Thursday, April 28, 2022

भौतिकवादी युग।

किसी दिन सुबह उठकर एक बार इसका जायज़ा लीजियेगा कि कितने घरों में अगली पीढ़ी के बच्चे रह रहे हैं? कितने बाहर निकलकर नोएडा, गुड़गांव, पूना, बेंगलुरु, चंडीगढ़,बॉम्बे, कलकत्ता, मद्रास, हैदराबाद, बड़ौदा जैसे बड़े शहरों में जाकर बस गये हैं? 
 कल आप एक बार उन गली मोहल्लों से पैदल निकलिएगा जहां से आप बचपन में स्कूल जाते समय या दोस्तों के संग मस्ती करते हुए निकलते थे।
 तिरछी नज़रों से झांकिए.. हर घर की ओर आपको एक चुपचाप सी सुनसानियत मिलेगी, न कोई आवाज़, न बच्चों का शोर, बस किसी किसी घर के बाहर या खिड़की में आते जाते लोगों को ताकते बूढ़े जरूर मिल जायेंगे।
आखिर इन सूने होते घरों और खाली होते मुहल्लों के कारण क्या  हैं ?
भौतिकवादी युग में हर व्यक्ति चाहता है कि उसके एक बच्चा और ज्यादा से ज्यादा दो बच्चे हों और बेहतर से बेहतर पढ़ें लिखें। 
उनको लगता है या फिर दूसरे लोग उसको ऐसा महसूस कराने लगते हैं कि छोटे शहर या कस्बे में पढ़ने से उनके बच्चे का कैरियर खराब हो जायेगा या फिर बच्चा बिगड़ जायेगा। बस यहीं से बच्चे निकल जाते हैं बड़े शहरों के होस्टलों में। 
अब भले ही दिल्ली और उस छोटे शहर में उसी क्लास का सिलेबस और किताबें वही हों मगर मानसिक दबाव सा आ जाता है   बड़े शहर में पढ़ने भेजने का।
 हालांकि इतना बाहर भेजने पर भी मुश्किल से 1% बच्चे IIT, PMT या CLAT वगैरह में निकाल पाते हैं...। फिर वही मां बाप बाकी बच्चों का पेमेंट सीट पर इंजीनियरिंग, मेडिकल या फिर बिज़नेस मैनेजमेंट में दाखिला कराते हैं। 
4 साल बाहर पढ़ते पढ़ते बच्चे बड़े शहरों के माहौल में रच बस जाते हैं। फिर वहीं नौकरी ढूंढ लेते हैं । सहपाठियों से शादी भी कर लेते हैं।आपको तो शादी के लिए हां करना ही है ,अपनी इज्जत बचानी है तो, अन्यथा शादी वह करेंगे ही अपने इच्छित साथी से।
अब त्यौहारों पर घर आते हैं माँ बाप के पास सिर्फ रस्म अदायगी हेतु।
माँ बाप भी सभी को अपने बच्चों के बारे में गर्व से बताते हैं ।  दो तीन साल तक उनके पैकेज के बारे में बताते हैं। एक साल, दो साल, कुछ साल बीत गये । मां बाप बूढ़े हो रहे हैं । बच्चों ने लोन लेकर बड़े शहरों में फ्लैट ले लिये हैं। 
अब अपना फ्लैट है तो त्योहारों पर भी जाना बंद।
अब तो कोई जरूरी शादी ब्याह में ही आते जाते हैं। अब शादी ब्याह तो बेंकट हाल में होते हैं तो मुहल्ले में और घर जाने की भी ज्यादा जरूरत नहीं पड़ती है। होटल में ही रह लेते हैं।
 हाँ शादी ब्याह में कोई मुहल्ले वाला पूछ भी ले कि भाई अब कम आते जाते हो तो छोटे शहर,  छोटे माहौल और बच्चों की पढ़ाई का उलाहना देकर बोल देते हैं कि अब यहां रखा ही क्या है?
 खैर, बेटे बहुओं के साथ फ्लैट में शहर में रहने लगे हैं । अब फ्लैट में तो इतनी जगह होती नहीं कि बूढ़े खांसते बीमार माँ बाप को साथ में रखा जाये। बेचारे पड़े रहते हैं अपने बनाये या पैतृक मकानों में। 
कोई बच्चा बागवान पिक्चर की तरह मां बाप को आधा - आधा रखने को भी तैयार नहीं।
अब साहब, घर खाली खाली, मकान खाली खाली और धीरे धीरे मुहल्ला खाली हो रहा है। अब ऐसे में छोटे शहरों में कुकुरमुत्तों की तरह उग आये "प्रॉपर्टी डीलरों" की गिद्ध जैसी निगाह इन खाली होते मकानों पर पड़ती है । वो इन बच्चों को घुमा फिरा कर उनके मकान के रेट समझाने शुरू करते हैं । उनको गणित समझाते हैं कि कैसे घर बेचकर फ्लैट का लोन खत्म किया जा सकता है । एक प्लाट भी लिया जा सकता है। 
साथ ही ये किसी बड़े लाला को इन खाली होते मकानों में मार्केट और गोदामों का सुनहरा भविष्य दिखाने लगते हैं। 
बाबू जी और अम्मा जी को भी बेटे बहू के साथ बड़े शहर में रहकर आराम से मज़ा लेने के सपने दिखाकर मकान बेचने को तैयार कर लेते हैं। 
आप स्वयं खुद अपने ऐसे पड़ोसी के मकान पर नज़र रखते हैं । खरीद कर डाल देते हैं कि कब मार्केट बनाएंगे या गोदाम, जबकि आपका खुद का बेटा छोड़कर पूना की IT कंपनी में काम कर रहा है इसलिए आप खुद भी इसमें नहीं बस पायेंगे।
हर दूसरा घर, हर तीसरा परिवार सभी के बच्चे बाहर निकल गये हैं।
 वही बड़े शहर में मकान ले लिया है, बच्चे पढ़ रहे हैं,अब वो वापस नहीं आयेंगे। छोटे शहर में रखा ही क्या है । इंग्लिश मीडियम स्कूल नहीं है, हॉबी क्लासेज नहीं है, IIT/PMT की कोचिंग नहीं है, मॉल नहीं है, माहौल नहीं है, कुछ नहीं है साहब, आखिर इनके बिना जीवन कैसे चलेगा?

भाईसाब ये खाली होते मकान, ये सूने होते मुहल्ले, इन्हें सिर्फ प्रोपेर्टी की नज़र से मत देखिए, बल्कि जीवन की खोती जीवंतता की नज़र से देखिए। आप पड़ोसी विहीन हो रहे हैं। आप वीरान हो रहे हैं।
आज गांव सूने हो चुके हैं 
शहर कराह रहे हैं |
सूने घर आज भी राह देखते हैं.. वो बंद दरवाजे बुलाते हैं पर कोई नहीं आता...

Monday, April 25, 2022

हिन्दुओं यह आपके लिए आत्मचिंतन का समय है.

वही कहानी, वही तरीका केवल नाम भेद: हिन्दुओं तुम कब सीखोगे

#डॉ_विवेक_आर्य 

स्थान-हज़रत सैयद अली मीरा दातार दरगाह, उनावा ग्राम, जिला मेहसाणा, गुजरात 
पात्र- सय्यद अली उर्फ़ हज़रत सैयद अली मीरा दातार
पूर्वज- बुखारा से दादा और पिता भारत इस्लाम का प्रचार करने आये थे 
जन्म- रमजान महीने की 29 तारीख,अहमदाबाद  
कार्य- गुजरात के सुलतान अहमद की सेना में सिपाहसालार 
मृत्यु- हिन्दू राजा मेहंदी ने जो मांडगाव की छोटी से रियासत जिसके अंतर्गत 12 ग्राम थे से युद्ध में सय्यद अली का सर अपनी तलवार से काट दिया था। 
मृत्यु के पश्चात गुजरात के सुल्तान ने इस स्थान पर उसकी दरगाह बनवा दी। 
चमत्कारों की सूची- 

१. सय्यद अली की माँ की अकाल मृत्यु हो गई। उसकी दूसरी माता को दूध नहीं था। सैयद अली ने चमत्कार किया। उससे दूध आने लगा। 

२. हिन्दू राजा के सर काटने के बाद भी उसका धड़ बिना सर के तलवार चलाता रहा और उसने राजा का काम तमाम कर दिया। 

३. इसकी दरगाह में मन्नत मांगने वालों को संतान पैदा हो जाती है। दूर दूर से लोग अपने पारिवारिक मनोरोगी सदस्यों को दरगाह में लाते हैं। इसे भूत भगाने वाली दरगाह के नाम से भी जाना जाता है। दरगाह के चमत्कार से अनेकों के मनोरोग, पथरी, कोढ़ आदि बीमारियां दूर हो गई। 

दरगाह में मन्नत मांगने वाले अधिकांश हिन्दू है जो गुजरात के अनेक जिलों से प्रतिदिन आते हैं। साबरकांठा आदि जिलों से हिन्दू भील समुदाय के लोग भी आते हैं। दरगाह का संचालन मुस्लिम खादिमों द्वारा होता है।  जिनके परिवार इसी ग्राम में रहते हैं। 

वही यक्ष प्रश्न-

कुछ सामान्य से 10  प्रश्न हम पाठकों से पूछना चाहेंगे?

1 .क्या एक कब्र जिसमें मुर्दे की लाश मिट्टी में बदल चूंकि है वो किसी की मनोकामना पूरी कर सकती है?

2. सभी कब्र उन मुसलमानों की है जो हमारे पूर्वजों से लड़ते हुए मारे गए थे, उनकी कब्रों पर जाकर मन्नत मांगना क्या उन वीर पूर्वजों का अपमान नहीं है जिन्होंने अपने प्राण धर्म रक्षा करते की बलि वेदी पर समर्पित कर दिये थे?

3. क्या हिन्दुओं के राम, कृष्ण अथवा 33 कोटि देवी देवता शक्तिहीन हो चुकें है जो मुसलमानों की कब्रों पर सर पटकने के लिए जाना आवश्यक है?

4. जब गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहाँ हैं की कर्म करने से ही सफलता प्राप्त होती हैं तो मजारों में दुआ मांगने से क्या हासिल होगा?

5. भला किसी मुस्लिम देश में वीर शिवाजी, महाराणा प्रताप, हरी सिंह नलवा आदि वीरों की स्मृति में कोई स्मारक आदि बनाकर उन्हें पूजा जाता है तो भला हमारे ही देश पर आक्रमण करने वालों की कब्र पर हम क्यों शीश झुकाते है?

6. क्या संसार में इससे बड़ी मूर्खता का प्रमाण आपको मिल सकता है?

7.. हिन्दू जाति कौन सी ऐसी अध्यात्मिक प्रगति मुसलमानों की कब्रों की पूजा कर प्राप्त कर रहीं है जिसका वर्णन पहले से ही हमारे वेदों- उपनिषदों आदि में नहीं है?

8. कब्र पूजा को हिन्दू मुस्लिम एकता की मिसाल और सेकुलरता की निशानी बताना हिन्दुओं को अँधेरे में रखना नहीं तो ओर क्या है?

9. इतिहास की पुस्तकों में गौरी – गजनी का नाम तो आता हैं जिन्होंने हिन्दुओं को हरा दिया था पर मुसलमानों को हराने वाले राजा सोहेल देव पासी का नाम तक न मिलना क्या हिन्दुओं की सदा पराजय हुई थी ऐसी मानसिकता को बना कर उनमें आत्मविश्वास और स्वाभिमान की भावना को कम करने के समान नहीं है?

10. इस्लामिक देशों में पैदा हुए प्रचारकों का भारत की धरती पर आने का प्रयोजन समझने में हिन्दुओं को कितना समय लगेगा?

हिन्दुओं यह आपके लिए आत्मचिंतन का समय है। जागो।

Sunday, April 24, 2022

मोब लिंचिंग.

जरा सोचिए, पालघर में संतों की लिंचिंग जैसी घटना अगर किसी समुदाय विशेष के या इसी गिरोह के किसी व्यक्ति के साथ घटी होती तो आज कितना हंगामा होता। उस पर भी अगर महाराष्ट्र में भाजपा की सरकार होती तो उनके रुदन का कोई पारावार नहीं रहता। पर, इस हैवानियत के शिकार भगवा धारण किए साधु थे। तो फिर उनकी अंतरात्मा क्यों ही जागृत हो?

महाराष्ट्र के पालघर जिले के यह ऐसे कुछ इलाके हैं, जहाँ प्रायः कोंकणा, वारली और ठाकुर जनजाति के लोग रहते हैं। आधुनिक विकास से वंचित इन दूरदराज के गॉंवों में कई वर्षों से क्रिश्चियन मिशनरी और वामपंथियों ने अपना प्रभाव क्षेत्र बनाया हुआ है।
 कुछ वर्षों में वामपंथी और मिशनरी प्रभावित जनजाति प्रदेशों में, जनजाति समुदाय के मतांतरित व्यक्तियों द्वारा अलग धार्मिक संहिता की माँग हो रही है। उन्हें बार-बार यह कह कर उकसाया जाता रहा है कि उनकी पहचान हिन्दुओं से अलग है।

कुछ नाम देखिए --

1. विष्णु गोस्वामी– 16 मई 2019 को यूपी के गोंडा जिले में इमरान, तुफैल, रमज़ान और निज़ामुद्दीन ने विष्णु गोस्वामी को पेट्रोल डालकर जिंदा जला दिया। विष्णु की गलती बस ये थी कि वे अपने पिता के साथ लौटते हुए सड़क के किनारे लगे नल पर पानी पीने लगा था। बस इसी दौरान इन्होंने विष्णु व उसके पिता से विवाद बढ़ाया और बात खिंचने पर उसे पेट्रोल डालकर आग के हवाले झोंक दिया।

2.वी.रामलिंगम– तमिलनाडु में दलितों के इलाके में धर्म परिवर्तन की प्रक्रिया को चलता देख वी राम लिंगम ने पीएफआई के कुछ लोगों का विरोध किया था। जिसके बाद 7 फरवरी को पट्टाली मक्कल काची के नेता की घर से खींचकर हत्या कर दी गई । इस मामले में पुलिस ने पाँच लोगों को हिरासत में लिया था- निजाम अली, सरबुद्दीन, रिज़वान, मोहम्मद अज़रुद्दीन और मोहम्मद रैयाज़।

3. ध्रुव त्यागी– बेटी के साथ छेड़खानी का विरोध करने पर 51 वर्षीय ध्रुव त्यागी को सरेआम सबके सामने मोहम्मद आलम और जहाँगीर खान ने धारधार हथियारों से राष्ट्रीय राजधानी के मोती नगर में मौत के घाट उतारा था। इसके बाद इन हत्यारों ने ध्रुव त्यागी के बेटे पर भी हमला किया था। हालाँकि, उस समय पुलिस ने दोनों आरोपितों को गिरफ्तार कर लिया था। मगर बाद में पुलिस  को पड़ताल से पता चला कि उस दिन उन्हें 11 लोगों ने घेर कर मारा था।

4. चन्दन गुप्ता–  कासगंज में तिरंगा यात्रा के दौरान हुई हिंसा में मारे गए अभिषेक उर्फ़ चंदन गुप्ता की हत्या शायद ही किसी के जेहन से निकले। अभी हाल ही में दिल्ली में हुए प्रदर्शनों में इनका नाम एक बार फिर सामने आया था। चंदन का जुर्म सिर्फ़ ये था कि वे 26 जनवरी के मौके पर विहिप और एबीवीपी की तिरंगा यात्रा में शामिल थे। जहाँ मुस्लिम बहुल इलाके में उनपर छत से गोली चला दी गई। घटना में चंदन की मौत हो गई और बाद में पुलिस ने मुख्य आरोपित सलीम को गिरफ्तार किया 

