अली मौला अली मौला या अली या अली या अल्लाह या अल्लाह का गुणगान सुनेंगे तब वह अथिरा की तरह ही आईडेंटिटी क्राइसिस से जूझेंगे।

अगर रामकथा के गंगाजल के बीच में अली मौला का प्रदूषण मिलाओगे तो यही होगा। ऐसी हर घटना के लिये आप ही जिम्मेदार हैं। साथ ही साथ कथा वाचक भी। 
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साभार

#कथा_जिहाद

Wednesday, May 20, 2020

उठता लहंगा, बढ़ती इज्जत।

सन 1980 तक लड़कियाँ कालेज में साड़ी पहनती थी या फिर सलवार सूट। 
           इसके बाद साड़ी पूरी तरह गायब हुई , और         सलवार सूट के साथ जीन्स आ गया । 
              2005 के बाद सलवार सूट लगभग गायब हो गया और इसकी जगह Skin Tight काले सफेद #स्लैक्स आ गए, फिर 2010 तंक लगभग #पारदर्शी_स्लैक्स आ गए जिसमे #आंतरिक_वस्त्र पूरी तरह स्प्ष्ट दिखते हैं।

           फिर सूट, जोकि पहले घुटने या जांघो के पास से 2 भाग मे कटा होता था, वो 2012 के बाद कमर से 2 भागों में बंट गया और 

         फिर 2015 के बाद यह सूट लगभग ऊपर नाभि के पास से 2 भागो मे बंट गया, जिससे कि लड़की या महिला के नितंब पूरी तरह स्प्ष्ट दिखाई पड़ते हैं और 2 पहिया गाड़ी चलाती या पीछे बैठी महिला अत्यंत विचित्र सी दिखाई देती है, मोटी जाँघे, दिखता पेट।

          आश्चर्य की बात यह है कि यह पहनावा कॉलेज से लेकर 40 वर्ष या ऊपर उम्र की महिलाओ में अब भी दिख रहा है। बड़ी उम्र की महिलायें छोटी लड़कियों को अच्छा सिखाने की बजाए उनसे बराबरी की होड़ लगाने लगी है। नकलची महिलाए, 

              अब कुछ नया हो रहा 2018 मे, स्लैक्स ही कुछ Printed या रंग बिरंगा सा हो गया और सूट अब कमर तक आकर समाप्त हो गया यानि उभरे हुए नितंब अब आपके दर्शन हेतु प्रस्तुत है।

          साथ ही कॉलेजी लड़कियों या बड़ी महिलाओ मे एक नया ट्रेंड और आ गया, स्लैक्स अब पिंडलियों तंक पहुच गया, कट गया है नीचे से, #इस्लाममिक पायजामे की तरह और सबसे बड़ी बात यह है कि यह सब वेशभूषा केवल #हिन्दू_लड़कियों_व_महिलाओ में ही दिखाई पड़ रही है।

        ( हिन्दू पुरुषों की वेशभूषा में पिछले 40 वर्ष मे कोई उल्लेखनीय परिवर्तन नही हुआ) जबकि इसके उलट मुस्लिम लड़कियाँ तो अब Mall जाती है, बड़े होटलों में, सामाजिक पार्टियों में जाती है, तो पूरा ढका हुआ बुर्का या सिर में चारो तरफ लिपटे कपड़े के साथ दिखाई पड़ती है।

         हिन्दू लड़कियाँ /महिलायें जितना अधिक शरीर दिखाना चाह रही, मुस्लिम महिलायें उतना ही अधिक पहनावे के प्रति कठोर होते जा रही।

     कपिल के कॉमेडी शो में मंच पर आई एक VIP मेहमानों में हिन्दू मुस्लिम महिलाओं की वेश-भूषा में यह स्पष्ट अंतर देखा जा सकता था।
       पहले पुरुष साधारण या कम कपड़े पहनते थे, नारी सौम्यता पूर्वक अधिक कपड़े पहनती थी, पर अब टीवी सीरियलों, फिल्मों की चपेट में आकर हिन्दू नारी के आधे कपड़े स्वयं को Modern बनने में उतर चुके हैं।

      यूरोप द्वारा प्रचारित #नंगेपन के षडयंत्र की सबसे आसान शिकार, भारत की मॉडर्न हिन्दू महिलाए है, जो फैशन के नाम पर खुद को नंगा करने के प्रति वेहद गंभीर है, पर उन्हें यह ज्ञात नहीं कि वो जिसकी नकल कर इस रास्ते पर चल पड़ी है, उनको इस नंगापन के लिए विज्ञापनों में करोड़ो डॉलर मिलते है। उन्हें कपडे न पहनने के पैसे मिलते हैं। 

          यहाँ कुछ महिलाए सोचेंगी की हमे क्या पहनना है ये हम तय करेंगे कोई और नहीं, तो आप अपनी जगह बिलकुल सही हैं, लेकिन ज़रा सोचिये यदि आप ऐसे कपडे पहनती हैं जिसके कारण आप खुद को असहज महसूस करती हो, ऐसे दिखावे के कपडे पहनने से क्या फायदा?

