Friday, November 25, 2022

लव जिहाद.

कणिष्क कुन्दन 💐

सुनील दत्त ने नर्गिस से,

आदित्य पंचोली ने ज़रीना
वहाब से,

सचिन पायलट ने
सारा अब्दुल्लाह से,

मनोज वाजपेयी ने
शबाना रज़ा(नेहा)से,

शिरीष कुंदर ने
फराह खान से,

क्रिकेटर अजीत आगरकर
ने फातिमा घड़ियाली से,

सुनील शेट्टी ने
माना क़ादरी से,

अतुल अग्निहोत्री ने
सलमान खान की बहन
अलवीरा खान से,

शशि रेखी ने
वहीदा रहमान से,

राज बब्बर ने
नादिरा ज़हिर से,

मयूर वाधवानी ने
एक्ट्रेस मुमताज़ से,

राजीव रॉय ने एक्टर
रज़ा मुराद की बेटी
बख्तावर से,

समीर नेरुरकर ने टीवी
एक्ट्रेस तस्नीम शेख से,

एक्टर टीनू आनन्द ने
जलाल आग़ा की बहन
एक्ट्रेस शहनाज़ से,

पंकज उधास ने
फरीदा से,

कुमुद मिश्रा ने एक्ट्रेस
आयशा रज़ा से,

क्रिकेटर मनोज प्रभाकर
ने फरहीन से,

कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी
ने नाज़नीन शिफ़ा से,

इन सभी ने मुस्लिम महिलाओं
से शादी की और ये सभी शादियां
अभी तक टिकी हुई हैं मतलब इन
सब ने रिश्ते को ईमानदारी
से निभाया भी,मतलब इन्होंने
"प्रेम" के नाम पर प्रेम ही की है
क्योंकि ये सब हिन्दू थे इसलिए। 

और
👇👇👇👇👇
आमिर खान ने
रीना दत्ता के साथ,

सैफ अली खान ने
अमृता सिंह के साथ,

अरबाज़ खान ने
मलाइका अरोरा के साथ,

मोहसिन खान ने
रीना रॉय के साथ,

अज़हरुद्दीन ने
संगीता बिजलानी के साथ,

फ़रहान अख्तर ने
अधुना के साथ,

ओमर अब्दुल्लाह ने
पायल नाथ के साथ,

इन सभी ने काफ़िर औरतो
से निकाह किया और उनकी
जवानी के मज़ा लेने के बाद
बुढ़ापे के क़रीब क़रीब छोड़
दिया,
मतलब इन सभी ने जो भी किया
प्रेम के नाम पर ही किया था... 
यही है "#लव_जिहाद"😢
सोचना आपको है।

(चित्र मनोज बाजपेयी और उनकी
पत्नी अभिनेत्री नेहा(शबाना रजा)

जयश्रीराम💐

Thursday, November 17, 2022

शाकाहार और मांसाहार।

1. “लोग हमेशा से मांस खाते आए हैं और खाते रहेंगे।”

माफ़ कीजिए...! यह सत्य नहीं है। मानव इतिहास में कई संस्कृतियाँ मांसाहार से परहेज करती हैं। वैदिक मान्यता के अनुसार जीने वाले प्राचीन भारतीय मांस नहीं खाते थे।   कुछ चीजें बीते समय में होती थी तो इसका मतलब यह नहीं कि हम उसे जारी रखें। कल तक TB जानलेवा थी। आज नहीं। तो क्या आज भी इसका इलाज ना करवाएँ?

2. “अकेले मेरे  मांसाहार छोड़ने से कुछ नहीं बदलेगा।”

फ़र्क पड़ता है। 1 परिवार  कम से कम 30 पशुओं को  हर साल बचा सकता  हैं। सिर्फ़ अमेरिका में लोगों ने पाँच साल पहले के मुकाबले पिछले साल कोई 400 कम जानवर खाए। और ऐसा ही भारत में भी हो रहा है। समय बदल रहा है।  

3. “हमें प्रोटीन के लिये मांस खाना चाहिये।”

नहीं, ऐसा जरूरी नहीं है। प्रोटीन वनस्पतीय भोजन में भी प्रचुरता से भरे होते हैं। बीन्स (सेमफ़ली), मेवा से टोफ़ू और गेहूँ.... आपको पर्याप्त प्रोटीन प्राप्त करने के लिये मांसाहार की जरूरत नहीं है। यह एक मिथक है। । यदि मांस और प्रोटीन से ही स्वास्थ्य होता तो -- अमेरिका मे 62% मोटे ना होते। पाकिस्तान मे दुनिया की सबसे अधिक जेनिटिक बीमारी नहीं होती।

4. “फ़ार्म में पशुओं के साथ मानवीय व्यवहार होता है।”

दूर-दूर तक नहीं। खाने के लिये पाले जाने वाले पशुओं में 95 प्रतिशत से अधिक फ़ैक्ट्री फ़ार्म में घोर कष्टमय जीवन जीते हैं। गंदे, तंग केज में खचाखच ठूँसे हुए, बिना दर्दनिबारक के अंग-भंग की पीड़ा सहने को मजबूर, और निर्दयतापूर्वक बध किये जाते हैं। यकीन नहीं होता ? तो youtyube   पर टर्की पक्षी के पंख हटाने की प्रक्रिया देखिए। इतना ही नही फार्महाउस पर पशुओं और पक्षियों को बड़ी मात्रा मे अंटीबायोटिक व कृमिनाशक दवाई दी  जाती है। यह दवाइया मांस के साथ अल्प मात्रा मे हमारे शरीर मे पहुँचती है। मानव शरीर मे जीवाणु इन दवाइयों के प्रति प्रतिरोध उत्पन्न कर लेते हैं। इससे हमारी बीमारी आदिक जटिल होती जा रही हैं। 