5 बन्धु प्रकाश – बंगाल के मुर्शिदाबाद इलाके में आरएसएस कार्यकर्ता बंधु प्रकाश पाल, उनकी सात माह की गर्भवती पत्नी, तथा आठ साल के बेटे की 8 अक्टूबर 2019 को धारदार हथियार से गला काटकर हत्या कर दी गई थी। जिसने सबको हिलाकर रख दिया था। पहले पुलिस ने इसे निजी कारणों से हुई हत्या बताया था। बाद में इसके पीछे 24000 रुपए का एंगल जोड़ दिया था।

6. रतन लाल– 24-25 फरवरी को उत्तरपूर्वी दिल्ली में हुई हिंसा में वीरगति को प्राप्त हुए रतन लाल का नाम शायद ही आने वाले समय में कोई भूल पाए। एक ऐसा वीर जिसने दिल्ली को जलने से रोकने के लिए खुद को इस्लामिक भीड़ का बलि बना दिया। उनकी पोस्टमार्टम रिपोर्ट्स से पता चला था कि पत्थरबाजी के कारण नहीं बल्कि रतन लाल की मौत गोली लगने के कारण हुई थी। 

7 प्रीति रेड्डी– हैदराबाद का वो मामला जिसने पिछले साल नवंबर महीने के खत्म होते-होते सबको झकझोर दिया। शमसाबाद के टोल प्लाजा के पास घटी घटना में मुख्य आरोपित मोहम्मद पाशा था। जिसने अपने अन्य तीन साथियो के साथ मिलकर उस महिला डॉक्टर का गैंगरेप किया। फिर उसे पेट्रोल डालकर जलने को छोड़ दिया।

Friday, April 22, 2022

वेदों में सूर्य विज्ञान।

सभी धर्म प्रेमी सज्जनों को नमस्ते जी।
आप सब वेदों के नाम से तो परिचित होंगे ही वेद चार हैं ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद ।
इन चारों वेदों में सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का ज्ञान -विज्ञान ,शिल्पकला, ज्योतिष, आयुर्वेद ,संगीत, संस्कृति आदि अनेकों विषय उपलब्ध हैं। 

जो ज्ञान आधुनिक विज्ञान करोड़ो डॉलर खर्च कर के प्राप्त कर पाया वह समस्त ज्ञान बल्कि उससे भी कहीं अधिक गूढ़ ज्ञान वेदों में बताया गया है।
ज्ञान प्राप्ति के प्रयास में आधुनिक विज्ञान ने प्रकृति को कितना दूषित किया धरती ,जल आदि संसाधनों का कितना दोहन किया इस बात से सभी परिचित हैं किन्तु वेद का जो ज्ञान शुद्ध रूप में परमपिता परमात्मा द्वारा ऋषियों को दिया गया जो समस्त मानव ज्ञान का मूल स्तोत्र रहा उस वेद को वर्तमान समाज ने भुला दिया। 

सूर्य विज्ञान के विषय मे वैदिक साहित्य में विस्तृत जानकारी दी गयी है।  कुछ जानकारियां आइये आपसे साझा करता हूं और उचित स्थान पर आधुनिक विज्ञान के मत को भी प्रस्तुत किया गया है ताकि आप स्वयं तुलना कर समझ सकें कि वेद का विज्ञान कितना उन्नत है। 

👉१- सूर्य के प्रकाश की गति 

🔶 आधुनिक विज्ञान अनुसार - 1,86,286 मील प्रति सेकेण्ड है । 

🔷 वैदिक - 'ऋग्वेद' के सायण भाष्य में प्रकाश के ​वेग का प्रमाण प्राप्त होता है।
तरणिर्विश्वदर्शतो ज्योतिष्कृदसि सूर्य विश्वमा भासि रोचनम् || ऋग्वेद 1.50.4 || 

🌹अर्थ 🌹

संपूर्ण संसार में एकमात्र दर्शनीय हे सूर्य! तू समस्त साधकों का उद्धार करने वाला, प्रकाशक है तथा विशाल अंतरिक्ष को सभी ओर से प्रकाशित करता हैΙ
इस ऋग्वैदिक श्लोक का 14वीं शताब्दी ईस्वी में सायण द्वारा भी इसकी चर्चा और विस्तार किया गया। वह कहते है:
तथा च स्मर्यते योजनानां सहस्त्रं द्वे द्वे शते द्वे च योजने
एकेन निमिषार्धेन क्रममाण नमोऽस्तुते ||
हे सूर्य! नमन आपको। सूर्य की किरणें (सूर्या) एक निमिष में 2,202 योजन की यात्रा करती है।
ऋग्वेद के श्लोक अर्ध-निमिष में प्रकाश की गति के बारे में एक ठोस विचार देते हैं। एक निमिष एक सेकंड के 16/75वें हिस्से के बराबर होता है। और अर्ध-निमिष में सूर्य का प्रकाश 2,202 योजन चलता है। इस प्रकार प्रकाश के वेग की गणना इस प्रकार की जा सकती है:
1/2 निमिष यानि 8/75 सेकंड में प्रकाश 2,202 योजन की यात्रा करता है
1 योजन = 4 कोस
1 कोस = 2000 दण्ड
1 दण्ड = 2 गज
1 योजन = 4⨯2000⨯2 गज
= 16000 गज
= 16000/1760 मील (∵1 मील = 1760 गज)
= 100/11 मील
2202 योजन = (2202x100)/11 मील
इसलिए 8/75 सेकंड में, प्रकाश 220200/11 मील की यात्रा करता है और 1 सेकंड में, प्रकाश यात्रा (220200⨯75) / 11⨯8 मील = 1, 87, 670 मील
प्रकाश का वेग = 1, 87, 670 मील/सेकेण्ड

👉२- सूर्य की किरणों के बारे में 

🔶आधुनिक विज्ञान - वैज्ञानिक सर आइजक न्यूटन ने इस तथ्य पर वैज्ञानिक प्रयोग किए तथा बताया कि श्वेत प्रकाश (सूर्य का प्रकाश या किरण) में सात रंग पहले से ही मौजूद होते है। प्रिज्म से गुजरने पर अपवर्तन के कारण यह 7 रंगों में विभक्त हो जाता है। 

🔷वैदिक - 
एको अश्वो वहति सप्तनामा । -ऋग्वेद 1-164-2
सूर्य के प्रकाश में 7 रंग होता है इस सूक्त में पहले से है ।
अव दिवस्तारयन्ति सप्त सूर्यस्य रश्मय: । – अथर्ववेद 17-10 /17/9
सूर्य की सात किरणें दिन को उत्पन्न करती है। सूर्य के अंदर काले धब्बे होते है। जिसे विज्ञान आज इन धब्बो को सौर कलंक कहा है। 

सप्तवर्णी रश्मियों जैसे सात अश्वो से नियोजित रथ में सुशोभित है ” सर्व द्रष्टा सूर्य ! तेजस्वी रश्मियों से युक्त तू दिव्यता को धारण करता है
                                                    ऋग्वेद 1-50-8 

सूर्य को स्वर्ग में स्थापित कर दिया , जिससे सब उसके दर्शन कर सके —-ऋग्वेद 1-52-8 
सूर्य को आकाश में इसलिए स्थापित किया क़ि मानव मात्र दर्शन कर सके। सूर्य ही स्वर्ग लोक कहलाता है।
सूर्य का अस्त नहीं होता है।सूर्य का दिखायी देना है उदय है और न दिखाई देना है अस्त है। 

सूर्य की किरणों में सात रंग हैं। जिन्हें वेदों में सात रश्मियां कहा गया है-
'' सप्तरश्मिरधमत् तमांसि। '' -ऋग्वेद 4-50-4 

अर्थात-सूर्य की सात रश्मियां हैं।  सूर्य की इन रश्मियों के सात रंग हैं- बैंगनी, जामुनी, नीला, हरा, पीला, नारंगी और लाल। 

इन्हें तीन भागों में बांटा गया है- गहरा, मध्यम और हल्का। इस प्रकार सात गुणित तीन से 21 प्रकार की किरणें हो जाती हैं। अथर्ववेद में कहा गया है- 

''ये त्रिषप्ता: परियन्ति विश्वा रुपाणि बिभ्रत:। ''
                                                     अथर्ववेद 1-1-1 

अर्थात यह 21 प्रकार की किरणें संसार में सभी दिशाओं में फैली हुई हैं तथा इनसे ही सभी रंग-रूप दृष्टिगोचर हैं। वेदों के अनुसार संसार में दिखाई देने वाले सभी रंग सूर्य की किरणों के कारण ही दिखाई देते हैं। सूर्य किरणों से मिलने वाली रंगों की ऊर्जा हमारे शरीर को मिले इसके लिए ही सूर्य को अघ्र्र्य देने का धार्मिक विधान है। 

👉३- सूर्य की बनावट 

🔶आधुनिक विज्ञान - सूर्य का बाह्य प्रभामंडल दृश्यमान अंतिम परत है। इसके उपर की परते नग्न आंखों को दिखने लायक पर्याप्त प्रकाश उत्सर्जित करने के लिहाज से सूर्यकेन्द्र के सापेक्ष ठंडी या काफी पतली है। और उसके चारो ओर गैसों का आवरण है । 

🔷वैदिक - 
'शकमयं धूमम् आराद् अपश्यम्, विषुवता पर एनावरेण।' ऋग्वेद(1.164.43) 
यानी सूर्य के चारों और दूर-दूर तक शक्तिशाली गैस फैली हुई हैं। यहां गैस के लिए धूम शब्द का प्रयोग किया गया है। 

👉४- ग्रहण के बारे में 

🔶आधुनिक विज्ञान - ग्रहण एक खगोलीय अवस्था है जिसमें कोई खगोलिय पिंड जैसे ग्रह या उपग्रह किसी प्रकाश के स्रोत जैसे सूर्य और दूसरे खगोलिय पिंड जैसे पृथ्वी के बीच आ जाता है जिससे प्रकाश का कुछ समय के लिये अवरोध हो जाता है इस अवस्था को ग्रहण कहते है। 

🔷वैदिक - 
यं वै सूर्य स्वर्भानु स्तमसा विध्यदासुर: ।
अत्रय स्तमन्वविन्दन्न हयन्ये अशक्नुन ॥ 
                                                    ऋग्वेद 5-40-9
अर्थात जब चंद्रमा पृथ्वी ओर सूर्य के बीच में आ जाता है तो सूर्य पूरी तरह से स्पष्ट दिखाई नहीं देता। चंद्रमा द्वारा सूर्य के प्रकाश को ढंक लेना ही सूर्य ग्रहण है । 

👉५- सूर्य से ग्रहों की दूरी 

आज पृथ्वी से सूर्य की दूरी ( 1.5 ×10 की घातांक 8 KM) है। इसे एयू (खगोलीय इकाई- astronomical unit) कहा जाता है। इस अनुपात के आधार पर निम्न सूची बनती है :- 

ग्रह              आर्यभट्ट का मान             आधुनिक विज्ञान 
बुध               0.375 एयू                    0.387 एयू
शुक्र              0.725 एयू                    0.723 एयू
मंगल            1.538 एयू                    1.523 एयू
गुरु               5.16 एयू।                     5.20 एयू
शनि             9.41 एयू।                     9.54 एयू 

ग्रहों की दूरी क्या हजारो वर्षो में प्रभावित नही हुई होगी ? 
आर्यभट्ट के ग्रहों की दूरी के मान आधुनिक विज्ञान की तुलना में काफी सटीक हैं। यह सिद्ध करता है प्राचीन भारत में खगोलविज्ञान कितना उन्नत था और वह विज्ञान वेद आधारित ही था। 

👉६- सूर्य एक जीवाणुनाशक 

🔶आधुनिक विज्ञान - अंधकार जीवाणुओं के परिवर्धन में सहायक है। बहुत से जीवाणु, जो सक्रिय रूप से अंधकार में चर (mobile) होते हैं, प्रकाश में लाए जाने पर आलसी हो जाता हैं तथा सूर्य के प्रकाश में पतले स्तर में रखे गए जीवाणु तीव्रता से मरते हैं। इन परिस्थितियों में कुछ केवल 10-15 मिनट के लिये जीवित रहते हैं। इसी कारण सूर्य का प्रकाश रोगजनक जीवाणुओं का नाश करनेवाले शक्तिशाली कारकों में माना गया है। साधारणत: दृश्य वर्णक्रम (spectrum) जीवाणुओं पर थोड़ा ही विपरीत प्रभाव रखते हैं तथा प्रकाश के वर्णक्रम के पराबैंगनी (ultraviolet) छोर में यह घातक शक्ति निहित रहती है। 

🔷वैदिक -
'उत पुरस्तात् सूर्य एत, दुष्टान् च ध्नन् अदृष्टान् च, 
सर्वान् च प्रमृणन् कृमीन्।' अथर्ववेद (3.7) 
अर्थात - 
सूर्य का प्रकाश दिखाई देने वाले और न दिखाई देने वाले सभी प्रकार के प्रदूषित जीवाणुओं और रोगाणुओं को नष्ट करने की क्षमता रखता है। 

👉७ - चंद्रमा पर प्रकाश  

🔶आधुनिक विज्ञान - 
चंद्रमा का स्वयं का प्रकाश नहीं है। वह पृथ्वी का एकमात्र उपग्रह है। वह सूर्य की किरणों से प्रकाशित होता है। 

🔷वैदिक - 
सुषुम्णः सूर्य रश्मिः चंद्रमा गरन्धर्व, अस्यैको रश्मिः चंद्रमसं प्रति दीप्तयते।' 
निरुक्त( 2.6)
'आदित्यतोअस्य दीप्तिर्भवति।' 
यानी सूर्य की सुषुम्ण नामक किरणें चंद्रमा को प्रकाश देती हैं। चंद्रमा का स्वयं का प्रकाश नहीं है। वह सूर्य की किरणों से प्रकाशित होता है। 

👉८- सूर्य ही संसार की ऊर्जा का स्रोत है (Solar Radiation)- सूर्य ही वायुमण्डल एवं पृथ्वी पर मिलने वाली उष्मा का अजस्र स्रोत है और इससे विकिरण के माध्यम से दी की जाने वाली सम्पूर्ण ऊर्जा को सौर विकरण (Solar Radiation) कहा जाता है। यही बात यजुर्वेद में कही गयी है-
      सूर्य आत्मा जगतस्तस्थुषश्च     यजुर्वेद 7/42 

यहाँ ‘आत्मा’ शब्द ही ऊर्जा का बोधक है। क्योंकि वर्तमान वैज्ञानिक भाषा में ऊर्जा वह है ‘जो किसी वस्तु में कार्य की क्षमता है उसे ऊर्जा कहत हैं’ और क्षमता आत्मा में होती है। किसी कार्य को सम्पादिक करने के लिए आत्मिक ऊर्जा की महती आवश्यकता होती है इस प्रकार यह सूर्य सम्पूर्ण विश्व की अजस्र ऊर्जा का स्रोत है।
आज का विज्ञान भी सोलन रेडियेशन को मानता है। यह सौर विकिरण चारों ओर अंतरिक्ष में फैलता है और सूर्य से 15 करोड़ किमी. की औसत दूरी पर स्थित हमारी पृथ्वी भी इसका क सूक्ष्म अंश (2 अरबवाँ भाग) प्राप्त करती है फिर भी पृथ्वी को प्राप्त होने वाला यही सूक्ष्म अंश बहुत महत्वपूर्ण है और इसी से पृथ्वी की सम्पूर्ण भौतिक एवं जैविक घटनाएं नियंत्रित होतीं हैं। 