     पहनावे में यह बदलाव न पारसी महिलाओं में आया न मुस्लिम महिलाओं में आया, यह बदलाव सिर्फ और सिर्फ हिंदू महिलाओं में ही क्यों आया है ...? जरा इस पर विचार कीजियेगा।

      कल्याण - नारी अंक, गीताप्रेस अवश्य पढ़ें।

         यह पोस्ट केवल हमारी बहु, बेटियों, माताओं, बहनों को यूरोप द्वारा प्रचारित नंगेपन के षडयंत्र का शिकार बननें से रोकने के लिए है, यदि इस पोस्ट को आप अपनें बहनों, बेटियों से शेयर करें तो हो सकता है, हमारा आनें वाला समाज प्रगति की ओर तत्पर होवे। 

       Note-अगर कम कपड़े पहनना ही मॉडर्न होना है 
तो जानवर इसमें आप से बहुत आगे हैं। 

Thursday, May 14, 2020

विश्वासघात।

एक बार वाल्मीकि बस्ती के मंदिर में गाँधी कुरान का पाठ कर रहे थे. तभी भीड़ में से एक औरत ने उठकर गाँधी से ऐसा करने को मना किया.

गाँधी ने पूछा .. क्यों ?

तब उस औरत ने कहा कि ये हमारे धर्म के विरुद्ध है.

गाँधी ने कहा.... मै तो ऐसा नहीं मानता ,

तो उस औरत ने जवाब दिया कि हम आपको धर्म में व्यवस्था देने योग्य नहीं मानते.

गाँधी ने कहा कि इसमें यहाँ उपस्थित लोगों का मत ले लिया जाय.

औरत ने जवाब दिया कि क्या धर्म के विषय में वोटो से निर्णय लिया जा सकता है.?

गाँधी बोला कि आप मेरे धर्म में बांधा डाल रही हैं.

औरत ने जवाब दिया कि आप तो करोडो हिन्दुओ के धर्म में नाजायज दखल दे रहे हैं.
.
गाँधी बोला ..मै तो कुरान सुनुगा .

औरत बोली ...मै इसका विरोध करुँगी.
.
और तभी औरत के पक्ष में सैकड़ो वाल्मीकि नवयुवक खड़े हो गए और कहने लगे कि मंदिर में कुरान पढवाने से पहले किसी मस्जिद में गीता और रामायण का पाठ करके दिखाओ तो जाने.
.
विरोध बढ़ते देखकर गाँधी ने पुलिस को बुला लिया. पुलिस आई और विरोध करने वालों को पकड़ कर ले गयी .और उनके विरुद्ध दफा १०७ का मुकदमा दर्ज करा दिया गया . और इसके पश्चात गाँधी ने पुलिस सुरक्षा में उस
मंदिर में कुरान पढ़ी.
( देश के बँटवारे पर लिखी पुस्तक विश्वासघात ... लेखक -- गुरुदत्त

Wednesday, May 13, 2020

मेरे भी मुस्लिम मित्र हैं।

मेरे भी क्लास में मुस्लिम पढ़े हैं।

मेरे भी आफिस में मुस्लिम काम करते हैं। 

मैं जहाँ से सामान लेती हूं वहां मुस्लिम भी सामान लेते हैं। 

मैं जहां रहती हूं वहाँ भी मुस्लिम रहते है...।। 

वो कहते है, हम जुम्मे की नमाज पढ़ेंगे, सड़को पर...। 
मैंने भी कहा कोई बात नहीं, संविधान ने सबको धार्मिक आजादी का हक़ दिया है। 

~वो~ कहते है हम मांस खायेंगे, अब वो बकरे का हो या गाय का...। 
मैंने कहा कोई बात नही, संविधान ने सबको हक़ दिया है कुछ भी खाने पीने का । 

अब मैंने कहा, "कॉमन सिविल कोड" आना चाहिए। 
तो वो बोला नही, ये ~इस्लाम~ के खिलाफ है। 

मैंने कहा, "बहुपत्नी प्रथा बंद हो।" 
तो वो बोला, _ये ~इस्लाम~ के खिलाफ है।

मैंने कहा, "जनसंख्या रोकथाम के लिए कानून बनना चाहिए।" 
तो वो बोला, ये ~इस्लाम~ ले खिलाफ है। 

मैंने कहा, "तलाक़ सिर्फ कोर्ट में हो।" 
तो वो बोला, ये ~कुरान~ का अपमान है। 

मैंने बोला, "बांग्लादेशियों को वापस भेजना चाहिए।" 
वो बोला, वो हमारे ~मुस्लिम~ भाई है। 

मैंने कहा, "रोहिंग्या को वापस भेजो।" 
वो बोला, ~वो~ हमारे भाई है। 

मैंने बोला, "राम मंदिर बनना चाहिए।" 
वो बोला, कहीं भी बना लो पर अयोधया में नहीं.. वहां ~बाबरी मस्जिद~ बनेगी। 

मैंने बोला, "कश्मीरी पंडितों को उनका घर मिलना चाहिए।" 
वो बोला, कश्मीर को आजादी दो। 