5. “मुझे शाकाहारी आहार पसंद नहीं है।”

तो क्या आपको फ़्रेंच-फ़्राइज और पास्ता पसंद नहीं है? डोसा,-चटनी और ढोकला के बारे में क्या ख्याल है? मिठाइयाँ सभी पसंद करते हैं। आप अक्सर शाकाहारी भोजन खाते हैं और पसंद भी करते हैं लेकिन सिर्फ़ कहते नहीं है।

6. “शाकाहारी या वीगन होना अस्वास्थ्यकर है।”
यदि मांसाहारी स्वस्थ होते तो पाकिस्तान ब्ंग्लादेश मे 100 % स्वस्थ होते  शाकाहारी प्रदेश हरियाणा के लोग मांसाहारी बंगाल से अधिक स्वस्थ हैं। 

7. “एथलीट्स को मजबूत होने के लिये मीट खाने की जरूरत होती है।”
सुशील कुमार ( ओलंपिक पदक विजेता शाकाहारी है। मांसाहारी देश जैसे पाकिस्तान, बांग्लादेश, सोमालिया, सऊदी अर्ब, ईरान, ईराक  आदि ओलंपिक सूची मे कहाँ हैं? पीडीके जीने के कारण अलग हैं।  

8. “मेरे शरीर को मीट की जरूरत है।”

नहीं, कोई जरूरत नहीं है। नंबर 6 फिर से पढ़िये। आपका शरीर इसके बिना कहीं ज़्यादा अच्छा रहेगा।

9. “मांसाहार छोड़ दिया तो पूरे पृथ्वी पर मुर्गी और बकरी  ही  होंगी।”

सच में? इसे कहा जाता है माँग और आपूर्ति। अगर लोग मांस खाना छोड़ देंगे तो फ़ार्मर्स पशुओं की ब्रीडिंग करना छोड़ देंगे। बात खत्म।

10. “पूरी दुनियाँ को खिलाने का एक मात्र उपाय फ़ैक्ट्री फ़ार्मिंग ही है।"

एक मिनट..! फ़ैक्ट्री फ़ार्मिंग न केवल जलवायु परिवर्तन का मुख्य कारण है बल्कि इससे भारी बर्बादी भी होती है। एक किलो मांस  के उत्पादन के लिये 16 किलो  अनाज लगता है। जरा सोचिये...! उन अनाज से कितने लोगों का पेट भर सकता है।

ओ३म्।

जब भी कोई  #चोटी और #जनेऊ को देखता है तो उनके मन में एक धारणा होती है कि ये #ब्राह्मण है!
और कई तो पूछ भी लेते है कि आप ब्राह्मण हो क्या?

लेकिन उन्हें जब पता चलता है कि ये #जाट #रोड़ #गुर्जर #सैनि #यदुवंशी #बनिया #छत्रिय #वाल्मीकि #वनवासी तो वो पूछते है दूसरे कास्ट होकर #चोटी क्यों रखते हो?

अब यहाँ एक सवाल खड़ा होता है!

 क्या आप कभी किसी #सरदार_जी से पूछते हो कि #पगड़ी क्यो बांधते हो?

किसी #मौलाना_जी से पूछते हो #टोपी क्यों पहनते हो?

किसी #ईसाई से पूछते हो यीशु का #लोकेट क्यों पहनते हो?

सोच विचार कर देखिए आज कितने #हिन्दू चोटी रखते है?
कितने #जनेऊ पहनते है?

कितने #वेद,#शास्त्र,#उपनिषद,#दर्शन,#रामायण,#महाभारत, #सत्यार्थ_प्रकाश #गीता आदि ग्रन्थ पढ़ते है?

हमारे #पतन का कारण हम स्वयं है!
समाज में मुश्किल से कुछ प्रतिशत लोग है जो अपनी पहचान बनाए हुए है! उन्हें भी लोग अलग ही नजरिए से देखते है!

किसी अन्य को दोष देने से बेहतर है अपने आप मे सुधार करें, अपनी आने वाली पीढ़ी को संस्कारित करें,उन्हें मानवता का पाठ पढ़ाए अपने धर्म और संस्कृति को और ज्यादा गहराई से जानने के लिए अपने आस पास के मंदिरों में जाए वहां होने वाली गतिविधियों में भाग ले और अपने श्रेष्ठ ऋषियों महर्षियो की विद्या यानी #वेद_विद्या को जानकर अपनी महान सनातन संस्कृति को अपनाए।

Wednesday, November 16, 2022

ये एक ट्रेनिंग हैं।

और आप आज तक समझ नहीं पाए...! 
बकरी ईद से पहले परिवार करीब 10 दिनों तक बकरी/बकरे को रखता है। 

इस समय के दौरान, वे इसे खिलाते हैं, इसे नहलाते हैं, इसके साथ खेलते हैं  और लगभग एक बच्चे की तरह इसकी देखभाल करते हैं। 

घर के बच्चे इसके प्रति बहुत स्नेही हो जाते हैं। 
फिर एक सुबह बकरी को #हलाल किया जाता है। 
बच्चों की आंखों के ठीक सामने। 

बच्चे शुरू में क्रोधित, उन्मादी और उदास हो जाते थे लेकिन अंततः उन्हें इसकी आदत हो जाती है। 

यह प्रक्रिया 1 से 18 वर्ष की आयु के बच्चे पर हर साल दोहराई जाती है। 

जब वे 18 वर्ष के होते हैं, तब तक वे जान जाते हैं कि #Islam के लिए जीवन की सबसे प्रिय वस्तु की भी कुर्बानी दी जाती है। यहां तक ​​कि जिस बकरे को आप पाल रहे थे और जिसे प्यार से पाल-पोस कर आपने बड़ा किया वो भी मायने नहीं रखता। 

इसलिए जब वे आपसे दोस्ती करते हैं, आपके लिए मददगार होते हैं, आपको भाई-बहन कहते हैं, और आपके करीब हो जाते हैं.....