👉९- अंतरिक्ष में अनेक सूर्य तथा सौरमण्डल (Solar System)– सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाने वाले विभिन्न ग्रहों, उपग्रहों, धूमकेतुओं, क्षुद्र ग्रहों तथा अनेक आकाशीय पिण्डों के समूह या परिवार को सौरमण्डल कहते हैं, परन्तु वैज्ञानिकों ने इस बात की पुष्टि की है कि दृष्यमान सूर्य के सदृश अंतरिक्ष में अनेक सूर्य हैं तथा उनकी परिक्रमा अन्य आकाशीय पिण्ड कर रहे हैं। 

ऋग्वेद में यह बात हजारों साल पहले ही कह दी गयी है। 

सप्त दिशो॒ नानासूर्यः सप्तक्रांति ऋत्विज: । 
                                             ऋग्वेद 9-114-3 

🌹विशेष - 🌹

प्राचीन काल से खगोल विज्ञान वेदांग का हिस्सा रहा है। ऋग्वेद, शतपथ ब्राहृण आदि ग्रथों में नक्षत्र, चान्द्रमास, सौरमास, मल मास, ऋतु परिवर्तन, उत्तरायन, दक्षिणायन, आकाशचक्र, सूर्य की महिमा, कल्प का माप आदि के संदर्भ में अनेक उद्धरण मिलते हैं। इस हेतु ऋषि प्रत्यक्ष अवलोकन करते थे। कहते हैं, ऋषि दीर्घतमस् सूर्य का अध्ययन करने में ही प्रसिद्ध हुए, ऋषि गृत्स्मद ने चन्द्रमा के गर्भ पर होने वाले परिणामों के बारे में बताया। यजुर्वेद के 18वें अध्याय के चालीसवें मंत्र में यह बताया गया है कि सूर्य किरणों के कारण चन्द्रमा प्रकाशमान है।
यंत्रों का उपयोग कर खगोल का निरीक्षण करने की पद्धति रही है। आर्यभट्ट के समय आज से लगभग 1500 से अधिक वर्ष पूर्व पाटलीपुत्र मे
वेधशाला(Observatory) थी, जिसका प्रयोग कर आर्यभट्ट ने कई निष्कर्ष निकाले। 

भास्कराचार्य सिद्धान्त शिरोमणि ग्रंथ के यंत्राध्याय प्रकरण में कहते हैं, "काल" के सूक्ष्म खण्डों का ज्ञान यंत्रों के बिना संभव नहीं है। इसलिए अब मैं यंत्रों के बारे में कहता हूं। वे नाड़ीवलय यंत्र, यष्टि यंत्र, घटी यंत्र, चक्र यंत्र, शंकु यंत्र, चाप, तुर्य, फलक आदि का वर्णन करते हैं।
प्रत्यक्ष निरीक्षण एवं अचूक ग्रहीय व कालगणना का हजारों वर्षों से पुराना इतिहास रखने वाले हम भारतीय आज पश्चिमी देशों की ओर उम्मीद से देखते है जबकि उनसे बेहतर हम सदियो से थे बस अपना आत्मगौरव भूले बैठे है । आइये वेदों की ओर लौटें,वैदिक ज्ञान-विज्ञान को पुनः समाज में स्थापित कर सम्पूर्ण मानवता को लाभान्वित करें।बेहतर सनातन परंपरा को आगे बढ़ाए । 

सत्य सनातन वैदिक धर्म की जय 🕉🕉🔥🔥

#वेदों_में_सूर्य_विज्ञान #physics #vedic

सरदार हरि सिंह नलवा (ਹਰੀ ਸਿੱਘ ਨਲੂਆ)।

सरदार हरि सिंह नलवा (ਹਰੀ ਸਿੱਘ ਨਲੂਆ) (1791 - 1837), जो बाघ मार (Tiger killer) के नाम से प्रसिद्ध हुए|
महाराजा रणजीत सिंह के सेनाध्यक्ष थे जिन्होने पठानों के विरुद्ध किये गये कई युद्धों का नेतृत्व किया। रणनीति और रणकौशल की दृष्टि से हरि सिंह नलवा की तुलना भारत के श्रेष्ठ सेनानायकों से की जा सकती है। उन्होने कसूर, सियालकोट, अटक, मुल्तान, कश्मीर, पेशावर और जमरूद की जीत के पीछे हरि सिंह का नायकत्व था। उन्होने सिख साम्राज्य की सीमा को सिन्धु नदी के परे ले जाकर खैबर दर्रे के मुहाने तक पहुँचा दिया। हरि सिंह की मृत्यु के समय सिख साम्राज्य की पश्चिमी सीमा जमरुद तक पहुंच चुकी थी।

रणजीत सिंह एक बार जंगल में शिकार खेलने गये। उनके साथ कुछ सैनिक और हरी सिंह नलवा थे। उसी समय एक विशाल आकार के बाघ ने उन पर हमला कर दिया। जिस समय डर के मारे सभी दहशत में थे, हरी सिंह मुकाबले को सामने आए। इस खतरनाक मुठभेड़ में हरी सिंह ने बाघ के जबड़ों को अपने दोनों हाथों से पकड़ कर उसके मुंह को बीच में से चीर डाला। उसकी इस बहादुरी को देख कर रणजीत सिंह ने कहा ‘तुम तो राजा नल जैसे वीर हो’, तभी से वो ‘नलवा’ के नाम से प्रसिद्ध हो गये।
हरि सिंह नलवा ने कश्मीर पर विजय प्राप्त कर अपना लोहा मनवाया। यही नहीं, काबुल पर भी सेना चढ़ाकर जीत दर्ज की। खैबर दर्रे से होने वाले अफगान आक्रमणों से देश को मुक्त किया। इतिहास में पहली बार हुआ था कि पेशावरी पश्तून, पंजाबियों द्वारा शासित थे।

हरि सिंह नलवा कश्मीर, पेशावर और हजारा के प्रशासक (गवर्नर) थे। सिख साम्राज्य की तरफ से उन्होने एक मुद्रालय (mint) स्थापित किया था ताकि कश्मीर और पेशावर में राजस्व इकट्ठा किया जा सके।

महाराजा रणजीत सिंह के निर्देश के अनुसार हरि सिंह नलवा ने सिख साम्राज्य की भौगोलिक सीमाओं को पंजाब से लेकर काबुल बादशाहत के बीचोंबीच तक विस्तार किया था। महाराजा रणजीत सिंह के सिख शासन के दौरान 1807 ई. से लेकर 1837 ई. तक हरि सिंह नलवा लगातार अफगानों के खिलाफ लड़े। अफगानों के खिलाफ जटिल लड़ाई जीतकर नलवा ने कसूर, मुल्तान, कश्मीर और पेशावर में सिख शासन की व्यवस्था की थी।

सर हेनरी ग्रिफिन ने हरि सिंह को "खालसाजी का चैंपियन" कहा है। ब्रिटिश शासकों ने हरि सिंह नलवा की तुलना नेपोलियन से भी की है।

क्यों झूठ बोलते थे साहब, चरखे से आजादी आई थी।

45 साल के महात्मा गाँधी 1915 में भारत आते हैं, 2 दशक से भी ज्यादा दक्षिण अफ्रीका में बिता कर। इससे 4 साल पहले 28 वर्ष का एक युवक अंडमान में एक कालकोठरी में बन्द होता है। अंग्रेज उससे दिन भर कोल्हू में बैल की जगह हाँकते हुए तेल पेरवाते हैं, रस्सी बटवाते हैं और छिलके कूटवाते हैं। वो तमाम कैदियों को शिक्षित कर रहा होता है, उनमें राष्ट्रभक्ति की भावनाएँ प्रगाढ़ कर रहा होता है और साथ ही दीवालों कर कील, काँटों और नाखून से साहित्य की रचना कर रहा होता है। 
उसका नाम था- विनायक दामोदर सावरकर। 
वीर सावरकर।

उन्हें आत्महत्या के ख्याल आते। उस खिड़की की ओर एकटक देखते रहते थे, जहाँ से अन्य कैदियों ने पहले आत्महत्या की थी। पीड़ा असह्य हो रही थी। यातनाओं की सीमा पार हो रही थी। अंधेरा उन कोठरियों में ही नहीं, दिलोदिमाग पर भी छाया हुआ था। दिन भर बैल की जगह खटो, रात को करवट बदलते रहो। 11 साल ऐसे ही बीते। कैदी उनकी इतनी इज्जत करते थे कि मना करने पर भी उनके बर्तन, कपड़े वगैरह धो देते थे, उनके काम में मदद करते थे। सावरकर से अँग्रेज बाकी कैदियों को दूर रखने की कोशिश करते थे। अंत में बुद्धि को विजय हुई तो उन्होंने अन्य कैदियों को भी आत्महत्या से विमुख किया।

लेकिन नहीं, महा गँवारों का कहना है कि सावरकर ने मर्सी पेटिशन लिखा, सॉरी कहा, माफ़ी माँगी..ब्ला-ब्ला-ब्ला। मूर्खों, काकोरी कांड में फँसे क्रांतिकारी रामप्रसाद बिस्मिल ने भी माफ़ी माँगी थी, तो? उन्हें भी 'डरपोक' करार दोगे? बताओ। उन्होंने भी माफ़ी माँगी थी अंग्रेजों से। क्या अब इस कसौटी पर क्रांतिकारियों को तौला जाएगा? शेर जब बड़ी छलाँग लगाता है तो कुछ कदम पीछे लेता ही है। उस समय उनके मन में क्या था, आगे की क्या रणनीति थी- ये आज कुछ लोग बैठे-बैठे जान जाते हैं। कौन ऐसा स्वतंत्रता सेनानी है जिसे 11 साल कालापानी की सज़ा मिली हो। नेहरू? गाँधी? कौन?

नानासाहब पेशवा, महारानी लक्ष्मीबाई और वीर कुँवर सिंह जैसे कितने ही वीर इतिहास में दबे हुए थे। 1857 को सिपाही विद्रोह बताया गया था। तब इसके पर्दाफाश के लिए 20-22 साल का एक युवक लंदन की एक लाइब्रेरी का किसी तरह एक्सेस लेकर और दिन-रात लग कर अँग्रेजों के एक के बाद एक दस्तावेज पढ़ कर सच्चाई की तह तक जा रहा था, जो भारतवासियों से छिपाया गया था। उसने साबित कर दिया कि वो सैनिक विद्रोह नहीं, प्रथम स्वतंत्रता संग्राम था। उसके सभी अमर बलिदानियों की गाथा उसने जन-जन तक पहुँचाई। भगत सिंह सरीखे क्रांतिकारियों ने मिल कर उसे पढ़ा, अनुवाद किया।

दुनिया में कौन सी ऐसी किताब है जिसे प्रकाशन से पहले ही प्रतिबंधित कर दिया गया था? अँग्रेज कितने डरे हुए थे उससे कि हर वो इंतजाम किया गया, जिससे वो पुस्तक भारत न पहुँचे। जब किसी तरह पहुँची तो क्रांति की ज्वाला में घी की आहुति पड़ गई। कलम और दिमाग, दोनों से अँग्रेजों से लड़ने वाले सावरकर थे। दलितों के उत्थान के लिए काम करने वाले सावरकर थे। 11 साल कालकोठरी में बंद रहने वाले सावरकर थे। हिंदुत्व को पुनर्जीवित कर के राष्ट्रवाद की अलख जगाने वाले सावरकर थे। साहित्य की विधा में पारंगत योद्धा सावरकर थे।

आज़ादी के बाद क्या मिला उन्हें? अपमान। नेहरू व मौलाना अबुल कलाम जैसों ने तो मलाई चाटी सत्ता की, सावरकर को गाँधी हत्या केस में फँसा दिया। गिरफ़्तार किया। पेंशन तक नहीं दिया। प्रताड़ित किया। 60 के दशक में उन्हें फिर गिरफ्तार किया, प्रतिबंध लगा दिया। उन्हें सार्वजनिक सभाओं में जाने से मना कर दिया गया। ये सब उसी भारत में हुआ, जिसकी स्वतंत्रता के लिए उन्होंने अपना जीवन खपा दिया। आज़ादी के मतवाले से उसकी आज़ादी उसी देश में छीन ली गई, जिसे उसने आज़ाद करवाने में योगदान दिया था। शास्त्री जी PM बने तो उन्होंने पेंशन का जुगाड़ किया। 

वो कालापानी में कैदियों को समझाते थे कि धीरज रखो, एक दिन आएगा जब ये जगह तीर्थस्थल बन जाएगी। आज भले ही हमारा पूरे विश्व में मजाक बन रहा हो, एक समय ऐसा होगा जब लोग कहेंगे कि देखो, इन्हीं कालकोठरियों में हिंदुस्तानी कैदी बन्द थे। सावरकर कहते थे कि तब उन्हीं कैदियों की यहाँ प्रतिमाएँ होंगी। आज आप अंडमान जाते हैं तो सीधा 'वीर सावरकर इंटरनेशनल एयरपोर्ट' पर उतरते हैं। सेल्युलर जेल में उनकी प्रतिमा लगी है। उस कमरे में प्रधानमंत्री भी जाकर ध्यान धरता है, जिसमें सावरकर को रखा गया था। सावरकर का अपमान करने का अर्थ है अपने ही थूक को ऊँट के मूत्र में मिला कर पीना।

हजारो झूले थे फंदे पर, लाखों ने गोली खाई थी
क्यों झूठ बोलते थे साहब, चरखे से आजादी आई थी....
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जुठ का पुलिंदा।

