Thursday, July 28, 2016

नैसर्गिक प्रसव से भारत निर्माण (भाग - 1)

आने वाली पीढियों के हित में अत्यंत महत्वपूर्ण जानकारी
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जिस भारत में माताए अपनी सोच के अनुरूप बच्चे पैदा करती थी आज वही भारत है जहाँ बच्चो को गर्भ में ही Antibiotics देकर उनकी प्रतिरोधक क्षमता को विकसित नहीं होने दिया जाता I प्रसव के बाद भी यही क्रम चलता रहता है I ऐसे में बुद्धिशाली बच्चे देश को कैसे मिलेंगे? ऐसे में गव्यसिद्धो की देखरेख में देश की साहसी बेटियों ने नैसर्गिक (Natural) गर्भधारण से लेकर नैसर्गिक प्रसव और नैसर्गिक बालपालन को प्रमुखता के साथ लिया है
गर्भधारण और प्रसव की क्रिया सृष्टि की नैसर्गिक क्रिया है सभी जीव इन क्रियाओ को अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए करते है I यह प्रजनन क्रिया है मनोरंजन की नहीं I इस सृष्टि को मनुष्य को छोड़ कर कोई भी इस प्रजनन क्रिया को मनोरंजन नहीं समझता I
भारत भी ऐसा नहीं था लेकिन जैसे जैसे भारत पर यूरोपीय कुसंस्कृति का प्रभाव पड़ता गया भारत भी इस प्रजनन की नैसर्गिक क्रिया को मनोरंजन मान कर यौन सिद्धांतो को बदल रहा है I जब से इस गति से ऐसा हुआ है भारत में बांझपन बढ़ा है I बच्चे निक्कमे और नालायक पैदा हो रहे है I इससे बच्चो का न केवल चरित्र बिगड़ता है बल्कि शरीर भी बिगड़ रहा है I ऐसे बच्चे बड़े होकर अपनी कमाई अस्पताल में फूंकते है I ऐसे बीमार राष्ट्र समाज और परिवार के लिए बोझ बनकर किसी के लिए कुछ नहीं कर पाते I वो दिन दूर नहीं जब "Sex for Entertainment" भारत को गर्त में डुबो देगा या कहे को डूबना शुरू हो चूका है
इस दर्द ने हमे प्रेरित किया की भारती पुराणों से प्रजनन और गर्भधारण के सूत्रों पर कार्य किया जाये I इसके लिए भारत की उन बेटियों को जगाया और इस कार्य के लिए तैयार किया गया जिस जब वह गर्भधारण करें तो उनके गर्भ से वीर, क्रन्तिकारी और ऋषि तुल्य बालक पैदा हो I यह तभी संभव है जब फिर से यौन क्रिया को मात्र प्रजनन के रूप में देखा जाये और गर्भधारण एक नियोजित योजना के अनुरूप हो, भूल चूक से ठहरा गर्भ न हो I
इन विषयो पर विचार करे हुए अपने गव्यसिद्ध परिवार और उनके संपर्क के पचास से अधिक बहनों ने ऐसा संकल्प लिए और स्वयं को इस कार्य के लिए तैयार कर लिया
१. गर्भधारण कने के लिए अपने शरीर को तैयार किया I
२. योजनागत रूप से गर्भधारण किया I
३. गर्भ में भ्रूण का पोषण गोमाता के गव्यो की सहायता से किया I
४. कभी भी अपने शरीर पर antibiotics का प्रयोग नहीं किया I
५. बताये गए मानदंडो के आधार पर ही गोमाता का दूध, मूत्रं, दही और घृत का उपयोग किया I
६. जब प्रसव पीड़ा आरम्भ हुई तब भी एंटीबायोटिक का सहारा नहीं लिया I गोबर रस की सहायता से नैसर्गिक प्रसव हुए I
७. बच्चो के जन्म के बाद ऋग्वेद के एक सूक्त का पालन किया जिसके अनुसार कहा गया
"गावो सोमस्य प्रथमस्य भक्ष्य"
अर्थात गोमाता के गव्य (दूध, दही, मूत्र, गोरस, घृत) सरल है, चन्द्रमा की चांदनी की भाँती सहज है उन्हें माँ के गर्भ से निकले शिशु को माँ के दूध से पहले इस धरती पर प्रथम भक्ष्य (खाने योग्य) के रूप में दे सकते है I उन सभी बच्चो को हमे वैदिक विधि से तैयार किये गए पंचगव्य का सेवन करवाया I
आज ये बच्चे छ: महीने से लेकर डेढ़ साल तक के है I इन सभी बच्चो की बुद्धि अद्भुत है शरीर में बल की कमी नहीं है और अपने आस-पास के लोगो के साथ व्यवहार भी सहज है उदहारण के रूप में ऐसे बच्चो और उनके माता पिता का संक्षिप्त विवरण उन्ही के शब्दों में यहाँ दिया जा रहा है
उदहारण 1
(श्रीमती मंजू शर्मा, कर्णाटक)
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मैं, मंजू शर्मा मूलतः हुबली, कर्णाटक से हूँ सौभाग्य से मेरा विवाह ऐसे परिवार में हुआ जिसके प्रताप से मुझे महर्षि वाग्भट गोशाला एवं पंचगव्य अनुसन्धान केंद्र (कांचीपुरम) में विवाह के बाद से ही सेवा का मौका मिला I मेरे तीन बच्चे है पहली बेटी 5 वर्ष की, दूसरी बेटी 3 वर्ष की, और तीसरा बेटा डेढ़ वर्ष का I मेरे तीनो बच्चे गर्भधारण के उपरांत नैसर्गिक प्रसव से ही हुए है I गर्भधारण से लेकर आज तक मैंने एलॉपथी की कोई औषधि नहीं खायी न प्रसव के दौरान या बाद में कोई टीकाकरण करवाया I मेरे बेटे पंचगव्य शर्मा का जन्म तो गोशाला परिसर में पेड़ के निईचे ही सरल रूप में हो गया I वेदना उतनी ही हुई जितनी मैं झेल सकती थी I आज भी मेरे बच्चो को कोई समस्या होती है तो मैं उन्हें केवल पंचगव्य ही देता हूँ I मेरी बड़ी बेटी दो साल की आयु से ही रसोइ में मेरा साथ देती है आटा गूंथना, रोटी बेलना, पकाना और परोसने तक I घर की किसी वस्तु को आज तक नहीं तोडा I छोटी बेटी भी इतनी ही समझदार है वह भी घर के कार्य में मेरा सहयोग करती है और संभाल कर चीजों को रखती है किसी भी पाठ को दोबारा पढने की आवश्यकता नहीं पड़ती I मेरा बेटा अधिक चंचल है लेकिन साहसी है एक वर्ष की आयु से घर के बिल्ली और कुत्तो के साथ खेलना बिना डरे खेल में उनके जबड़े खोलना उसका स्वभाव है I मेरे बच्चे कभी डरते नहीं कभी संकट में रोते नहीं I
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स्त्रोत :
महर्षि वाग्भट गोशाला एवं पंचगव्य अनुसन्धान केंद्र (कांचीपुरम) में गव्यसिद्धाचार्य निरंजन वर्मा जी की के द्वारा प्रकाशित
"गव्यसिद्ध"
अखिल भारतीय पंचगव्य चिकित्सक संघ का वार्षिक पत्र (2015)

नैसर्गिक प्रसव से भारत निर्माण (भाग - 2)