#याद_रखें ..... 
कि उन्होंने बचपन से हर साल इस कला का अभ्यास किया है। 

आप बकरी से अलग नहीं हैं। 

#तुम्हारा  .....अब्दुल अलग नहीं है, वो एक प्रशिक्षित #कसाई है....!

Sunday, November 13, 2022

पुराने जमाने का Hand Sanitizer !

भारतीय रसोई के चूल्हे की राख में ऐसा क्या था कि, वह पुराने जमाने का Hand Sanitizer थी ...?

उस समय Hand Sanitizer नहीं हुआ करते थे, तथा साबुन भी दुर्लभ वस्तुओं की श्रेणी आता था। उस समय हाथ धोने के लिए जो सर्वसुलभ वस्तु थी, वह थी चूल्हे की राख। जो बनती थी लकड़ी तथा गोबर के कण्डों के जलाये जाने से। चूल्हे की राख का रासायनिक संगठन है ही कुछ ऐसा ।
आइये चूल्हे की राख का वैज्ञानिक विश्लेषण करें। इस राख में वो सभी तत्व पाए जाते हैं, वे पौधों में भी उपलब्ध होते हैं। इसके सभी Major तथा Minor Elements पौधे या तो मिट्टी से ग्रहण करते हैं या फिर वातावरण से। इसमें सबसे अधिक मात्रा में होता है Calcium.

इसके अलावा होता है Potassium, Aluminium, Magnesium, Iron, Phosphorus, Manganese, Sodium तथा Nitrogen. कुछ मात्रा में Zinc, Boron, Copper, Lead, Chromium, Nickel, Molybdenum, Arsenic, Cadmium, Mercury तथा Selenium भी होता है ।
राख में मौजूद Calcium तथा Potassium के कारण इसकी ph क्षमता ९.० से १३.५ तक होती है। इसी ph के कारण जब कोई व्यक्ति हाथ में राख लेकर तथा उस पर थोड़ा पानी डालकर रगड़ता है तो यह बिल्कुल वही माहौल पैदा करती है जो साबुन रगड़ने पर होता है।

जिसका परिणाम होता है जीवाणुओं और विषाणुओं का विनाश । आइये, अब मनन करें सनातन धर्म के उस तथ्य पर जिसे अब सारा संसार अपनाने पर विवश है। सनातन में मृत देह को जलाने और फिर राख को बहते पानी में अर्पित करने का प्रावधान है। मृत व्यक्ति की देह की राख को पानी में मिलाने से वह पंचतत्वों में समाहित हो जाती है ।
मृत देह को अग्नि तत्व के हवाले करते समय उसके साथ लकड़ियाँ और उपले भी जलाये जाते हैं और अंततः जो राख पैदा होती है उसे जल में प्रवाहित किया जाता है । जल में प्रवाहित की गई राख जल के लिए डिसइंफैकटैण्ट का काम करती है ।

इस राख के कारण मोस्ट प्रोबेबिल नम्बर ऑफ कोलीफॉर्म (MPN) में कमी आ जाती है और साथ ही डिजोल्वड ऑक्सीजन (DO) की मात्रा में भी बढ़ोत्तरी होती है। वैज्ञानिक अध्ययनों में यह स्पष्ट हो चुका है कि गाय के गोबर से बनी राख डिसइन्फैक्शन के लिए एक एकोफ़्रेंडली विकल्प है...
जिसका उपयोग सीवेज वाटर ट्रीटमैंट (STP) के लिए भी किया जा सकता है। सनातन का हर क्रिया कलाप विशुद्ध वैज्ञानिक अवधारणा पर आधारित है। इसलिए सनातन अपनाइए स्वस्थ रहिये ।

आपने देखा होगा कि नागा साधु अपने शरीर पर धूनी की राख मलते हैं जो कि उन्हें शुद्ध रखती है साथ ही साथ भीषण ठंडक से भी बचाये रखती है ।

जय सनातन धर्म की...!🚩🚩

कल्पना कीजिए।

इस धरती पर मनुष्य जाति से भी विकसित कोई दूसरे ग्रह की जाति हमला कर दे और वो बुद्धि में, बल में, विज्ञान में, तकनीक आदि में आपसे हजार गुना शक्तिशाली हो और आप उनके सामने वैसे ही लाचार और बेबस हो जैसे पशु आपके सामने हैं।

अब वो पूरी मनुष्य जाति को अपने जीभ के स्वाद के लिए वैसे ही काटकर खाने लगे जैसे आप पशुओं को खाते हो।
आपके बच्चों का कोमल मांस उनके रेस्त्रां में ऊंचे दामों पर बिके और आपकी आंखों के सामने आपके बच्चों को काटा जाए।
उनका स्वयं लिखित संविधान हो और उसमें ये प्रावधान हो कि मनुष्य जाति को भोजन के रूप में खाना उनका मूलभूत अधिकार है क्योंकि वो आपसे अधिक विकसित सभ्यता है और उनके संविधान में आपकी जीवेष्णा के प्रति कोई सहानुभूति न हो जैसे मनुष्य निर्मित संविधान में पशुओं के लिए नही है।

वो इस धरती पर मनुष्य जाति को काटने के लिए सुनियोजित आधुनिक बूचड़खाने खोले और मनुष्य के मांस का बन्द डिब्बों में अपने ग्रह पर निर्यात करे और उनके ग्रह के अर्थशास्त्री अपने लैपटॉप पर अंगुली चलाते हुए अखबारों में ये सम्पादकीय लिखे कि इससे हमारी अर्थव्यवस्था व जी डी पी ग्रो हो रही है।
उनके अपने कोई धार्मिक त्यौहार भी हों जहां सामुहिक रूप से मनुष्यों को जंजीरों में जकड़कर उनकी हत्या की जाए और फिर मनुष्य के मांस को एक दूसरे के प्लेट में परोसते हुए गले मिला जाए व सोशल मीडिया पर मुबारक बाद भी दिया जाए।

