Sunday, May 28, 2023

वीरसावरकर.

एक महान लेखक जिनकी पुस्तकों को उनके प्रकाशन से पहले दो देशों की सरकारों ने प्रतिबंधित कर दिया था।

वीर सावरकर पहले क्रांतिकारी राष्ट्रभक्त स्वातंत्र्य वीर थे जिनके मरणोपरांत 26 फरवरी 2003 को उसी संसद में मूर्ति लगी जिसमे कभी उनके निधन पर शोक प्रस्ताव भी रोका गया था

सावरकर भारत के पहले व्यक्ति थे जिन्होंने 1857 की लड़ाई को भारत का 'स्वाधीनता संग्राम' बताते हुए लगभग एक हज़ार पृष्ठों का इतिहास 1907 में लिखा

 

वीर सावरकर पहले भारतीय थे जिसने सन् 1906 में ‘स्वदेशी’ का नारा दे, विदेशी कपड़ों की होली जलाई थी। 

वीर सावरकर पहले भारतीय थे जिन्होंने पूर्ण स्वतंत्रता की मांग की।

सावरकर ने ही वह पहला भारतीय झंडा बनाया था, जिसे जर्मनी में 1907 की अंतर्राष्ट्रीय सोशलिस्ट कांग्रेस में मैडम कामा ने फहराया था।

बाल गंगाधर तिलक की पार्टी स्वराज में कुछ दिन रहने के बाद सावरकर ने हिंदू महासभा नाम की अलग पार्टी बना ली। इसके बाद 1937 में भारतीय हिंदू महासभा के अध्यक्ष बने और आगे जाकर भारत छोड़ो आंदोलन का हिस्सा बने।

वीर सावरकर पहले ऐसे क्रांतिकारी थे जिन्होंने विदेशी वस्त्रों का दहन किया,तब बाल गंगाधर तिलक ने अपने पत्र केसरी में उनको शिवाजी के समान बताकर उनकी प्रशंसा की थी

वीर सावरकर ऐसे पहले बैरिस्टर थे जिन्होंने 1909 में ब्रिटेन में ग्रेज-इन परीक्षा पास करने के बाद ब्रिटेन के राजा के प्रति वफादार होने की शपथ नही ली... इस कारण उन्हें बैरिस्टर होने की उपाधि का पत्र कभी नही दिया गया

वीर सावरकर पहले ऐसे लेखक थे जिन्होंने अंग्रेजों द्वारा ग़दर कहे जाने वाले संघर्ष को '1857 का स्वातंत्र्य समर' नामक ग्रन्थ लिखकर सिद्ध कर दिया

'1857 का स्वातंत्र्य समर' विदेशों में छापा गया और भारत में भगत सिंहने इसे छपवाया था जिसकी एक एक प्रति तीन-तीन सौ रूपये में बिकी थी... भारतीय क्रांतिकारियों के लिए यह पवित्र गीता थी... पुलिस छापों में देशभक्तों के घरों में यही पुस्तक मिलती थी

सावरकर पहले क्रान्तिकारी थे जिनका मुकद्दमा अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय हेग में चला, मगर ब्रिटेन और फ्रांस की मिलीभगत के कारण उनको न्याय नही मिला और बंदीबनाकर भारत लाया गया..

हिन्दू को परिभाषित करते हुए लिखा कि-'आसिन्धु: सिन्धुपर्यन्ता यस्य भारत भूमिका| पितृभू: पुण्यभूश्चैव स वै हिन्दुरिती स्मृतः.'अर्थात समुद्र से हिमालय तक भारत भूमि जिसकी पितृभू है जिसके पूर्वज यहीं पैदा हुए हैं व यही पुण्यभू है, जिसके तीर्थ भारत भूमि में ही हैं,

वीर सावरकर पहले ऐसे राष्ट्रभक्त हुए जिनके शिलालेख को अंडमान द्वीप की सेल्युलर जेल के कीर्ति स्तम्भ से UPA सरकार के मंत्री मणिशंकर अय्यर ने हटवा दिया था और उसकी जगह गांधी का शिलालेख लगवा दिया 

वे एक महान क्रांतिकारी, इतिहासकार, समाज सुधारक, विचारक, चिंतक, साहित्यकार थे, जिनसे अंग्रेजी सत्ता भयभीत थी

सावरकर वह कवि थे, जिन्होंने कलम-काग़ज़ के बिना जेल की दीवारों पर पत्थर के टुकड़ों से कवितायें लिखीं.

उन्होंने अपनी रची दस हज़ार से भी अधिक पंक्तियों को प्राचीन वैदिक साधना के अनुरूप वर्षों स्मृति में सुरक्षित रखा, जब तक वह किसी न किसी तरह देशवासियों तक न पहुंच गई

वीर सावरकर को ब्रिटिश सरकार ने क्रान्ति कार्यों के लिए दो-दो आजन्म कारावास की सजा दी, जो विश्व के इतिहास की पहली एवं अनोखी सजा थी.

साल 1937 में वे अखिल भारतीय हिन्दू महासभा के अहमदाबाद में हुए 19वें सत्र के अध्यक्ष चुने गये, जिसके बाद वे पुनः सात वर्षों के लिये अध्यक्ष चुने गये।

उस समय धार्मिक भजनों का पाठ करना केवल ब्राह्मणों का निजीकरण था। 1930 में, सावरकर ने पतितपावन मंदिर के परिसर में 'ऑल हिंदू गणपति महोत्सव' शुरू किया, जहां हिंदु के भंगी समुदाय के एक व्यक्ति द्वारा धार्मिक भजन सुनाए गए थे।

आजादी के लिए काम करने के लिए उन्होंने एक गुप्त सोसायटी बनाई थी, जो 'मित्र मेला' के नाम से जानी गई।

'इंडियन सोसियोलॉजिस्ट' और 'तलवार' में उन्होंने अनेक लेख लिखे, जो बाद में कोलकाता के 'युगांतर' में भी छपे।

वीर सावरकर 1911 से 1921 तक अंडमान जेल में रहे। 1921 में वे स्वदेश लौटे और फिर 3  साल जेल भोगी। जेल में 'हिन्दुत्व' पर शोध ग्रंथ लिखा

 

9 अक्टूबर 1942 को भारत की स्वतंत्रता के लिए चर्चिल को समुद्री तार भेजा और आजीवन अखंड भारत के पक्षधर रहे।

6 जुलाई 1920 को अपने भाई नारायण राव को लिखे एक पत्र में, सावरकर लिखते हैं "मुझे जातिगत भेदभाव और छुआछूत के खिलाफ बगावत करने की ज़रूरत है, जितना कि मुझे भारत के विदेशी कब्जे के खिलाफ लड़ने की ज़रूरत महसूस होती है"।

मंदिरों में अछूतों के लिए पहुंच प्रदान करने के लिए आंदोलन करते हुए उन्होंने उस विचार को जन के भीतर प्रचारित किया जिसमें कहा गया था कि 'वह भगवान जो अछूत द्वारा पूजा करने से अशुद्ध हो जाता है वह भगवान नहीं है।'

"भगवान की पूजा करना सभी जातियों के हिंदूओं का जन्म सिद्ध अधिकार है। इस अधिकार का प्रयोग करने की अनुमति देना वास्तविक धार्मिकता है।

अंडमान की सेल्यूलर जेल में रहते हुए उन्होंने बंदियों को शिक्षित करने का काम तो किया ही, साथ ही साथ वहां हिंदी के प्रचार-प्रसार हेतु काफी प्रयास किया।

सावरकर का हिंदुत्व धर्म पर नहीं अपितु हिंदुस्थान राष्ट्र के आधार पर था । इसलिए 26 फरवरी 1966 को उनके निधन के बाद एक लेख में लंदन टाइम्स ने उन्हें ‘पहला हिंदू राष्ट्रवादी’ करार दिया था।

मातृभूमि! तेरे चरणों में पहले ही मैं अपना मन अर्पित कर चुका हूँ। देश सेवा में ईश्वर सेवा है, यह मानकर मैंने तेरी सेवा के माध्यम से भगवान की सेवा की - वीर सावरकर

वे प्रथम क्रान्तिकारी थे, जिन पर स्वतंत्र भारत की सरकार ने झूठा मुकदमा चलाया और बाद में निर्दोष साबित होने पर माफी मांगी।

इनके नाम पर ही पोर्ट ब्लेयर के विमानक्षेत्र का नाम वीर सावरकर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा रखा गया है।

सावरकर 50 साल कैद की सजा सुनाए जाने के बाद भी उतने भावुक नहीं हुए, जितने कि उन्होंने 1931 में मंदिरों में अछूतों के प्रवेश से संबंधित एक गीत लिखा था। इस गीत का अनुवाद "मुझे भगवान की मूर्ति के दर्शन करने दो, भगवान की पूजा करने दो।" गीत लिखते समय उनकी आंखों से आंसू बह निकले।

मनुष्य की सम्पूर्ण शक्ति का मूल उसके अहम की प्रतीति में ही विद्यमान है।

मन सृष्टि के विधाता द्वारा मानव-जाति को प्रदान किया गया एक ऐसा उपहार है, जो मनुष्य के परिवर्तनशील जीवन की स्थितियों के अनुसार स्वयं अपना रूप और आकार भी बदल लेता है।

कष्ट ही तो वह चाक शक्ति है जो मनुष्य को कसौटी पर परखती है और उसे आगे बढ़ाती है।

कर्तव्य की निष्ठा संकटों को झेलने में, दुःख उठाने में और जीवन – भर संघर्ष करने में ही समाविष्ट है। यश – अपयश तो मात्र योगायोग की बातें हैं।

Friday, May 26, 2023

उठता लहंगा, बढ़ती इज्जत ?

सन 1980 तक लड़कियाँ कालेज में साड़ी पहनती थी या फिर सलवार सूट। 
इसके बाद साड़ी पूरी तरह गायब हुई और सलवार सूट के साथ जीन्स आ गया। 
2005 के बाद सलवार सूट लगभग गायब हो गया और इसकी जगह Skin Tight काले सफेद #स्लैक्स आ गए, फिर 2010 तंक लगभग #पारदर्शी_स्लैक्स आ गए जिसमे #आंतरिक_वस्त्र पूरी तरह स्प्ष्ट दिखते हैं।

फिर सूट, जोकि पहले घुटने या जांघो के पास से 2 भाग मे कटा होता था, वो 2012 के बाद कमर से 2 भागों में बंट गया और 

फिर 2015 के बाद यह सूट लगभग ऊपर नाभि के पास से 2 भागो मे बंट गया, जिससे कि लड़की या महिला के नितंब पूरी तरह स्प्ष्ट दिखाई पड़ते हैं और 2 पहिया गाड़ी चलाती या पीछे बैठी महिला अत्यंत विचित्र सी दिखाई देती है, मोटी जाँघे, दिखता पेट।

आश्चर्य की बात यह है कि यह पहनावा कॉलेज से लेकर 40 वर्ष या ऊपर उम्र की महिलाओ में अब भी दिख रहा है। बड़ी उम्र की महिलायें छोटी लड़कियों को अच्छा सिखाने की बजाए उनसे बराबरी की होड़ लगाने लगी है। नकलची महिलाए, 

अब कुछ नया हो रहा 2018 मे, स्लैक्स ही कुछ Printed या रंग बिरंगा सा हो गया और सूट अब कमर तक आकर समाप्त हो गया यानि उभरे हुए नितंब अब आपके दर्शन हेतु प्रस्तुत है।

साथ ही कॉलेजी लड़कियों या बड़ी महिलाओ मे एक नया ट्रेंड और आ गया, स्लैक्स अब पिंडलियों तंक पहुच गया, कट गया है नीचे से

(पुरुषों की वेशभूषा में पिछले 40 वर्ष मे कोई उल्लेखनीय परिवर्तन नही हुआ) 

पहले पुरुष साधारण या कम कपड़े पहनते थे, नारी सौम्यता पूर्वक अधिक कपड़े पहनती थी, पर अब टीवी सीरियलों, फिल्मों की चपेट में आकर हिन्दू नारी के आधे कपड़े स्वयं को Modern बनने में उतर चुके हैं।

यूरोप द्वारा प्रचारित #नंगेपन के षडयंत्र की सबसे आसान शिकार, भारत की मॉडर्न महिलाए है, जो फैशन के नाम पर खुद को नंगा करने के प्रति वेहद गंभीर है, पर उन्हें यह ज्ञात नहीं कि वो जिसकी नकल कर इस रास्ते पर चल पड़ी है, उनको इस नंगापन के लिए विज्ञापनों में करोड़ो डॉलर मिलते है। उन्हें कपडे न पहनने के पैसे मिलते हैं। 

यहाँ कुछ महिलाए सोचेंगी की हमे क्या पहनना है ये हम तय करेंगे कोई और नहीं, तो आप अपनी जगह बिलकुल सही हैं, लेकिन ज़रा सोचिये यदि आप ऐसे कपडे पहनती हैं जिसके कारण आप खुद को असहज महसूस करती हो, ऐसे दिखावे के कपडे पहनने से क्या फायदा?