मैंने कहा, "मदरसे बंद हो, सबको समान शिक्षा मिले।" 
वो बोला, ये ~इस्लाम~ का अपमान है। 

मैंने बोला, "मोदी ने ये अच्छा किया।" वो बोला, मोदी ~मुसलमानों~ का हत्यारा है। 

मैंने बोला, "बंगाल में हिन्दू के साथ गलत हो रहा है।" 
वो बोला, ~दीदी~ ने बहुत विकास किया है। 

मैंने बोला, "सारे आतंकवादियों को गोली मार देनी चाहिए।" 
वो बोला, सुधरने का 1 मौका दो। 

मैंने कहा, "हमारे 3 मंदिर अयोध्या, मथुरा, काशी वापस दो।" 
उसने कहा, कैसे दे.. वो तो हमारी मस्जिद है? 

भाई . . . .सारे मुसलमान एक ही होते है। 
जहां कम है, वहां तुम्हारे भाई है। 
पर जहां ज्यादा है.. वहां आप सोच भी नही सकते। 

जहां कम है, वहां सॉफ्ट है। 
जहां ज्यादा है, वहां रोज हिन्दू मर रहे है। 
जहां कम है, वहां उन्हें आपसे रोजगार मिलता है.. इसलिए आपके दोस्त है। 

मुसलमान एक जैसे ही होते है। अंधकार में न रहें.
🚩जय श्री राम🚩

Sunday, May 10, 2020

सेमल का फूल, बोले तो कुर्दिश लड़कियाँ..।

इराक, सीरिया और तुर्की में से थोड़ा थोड़ा हिस्सा मिला कर बनता है कुर्दिस्तान। एक ऐसा देश जो है ही नहीं। जो लड़ रहा है अपने होने के लिए... पता नहीं हो पायेगा भी या नहीं।
      उपनिवेशवाद की समाप्ति के बाद जब देशों की सीमा रेखा खींची जाने लगी तब किसी ने कुर्दों की पुकार नहीं सुनी, सो उन्हें अपना देश नहीं मिला। इराक बन गया, सीरिया बन गया, तुर्की बन गया... कुर्दिस्तान नहीं बना। कुर्दिस्तान के नहीं बसने की कूर्द पीड़ा  को समझना हो तो सीमांत गाँधी कहलाने वाले महान बलूच नेता खान अब्दुल गफ्फार खान को समझिए। भारत विभाजन के समय रोते हुए खान ने गाँधी से कहा था, "आप नहीं जानते बापू कि आपने हमें कैसे भेड़ियों के मुह में धकेल दिया है। ये पाकिस्तानी भेड़िये हमें नोच डालेंगे।" गाँधी आह भर कर रह गए...
     वर्षों बाद जब चिकित्सा के लिए खान साहब भारत आये तो तात्कालिक प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी उनकी आगवानी को एयरपोर्ट तक गयीं। खान साहब के पास कपड़ों की एक पोटली भर थी, इंदिरा जी ने सभ्यता बस उनसे वह पोटली लेनी चाही तो खान साहब मुस्कुरा कर बोले, "तेरे बाप ने मेरे पास यही एक पोटली छोड़ी थी, तू इसे भी ले लेगी?"  खान साहब की पीड़ा को कोई समझ नहीं पाया, न गाँधी, न नेहरू, न इंदिरा न विश्व... पर आज तक बलूच उस पीड़ा को भोग रहे हैं।
      भेड़ियों के मुह में फंसे बलूचों की पीड़ा का ही दूसरा रूप है कुर्दिस्तान... पिछले पचास वर्षों में इतना अत्याचार अन्य किसी सभ्यता/देश पर नहीं हुआ, जितना कुर्दों पर हुआ। इराक, तुर्की या सीरिया में जब-जब कोई शासक मजबूत हुआ तो उसने कुर्दों को लूटा... इराक में सद्दाम आये तो एक ही दिन में चालीस हजार कुर्दों को काट दिया गया। उनके ऊपर रासायनिक हथियारों का प्रयोग हुआ। उनके कई सौ गाँव उजाड़ दिए गए। तब विश्व मे यह माना जाने लगा था कि अब कूर्द समाप्त हो जाएंगे।
      इराक के कूर्द भाग कर तुर्की गए, तो वहाँ भी वही मिला। तुर्की में एक ही दिन पचास हजार कूर्द मार डाले गए। उनकी स्त्रियों को बाजार में खड़ा कर के बोली लगाई गई और तब बलात्कार हुआ...
      सीरिया के कूर्द तो सबसे अधिक नोचे गए। वहाँ 1960 से ही कुर्दों को नागरिकता नहीं मिली है। उनकी जमीन छीन कर अरबों को बसाया गया है। sis के जमाने में कुर्दों के साथ जो हुआ है वह किसी के साथ नहीं हुआ। लाखों कूर्द काट डाले गए। लाखों दूसरे देशों में शरणार्थी हैं। उनकी असंख्य स्त्रीयाँ आज भी isis के आतंकियों की कैद में हैं।
      कूर्द होने की सबसे बड़ी सजा उनकी स्त्रियों को मिली है। अद्भुत सुंदर होती हैं कूर्द लड़कियाँ... फागुन के महीने में फूलों के अटे पड़े सेमल के पेंड़ की तरह प्रभावशाली सौंदर्य, औंटे हुए दूध की तरह लाल लड़कियाँ! मुस्कुराती हैं तो लगता है जैसे ईश्वर मुस्कुरा रहा हो। ऐसा सौंदर्य शायद धरती के किसी दूसरे भाग में नहीं... पर अपनी सुंदरता की जो कीमत उन्होंने चुकाई है वह किसी ने नहीं चुकाई... कोई ऐसा वर्ष नहीं जब हजार पाँच सौ कूर्द लड़कियों का अपहरण न हुआ हो। हर साल हजारों लड़कियाँ गुलाम बनाई जाती हैं, और इस्लामिक बाजारों में आज भी उनके देह की बोली लगती है। इराक में, तुर्की में, सीरिया में...
    कुछ दिनों पूर्व isis की कैद से छूटी एक कूर्द स्त्री "नूर" ने बताया, एक साल में उसे सात बार बेचा गया। उसे ही नहीं, उसकी दो साल और चार साल की दो बच्चियों को... उसी ने बताया कि isis मानता है कि काफिर स्त्रियों के बलात्कार से खुदा खुश होता है। सीरिया में एक दो नहीं, हजारों नूर बिक रहीं हैं अब भी...
    