आने वाली पीढियों के हित में अत्यंत महत्वपूर्ण जानकारी
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उदहारण 2
भाई नितेश ओझा,
सांगली, महाराष्ट्र
जिस भारत में माताए अपनी सोच के अनुरूप बच्चे पैदा करती थी आज वही भारत है जहाँ बच्चो को गर्भ में ही Antibiotics देकर उनकी प्रतिरोधक क्षमता को विकसित नहीं होने दिया जाता I प्रसव के बाद भी यही क्रम चलता रहता है I ऐसे में बुद्धिशाली बच्चे देश को कैसे मिलेंगे? ऐसे में गव्यसिद्धो की देखरेख में देश की साहसी बेटियों ने नैसर्गिक (Natural) गर्भधारण से लेकर नैसर्गिक प्रसव और नैसर्गिक बालपालन को प्रमुखता के साथ लिया है
गर्भधारण और प्रसव की क्रिया सृष्टि की नैसर्गिक क्रिया है सभी जीव इन क्रियाओ को अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए करते है I यह प्रजनन क्रिया है मनोरंजन की नहीं I इस सृष्टि को मनुष्य को छोड़ कर कोई भी इस प्रजनन क्रिया को मनोरंजन नहीं समझता I
भारत भी ऐसा नहीं था लेकिन जैसे जैसे भारत पर यूरोपीय कुसंस्कृति का प्रभाव पड़ता गया भारत भी इस प्रजनन की नैसर्गिक क्रिया को मनोरंजन मान कर यौन सिद्धांतो को बदल रहा है I जब से इस गति से ऐसा हुआ है भारत में बांझपन बढ़ा है I बच्चे निक्कमे और नालायक पैदा हो रहे है I इससे बच्चो का न केवल चरित्र बिगड़ता है बल्कि शरीर भी बिगड़ रहा है I ऐसे बच्चे बड़े होकर अपनी कमाई अस्पताल में फूंकते है I ऐसे बीमार राष्ट्र समाज और परिवार के लिए बोझ बनकर किसी के लिए कुछ नहीं कर पाते I वो दिन दूर नहीं जब "Sex for Entertainment" भारत को गर्त में डुबो देगा या कहे को डूबना शुरू हो चूका है
इस दर्द ने हमे प्रेरित किया की भारती पुराणों से प्रजनन और गर्भधारण के सूत्रों पर कार्य किया जाये I इसके लिए भारत की उन बेटियों को जगाया और इस कार्य के लिए तैयार किया गया जिस जब वह गर्भधारण करें तो उनके गर्भ से वीर, क्रन्तिकारी और ऋषि तुल्य बालक पैदा हो I यह तभी संभव है जब फिर से यौन क्रिया को मात्र प्रजनन के रूप में देखा जाये और गर्भधारण एक नियोजित योजना के अनुरूप हो, भूल चूक से ठहरा गर्भ न हो I
इन विषयो पर विचार करे हुए अपने गव्यसिद्ध परिवार और उनके संपर्क के पचास से अधिक बहनों ने ऐसा संकल्प लिए और स्वयं को इस कार्य के लिए तैयार कर लिया
१. गर्भधारण कने के लिए अपने शरीर को तैयार किया I
२. योजनागत रूप से गर्भधारण किया I
३. गर्भ में भ्रूण का पोषण गोमाता के गव्यो की सहायता से किया I
४. कभी भी अपने शरीर पर antibiotics का प्रयोग नहीं किया I
५. बताये गए मानदंडो के आधार पर ही गोमाता का दूध, मूत्रं, दही और घृत का उपयोग किया I
६. जब प्रसव पीड़ा आरम्भ हुई तब भी एंटीबायोटिक का सहारा नहीं लिया I गोबर रस की सहायता से नैसर्गिक प्रसव हुए I
७. बच्चो के जन्म के बाद ऋग्वेद के एक सूक्त का पालन किया जिसके अनुसार कहा गया
"गावो सोमस्य प्रथमस्य भक्ष्य"
अर्थात गोमाता के गव्य (दूध, दही, मूत्र, गोरस, घृत) सरल है, चन्द्रमा की चांदनी की भाँती सहज है उन्हें माँ के गर्भ से निकले शिशु को माँ के दूध से पहले इस धरती पर प्रथम भक्ष्य (खाने योग्य) के रूप में दे सकते है I उन सभी बच्चो को हमे वैदिक विधि से तैयार किये गए पंचगव्य का सेवन करवाया I
आज ये बच्चे छ: महीने से लेकर डेढ़ साल तक के है I इन सभी बच्चो की बुद्धि अद्भुत है शरीर में बल की कमी नहीं है और अपने आस-पास के लोगो के साथ व्यवहार भी सहज है उदहारण के रूप में ऐसे बच्चो और उनके माता पिता का संक्षिप्त विवरण उन्ही के शब्दों में यहाँ दिया जा रहा है
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उदहारण 2
भाई नितेश ओझा,
सांगली, महाराष्ट्र
वर्ष २०१३ के नवम्बर में चेन्नई में हुए महासम्मेंलन के पहले में और मेरी पत्नी ने नेसर्गिक गर्भधारण और प्रसूति का निर्णय ले चुके थे .
उसी के अनुसार सभी नियमो का पालन कर गर्भधारण हुई | जेसे ही गर्भधारण हो गया . यह खबर मेरे घर में पता चली तब सभी ने मेरी पत्नी को शुभकामनाये देते हुए तुरंत हॉस्पिटल से गर्भ का वजन एवं प्रकृति ठीक हैं या नहीं आदि डॉक्टर से सलाह कर मेडिसिन लेने के लिए कहा गया | परन्तु हमारा निश्चय दृढ था की एलोपेथी नहीं लेंगे जब यह निर्णय घर पर बताया तो विरोध हुआ और फिर मैंने उन्हें समझाने की पूरी कोशिश की |
अंत में तय हुआ की सिर्फ एलोपैथी से जाँच कराएँगे | सब कुछ ठीक चल रहा था. लेकिन एलोपैथी के डॉक्टर द्वारा लिखे गए रिपोर्ट जब आता उसमे बच्चे का वजन कम कहा जाता | और अंग्रजी दवाई लिखी जाती | लेकिन मैंने कभी भी कोई दवाई नहीं दी और डॉक्टर को भी नहीं बतलाया |
ऐसे ही सिलसिला चल रहा था , तब अचानक ५ वे महीने में उस डॉक्टर ने एक डरावनी बात कह दी की गर्भ का वजन जरुरत से ज्यादा कम हैं और बहुत तकलीफ हैं | आपको तुरंत गर्भ खाली करवाना पड़ेगा, हमारे सभी घरवाले डर गए , इस मुस्किल समय में मैं अपनी पत्नी के साथ नहीं था , पर मैंने फ़ोन पर तुरंत दूसरा ओपिनियन लेने के लिए कहा | मैं जल्दी सांगली पंहुचा , दुसरे डॉक्टर के पास गए और उसने पुनः सोनोग्राफी करवाई तो उसने कहा की गर्भपात की कोई जरुर नहीं हैं | सब ठेक हैं और केवल खून की अल्पता हैं | लेकिन मुझे और मेरी पत्नी को गौ माता पर पूरा भरोसा था |
शुरू से लेकर पूर्ण विधि से पंचगव्य का सेवन चल रहा था , इसलिए मुझे पक्का विश्वास था की ऐसा कुछ नहीं हे | यह सब एलोपैथी के डॉक्टरों दवारा केवल डराया जा रहा हैं | इसी प्रकार हमने ९ महीने में ५ डॉक्टर जांच हेतु बदले |