पूरी मनुष्य जाती पिजड़ों में बंद, चुपचाप अपनी मृत्यु की प्रतीक्षा करें, उसके हाथ पैर बंधे हों और आपको और आपके बच्चों व महिलाओं को सिर्फ इसलिए काटकर खाया जाए की आप बल बुद्धि में उनसे कमतर हैं।

सोचकर देखिए आपकी आत्मा कांप उठेगी और पूरी मनुष्य जाति निर्लज्जता के साथ, सदियों से पशु जाति के साथ यही करती आ रही है, और इस ब्रह्मांड में अगर कोई सबसे अनैतिक, पापी, दुराचारी, बलात्कारी,निर्लज्ज, लालची, घटिया, नीच जाति कोई है तो वह मनुष्य जाति ही है। #govegan #vegan 

Sunday, November 6, 2022

लक्ष्मण रेखा !!

 लक्ष्मण रेखा आप सभी जानते हैं पर इसका असली नाम शायद नहीं पता होगा । लक्ष्मण रेखा का नाम (सोमतिती विद्या है) 

यह भारत की प्राचीन विद्याओ में से जिसका अंतिम प्रयोग महाभारत युद्ध में हुआ था  चलिए जानते हैं अपने प्राचीन भारतीय विद्या को

#सोमतिती_विद्या--#लक्ष्मण_रेखा....

महर्षि श्रृंगी कहते हैं कि एक वेदमन्त्र है--सोमंब्रही वृत्तं रत: स्वाहा वेतु सम्भव ब्रहे वाचम प्रवाणम अग्नं ब्रहे रेत: अवस्ति,,

यह वेदमंत्र कोड है उस सोमना कृतिक यंत्र का,, पृथ्वी और बृहस्पति के मध्य कहीं अंतरिक्ष में वह केंद्र है जहां यंत्र को स्थित किया जाता है,, वह यंत्र जल,वायु और अग्नि के परमाणुओं को अपने अंदर सोखता है,, कोड को उल्टा कर देने पर एक खास प्रकार से अग्नि और विद्युत के परमाणुओं को वापस बाहर की तरफ धकेलता है,,

जब महर्षि भारद्वाज ऋषिमुनियों के साथ भृमण करते हुए वशिष्ठ आश्रम पहुंचे तो उन्होंने महर्षि वशिष्ठ से पूछा--राजकुमारों की शिक्षा दीक्षा कहाँ तक पहुंची है??महर्षि वशिष्ठ ने कहा कि यह जो ब्रह्मचारी राम है-इसने आग्नेयास्त्र वरुणास्त्र ब्रह्मास्त्र का संधान करना सीख लिया है,,
 यह धनुर्वेद में पारंगत हुआ है महर्षि विश्वामित्र के द्वारा,, यह जो ब्रह्मचारी लक्ष्मण है यह एक दुर्लभ सोमतिती विद्या सीख रहा है,,उस समय पृथ्वी पर चार गुरुकुलों में वह विद्या सिखाई जाती थी,,

महर्षि विश्वामित्र के गुरुकुल में,,महर्षि वशिष्ठ के गुरुकुल में,, महर्षि भारद्वाज के यहां,, और उदालक गोत्र के आचार्य शिकामकेतु के गुरुकुल में,,
श्रृंगी ऋषि कहते हैं कि लक्ष्मण उस विद्या में पारंगत था,, एक अन्य ब्रह्मचारी वर्णित भी उस विद्या का अच्छा जानकार था,,

सोमंब्रहि वृत्तं रत: स्वाहा वेतु सम्भव ब्रहे वाचम प्रवाणम अग्नं ब्रहे रेत: अवस्ति--इस मंत्र को सिद्ध करने से उस सोमना कृतिक यंत्र में जिसने अग्नि के वायु के जल के परमाणु सोख लिए हैं उन परमाणुओं में फोरमैन 

आकाशीय विद्युत मिलाकर उसका पात बनाया जाता है,,फिर उस यंत्र को एक्टिवेट करें और उसकी मदद से एक लेजर बीम जैसी किरणों से उस रेखा को पृथ्वी पर गोलाकार खींच दें,,

उसके अंदर जो भी रहेगा वह सुरक्षित रहेगा,, लेकिन बाहर से अंदर अगर कोई जबर्दस्ती प्रवेश करना चाहे तो उसे अग्नि और विद्युत का ऐसा झटका लगेगा कि वहीं राख बनकर उड़ जाएगा जो भी व्यक्ति या वस्तु प्रवेश कर रहा हो,,ब्रह्मचारी लक्ष्मण इस विद्या के इतने 

जानकर हो गए थे कि कालांतर में यह विद्या सोमतिती न कहकर लक्ष्मण रेखा कहलाई जाने लगी,,

महर्षि दधीचि,, महर्षि शांडिल्य भी इस विद्या को जानते थे,
श्रृंगी ऋषि कहते हैं कि योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण इस विद्या को जानने वाले अंतिम थे,,

उन्होंने कुरुक्षेत्र के धर्मयुद्ध में मैदान के चारों तरफ यह रेखा खींच दी थी,, ताकि युद्ध में जितने भी भयंकर अस्त्र शस्त्र चलें उनकी अग्नि उनका ताप युद्धक्षेत्र से बाहर जाकर दूसरे प्राणियों को संतप्त न करे,,

मुगलों द्वारा करोडों करोड़ो ग्रन्थों के जलाए जाने पर और अंग्रेजों द्वारा महत्वपूर्ण ग्रन्थों को लूट लूटकर ले जाने के कारण कितनी ही अद्भुत विधाएं जो हमारे यशस्वी पूर्वजों ने खोजी थी लुप्त हो गई,,जो बचा है उसे संभालने में प्रखर बुद्धि के युवाओं को जुट जाना चाहिए, परमेश्वर सद्बुद्धि दे हम सबको.....