#कूर्द मूल रूप से #आर्य हैं।
ईरानी आर्यों की ही एक शाखा है कूर्द। इस्लामी आतंक से बचने के लिए उन्होंने इस्लाम स्वीकार कर लिया, तब भी नहीं बचते... isis उन्हें मुसलमान नहीं मानता, सो सेमल के फूल जैसी कुर्दिश लड़कियाँ रोज नोची जा रही हैं। उनके लिए कोई मोमबत्ती नहीं जलाता। उनके लिए कहीं प्रदर्शन नहीं होता... क्यों? खुदा जाने...
    पर रुकिये! युग बदला है...* *दशकों से लुटती कूर्द लड़कियाँ अब लुटने से इनकार कर रही हैं। अब वे शेखों के सामने नग्न खड़ी हो कर अपनी बोली लगवाना नहीं चाहतीं। सो अब उन्होंने हथियार उठाना शुरू कर दिया है। कूर्द लड़के पहले ही सर्वश्रेष्ठ लड़ाके माने जाते थे, अब कूर्द लड़कियाँ लड़ाका हो रही हैं!
   यह लड़कियाँ जानती हैं कि उनके हथियार उठाने को छद्म बौद्धिक लोग आतंकवाद कहेंगे, पर उनके पास अन्य कोई राह नहीं। अब भी हजारों सेमल के फूल isis की कैद में हैं...
  पहले मुझे कूर्द लड़कियाँ सुंदर लगती थीं, पर अब शस्त्रधारी कूर्द लड़कियाँ उससे हजार गुनी अधिक सुन्दर लगने लगी हैं।

Tuesday, May 5, 2020

क्रिश्चियनिटी और हिंदुत्व पर धार्मिक चर्चा !!!

चर्च में मुख्य पादरी के साथ क्रिश्चियनिटी और हिंदुत्व पर धार्मिक चर्चा !!!
क्रिश्चियनिटी के गाल पर हिंदुत्व का जोरदार तमाचा !!!

अभी कुछ महीने पहले ही नई यूनिट में ट्रान्सफर आया हूँ ,, चूंकि मेरी पिछली यूनिट में कई लोगों ने मेरी छवि एक सांप्रदायिक कट्टर हिन्दू की बना दी थी और कुछ लोगों ने मुझे इस्लाम और क्रिश्चियनिटी विरोधी बता दिया था,
सो इस यूनिट में मैं शांत ही रहता था किसी भी संप्रदाय पर मैं कोई भी बात नही करता था !!!
मेरे साथ एक सीनियर हैं जो 4 साल पहले हिन्दू से क्रिस्चियन में कन्वर्ट हुए हैं, वह दिन रात क्रिश्चियनिटी की प्रशंसा करते रहता था और हिंदुत्व की कमियों के साथ गालियाँ देते रहते था,, चूँकि उन्हें मेरे बारे में कोई जानकारी नही थी और नाही उन्होंने मेरी हिस्ट्री पढ़ी थी,, सो कल रविवार को बातों हि बातों में उन्होंने मुझे क्रिश्चियनिटी में कन्वर्ट होने का ऑफ़र दे दिया और क्रिश्चियनिटी के गुणगान के साथ फायदे भी बताने लगे !!!

मैं कई दिनों से ऐसे मौके की तलाश में था क्योंकि मेरे दिमाग में क्रिस्चियन कन्वर्शन वाले मुद्दे को लेकर बड़ा फितूर चल रहा था, मैं उसके ज्ञान का लेवल जानता था, मैं जानता था की उसे क्रिश्चियनिटी और बाइबिल में कुछ भी नही आता है इसलिए मैंने उससे तर्क करना आवश्यक नही समझा। 
मैं बाइबिल को लेकर बड़ेवाले क्रिस्चियन पादरी से बहस करना चाहता था सो मैंने उसका प्रस्ताव स्वीकार कर लिया !!!