मेरी पत्नी ने गर्भाधान के तुरंत बाद से रात्रि को गोदुग्ध का सेवन शुरू कर दिया था | और तीसरे महीने से गोमूत्र अर्क और घन्वटी का सेवन किया |
उन्ही दिनों सुबह छाछ का सेवन शुरू कर दिया था | छठे महीने से चांदी के कटोरे में दही जमाकर खाया | और ६.५ महीने बाद १५ दिन तक गोदुग्ध के साथ केसर का भी सेवन कराया |
उसके बाद प्रसूति तक लगभग २ किलो देशी गाय का घी तीन महीने में खिलाया | प्रत्येक रात्रि दूध के साथ २ चमच घी और कुछ समय के लिए घी - दूध -हल्दी के सूत्र को लगाया |
पुरे गर्भधारण से लेकर प्रसूति तक किसी भी प्रकार की एलोपैथी दवा का प्रयोग नहीं किया गया |
न ही सरकार की आयरन और केल्सियम की गोली खायी| जबकि आखरी समय २२ नवम्बर २०१४ के अनुसार मेरी पत्नी के गर्भ में पानी की कमी हैं . रक्त में इन्फेक्शन हैं और बच्चे की नाल गले में फस गयी हैं ऐसा रिपोर्ट दिया गया था |
उसके हिसाब से प्रिस्क्रिप्शन भी लिख कर दिया था | और २८ नवम्बर को जब मेरी पत्नी केवल बच्चे की सांस की गति देखने तब नर्स ने उसे तुरंत एडमिट किया और डॉक्टर से फ़ोन पर बात करायी की तुरंत सीजर ऑपरेशन करना पड़ेगा | मुझे जैसे ही इस बात का पता चला मैंने दुबारा जांच कराना चाहां | पर डॉक्टर ने २०१४ की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा के माँ के गर्भा में पानी की कमी हैं. रक्त में इन्फेक्शन हैं ओए बच्चे की नाल गले में फँस गयी हैं और नेसर्गिक प्रसूति का जो समय हे उससे हम केवल ९ दिन पहले सिजर करेंगे |
बच्चे और माँ को कोई तकलीफ नहीं होगी बच्चा अब पूरी तरह से तेयार हैं | फिर मैंने उस डॉक्टर से पुछा की आपके पास माँ के गर्भ में पानी की कमी हैं उसे संतुलित करने की कोई ओषधि हैं? तो उसने हताश होकर कहा हमारे पास इसकी कोई ओष्दी नहीं हैं कोई रास्ता नहीं है और इसके लिए सीजर के आलावा और कोई रास्ता नहीं हैं फिर मैंने उस डॉक्टर को बताया की मैंने शुरू से ही पूर्ण पंचगव्य से ओषधि दी हैं |
मुझे पूरा भरोसा हैं की इसकी स्थिति सामान्य हैं इसीके के साथं मैंने उसने कहा की मैं प्रसव के लिए ऑपरेशन नहीं कराना चाहता | मैने उसी दिन उसी दिन डायग्नोसिस सेन्टर जा कर सोनोग्राफी कराया जिसमे सब कुछ सामान्य था | तुरंत रिपोर्ट लेकर उस डॉक्टर को बताया फिर उसी डॉक्टर ने नेसरगिक प्रसूति दर्द शुरू होने या उससे पहले आने को कहा | नेसरगिक प्रसूति का दिन ७ अक्टूबर २०१४ था | मेरा मन प्रसूति घर में ही कराने का था लेकिन घरवालो ओइर आस पड़ोस के लोगो के दवाब के कारन ऐसा नहीं कर पाया |
इस प्रकार गर्भधारण और पंचगव्य से मेरी पत्नी को ६ अक्टूबर २०१४ को हल्का प्रसूति दर्द हुआ | उन्हें हॉस्पिटल ले गए मेरे सभी घरवालो ने उसका दर्द देखकर डॉक्टर से खा की आप सीजर कर सकते हैं | पर मैंने नेसर्गिक प्रसूति तक इंतजार करने के लिए कहा | इसी दौरान गोशाला से ताज़ा गोबर का रस मंगवाया और हर आधे घंटे बाद दिया | कुछ ही समय में 7 अक्टूबर 2014 को पुत्र पैदा हुआ | सो प्रतिशत नैसर्गिक प्रसूति |आज तक किसी प्रकार के टीके नहीं लगवाए है इसी प्रकार देश में सभी अगर नैसिर्गिक प्रसूति में का निश्चय कर ले देश में क्रांति आ सकती है
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स्त्रोत :
महर्षि वाग्भट गोशाला एवं पंचगव्य अनुसन्धान केंद्र (कांचीपुरम) में गव्यसिद्धाचार्य निरंजन वर्मा जी की के द्वारा प्रकाशित
"गव्यसिद्ध"
अखिल भारतीय पंचगव्य चिकित्सक संघ का वार्षिक पत्र (2015)

महिलाओ की बराबरी पुरुषो से क्यों?