Friday, November 4, 2022

शिखा बन्धन (#चोटी) रखने का महत्त्व

शिखा का महत्त्व विदेशी जान गए हिन्दू भूल गए।
हिन्दू धर्म का छोटे से छोटा सिध्दांत, छोटी-से-छोटी बात भी अपनी जगह पूर्ण और कल्याणकारी हैं। छोटी सी शिखा अर्थात् चोटी भी कल्याण, विकास का साधन बनकर अपनी पूर्णता व आवश्यकता को दर्शाती हैं। शिखा का त्याग करना मानो अपने कल्याणका त्याग करना हैं। जैसे घङी के छोटे पुर्जे कीजगह बडा पुर्जा काम नहीं कर सकता क्योंकि भले वह छोटा हैं परन्तु उसकी अपनी महत्ता है। 

शिखा न रखने से हम जिस लाभ से वंचित रह जाते हैं, उसकी पूर्ति अन्य किसी साधन से नहीं हो सकती।

'हरिवंश पुराण' में एक कथा आती है हैहय व तालजंघ वंश के राजाओं ने शक, यवन, काम्बोज पारद आदि राजाओं को साथ लेकर राजा बाहू का राज्य छीन लिया। राजा बाहु अपनी पत्नी के साथ वन में चला गया। वहाँ राजा की मृत्यु हो गयी। महर्षिऔर्व ने उसकी गर्भवती पत्नी की रक्षा की और उसे अपने आश्रम में ले आये। वहाँ उसने एक पुत्र को जन्म दिया, जो आगे चलकर राजा सगर के नाम से प्रसिद्ध हुआ। राजासगर ने महर्षि और्व से शस्त्र और शास्त्र विद्या सीखीं। समय पाकर राजा सगरने हैहयों को मार डाला और फिर शक, यवन, काम्बोज, पारद, आदि राजाओं को भी मारने का निश्चय किया। ये शक, यवन आदि राजा महर्षि वसिष्ठ की शरण में चले गये। महर्षि वसिष्ठ ने उन्हें कुछ शर्तों पर उन्हें अभयदान दे दिया। और सगर को आज्ञा दी कि वे उनको न मारे। राजा सगर अपनी प्रतिज्ञा भी नहीं छोङ सकते थे और महर्षि वसिष्ठ जी की आज्ञा भी नहीं टाल सकते थे। अत: उन्होंने उन राजाओं का सिर शिखा सहित मुँडवाकर उनकों छोङ दिया। 

प्राचीन काल में किसीकी शिखा काट देना मृत्युदण्ड के समान माना जाता था। बङे दुख की बात हैं कि आज हिन्दु लोग अपने हाथों से अपनी शिखा काट रहे है। यह गुलामी की पहचान हैं। 
    
शिखा हिन्दुत्व की पहचान हैं। यह आपके धर्म और संस्कृतिकी रक्षक हैं। शिखा के विशेष महत्व के कारण ही हिन्दुओं ने यवन शासन के दौरान अपनी शिखा की रक्षा के लिए सिर कटवा दिये पर शिखा नहीं कटवायी।

डा॰ हाय्वमन कहते है ''मैने कई वर्ष भारत में रहकर भारतीय संस्कृति का अध्ययन किया हैं, यहाँ के निवासी बहुत काल से चोटी रखते हैं , जिसका वर्णन वेदों में भी मिलता हैं। दक्षिण भारत में तो आधे सिर पर 'गोखुर' के समान चोटी रखते हैं । उनकी बुध्दि की विलक्षणता देखकर मैं अत्यंत प्रभावित हुआ हुँ। अवश्य ही बौध्दिक विकास में चोटी बड़ी सहायता देती हैं। सिर पर चोटी रखना बढा लाभदायक हैं। मेरा तो हिन्दु धर्म में अगाध विश्वास हैं और मैं चोटी रखने का कायल हो गया हूँ । 

"प्रसिद्ध वैज्ञानिक डा॰ आई॰ ई क्लार्क एम॰ डी ने कहा हैं " मैंने जबसे इस विज्ञान की खोज की हैं तब से मुझे विश्वास हो गया हैं कि हिन्दुओं का हर एक नियम विज्ञान से परिपूर्ण हैं। चोटी रखना हिन्दू धर्म ही नहीं, सुषुम्ना के केद्रों की रक्षा के लिये ऋषि-मुनियों की खोज का विलक्षण चमत्कार हैं।

"इसी प्रकार पाश्चात्य विद्वान मि॰ अर्ल थामस लिखते हैं की "सुषुम्ना की रक्षा हिन्दु लोग चोटी रखकर करते हैं जबकि अन्य देशों में लोग सिर पर लम्बे बाल रखकर या हैट पहनकर करते हैं। इन सब में चोटी रखना सबसे लाभकारी हैं। किसी भी प्रकार से सुषुम्ना की रक्षा करना जरुरी हैं।

"वास्तव में मानव-शरीर को प्रकृति ने इतना सबल बनाया हैं की वह बड़े से बड़े आघात को भी सहन करके रह जाता हैं परन्तु शरीर में कुछ ऐसे भी स्थान हैं जिन पर आघात होने से मनुष्य की तत्काल मृत्यु हो सकती हैं। इन्हें मर्म-स्थान कहाजाता हैं। 

शिखा के अधोभाग में भी मर्म-स्थान होता हैं, जिसके लिये सुश्रुताचार्य ने लिखा है मस्तकाभ्यन्तरोपरिष्टात् शिरासन्धि सन्निपातो।