कल शाम को मैं अपने आठ जूनियर और उस सीनियर के साथ चर्च पहुँच गया, वहाँ कुछ परिवार भी हिन्दू से क्रिस्चियन में परिवर्तित होने आये थे और धर्म परिवर्तन कराने के लिए गोआ के किसी चर्च के पादरी बुलाये गए थे। 
चर्च में प्रेयर हुई फिर उन्होंने क्रिश्चियनिटी और परमेश्वर पर भाषण दिया और होली वाटर के साथ धर्मान्तरण की प्रक्रिया शुरू की।
हमने अपने सीनियर से कहा की वो पादरी से रिक्वेस्ट करें की सबसे पहले मुझे कन्वर्ट करें !!!
फिर पादरी ने मुझे बुलाया और कहा "जीसस ने राकेश को अपनी शरण में बुलाया है और मैं राकेश का क्रिश्चियनिटी में स्वागत करता हूँ" !!!
मैंने पादरी जी से कहा की मुझे कन्वर्ट करने से पहले क्रिस्चियन और सनातन वैदिक हिन्दू धर्म की तुलना करते हुए उसके मेरिट और डिमेरित बताएं। 
मैं कन्वर्ट होने से पहले बाइबिल पर आपके साथ चर्चा करना चाहता हूँ कृपा कर मुझे आधा घण्टे का समय दें और मेरे कुछ प्रश्नों का उत्तर दें !!!
पादरी जी को मेरे बारे में कोई जानकारी नही थी और उन्हें यह अंदाजा भी नही था की मैं यहां अपना लक्ष्य पूरा करने आया हूं और मेरा ध्येय क्या है !!! 
उस पादरी को इस बात का अंदेशा भी नही था की आज वो कितनी बड़ी समस्या में फंसने वाले हैं, सो पादरी जी बाइबिल पर चर्चा करने के लिए तैयार हो गए !!!
मैंने पूछा पादरी जी "क्रिश्चियनिटी हिन्दुत्व से किस तरह बेहतर है ??? परमेश्वर और बाइबिल में कौन सत्य है, अगर बाइबिल और यीशु में से एक चुनना हो तो किसको चुनें" ???

अब पादरी जी ने क्रिश्चियनिटी की प्रसंशा और हिंदुत्व की बुराई करना प्रारंभ की और कहा,,,

1. यीशु ही एक मात्र परमेश्वर है और होली बाइबिल ही दुनियां में मात्र एक पवित्र किताब है !!! बाइबिल में लिखा एक एक वाक्य सत्य है वह परमेश्वर का आदेश है।
परमेश्वर ने ही पृथ्वी बनाई है !!!
2. क्रिश्चियनिटी में ज्ञान है जबकि हिन्दुओं के धर्म ग्रंथों में केवल अंधविश्वास है !!!
3. क्रिश्चियनिटी में समानता है, जातिगत भेदभाव नहीं है जबकि हिंदुओं में जातिप्रथा है !!!
4. क्रिश्चियनिटी में महिलाओं को पुरुषों के समान बराबर सम्मान है जबकि हिन्दुओं में लेडीज का रेस्पेक्ट नही है, हिन्दू धर्म में लेडिज़ के साथ सेक्सुअल हरासमेंट ज्यादा है !!!
5. क्रिस्चियन कभी भी किसी को धर्म के नाम पर नही मारते जबकि हिन्दू लोग धर्म के नाम पर हिंसा करते हैं, बलात्कार करते हैं, हिन्दू बहुत अत्याचारी होते हैं !!!
6. हिंदुओ में नंगे बाबा घूमते हैं सबसे बेशर्म धर्म है हिन्दू !!!
अब मेरी बारी थी रेलने की,, तो मैंने कहना शुरु किया की पादरी जी मैं आपको बताना चाहता हूँ कि,

1. जैसा आपने कहा की परमेश्वर ने पृथ्वी बनाई है और बाईबल में एक एक वाक्य सत्य लिखा है और वह पवित्र है,,, तो बाईबल के अनुसार पृथ्वी की उत्त्पति ईशा के जन्म से 4004 वर्ष पहले हुई अर्थात बाइबिल के अनुसार अभी तक पृथ्वी की उम्र 6020 वर्ष हुई जबकि साइंस के अनुसार (कॉस्मोलॉजि) पृथ्वी 4.8 बिलियन वर्ष की है जो आपके बाइबिल में बतायी हुई वर्ष से बहुत ज़्यादा है,, क्या आप इसका खंडन करते हैं ???
अर्थात बाइबिल का पहला अध्याय ही बाइबिल को झूठा घोषित कर रहा है यानि आपकी बाइबिल एक फ़िक्शन बुक है जो वास्तव में झूठी कहानियों का संग्रह है !!!
जब बाइबिल ही असत्य है तो आपके परमेश्वर का कोई अस्तित्व ही नही बचता !!!
2. आपने कहा की क्रिश्चियनिटी में ज्ञान है तो आपको बता दूं कि क्रिश्चियनिटी में ज्ञान नाम का कोई शब्द ही नहीं है,,, याद करो जब "ब्रूनो" ने कहा था कि पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है तो चर्च ने ब्रूनो को 'बाइबिल' को झूठा साबित करने के आरोप में जिन्दा जला दिया था और गैलीलियो को इस लिए अंधा कर दिया गया क्योंकि उसने कहा था कि "पृथ्वी के आलावा और भी ग्रह हैं" जो बाइबिल के विरुद्ध था !!!