कल्याण - नारी अंक, गीताप्रेस अवश्य पढ़ें।
यह पोस्ट केवल हमारी बहु, बेटियों, माताओं, बहनों को यूरोप द्वारा प्रचारित नंगेपन के षडयंत्र का शिकार बननें से रोकने के लिए है, यदि इस पोस्ट को आप अपनें बहनों, बेटियों से शेयर करें तो हो सकता है, हमारा आनें वाला समाज प्रगति की ओर तत्पर होवे। 

और हां सुनो लडकियों/महिलाओं जो आपके शुभचिंतक हैं वही चाहते हैं कि आप मर्यादा मे सुशोभित और सुसज्जित रहें आप की तरफ कोई  नजर उठाकर ना देखे वरना दुनिया तो नंगा ही देखना चाहती है

Note-अगर कम कपड़े पहनना ही मॉडर्न होना है 
तो जानवर इसमें आप से बहुत आगे हैं-
ओर तो ओर जो माता है, माताएं सासू है वहीं अपनी बेटी -बहू से अगं प्रदर्शन या भारतीय संस्कृति परिधान पहनने से हिचकिचाते हैं,या पिछड़ापन लगता है।ऐसी माताएं आपने अधिनस्थ को क्या कह सकती है ।

आज ही पता चला खांग्रेस की छटपटाहट का कारण.

नरेंद्र मोदी ने इलाहाबाद संग्रहालय में रखा हुआ “सेंगोल” निकाल कर लोकसभा में स्थापित करने का निर्णय किया है।

यह “सेंगोल” सनातन संस्कृति का चिन्ह है जो 800 वर्ष तक राज करने वाले “चोला राजवंश” की निशानी है और जो राज चलाने के लिए मार्गदर्शन करता था राजवंश के राजाओं का।

नेहरू ने इसे स्वीकार तो कर लिया परंतु क्योंकि यह सनातन की निशानी था, इसे लोकसभा में स्थापित न करके संग्रहालय में रखवा दिया और किसी को इसके बारे में जानकारी ही नहीं हुई।

गयासुद्दीन नेहरू ने न्यायप्रिय शासन संचालन के लिए अंग्रेजों से सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में सैंगोल ग्रहण किया था, उसके बाद प्रधानमंत्री बने। इस परंपरा को क्यों भुला दिया गया? यह नेहरू और कांग्रेस के लिए फिर से एक बड़ा प्रश्न बनकर सामने आ गया है।

इससे भी बड़ी दुख की बात है कि सैंगोल के शीर्ष पर भोले बाबा के अनन्य भक्त नंदी की मूरत बनी हुई है। जब मोदी जी सैंगोल स्वीकार कर शासन पीठ के समक्ष इसे स्थापित करेंगे, तो एक बार फिर भारत की तथाकथित धर्मनिरपेक्षता पर प्रश्न खड़ा हो जाएगा। लेकिन इस प्रश्न के लिए भी कौन उत्तरदाई है, गयासुद्दीन नेहरू.

#सेंगोल का अर्थ कर्तव्यपरायणता होता है। यह एक #राजदंड है। शिवभक्त महाशक्ति चोल राजा अपने 500 वर्ष के लंबे शासनकाल में सत्ता हस्तांतरित करते थे।
यह पवित्र राजदंड वैदिक #पुजारियों द्वारा पहले गंगाजल से पवित्र किया जाता है। फिर क्रमशः शासक को सौंपते हैं। उत्तरापथ में राजमुकुट से सत्ता हस्तांतरित होती है।

1947 में राजगोपालाचारी के अनुरोध पर कि भारतीय संस्कृति में सत्ता हस्तांतरण एक प्रक्रिया से होती है, नेहरू तैयार हो गये।

चेन्नई के सोनारों ने एक पवित्र सेंगोल बनाया। जिसे पहले लाकर माउंटबेटन को दिया गया। फिर पुजारियों ने मंत्रोच्चार से इसे गंगाजल से पवित्र किया और नेहरू को सौंप दिया।

यह कार्य तमिलनाडु के शैव मठ थिवरुदुथुराई के महायाजकों ने संपन्न कराया गया था।

तमिलनाडु की कलाकार पद्मा सुब्रमण्यम ने जब प्रधानमंत्री को यह अवगत कराया तो उस सेंगोल की बहुत खोज हुई।
प्रयागराज के संग्रहालय में यह सेंगोल मिला। जो लिखा गया था वह कहने योग्य नहीं है। इसे संग्रहालय में नेहरू की छड़ी कहके रखा गया था।

सेंगोल पर गोल पृथ्वी बनी है। उस पर भगवान शिव के वाहन नंदी हैं। यह सनातन धर्म के राज्यधर्म का एक प्रतीक अब नई संसद में लोकसभा अध्यक्ष की पीठ के पास होगा।
प्रधानमंत्री ने अपनी सांस्कृतिक परंपरा में यह अमूल्य योगदान किया है।

Tuesday, May 23, 2023

ताइवान के लोग भारतीयों से नफरत करते हैं क्यों...?

जानना जरूरी है!

ताइवान में  करीब एक वर्ष बिताने पर एक भारतीय महानुभाव की कई लोगों से दोस्ती हो चुकी थी, परंतु फिर भी उन्हें लगा कि वहाँ के लोग उनसे कुछ दूरी बनाकर रखते हैं, वहाँ के किसी दोस्त ने कभी उन्हें अपने घर चाय के लिए तक नहीं बुलाया था...?

उन्हें यह बात बहुत अखर रही थी अतः आखिरकार उन्होंने एक करीबी दोस्त से पूछ ही लिया...?

थोड़ी टालमटोल करने के बाद उसने जो बताया, उसे सुनकर उस भारतीय महानुभाव के तो होश ही उड़ गए।

ताइवान वाले दोस्त ने पूछा, “200 वर्ष राज करने के लिए कितने ब्रिटिश भारत में रहे...?”

भारतीय महानुभाव ने कहा कि लगभग “10,000 रहे होंगे!”

तो फिर 32 करोड़ लोगों को यातनाएँ किसने दीं? वह आपके अपने ही तो लोग थे न...?

जनरल डायर ने जब "फायर" कहा था... तब 1300 निहत्थे लोगों पर गोलियाँ किसने दागी थीं? उस समय ब्रिटिश सेना तो वहाँ थी ही नहीं!

क्यों एक भी बंदूकधारी (सब के सब भारतीय) पीछे मुड़कर जनरल डायर को नहीं मार पाया...?

फिर उसने उन भारतीय महानुभाव से कहा, आप यह बताओ कि कितने मुगल भारत आए थे? उन्होंने कितने वर्ष तक भारत पर राज किया? और भारत को गुलाम बनाकर रखा! और आपके अपने ही लोगों को धर्म परिवर्तन करवाकर आप के ही खिलाफ खड़ा कर दिया!

जोकि 'कुछ' पैसे के लालच में, अपनों पर ही अत्याचार करने लगे! अपनों के साथ ही दुराचार करने लगे…!!

तो मित्र, आपके अपने ही लोग, कुछ पैसे के लिए, अपने ही लोगों को सदियों से मार रहे हैं...? आपके इस स्वार्थी धोखेबाज, दगाबाज, मतलबपरस्त, 'दुश्मनों से यारी और अपने भाईयों से गद्दारी'😢

इस प्रकार के व्यवहार एवं इस प्रकार की मानसिकता के लिए, हम भारतीय लोगों से सख्त नफ़रत करते हैं!

इसीलिए हमारी यही कोशिश रहती है कि यथासंभव, हम भारतीयों से सरोकार नहीं रखते...? उसने बताया कि, जब ब्रिटिश हांगकांग में आए तब एक भी व्यक्ति उनकी सेना में भरती नहीं हुआ क्योंकि उन्हें अपने ही लोगों के विरुद्ध लड़ना गवारा नहीं था...?

यह भारतीयों का दोगला चरित्र है, कि अधिकाँश भारतीय हर वक्त, बिना सोचे समझे, पूरी तरह बिकने के लिए तैयार रहते हैं...? और आज भी भारत में यही चल रहा है।

विरोध हो या कोई और मुद्दा, राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में और खुद के फायदों वाली गतिविधियों में भारत के लोग आज भी, राष्ट्र हित को हमेशा दोयम स्थान देते हैं, आप लोगों के लिए "मैं और मेरा परिवार" पहले रहता है "समाज और देश" जाए भाड़ में...?

Saturday, May 20, 2023

केरला की सच्ची स्टोरी*

वीरांगना नगेली कौन??* 

हम प्रत्येक शनिवार को महिला दिवस के रूप में मनाएंगे और क्रांतिकारी महिलाएं जैसे कि वीरांगना फूलन देवी और वीरांगना नगेली, वीरांगना झलकारी बाई कोरी को नमन करेंगें और उनके जीवन संघर्षों को जन जन तक पहुंचाने की कोशिश करेंगे। 

*‼️जब हिन्दू धर्म में महिलाओं को स्तन ढकने का भी  अधिकार नहीं था इसलिए स्तन ही काट दिया ‼️*

नंगेली का नाम केरल के बाहर शायद किसी ने न सुना हो. किसी स्कूल के इतिहास की किताब में उनका ज़िक्र या कोई तस्वीर भी नहीं मिलेगी.

लेकिन उनके साहस की मिसाल ऐसी है कि एक बार जानने पर कभी नहीं भूलेंगे, क्योंकि नंगेली ने स्तन ढकने के अधिकार के लिए अपने ही स्तन काट दिए थे.

केरल के इतिहास के पन्नों में छिपी ये लगभग सौ से डेढ़ सौ साल पुरानी कहानी उस समय की है जब केरल के बड़े भाग में त्रावणकोर के राजा का शासन था.

जातिवाद की जड़ें बहुत गहरी थीं और निचली जातियों की महिलाओं को उनके स्तन न ढकने का आदेश था. उल्लंघन करने पर उन्हें 'ब्रेस्ट टैक्स' यानी 'स्तन कर' देना पड़ता था.

डॉ.शीबा
केरल के श्री शंकराचार्य संस्कृत विश्वविद्यालय में जेंडर इकॉलॉजी और दलित स्टडीज़ की एसोसिएट प्रोफ़ेसर डॉ. शीबा केएम बताती हैं कि ये वो समय था जब पहनावे के कायदे ऐसे थे कि एक व्यक्ति को देखते ही उसकी जाति की पहचान की जा सकती थी.

डॉ. शीबा कहती हैं, "ब्रेस्ट टैक्स का मक़सद जातिवाद के ढांचे को बनाए रखना था. ये एक तरह से एक औरत के निचली जाति से होने की कीमत थी. इस कर को बार-बार अदा कर पाना इन ग़रीब समुदायों के लिए मुमकिन नहीं था."

केरल के हिंदुओं में जाति के ढांचे में नायर जाति को शूद्र माना जाता था जिनसे निचले स्तर पर एड़वा और फिर दलित समुदायों को रखा जाता था.