रोमावर्तोऽधिपतिस्तत्रपि सद्यो मरणम्।
अर्थात् मस्तक के भीतर ऊपर जहाँ बालों का आवर्त(भँवर) होता हैं, वहाँ संपूर्ण नाङियों व संधियों का मेल हैं, उसे 'अधिपतिमर्म' कहा जाता हैं। यहाँ चोट लगने से तत्काल मृत्यु हो जाती हैं(सुश्रुत संहिता शारीरस्थानम् : ६.२८)

सुषुम्ना के मूल स्थान को 'मस्तुलिंग' कहते हैं। मस्तिष्क के साथ ज्ञानेन्द्रियों कान, नाक, जीभ, आँख आदि का संबंध हैं और कामेन्द्रियों - हाथ, पैर, गुदा, इन्द्रिय आदि का संबंध मस्तुलिंग से हैं मस्तिष्क व मस्तुलिंग जितने सामर्थ्यवान होते हैं उतनी ही ज्ञानेन्द्रियों और कामेन्द्रियों - की शक्ति बढती हैं। मस्तिष्क ठंडक चाहता हैं और मस्तुलिंग गर्मी मस्तिष्क को ठंडक पहुँचाने के लिये क्षौर कर्म करवाना और मस्तुलिंग को गर्मी पहुँचाने के लिये गोखुरके परिमाण के बाल रखना आवश्यक होता है।

बालकुचालक हैं, अत: चोटी के लम्बे बाल बाहर की अनावश्यक गर्मी या ठंडक से मस्तुलिंग की रक्षा करते हैं। 

#शिखा_रखने_के_अन्य_लाभ
🔸🔸🔸🔸🔸🔸🔸🔸🔸
१ शिखा रखने तथा इसके नियमों का यथावत् पालन करने से सद्‌बुद्धि , सद्‌विचारादि की प्राप्ति होती हैं।

२ आत्मशक्ति प्रबल बनती हैं।

३ मनुष्य धार्मिक , सात्विक व संयमी बना रहता हैं।

४ लौकिक - पारलौकिक कार्यों मे सफलता मिलती हैं।

५सभी देवी देवता मनुष्य की रक्षा करते हैं।

६ सुषुम्ना रक्षा से मनुष्य स्वस्थ, बलिष्ठ, तेजस्वी और दीर्घायु होता हैं।

७ नेत्र्ज्योति सुरक्षित रहती हैं।

इस प्रकार धार्मिक, सांस्कृतिक, वैज्ञानिक सभी दृष्टियों से शिखा की महत्ता स्पष्ट होती हैं। परंतु आज हिन्दू लोग पाश्चात्योंके चक्कर में पड़कर फैशनेबल दिखने की होड़ में शिखा नहीं रखते व अपने ही हाथों अपनी संस्कृति का त्याग कर डालते हैं।

लोग हँसी उड़ाये, पागल कहे तो सब सह लो पर धर्म का त्याग मत करो। मनुष्य मात्र का कल्याण चाहने वाली अपनी हिन्दू संस्कृति नष्ट हो रही हैं। हिन्दु स्वयं ही अपनी संस्कृति का नाश करेगा तो रक्षा कौन करेगा।

वेद में भी शिखा रखने का विधान कई स्थानों पर मिलता है,देखिये।

शिखिभ्यः स्वाहा (अथर्ववेद १९-२२-१५)

अर्थ👉 चोटी धारण करने वालों का कल्याण हो।

यशसेश्रियै शिखा।-(यजु० १९-९२)
अर्थ 👉 यश और लक्ष्मी की प्राप्ति के लिए सिर पर शिखा धारण करें।

याज्ञिकैंगौर्दांणि मार्जनि गोक्षुर्वच्च शिखा। (यजुर्वेदीय कठशाखा)

अर्थात्👉  सिर पर यज्ञाधिकार प्राप्त को गौ के खुर के बराबर(गाय के जन्में बछड़े के खुर के बराबर) स्थान में चोटी रखनी चाहिये।

जय हरिहर🚩🚩

Tuesday, November 1, 2022

कश्मीर के राजा को बचाया।

पौराणिक हिन्दू पण्डित बहुल क्षेत्र होने के कारण प्रारम्भ में जम्मू कश्मीर में आर्य समाज और उसकी सभी प्रकार की गतिविधियों पर प्रतिबंध लगा हुआ था। जो ई. सन् १८९२ तक जारी रहा।

प्रसंग ईसवी सन् १९५६ से सम्बन्धित है, जो इस प्रकार है कि आर्य समाज के भजनोपदेशक व प्रचारक ओमप्रकाश वर्मा जी उस वर्ष आर्यसमाज हजूरी बाग, श्रीनगर जम्मू-कश्मीर में वेद प्रचार-सप्ताह के सम्बन्ध में गये हुए थे। इस कार्यक्रम में उनके साथ अन्य चार आर्य समाजी भी पधारे थे। 
  एक दिन आर्यसमाज मन्दिर में ओमप्रकाश वर्मा जी के कार्यक्रम के समय पर ब्रिग्रेडियर राजेन्द्र सिंह भी श्रोताओं में विराजमान थे। ओमप्रकाश वर्मा जी के भजन, गीत तथा उपदेशों को सुनकर बिग्रेडियर बोले कि कल कृष्ण जन्माष्टमी है। यहां के सैनिक मन्दिर में यह त्यौहार मनाया जायेगा। क्या कल वहां यही भजन, गीत व उपदेश उनके सैनिकों को भी आप सायं सात बजे सुनायेंगे?
    वर्मा जी ने उनके प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। अगले दिन सैनिक मंदिर में वर्मा जी का आगमन हुआ। यह मन्दिर डा. कर्णसिंह (राजा हरिसिंह के पुत्र, जो अब प्रदेश के राज्यपाल थे) की कोठी के पास ही था। वर्मा जी ने वहां योगेश्वर श्री कृष्ण जी के विषय में गीत, भजन व विचार प्रस्तुत किये। वर्मा जी के कार्यक्रम को सुनकर सैनिकों व उनके उच्चाधिकारियों में अद्भुत उत्साह का संचार हुआ। वापसी के लिये वर्मा जी जब ब्रिगेडियर साहब की गाड़ी के भीतर बैठे ही थे कि दो व्यक्ति सामने की सड़क से उनके पास आए तथा बोले - ‘क्या पं. ओम प्रकाश वर्मा आप ही हैं?’ वर्मा जी ने "हा" में उत्तर दिया।
उन दो व्यक्तियों में से एक व्यक्ति कश्मीर के राज्यपाल डा. कर्णसिंह के मामा ओंकार सिंह थे। वर्मा जी ने उनसे पूछा - ‘मेरे योग्य सेवा बताइए’। 