अब आता हूं हिंदुत्व पर, तो पादरी महाशय हिंदुत्व के अनुसार पृथ्वी की उम्र ब्रह्मा के एक दिन और एक रात के बराबर है जो लगभग 1.97 बिलियन वर्ष है जो पश्चिमी देशों के साइंस के बताये हुए समय के बराबर है और विज्ञान के अनुसार ग्रह नक्षत्र तारे और उनका परिभ्रमण हिंदुओं के ज्योतिष विज्ञान पर आधारित है, हिन्दू ग्रंथों के अनुसार 9 ग्रहों की जीवनगाथा वैदिक काल में ही बता दी गयी थी। ऐसे ज्ञान देने वाले ऋषियों, संतो को हिन्दुओं ने भगवान के समान पूजा है नाकि जिन्दा जलाया या अंधा किया !!!
केवल हिन्दू धर्म ही ऐसा है जो ज्ञान और गुरु को भगवान से भी ज़्यादा पूज्य मानता है !!!
"गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवोमहेश्वरः
गुरुर्साक्षात परब्रह्म तस्मै श्रीगुरुवे नमः।। कह चरणवंदना करता है !!!

और सुनो पादरी जी दुनियां में केवल हिन्दू ही ऐसा है जो ब्रह्मांड और कण कण में ईश्वर देखता है, "अखंडमंडलाकारम् व्याप्तम् येंन चराचरम्" और ख़ुद को "अह्मब्रह्मस्मि" बोल सकता है,, इतनी स्वतंत्रता केवल हिन्दू धर्म में ही है !!!
3. आपने कहा की 'क्रिश्चियनिटी में समानता है जातिगत भेदभाव नही है तो आपको बता दूं कि,
क्रिश्चियनिटी पहली शताब्दी में तीन भागों में बंटी हुई थी जैसे Jewish Christianity, Pauline Christianity, Gnostic Christianity. जो एक दूसरे के घोर विरोधी थे उनके मत भी अलग अलग थे,, फिर क्रिश्चियनिटी Protestant, Catholic Eastern Orthodoxy, Lutherans में विभाजित हुई जो एक दूसरे के दुश्मन थे, जिनमें  कुछ लोगों का मानना था कि "यीशु" फिर जिन्दा हुए थे तो कुछ कहते थे की यीशु फिर जीवित नही हुए, और कुछ ईसाई मतों का मानना है कि "जीसस को सैलिब पर लटकाया ही नही गया था" !!!
आज आपकी ईसाईयत हजार से अधिक भागों में बंटी हुई है, जो पूर्णतः रंग भेद (श्वेत,अश्वेत ) और जातिगत आधारित है आज भी पूरे विश्व में कनवर्टेड क्रिस्चियन का विवाह मात्र कनवर्टेड से ही होती है !!! झारखंड के कंनवर्टेड आदिवासी से रोमन कैथोलिक क्यों नहीं विवाह कर लेते हैं ???
आज भी अश्वेत क्रिस्चियन को गुलाम समझा जाता है !!!
पादरी जी भेदभाव में ईसाई सबसे आगे है,, हैम के वँशज के नाम पर अश्वेतों को ग़ुलाम बना रखा है !!!
4. आपने कहा की क्रिश्चियनिटी में महिलाओं को पुरुष के बराबर अधिकार है, तो बाईबल के प्रथम अध्याय में एक ही अपराध के लिये परमेश्वर ने ईव को आदम से ज्यादा दण्ड क्यों दिया ??? ईव के पेट को दर्द और बच्चे जनने का श्राप क्यों दिया, आदम को ये दर्द क्यों नही दिया अर्थात आपका परमेश्वर भी महिलाओं को पुरुषों के समान नही समझता है !!!
आपके ही बाइबिल में "लूत" ने अपनी ही दोनों बेटियों का बलात्कार किया और इब्राहीम ने अपनी पत्नी को अपनी बहन बनाकर मिस्र के फिरौन (राजा) को सैक्स के लिए दिया था !!!

आपकी ही क्रिश्चियनिटी ने पोप के कहने पर अब तक 50 लाख से अधिक निर्दोश महिलाओं को जिन्दा जला दिया। ये सारी रिपोर्ट आपकी ही BBC न्यूज़ में दी गयी है !!!
आपकी ही ईसाईयत में 17वीं शताब्दी तक महिलाओं को चर्च में बोलने का अधिकार नही था, महिलाओं की जगह प्रेयर गाने के लिए भी 15 साल से छोटे लड़को को नपुंसक बना दिया जाता था, उनके अंडकोष निकाल दिए जाते थे, महिलाओं की जगह उन बच्चों से प्रेयर करायी जाती थी !!!
BBC के सर्वे के अनुसार सभी धर्मो के धार्मिक सेवाधारी में सेक्सुअल केस में सबसे ज़्यादा "पोप और नन" ही एड्स से मरे हैं !!! पादरी जी क्या यही क्रिश्चियनिटी में नारी का सम्मान है ???