महिलाओ की बराबरी पुरुषो से क्यों?
एक महिला और मेरे बीच हुई वार्तालाप
चौंकिए मत! मैंने यह प्रश्न बहुत सोच समझ कर और महिलाओ के हित में पुछा है
Feminist अर्थात नारीवादी जो बात बात पर उछल पड़ते है उनको भी थोडा दिमाग लगाना होगा
पिछले 50 वर्षो से इस विचार की भूमिका तैयार की गयी और पिछले 25 वर्षो से मूरत रूप दिया गया
भजन, भोजन धन और नारी परदे में ही शोभा पाते है अर्थात इन तीनो का आदर-सम्मान और मर्यादा घर में रहने से ही बढती है
भगवान द्वारा जब इस संसार में स्त्री पुरूष को भेजा जाता है तब उसके जीवन में चार महत्वपूर्ण कार्य होते है जिन्हे की परदे के अंदर अर्थात् पूर्ण सम्मान व आदर पूर्वक किया जाए तभी उसके सार्थक परिणाम प्राप्त होते है।
इन चार कार्यो में प्रथम कार्य भजन जिसे की गौमुख माला के अंदर किया जाए, द्वितीय भोजन जिसे की रसोईघर में बैठकर किया जाए तभी यह रूचिकर व स्वास्थ्य वर्धक होता है, तृतीय धन जिसे की सुरक्षित रखकर उचित एवं उपयोगी व्यय किया जाए तभी इसकी सार्थकता पूर्ण होती है
एवं नारी जो की इस संसार की शक्ति रचयिता है जब परदे के अंदर लोक लज्जा के साथ घर परिवार का सम्मान करती हुई रहती है तभी इन चारों चीजों को उचित प्रतिफल एवं उपयोग प्राप्त होता है।
परन्तु आज यह सब उल्टा हो गया है और सब खुले में हो रहा है
क्या कहना चाहता हूँ मैं?
तो अब एक महिला और मेरे बीच हुए वार्तालाप को ध्यान से पढ़िए जो मुझे एक सप्ताह लगा इस रूप में आपके समक्ष लाने में
(चेतावनी : महिला हो या पुरुष सभी कुतर्कियो और अभद्र भाषा लिखने वालो की टिपण्णी बिना चेतावनी हटा दी जायेगी इसीलिए जो भी कहना हो मर्यादा में रहकर और विवेकपूर्ण तर्क के साथ और अगर नहीं तो इस पोस्ट को अनदेखा करना ही बेहतर होगा)
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महिला: महिलाओ को पुरुषो के सामान अधिकार देने में आपको क्या परेशानी है?
मैं : बहुत परेशानी है हमे क्योंकि महिलाओ को पुरुषो के समान बनाने का एक भयानक षड्यंत्र चलाया जा रहा है
जिस महिला का स्थान भारत में पूजनीय होता था और यहाँ तक की कह दिया गया कि
जहाँ नारी का वास है वह देवताओ का आशीर्वाद बना रहता है
अर्थात नारी का स्थान पुरुषो से नीचे नहीं था अपितु बहुत ऊँचा था और वह नारी प्रगति के नाम पर, पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव में आकर, फिल्म और टीवी में पैसा लेकर कुछ भी नाटक करने वाले लोगो को अपना आदर्श मानकर, स्वयं को आत्मनिर्भर बनाने की दौड़ में परिवार से दूर होकर स्वयं को स्वतंत्र मानकर अपने आप को पुरुष के स्तर तक लाकर क्या ठीक कर रही है?
पुरुषो की तरह बात करना, आचरण करना और वेश भूषा पुरुषो जैसी पहनना तो पतन का प्रतीक है
व्यसनों में फसकर धुम्रपान, शराब, अभद्र शब्दों का प्रयोग करना, आदि नारी को शोभा नहीं देती
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प्रश्न: तो क्या यह सब पुरुषो को करने की छूट है लेकिन महिलाओ को नहीं यह भेदभाव् तो ठीक नहीं? सभी नियम महिलाओ के लिए ही क्यों?
उत्तर: यह तो किसी ने नहीं कहा की पुरुषो को छूट है यह सब व्यसन और बुरी आदत सभी के लिए खराब है
हमारे समाज में अकेले पुरुषो का सम्मान गृहस्थ पुरुष से कम होता है इसीलिए प्राचीन काल में सभी महर्षि गृहस्थ होते थे
एक नारी ही पुरुष को पूरा करती है
अपने संस्कारो से और सृष्टि की रचना करने की शक्ति के कारण उसे घर की लक्ष्मी कहा गया है अर्थात देवी का रूप
देवी अगर पुरुष के अवगुणों को दूर न करें और स्वयं अवगुण धारण कर ले तो वह पूज्य नहीं रहती
स्वयं को ऊँचा समझ कर एक आदर्श स्थापित करना ही स्त्री का परम कर्तव्य रहा है इसीलिए नियम महिलाओ को पालन करना होगा
अगर नारी में सद्गुण नहीं होंगे तो आने वाली संतान जिसपर माँ का सबसे अधिक प्रभाव पड़ता है धीरे धीरे पीढ़ी दर पीढ़ी कमज़ोर होती जाएगी और हजारो वर्षो से महापुरुषों को जन्म देती नारी अपने अवगुणों के कारण विनाशकारी पीढ़ी को जन्म देगी जो सृष्टि पर संकट ला देगी
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प्रश्न: आपके इन तर्कों के कारण महिलाये भारत में हमेशा से शोषित और दबा कर रखी गयी है
उत्तर: यह केवल एक भ्रम है जो फिल्मो द्वारा और मीडिया द्वारा प्रचरित किया गया है भारत में कुछ जान बूझकर उछाले गए मामले छोड़ दिए जाये तो हजारो सालो से महिला को देवतुल्य स्थान भारत में दिया गया है वास्तविक नारी का शोषण तो यूरोप में होता आया है जिस संस्कृति का अनुसरण आज हमारे यहाँ की स्त्रियों कर स्वयं को ऊँचा मानती है
यूरोप के तथाकथित महान दार्शनिको के अनुसार स्त्री का महत्त्व घर में पड़े फर्नीचर से अधिक कुछ नहीं था वहां नारी को भोग की वस्तु के अलावा कुछ नहीं समझा गया किसी अदालत में उनकी गवाही को पुरुष से कम महत्त्व दिया जाता है अगर आपको विश्वाश नहीं होता तो स्वयं इसको इन्टरनेट पर ढूंढ सकते है
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प्रश्न: तो आपके अनुसार महिलाओ को पढ़ लिखकर आत्मनिर्भर होकर अपने पैरो पर खड़ा नहीं होना चाहिए?
उत्तर: आपके कहने का अर्थ है की 21वी सदी की तथाकथित मॉडर्न नारी से पहले की नारी आत्मनिर्भर नहीं थी अपने पैरो पर खड़ी नहीं थी
आपके इस प्रश्न को बल देते हुए कहना चाहूँगा की अगर मैं 1980 तक की भी बात करू तो हमारी गाँव की महिलाये शहर की पढ़ी लिखी महिलाओ से कही अधिक कुशल थी और अपने पैरो पर नहीं बल्कि पूरे कुटुंब को अपने पैरो पर खड़ा कर सकने का सामर्थ्य रखती थी
इसका उदहारण देता हूँ :
पहले और आज भी गाँव में रात के 12 बजे भी अगर 10 मेहमान आ जाये तो घर की महिला उनके लिए रसोई में बिना आधुनिक सुविधा के यंत्रो के बिना आलस और प्रेम भाव से भोजन बना कर आतिथ्य करने की क्षमता रखती थी
यह कही सुनी बात नहीं है 1988 में दिल्ली में पलायन से पहले अलवर, राजस्थान के गाँव में हमारा मकान बन रहा था तो वहां मकान बनाने वाले कारीगर जो संख्या में 4-5 होते थे और जिनकी खुराक खूब होती थी उनके लिए नाश्ता और दोपहर का भोजन 6 महीने तक मेरी माँ स्वयं बनाती थी
वो भी तक जब आटा चक्की पर पीसना पड़ता था, चूल्हे लकड़ी या गोबर से जलते थे
लेकिन अगर शहर में 1 मेहमान भी घर में आ जाये और लगातार 2-3 दिन भी उसका आतिथ्य करना पड़ जाये तो मुसीबत टूट पड़ती है
एक और उदहारण देता हूँ:
आंध्र के गाँव में एक किसान खेत में रहता था और उसकी पत्नी को बच्चा होने वाला था एक दिन सुबह वो बाहर बैठा रो रहा था तो खेत में काम करने जा रही कुछ महिलाए उसे रोता देख पूछती है की क्या हुआ तो वो कहता है की पत्नी को बच्चा होने वाला है और घर पर कोई नहीं है
वो महिलाएं अपना काम छोड़कर बच्चा करवाने की तयारी में लग जाती है कोई पानी गर्म करने लगती है तो कोई किसी और काम में
और कुछ ही देर में बच्चा हो जाता है फिर एक बुज़ुर्ग महिला वहां रूककर देसी तरीके से उसकी देखभाल करती है और वो किसान अपने घर से किसी बड़े को लेकर आ जाता है
इस उदहारण से क्या साबित होता है बिना डिग्री बिना भय कितना सामर्थ्य था हमारी महिलाओ में और कितनी सहजता से ऐसी परिस्थिति को संभाल कर उन्होने कार्य किया
यह महिलाये साक्षर नहीं शिक्षित है
वही आज अगर शहर की साक्षर महिलाओ के सामने ऐसी परिस्थिति आ जाये तो वो कुछ नहीं कर पायेगी और मैं कहूँगा की आज से 20-25 वर्ष बाद तो हमारी महिलाओ का रहा सहा ज्ञान भी विलुप्त होने वाला है
क्योंकि बिना दिशा की साक्षरता के कारण वो पैसे कमाने के लिए पढ-लिख कर और केवल अपनी अनावश्यक जीवनशैली को चलने के लिए आत्मनिर्भर बन ऐसी कला सीख रही है जिसमे उनको सब कुछ रेडीमेड मिल जाये
जैसे आजकल बनी बनायीं रोटियां डिब्बाबंद होकर बिक रही है अब अगर यह आत्मनिर्भरता और शिक्षा है तो व्यर्थ है
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प्रश्न : बचपन पिता की, जवानी पति के और बुढ़ापा बच्चो की गुलामी में गुज़र जाता है फिर तो महिला का अपना कोई जीवन नहीं?
उत्तर: महिला का अपना जीवन परिवार और समाज के हित में समर्पित है क्योंकि वह सृष्टि की जननी है और उसमे जो स्वार्थवश केवल अपने बारे में सोचने की जो सोच पैदा कर दी गयी है वह विनाश का कारण है
आज जिस नारी के जीवन में परिवार और संतान का सुख नहीं है वो ऊपर से कितनी ही सफल और प्रसन्न होने का नाटक कर ले लेकिन जब तक विवाह के बाद एक अच्छा जीवनसाथी और संतान का सुख नहीं मिल जाता जीवन की सब सफलताये धरी की धरी रह जाती है
अर्थात जिस भोग विलासिता के जीवन और चकाचौंध में आज के स्त्री और पुरुषो को फंसा दिया गया है उस सब से मन भरने के बात परिवार और संतान ही याद आती है क्योंकि सृष्टि का वही नियम है
लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होती है और फिर IVF और कृत्रिम गर्भाधान की और भागना पड़ता है लेकिन उन उपायों से होने वाली संतान प्राकृतिक रूप से होने वाली संतानों के अपेक्षा हर प्रकार से कम ही सिद्ध होती है
जो नारी अनंत काल से खूंटे की तरह पूरे घर को बाँध कर, संभाल कर चलती है अगर आप उसे केवल स्वयं के बारे में सोचने वाली एक आत्मनिर्भर व्यक्ति बना देंगे तो क्या यह समाज जो इतने हज़ार वर्षो से कुटुंब के बल पर टिका रहा वो बिखर कर टुकड़े टुकड़े नहीं हो जायेगा
और मुझे दुःख है कि इसका आरम्भ हो भी गया है और हर तीसरे घर में पति-पत्नी के रिश्ते टूटने की कगार पर है या उसमे विश्वाश समाप्त हो गया है
और आपके प्रश्न के दूसरे हिस्से का उत्तर देना चाहूँगा की हजारो सालो से हमारे महान महर्षियो ने समाज के लिए एक व्यवस्था खड़ी की थी जिसमे परिवार और कुटुंब का प्रारूप बनाया गया और उसमे सबकी व्यवस्था बनायीं गयी जिसके केंद्र में देव तुल्य नारी का कल्याण करना ही था
उसी व्यवस्था में यह भी निश्चित किया गया की नारी का समाज में सम्मान और आदर मैसे बना रहे, जिस से वह अपने कर्तव्य पथ से न भटके और अनंत काल तक अच्छी एवं गुणवान संतान उत्पन्न हो और इसकी ज़िम्मेदारी नारी पर है तो उसके जीवन के हर पड़ाव पर एक संरक्षक को नियुक्त किया जाना आवश्यक था
पुत्री के रूप में:
- एक पिता का सबसे बड़ा धर्म है अपनी पुत्री का संरक्षण और पालन-पोषण कर संस्कारवान और गुणवान कन्या के रूप में एक योग्य वर ढूंढ कर विवाह कर देना लेकिन हमारा दुर्भाग्य की जिस देश में मेरे जैसे पिता अपनी पुत्री के रोज़ प्रातः चरण छुकर नमन करते है वहां की बेटियों को यह लगने लगा की पिता उनकी स्वतंत्रता में बाधा है और माता पिता भी आधुनिकता की दौड़ में बेटियों को सुसंस्कारों के स्थान पर अनावश्यक एवं विनाशकारी पतनकारक स्वतंत्रता दे बैठे.
अब नौकरी और उच्च शिक्षा के लिए घर से दूर अकेले रहने वाले लड़का या लड़की एक कुटुंब बनाकर कभी नहीं रहे सकते जहाँ माता पिता या सास ससुर की उपस्तिथि को वो बर्दाश्त कर सके
प्राइवेसी नाम का शब्द जो अमेरिका से जो सीख लिया है
पत्नी के रूप में :
- एक पिता योग्य वर को अपनी कन्यादान कर गंगा नहाता था अब सात वचन जो विवाह के समय लिए जाते है उनको अगर याद करें और अगर पालन करें तो किसी भी दम्पति के जीवन में कोई क्लेश न हो
एक कन्या 7 वचन लेकर ही सात फेरे पूरे करती है और जीवन भर अपनी रक्षा का वचन लेती है तो इसमें गुलामी वाली कोई बात नहीं
अपने पुत्री के वर को हमारे यहाँ बहुत ऊँचा माना जाता है क्योंकि एक पिता अपने घर की इज्ज़त उसे सौंपता है
और जब एक स्त्री बहू बनकर किसी घर में जाती है तो वहां उसका अधिकार उस घर की पुत्री से अधिक हो जाता है क्योंकि एक सास अपने बाद अपनी घर की ज़िम्मेदारी अपनी बेटी को नहीं बहू को सोंप कर जाती है क्योंकि बेटी प्यार है परन्तु बहू अधिकार है
अब परेशानी यहाँ है की सातो वचन तो दिखावे के लिए ले और दे दिए जाते है
अब पत्नी या पति फिल्मो और अन्य प्रकार के मीडिया में देख कर और प्रचारित नकली छवि को वास्तविक समझ अपने होने वाले पति और पत्नी की एक छवि बना लेता है विवाह के लिए वैसे ही एक तथाकथित Perfect जीवनसाथी की आशा मन में पाल लेता है
परन्तु जब वास्तविक वर या वधु उस छवि के आस पास नहीं होते तो निराश होकर जीवन को बोझ समझ ढोते है
परन्तु अगर सातो वचन निभा कर कोई भी दम्पति चले तो प्रेम और आदर की उसे जीवन भर कमी नहीं रह सकती
अगर पति आर्थिक रूप से कमज़ोर है तो पिता और माँ के दिए संस्कारो के कारण लक्ष्मी का स्वरुप बन कन्या किसी भी घर को मज़बूत बना सकती है
अगर संस्कार मिले है तो महिला अपने जीवनसाथी के साथ एक सुखी जीवन का निर्वाह करेगी न की स्वयं को गुलाम या कामवाली समझकर
माँ के रूप में:
अपनी संतान को जन्म देकर अच्छा संस्कार हर माँ देना चाहती है और अगर वही संतान बुढ़ापे में मातापिता की देखभाल करें और उनकी भलाई के लिए उनको कोई निर्देश दे तो उसे गुलामी समझना माँ की भूल है
क्योंकि विडम्बना है कि
माँ अपने बेटे से श्रवण कुमार होने की आशा करती है
वह अपने पति को श्रवण कुमार बनते नहीं देखना चाहती
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प्रश्न: तो आप चाहते है की महिला पढ़े लिखा नहीं, नौकरी ना करें और घर में बैठी रहे?
उत्तर: मेरी इस बात से बहुत सी प्रगतिशील महिलाओ को पीड़ा पहुचेगी लेकिन मैं उनको भी ठन्डे दिमाग से सोचने का निवेदन करूँगा
महिला नौकर बन कहीं नौकरी करें उस से नारी की शोभा घटती है और घर में बैठना नहीं है घर संभालना है और अगर पढना लिखना है तो तो वेद-पुराण, शास्त्र पढ़े और संतो की वाणी पढ़े
अंग्रेजी पढ़ लिख कर विदेशी कंपनियों का कचरा खरीदने का ही काम होने वाला है
अंग्रेजी एक भाषा है उसे उसी भावना से सीखे उसे भगवान् न बनाये
आज खुले बालो में अजीब वस्त्र पहन कर नौकरी करने निकलना पड़ता है इसका कारण उर्दू के इस शेर से समझ जाना जिसने मेरे जीवन को एक दिशा दी
"ज़िन्दगी ज़रुरतो के हिसाब से जिओ ख्वाहिशो के हिसाब से नहीं
क्योंकि ज़रूरतें फकीरों की भी पूरी हो जाती है और ख्वाहिशें बादशाहों की भी अधूरी रह जाती है "
अर्थात की घर की महिला को नौकरी अपनी और परिवार की इक्छाओ की पूर्ती के लिए करनी पड़ती है और शहरों में ज़रूरतें भी इतनी बढ़ गयी है की हर इक्छा भी ज़रूरत ही लगती है..
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प्रश्न: आपने खुले बालो की बात क्यों कही? अब इसमें क्या परेशानी है?
प्रश्न: तो फिर आप सती-प्रथा को भी समर्थन देते है?
प्रश्न: मासिक धर्म के समय महिलाओ के साथ अछूत सा व्यवहार क्यों?
प्रश्न: कुछ मंदिरों में महिलाओ के प्रवेश पर रोक क्यों?
प्रश्न: सुहाग की निशानी जैसे मंगल सूत्र और सिन्दूर हम ही क्यों लगाये पुरुष क्यों नहीं?
आदि कई अन्य प्रश्न भाग 2 में