पेरियार लिखित सच्ची रामायण-जुठ का पुलिंदा 
कार्तिक अय्यर 
तमिलनाडु से एक खबर मिली है। कुछ लोगों ने सड़कों पर प्रदर्शन करने निकले और उन्होंने श्री राम जी के चित्र को जूते लगाए। यह दुर्भाग्यपूर्ण घटना है जो पूर्ण रूप से विघटनकारी राजनीती से प्रेरित है। तमिलनाडु के दिवंगत नेता पेरियार को इस विघटनकारी मानसिकता का जनक कहा जाये, तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। पेरियार ने दलित वोट-बैंक को खड़ा करने के लिए ऐसा घृणित कार्य किया था। ये लोग भी अपनी राजनीतिक हितों को साधने के लिए उन्हीं का अनुसरण कर रहे है। पेरियार ने अपने आपको सही और श्री राम जी को गलत सिद्ध करने के लिए एक पुस्तक भी लिखी थी जिसका नाम था सच्ची रामायण। 
                 सच्ची रामायण पुस्तक वाल्मीकि रामायण की समान कोई जीवन चरित्र नहीं है। बल्कि हम इसे रामायण की आलोचना में लिखी गयी एक पुस्तक कह सकते है। इस में रामायण के हर पात्र के बारे में अलग अलग लिखा गया है। उनकी यथासंभव आलोचना की गई है। इस में राम ,सीता ,दशरथ हनुमान आदि के बारे में ऐसी ऐसी बाते लिखी गई है। जिनका वर्णन करने में लेखनी भी इंकार कर दे।  सब से बड़ी बात सच्ची रामायण में पेरियार ने जबरन कुछ पात्रों को दलित सिद्ध करने का प्रयास किया है। इन (स्वघोषित) दलित पात्रों का पेरियार ने जी भरकर महिमामंडन किया।  यहाँ तक की रावण की इस पुस्तक में बहुत प्रशंसा की गई है। यहाँ तक कहा गया है कि राम उसे आसानी से हरा नहीं सकते थे। इसलिए उसे धोखे से मार गया। इसी पुस्तक में लिखा है के सीता अपनी इच्छा से रावण के साथ गयी थी क्यों के उन्हें राम पसंद नहीं थे। 
पेरियार श्री राम के विषय में लिखते है कि तमिलवासियों तथा भारत के शूद्रों तथा महाशूद्रों के लिये राम का चरित्र शिक्षा प्रद एवं अनुकरणीय नहीं है।
 राम इस कल्पना के विपरीत है। 
रामायण का प्रमुख पात्र राम मनुष्य रूप में आदर्श और मर्यदापुर्षोत्तम थे। इसलिए वाल्मीकि ने स्पष्ट लिखा है कि श्री राम विश्वासघात, छल, कपट, लालच, कृत्रिमता, हत्या,आमिष-भोज,और निर्दोष पर तीर चलाने की साकार मूर्ति थे। 
*एतदिच्छाम्यहं श्रोतु परं कौतूहलं हि मे।महर्षे त्वं समर्थो$सि ज्ञातुमेवं विधं नरम्।।* (बालकांड सर्ग १ श्लोक ५)
आरंभ में वाल्मीकि जी नारदजी से प्रश्न करते है कि “हे महर्षि ! ऐसे सर्वगुणों से युक्त व्यक्ति के संबंध में जानने की मुझे उत्कट इच्छा है,और आप इस प्रकार के मनुष्य को जानने में समर्थ हैं।
महर्षि वाल्मीकि ने  श्रीरामचंद्र को *सर्वगुणसंपन्न* कहा है।
 *अयोध्याकांड प्रथम सर्ग श्लोक ९-३२ में श्री राम जी के गुणों का वर्णन करते हुए वाल्मीकि जी लिखते है। 
*सा हि रूपोपमन्नश्च वीर्यवानसूयकः।भूमावनुपमः सूनुर्गुणैर्दशरथोपमः।९।कदाचिदुपकारेण कृतेतैकेन तुष्यति।न स्मरत्यपकारणा शतमप्यात्यत्तया।११।*
अर्थात्:- श्रीराम बड़े ही रूपवान और पराक्रमी थे।वे किसी में दोष नहीं देखते थे।भूमंडल उसके समान कोई न था।वे गुणों में अपने पिता के समान तथा योग्य पुत्र थे।९।।कभी कोई उपकार करता तो उसे सदा याद करते तथा उसके अपराधों को याद नहीं करते।।११।।
आगे संक्षेप में इसी सर्ग में वर्णित श्रीराम के गुणों का वर्णन करते हैं।देखिये *श्लोक १२-३४*।इनमें श्रीराम के निम्नलिखित गुण हैं।
१:-अस्त्र-शस्त्र के ज्ञाता।महापुरुषों से बात कर उनसे शिक्षा लेते।
२:-बुद्धिमान,मधुरभाषी तथा पराक्रम पर गर्व न करने वाले।
३:-सत्यवादी,विद्वान, प्रजा के प्रति अनुरक्त;प्रजा भी उनको चाहती थी।
४:-परमदयालु,क्रोध को जीतने वाले,दीनबंधु।
५:-कुलोचित आचार व क्षात्रधर्मके पालक।
६:-शास्त्र विरुद्ध बातें नहीं मानते थे,वाचस्पति के समान तर्कशील।
७:-उनका शरीर निरोग था(आमिष-भोजी का शरीर निरोग नहीं हो सकता),तरूण अवस्था।सुंदर शरीर से सुशोभित थे।
८:-‘सर्वविद्याव्रतस्नातो यथावत् सांगवेदवित’-संपूर्ण विद्याओं में प्रवीण, षडमगवेदपारगामी।बाणविद्या में अपने पिता से भी बढ़कर।
९:-उनको धर्मार्थकाममोक्ष का यथार्थज्ञान था तथा प्रतिभाशाली थे।
१०:-विनयशील,गुरुभक्त,आलस्य रहित थे।
११:- धनुर्वेद में सब विद्वानों से श्रेष्ठ।
कहां तक वर्णन किया जाये? वाल्मीकि जी ने तो यहां तक कहा है कि *लोके पुरुषसारज्ञः साधुरेको विनिर्मितः।*( वही सर्ग श्लोक १८)
अर्थात्:- *उन्हें देखकर ऐसा जान पड़ता था कि संसार में विधाता ने समस्त पुरुषों के सारतत्त्व को समझनेवाले साधु पुरुष के रूपमें एकमात्र श्रीराम को ही प्रकट किया है।*
अब पाठकगण स्वयं निर्णय कर लेंगे कि श्रीराम क्या थे? लोभ,हत्या,मांसभोज आदि या सदाचार और श्रेष्ठतमगुणों की साक्षात् मूर्ति।
श्री राम तो  रामो विग्रहवान धर्मः अर्थात धर्म के मूर्त रूप है। 
पेरियार जैसे लोग श्री राम के चरित्र को क्या जाने। इनका उद्देश्य तो केवल जुठ फैला कर अपना राजनीतिक हित सिद्ध करना है।

Sunday, April 17, 2022

बौद्धिक पतन।

पेठा, बेसन के लड्डू, गाजर का हलवा, रसगुल्ला, गुलाब जामुन, जलेबी, कलाकंद खोपरा पाक, खीर, नानखटाई 100 तरह के पेडे, काजू कतरी, रसमलाई, सोहन हलवा, बूंदी, बरफी, 50 तरह के श्रीखंड, पूरण पोली, आम रस, दुधि हलवा, गोल पापड़ी, मोहन थाल, सक्कर पारा तिलगुड़ के लड्डू, मुम्बई आइस हलवा, चीकू बर्फी, चूरमा लड्डू, घेबर, घुघरा, हलवा खजूर पाक, मगज पाक, रेवडी........

जैसी हज़ारो शुद्ध मीठी चीजे जिस देश के लोग बनाना और खाना जानते हो, उस देश में चॉकलेट देकर कुछ मीठा हो जाये कह के करोडों की चॉकलेट बेच के, विदेशी कम्पनियों का हमारा करोडो रूपया लूट लेना, ये दर्शाता है कि........ हमारा कितना बौद्धिक पतन हो गया है ।

Saturday, April 16, 2022

चाणक्य और चन्द्रगुप्त मौर्य।

आज से 2300 साल पूर्व, भारत में मौर्य साम्राज्य की स्थापना हुई। मौर्य साम्राज्य के निर्माण से पहले भारत कई छोटे राज्यों में विभाजित था। पश्चिम की ओर से सम्राट सिकंदर पर्शिया पर विजय प्राप्त कर भारत के ओर अग्रसर था। और यहाँ दूसरी तरफ आचार्य चाणक्य, भारत को विदेशी आक्रमणकारियों से बचाने के लिए एक अखंड भारत की कल्पना यथार्थ में लाना चाहते थे। उस समय मगध, भारत का सबसे शक्तिशाली और सशक्त साम्राज्य था, जहां नंदवंशियों का राज था। अखंड भारत की कल्पना जो आचार्य चाणक्य ने की थी, वो मगध जैसे शक्तिशाली साम्राज्य के समर्थन से ही संभव था। इसी उद्देश्य से आचार्य चाणक्य, मगध नरेश धननंद से भेंट करने गए। धननंद एक नीति भ्रष्ट और निरंकुश राजा थे, जो अपने प्रजा पर निरंतर अत्याचार करते थे। उन्होंने आचार्य चाणक्य की भरी सभा में अपमान की और उन्हें सभा से निष्कासित किया गया। 
आचार्य चाणक्य ने उसी समय, नंदवंश के सर्वनाश की प्रतिज्ञा ली, और अखंड भारत के भावी सम्राट के खोज में लग गए। यह वही समय था जब उनका भेंट युवक चंद्रगुप्त से हुआ। चंद्रगुप्त एक प्रभावशाली युवक थे जो साहसी और कुशल नायक थे। आचार्य चाणक्य ने इन्हें अपना शिष्य बनाया और इन्हें राज्यशास्र, अर्थशास्त्र तथा युद्ध में प्रशिक्षित किया। दूसरी तरफ सिकंदर का सामना महाराज पुरुषोत्तम जैसे पराक्रमी राजा से हुआ, जिन्होंने सिकंदर के सैन्य को ध्वस्त किया और भारत को छोडने के लिए उन्हें विवश किया। सिकंदर के जाने के बाद, भारत के उत्तर पश्चिमी सीमांत पर विद्रोह का वातावरण था। आचार्य चाणक्य ने चंद्रगुप्त को इस अवसर का सदुपयोग करने के लिए प्रेरित किया। चंद्रगुप्त ने तुरंत अपना लक्ष्य इस अभियान को सफल करने के लिए तक्षशिला, गांधार और पट्टल पर कूंच किया। वहा उनहोंने यवनों को पराजित कर उन्हें भारत से खदेड़ दिया। भारत के उत्तर पश्चिमी राज्यों पर विजय प्राप्त करने के पश्चात, चाणक्य और चन्द्रगुप्त का लक्ष्य अब पाटलीपुत्र पर था। पहले युद्ध में उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा। फिर चाणक्य और चन्द्रगुप्त ने मगध के सीमांत प्रदेशों पर विजय प्राप्त किया और अंततः पाटलीपुत्र पर कब्ज़ा कर लिया। धननंद को मृत्युदंड दिया गया और चन्द्रगुप्त मौर्य का राज्याभिषेक किया गया। आचार्य चाणक्य ने अपने प्रतिज्ञा को पूर्ण किया। सम्राट् चन्द्रगुप्त मौर्य ने अपने साम्राज्य का विस्तार कलिंग को छोड़ पूरे भारत में किया। वे भारत के पहले ऐतिहासिक चक्रवर्ती सम्राट थे जिन्होंने आचार्य चाणक्य के नीतियों के साथ अखंड भारत का निर्माण किया। यवन सम्राट सेल्यूकस को पराजित करके चन्द्रगुप्त मौर्य ने भारत के अखंडता को सिद्ध किया। 
सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य, अपने शासन के अंतिम दिनों में जैन धर्म के अनुयायी बने, और राज-पाट अपने पुत्र बिंदुसार को सौंप कर, अपने गुरु भद्रबाहु के साथ दक्षिण भारत की ओर अग्रसर हुए। उनहोंने अपने अंतिम दिन कर्णाटक के श्रवण बेळगोला में बिताए और वही पर, सम्राट चन्द्रगुप्त ने अपना शरीर त्याग दिया। 
आचार्य चाणक्य, सम्राट बिंदुसार के प्रधानमंत्री रहे और साम्राज्य को सुव्यवस्थित करने के लिए उन्हें मार्गदर्शन दिया।

Tuesday, April 12, 2022

1965 का युद्ध।

1965 का युद्ध था, और कमान जनरल अख्तर के हाथ मे थी।

शानदार मौका था ये हिंदुस्तान से कश्मीर छीनने का। भारत की सेना 1962 के शॉक से अभी उबरी न थी। दूसरी सुरक्षा, याने नेहरू का इंटरनेशनल औरा भी अब नही था। वो साल भर पहले इस दुनिया से जा चुके थे। 

और भारत मे एक कमजोर आदमी पीएम था। जिसे सत्ताधारी पार्टी दो गुटों की खींचतान के कारण में मौका मिला था।
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इधर पाकिस्तान अपने स्वर्णयुग में था। जनरल अयूब 8 साल से सत्ता में थे। वो शानदार आठ साल, पाकिस्तान के इतिहास में चहुमुंखी विकास का एकमात्र दौर था। और सेना, तो अत्याधुनिक अमरीकी हथियारों से लैस..

इस ऐतिहासिक क्षण को जाने कैसे दिया जाता। पहले कच्छ के रन में ट्रायल किया गया। रेडक्लिफ लाइन वहां अस्पस्ट थी, तो बार्डर डिस्प्यूट वहां भी था। पाकिस्तान ने हमला किया। हिंदुस्तान गच्चा खा गया। पाकिस्तान ने काफी इलाके जीत लिए। 

ट्रायल सफल रहा। 

अब कश्मीर में असल काम करना था। ईस्टर्न कमांड के मुखिया जनरल अख्तर हुसैन मलिक के हाथ थी। पहले कबायलियों ने घुसपैठ की। इधर उधर आर्म्ड अप्राइजिंग होने लगी। ऐसा लगे कि जैसे कश्मीर के लोकल लोग रिवोल्ट कर रहे हो। ये ऑपरेशन जिब्राल्टर था। 

उसके पीछे ऑपरेशन ग्रैंड स्लैम। याने सीधे पाकिस्तानी सेना टूट पड़ी। राजौरी, पुंछ, अखनूर के सेक्टर्स में पाकिस्तान इस तरह घुसा जैसे मक्खन में गर्म चाकू घुसता है। अब श्रीनगर ज्यादा दूर नही था। बस , दो दिन ..
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पाकिस्तान जीत के नशे में था। लेकिन अयूब की चिंता दूसरी थी। मलिक साहब तो अहमदिया थे। कादियानी कहते है पाकिस्तान में, 

स्थानीय राजनीति में कादियानियों को गैर मुस्लिम, दोयम दर्जे का स्टेटस देने की कोशिशें चल रही थी। ऐसे में कोई कादियानी कश्मीर जिता दे, हीरो बन जाये, तो आंतरिक राजनीति के इक्वेशन गड़बड़ा जाते। 

अख्तर हुसैन मलिक को हीरो बनने से रोकना था। इसलिए ठीक जीत की दहलीज पर अख्तर साहब से कमान वापस ले ली गयी। 

अयूब के फेवरिट चमचे, शुद्ध सुन्नी मुसलमान, जनरल याह्या को कमान दी गयी। 
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जनरल याह्या, भारत की सरजमी पर ( जो अब पाकिस्तानी कब्जे में थी) हेलीकॉप्टर से उतरे। चार्ज लिया। और सिचुएशन समझने लगे। 

इधर कमांड बदल गयी, तो फौजों में कनफ्यूजन छा गया। अख्तर के कुछ आदेश, याह्या ने बदले। आदेश कुछ यूनिट तक पहुचा, उन्होंने रणनीति बदल ली। जिन यूनिट तक बात न पहुँची, पुरानी रणनीति पर चलते रहे। तीन दिन यह अफरातफरी बनी रही।
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भारतीय फौजो को सांस लेने के लिए इतना वक्त कुछ ज्यादा ही था। उसने पलटकर हाजी पीर जीत लिया। पाकिस्तान के आगे बढ़ने का रास्ता बंद हो गया।

पाकिस्तान कुछ पलटवार करता, कि पहले भारत ने पंजाब, राजस्थान में भी नए मोर्चे खोल दिये। यह तो गजब हुआ। कमजोर नेता यकायक ही आयरनमैन बन गया था। पाक ने सोचा नही था कि इंडिया इंटरनेशनल बार्डर क्रॉस करेगा। 

अब फौजे कश्मीर से हटाकर पंजाब लाने की योजना बनने लगी। पूरी होती उससे पहले भारत लाहौर पहुच गया। चेसबोर्ड पूरी तरह बदल गया था, पाकिस्तान ने घुटने टेक दिए। 
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आगे की कहानी आपको पता है। जो मैं बताना चाहता हूँ, वो यह कि एक पेट्रियोटिक, सधे हुए जनरल को सिर्फ दूसरे सेक्ट का होने के कारण राह रोकी गयी। 

वो तीन दिन अगर अपनी धार्मिक सोच, सेक्टोरल नफरत और आंतरिक राजनीति के चक्कर मे अयूब ने बर्बाद न किये होते, तो कश्मीर की समस्या तब ही सुलझ गयी होती। (पाकिस्तानी नजरिये से) 
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अपनी धार्मिक सोच, सेक्टोरल नफरत, और आंतरिक राजनीति के चक्कर मे भाजपा ने 1989-90 के ब्लंडर किये और करवाये नही होते, तो कश्मीरी आतंकवाद की समस्या, पंजाब की तरह 20 साल पहले सुलझ चुकी होती। 

क्या यह सच नही के रेडक्लिफ लाइन कब दोनो तरफ एक ही तरह के लोग हैं। बेवकूफ, शार्ट साइटेड, और नफरत में अपने ही पैर में कुल्हाड़ी मारने वाले लोग। 

जनरल अख्तर हुसैन की कहानी से तो मुझे ऐसा ही लगता है।

बहुसंख्यक मूल निवासियों पर अल्पसंख्यक विदेशियों का प्रभा।

“जब किसी स्थान के बहुसंख्यक मूल निवासियों पर अल्पसंख्यक विदेशियों का प्रभाव हो। उनके संसाधनों से किसी विदेशी प्रशासनिक प्रांत की आर्थिक वृद्धि होती हो, तो यह उपनिवेशवाद कहलाता है।”

उपनिवेशवाद की इस परिभाषा को पढ़ते हुए मैकडोनाल्ड के बर्गर खा रहा था। यह अमरीका का प्रभाव है। इससे अमरीका की आर्थिक वृद्धि हो रही होगी। अमेजन से सामान खरीदने या फ़ेसबुक पर लिखने से भी अमरीका में किसी को फ़ायदा होगा। क्या यह उपनिवेशवाद है? 