अब आपको हिंदुत्व की बात बताता हूं। दुनियाँ में केवल हिन्दू ही है जो कहता है "यत्र नारियस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता" अर्थात जहां नारी की पूजा होती है वहीं देवताओं का निवास होता है !!!
5. पादरी जी आपने कहा कि हम क्रिस्चियन धर्म के नाम पर किसी को नही मारते तो आपकी जानकारी को ठीक कर दूं कि हिटलर जो कैथोलिक परिवार में जन्मा उसने जीवनभर चर्च को फॉलो किया उसने अपनी आत्मकथा "MEIN KAMPF" में लिखा 'वो परमेश्वर को मानता है और परमेश्वर के आदेश से ही उसने 10 लाख यहूदियों को मारा है' हिटलर ने हर बार कहा की वो क्रिस्चियन है। चूँकि हिटलर द्वितीय विश्वयुद्ध का कारण था जिसमें सारे ईसाई देश एक दूसरे के विरुद्ध थे इसलिए आपके चर्च और पादरियों ने उसे कैथोलिक से निकाल कर Atheist(नास्तिक) में डाल दिया !!!
पादरी जी मैं इस्लाम का हितेषी नही हूँ लेकिन आपको बता दूँ क्रिस्चियनों ने सन् 1096 में ही "Crusade War" धर्म के आधार पर ही आरंभ किया था जिसमें पहला हमला क्रिस्चियन समुदाय ने मुसलमानों पर किया !!!
जिसमें लाखों मासूम मारे गए।
पादरी जी "आयरिश आर्मी" का इतिहास पढ़ो किस तरह कैथोलिकों ने धर्म के नाम पर नृशंस हत्या किया जो आज के isis से भी अधिक भयानक था।
धर्म के नाम पर हत्या करने में क्रिस्चियन मुसलमानों के समान ही हैं, वहीं आपने हिन्दुओं को बदनाम किया तो आपको बता दूँ की "हिन्दू ने कभी भी दूसरे धर्म वालों को मारने के लिए पहले हथियार नही उठाया है, बल्कि अपनी रक्षा के लिए हथियार उठाया है।
6. पादरी जी आपने कहा की हिन्दुओं में नंगे बाबा घूमते हैं "हिन्दू बेशर्म" हैं तो पास्टर आपको याद होगा की बाइबिल के अनुसार यीशु ने प्रकाशितवाक्य (Revelation) में कहा है की "nudity is best purity" नग्नता सबसे शुद्ध है !!!
यीशु कहता है की मेरे प्रेरितों अगर मुझसे मिलना है तो एक छोटे बच्चे की तरह नग्न हो कर मुझसे मिलो क्योंकि नग्नता में कोई लालच नही होता !!!
याद करो पास्टर महोदय, यूहन्ना का वचन 20:11-25 और लूका के वचन 24:13-43 क्या कहते नग्नता के बारे में ???
पादरी जी ईसाईयत में सबसे बड़ी प्रथा Bapistism है, जो बाइबिल के अनुसार येरुसलम की यरदन नदी में नग्न होकर ली जाती थी।
अभी इस वर्ष फ़रवरी में ही न्यूजीलैंड के 1800 लोगों ने जिसमे 1000 महिलाएं थी ने पूर्णतः नग्न होकर बपिस्टिसम लिया और आप कहते हो की हिन्दू बेशर्म है ???

अब चर्च के सभी लोग मुझ पर भड़क चुके थे और क्रोध में कह रहे थे आप यहाँ क्रिश्चियनिटी में कन्वर्ट होने नही आये हो आप फ़ादर से बहस करने आये हो, परमेश्वर आपको मांफ नही करेगा।

मैंने पादरी से कहा की यीशु ने कहा है "मेरे प्रेरितों मेरा प्रचार प्रसार करो" और जब आप यीशु का प्रचार करोगे तो आपसे प्रश्न भी पूछे जाएँगे आपको उत्तर देना होगा, मैं आपके यीशु के सामने बैठा हुआ हूं और वालंटियरली क्रिस्चियन बनने आया हूँ !!!
मुझे आप मात्र ज्ञान के सामर्थ्य पर क्रिस्चियन बना सकते है,, भ्रम के और धन के लालच में नही ???

अब पादरी महोदय ख़ामोश बैठा हुआ था, शायद सोच रहा होगा की आज किस से पाला पड़ गया !!!

मैंने फिर कहा पादरी जी आप यीशु के साथ गद्दारी नही कर सकते " आप यहां सिद्ध करके दिखाओ की ईसाईयत, हिंदुत्व से बेहतर कैसे है" ???