दलित समुदाय
उस दौर में दलित समुदाय के लोग ज़्यादातर खेतिहर मज़दूर थे और ये कर देना उनके बस के बाहर था. ऐसे में एड़वा और नायर समुदाय की औरतें ही इस कर को देने की थोड़ी क्षमता रखती थीं.

डॉ. शीबा के मुताबिक इसके पीछे सोच थी कि अपने से ऊंची जाति के आदमी के सामने औरतों को अपने स्तन नहीं ढकने चाहिए.

वो बताती हैं, "ऊंची जाति की औरतों को भी मंदिर में अपने सीने का कपड़ा हटा देना होता था, पर निचली जाति की औरतों के सामने सभी मर्द ऊंची जाति के ही थे. तो उनके पास स्तन ना ढकने के अलावा कोई विकल्प नहीं था."

इसी बीच एड़वा जाति की एक महिला, नंगेली ने इस कर को दिए बग़ैर अपने स्तन ढकने का फ़ैसला कर लिया.

केरल के चेरथला में अब भी इलाके के बुज़ुर्ग उस जगह का पता बता देते हैं जहां नंगेली रहती थीं.

मोहनन नारायण 
ऑटो चलाने वाले मोहनन नारायण हमें वो जगह दिखाने साथ चल पड़े. उन्होंने बताया, "कर मांगने आए अधिकारी ने जब नंगेली की बात को नहीं माना तो नंगेली ने अपने स्तन ख़ुद काटकर उसके सामने रख दिए."

लेकिन इस साहस के बाद ख़ून ज़्यादा बहने से नंगेली की मौत हो गई. बताया जाता है कि नंगेली के दाह संस्कार के दौरान उनके पति ने भी अग्नि में कूदकर अपनी जान दे दी.

नंगेली का जन्म स्थान
नंगेली की याद में उस जगह का नाम मुलच्छीपुरम यानी 'स्तन का स्थान' रख दिया गया. पर समय के साथ अब वहां से नंगेली का परिवार चला गया है और साथ ही इलाके का नाम भी बदलकर मनोरमा जंक्शन पड़ गया है.

बहुत कोशिश के बाद वहां से कुछ किलोमीटर की दूरी पर रह रहे नंगेली के पड़पोते मणियन वेलू का पता मिला.

मणियन
साइकिल किनारे लगाकर मणियन ने बताया कि नंगेली के परिवार की संतान होने पर उन्हें बहुत गर्व है.

उनका कहना था, "उन्होंने अपने लिए नहीं बल्कि सारी औरतों के लिए ये कदम उठाया था जिसका नतीजा ये हुआ कि राजा को ये कर वापस लेना पड़ा."

लेकिन इतिहासकार डॉ. शीबा ये भी कहती हैं कि इतिहास की किताबों में नंगेली के बारे में इतनी कम पड़ताल की गई है कि उनके विरोध और कर वापसी में सीधा रिश्ता कायम करना बहुत मुश्किल है.
वो कहती हैं, "इतिहास हमेशा पुरुषों की नज़र से लिखा गया है, पिछले दशकों में कुछ कोशिशें शुरू हुई हैं महिलाओं के बारे में जानकारी जुटाने की, शायद उनमें कभी नंगेली की बारी भी आ जाए और हमें उनके साहसी कदम के बारे में विस्तार से और कुछ पता चल पाए."

बैटरी सबसे पहले भारत मे बनी।

बैटरी बनाने की जो विधि है,जो आधुनिक विज्ञान ने भी स्वीकार कर रखी है,वो महर्षि अगस्त द्वारा दी गयी विधि है। 
महर्षि अगस्त ने सबसे पहले बैटरी बनाई थी और उसका विस्तार से वर्णन भी किया है अगस्तसंहिता मे। पूरा बैटरी बनाने की विधि या तकनीक उन्होंने दी है.माने जो सभ्यता बैटरी बनाना जानते हो वो विद्युत् के बारे मे भी जानते होंगे क्योंकि बैटरी ये ही करता है, कर्रेंट फ्लो के लिए ही हम उसका उपयोग करते है। ये अलग बात है के वो डायरेक्ट करेंट है और आज की दुनिया मे हम जो उपयोग करते है वो अल्टरनेटिव करेंट है। लेकिन डायरेक्ट कर्रेट का सबसे पहले जानकारी दुनिया को हुई तो वो भारत मे महर्षि अगस्त को ही है।

अगस्त्य संहिता में एक सूत्र हैः

संस्थाप्य मृण्मये पात्रे ताम्रपत्रं सुसंस्कृतम्‌।
छादयेच्छिखिग्रीवेन चार्दाभि: काष्ठापांसुभि:॥
दस्तालोष्टो निधात्वय: पारदाच्छादितस्तत:।
संयोगाज्जायते तेजो मित्रावरुणसंज्ञितम्‌॥

अर्थात् एक मिट्टी का बर्तन लें, उसमें अच्छी प्रकार से साफ किया गया ताम्रपत्र और शिखिग्रीवा (मोर के गर्दन जैसा पदार्थ अर्थात् कॉपरसल्फेट) डालें। फिर उस बर्तन को लकड़ी के गीले बुरादे से भर दें। उसके बाद लकड़ी के गीले बुरादे के ऊपर पारा से आच्छादित दस्त लोष्ट (mercuryamalgamated zinc sheet) रखे। इस प्रकार दोनों के संयोग से अर्थात् तारों के द्वारा जोड़ने पर मित्रावरुणशक्ति की उत्पत्ति होगी।

यहाँ पर उल्लेखनीय है कि यह प्रयोग करके भी देखा गया है जिसके परिणामस्वरूप 1.138 वोल्ट तथा 23 mA धारा वाली विद्युत उत्पन्न हुई। स्वदेशी विज्ञान संशोधन संस्था (नागपुर) के द्वारा उसके चौथे वार्षिक सभा में ७ अगस्त, १९९० को इस प्रयोग का प्रदर्शन भी विद्वानों तथा सर्वसाधारण के समक्ष किया गया।
अगस्त्य संहिता में आगे लिखा हैः
अनेन जलभंगोस्ति प्राणो दानेषु वायुषु।
एवं शतानां कुंभानांसंयोगकार्यकृत्स्मृत:॥

अर्थात सौ कुम्भों (अर्थात् उपरोक्त प्रकार से बने तथा श्रृंखला में जोड़े ! सौ सेलों) की शक्ति का पानी में प्रयोग करने पर पानी अपना रूप बदल कर प्राण वायु (ऑक्सीजन) और उदान वायु (हाइड्रोजन) में परिवर्तित हो जाएगा।

फिर लिखा गया हैः

वायुबन्धकवस्त्रेण निबद्धो यानमस्तके उदान स्वलघुत्वे बिभर्त्याकाशयानकम्‌।

अर्थात् उदान वायु (हाइड्रोजन) को बन्धक वस्त्र (air tight cloth) द्वारा निबद्ध किया जाए तो वह विमान विद्या (aerodynamics) के लिए प्रयुक्त किया जा सकता है।

स्पष्ट है कि यह आज के विद्युत बैटरी का सूत्र (Formula for Electric battery) ही है। साथ ही यह प्राचीन भारत में विमान विद्या होने की भी पुष्टि करता है।

इस प्रकार हम देखते हैं कि हमारे प्राचीन ग्रन्थों में बहुत सारे वैज्ञानिक प्रयोगों के वर्णन हैं, आवश्यकता है तो उन पर शोध करने की। किन्तु विडम्बना यह है कि हमारी शिक्षा ने हमारे प्राचीन ग्रन्थों पर हमारे विश्वास को ही समाप्त कर दिया है।

Wednesday, May 17, 2023

तो आंबेडकर ने अंग्रेजो के खिलाफ संघर्ष में सक्रिय हिस्सा क्यों नहीं लिया??

ये वो सवाल है जो भारतीय समाज की संरचना, इसमें मौजूद शोषण की संस्थाओं के वर्चस्व, इसकी कार्यात्मकता और डायनेमिक्स को समझने के अनिच्छुक लोग अक्सर पूछा करते हैं...... कुछ विस्तार से इस पर बात!
यूँ तो अपढ़ कुपढ़ बेपढ़ लोगों के ऐसे सवालों को महत्वपूर्ण मानने की कोई ज़रूरत नहीं होनी चाहिए, ऐसा कहा जा सकता है! लेकिन सवाल तो सवाल है और अक़्सर  अपरकास्ट के ठीक ठाक चेतना के लोग ये सवाल खड़ा करते रहते हैं और कई बार वो इसका जवाब जानने के लिये ये सवाल नहीं करते बल्कि इस सवाल के ज़रिये उत्पीड़ित सबऑलटर्न आइडेंटिटीस के पूरे आंदोलन को खारिज़ करने के लिये इसका इस्तेमाल करते हैं. 
कुछ समय पहले चर्चित लेखक अशोक कुमार पांडेय ने अपनी एक फेसबुक पोस्ट में अप्रत्यक्ष रूप से आंबेडकर पर निशाना साधते हुए लिखा कि स्वतंत्रता संघर्ष में भाग न लेने वाले और अंग्रेजों के यहां नौकरी करने वालों के वंशजों को भी शर्मिंदा होना चाहिए, उनके बेहूदा तर्क का मैंने उचित जवाब देने की कोशिश की आंबेडकर पर इस तरह हमला करने वाले धूर्त  ये नहीं देखते कि अंग्रेजों के यहां नौकरी करने से पहले आंबेडकर ने सैन्य सचिव के पद पर बड़ौदा राज्य में नौकरी की थी, जहाँ दुनिया के शीर्ष संस्थानों से उच्च शिक्षित आंबेडकर को सवर्ण चपरासी फ़ाइल फेंककर देते थे, सैन्य सचिव अपने ऑफिस में पानी नहीं पी सकता था, उन्हें कोई भी किराए पर आवास देने को तैयार नहीं था, बड़ौदा के राजा भी अपनी रियासत में आंबेडकर को घर नहीं दिला पाये! ऑफिसर्स क्लब में बड़ी मुश्किल से केवल एक मुस्लिम वेटर अलग बर्तनो में आंबेडकर को सर्व करने को तैयार था!
       ये सब देखने जानने और समझने से इंकार करने वाले सवर्ण हमारे देश में बुद्धिजीवी कहलाते हैं.. 
    अयोध्या सिंह,अरुण शौरी और अब अशोक कुमार पाण्डे जैसे लेखक आंबेडकर के खिलाफ़ अभियान चलाते रहे हैं!
आंबेडकर को नीचा दिखाने या उनके खिलाफ़ परसेस्पशन बनाने के मिशन में अशोक कुमार पांडे सबसे नए और सबसे चालाक लेखक हैं । वो आंबेडकर को नीचा दिखाने के साथ तुलसीदास के बचाव में भी खड़े हो जाते हैं।
  भारत का,खासकर हिंदी का अपरकास्ट मार्क्सवादी बौद्धिक अक्सर ऐसा ही होता है। भारत के विकास की इस मंजिल में उसे ऐसा ही होना है..
हमे लेखन का जवाब लेखन से ही देना चाहिए ।
    हमे कहना चाहिए कि गांधी ने अंग्रेजो के खिलाफ नमक सत्याग्रह किया और आंबेडकर ने जातिवादी सवर्णो के खिलाफ महाड में पानी का सत्याग्रह किया..... नमक ज़्यादा ज़रूरी है या पानी?? 
अंग्रेजों के चले जाने के बाद नमक सत्याग्रह की ज़रूरत नहीं रही लेकिन दलित पानी के लिये आज भी संघर्ष करते हैं, तथाकथित आज़ाद भारत में आंबेडकर का पानी का सत्याग्रह आज भी जारी है!
    आंबेडकर की भूमिका को नकारात्मक बताने वाले अपढ़ कुपढ़ और बेपढ़ लोगों की अच्छी ख़ासी तादात उत्तराखंड में भी है उन्हें एक स्थानीय उदाहरण देता हूँ। 
      उत्तराखण्ड के रचनात्मक शिक्षक मंडल के एक यू ट्यूब ऑडियो में प्रो शेखर पाठक ने बताया कि कुमाऊँ के अल्मोड़ा जिले के सल्ट में 5 सितंबर 1942 को अंग्रेजो के खिलाफ सत्याग्रहियों का जनविद्रोह हुआ... जिसे सल्ट का जनविद्रोह या गांधी द्वारा 'कुमाऊँ का बारदोली' कहा गया!
प्रो पाठक के मुताबिक आंदोलनकारियों में और अंग्रेजो के हाथों  मारे गये लोगों में दलित भी थे... एक दलित 'बड़वाराम' अपना वाद्य नरसिंहा बजाकर आंदोलनकारियों का हौंसला बढ़ा रहे थे.. 
जाद भारत में  1980 में इसी सल्ट में 'बड़वाराम' के समुदाय के लोगों ने एक विवाह समारोह में दूल्हे को पालकी में ले जाने की 'हिमाक़त' कर दी...बेचारे समझे होंगे कि भारत तो आज़ाद हो चुका है और हमारे पुरखे 'बड़वाराम' ने भी अंग्रेजो के खिलाफ लड़ाई में हिस्सा लिया था ...लेकिन वो ग़लत थे आज़ाद भारत में उनकी इस हिमाक़त के बदले उसी सल्ट के कफल्टा में 14 दलित ज़िंदा जला दिये गये....वो शहीद हुए... वो आजाद भारत के सल्ट के शहीद हैं... वो असली जनविद्रोह था... आजाद भारत का सल्ट का जनविद्रोह जो 'बड़वाराम' के वंशजों ने किया । उन्होंने सवर्णो के मातहत नरसिम्हा बजाने से इंकार किया, और अपने मानवीय अधिकारों के लिये मारे गये.... 
स्वतंत्रता संघर्ष में हिस्सा लेने वाले लोगों के वंशजों के साथ उन्हीं की जमीन पर उसी जगह पर आजाद भारत में ये सुलूक किया गया और धूर्त लोग पूछते हैं कि आंबेडकर ने अंग्रेजो के खिलाफ संघर्ष में हिस्सा क्यों नहीं लिया? 
     क्योंकि आंबेडकर 'बड़वाराम' की तरह सवर्णों के मातहत बाजा नहीं बजाना चाहते थे क्योंकि आंबेडकर जानते थे कि 'बड़वा' का मतलब कीड़ा मकौड़ा होता है.
क्योंकि  उन्हें पता था कि सवर्णों की मंशा उन्हें इस्तेमाल कर कीड़े मकोड़े की तरह मसल देने की है! क्योंकि सवर्ण दलित को केवल कीड़े का नाम ही नहीं देते वो उसे कीड़े से ज़्यादा मानते भी नहीं । आंबेडकर ने कीड़े मकोड़ों का नहीं बल्कि इंसानों का महान संघर्ष चलाया 
वो संघर्ष आज भी जारी है...
इस तस्वीर को देखें 