    उन्होंने कहा कि यहां आपने जो उपदेश सुनाए हैं, हमने सड़क पार उस कोठी में बैठकर पूरी तरह सुने हैं। क्या आप यही विचार वहां आकर भी सुनाएंगे?
वर्मा जी ने उनका निमंत्रण स्वीकार्य करते हुए कल का दिन निश्चित किया और आर्य समाज मंदिर में लौट आए।
आर्यसमाज मन्दिर लौटकर वर्मा जी ने पूरा वृतान्त आर्यसमाज के अपने साथी विद्वानों को सुनाया जो वहां उनके साथ पधारे हुए थे। वह सभी विद्वान वर्मा जी की इन बातों को सुन कर बहुत प्रसन्न हुए। उन विद्वानों ने कहा कि ऋषि दयानन्द सरस्वती के तीन ग्रन्थ ‘सत्यार्थप्रकाश’, ‘संस्कारविधि’ तथा ‘ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका’  कर्णसिंह को अवश्य भेंट कीजिएगा।
   
महाराजा हरिसिंह के पुत्र कर्ण सिंह अपनी माताजी के नाम पर बने ‘तारादेवी निकेतन’ में तब सपरिवार रहते थे। उन दिनों कर्ण सिंह जम्मू व कश्मीर के राज्यपाल थे। वह शासकीय बंगले में न रहकर ‘तारादेवी निकेतन’ में ही रहते थे। 

  अगले दिन निर्धारित समय पर वर्मा जी उक्त स्थान पर पहुंच गए। वहां एक श्वेत वस्त्रधारी महानुभाव को भी उन्होंने देखा। (वह जनरल करिअप्पा थे)
उन्होंने वर्मा जी से पूछा आपका परिचय?
वर्मा जी ने कहा कि मैं आर्यसमाज का एक उपदेशक व प्रचारक ओमप्रकाश वर्मा हूं। 
उन्होंने पूछा कि आजकल आर्यसमाज क्या कर रहा है? वर्मा जी ने बताया कि आजकल आर्यसमाज हिन्दी रक्षा आन्दोलन चलाने की तैयारी में है। 
उन दोनों कि वार्ता में  कर्णसिंह ने हस्तक्षेप करते हुए कहा कि - आजकल आर्यसमाज की गतिविधियां तो हम पढ़ते रहते हैं, परन्तु यह बताइए कि आर्यसमाज को स्थापित हुये लगभग अस्सी वर्ष बीत गये हैं, इन अस्सी वर्षों में आर्यसमाज ने क्या किया है?....

"आप जैसे राजाओं को ईसाई बनने से बचाया है" 
(वर्मा जी ने बिना समय गवाए सहज और निडर भाव से उत्तर दिया) 

कर्णसिंह जी बोले क्यों गलत बात बोलते हो, हमें आर्यसमाज ने ईसाई होने से बचाया है? हम यह कदापि नहीं मान सकते। 
आगे पं. ओमप्रकाश वर्मा जी ने कहा कि आपको नहीं, आपके दादा महाराज प्रताप सिंह को ईसाई बनने से बचाया है। यदि वे तब ईसाई बन गये होते तो आज आप भी अवश्य ईसाई ही होते। 
कर्ण सिंह जी ने पूछा कि आप कैसे कहते हैं कि मेरे दादा जी को ईसाई बनने से आर्यसमाज ने बचाया? 