उपनिवेश कोई नयी चीज नहीं है। ताकतवर साम्राज्यों ने दूर-दराज़ में पहले भी अपने अड्डे जमाए थे। मसलन रोमन साम्राज्य द्वारा इंग्लैंड के द्वीपों और अफ़्रीका पर राज, मंगोल द्वारा पश्चिम एशिया और रूस पर, और कुछ हद तक मुग़लों द्वारा भारत पर राज। हर काल-खंड में इस तरह अपने मूल स्थान से दूर जाकर शक्ति और व्यापार को बढ़ाया गया है। 

लेकिन जो उपनिवेशवाद (colonialism) शब्द अब अधिक रूढ़ है, वह पंद्रहवीं सदी में यूरोपीय देशों द्वारा खोजी जहाज़ी यात्राओं से जन्मा है। 

स्पेन और पुर्तगाल ने जैसे ही ग़ैर-ईसाई दुनिया का काग़ज़ी बँटवारा किया, कोलंबस ने अमरीका और वास्को द गामा ने भारत के समुद्री रास्ते की खोज कर ली। सोलहवीं सदी की शुरुआत गोवा में पुर्तगाली और क्यूबा में स्पैनिश कॉलोनी बनने से हुई। जल्द ही (1500 ई.) पुर्तगालियों ने ब्राज़ील भी ढूँढ लिया। पुर्तगालियों की गति तेज़ थी। उन्होंने भारत से मसाला व्यापार पर अच्छी पकड़ बना ली। आखिर उनके हाथ आया भी असली इंडिया था, जिसकी कुछ समझ पहले से यूरोप को थी। 

दूसरी तरफ़, स्पैनिश अलग ही भँवर में फँसे हुए थे। उनको अमरीका की धरती पर ऐसे इंडियन मिले, जिनके विषय में उनको कोई जानकारी नहीं थी। उन्हें नहीं मालूम था कि वहाँ सोना कहाँ है, खेती कहाँ होती है, क्या व्यवहार हैं। वे शून्य से शुरू कर रहे थे। उन्हें तो यह भी नहीं पता था कि अमरीका आखिर है कितना बड़ा? वे कुछ दर्जन कैरीबियन द्वीपों में ही दुनिया बसा रहे थे।

यूरोप के कई युवाओं को इस नयी उपनिवेश पद्धति में आकर्षण लगा। वहाँ उन्हें अधिक आज़ादी थी, रोमांच था, और सबसे बड़ी बात कि हिसाब लेने वाले कम लोग थे। उन्हें लूटने की लगभग छूट थी। इसलिए उनसे किसी नैतिकता की उम्मीद भी बेकार है। उनके साथ कुछ पादरी ज़रूर आते थे, लेकिन उनकी नैतिकता भी यही थी कि धर्म का यथा-संभव प्रसार हो। चाहे इसके लिए कोई भी कदम उठाना पड़ा। ईश्वर के नाम पर ही युद्ध, बलप्रयोग और हत्यायें हो रही थी।

इसी उद्देश्य से हर्नांड कोर्टेज इंडियनों पर साम-दाम-दंड-भेद से विजय पाने निकले। उनके पास सेना थी, आधुनिक अस्त्र थे, और अच्छा-खासा बैक-अप था। मेक्सिको के इंडियन के पास उनकी जमीन थी, उनके जंगल थे, उनके अपने ईश्वर के प्रतिमान थे। वे इतनी जल्दी हार मानने वाले नहीं थे। एज्टेक ने ज़रूर ग़लतियाँ की, लेकिन माया के गुरिल्लाओं ने तो दो सदियों तक स्पेन का मुक़ाबला किया। 

कोर्टेज की शुरुआत भी करारी हार से होने वाली थी। उनका जहाज जैसे ही तट पर पहुँचा, उन्होंने देखा कि एक विशाल मंदिर की सीढ़ियों के ऊपर कुछ होम चल रहा है। अग्नि में एक पदार्थ फेंकते हुए मंत्र पढ़े जा रहे हैं। मूर्तियों पर रक्त डाला जा रहा है। उन्हें अब तक एक दुभाषिया मिल गया था। उसने बताया कि वहाँ असुरों (devils) से मुक्ति के लिए पूजा चल रही है। उन्होंने पूछा- असुर कौन?

उत्तर मिला- आप! 

(क्रमशः)

#Mayans #AmericanHistory #WorldHistory

Monday, April 11, 2022

अखंड_भारत_का_इतिहास।

....... आज तक किसी भी इतिहास की पुस्तक में इस बात का उल्लेख नहीं मिलता की बीते 2500 सालों में हिंदुस्तान पर जो आक्रमण हुए उनमें किसी भी आक्रमणकारी ने अफगानिस्तान, म्यांमार, श्रीलंका, नेपाल, तिब्बत, भूटान, पाकिस्तान, मालद्वीप या बांग्लादेश पर आक्रमण किया हो। अब यहां एक प्रश्न खड़ा होता है कि यह देश कैसे गुलाम और आजाद हुए। पाकिस्तान व बांग्लादेश निर्माण का इतिहास तो सभी जानते हैं। बाकी देशों के इतिहास की चर्चा नहीं होती। हकीकत में अंखड भारत की सीमाएं विश्व के बहुत बड़े भू-भाग तक फैली हुई थीं।

#एवरेस्ट का नाम था #सागरमाथा, #गौरीशंकर #चोटी

पृथ्वी का जब जल और थल इन दो तत्वों में वर्गीकरण करते हैं, तब सात द्वीप एवं सात महासमुद्र माने जाते हैं। हम इसमें से प्राचीन नाम #जम्बूद्वीप जिसे आज #एशिया द्वीप कहते हैं तथा #इन्दू #सरोवरम् जिसे आज #हिन्दू #महासागर कहते हैं, के निवासी हैं। इस जम्बूद्वीप (एशिया) के लगभग मध्य में हिमालय पर्वत स्थित है। हिमालय पर्वत में विश्व की सर्वाधिक ऊंची चोटी सागरमाथा, गौरीशंकर हैं, जिसे 1835 में अंग्रेज शासकों ने एवरेस्ट नाम देकर इसकी प्राचीनता व पहचान को बदल दिया।

ये थीं #अखंड #भारत की #4सीमाएं

अखंड भारत इतिहास की किताबों में हिंदुस्तान की सीमाओं का उत्तर में हिमालय व दक्षिण में हिंद महासागर का वर्णन है, परंतु पूर्व व पश्चिम का वर्णन नहीं है। परंतु जब श्लोकों की गहराई में जाएं और भूगोल की पुस्तकों और एटलस का अध्ययन करें तभी ध्यान में आ जाता है कि श्लोक में पूर्व व पश्चिम दिशा का वर्णन है। कैलाश मानसरोवर‘ से पूर्व की ओर जाएं तो वर्तमान का इंडोनेशिया और पश्चिम की ओर जाएं तो वर्तमान में ईरान देश या आर्यान प्रदेश हिमालय के अंतिम छोर पर हैं।

एटलस के अनुसार जब हम श्रीलंका या कन्याकुमारी से पूर्व व पश्चिम की ओर देखेंगे तो हिंद महासागर इंडोनेशिया व आर्यान (ईरान) तक ही है। इन मिलन बिंदुओं के बाद ही दोनों ओर महासागर का नाम बदलता है। इस प्रकार से हिमालय, हिंद महासागर, आर्यान (ईरान) व इंडोनेशिया के बीच का पूरे भू-भाग को #आर्यावर्त अथवा #भारतवर्ष या हिंदुस्तान कहा जाता है।

अब तक 24 #विभाजन

सन 1947 में भारतवर्ष का पिछले 2500 सालों में 24वां विभाजन है। अंग्रेज का 350 वर्ष पूर्व के लगभग ईस्ट इण्डिया कम्पनी के रूप में व्यापारी बनकर भारत आना, फिर धीरे-धीरे शासक बनना और उसके बाद 1857 से 1947 तक उनके द्वारा किया गया भारत का 7वां विभाजन है। 1857 में भारत का क्षेत्रफल 83 लाख वर्ग किमी था। वर्तमान भारत का क्षेत्रफल 33 लाख वर्ग किमी है। पड़ोसी 9 देशों का क्षेत्रफल 50 लाख वर्ग किमी बनता है।

क्या थी #अखंड #भारत की #स्थिति

सन 1800 से पहले विश्व के देशों की सूची में वर्तमान भारत के चारों ओर जो आज देश माने जाते हैं उस समय ये देश थे ही नहीं। यहां राजाओं का शासन था। इन सभी राज्यों की भाषा अधिकांश शब्द संस्कृत के ही हैं। मान्यताएं व परंपराएं बाकी भारत जैसी ही हैं। खान-पान, भाषा-बोली, वेशभूषा, संगीत-नृत्य, पूजापाठ, पंथ के तरीके सब एकसे थे। जैसे-जैसे इनमें से कुछ राज्यों में भारत के इतर यानि विदेशी मजहब आए तब यहां की संस्कृति बदलने लगी।

2500 सालों के इतिहास में सिर्फ हिंदुस्तान पर हुए हमले

इतिहास की पुस्तकों में पिछले 2500 वर्ष में जो भी आक्रमण हुए (यूनानी, यवन, हूण, शक, कुषाण, सिरयन, पुर्तगाली, फेंच, डच, अरब, तुर्क, तातार, मुगल व अंग्रेज) इन सभी ने हिंदुस्तान पर आक्रमण किया ऐसा इतिहासकारों ने अपनी पुस्तकों में कहा है। किसी ने भी अफगानिस्तान, म्यांमार, श्रीलंका, नेपाल, तिब्बत, भूटान, पाकिस्तान, मालद्वीप या बांग्लादेश पर आक्रमण का उल्लेख नहीं किया है।

#रूस और #ब्रिटिश शासकों ने बनाया #अफगानिस्तान

1834 में प्रकिया शुरु हुई और 26 मई 1876 को रूसी व ब्रिटिश शासकों (भारत) के बीच गंडामक संधि के रूप में निर्णय हुआ और अफगानिस्तान नाम से एक बफर स्टेट अर्थात् राजनैतिक देश को दोनों ताकतों के बीच स्थापित किया गया। इससे अफगानिस्तान अर्थात पठान भारतीय स्वतंत्रतता संग्राम से अलग हो गए। दोनों ताकतों ने एक-दूसरे से अपनी रक्षा का मार्ग भी खोज लिया। परंतु इन दोनों पूंजीवादी व मार्क्सवादी ताकतों में अंदरूनी संघर्ष सदैव बना रहा कि अफगानिस्तान पर नियंत्रण किसका हो? अफगानिस्तान शैव व प्रकृति पूजक मत से बौद्ध मतावलम्बी और फिर विदेशी पंथ इस्लाम मतावलम्बी हो चुका था। बादशाह शाहजहां, शेरशाह सूरी व महाराजा रणजीत सिंह के शासनकाल में उनके राज्य में कंधार (गंधार) आदि का स्पष्ट वर्णन मिलता है।

1904 में दिया आजाद रेजीडेंट का दर्जा

मध्य हिमालय के 46 से अधिक छोटे-बडे राज्यों को संगठित कर पृथ्वी नारायण शाह नेपाल नाम से एक राज्य बना चुके थे। स्वतंत्रतता संग्राम के सेनानियों ने इस क्षेत्र में अंग्रेजों के विरुद्ध लडते समय-समय पर शरण ली थी। अंग्रेज ने विचारपूर्वक 1904 में वर्तमान के बिहार स्थित सुगौली नामक स्थान पर उस समय के पहाड़ी राजाओं के नरेश से संधी कर नेपाल को एक आजाद देश का दर्जा प्रदान कर अपना रेजीडेंट बैठा दिया। इस प्रकार से नेपाल स्वतन्त्र राज्य होने पर भी अंग्रेज के अप्रत्यक्ष अधीन ही था। रेजीडेंट के बिना महाराजा को कुछ भी खरीदने तक की अनुमति नहीं थी। इस कारण राजा-महाराजाओं में यहां तनाव था। नेपाल 1947 में ही अंग्रेजी रेजीडेंसी से मुक्त हुआ।

#भूटान के लिए ये #चाल चली गई

1906 में सिक्किम व भूटान जो कि वैदिक-बौद्ध मान्यताओं के मिले-जुले समाज के छोटे भू-भाग थे इन्हें स्वतन्त्रता संग्राम से लगकर अपने प्रत्यक्ष नियंत्रण से रेजीडेंट के माध्यम से रखकर चीन के विस्तारवाद पर अंग्रेज ने नजर रखना शुरु किया। यहां के लोग ज्ञान (सत्य, अहिंसा, करुणा) के उपासक थे। यहां खनिज व वनस्पति प्रचुर मात्रा में थी। यहां के जातीय जीवन को धीरे-धीरे मुख्य भारतीय धारा से अलग कर मतांतरित किया गया। 1836 में उत्तर भारत में चर्च ने अत्यधिक विस्तार कर नए आयामों की रचना कर डाली। फिर एक नए टेश का निर्माण हो गया।

#चीन ने किया #कब्जा

1914 में तिब्बत को केवल एक पार्टी मानते हुए चीन भारत की ब्रिटिश सरकार के बीच एक समझौता हुआ। भारत और चीन के बीच तिब्बत को एक बफर स्टेट के रूप में मान्यता देते हुए हिमालय को विभाजित करने के लिए मैकमोहन रेखा निर्माण करने का निर्णय हुआ। हिमालय को बांटना और तिब्बत व भारतीय को अलग करना यह षड्यंत्र रचा गया। चीनी और अंग्रेज शासकों ने एक-दूसरों के विस्तारवादी, साम्राज्यवादी मनसूबों को लगाम लगाने के लिए कूटनीतिक खेल खेला।

अंग्रेजों ने अपने लिए बनाया रास्ता

1935 व 1937 में ईसाई ताकतों को लगा कि उन्हें कभी भी भारत व एशिया से जाना पड़ सकता है। समुद्र में अपना नौसैनिक बेड़ा बैठाने, उसके समर्थक राज्य स्थापित करने तथा स्वतंत्रता संग्राम से उन भू-भागों व समाजों को अलग करने हेतु सन 1935 में श्रीलंका व सन 1937 में म्यांमार को अलग राजनीतिक देश की मान्यता दी। म्यांमार व श्रीलंका का अलग अस्तित्व प्रदान करते ही मतान्तरण का पूरा ताना-बाना जो पहले तैयार था उसे अधिक विस्तार व सुदृढ़ता भी इन देशों में प्रदान की गई। ये दोनों देश वैदिक, बौद्ध धार्मिक परम्पराओं को मानने वाले हैं। म्यांमार के अनेक स्थान विशेष रूप से रंगून का अंग्रेज द्वारा देशभक्त भारतीयों को कालेपानी की सजा देने के लिए जेल के रूप में भी उपयोग होता रहा है।