तस्वीर में क्लासरूम से बाहर बिठाये गये आदमी से अगर क्लास के भीतर से  कोई ये सवाल करे कि 
" क्लास में ज़हरीला साँप घुस आया है तुम आकर इसे मारते क्यों नहीं???  "
तो इंसानी इतिहास का इससे बेहूदा और बेशर्म सवाल और कोई नहीं हो सकता।
– मोहन मुक्त
- प्रा. जावेद पाशा, संकलन

Tuesday, May 16, 2023

भारतीय इतिहास का एक कड़वा सच.

अकबर के दरबार में एक कट्टर सुन्नी मुस्लिम अब्द अल कादीर बदायूनी था उसने हल्दीघाटी की युद्ध का आंखों देखा वर्णन जिसमें वह खुद शामिल था अपनी किताब " मुंतखाब–उत–तवारीख" में लिखा है।
मूल किताब अरबी में है जिसका 18वीं सदी में अंग्रेजी में अनुवाद किया गया,
इस किताब में लिखा है ".....दोनों तरफ की सेनाओं में 90% राजपूत लड़ रहे थे अकबर के तरफ से सेनापति मानसिंह और राजा लूणकरण थे तो दूसरी तरफ खुद महाराणा प्रताप और दूसरे राजपूत राजा थे, दोनों तरफ के राजपूतों ने केसरिया साफा पहन रखा था।

 इससे अकबर का एक सेनानायक अबुल फजल इब्न मुबारक कंफ्यूज हो गया कि कौन हमारे तरफ से लड़ रहे हैं और कौन दुश्मन के तरफ से हैं!!
फिर अबुल फजल इब्न  मुबारक ने अब्द अल कादिर  से पूछा दोनों तरफ के राजपूत केसरिया साफा पहने हैं मैं कैसे पहचान करूं कि कौन अपनी तरफ से है और कौन दुश्मन की तरफ से है? तब मैंने यानी अब्द अल कादिर बदायूनी ने कहा अबुल फजल बस तीर और फरसा चलाते रहो भाला फेंकते रहो मरने वाले तो काफिर ही होंगे ना चाहे हमारे तरफ के मरे या दुश्मन के तरफ से मरे .. किधर भी तीर चलाओ किसी को मारो जीत इस्लाम की ही होगी..अगर हम युद्ध जीत सके तो ठीक नही जीते तो कम से कम खुदा को यह तो कह देंगे कि हमने काफिरों को मारा
.......काश अपने लोग इतिहास पढ़ते और इतिहास से सीख लेते ,हमारे आज के भूतपूर्व हिंदू यानी मुस्लिम भाई मुगलों द्वारा किए गए जुल्म के जिंदा सबूत हैं ...जिनके पूर्वजों को काफिर कह कर जुल्म करके इस्लाम में लाया गया ..

इन 10 तरह से होता है हिन्दू धर्म का अपमान.

1.देवताओं को छोड़कर अन्य का मंदिर बनाना -
सचमुच ही यह हिन्दू धर्म का सबसे बड़ा अपमान है कि किसी देवी या देवताओं को छोड़कर अन्य का मंदिर बनाकर उसकी पूजा करना। वर्तमान में देखा गया है कि लोगों ने सोनिया गांधी, सचीन तेंदुलकर, नरेंद्र मोदी, रजनीकांत, जयललिता, अमिताभ बच्चन आदि प्रसिद्ध लोगों के मंदिर बना रखे हैं। सबसे बड़ा सवाल यह है कि हिंदू धर्म के इस तरह किए जा रहे अपमान के बारे में हिंदू विरोध क्यों नहीं करता? कई लोगों ने किसी बाबा, संत, भूत, फकीर, नेता, ग्रह-नक्षत्र, अभिनेता आदि के भी मंदिर बना लिए हैं जो कि घोर पाप कर्म है।

2.मंदिर के नियमों का पालन नहीं करना -
गुरुवार हिन्दुओं का सबसे बड़ा वार होता है। इस दिन मंदिर जाना जरूरी है। दूसरी बात यह कि घर में मंदिर बनाकर नहीं रखना चाहिए। तीसरी बात यह कि मंदिर जाएं तो मंदिर के नियम भी जरूर जान लें। मंदिर में किस तरह के कपड़े पहने, आचमनादि कर पूजा, प्रार्थना या संध्यावदन कैसे करें यह बहुत कम हिन्दू जानते हैं। मंदिर जाने का समय भी जानना जरूरी है। दोपहर और रात 12 से 4 मंदिर बंद रहते हैं। यदि व्यक्ति उक्त नियमों का पालन नहीं करता है तो उसे मंदिर का दोष लगता है। नियम और मंदिर अपराध क्या है यह जरूर जान लें।
 
3.असंख्य परंपरा, व्रत, त्योहार और रीति-रिवाज धर्म का हिस्सा नहीं -
हिन्दुओं ने अपने त्योहारों को बदल कर गंदा कर दिया है। इसके अलावा कौन-सा त्योहार, व्रत या रिवाज हिन्दू धर्म का हिस्सा है और कौन-सा स्थानीय संस्कृति का यह जानना भी जरूरी हैं। ऐसी कई परंपराएं है जो कि हिन्दू त्योहारों में कुछ 100-200 सौ वर्षों में प्रचलन में आ गई है जो कि उक्त त्योहार का अपमान ही माना जाएगा। रिवाज की उत्पत्ति स्थानीय लोक कथाओं, संस्कृति, अंधविश्वास, रहन-सहन, खान-पान आदि के आधार पर होती है। बहुत से रिवाज ऐसे हैं जो हिन्दू धर्मग्रंथों के अनुसार सही नहीं है, जैसे सती प्रथा, दहेज प्रथा, मूर्ति स्थापना और विसर्जन, माता की चौकी, अनावश्यक व्रत-उपवास और कथाएं, पशु बलि, जादू-टोना, तंत्र-मंत्र, छुआछूत, ग्रह-नक्षत्र पूजा, मृतकों की पूजा, अधार्मिक तीर्थ-मंदिर, 16 संस्कारों को छोड़कर अन्य संस्कार आदि। यह लंबे काल और वंश परंपरा का परिणाम ही है कि वेदों को छोड़कर हिन्दू अब स्थानीय स्तर के त्योहार और विश्वासों को ज्यादा मानने लगा है। सभी में वह अपने मन से नियमों को चलाता है।
 
4.‍सोलह संस्कारों का पालन नहीं करना -
सनातन अथवा हिन्दू धर्म की संस्कृति संस्कारों पर ही आधारित है। हमारे ऋषि-मुनियों ने मानव जीवन को पवित्र एवं मर्यादित बनाने के लिए कई संस्कारों का अविष्कार किया। धार्मिक ही नहीं वैज्ञानिक दृष्टि से भी इन संस्कारों का हमारे जीवन में विशेष महत्व है। भारतीय संस्कृति की महानता में इन संस्कारों का महती योगदान है। प्राचीन काल में हमारा प्रत्येक कार्य संस्कार से आरम्भ होता था। उस समय संस्कारों की संख्या भी लगभग चालीस थी। जैसे-जैसे समय बदलता गया तथा व्यस्तता बढ़ती गई तो कुछ संस्कार स्वत: विलुप्त हो गये। इस प्रकार समयानुसार संशोधित होकर संस्कारों की संख्या निर्धारित होती गई। गौतम स्मृति में चालीस प्रकार के संस्कारों का उल्लेख है। महर्षि अंगिरा ने इनका अंतर्भाव पच्चीस संस्कारों में किया। व्यास स्मृति में सोलह संस्कारों का वर्णन हुआ है। हमारे धर्मशास्त्रों में भी मुख्य रूप से सोलह संस्कारों की व्याख्या की गई है।
 
कुछ लोगों ने तो संस्कार छोड़ ही दिए हैं। वर्तमान में देखा गया है कि लोग सोलह संस्कारों का पालन अपने-अपने तरीके से करते हैं। उसमें आधुनिकता का समावेश भी कर दिया गया है। इसके अलावा प्री वेडिंग, प्रेगनेंसी फोटो शूट, कोर्ट मैरिज, लीव इन रिलेशन और तलाक। 'तलाक' हिन्दू धर्म का कांसेप्ट नहीं है। यदि आप विवाह के वचनों का पालन नहीं करते हैं तो निश्‍चित ही आप हिन्दू धर्म का अपमान ही कर रहे हैं।
 
5.संतों की पूजा करना धर्म का अपमान -
वर्तमान दौर में अधिकतर नकली और ढोंगी संतों और कथा वाचकों की फौज खड़ी हो गई है। और हिंदुजन भी हर किसी को अपना गुरु मानकर उससे दीक्षा लेकर उसका बड़ा-सा फोटो घर में लगाकर उसकी पूजा करता है। उसका नाम या फोटो जड़ित लाकेट गले में पहनता है। यह धर्म का अपमान और पतन ही माना जाएगा। संत चाहे कितना भी बढ़ा हो लेकिन वह भगवान या देवता नहीं, उसकी आरती करना, पैरों को धोना और उस पर फूल चढ़ाना धर्म का अपमान ही है। स्वयंभू संतों की संख्‍या तो हजारों हैं उनमें से कुछ सचमुच ही संत हैं बाकी सभी दुकानदारी है। यदि हम हिन्दू संत धारा की बात करें तो इस संत धारा को शंकराचार्य, गुरु गोरखनाथ और रामानंद ने फिर से पुनर्रगठित किया था। जो व्यक्ति उक्त संत धारा के नियमों अनुसार संत बनता है वहीं हिंदू संत कहलाने के काबील है।
 