वर्मा जी ने कहा, सुनिए, डा. साहब! आपके दादा प्रताप सिंह के शासनकाल में जम्मू-कश्मीर में हिन्दुओं के पौराणिक पंडितों के दबाव के कारण आर्यसमाज पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगा हुआ था। 
सन् 1892 में राजस्थान के आर्य समाज के विद्वान गणपति शर्मा लाहौर स्यालकोट के मार्ग से जम्मू पधारे और फिर बाद में श्रीनगर से 23 किमी. दूर स्थित नीचे एक हाऊस बोट में वह रहने लगे। 
उन्हीं दिनों में एक ईसाई पादरी जॉनसन श्रीनगर में पहुंचा। उसने महाराजा प्रताप सिंह से उनके हिंदू पण्डितों से शास्त्रार्थ कराने को कहा। पादरी जॉनसन ने कहा कि यदि मै शास्त्रार्थ में पराजित हो गया तो आपका धर्म स्वीकार करूंगा, किन्तु यदि आपके हिन्दू पण्डित हार गये तो आपको ईसाई बनना होगा।
महाराजा प्रताप सिंह ने उसका कहना स्वीकार्य कर लिया।
    निश्चित तिथि पर राज-दरबार में शास्त्रार्थ हुआ। विषय था ‘मूर्तिपूजा’। पादरी जॉनसन द्वारा मूर्तिपूजा पर किए गए अक्षेपो का हिंदुओ के पौराणिक पंडितो के पास कोई उत्तर नहीं था। कोई भी पौराणिक पण्डित इसे सिद्ध न कर सका। 
पूर्व निर्धारित शर्त अनुसार महाराजा प्रताप सिंह हिंदू पण्डितों का पक्ष कमजोर पड़ता देखकर बपतिस्मा पढ़कर ईसाई बनने को तैयार हो रहे थे। किन्तु, तभी आर्य समाज के विद्वान पं. गणपति शर्मा, (जो बहुत देर से सभा में शांत बैठे हुए थे) अब खड़े हो गये। खड़े होकर गणपति शर्मा जी ने महाराज प्रतापसिंह को सम्बोधित करते हुए कहा - महाराज! यदि आप मुझे आज्ञा दें,  तो मैं जॉनसन से शास्त्रार्थ करूंगा।
 चूंकि महाराज की पराजय हो रही थी, अतः उन्होंने  तुरन्त आज्ञा दे दी। 
 परन्तु पराजित हिन्दू पण्डितों व पादरी जॉनसन ने एक स्वर में यह कहकर गणपति शर्मा जी का शास्त्रार्थ हेतु विरोध किया कि यह तो एक 'आर्यसमाजी' है, अतः ये शास्त्रार्थ नहीं कर सकता। महाराज ने यह सोचकर कि ये आर्य समाजी कदाचित इस जॉनसन को तो ठीक कर ही देगा  इसलिए महाराज ने पण्डितों व जॉनसन की आपत्तियो को निरस्त कर दिया और गणपति शर्मा जी को जॉनसन से शास्त्रार्थ करने को स्वीकृति देते हुए उन्हें आमन्त्रित किया।  
   पं. गणपति जी बोले - पादरी जी आप प्रश्न करें, मैं उत्तर देता हूं। 
जॉनसन बोले, आप हमसे शास्त्रार्थ करिए। 

पंण्डित गणपति शर्मा ने पादरी से कहा कि पहले यह बताएं कि शास्त्रार्थ शब्द का अर्थ क्या है? क्या शास्त्र से आपका आशय छः शास्त्रों - योग, सांख्य, न्याय, वैशेषिक, वेदान्त तथा मीमांसा से है? यदि इनसे ही आपका आशय है तो बताइये कि इन दर्शन शास्त्रों में से किस का अर्थ करने आप यहां आए हैं? क्या आपको ज्ञान है कि अर्थ शब्द भी अनेकार्थक है। अर्थ का एक अर्थ 'धन' होता है। दूसरा अर्थ प्रयोजन होता है जबकि तीसरा अर्थ द्रव्य, गुण व कर्म (वैशेषिक दर्शनानुसार) भी है। आप कौन-सा अर्थ समझने-समझाने आये हैं? शास्त्र भी केवल छः नहीं हैं। धर्मशास्त्र, अर्थशास्त्र, कामशास्त्र व नीतिशास्त्र आदि कई शास्त्र विषयों की दृष्टि से भी हैं। 
अतः अब आप ‘शास्त्रार्थ’ शब्द का अर्थ समझायेंगे तो हम अपनी बात आगे बढ़ाएंगे। 

    जॉनसन ने लड़खड़ाते हुए शब्दो में उत्तर दिया कि हम इसका उत्तर देने में असमर्थ है। तब पं. जी ने  कहा, महाराज! जॉनसन तो उत्तर नहीं दे रहा है।  इस पर प्रतापसिंह जी बोले,  यह तो आपके पहले ही प्रश्न का उत्तर नहीं दे पा रहा है व मौन खड़ा हुआ है, अत: अब ये पादरी अपने घर को चला जाएं। 
आगे महाराज ने कहा कि प. गणपति जी! आपने केवल मुझे ही नहीं, बल्कि पूरे जम्मू-कश्मीर की प्रतिष्ठा को बचाया है। हम आप पर प्रसन्न हैं। बताईये, आपको क्या भेंट दे?
 गणपति जी ने उत्तर दिया - महाराज! मुझे अपने लिये कुछ भी नहीं चाहिये। देना ही है तो दो काम कर दीजिए। प्रथम तो यह कि जम्मू कश्मीर में आर्यसमाज पर लगा प्रतिबन्ध हटा दीजिए तथा दूसरा काम यह करें कि यहां पर आर्यसमाज की स्थापना भी हो जाये। 

   गणपति वर्मा जी ने यह घटना राज्यपाल कर्णसिंह को पूरी सुनाई और उन्हें यह भी बताया कि श्रीनगर में हजूरी बाग का आर्यसमाज मन्दिर आपके दादा प्रतापसिंह जी द्वारा दी गई भूमि पर ही स्थापित हुआ था। इस शास्त्रार्थ के बाद प्रताप सिंह जी ने पौराणिक हिंदू पंडितो के दबाव के चलते अपने पिता महाराजा रणवीर सिंह द्वारा आर्यसमाज पर लगाए गए प्रतिबन्धों को तुरन्त हटा दिया था।  ओमप्रकाश वर्मा जी की बातें सुनकर  कर्णसिंह मौन हो गये। वर्मा जी ने उन्हें यह भी बताया कि यह घटना इतिहासकार पण्डित इन्द्र विद्यावाचस्पति जी (स्वामी श्रद्धानंद के पुत्र) की इतिहास की पुस्तक में वर्णित है। 
इसके बाद कर्णसिंह के घर पर वर्मा जी के भजन, गीत व उपदेश हुये तथा कार्यक्रम के पश्चात उनकी गाड़ी उन्हें हजूरी बाग आर्यसमाज मन्दिर, श्रीनगर में वापिस छोड़ गई। वर्मा जी ने आर्यसमाज में उनके साथ पधारे अन्य चारों उपदेशकों को उक्त पूरी घटना विस्तारपूर्वक सुनाई तो वे सभी भी बहुत प्रसन्न हुये और उन्होंने ओमप्रकाश वर्मा जी की खूब प्रशंसा की।     

॥ओ३म्॥