दो देश से हुए तीन

1947 में भारत पाकिस्तान का बंटवारा हुआ। इसकी पटकथा अंग्रेजों ने पहले ही लिख दी थी। सबसे ज्यादा खराब स्थिति भौगोलिक रूप से पाकिस्तान की थी। ये देश दो भागों में बंटा हुआ था और दोनों के बीच की दूरी थी 2500 किलो मीटर। 16 दिसंबर 1971 को भारत के सहयोग से एक अलग देश बांग्लादेश अस्तित्व में आया।

तथाकथित इतिहासकार भी दोषी

यह कैसी विडंबना है कि जिस लंका पर पुरुषोत्तम श्री राम ने विजय प्राप्त की ,उसी लंका को विदेशी बना दिया। रचते हैं हर वर्ष रामलीला। वास्तव में दोषी है हमारा इतिहासकार समाज ,जिसने वोट-बैंक के भूखे नेताओं से मालपुए खाने के लालच में भारत के वास्तविक इतिहास को इतना धूमिल कर दिया है, उसकी धूल साफ करने में इन इतिहासकारों और इनके आकाओं को साम्प्रदायिकता दिखने लगती है। यदि इन तथाकथित इतिहासकारों ने अपने आकाओं ने वोट-बैंक राजनीति खेलने वालों का साथ नही छोड़ा, देश को पुनः विभाजन की ओर धकेल दिया जायेगा। इन तथाकथित इतिहासकारो ने कभी वास्तविक भूगोल एवं इतिहास से देशवासिओं को अवगत करवाने का साहस नही किया।

Sunday, April 10, 2022

ईसाई पादरी को निरुत्तर किया।

एक बुद्धिमान हिन्दू की आपबीती. ( कोपी पेस्ट)
चर्च  में जाने पर -- 
मैंने  फ़ादर से कहा की मुझे कन्वर्ट करने से पहले क्रिस्चियन और हिन्दू को कम्पेयर करते हुए उसके मेरिट और डिमेरित बताएँ। मैं कन्वर्ट होने से पहले बाइबिल पर आपके साथ चर्चा करना चाहता हूँ कृपिया मुझे आधा घण्टे का समय दें और मेरे कुछ प्रश्नों का उत्तर दें।
【मैंने पूछा फ़ादर " क्रिश्चियनिटी हिन्दूत्व से किस तरह बेहतर है, परमेश्वर और बाइबिल में से कौन सत्य है,अगर बाइबिल और यीशु में से एक चुनना हो तो किसको चुनें"】
1.यीशु ही एक मात्र परमेश्वर है और होली बाइबिल ही दुनियाँ में मात्र एक पवित्र क़िताब है। बाइबिल में लिखा एक एक वाक्य सत्य है वह परमेश्वर का आदेश है।
परमेश्वर ने ही पृथ्वी बनाई है।
2.क्रिश्चियनिटी में ज्ञान है जबकि हिन्दुओँ की किताबों में केवल अंध विश्वास है।
3.क्रिश्चियनिटी में समानता है जातिगत भेदभाव नही है जबकि हिंदुओं में जातिप्रथा है।
4.क्रिश्चियनिटी में महिलाओं को पुरुषों के बराबर सम्मान हैं जबकि हिन्दुओँ में लेडिज़ का रेस्पेक्ट नही है , हिन्दू धर्म में लेडिज़ के साथ सेक्सुअल हरासमेंट ज़्यादा है।
5.क्रिस्चियन कभी भी किसी को धर्म के नाम पर नही मारते जबकि हिन्दू  धर्म के नाम् पर लोगों को मारते हैं बलात्कार करते हैं हिन्दू बहुत अत्याचारी होते हैं।
6.हिंदुओ में नंगे बाबा घूमते हैं सबसे बेशर्म धर्म है हिन्दू।
अब मैंने बोलना शुरू किया की फ़ादर मैं आपको बताना चाहता हूँ की
1. जैसा आपने कहा की परमेश्वर ने पृथ्वी बनाई है और बाईबल में एक एक वाक्य सत्य लिखा है और वह पवित्र है,
तो बाईबल के अनुसार पृथ्वी की उत्त्पति ईशा के जन्म से 4004 वर्ष पहले हुई अर्थात बाइबिल के अनुसार अभी तक पृथ्वी की उम्र 6020 वर्ष हुई जबकि भूगर्भ विज्ञान के अनुसार  पृथ्वी 2 अरब वर्ष की है जो बाइबिल में बतायी हुई वर्ष के बहुत ज़्यादा है। 
2.आपने कहा की क्रिश्चियनिटी में ज्ञान है तो आपको बता दूँ की क्रिश्चियनिटी में ज्ञान नाम का कोई शब्द नही है , याद करो जब "ब्रूनो" ने कहा था की पृथ्वी सूरज की परिक्रमा लगाती है तो चर्च ने ब्रूनो को 'बाइबिल को झूंठा साबित करने के आरोप में जिन्दा जला दिया था और गैलीलियो को इस लिए अँधा कर दिया गया क्योंकि उसने कहा था 'पृथ्वी के आलावा और भी ग्रह हैं' जो बाइबिल के विरुद्ध था ।
अब आता हूँ हिंदुत्व में तो फ़ादर हिंदुत्व के अनुसार पृथ्वी की उम्र ब्रह्मा के एक दिन और एक रात के बराबर है जो लगभग 1 अर्ब 97 करोड़  वर्ष है जो साइंस के बताये हुए समय के बराबर है और साइंस के अनुसार  ग्रह नक्षत्र तारे और उनका परिभ्रमण हिन्दुओँ के ज्योतिष विज्ञानं पर आधारित है 
3. आपने कहा की 'क्रिश्चियनिटी में समानता है जातिगत भेदभाव नही है तो आपको बता दूँ की 
क्रिश्चियनिटी पहली शताब्दी में तीन भागों में बटी हुई थी जैसे Jewish Christianity , Pauline Christianity, Gnostic Christianity.
जो एक दूसरे के घोर विरोधी थे उनके मत भी अलग अलग थे।
फिर क्रिश्चियनिटी Protestant, Catholic Eastern Orthodoxy, Lutherans में विभाजित हुई जो एक दूसरे के दुश्मन थे, जिनमें ' कुछ लोगों को मानना था की "यीशु" फिर जिन्दा हुए थे तो कुछ का मानना है की यीशु फिर जिन्दा नही हुए, और कुछ ईसाई मतों का मानना है की "यीशु को सैलिब पर लटकाया ही नही गया"
आज ईसाईयत हज़ार से ज़्यादा भागों में बटी हुई है, जो पूर्णतः रँग भेद (श्वेत अश्वेत ) और जातिगत आधारित है आज भी पुरे विश्व में कनवर्टेड क्रिस्चियन की सिर्फ़ कनवर्टेड से ही शादी होती है।
आज भी अश्वेत क्रिस्चियन को ग़ुलाम समझा जाता है।
फ़ादर भेदभाव में ईसाई सबसे आगे हैं हैम के वँशज के नाम पर अश्वेतों को ग़ुलाम बना रखा है।
4. आपने कहा की क्रिश्चियनिटी में महिलाओं को पुरुष के बराबर अधिकार है, तो बाईबल के प्रथम अध्याय में एक ही अपराध के लिये परमेश्वर ने ईव को आदम से ज्यादा दण्ड क्यों दिया, ईव के पेट को दर्द और बच्चे जनने का श्राप क्यों दिया आदम को ये दर्द क्यों नही दिया अर्थात आपका परमेश्वर भी महिलाओं को पुरुषों के समान नही समझता।
आपके ही बाइबिल में "लूत" ने अपनी ही दोनों बेटियों का बलात्कार किया और इब्राहीम ने अपनी पत्नी को अपनी बहन बनाकर मिस्र के फिरौन (राजा) को सैक्स के लिए दिया।
आपकी ही क्रिश्चियनिटी ने पोप के कहने पर अब तक 50 लाख से ज़्यादा बेक़सूर महिलाओं को जिन्दा जला दिया। ये सारी रिपोर्ट आपकी ही बीबीसी न्यूज़ में दी हुईं हैं। आपकी ही ईसाईयत में 17वीं शताब्दी तक महिलाओं को चर्च में बोलने का अधिकार नही था, महिलाओं की जगह प्रेयर गाने के लिए भी 15 साल से छोटे लड़को को नपुंसक बना दिया जाता था उनके अंडकोष निकाल दिए जाते थे महिलाओं की जगह उन बच्चों से प्रेयर करायी जाती थी। बीबीसी के सर्वे के अनुसार सभी धर्मों के  धार्मिक गुरुवों में  सेक्सुअल केस में सबसे ज़्यादा "पोप और नन" ही एड्स से मरे हैं जो ईसाई ही हैं।
फ़ादर क्या यही क्रिश्चियनिटी में नारी सम्मान है।
अब आपको हिंदुत्व में बताऊँ। दुनियाँ में केवल हिन्दू ही है जो कहता है " यत्र नारियन्ति पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता" अर्थात जहाँ नारी की पूजा होती है वहीँ देवताओं का निवास होता है,।
5. फ़ादर आपने कहा की क्रिस्चियन धर्म के नाम पर किसी को नही मारते तो आपको बता दूँ 'एक लड़का हिटलर जो कैथोलिक परिवार में जन्मा उसने जीवनभर चर्च को फॉलो किया उसने अपनी आत्मकथा "MEIN KAMPF" में लिखा ' वो परमेश्वर को मानता है और परमेश्वर के आदेश से ही उसने 10 लाख यहूदियों को मारा है' हिटलर ने हर बार कहा की वो क्रिस्चियन है। चूँकि हिटलर द्वितीय विश्वयुद्ध का कारण था जिसमें सारे ईसाई देश एक दूसरे के विरुद्ध थे इसलिए आपके चर्च और पादरियों ने उसे कैथोलिक से निकाल कर Atheist(नास्तिक) में डाल दिया।
फ़ादर मैं इस्लाम का हितेषी नही हूँ लेकिन आपको बता दूँ क्रिस्चियनों ने सन् 1096 में ने "Crusade War" धर्म के आधार पर ही स्टार्ट किया था जिसमें पहला हमला क्रिस्चियन समुदाय ने मुसलमानों पर किया। जिसमें लाखों  मासूम मारे गए। फ़ादर "आयरिश आर्मी" का इतिहास पढ़ो किस तरह कैथोलिकों ने धर्म के नाम पर क़त्ले आम किया जो आज के isis से भी ज़्यादा भयानक था।
धर्म के नाम पर क़त्लेआम करने में क्रिस्चियन मुसलमानों के समान ही हैं, वहीँ आपने हिन्दुओँ को बदनाम किया तो आपको बता दूँ की "हिन्दू ने कभी भी दूसरे धर्म वालों को मारने के लिए पहले हथियार नही उठाया है, बल्कि अपनी रक्षा के लिए हथियार उठाया है।
6. फ़ादर आपने कहा की हिन्दुओँ में नंगे बाबा घूमते हैं "हिन्दू बेशर्म" हैं तो फ़ादर आपको याद दिला दूँ की बाइबिल के अनुसार यीशु ने प्रकाशितवाक्य (Revelation) में कहा है की " nudity is best purity" नग्नता सबसे शुद्ध है। 
यीशु कहता है की मेरे प्रेरितों अगर मुझसे मिलना है तो एक छोटे बच्चे की तरह नग्न हो कर मुझसे मिलों क्योंकि नग्नता में कोई लालच नही होता।
फ़ादर याद करो यूहन्ना का वचन 20:11-25 और लूका के वचन 24:13-43 क्या कहते नग्नता के बारे में।
फ़ादर ईसाईयत में सबसे बड़ी प्रथा Bapistism है, जो बाइबिल के अनुसार येरूसलम की यरदन नदी में नग्न होकर ली जाती थी। अभी पिछले वर्ष फ़रवरी में ही न्यूजीलैंड के 1800 लोगों ने जिसमे 1000 महिलाएं थी ने पूर्णतः नग्न होकर बपिस्टिसम लिया। और आप कहते हो की हिन्दू बेशर्म है।
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अब फ़ादर ने काफ़ी सोच समझकर रविश स्टाइल में मुझसे पूछा 'आप किस जाति से हो'
मैंने भी चाणक्य स्टाइल में ज़वाब दे दिया ,
"मैं सेवार्थ शुद्र, आर्थिक वैश्य, रक्षण में क्षत्रिय, और ज्ञान में ब्राह्मण हूँ। 
और हाँ फ़ादर मैं कर्मणा "हिंदुत्व फ़ौजी" हूँ और जाति से "हिन्दू"
अब चर्च में बहुत शोर हो चूका था मेरे जूनियर बहुत खुश थे बाकि सभी ईसाई मुझ पर नाराज़ थे, लेकिन करते भी क्या मैने उनकी ही हर बात को काटने के लिए बाइबिल को आधार बना रखा था और हर बात पर बाइबिल को ही ख़ारिज कर रहा था।
मैंने फ़ादर से कहा मेरे ऊपर ये जाति वाला मन्त्र ना फूँके, आप सिर्फ़ मेरे सवालों का ज़वाब दें।
आप सभी को बता दूँ की एक सरकारी रिपोर्ट के अनुसार भारत में धार्मिक आधार पर सबसे ज़्यादा जमीन क्रिस्चियन ट्रस्टों पर हैं, जिन्हें आप जैसे मासूम कन्वर्ट होने वालो से परमेश्वर के नाम पर डरा कर हड़प लिया गया है।
मैंने फ़ादर से कहा की आपने मेरे सवालों का ज़वाब नही दिया मैं आपसे बाइबिल पर चर्चा करने आया था,

इतिहास के पन्नों से।

इतिहासकारों ने हमारे इतिहास को केवल 200 वर्षों में ही समेट कर रख दिया है जबकि उन्होंने हमें कभी नहीं बताया कि एक राजा ऐसा भी था जिसकी सेना में महिलाएं कमांडर थी और जिसने अपनी विशाल नौकाओं वाली शक्तिशाली नौसेना की मदद से पूरे दक्षिण-पूर्व एशिया पर कब्जा कर लिया था 

#राजेन्द्र_चोल_प्रथम (1012-1044) -- वामपंथी इतिहासकारों के साजिशों की भेंट चढ़ने वाला हमारे इतिहास का एक महान शासक

राजेन्द्र चोल, चोल राजवंश के सबसे महान शासक थे उन्होंने अपनी विजयों द्वारा चोल सम्राज्य का विस्तार कर उसे दक्षिण भारत का सर्व शक्तिशाली साम्राज्य बना दिया था । राजेंद्र चोल एकमात्र राजा थे जिन्होंने न केवल अन्य स्थानों पर अपनी विजय का पताका लहराया बल्कि उन स्थानों पर वास्तुकला और प्रशासन की अद्भुत प्रणाली का प्रसार किया जहां उन्होंने शासन किया। 

सन 1017 ईसवी में हमारे इस शक्तिशाली नायक ने सिंहल (श्रीलंका) के प्रतापी राजा महेंद्र पंचम को बुरी तरह परास्त करके सम्पूर्ण सिंहल(श्रीलंका) पर कब्जा कर लिया था ।

जहाँ कई महान राजा नदियों के मुहाने पर पहुँचकर अपनी सेना के साथ आगे बढ़ पाने का हिम्मत नहीं कर पाते थे वहीं राजेन्द्र चोल ने एक शक्तिशाली नेवी का गठन किया था जिसकी सहायता से वह अपने मार्ग में आने वाली हर विशाल नदी को आसानी से पार कर लेते थे ।

अपनी इसी नौसेना की बदौलत राजेन्द्र चोल ने अरब सागर स्थित सदिमन्तीक नामक द्वीप पर भी अपना अधिकार स्थापित किया यहाँ तक कि अपने घातक युद्धपोतों की सहायता से कई राजाओं की सेना को तबाह करते हुए राजेन्द्र प्रथम ने जावा, सुमात्रा एवं मालदीव पर अधिकार कर लिया था ।