मैंने फिर कहा की पादरी जी ज़वाब दो आज आपसे ही उत्तर चाहिए क्योंकि आपके ये 30 ईसाई इतने सामर्थ्यवान नही है की ये हिन्दू के प्रश्नों का उत्तर दे सकें ???
पादरी अभी भी शांत था, मैंने कहा पादरी जी अभी तो मैंने शास्त्र खोले भी नही है शास्त्रों के ज्ञान के सामने आपकी बाइबिल शून्य के समान है ???

अब पादरी ने बहुत सोच समझकर रविश स्टाइल में मुझसे पूछा 'आप किस जाति से हो' ???
मैंने भी चाणक्य स्टाइल में ज़वाब दे दिया ,
"ज्ञान में मैं ब्राह्मण हूँ, रणभूमि पर क्षत्रिय, व्यापार में वैश्य और सेवा करने में शूद्र हूं,, अतः मैं "हिन्दू हूं"

अब चर्च में बहुत शोर हो चुका था मेरे जूनियर बहुत खुश थे बाकि सभी ईसाई मुझ पर नाराज, लेकिन करते भी क्या मैने उनकी हर बात को काटने के लिए बाइबिल को ही आधार बना रखा था और हर बात पर बाइबिल को ही ख़ारिज कर रहा था !!!

मैंने पादरी जी से कहा मेरे ऊपर ये जाति वाला मन्त्र ना फूँके, आप सिर्फ़ मेरे सवालों का ज़वाब दें !!!

अब मैंने उन परिवारों को जो कन्वर्ट होने के लिए आये थे, कहा "क्या आप लोगों को पता है कि वेटिकन सिटी एक हिन्दू से क्रिस्चियन कन्वर्ट करने के लिए मिनिमम 2 लाख रुपये देती है, जिसमें से आपको 1लाख या 50 हज़ार दिया जाता है बाकि में 20 से 30 हज़ार तक आपको कन्वर्ट करने के लिए चर्च लेकर आने वाले आदमी को दिया जाता है बाकि का 1 लाख चर्च रखता है !!!
जब आप कन्वर्ट हो जाते हो तब आपको परमेश्वर के नाम पर डराया जाता है फिर आपको हर सन्डे चर्च आना पड़ता है और हर महीने अपनी पॉकेट मनी या फिक्स डिपाजिट चर्च को डिपॉजिट करना पड़ता है, आपको 1 लाख देकर चर्च आपसे कम से कम दस लाख वसूल करता है, अगर आपके पास पैसा नही होता तो आपको परमेश्वर के नाम से डराकर आपकी जमीन किसी क्रिस्चियन ट्रस्ट के नाम पर डोनेट(दान) करा ली जाती है,

अब आप मेरे सीनियर को ही देख लो, इन्होंने कन्वर्ट होने के लिए 1 लाख लिया था लेकिन 4 साल से हर महीने 15 हज़ार चर्च को डिपाजिट कर रहे हैं, अभी भी वक्त है सोच लो ???
आप सभी को बता दूँ की एक सरकारी रिपोर्ट के अनुसार भारत में धार्मिक आधार पर सबसे ज़्यादा जमीन क्रिस्चियन ट्रस्टों के पास हैं, जिन्हें आप जैसे मासूम कन्वर्ट होने वालो से परमेश्वर के नाम पर डरा कर हड़प लिया गया है !!!

मेरा इतना कहते ही सारे क्रिस्चियन भड़क चुके थे तभी यहां का लोकल पादरी ने गोआ वाले पादरी से कहा की 11बज चुके हैं चर्च बन्द करने का समय है।

मैंने पादरी जी से कहा की आपने मेरे सवालों का उत्तर नही दिया मैं आपसे बाइबिल पर चर्चा करने आया था,,, आप जो पैसे लेकर कन्वर्ट करते हो वो बाईबल में सख्त मना है याद करो गेहजी, यहूदा इस्तविको का हस्र जिसनें धर्म में लालच किया। जिस तरह परमेश्वर ने उन्हें मारा ठीक उसी तरह आपका ही परमेश्वर आपको मारेगा, आप में से किसी भी क्रिस्चियन को जो पैसे लेकर कन्वर्ट हुआ फ़िरदौस (यीशु का राज्य) में प्रवेश नही मिलेगा !!!

अब चर्च बंद होने का समय हो चुका था मैंने जाते जाते पादरी जी को "थ्री इडियट" स्टाइल में कहा " फिर से बाईबल पढ़ो समझों, और जहाँ समझ ना आये तो मुझे फ़ोन करके पूछ लेना,, क्योंकि मैं अपने कमज़ोर स्टूडेंट का हाथ कभी नही छोड़ता !!!
आते आते मैं सारे क्रिस्चियनों को बोल आया की "मेरे क्रिस्चियन भाइयों अपने वेटिकन वाले आकाओं को बता दो की भारत से ईसाईयत का बोरिया बिस्तर उठाने का समय आ गया है उन्हें बोल दो अब भारत में हिन्दू जाग चूका है अब हिन्दू ने भी शस्त्र के साथ शास्त्र उठा लिया है जितना जल्दी हो यहाँ से कट लो" !!!

#राकेश_गुरखा

जय श्री राम,, जय हिन्द