पित्त एवं पित्त के प्रकार.....

पित्त से हमारा अभिप्राय हमारे शरीर की गर्मी से है। शरीर को गर्मी देने वाला तत्व ही पित्त कहलाता है। पित्त शरीर का पोषण करता हैं यह शरीर को बल देने वाला है। लारग्रंथि, अमाशय, अग्नाशय, लीवर व छोटी आँत से निकलने वाला रस भोजन को पचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। पित्त का शरीर में कितना महत्व है, इसे हम इस प्रकार समझ सकते हैं कि जब तक यह शरीर गर्म है तब तक यह जीवन है।
जब शरीर की गर्मी समाप्त हो जाती है अर्थात् शरीर ठण्डा हो जाता है तो उसे मृत घोषित कर दिया जाता है। कभी-कभी आप सुबह के समय, खाना न पचने पर यह किसी रोग की अवस्था में उल्टी करते समय जो हरे व पीले रंग का तरल पदार्थ मुँह के रास्ते बाहर आता है उसे हम पित्त कहते हैं।

शरीर में पित्त का निर्माण अग्नि तथा जल तत्व से हुआ है। जल इस अग्नि के साथ मिलकर इसकी तीव्रता को शरीर की जरूरत के अनुसार सन्तुलित करता है। पित्त अग्नि का दूसरा नाम है।
अग्नि के दो गुण विशेष होते हैः-
1. वस्तु को जला कर नष्ट कर देना
2. ऊर्जा देना।
प्रभु ने हमारे शरीर में इसे जल में धारण करवाया है जिस का अर्थ है कि पित्त की अतिरिक्त गर्मी को जल नियन्त्रित करके उसे शरीर ऊर्जा के रूप में प्रयोग में लाता है। यह स्वाद में खट्टा, कड़वा व कसैला होता है। इसका रंग नीला, हरा व पीला हो सकता है।
यह शरीर में तरल पदार्थ के रूप में पाया जाता है। यह वज़न में वात की अपेक्षा भारी तथा कफ की तुलना में हल्का होता है। पित्त यूं तो सम्पूर्ण शरीर के भिन्न-भिन्न भागों में रहता है लेकिन इसका मुख्य स्थान हृदय से नाभि तक है।
समय की दृष्टि से वर्ष के दौरान यह मई से सितम्बर तक तथा दिन में दोपहर के समय तथा भोजन पचने के दौरान पित्त अधिक मात्रा में बनता है। युवावस्था में शरीर में पित्त का निर्माण अधिक होता है।
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प्रकृतिः-
पित्त प्रधान व्यक्ति के मुँह का स्वाद कड़वा, जीभ व आंखों का रंग लाल,शरीर गर्म, पेशाब का रंग पीला होता है। ऐसे व्यक्ति को क्रोध अधिक आता है। उसे पसीना भी अधिक आएगा। कई बार ऐसा देखा गया है कि पित्त प्रधान व्यक्ति के बाल कम आयु में ही सफेद होने लगते हैं।
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कार्यः-
पित्त हमारे शरीर में निम्नलिखित कार्य करता हैः-
भोजन को पचाना।
नेत्र ज्योति।
त्वचा को कान्तियुक्त बनाना।
स्मृति तथा बुद्धि प्रदान करना।
भूख प्यास की अनुभूति करना।
मल को बाहर कर शरीर को निर्मल करना।
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लक्षणः-
युवावस्था में बाल सफेद होना।
नेत्र लाल या पीेले होना।
पेशाब का रंग लाल या पीला होना।
दस्त लगना।
नाखून पीले होना।
देह पीली होना।
नाक से रक्त बहना।
गर्म पेशाब आना।
पेशाब में जलन होना।
अधिक भूख लगना।
ठण्डी चीजें अच्छी लगना।
अधिक पसीना आना।
शरीर में फोड़े होना।
बेचैनी होना आदि।
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पित्त के कुपित होने के कारणः-
कड़वा, खट्टा, गर्म व जलन पैदा करने वाले भोजन का सेवन करना।
तीक्ष्ण द्रव्यों का सेवन करना। तला हुआ व अधिक मिर्च, मसालेदार भोजन करना।
अधिक परिश्रम करना। नशीले पदार्थों का सेवन करना। ज्यादा देर तक तेज धूप में रहना।
अधिक नमक का सेवन करना।
सन्तुलित पित्त जहाँ शरीर को बल व बुद्धि देता है, वहीं यदि इसका सन्तुलन बिगड़ जाए तो यह बहुत घातक सिद्ध होता है। कुपित पित्त से हमारे शरीर में कई प्रकार के रोग आते हैं।
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पित्त को हमारे शरीर में क्षेत्र व कार्य के आधार पर पाँच भागों में बाँटा गया है। ये इस प्रकार हैः-
पाचक पित्त
रंजक पित्त
साधक पित्त,
आलोचक पित्त
भ्राजक पित्त।