एक विशाल भूभाग पर अपना साम्राज्य स्थापित करने के बाद उन्होंने (गंगई कोड़ा) चोलपुरम नामक एक नई राजधानी का निर्माण किया था, वहाँ उन्होंने एक विशाल कृत्रिम झील का निर्माण कराया जो सोलह मील लंबी तथा तीन मील चौड़ी थी। यह झील भारत के इतिहास में मानव निर्मित सबसे बड़ी झीलों में से एक मानी जाती है। उस झील में बंगाल से गंगा का जल लाकर डाला गया।

एक तरफ आगरा मे शांहजहाँ के शासन के दौरान भीषण अकाल के बावजूद इतिहासकार उसकी प्रशंसा में इतिहास के पन्नों को भरने में लगे रहे दूसरी तरफ जिस राजेन्द्र चोल के अधीन दक्षिण भारत एशिया में समृद्धि और वैभव का प्रतिनिधित्व कर रहा था उसके बारे में हमारे इतिहास की किताबें एक साजिश के तहत खामोश रहीं ।

यहाँ तक कि बंगाल की खाड़ी जो कि दुनिया की सबसे बड़ी खाड़ी है इसका प्राचीन नाम चोला झील था, यह सदियों तक अपने नाम से चोल की महानता को बयाँ करती रही, बाद में यह कलिंग सागर में बदल दिया गया गया और फिर ब्रिटिशर्स द्वारा बंगाल की खाड़ी में परिवर्तित कर दिया गया, वाम इतिहासकारों ने हमेशा हमारे नायकों के इतिहास को नष्ट करने की साजिश रची और हमारे मंदिरों और संस्कृति को नष्ट करने वाले मुगल आक्रांताओं के बारे में पढ़ाया, राजेन्द्र चोल की सेना में कमांडर के पद पर कुछ महिलाएं भी थी, सदियों बाद मुगलों का एक ऐसा वक्त आया जब महिलाएं पर्दे के पीछे चली गईं ।

हममें से बहुत से लोगों को चोल राजवंश और मातृभूमि के लिए उनके योगदान के बारे में नहीं पता है। मैंने इतिहास के अलग-अलग स्रोतों से अपने इस महान नायक के बारे में जाने की कोशिश की और मुझे महसूस हुआ कि अपने इस स्वर्णिम इतिहास के बारे में आपको भी जानने का हक है ।

लोहारू का मुस्लिम नवाब और आर्यसमाज का संघर्ष।

लोहारू 1947 से पहले एक मुस्लिम रियासत थी। रियासत का नवाब मतान्ध मुस्लिम था। आर्यसमाज का जब प्रचार कार्य लोहारू में आरम्भ हुआ तो मुस्लिम नवाब को यह असहनीय हो गया कि आर्यसमाज उसके रहते कैसे समाज सुधार करने की सोच कैसे सकता है। लोहारू में समाज सुधार के लिए आर्यसमाज की स्थापना हेतु आर्यसमाज के प्रधान सेनानी स्वामी स्वतंत्रानन्द जी लोहारू पधारे। उनके साथ स्वामी ईशानन्द, न्योननंद सिंह (स्वामी नित्यानंद), भरत सिंह शास्त्री, ठाकुर भगवंत सिंह आदि प्रमुख आर्य सज्जन थे। आप सभी जुलूस निकालते हुए लोहारू की गलियों से निकले। नवाब ने अपने मुस्लिम गुंडों द्वारा जुलूस पर आक्रमण करवा दिया। स्वामी स्वतंत्रानन्द के सर पर कुल्हाड़े से हमला किया गया। उनका सर फट गया। बाद में रोहतक जाकर दिल्ली के ट्रेन मैं बैठकर उन्होंने    टांकें लगवाये। अनेक आर्यों को शारीरिक हानि हुई। मगर जुलूस अपने गंतव्य तक पहुंचा। सम्पूर्ण लोहारू में आर्यों पर हुए अत्याचार को लेकर नवाब की  घोर आलोचना हुई। आर्यसमाज की विधिवत स्थापना हुई। आर्यसमाज के सत्यवादी एवं पक्षपात रहित आचरण से नवाब प्रभावित हुआ। नवाब ने स्वामी स्वतंत्रानन्द को अपने महल में बुलाकर क्षमा मांगी।  समाज सुधार के लिए आर्यसमाज ने लोहारू और उसके समीप विभिन्न विभिन्न ग्रामों में पाठशाला की स्थापना करी। यह पाठशालाएं आर्यों के महान परिश्रम का परिणाम थी। नवाब के डर से आर्यों को न कोई सहयोग करता था। न भोजन देता था। चार-चार दिन भूखे रहकर उन्होंने श्रमदान दिया। तब कहीं जाकर पाठशालाएं स्थापित हुई।  दरअसल लोहारू में उससे पहले केवल एक इस्लामिक मदरसा चलता था जिसमें केवल उर्दू पढ़ाई जाती थी। अधिकतर मुस्लिम बच्चे ही पढ़ते थे। एक-आध हिन्दू बच्चा अगर पढ़ता भी था तो उसके ऊपर मौलवी इस्लाम स्वीकार करने का दबाव बनाते रहते थे। इसलिए हिन्दू जनता प्रायः अशिक्षित थी। आर्यसमाज द्वारा स्थापित पाठशाला में सवर्णों के साथ साथ दलितों को सभी को समानांतर शिक्षा दी जाती थी। 
  1947 के पश्चात नवाब जयपुर चला गया। एक बार स्वामी ईशानन्द उनसे किसी समारोह में मिले। स्वामी जी ने नवाब से पूछा की अपने आर्यों पर इतना अत्याचार क्यों किया जबकि वे तो उत्तम कार्य ही करने लोहारू आये थे। नवाब ने उत्तर दिया। अगर आर्यसमाज के प्रभाव से मेरी रियासत की जनता जागृत हो जाती तो मेरी सत्ता को खतरा पैदा हो जाता। अगर हिन्दू पढ़-लिख जाते तो मेरी नवाब शाही के विरोध में खड़े हो जाते। इसलिए मैंने आर्यसमाज का लोहारू में विरोध किया था। 
पाठक  समझ सकते है कि हिन्दू जनता पर मुस्लिम शासक कैसे इतने वर्षों से अत्याचार करते आ रहे है। इसीलिए स्वामी दयानंद ने स्वदेशी राजा होने का आवाहन किया था। आर्यसमाज का इतिहास ऐसे अनेक प्रेरणादायक संस्करणों से भरा हुआ हैं। 

#डॉ_विवेक_आर्य

Saturday, April 9, 2022

वास्को दी गामा: एक खोजी नाविक अथवा एक ईसाई समुद्री डाकू।

#डॉ_विवेक_आर्य 

हमारे देश में पढ़ाई जाने वाली किसी भी इतिहास पुस्तक को उठाकर देखिये। वास्को दी गामा को भारत की खोज करने का श्रेय देते हुए इतिहासकार उसके गुणगान करते दिखेंगे। उस काल में जब यूरोप से भारत के मध्य व्यापार केवल अरब के माध्यम से होता था। उस पर अरबवासियों का प्रभुत्व था। भारतीय मसालों और रेशम आदि की यूरोप में विशेष मांग थी। पुर्तगालवासी वास्को दी गामा समुद्र के रास्ते अफ्रीका महाद्वीप का चक्कर लगाते हुए भारत के कप्पाड तट पर 14, मई, 1498 कालीकट, केरल पहुँचा। केरल का यह प्रदेश समुद्री व्यापार का प्रमुख केंद्र था। स्थानीय निवासी समुद्र तट पर एकत्र होकर गामा के जहाज को देखने आये क्योंकि गामा के जहाज की रचना अरबी जहाजों से अलग थी। 

   केरल के उस प्रदेश में शाही जमोरियन राजपरिवार के राजा समुद्रीन का राज्य था। राजा अपने बड़े से शाही राजमहल में रहता था। गामा अपने साथियों के साथ राजा के दर्शन करने गया। रास्ते में एक हिन्दू मंदिर को चर्च समझ कर गामा और उसके साथी पूजा करने चले गए। वहां स्थित देवीमूर्ति को उन्होंने मरियम की मूर्ति समझा और पुजारियों के मुख से श्री कृष्ण के नाम को सुनकर उसे क्राइस्ट का अपभ्रंश समझा। गामा ने यह सोचा कि लम्बे समय तक यूरोप से दूर रहने के कारण यहाँ के ईसाईयों ने कुछ स्थानीय रीति रिवाज अपना लिए है। इसलिए ये लोग यूरोप के ईसाईयों से कुछ भिन्न मान्यताओं वाले है। गामा की सोच उसके ईसाईयत के प्रति पूर्वाग्रह से हमें परिचित करवाती है। 
                           राजमहल में गामा का भव्य स्वागत हुआ। उसे 3000 सशस्त्र नायर सैनिकों की टुकड़ी ने अभिवादन दिया। गामा को तब तक विदेशी राजा के राजदूत के रूप में सम्मान मिल रहा था। सलामी के पश्चात गामा को राजा के समक्ष पेश किया गया। जमोरियन राजा हरे रंग के सिंहासन पर विराजमान था। उनके गले में रतन जड़ित हीरे का हार एवं अन्य जवाहरात थे।  जो उनकी प्रतिष्ठा को प्रदर्शित करते थे। गामा द्वारा लाये गए उपहार अत्यंत तुच्छ थे। राजा उनसे प्रसन्न नहीं हुआ। फिर भी उसने सोने, हीरे आदि के बदले मसालों के व्यापार की अनुमति दे दी। स्थानीय अरबी व्यापारी राजा के इस अनुमति देने के विरोध में थे। क्योंकि उनका इससे व्यापार पर एकाधिकार समाप्त हो जाता। गामा अपने जहाज़ से वापिस लौट गया। उसकी इस यात्रा में उसके अनेक समुद्री साथी काल के ग्रास बन गए। उसका पुर्तगाल वापिस पहुंचने पर भव्य स्वागत हुआ। उसने यूरोप और भारत के मध्य समुद्री रास्ते की खोज जो कर ली थी। आधुनिक लेखक उसे भारत की खोज करने वाला लिखते है। भारत तो पहले से ही समृद्ध व्यापारी देश के रूप में संसार भर में प्रसिद्ध था। इसलिए यह कथन यूरोपियन लेखक की पक्षपाती मानसिकता को प्रदर्शित करता है। 
पुर्तगाल ने अगली समुद्री यात्रा की तैयारी आरम्भ कर दी। इस बार लड़ाकू तोपों से सुसज्जित 13 जहाजों और 1200 सिपाहियों का बड़ा भारत के लिए निकला। कुछ महीनों की यात्रा के पश्चात यह बेड़ा केरल पहुंचा। कालीकट आते ही पुर्तगालियों ने राजा के समक्ष एक नाजायज़ शर्त रख दी कि राजा केवल पुर्तगालियों के साथ व्यापारिक सम्बन्ध रखेंगे। अरबों के साथ किसी भी प्रकार का व्यापार नहीं करेंगे। राजा ने इस शर्त को मानने से इंकार कर दिया। झुंझला कर पुर्तगालियों ने खाड़ी में खड़े एक अरबी जहाज को बंधक बना लिया। अरबी व्यापारियों ने भी पुर्तगालियों की शहर में रुकी टुकड़ी पर हमला बोल दिया। पुर्तगालियों ने बल प्रयोग करते हुए दस अरबी जहाजों को बंधक बना कर उनमें आग लगा दी। इन जहाजों पर काम करने वाले नाविक जिन्दा जल कर मर गए। पुर्तगालियों यहाँ तक नहीं रुके। उन्होंने कालीकट पर अपनी समुद्री तोपों से बमबारी आरम्भ कर दी। यह बमबारी दो दिनों तक चलती रही। कालीकट के राजा को अपना महल छोड़ना पड़ा। यह उनके लिया अत्यंत अपमानजनक था। पुर्तगाली अपने जहाजों को मसालों से भरकर वापिस लौट गए। यह उनका हिन्द महासागर में अपना वर्चस्व स्थापित करने का पहला अभियान था। 
      गामा को एक अत्याचारी एवं लालची समुद्री लुटेरे के रूप में अपनी पहचान स्थापित करनी थी।  इसलिए वह एक बार फिर से आया।  इस बार अगले तीन दिनों तक पुर्तगाली अपने जहाजों से कालीकट पर बमबारी करते रहे। खाड़ी में खड़े सभी जहाजों और उनके 800 नाविकों को पुर्तगाली सेना ने बंधक बना लिया। उन बंधकों की पहले जहाजों पर परेड करवाई गई। फिर उनके नाक-कान, बाहें काटकर उन्हें तड़पा तड़पा कर मारा गया। अंत में उनके क्षत-विक्षत शरीरों को नौकाओं में डालकर तट पर भेज दिया गया। ज़मोरियन राजा ने एक ब्राह्मण संदेशवाहक को उसके दो बेटों और भतीजे के साथ सन्धि के लिए भेजा गया। गामा ने उस संदेशवाहक के अंग भंग कर, अपमानित कर उसे राजा के पास वापिस भेज दिया। और उसके बेटों और भतीजे को फांसी से लटका दिया।  पुर्तगालियों का यह अत्याचार केवल कालीकट तक नहीं रुका। वे पश्चिमी घाट के अनेक समुद्री व्यापार केंद्रों पर अपना कहर बरपाते हुए गोवा तक चले गए। गोवा में उन्होंने अपना शासन स्थापित किया। यहाँ उनके अत्याचार की एक अलग दास्तान फ्रांसिस ज़ेवियर नामक एक ईसाई पादरी ने लिखी। 
पुर्तगालियों का यह अत्याचार केवल लालच के लिए नहीं था। इसका एक कारण उनका अपने आपको श्रेष्ठ सिद्ध करना भी था। इस मानसिकता के पीछे उनका ईसाई और भारतीयों का  गैर ईसाई होना भी एक कारण था। इतिहासकार कुछ भी लिखे मगर सत्य यह है कि वास्को दी गामा एक नाविक के भेष में दुर्दांत, अत्याचारी, ईसाई लुटेरा था। खेद है वास्को डी गामा के विषय में स्पष्ट जानकारी होते हुए भी हमारे देश के साम्यवादी इतिहासकार उसका गुणगान कर उसे महान बनाने पर तुले हुए है। इतिहास का यह विकृति करण हमें संभवतः विश्व के किसी अन्य देश में नहीं मिलेगा। 

(चित्र में वास्को दी गामा को ज़मोरियन राजा से प्रथम बार मिलते हुए दिखाया गया है)

Tuesday, April 5, 2022

वामपंथी किन्हें कहते है।

लाल झंडा उठाए नेता ने कॉमरेडों से कहा - 'अगर तुम्हारे पास बीस-बीघा खेत है तो क्या तुम उसका आधा दस बीघा गरीबों को दे दोगे ?'

सारे कामरेड एक साथ बोले- 'हाँ साथी दे देंगे !'

नेता ने फिर कहा -'अगर तुम्हारे पास दो घर हैं तो क्या तुम एक घर किसी गरीब के लिए छोड़ दोगे?'

सारे कामरेड एक साथ बोले - 'हाँ साथी, बिल्कुल छोड़ देंगे !'

झंडाबरदार नेता ने पूछा -' अगर तुम्हारे पास दो कार हैं, तो क्या तुम एक किसी ग़रीब को दोगे ?'

सारे कामरेड एक साथ बोले- 'हाँ साथी, निस्संदेह देंगे !'

नेता ने फिर पूछा -' अगर तुम्हारे पास बीड़ी का एक बंडल हैं, तो क्या उनमें से कुछ तुम अपने साथी को दोगे ?'

सारे कामरेड एक साथ बोले - 'नहीं साथी, ऐसा बिल्कुल न हो पाएगा…बीड़ी तो बिल्कुल नहीं देंगे !'