6.छुआछूत और ऊंच-नीच मानना धर्म का अपमान -
अक्सर जातिवाद, छुआछूत और सवर्ण, दलित वर्ग के मुद्दे को लेकर धर्मशास्त्रों को भी दोषी ठहराया जाता है, लेकिन यह बिलकुल ही असत्य है। इस मुद्दे पर धर्म शास्त्रों में क्या लिखा है यह जानना बहुत जरूरी है, क्योंकि इस मुद्दे को लेकर हिन्दू सनातन धर्म को बहुत बदनाम किया गया है और किया जा रहा है। यदि आ छुआछूत या वर्णव्यवस्था को मानते हैं तो आप सनातन पथ से भटके हुए व्यक्ति हैं। वेदों का सार उपनिषद और उपनिषद का सार गीता हैं। उक्त तीन के अलावा हिन्दुओं का कोई धर्मग्रंथ नहीं है। उक्त तीनों को अच्छे से जाने बगैर किसी निष्कर्ष पर पहुंचना सही नहीं। चूंकि आम और गरीब व्यक्ति धर्मग्रंथ नहीं पढ़ता इसलिए उसके लिए अफवाह, भ्रम या कुतर्क ही सत्य होता है।
 
ब्राह्मण, छत्रिय, वैश्य या शूद्र कोई संप्रदाय नहीं है। यह कर्मों पर आधारित वर्ग विभाजन है जिसका वर्तमान में कोई महत्व नहीं रहा, क्योंकि प्रत्येक वर्ग के लोग भिन्न भिन्न प्रकार के कार्य में रत हैं। प्राचीनकाल से ही लोग शैव, वैष्णव या भागवत, शाक्त, गणपत्य, कौमारम, तांत्रिक, वैदिक और स्मार्त आदि संप्रदायों में विभक्त रहे हैं। उक्त संप्रदाय के लोगों की जाति भले ही कुछ भी हो।
 
7.धर्मग्रंथ पढ़ें बगैर हिन्दू धर्म पर सवाल उठाना -
ऐसे कई लोग हैं जो कि हिन्दू देवी और देवताओं का मजाक उड़ाते हैं। उनमें से कुछ के नहीं होने या कल्पित होने के संदर्भ में कुतर्क भी करते हैं। ऐसे लोगों का कई लोग समर्थन भी करते हैं। इसके अलावा धर्म और दर्शन के सिद्धांत, थ्‍योरी को जाने बगैर ही उसका खंडन करते हैं। जैसे कुछ लोग कहते हैं कि हिन्दू धर्म के चार युग का सिद्धांत विज्ञान के क्रम विकास के सिद्धांत से उलट है। इसके अलावा हिन्दू धर्म के अनुसार कोई एक ईश्‍वर नहीं होता, 33 करोड़ देवी देवता हैं, कोई नियम नहीं है, कोई संस्थापक नहीं है, वर्ण व्यवस्था है, एकलव्य इसका उदाहरण है- ऐसी कई बाते हैं जो हिन्दू धर्म को जाने बगैर ही प्रचारित की गई। दरअसल, यह भ्रांतियां फैलेने वाले लोग और इनकी भ्रांतियों के शिकार होने वाले लोग दोनों ही ने हिन्दू धर्म के वेद, उपनिषद और गीता को नहीं पढ़ा है। यह हिन्दू धर्म का अपमान ही नहीं बल्कि हिन्दू धर्म के खिलाफ किया गया अपराध है।
 
8.अपने कुल को छोड़कर दूसरे के कुल की तारीफ करना -
कौन होता है कुलद्रोही? वह जो कुल धर्म और कुल परंपरा को नहीं मानता, वह जो माता-पिता का सम्मान नहीं करता, वह जो श्राद्धकर्म नहीं करता और वह जो अपने माता-पिता को छोड़कर अलग जिंदगी जी रहा है, वह जिसके मन में कुल देवता और कुल देवी का कोई भान नहीं है। भारत में लंबे काल से एक कुल परंपरा चली आ रही है। उस कुल परंपरा को तोड़कर कुछ लोगों ने अपना धर्म भी बदल लिया है तो कुछ ऐसे भी लोग हैं, जो कुल देवी या देवता जैसी बातों में विश्वास नहीं रखते हैं। लेकिन वे यह नहीं जानते हैं कि कुल देवी या कुल देवता का मतलब क्या होता है? हमारे पूर्वजों ने एक ऐसी जगह पर कुल देव या देवता की स्थापना की, जहां से हमारे पूर्वज जुड़े रहे हैं अर्थात वह स्थान कुल स्थान होता है। उस स्थान से हजारों वर्षों से हमारे ही कुल खानदान के लाखों लोग जुड़े हुए हैं। यह स्थान आपके पूर्वजों के पूरे इतिहास को बयां करता है। वहां जाकर नमन करने से आपके कुल खानदान के सभी जिंदा और मृत लोग वहीं आपको दिखाई दे सकते हैं। उनके आशीर्वाद से आपका जीवन बदल सकता है। कुल का देवता या देवी आपके कुल के सभी लोगों को जानता है। जो भी वहां जाता है वह अपने कुल से जुड़कर लाभ पाता है।
 
9.धर्म की मनमानी व्याख्या करना, स्वयंभू बनना या नए संप्रदाय खड़े करना -
वर्तमान में देखा गया है कि बहुत से ऐसे संत हैं जिन्होंने वेद, पुराण या अन्य शास्त्रों की मनमानी व्याख्या कर लोगों में भ्रम और गफलत का माहौल खड़ा कर दिया है। वे खुद को भगवान या महान संत घोषित करने में चूकते नहीं हैं। ऐसे कई लोगों ने अपने अलग संप्रदाय या संगठन भी खड़े कर लिए हैं। यहां उदाहरण के तौर पर ब्रह्मा कुमारी संगठन और डेरा सच्चा सौदा का नाम लिया जा सकता है। धर्म की गलत व्याख्या कर प्रचलन पिछले तीन सौ वर्षों से जारी है। आजादी के बाद इसका प्रचलन बड़ा है। ऐसे संगठन के लोग उक्त संगठन के संस्‍थापक या मुखिया को भगवान का दर्जा देकर उसकी ही पूजा अर्चना करते हैं। गीता के अनुसार ऐसे लोग ही कुलद्रोही और विधर्मी होते हैं। यह हिन्दू धर्म का अपमान ही नहीं यह घोर अपराध भी है।
 
10.धर्मभूमि का अपमान करना और उसकी रक्षा नहीं करना -
जन्मभूमि, मातृभूमि और राष्ट्रभूमि यह सभी धर्मभूमि है। धर्म भी रक्षा और धर्मभूमि की रक्षा करना जरूरी है। भारत की आधी भूमि लगभग विधर्मियों से भरी हुई है। विधर्मी अर्थात जिसने अपना धर्म छोड़कर विदेशी धर्म अपना लिया है। पाकिस्तान सहित कई ऐसे देश हैं जो कभी हिन्दू धर्मियों से आबाद थे।
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Monday, May 15, 2023

पापा आपने क्यों नहीं बताया.

प्रश्न है : पापा आपने क्यों नहीं बताया हिन्दू कल्चर के बारे में.?
उत्तर : बेटा क्या नहीं बताया.?

तुम्हारी आंख फूटी हुई थी जब तुम देखती थी कि जप, तप, व्रत और त्योहार बड़े ही हर्षोल्लास से मनाए जाते हैं!

तुम्हारी आँखों को चश्मे की जरूरत थी.? जो तुम्हें नवरात्रि में दुर्गा पूजा के समय दुर्गा जी समस्त अस्त्रों शस्त्रों से सुसज्जित होकर एक राक्षस का वध कर रहीं हैं, यह नहीं दिखा.?

क्या तुमने रामलीला में यह नहीं देखा कि अपनी पत्नी के लिए एक भगवान श्री राम समुद्र पार कर रावण का सर्वनाश कर आएं!

माना तुम्हारा पिता कम्युनिष्ट है, अनपढ़ है, वक्त नहीं दे पाए लेकिन तुम्हें व्हाट्सअप्प से चैटिंग करना तो कभी नहीं सिखाया.?
फिर कैसे सीख गई.?

तुम्हारी माँ ने तुम्हें प्रेम करना तो नही सिखाया फिर तुम्हारे अंदर प्रेम के भाव क्यों स्वयं ही फूटने लगे.?

"तेरा भगवान रोता है" यह बात कैसे तुझे पता चल गई.? यदि यह बात पता चल गई तो रोने के बाद कितना तांडव मचाएं थें यह बात कैसे पता नहीं चली, उनके तांडव को रोक पाने की शक्ति किसी में नहीं थी, यह बात तुझे कैसे पता नहीं चली.?

तुम्हें वह पाकिस्तानी सीरियल देखने के लिए तो इस बाप ने कभी नहीं बताया फिर तुम्हें पाकिस्तानी सीरियल के बारे में कैसे पता चल गया.?

देश दुनिया की सारी बातें तुम्हें पता चल गई पर तुम्हें अपना सनातन धर्म और संस्कृति नहीं पता चला क्योंकि माँ बाप ने नहीं बताया.?

तुम्हारा यह बहाना दर्शाता है कि तुम कितनी चतुर हो और सिर्फ अपनी कमी छिपा रही हो!

जैसे तुम्हें बाकि की बातें पता चली वैसे ही यह भी पता चल जाना चाहिए था!

सनातन धर्म तो उत्सव प्रधान धर्म है, हर उत्सव का एक कारण हैं यदि जैसे तमाम बिन बताई चीजों को तुम जान गई तो यह सब देख सुनकर क्यों नहीं जानी.?

कपूर की संगति में आकर डिबिया भी महकने लगती है पर तुम तो कपूर पास देखकर भी कीचड़ में लोटने पहुंच जाती हो और जानबूझकर आरोप लगाती हो कि कपूर के बारे में बताया ही नहीं, कीचड़ के बारे में भी तो नहीं बताया था बेटा जी

उन समस्त भोली-भाली मासूम लड़कियों को समर्पित, जिन्हें लगता है उनके मम्मी पापा ने कल्चर नहीं बताया लेकिन उन्होंने पाकिस्तानी सीरियल के बारे में बिना मम्मी पापा के बताए सब जान लिया!

तुम्हें अब्दुल और आशिफा पसंद आते हैं लेकिन तिलक लगाए और गले में रुद्राक्ष की माला डाले हुए लड़का धार्मिक उन्मादी दिखता है तो गलती आपकी है! सोच बदलिए.!!!

Wednesday, May 10, 2023

आधुनिकता या षड'यंत्र...???