पित्त के इन सभी रूपों का शरीर में कार्य क्षेत्र अर्थात् ये कहाँ-कहाँ है, ये क्या कार्य करते हैं, इनके कुपित होने पर क्या रोग आते हैं, इनका उपचार कैसे सम्भव है, इन सब का विवरण नीचे दिया गया हैः-
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पाचक पित्तः-पाचक पित्त पंचअग्नियों (पाचक ग्रन्थियों) से निकलने वाले रसों का सम्मिश्रित रूप है। इसमें अग्नि तत्व की प्रधानता पायी जाती है। ये पाँच रस इस प्रकार हैः-
लार ग्रन्थियों से बनने वाला लाररस।
आमाशय में बनने वाला आमाशीय रस। अग्नाशय का स्त्राव। पित्ताशय से बनने वाला पित्त रस। आन्त्र रस।
पाचक पित्त पक्कवाशय और आमाशय के बीच रहता है। इसका मुख्य कार्य भोजन में मिलकर उसका शोषण करना है। यह भोजन को पचा कर पाचक रस व मल को अलग-अलग करता है।
यह पक्कवाशय में रहते हुए दूसरे पाचक रसों को शक्ति देता है। शरीर को गर्म रखना भी इसका मुख्य कार्य है। जब पाचक पित्त शरीर में कुपित होता है तो शरीर में नीचे लिखे रोग हो सकते हैः-
जठराग्नि का मन्द होना
दस्त लगना
खूनी पेचिश
कब्ज बनना
मधुमेह
मोटापा
अम्लपित्त
अल्सर
शरीर में कैलस्ट्रोल का अधिक बनना
हृदय रोग
पाचक पित्त को नियन्त्रण करने के लिए नीचे लिखी क्रियाओं का साधक का अभ्यास करना होगा। यदि शरीर में पाचक पित्त सम अवस्था मे बनता है तो हमारा पाचन सुदृढ़ रहता है। जब शरीर में पाचन और निष्कासन क्रियाएं ठीक होती हैं तो हम ऊपर दिए गए रोगों से बच सकते हैं। इस पित्त को सन्तुलित करने के लिए नीचे दी गई क्रियाएं सहायक होंगीः-
शुद्धि क्रियाएंः-
कुंजल, शंख प्रक्षालन (नोटः-हृदय रोगियों के लिए निषेध है।
आसनः-
त्रिकोणासन, जानुशिरासन, कोणासन, सर्पासन, पादोतानासन,अर्धमत्स्येन्द्रासन, शवासन।
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प्राणायामः-अग्निसार, शीतली, चन्द्रभेदी, उड्डियान बन्ध व बाह्य कुम्भक का अभ्यास।
भोजनः-
सुपाच्य भोजन, सलाद, हरी सब्जियाँ तथा ताजे फलों का सेवन भी पाचक पित्त को सम अवस्था में रखने में सहायक है।
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रंजक पित्तः-
यह पित्त लीवर में बनता है और पित्ताशय में रहता है। रंजक पित्त का कार्य बड़ा ही अनूठा व रहस्यमयी है। हमारे शरीर में भोजन के पचने पर जो रस बनता है रंजक पित्त उसे शुद्ध करके उससे खून बनाने का कार्य करता है।
अस्थियों की मज्जा से जो रक्त कण बनते हैं उन्हें यह पित्त लाल रंग में रंगने का कार्य करता है। उसके बाद इसे रक्त भ्रमण प्रणाली के माध्यम से पूरे शरीर में पहुंचा दिया जाता है। यदि इस पित्त का सन्तुलन बिगड़ जाता है तो शरीर में लीवर से सम्बन्धित रोग आते हैं जैसे कि-पीलिया, अल्परक्तता तथा शरीर में कमजोरी आना अर्थात् शरीर की कार्य क्षमता कम हो जाना इत्यादि।
रंजक पित्त नीचे लिखी क्रियाओं के अभ्यास से नियन्त्रित होता है।
शुद्धि क्रियाएंः-
अनिमा, कुन्जल
आसनः-
त्रिकोणासन, पश्चिमोत्तानासन, कोणासन, अर्धमत्स्येन्द्रासन, मन्डूकासन, पवन मुक्तासन, आकर्ण धनुरासन
प्राणायामः-
कपाल भाति, अनुलोम-विलोम, बाह्य कुम्भक, अग्निसार तथा उडिडयान बन्ध का अभ्यास
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साधक पित्तः-
यह पित्त हृदय में रहता है। बुद्धि को तेज करता है प्रतिभा का निर्माण करता है। उत्साह एवं आनन्द की अनुभूति करवाता है। आध्यात्मिक शक्ति देता है। सात्विक वृत्ति का निर्माण करता है। ईष्र्या, द्वेष व स्वार्थ की भावना को समाप्त करता है। साधक पित्त के कुपित होने पर स्नायु तन्त्र तथा मानसिक रोग होने लगते हैं जैसे किः-
नीरसता
माईग्रेन
मूर्छा
अधरंग
अनिद्रा
उच्च व निम्न रक्तचाप
हृदय रोग
अवसाद
नीचे लिखी क्रियाओं के अभ्यास से साधक पित्त सन्तुलित रहता है।
शुद्धि क्रियाएंः-सूत्र नेति, जल नेति, कुंजल आदि।
आसनः-
सूर्य नमस्कार पहली व बारवीं स्थिति, शशांक आसन, शवासन, योग निद्रा।
प्राणायामः-
अनुलोम-विलोम,
भ्रामरी व नाड़ी शोधन,
उज्जायी प्राणायाम
ध्यान
अन्य सुझावः-
आध्यात्मिक पुस्तकें पढ़ना, महापुरुषों के प्रवचन सुनना, आत्म-चिन्तन करना तथा लोकहित के कार्य करना।
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आलोचक पित्तः-
यह पित्त आंखों में रहता है। देखने की क्रिया का संचालन करता है। नेत्र ज्योति को बढ़ाना तथा दिव्य दृष्टि को बनाए रखना इसके मुख्य कार्य हैं। जब आलोचक पित्त कुपित होता है तो नेत्र सम्बन्धी दोष शरीर में आने लगते हैं यथा नज़र कमजोर होना, आंखों में काला मोतिया व सफेद मोतिया के दोष आना। इस पित्त को नियन्त्रित करने के लिये साधक को नीचे लिखी क्रियाओं का अभ्यास करना चाहियेः-
शुद्धि क्रियाएंः- आई वाश कप से प्रतिदिन आंखें साफ करें। नेत्रधोति का अभ्यास करें। मुँह में पानी भरकर आँखों में शुद्ध जल के छींटे लगाएं। दोनो आई वाश कपों में पानी भरें, तत्पश्चात् आई वाश कप में आंखों को डुबो कर आंख की पुतलियों को तीन-चार बार ऊपर-नीचे, दाएं-बाएं व वृत्ताकार दिशा में घुमाएं। इसके लिए शुद्ध जल या त्रिफले के पानी का प्रयोग कर सकते हैं।
आसनः- कोणासन, उष्ट्रासन, भुजंगासन, धनुर व मत्स्यासन, ग्रीवा चालन, शवासन तथा नेत्र सुरक्षा क्रियाएं।
प्राणायामः-गहरे लम्बे श्वास, अनुलोम-विलोम, भ्रामरी, मूर्छा प्राणायाम।
ध्यानः-प्रतिदिन 10 मिनट ध्यान में बैठें।
भोजन हरी व पत्तेदार सब्जियों का सेवन अधिक करें।
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भ्राजक पित्तः-
यह पित्त सम्पूर्ण शरीर की त्वचा में रहता है। भ्राजक पित्त हमारे शरीर में विभिन्न कार्य करता है जैसे कि त्वचा को कान्तिमान बनाना, शरीर को सौन्दर्य प्रदान करना, विटामिन डी को ग्रहण करना तथा वायुमण्डल में पाए जाने वाले रोगाणुओं से शरीर की रक्षा करना। भ्राजक पित्त के कुपित होने पर शरीर में नीचे लिखे रोग आने की सम्भावना बनी रहती है।
त्वचा पर सफेद तथा लाल चकत्तों का दोष होना।
चर्म रोग का होना।
शरीर में फोड़ा, फुन्सी होना।
एग्जिमा।
त्वचा का फटना आदि।
भ्राजक पित्त को शरीर में सम अवस्था में रखने के लिए नीचे लिखी क्रियाएं करनी चाहिए।
शुद्धि क्रियाएंः-कुंजल, नेति व शंख प्रक्षालन।
आसनः- सूर्य नमस्कार, नौकासन, चक्रासन, हस्तपादोत्तानासन
प्राणायामः-गहरे लम्बे श्वास, प्लाविनी, तालबद्ध व नाड़ी शोधन प्राणायाम तथा तीनों बन्धों का बाह्य व आन्तरिक कुम्भक के साथ अभ्यास करें।