हिन्दू दुल्हन को कभी सुट्टा लगाते, चिलम फूंकता दिखाते हैं, कभी हाथ में शराब का गिलास पकड़ा देते हैं, कभी नीचे से लहँगा गायब कर शॉर्ट्स पहना देते हैं। 

पर हम इसका विरोध नहीं करते बल्कि हमारे घर की बेटियाँ प्री-वेडिंग शूट के नाम पर इनका अनुकरण करने लगी हैं।

वेस्टर्न की नकल कर हिंदू दूल्हा-दुल्हन शैम्पेन की बॉटल खोल रहे हैं, आलिंगन के दृश्य दे रहे हैं या मंडप में किस कर रहे हैं। सनातन संस्कृति यानी हिंदू विवाह पद्धति में दुल्हन देवी स्वरुप लक्ष्मी है और दूल्हा विष्णु अवतार इस मान्यता को हम भूल चले हैं। विवाह एक गरिमामयी पवित्र बंधन और सोलह संस्कारों में सबसे प्रमुख संस्कार है यह भी भूल चले हैं।

सनातन में वर वधु की पवित्रता को इतना महत्व दिया गया है कि सहरा पहने लड़के से चरण स्पर्श तक नहीं करवाये जाते। हल्दी लगी दुल्हन को अकेला तक नहीं छोड़ते। लेकिन अब इवेंट्स मैनेजमेंट, प्री वेडिंग शूट जैसे चोंचलों की आड़ में रतिक्रिया का प्रदर्शन छोड़ हर तरह की अश्लीलता का सरेआम प्रदर्शन हो रहा है। विवाह अब दैहिक सुख की संविदा और एक निष्प्राण अनुबंध बन चला है।

हम हमारे संस्कारों की धज्जियां उड़ाने वाले टीवी सीरियल, नौटंकी, फिल्मों और फिल्मी लोगों की शादियों से प्रभावित हो कर अपने पवित्र संस्कारों को नष्ट करने पर तुले हैं। फ़ोटोग्राफ़र के कहने पर सबके सामने जैसा वो करवाता है करते जा रहे हैं…यह ऐसा अंधानुसरण है जिसका परिणाम टूटते परिवारों और विवाह विच्छेद के बढ़ते प्रकरणों के रूप में सामने आने लगा है। और इसके पीड़ित ही इसके अप'राधी भी हैं।

अभी भी वक्त है हिंदुस्तानियों इस घातक विष से दूर रहो…वरना यह बीमारी हमारी संस्कृति को नष्ट कर देगी फिर हमारे पास कुछ नहीं बचेगा इसलिए समय रहते अपने परिवारों के युवाओं को रोकें और ज़ोर देकर रोकें…!!

Tuesday, May 9, 2023

कैसे पहचानें कि दैवीय शक्ति आपकी मदद कर रही है?

इन 11 संकेतों से कर सकते हैं आभास
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दुनिया में बहुत से लोग ऐसे हैं जिन्हें उनके जीवन में दैवीय सहायता मिलती है। किसी को ज्यादा तो किसी को कम। कुछ तो ऐसे हैं जिनके माध्यम से दैवीय शक्तियां अच्छा काम करवाती हैं। सवाल यह उठता है कि आम व्यक्ति कैसे पहचानें कि उसकी दैवीय शक्तियां मदद कर रही है या उसकी पूजा-पाठ-प्रार्थना का असर हो रहा है? इन 11 संकेतों से हम इसको महसूस कर सकते हैं-

1. अच्छा चरित्र
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शास्त्र कहते हैं कि दैवीय शक्तियां सिर्फ उसकी ही मदद करती है, जो दूसरों के दुख को समझता है, जो बुराइयों से दूर रहता है, जो नकारात्मक विचारों से दूर रहता है, जो नियमित अपने इष्ट की आराधना करता है या जो पुण्य के काम में लगा हुआ है। यदि आप समझते हैं कि मैं ऐसा ही हूं तो निश्चित ही दैवीय शक्तियां आपकी मदद कर रही हैं। आपको बस थोड़ा सा इस बात पर ध्यान देने की जरूरत है कि आप अच्छे मार्ग पर हैं और आपको ऊपरी शक्तियां देख रही हैं।

2. ब्रह्म मुहूर्त
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विद्वान लोग कहते हैं कि यदि आपकी आंखें प्रतिदिन ब्रह्म मुहूर्त में अर्थात् रात्रि 3 से 5 के बीच अचानक ही खुल जाती हैं तो आप समझ जाएं कि दैवीय शक्तियां आपके साथ हैं, क्योंकि यही वह समय होता है जबकि देवता लोग जाग्रत रहते हैं। यदि आप अपने बचपन से लेकर जवानी तक इस समय के बीच उठते रहे हैं तो समझ जाएं कि दैवीय शक्तियां आपके माध्यम से कुछ करवाना चाहती हैं या कि वे आपको एक अच्छी आत्मा समझकर यह संकेत दे रही हैं कि अब उठ जाओ। यह जीवन सोने के लिए नहीं है। आपको दुनिया में बहुत कुछ करना है। यह भी कहा जाता है कि सत्व गुण प्रधान लोग इस काल में स्वत: ही उठ जाते हैं। आयुर्वेद के अनुसार इस समय बहने वाली वायु को अमृततुल्य कहा गया है। यह अमृत वेला होती है। कहते हैं कि इस काल में दुनिया के मात्र 13 प्रतिशत लोगों की ही नींद खुलती है।

3. सपने में देव दर्शन
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यदि आपको बारंबार मंदिर या किसी देव स्थान के ही सपने आते रहते हैं। सपने में आप आसमान में ही उड़ते रहते हैं या सपने में आप देवी-देवताओं से वार्तालाप करते रहते हैं तो आप समझ जाइए कि दैवीय शक्तियां आप पर मेहरबान हैं।

4. पूर्वाभास
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यदि आपको आने वाली घटनाओं का पहले से ही ज्ञान हो जाता है या आपको पूर्वाभास हो जाता है तो आप समझ जाइए कि दैवीय शक्तियों की आप पर कृपा है।

5. पारिवारिक प्रेम
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आपकी पत्नी, बेटा, बेटी और आपके सभी परिजन आपकी आज्ञा का पालन कर रहे हैं, वे सभी आपसे प्यार करते हैं एवं आप भी उनसे प्यार कर रहे हैं तो आप समझ जाइए कि दैवीय शक्तियां आप से प्रसन्न हैं।

6. भाग्य से भी तेज
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जीवन में आपको अचानक से लाभ प्राप्त हो जाता है। आपके किसी भी कार्य में किसी भी प्रकार की आपको बाधा उत्पन्न नहीं होती है और सभी कुछ आपको बहुत आसानी से मिल जाता है, तो आप समझ जाइए कि दैवीय शक्तियां आपकी मदद कर रही हैं।

7. सुगंधित वातावरण का अहसास
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यदि कभी-कभी आपको यह महसूस होता है कि मेरे आसपास कोई है या आपको बिना किसी कारण ही अपने आसपास सुगंध का अहसास हो तो समझ जाइए कि अलौकिक शक्तियां आपके आसपास आपकी मदद के लिए हैं।

8. सुहानी हवा
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आप पूजा कर रहे हैं और यदि आपको लगे कि अचानक सुहानी हवा का झोंका या प्रकाश पुंज आ गया और शरीर में सिहरन दौडऩे लगे। ऐसा तो पहले कभी हुआ नहीं तो समझिए कि देवी या देवता आप पर प्रसन्न हैं।

9. ठंडी हवा का घेरा
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भूमि पर रहते हुए भी कभी-कभी आपको यह अहसास हो कि मेरे आसपास बादल या ठंडी हवा का एक पुंज है जिसने मुझे घेरा हुआ है तो आप समझ जाइए कि अलौकिक या दैवीय शक्ति ने आपको घेर रखा है। ऐसा अक्सर बहुत ज्यादा पूजा-पाठ करने वाले व्यक्ति के साथ होता है।

10. रोशनी का पुंज
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अचानक ही आपको तेज रोशनी का पुंज दिखाई दे जिसकी कि आप कल्पना भी नहीं कर सकते या आपको अचानक ही कानों में मधुर संगीत सुनाई दे और आप आश्चर्य करें कि यहां आसपास तो कोई संगीत बज ही नहीं रहा फिर भी वह कानों में सीटी बजने की तरह सुनाई दे, तो आप समझ जाइए कि आप दैवीय शक्ति के सान्निध्य में हैं। ऐसा अक्सर उन लोगों के साथ होता है, जो निरंतर ही अपने इष्टदेव का मंत्र जप कर रहे होते हैं।

11. किसी की आवाज सुनाई देना
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आप रात्रि में गहरी नींद में सो रहे हैं और आपको लगता है कि किसी ने मुझे आवाज दी और आप अचानक ही उठ जाते हैं, लेकिन फिर आपको आभास होता है कि यहां तो कोई नहीं है। लेकिन आवाज तो स्पष्ट थी। ऐसा आपके साथ कई बार हो जाता है तो आप समझ जाइए कि आप पर किसी अलौकिक शक्ति की मेहरबानी है। ऐसे में आप हनुमानजी का ध्यान करें और धन्यवाद दें।

Monday, May 8, 2023

क्या पृथ्वी और सूर्य घूमते है?

🌍☀️
इस पर कुरान और वेद का क्या कहना है आइए देखते हैं 👀

Quran -
या-सीन (Ya-Sin):37 - और एक निशानी उनके लिए रात है। हम उसपर से दिन को खींच लेते है। फिर क्या देखते है कि वे अँधेरे में रह गए ।
या-सीन (Ya-Sin):38 - और सूर्य अपने नियत ठिकाने के लिए चला जा रहा है। यह बाँधा हुआ हिसाब है प्रभुत्वशाली, ज्ञानवान का ।
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नोट- या-सीन (Ya-Sin):38 - और सूर्य अपने नियत ठिकाने के लिए चला जा रहा है ?? यह वाक्य इशारा कर रहा है की सूर्य अपने ठिकाने से कही जा रहा है ??? अब देखते है क्या सच में मोहम्मद  ये सोचता था की सूर्य पृथ्वी के चारो और चक्कर लगाती है

अब देखे -
सहीह मुस्लिम 1:297 :- रात में सूरज कहाँ रहता है ?
 हदीस के अनुसार अस्त होने के बाद सूरज रात भर अल्लाह के सिंहासन के नीचे छुपा रहता है
"अबू जर ने कहा कि एक बार रसूल ने मुझ से पूछा कि क्या तुम जानते हो कि सूर्यास्त के बाद सूरज कहाँ छुप जाता है , तो मैंने कहा कि रसूल मुझ से अधिक जानते है . तब रसूल ने कहा सुनो जब सूरज अपना सफ़र पूरा कर लेता है ,तो अल्लाह को सिजदा करके उसके सिंहासन के कदमों के नीचे छुप जाता है .फिर जब अल्लाह उसे फिर से निकलने का हुक्म देते है , तो सूरज अल्लाह को सिजदा करके वापस अपने सफ़र पर निकल पड़ता है .और यदि अल्लाह सूरज को हुक्म देगा तो सूरज पूरब की जगह पश्चिम से निकल सकता है |
(sahi-bukhari jild 2 kitaab 15 hadees 167)अल-कहफ़ (Al-Kahf):86 - यहाँ तक कि जब वह सूर्यास्त-स्थल तक पहुँचा तो उसे मटमैले काले पानी के एक स्रोत में डूबते हुए पाया और उसके निकट उसे एक क़ौम मिली। हमने कहा, "ऐ ज़ुलक़रनैन! तुझे अधिकार है कि चाहे तकलीफ़ पहुँचाए और चाहे उनके साथ अच्छा व्यवहार करे।"

अब देखते हैं कि वेदों का इस पर क्या मत है 🚩🚩

प्रश्न) पृथिव्यादि लोक घूमते हैं वा स्थिर?

(उत्तर) घूमते हैं। 

(प्रश्न) कितने ही लोग कहते हैं कि सूर्य्य घूमता है और पृथिवी नहीं।

दूसरे कहते हैं कि पृथिवी घूमती है सूर्य नहीं घूमता इसमें सत्य क्या माना जाय?

(उत्तर) ये दोनों आधे झूठे हैं क्योंकि वेद में लिखा है कि- आयं गौः पृश्न॑िर॒क्रम॒दस॑दन्मा॒तरं॑ पु॒रः । पि॒तरं॑ च प्र॒यन्त्स्वः॑ ।।

-यजुः० अ० ३। मं० ६ ॥ अर्थात् यह भूगोल जल के सहित सूर्य के चारों ओर घूमता जाता है इसलिये भूमि घूमा करती है।

आ कृष्णेन॒ रज॑सा॒ वने॑मानो निवे॒शय॑न्न॒मृतं॒ मत्यै॑ च । हिरण्यये॑न सवि॒ता रथे॒ना दे॒वो या॑ति॒ भुव॑नानि॒ पश्यन् ।।

यजुः० अ० ३३ मं० ४३ ॥ जो सविता अर्थात् सूर्य्य वर्षादि का कर्त्ता, प्रकाशस्वरूप, तेजोमय, रमणीयस्वरूप के साथ वर्त्तमानः सब प्राणी अप्राणियों में अमृतरूप वृष्टि वा किरण द्वारा अमृत का प्रवेश करा और सब मूर्तिमान् द्रव्यों को दिखलाता हुआ सब लोकों के साथ आकर्षण गुण से सह वर्त्तमान; अपनी परिधि में घूमता रहता है किन्तु किसी लोक के चारों ओर नहीं घूमता। वैसे ही एक-एक ब्रह्माण्ड में एक सूर्य प्रकाशक और दूसरे सब लोकलोकान्तर प्रकाश्य हैं। जैसे-

दिवि सोमो अधि श्रितः॥ - अथर्व० कां० १४। अनु० १ ० १ ॥

जैसे यह चन्द्रलोक सूर्य से प्रकाशित होता है वैसे ही पृथिव्यादि लोक भी सूर्य के प्रकाश ही से प्रकाशित होते हैं। परन्तु रात और दिन सर्वदा वर्तमान रहते हैं क्योंकि पृथिव्यादि लोक घूम कर जितना भाग सूर्य के सामने आता है उतने में दिन और जितना पृष्ठ में अर्थात् आड़ में होता जाता है उतने में रात। अर्थात् उदय, अस्त, सन्ध्या, मध्याह्न, मध्यरात्रि आदि जितने कालावयव हैं वे देशदेशान्तरों में सदा वर्त्तमान रहते हैं अर्थात् जब आर्यावर्त्त में सूर्योदय होता है उस समय पाताल अर्थात् 'अमेरिका' में अस्त होता है और जब आर्यावर्त्त में अस्त होता है तब पाताल देश में उदय होता है। जब आर्य्यावर्त्त में मध्य दिन वा मध्य रात है उसी समय पाताल देश में मध्य रात और मध्य दिन रहता है।

जो लोग कहते हैं कि सूर्य घूमता और पृथिवी नहीं घूमती वे सब अ हैं। क्योंकि जो ऐसा होता तो कई सहस्र वर्ष के दिन और रात होते। अर्थात् सूर्य का नाम (ब्रध्नः) है। यह पृथिवी से लाखों गुणा बड़ा और क्रोड़ों कोश दूर है। जैसे राई के सामने पहाड़ घूमे तो बहुत देर लगती और राई के घूमने में बहुत समय नहीं लगता वैसे ही पृथिवी के घूमने से यथायोग्य दिन रात होते हैं; सूर्य के घूमने से नहीं...✍️
अंकित खटकड़

Friday, May 5, 2023

पूज्यनीय रामचंद्र डोंगरे जी|

एक ऐसे कथावाचक जिनके पास पत्नी के अस्थि विसर्जन तक के लिए पैसे नहीं थे ... तब मंगलसूत्र बेचने की बात की थी।

यह जानकर सुखद आश्चर्य होता है कि पूज्यनीय रामचंद्र डोंगरे जी महाराज जैसे भागवताचार्य भी हुए हैं जो कथा के लिए एक रुपया भी नहीं लेते थे 🙏 मात्र तुलसी पत्र लेते थे। जहाँ भी वे भागवत कथा कहते थे, उसमें जो भी दान दक्षिणा चढ़ावा आता था, उसे उसी शहर या गाँव में गरीबों के कल्याणार्थ दान कर देते थे। कोई ट्रस्ट बनाया नहीं और किसी को शिष्य भी बनाया नहीं।

अपना भोजन स्वयं बना कर ठाकुरजी को भोग लगाकर प्रसाद ग्रहण करते थे। डोंगरे जी महाराज कलयुग के दानवीर कर्ण थे।

उनके अंतिम प्रवचन में चौपाटी में एक करोड़ रुपए जमा हुए थे, जो गोरखपुर के कैंसर अस्पताल के लिए दान किए गए थे। स्वंय कुछ नहीं लिया|

डोंगरे जी महाराज की शादी हुई थी। प्रथम रात के समय उन्होंने अपनी धर्मपत्नी से कहा था, "देवी मैं चाहता हूं कि आप मेरे साथ १०८ भागवत कथा का पारायण करें, उसके बाद यदि आपकी इच्छा होगी तो हम गृहस्थ आश्रम में प्रवेश करेंगे'।

इसके बाद जहाँ जहाँ डोंगरे जी महाराज भागवत कथा करने जाते, उनकी पत्नी भी साथ जाती।१०८ भागवत कथा पूर्ण होने में करीब सात वर्ष बीत गए। तब डोंगरे जी महाराज पत्नी से बोले, *अब अगर आपकी आज्ञा हो तो हम गृहस्थ आश्रम में प्रवेश कर संतान उत्पन्न करें'।
इस पर उनकी पत्नी ने कहा, 'आपके श्रीमुख से १०८ भागवत कथा श्रवण करने के पश्चात मैंने गोपाल को ही अपना पुत्र मान लिया है, इसलिए अब हमें संतान उत्पन्न करने की कोई आवश्यकता नहीं है"। धन्य हैं ऐसे पति-पत्नी, धन्य है उनकी भक्ति और उनका कृष्ण प्रेम।

डोंगरे जी महाराज की पत्नी आबू में रहती थीं और डोंगरे जी महाराज देश दुनिया में भागवत कथा रस बरसाते थे। 
पत्नी की मृत्यु के पांच दिन पश्चात उन्हें इसका पता चला। वे अस्थि विसर्जन करने गए, उनके साथ मुंबई के बहुत बड़े सेठ थे "रतिभाई पटेल जी" |  
उन्होंने बाद में बताया कि डोंगरे जी महाराज ने उनसे कहा था ‘कि रति भाई मेरे पास तो कुछ है नहीं और अस्थि विसर्जन में कुछ तो लगेगा। क्या करें’ ? फिर महाराज आगे बोले थे, ‘ऐसा करो, पत्नी का मंगलसूत्र और कर्णफूल पड़ा होगा उसे बेचकर जो मिलेगा उसे अस्थि विसर्जन क्रिया में लगा देते हैं’।

सेठ रतिभाई पटेल ने रोते हुए बताया था....
जिन महाराजश्री के इशारे पर लोग कुछ भी करने को तैयार रहते थे, वह महापुरुष कह रहा था कि पत्नी के अस्थि विसर्जन के लिए पैसे नहीं हैं। 
    
हम उसी समय मर क्यों न गए l
फूट फूट कर रोने के अलावा मेरे मुँह से एक शब्द नहीं निकल रहा था।

सनातन धर्म ही सर्वोपरि है । ऐसे संत और महात्मा आप को केवल सनातन संस्कृति में ही मिलते है। हमारे देश में बहुत सी बातें हैं जो हम सभी तक पहुंच नहीं पायी । मैं कोशिश करता रहता हूं कि हमारे देश की संस्कृति को हम सभी जाने।
जय श्री राधे कृष्ण 🚩🙏

*ऐसे महान विरक्त महात्मा संत के चरणों में कोटी कोटी नमन भी कम है ||

Thursday, May 4, 2023

वेद और कुरान में अंतर|

कई बार हम लोगों ने जाकिर नायक या किसी और मुसलमान को ये कहते सुना है कि कुरान अल्लाह का दिया है, कुरान ईश्वर कृत है....

*आइए जानते हैं क्या यह बात सत्य है या नहीं तथा वेद और कुरान में क्या अंतर है ?*

1—  वेद ईश्वरीय ज्ञान है जो की सृष्टि के आरम्भ में 1 अरब 96 करोड़ 8 लाख 53 हजार 124 वर्ष पूर्व ईश्वर ने 4 ऋषियों के हृदय में प्रकाशित किया जबकि कुरान 1400 वर्ष पहले अरब देश के  मोहम्मद ने रचा और खुद को पैगम्बर घोषित किया।

2—  वेद सृष्टि के आदि में जैसे थे वैसे ही आज भी है एक अक्षर भी नहीं बदला क्योंकि ये ऋषिओं ने परम्परा से कण्ठस्थ कर के सुरक्षित रखा जब कि कुरान को कई बार बदलना पड़ा।

3—  क्या ईश्वर का ज्ञान परिवर्तित होता रहता है कि जो पहले तौरेत दी, फिर इंजील दी और बाद में कुरान दी; कुरान में भी कुछ आयते मन्सूख़ (रद्द) हो जाती हैं ,जबकि वेद यथावत बने हुए है।

4—  वेद सभी मानव-मात्र के लिए है वह मत मजहब से परे है, जबकि कुरान सिर्फ मुस्लिम के लिए।

5—  वेद में मानवता की बात है, विश्व कल्याण की शिक्षाएं हैं, जबकि कुरान में सिर्फ़ मुसलमानों की ही भले की बातें हैं और दूसरे धर्म वालों को धर्मांतरण कराने का हुक्म है अन्यथा उन्हें मार डालने के आदेश है।

6—  वेद में ईश्वर को निराकार और सर्वव्यापी बताया है जबकि कुरान में एक देशी जो सातवें आसमान पर एक तख्त जिसे अर्श कहते हैं, पर बैठा है और वह साकार है, पता नहीं वहाँ क्या करता है?

7—  वेद में एक ईश्वर की उपासना की बात कही है जबकि कुरान में ईश्वर कहने को तो एक ईश्वर की बात है पर उसमें लिखा है - रसूल को जो नहीं मानता उसे खुदा ज़न्नत नहीं देगा।

8—  वेद का ईश्वर सर्वज्ञ है सब जानता है पर कुरान का ख़ुदा सब नहीं जानता उसे सबके कर्मपत्र पढ़ने पड़ते है; कुरान में लिखा है जब सबका हिसाब होगा तब सबके गले में कर्मपत्र रहेंगे।

9—  कुरान में बताया है कि जब सबका न्याय होगा तो मुसलमानों के लिए पैग़म्बर मोहम्मद सिफारिश करेगा तो खुदा उन्हें जन्नत में भेज देगा जबकि वेद के ईश्वर के सामने कोई सिफारिश नहीं चलती है।

10—  वेद के अनुसार ईश्वर और जीव के बीच कोई बिचौलिया नहीं है जबकि कुरान के अनुसार पैगम्बर मोहम्मद को मानना जरूरी है।

11—  वेद के अनुसार ईश्वर कर्म का फल तत्काल या बाद में या अन्य जन्मों में दे देता है जबकि कुरान का खुदा कयामत तक इंतजार करवाता है, तब तक अपनी अपनी पेशी का इंतजार कब्र में ही करना पड़ता है।

12—  कुरान के ख़ुदा का यह कैसा न्याय है क्योंकि वे अपनी मर्ज़ी से जन्म से किसी को भी अच्छा बुरा धनी निर्धन स्वस्थ रोगी लूला लँगड़ा बना देता है; जबकि वेद के अनुसार ये सब पिछले जन्म के कर्मों के फलस्वरूप होता है तो ईश्वर न्यायकारी हुआ, जबकि कुरान पुनर्जन्म को नहीं मानती।

13―  वेदो के अनुसार जीवन का उद्देश्य दु:खों से छूट कर मोक्ष के आनंद को प्राप्त करना है जबकि कुरान के अनुसार 72 हूरों से भोग करना शराब की नदियों वाली कल्पित जन्नत को पाना ही उद्देश्य है।

14—  वेद में सृष्टि की उत्पत्ति का वैज्ञानिक सिद्धान्त है परमेश्वर प्रकृति के तत्वों *सत रज तम से सृष्टि बनाता है* जबकि खुदा केवल *कुन* ऐसा कहता है और जादू से दुनिया बन जाती है; *सब जानते है अभाव से भाव उत्पन्न नहीं होता है*।

15—  वेद के अनुसार ईश्वर जीव और प्रकृति तीनों अनादि है जबकि कुरान के अनुसार केवल खुदा अनादि है; यदि ऐसा है तो तो खुदा ने संसार क्यों और किसके लिए बनाया?