नोटः-हृदय रोगी के लिए कुम्भक निषेध है।
विशेष क्रियाः-पूरे शरीर में तेल की मालिश करें। सर्दी के मौसम में सूर्य स्नान करें।
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Wednesday, July 27, 2016

Uric Acid कम करने के उपाय...

प्राकृतिक उपायों से कम करें यूरिक एसिड
To Know More On Uric Acid Also Visit :-
http://aryadeshbharat.blogspot.in/2014/12/blog-post_52.html

यूरिक एसिड कम करने के उपाय

शरीर में प्‍यूरिन के टूटने से यूरिक एसिड बनता है। प्‍यूरिन एक ऐसा पदार्थ है जो खाद्य पदार्थों में पाया जाता है और जिसका उत्‍पादन शरीर द्वारा स्वाभाविक रूप से होता है। यह ब्‍लड के माध्‍यम से बहता हुआ किडनी तक पहुंचता है। वैसे तो यूरिक एसिड यूरीन के माध्‍यम से शरीर के बाहर निकल जाता है। लेकिन, कभी-कभी यह शरीर में ही रह जाता है और इसकी मात्रा बढ़ने लगती है। यह परिस्थिति शरीर के लिए परेशानी का सबब बन सकती है। यूरिक एसिड की उच्‍च मात्रा के कारण गठिया जैसी समस्‍याएं पीड़ि‍त हो सकते है। इसलिए यूरिक एसिड की मात्रा को नियंत्रित करना आवश्‍यक होता है। यूरिक एसिड को कुछ प्राकृतिक उपायों द्धारा कम किया जा सकता है। 

सूजन को कम करें
शरीर में यूरिक एसिड की मात्रा कम करने के लिए आपको अपने आहार में बदलाव करना चाहिये। आपको अपने आहार में चेरी, ब्‍लूबेरी और स्ट्रॉबेरी को शामिल करें। यूनिवर्सिटी ऑफ मैरीलैंड मेडिकल सेंटर में हुए शोध के अनुसार, सूजन कम करने में बैरीज आपकी मदद कर सकती है। यूरिक एसिड को कम करने में कुछ अन्य खाद्य पदार्थ भी मददगार होते हैं। जैसे अनानास में मौजूद पाचक एंजाइम ब्रोमेलाइन में एंटी इफ्लेमेंटरी तत्‍व होता है, जो सूजन को कम करते है।


अजवाइन का सेवन

अजवाइन यूरिक एसिड को कम करने के लिए एक और प्रभावी तरीका है क्‍योंकि यह प्राकृतिक मूत्रवर्धक है। यह रक्त में क्षार के स्‍तर को नियंत्रित कर सूजन को कम करने में मदद करती है। 


ओमेगा-3 फैटी एसिड से बचें
ट्यूना, सामन, आदि मछलियों में ओमेगा-3 फैटी एसिड भरपूर मात्रा में होता है। इसलिए यूरिक एसिड के बढ़ने पर इन्‍हें खाने से बचना चाहिए। साथ ही मछली में अधिक मात्रा में प्‍यूरिन पाया जाता है। प्‍यूरिन शरीर में ज्‍यादा यूरिक एसिड पैदा करता है।


बेकिंग सोडा का सेवन
एक गिलास पानी में आधा चम्‍मच बेकिंग सोडा मिला लें। इसे अच्‍छे से मिक्‍स करके नियमित रूप से इसके आठ गिलास पीये। यह बेकिंग सोडा का मिश्रण यूरिक एसिड क्रिस्टल भंग करने और यूरिक एसिड घुलनशीलता को बढ़ाने में मदद करता है। लेकिन सोडियम की अधिकता के कारण आपको बेकिंग सोडा लेते समय सावधानी बरतनी चाहिए। क्‍योंकि इससे आपका रक्तचाप बढ़ सकता है।


प्‍यूरिन से भरपूर खाद्य पदार्थ से बचें
शरीर में यूरिक एसिड के स्‍तर को नियंत्रित करने के लिए प्‍यूरिन से भरपूर खाद्य पदार्थो के सेवन से बचना चाहिए। प्‍यूरिन एक प्राकृतिक पदार्थ है, जो शरीर को एनर्जी देता है। किडनी की समस्‍या होने पर प्‍यूरिन से भरपूर खाद्य पदार्थ शरीर के विभिन्‍न भागों में अत्‍यधिक यूरिक एसिड का संचय करते है। रेड मीट, समुद्री भोजन, ऑर्गन मीट और कुछ प्रकार के सेम सभी प्‍यूरिन से भरपूर होते हैं। परिष्कृत कार्बोहाइड्रेट और सब्जियां जैसे शतावरी, मटर, मशरूम और गोभी से बचना चाहिए।

फ्रक्टोज से बचें
प्राकृतिक रूप से यूरिक एसिड को कम करने के लिए आपको फ्रक्टोज से भरपूर पेय का सेवन सीमित कर देना चाहिए। 2010 में किए गए एक शोध के अनुसार, जो लोग ज्‍यादा मात्रा में फ्रक्‍टोस वाले पेय का सेवन करते हैं उनमें गठिया होने का खतरा दोगुना अधिक होता है।

पीएच का संतुलन
शरीर में एसिड के उच्‍च स्‍तर को एसिडोसिस के रूप में जाना जाता है। यह शरीर के यूरिक एसिड के स्तर के साथ संबंधित होता है। अगर आपका पीएच स्तर 7 से नीचे चला जाता है, तो आपका शरीर अम्लीय हो जाता है। अपने शरीर क्षारीय को बनाये रखने के लिए, अपने आहार में सेब, सेब साइडर सिरका, चेरी का जूस, बेकिंग सोडा और नींबू को शामिल करें। साथ ही अपने नियमित में कम से कम 500 ग्राम विटामिन सी जरूर लें। विटामिन सी, यूरिक एसिड को यूरीन के रास्‍ते निकालकर इसे कम करने में सहायक होता है।

भरपूर मात्रा में पानी
शरीर को हाइड्रेटेड रखकर आप यूरिक एसिड के स्‍तर को कम कर सकते है। शरीर में पानी का उचित स्‍तर यूरिक एसिड को बाहर निकालने के लिए जरूरी होता है। पानी की पर्याप्‍त मात्रा से शरीर में मौजूद यूरिक एसिड यूरीन के रास्ते से बाहर निकल जाता है। इसलिए थोड़ी-थोड़ी देर में पानी पीते रहना चाहिए। 

खाना जैतून के तेल में पकाये
यह तो सभी जानते है कि जैतून के तेल में बना आहार, शरीर के लिए लाभदायक होता है। इसमें विटामिन ई की भरपूर मात्रा में मौजूदगी खाने को पोषक तत्‍वों से भरपूर बनाता है और यूरिक एसिड को कम करता है।


वजन को नियंत्रित रखें
मोटे लोग प्‍यूरिन युक्त आहार बहुत अधिक मात्रा में लेते हैं। और प्‍यूरिन से भरपूर खाद्य पदार्थ यूरिक एसिड के स्‍तर को बढ़ा देते है। लेकिन, साथ ही यह तेजी से वजन कम होने का एक कारक भी है। इसलिए आपको सभी मामलों में क्रैश डाइटिंग से बचना चाहिए। अगर आप मोटापे से ग्रस्त हैं, तो यूरिक एसिड के स्तर को बढ़ने से रोकने के लिए अपने वजन को नियंत्रित करें।
Source :-