16—  वेद के अनुसार किसी भी बात को तर्क की कसौटी पर कस कर ही मानों ; जबकि कुरान में तर्क को हराम माना है अर्थात जो लिखा है वही सही है रसूल पर शंका की तो दण्ड दिया जायेगा फतवा जारी हो जाता है।

17—  वेद परमात्मा ने स्वयम् ऋषियों के हृदय में दिए क्योंकि वह सर्वत्र है, जबकि कुरान देने के लिए खुदा ने अपने फ़रिश्ते जिब्राइल को भेजा, इसका अर्थ है की खुदा सर्वत्र नहीं है और सर्वशक्तिमान नहीं है।

 *अब आप ही विचारिये की कौन सी पुस्तक ईश्वरकृत व सही है और कौन सी नहीं....✍️

Wednesday, May 3, 2023

इतिहास के पन्नों से|

बारीन्द्र कुमार घोष या बरीन घोष जिन्होंने 11वर्ष तक अंडमान की जेल में घोर यातना सही और हर यातना के बाद मुंह से निकलता था “वंदेमातरम्”। यह वो नाम हैं जिनसे यकीनन आप परिचित नही होंगे या बहुत कम ही जानते होंगे।
5 जनवरी 1880 बारीन्द्र कुमार घोष भारतीय स्वतंत्रता सेनानी, क्रांतिकारी और पत्रकार थे। वह बंगाल के एक क्रांतिकारी संगठन जुगंतार के संस्थापक सदस्यों में से एक थे। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा देवगढ़ में स्कूल में पूरी हुई। बाद में 1901 में प्रवेश परीक्षा पास की और पटना कॉलेज में दाखिला लिया। उन्होंने अपने बड़े भाई मनमोहन घोष के साथ ढाका में कुछ समय गुजारा। बड़ौदा में उन्होंने सैन्य प्रशिक्षण प्राप्त किया। साथ ही उन्होंने इतिहास और राजनीति में पर्याप्त अध्ययन किया था। इसी समय अपने बड़े भाई अरविन्द घोष से प्रभावित हुए, जिसके कारण उनके मन में क्रांतिकारी विचारों ने जन्म लिया और वे क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लेने लगे।
1902 में बारीन्द्र कुमार घोष कोलकाता लौट आए और जतिंद्रनाथ बनर्जी (बाघा जतिन) के सहयोग से ‘युगांतर’ नामक क्रांतिकारी संगठन की स्थापना की। 1906 में स्वदेशी आंदोलन के दिनों में उन्होंने युगांतर नाम से एक बंगाली साप्ताहिक और एक क्रांतिकारी पत्रिका प्रकाशित करना शुरू कर दिया। युगांतर का गठन अनुशीलन समिति के आंतरिक चक्र से किया गया और इसकी क्रांतिकारी गतिविधियों को शुरू किया। उनके इस कार्य और बंगाल में बढ़ती युगांतर की लोकप्रियता ने ब्रिटिश सरकार को उन पर शक होने लगा। 1907 में, उन्होंने बाघा जतिन और कुछ युवा क्रांतिकारी कार्यकर्ताओं के साथ माणिकतला नामक स्थान पर उन्होंने बाम बनाने और हथियारों और गोला-बारूद इकट्ठा करना शुरू कर दिया, ताकि अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह कर सके।
उनके संगठन के सदस्य खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी ने मजिस्ट्रेट किंग्सफोर्ड की हत्या का प्रयास किया लेकिन वे असफल हो गये। इसके बाद पुलिस ने उन पर छानबीन शुरू की और जांच के माध्यम से 2 मई, 1908 को बारीन्द्र कुमार घोष और उनके कई साथियों को भी गिरफ्तार कर लिया गया।
बरीन घोष को अलीपुर बम कांड के मुकदमे में मौत की सजा सुनाई गई थी। बाद में यह सजा आजीवन कारावास में बदल दी गई और 1909 में अंडमान के सेलुलर जेल में भेज दिया गया। जहां पर सजा काटना मौत से भी ज्यादा भयानक था क्योंकि यह जेल अपनी क्रूरूर यातना के लिए जानी जाती है। 11 साल तक यहाँ सजा काटने के बाद 1920 में उन्हें रिहा कर दिया गया। इसके बाद वह कलकत्ता आ गए और वहीं पर प्रिंटिंग हाउस खोल लिया और पत्रकारिता का कार्य करने लगे।  

Monday, May 1, 2023

एक सभ्यता|

यहूदी जब बेबीलोन में निर्वासित जीवन जी रहे थे तो वहां की नदियों के तट पर बैठकर येरूशलम की ओर मुंह करके  रोते थे और विरह गीत गाते थे ।

उन्होंने वहां सौगंध ले ली कि हम तब तक कोई आनंदोत्सव नहीं मनाएंगे जब तक कि हमें हमारा येरुशलम और जियान पर्वत दोबारा नहीं मिल जाता ।

50 सालों के निर्वासित जीवन में न कोई हर्ष, न गीत, न संगीत और सिर्फ़ अपनी मातृभूमि की वेदना...

इसकी तुलना अपने देश की संततियों से कीजिये ।

जो अफगानिस्तान से निकाले गए, जो पाकिस्तान से निकाले गए, जो बांग्लादेश से निकाले गए, जो कश्मीर से निकाले गए, क्या उनके अंदर अपनी उस भूमि के लिए कोई वेदना है ?

इन निर्वासितों की किसी संस्था को अखंड भारत के लिए कोई कार्यक्रम करते देखा या सुना है ?

अपने छोड़े गए शहर, पहाड़, नदी आदि की स्मृति को क्या उन्होंने किसी रूप में संजोया हुआ है ?

क्या कोई विरह गीत ये अपनी उस खो गई भूमि के लिए गाते हैं ?

क्या अपनी संततियों को समझाते हैं कि उनके दादा-पड़दादा को क्यों, कब और किसने कहाँ से निकाला था ?

मैं ये नहीं कहता कि इनमें से सब ऐसे ही हैं पर जो ऐसे हैं वो बहुसंख्यक में हैं या फिर मान लीजिये कि कल को मैं मेरे जन्मस्थान से खदेड़ दिया गया तो क्या उसकी स्मृति को उसी तरह जी पाऊँगा जैसा बेबीलोन के निर्वासित यहूदी जीते थे...

शायद "नहीं"

 एक सभ्यता के रूप में हमारी हार का सबसे बड़ा सबूत यही है कि न तो हमें भारत के अधूरे मानचित्र को देखकर दर्द होता है और न ही हमें हमारी खोई हुई भूमि, नदियां, पर्वत और लूटे धर्मस्थान पीड़ा देते हैं।

धोवन पानी.

आयुर्वेद ग्रंथों  में हमारे ऋषि मुनियों ने पहले ही बता दिया गया  था कि 
 *धोवन पानी पीने का वैज्ञानिक तथ्य और आज की आवश्यकता*

वायुमण्डल में प्राणवायु ऑक्सीजन की अधिकतम मात्रा *21%* है, लेकिन यह मात्रा भारत के किसी गाँव में *18 या 19%* से ज्यादा नही है और शहरों में तो *11 या 12°/*. तक ही है।
भारतीय गाय के ताज़ा गोबर में *प्राणवायु ऑक्सीजन की मात्रा 23%* है। जब इस गोबर को सुखा कर कण्डा बनाया जाता है तो इसमें *ऑक्सीजन की मात्रा बढ़कर 27% हो जाती है।* जब इस कण्डे को जलाकर जो राख बनतीं हैं तो इसमें *ऑक्सीजन की मात्रा बढ़कर 30% हो जाती है।* इसी  को  भस्म बना देने पर *प्राणवायु 46.6% हो जाती है*। जब भस्म को दोबारा जलाकर विशुद्ध भस्म बनाते हैं तो *इसमें 60% तक प्राणवायु आ जाता है।* जब कि मॉडर्न विज्ञान कहता है कि किसी भी वस्तु को प्रोसेस करने से उसमें हानि होती है।
*10 लीटर जल में अगर 25 ग्राम भस्म मिला दे तो जल शुद्ध होने के साथ उसमें सभी आवश्यक पोषक तत्वों की पूर्ति हो जाती है।*

*🏘️अपने घरमें गोबर कंडेका धुंआ कीजिये और राख को पीनेके पानीमें*

*अग्निहोत्र भस्म* 
  अग्निहोत्र गौ भस्म_को ध्यान से पढ़ेगें तो पायेंगे कि यह गौ-भस्म ( राख ) आपके लिए कितनी उपयोगी है।*
*साधू -संत लोग संभवतः इन्ही गुणों के कारण इसे प्रसाद रूप में भी देते थे।* 
*जब गोबर से बनायीं गयी भस्म इतनी उपयोगी है तो गाय कितनी उपयोगी होगी यह आप सोच सकते है।*

*आपको एक लीटर पानी में 10-15 ग्राम  यानि 3-4 चम्मच भस्म मिलाना है , उसके बाद भस्म जब पानी के तले में बैठ जाये फिर इसे पी लेना है।*  
*इससे सारे पानी की अशुद्धि दूर हो जाएगी और आपको मिलेगा इतने पोषक तत्व।*
*यह लैबोटरी द्वारा प्रमाणित है।*
#तत्व_रूप / #ELEMENT_FORM
१. ऑक्सीजन  O = 46.6 %
२. सिलिकॉन  SI  = 30.12 %
३. कैल्शियम Ca = 7.71 %
४. मैग्नीशियम Mg = 2.63 %
५.  पोटैशियम K = 2.61 %
६. क्लोरीन CL = 2.43 %
७. एल्युमीनियम Al  = 2.11 %
८. फ़ास्फ़रोस P = 1.71 %
९. लोहा Fe = 1.46 %
१०. सल्फर S =1.46 %
११. सोडियम Na = 1 %
१२. टाइटेनियम Ti = 0.19 %
१३. मैग्नीज Mn =0.13 %
१४. बेरियम Ba = 0.06 %
१५. जस्ता Zn = 0.03 %
१६. स्ट्रोंटियम Sr = 0.02 %
१७. लेड Pb = 0.02 %
१८. तांबा Cu = 80 PPM
१९. वेनेडियम V=72 PPM
२०. ब्रोमिन Br = 50 PPM
२१. ज़िरकोनियम Zr 38 PPM
 *आक्साइड_रूप* :-
१. सिलिकाँन डाइऑक्साइड -
              SIO2 = 64.44%
२. कैल्शियम ऑक्साइड
            CaO =10.79 %
३. मैग्नीशियम ऑक्साइड
       MgO = 4-37 %
४. एल्युमीनियम ऑक्साइड
        AI2O3 = 3.99%
५. फास्फोरस पेंटाक्साइड
        P2O5 = 3.93%
६. पोटेशियम ऑक्साइड
       K2O = 3.14 %
७. सल्फर ऑक्साइड
       SO3 = 2.79%
८. क्लोरीन  CL=2.43 %
९.  आयरन ऑक्साइड
      Fe2O3=2.09%
१०. सोडियम ऑक्साइड
       Na2O = 1.35 %
११.  टाइटेनियम ऑक्साइड
        TiO2 = 0.32%
१२. मैंगनीज ऑक्साइड
      MnO = 0.17 %
१३.  बेरियम ऑक्साइड
        BaO = 0.07 %
१४.  जिंक ऑक्साइड  
       ZnO = 0.03%
१५.  स्ट्रोंटियम ऑक्साइड
        SrO = 0.03%
१६. लेड ऑक्साइड
      PbO = 0.02%
१७. वेनेडियम ऑक्साइड
      V2O5 = 0.01 %
१८. कॉपर ऑक्साइड
       CuO = 0.01%
१९. जिरकोनियम ऑक्साइड
         ZrO2 =52 PPM
२०. ब्रोमिन Br = 50 PPM
२१.  रुबिडियम ऑक्साइड
      Rb2O = 32 PPM

*शरीर में आक्सीजन की मात्रा को बढ़ाने के लिए यह गोबर की भस्म  बहुत उपयोगी है।*
स्वस्थ रहे, प्रसन्न रहे
आयुर्वेद अपनाये, सुरक्षित रहे