Sunday, July 24, 2016

वात दोष --

वात दोष - कारन और  निवारण....
- जब शरीर में वायु तत्व सामान्य से अधिक हो जाता है तो इसे वात दोष कहा जाता है।
- नाडी देखते समय अंगूठे के पास पहली अंगुली में ज़्यादा स्पंदन महसूस होगा।
- सामान्यतः शरीर में वात शाम के समय और रात्री के अंतिम प्रहर में बढ़ता है . इस
 समय किसी रोग की तीव्रता बढना रोग के वात रोग होने की तरफ इशारा करता है।
- जीवन के अंतिम प्रहर यानी बुढापे में भी वात प्रबल होता है।
- वात के साथ पित्त दोष भी होने से इसे नियंत्रित करना थोड़ा मुश्किल हो जाता है ; पर असंभव नहीं।
- वात यानी हवा का गुण है की वह फुलाता है . इसलिए वात दोष होने से शरीर कभी कभी फूल जाता है . ऐसा मोटापा किसी गैस के भरे गुब्बारे के समान नज़र आता है . यह मोटापा मज़बूत नहीं करता बल्कि अन्दर से खोखला कर देता है।
- हवा का एक गुण है सुखाना . इसलिए कभी कभी वात रोगी सुख के काँटा हो जाता है . कितना भी खाए पिए , शरीर कृशकाय ही रहता है।
- सुखाने के गुण के कारण ही वात जब बढ़कर संधियों (joints ) में , रक्त नलिकाओं में प्रविष्ट होता है तो वहां सुखाता है . इससे संधियों का द्रव्य सूख जाता है और अर्थराइटिस की शुरुवात होने लगती है . घुटनों में हवा भरेगी और उठते बैठते कड कड आवाज़ आएगी . दर्द शुरू हो जाएगा .
- रक्त नलिकाओं की दीवार रुखी हो जाने से वहां कुछ ना कुछ चिपकने लगेगा और वह संकरी जायेगी। उसकी एलास्टिसिटी कम होने से रक्तदाब (ब्लड प्रेशर ) बढेगा।
- सुखाने के गुण के कारण ही त्वचा रुखी होने लगेगी। एडियों में दरारें पड़ने लगेंगी। बाल रूखे होंगे। dandruff होगा।
- दांत कमज़ोर हो कर हिलने लगेंगे।
- नर्वसनेस . कम्पवात आदि रहेगा।
- घबराहट रहेगी। ज़्यादा डर लगने से भी वात बढ़ता है।अतः हॉरर फिल्मे , सीरियल . क्राइम से कार्यक्रम देखना वात बढाता है।
- स्वप्न आते है। रात्री के अंतिम प्रहर में स्वप्न ज़्यादा आते है ; क्योंकि यह वात का समय है।
- शरीर में वात का घर है पैर और पेट में बड़ी आंत। इसलिए वात रोगी का पेट फुला हुआ और कड़क महसूस होगा जैसे किसी गुब्बारे में हवा भरी हो। पेट छूने में नर्म नहीं लगेगा। ज़्यादा भाग दौड़ और चलना फिरना होने से पैरों पर काम का दबाव बढ़ता है और वात बढ़ता है। इसके लिए घुटने और नीचे के पैरों को , तलवों को खूब दबाये , तेल मले। कुछ डकारें आ जाएंगी और आराम मिलेगा।
- शादी ब्याह में खूब भाग दौड़ करने से वात बढ़ जाता है। इसलिए आखिर में खूब घी वाली खिचड़ी खा कर गर्म कढ़ी पी जाती है। वात निकल जाता है। आराम मिलता है।
- हवा का गुण है चलना या रुकना। जब वात बढेगा तब शरीर की सामान्य हलन चलन की क्रियाएं जैसे आँतों का हलन चलन प्रभावित होगा और कब्ज होगी . कितना भी सलाद खाएं ; कब्ज बनी रहेगी . मल सुख जाएगा.
- मन चंचल रहेगा . कल्पनाएँ ज़्यादा करेगा . कभी कुछ सोचेगा ; कभी कुछ . मूड़ बदलता रहेगा . ज़्यादा वात विकार हिस्टीरिया , मानसिक विकार भी पैदा कर देता है। कभी कभी रचनात्मकता के लिए ये आवश्यक है पर इसकी अति विकार है , जैसे एम एफ हुसैन में हो गया था !
- कोई भी बदलाव वात बढ़ा देता है . फिर चाहे वो छोटा हो या बड़ा . जितना बड़ा बदलाव उतना ज़्यादा वात बढेगा . जैसे सुबह उठे - बदलाव है ( सोते से उठे ) ; सो वात थोड़ा बढ़ा . धुप से छाँव में या छाँव से धूप में गए , वात बढेगा . एसी कमरे से गर्मी में आये या गए , वात बढेगा . मौसम में बदलाव , अचानक सर्दी या गर्मी बढ़ने से वात बढेगा . अचानक गंभीर चोट लगी , मानसिक आघात लगा , वात बहुत बढेगा . ऐसे समय यंह सावधानी ले की कोई रुखी या ठंडी वस्तु का सेवन ना करें , ठंडा पानी या शीतल पेय ना पिए। गर्म पानी ले।
- जब विवाह होता है ; तो यह एक बहुत बड़ा बदलाव है . इसलिए पति पत्नी कम से कम छः महीने महीने तक रुखी और ठंडी वस्तु जैसे आइस क्रीम आदि का सेवन ना करें . इससे मन में रूखापन नहीं आयेंगा और नए रिश्ते आसानी से बन पायेंगे और ज़िन्दगी भर बने रहेंगे। आज कल तो पति पत्नी शादी में एक दुसरे को आइसक्रीम खिलाते है और रुखा डाएट फ़ूड लेतें है . ठंडा पानी , शीतल पेय लेते है। फिर रिश्तों की बुनियाद कमज़ोर रह जाती है।
- जब बच्चा होता है तो माँ के जीवन में एक बहुत बड़ा बदलाव है . इसलिए छः महीने तक सावधानी लेनी होती है . वरना शरीर फूल कर कमज़ोर हो जाता है . कई बार दूध सूख जाता है . कई बार गंभीर बीमारियाँ इसी समय हमला करती है जैसे दमा , अर्थराइटिस , रक्तचाप , पाइल्स , हिस्टीरिया आदि.
- वात यानी हवा शरीर में घुसने के द्वार है नाक , कान , मुंह आदि। इसलिए नाक , कान आदि में तेल डाले . कान ढकना चाहिए।आजकल के युवा गाडी चलाते नहीं उड़ाते है और कान ढकते नहीं। फिर उनमे उन्माद , अचानक तीव्र आवेश , दुबलापन या मोटापा , बाल झडना आदि समस्याएँ पाई जाती है। इसलिए याद रखे गाडी उड़ाना नहीं चलाना है . और कान ढकने में शर्म आती हो तो रुई डाल ले।
- बस या ट्रेन में खुली खिड़की के पास बैठने से सिरदर्द होने लगता है क्योंकि वात बढ़ जाता है।
- वात दोष दूर होता है गर्म पेय , गर्म पानी और शुद्ध घी और छने (filtered ) तेल से।
- कई बार ऐसा देखा गया की किसी को गंभीर चोट लगी और वह , है उसे अस्पताल ले जा रहा है . पर उसे किसी ने ठंडा पानी पिला पिला दिया और वह अचानक मर गया। किसी के करीबी व्यक्ति की मौत हुई। वह रो रहा है। किसी ने उसे ठंडा पानी पिला दिया ; उनकी भी बोलो राम हो गई।करीबी लोग सोचते रह जाते है की क्या हुआ ..... इसलिए हर एक को जानना ज़रूरी है की गंभीर चोट या मानसिक आघात लगे व्यक्ति को गर्म जल दे।
- वात दोष ना हो इसलिए ध्यान रखे पानी गटा गट ना पिए। मुंह में चबा चबाकर घूंट घूंट ले। कभी भी पानी खड़े खड़े ना पिए। हो सके तो उकडू बैठ कर पिए। जिससे वात के अंग - निचला पेट और पिंडलियाँ दबती है और उसमे वात नहीं घुसता।
- दूध हमेशा देशी गाय शुद्ध बिलोने वाला घी डाल कर फेंटकर खड़े खड़े पिए।
- रिफाइंड तेल का प्रयोग कभी ना करे। कच्ची घानी का कोई भी तेल जैसे फली दाना ,तिल नारियल , सरसों उत्तम है।
- वात बढाने वाला भोजन शाम 4 बजे के बाद ना ले। जैसे मूली , बैंगन , आलू ,गोभी आदि।
- वात दोष नियंत्रण में रखे और कई गंभीर बीमारियों को दूर रखे।
- वात के सन्दर्भ में और कुछ याद आया तो जोड़ते रहेंगे। अपना खूब ध्यान रखे।
धन्यवाद।