नेता को जैसे जबानी लकवा मार गया… कुछ ठहरकर, शब्दों को पिरोते, थोड़े आश्चर्य से पूछ ही डाला… क्यों साथियों जब तुम अपना खेत दे सकते हो, घर देने में आपत्ति नहीं, कार दान कर सकते हो, तो दो टके की मामूली बीड़ी क्यों नहीं..?

सारे कॉमरेड एक सुर में बोले - ऐसा है नेताजी… कि हमारे पास न तो खेत हैं, न घर है, और ना ही है कार ! अगर अपना कहने को कुछ है.. तो वो है, बीड़ी का एक बंडल ! दो टके वाला…

यही वामपंथ और वामपंथीयों का मूल स्वभाव होता है !

वामपंथी आपको हर वो चीज देने का वादा करता है, जो उसके पास होती ही नहीं… और न ही वो उसे अपनी काबिलियत के बल पर अर्जित करने की क्षमता रखता है !

वामपंथी ये सारी चीजें किसी और से छीनकर देने का वादा करता है !

और वो 'कोई और' आप और हम हैं…

वामपंथ एक ऐसी समस्या है जिसका जन्म ही समाज में व्याप्त समस्याओं से होता है. आर्थिक-सामाजिक असंतोष और झगड़ों को ईंधन बना कर ही वामपंथी बिरियानी पकती है. अराजकता इनका गरम मसाला होता है जो ये भाई को भाई से, अमीर को गरीब से, नर को नारी से, पिता को पुत्र से लड़ाकर स्वादानुसार तैय्यार करते हैं. ये पांचों उंगलियों को बराबर करने को इतने आमादा होते हैं कि आदमी भले ही लूला, अपंग और नाकारा हो जाए, 'बराबरी' की विचारधारा पर कोई आंच नहीं आनी चाहिए।

हमें चाहिए अखण्ड आर्यावर्त।

पैगम्बर मुहम्मद को मक्का से निकाल दिया गया था वे मदीना आये यहूदियों के साथ भाईचारा स्थापित किया और कुछ वर्षों बाद मक्का के सिंहासन पर कब्जा किया। इसके बाद उन्ही यहूदियों को कहा गया कि अपने घर छोड़कर चले जाओ, मुहम्मद की मृत्यु के दूसरे वर्ष तक आज के सऊदी अरब में एक भी गैर मुस्लिम नही बचा सिर्फ उनकी पत्नियां बची थी जो की अब मुसलमानो की वैश्या का काम रही थी।

अब आगे बढ़ते है, आठवी सदी में पर्शिया (ईरान) पर मुसलमानो का आक्रमण हुआ पारसियों को सीधा आदेश था कि अपने घर से निकलो। पारसी बाहर आते, उनसे कहा जाता मुसलमान बनो जो बन गए वो ठीक जो ना बने उनकी महिलाओं को उसी समय चौराहे पर नंगा किया जाता और पुरुष की गर्दन काट दी जाती। रतन टाटा, बोमन ईरानी और होमी जहाँगीर भाभा इन सभी के पूर्वज पर्शियन ही थे और इनके पुरखो ने मुसलमानो का ये भाईचारा झेला है।

अब और आगे बढिये 10वी सदी तक जब कुषाणों के शासन का अंत हो गया आज के अफगानिस्तान पर इस्लामिक आक्रमण हुआ, बौद्ध भिक्षुओं के सिर मुंडे होते थे अतः उन्हें वही से चीर दिया जाता था। भिक्षुओ को साफ आदेश था कि बस अफगानिस्तान खाली कर दो नही तो मारे जाओगे।

अब और आगे आते है 1947 में जैसे ही पाकिस्तान के अब्दुल को पता चला कि उसका अलग देश है और पड़ोस में रहने वाले किशन की बेटी बड़ी खूबसूरत है। उसने सदियों के सेक्युलरिज्म को त्याग दिया और अपनी बेटी जैसी पड़ोसन के साथ वही किया जो इस्लाम मे जायज था। लाहौर और कराची में 30 लाख हिन्दू और सिख महिलाओ को नग्न अवस्था मे परेड करने पर मजबूर किया गया था।

अब मुद्दे पर आते है समस्या मुसलमान है ही नही, समस्या है उनके चार शब्द अल्लाह, इस्लाम, उम्मा और जेहाद। दुख की बात ये है की उनकी सामाजिक व्यवस्था ऐसी है कि वे इससे ऊपर उठ नही सकते।

भारत का मुसलमान ठीक वही सोचता है जो हमारा दुश्मन पाकिस्तान सोचता है। इजरायल भारत का रक्षा मित्र है लेकिन चूंकि वो एन्टी इस्लामिक है इसलिए भारत के हित साइड में और इस्लाम प्रथम के तहत इजरायल से भारत के मुसलमान नफरत करते है।

जब कश्मीर से धारा 370 हटी तो एक साधारण मुसलमान को उतना ही दुख था जितना जैश ए मोहम्मद और लश्कर ए तैय्यबा के मुसलमानो को। भारत का मुसलमान विश्व के सबसे पिछड़े और गरीब समाजो में आता है, लेकिन उसका सपना शिक्षा व्यवसाय ना होकर सिर्फ जेहाद और उम्मा है।

भारत का मुसलमान तालिबान की जीत पर प्रसन्न होता है, वह जेहादी कश्मीरियत की बात करता है, उसे औरंगजेब और अलाउद्दीन खिलजी ज्यादा पसंद है, उसे भारतीय व्यंजन नही अपितु बिरयानी और मुगलई भोजन पसन्द है। उसका जेहाद हमसे शस्त्रों का नही अपितु पूरी संस्कृति का है।

और इन सबका समाधान सिर्फ एक ही है सामाजिक बहिष्कार, ध्यान रहे आर्थिक तो हो ही रहा है सामाजिक भी आवश्यक है। जिसमे किराए से घर देना भी शामिल है, कश्मीरी फाइल्स में याद कीजिये पंडित को मरवाने में मुख्य भूमिका पड़ोस वाले अब्दुल की थी ..,

यह पोस्ट इसलिए लिखा गया है ताकि आपके और मेरे जैसे गैर मुसलमान जो भविष्य में भी मुसलमान नही बनना चाहते वे अपने इतिहास से सबक ले। हम भले ही हिन्दू, ईसाई, यहूदी और पारसी में बंटे हो लेकिन इस्लाम रूपी दूरबीन से हम अल्लाह को ना मानने वाले शैतान के साये काफ़िर है। काफ़िर को मारकर उसकी महिला से ज्यादती करके एक जेहादी को जन्म देना ही इस्लाम का मूल संदेश है।

आप जितना जल्दी ये संदेश समझ लेंगे खुद को अरब, ईरान, अफगानिस्तान और कश्मीर का गैर मुसलमान होने से बचा लेंगे।

लेकिन पैगम्बर मुहम्मद ने सिंहासन भी बाहुबल से कब्जाया और अपने शत्रुओं को भी क्रूरता से मारा। कश्मीरी पंडित कश्मीर के गैर मुसलमानों की कहानी नही है अपितु ये इतिहास की उस किताब का अध्याय या चैप्टर मात्र है जिसे मुसलमान गैर मुसलमानों के रक्त से 1400 वर्षो से रंजित कर रहे है।

इससे बचने का एक ही उपाय है सभी काफ़िर एक हो जाये  जाति पाती का त्याग कर हिंदुत्व रक्षा का एक कवच  बनाये और जब इस्लामिक आतंकवाद का अंत हो जाएगा ।।

हमारा ध्येय हिंदू समृद्धि सुरक्षा और सम्मान। 

Saturday, April 2, 2022

ईद क्यों मनाई जाती है?

जिस व्यक्ति ने इस्लाम की स्थापना की थी उस व्यक्ति का नाम था मोहम्मद। हमारे 18 पुराणों में से एक पुराण है "भविष्य पुराण"

भविष्य पुराण ग्रंथ मैं यह लिखा है कि इस्लाम की स्थापना करने वाला मोहम्मद त्रिपुरासुर राक्षस का पुनर्जन्म था।

यह विषय आप Google पर "मोहम्मद त्रिपुरासुर राक्षस का पुनर्जन्म भविष्य पुराण" सर्च करके विस्तार में पढ सकते हैं।

अब मुख्य विषय पर आते हैं कि ईद क्यों मनाई जाती है? 

इस पैगंबर मोहम्मद के घर के सामने एक घर था जिसके अंदर एक व्यक्ति रहता था उसका नाम था अबू बकर। 

इस आबू बकर की 6 साल की बेटी थी जिसका नाम था आयशा। मोहम्मद ने एक बार आयशा को घर के बाहर खेलते हुए देख लिया मोहम्मद को आयशा बहुत भा गई तब मोहम्मद की उम्र 56 साल थी।

मोहम्मद ने दूसरे दिन आयशा के पिता अबू बकर के पास जाकर कहा की रात को मेरे सपने में अल्लाह आए थे और अल्ला ने मुझे आदेश दिया है कि तू इस आयशा के साथ निकाह कर, तो तुम आयशा का निकाह मेरे साथ करने के लिए तैयार हो जाओ क्योंकि यह अल्लाह का आदेश है।

अबू बकर ने मोहम्मद से कहा की वो आयशा का निकाह उसके साथ करेगा पर मात्र एक शर्त पर की जब भी मोहम्मद की मृत्यु हो जाएगी तो उसके बाद पूरे इस्लाम का राज अबू बकर के हाथ में होगा।

मोहम्मद ने इसके लिए हां कर दी। अब 56 साल का मोहम्मद 6 साल की आयशा के साथ निकाह करने के लिए अपनी बारात लेकर जाता है उस त्यौहार को कहा जाता है "शबे बारात"

3 वर्ष के बाद जब आयशा 9 साल की हुई तब मोहम्मद ने आयशा के साथ संभोग करने की इच्छा जताई पर आयशा ने मना कर दिया।

जब तक आयशा सुहागरात के लिए नहीं मान जाती तब तक मोहम्मद ने आयशा को पूरे दिन भूखा रखने का निर्णय किया।

मोहम्मद आयशा को पूरे दिन भूखा रखता और रात को मात्र एक बार खाना देता। मोहम्मद की जो दूसरी बेगमें थी वह सभी मिलकर आयशा को समझाती की तुम सुहागरात के लिए हां कर दो पर आयशा एक महीने तक मानती नहीं है।

एक महीना बीत जाने के बाद जब आयशा भूख से बेहाल हो जाती है और वह भूख सहन नहीं कर पाती तो मुहम्मद के साथ सुहागरात मनाने के लिए हां कर देती है और बीज की रात मोहम्मद आयशा के साथ सुहागरात मनाता है।

जिस बीज की रात 59 वर्ष के मोहम्मद ने 9 साल की आयशा के साथ सुहागरात मनाई उस सुहागरात की खुशी में मुस्लिम ईद मनाते हैं।

मुस्लिम जो रोजा रखते हैं वो रोजा रख कर आयशा का साथ देते होते हैं कि जैसे आयशा एक महीने तक भूखी रही थी वैसे हम भी भूखे रहेंगे और मात्र रात को एक टाइम खाना खाएंगे।

ऐसा कहा जाता है कि आयशा चांद की तरह खूबसूरत थी तो वह चांद में आयशा को देखते हैं।

अपने सभी मित्रों को यह जानकारी फॉरवर्ड करें।

जय श्री राम 🚩

Friday, April 1, 2022

द कश्मीर फाइल।

एक महिला पत्रकार की समीक्षा...

पढना इसे मजा आयेगा  

दिल्ली में बस मे बैठे हुए थी कि अचानक मुझे आदेशात्मक शब्द सुनाई दिए "भैया सीट से हट जाओ, मेरे साथ मेरे बच्चे है।" 

बुर्का ओढ़े महिला ने एक 25 साल के लड़के से कहा तो लड़के ने बड़ी शालीनता से कहा "आप महिला सीट पर जाओ। मै महिला सीट पर नहीं बैठा हूँ।"

वो बोली "वहां सब सीटों पर पहले से ही लेडीज बैठी हैं।" 

लड़के ने अपने कान के हेडफोन को हटाते हुए कहा, "मैं क्या करूं? मुझे भजनपुरा जाना है जो अभी बहुत दूर है।" 

वो अपने बच्चो की धौंस दिखाने लगी कि मेरे छोटे-छोटे 4 बच्चे हैं। आपको शर्म नही आती? 
आप जेंटस हैं। 
आप सीट नही छोड़ सकते?" 

अब सब सवारियां मौन खड़ी तमाशा देखने लगी। मामला गर्म होने के साथ साथ मसालेदार हो रहा था। लड़के ने एक बड़ी अच्छी बात कही, "आप लोगो का यही ड्रामा है। हर साल एक बच्चा जनना और फिर अगले बच्चे की तैयारी। क्या आपने हमसे पूछकर बच्चे पैदा किये थे? 

अजीब बात है? 

बच्चे पैदा करो तुम और सीट छोड़े हम? 

आपको बच्चों की इतनी ही फिक्र थी तो कैब करती या खाली बस में बैठती। अब तुम्हें सफर फ्री चाहिए, सीट भी चाहिये और दादागिरी भी चाहिए। जाइए मैं नही देता आपको सीट।" 

तभी बस के कंडक्टर ने भी कहा "भाई दे दो सीट।" लड़का फिर बोला कि "मैं किसी महिला रिज़र्व सीट पर नही बैठा हुँ। भाई तू अपने टिकट काट।" 

कंडक्टर शायद अरबी भेड़ था। कहने लगा "लेडी है! लगता है पेट से भी है!" 

"तो मै क्या करूं?" युवक ने कहा.. 

कंडक्टर चुप होकर बस के बाहर देखने लगा। इतने में मुझे ये तो यकीन हो गया लड़का जागरूक है। वह उसको बातों ही बातों में धुनने को तैयार है। वो बुर्के वाली अक्कड से युवक के पास वाली सीट के पास ही खड़ी रही। 

लड़का भी बुदबुदाता रहा कि बच्चे तुम पैदा करते रहो और सीट काफ़िर देंगे? फिर तुम्हें अपना घर देंगे? और फिर वही कश्मीर वाले हालात पैदा करोगे।" 

उस महिला के आगे बैठै एक इन्सानियत के सेक्युलर कर्मचारी ने अपनी सीट ऑफर कर दी। वो धम्म से बैठ गयी। उसने दो शिशु शावक गोद मे बिठा दिए। परंतु दो शावकों को खडे रहना पडा। अब वो बगल वाले से अपने शावकों के लिए सीट मांगने लगी।" 

लड़के ने जोर से उस सेक्युलर को ताना मारा "भाई साहब! घर भी दे दो अपना, ये बच्चे वहां अच्छा जीवन जिएंगे।" 

इतने में कंडक्टर चिल्लाया "भाई! जिसे अप्सरा बॉर्डर उतरना हो उतर जाओ।" 

बात वहीं रुक गयी और लड़का शांत हो गया। वो शाहीनबाग की शेरनी सीमापुरी उतर गई। मात्र 10 मिनट के सफर के लिये उस बुर्के वाली ने ये सब नाटक किया था। 

ये घटना दिल्ली लोकल बस रूट नं• 33 की है जो नोएडा सेक्टर 37 से भजनपुरा की तरफ जाती है। रोज की तरह लोग इसमे घुसते है और अधिका़श अपने आफिस और दूसरे काम के लिए निकलते है। मैं महिला सीट पर बैठी ये सब नाटक देख रही थी। (दिल्ली एनसीआर की बसों में एक लाइन महिलाओ के लिए आरक्षित रहती है।) 

मैं मंद-मंद मुसकराई और सोचने लगी कि "जागना जरूरी है। अरे ढेर सारे बच्चे पैदा वो करें और survive हमे करना पड़ रहा है। 

वर्षों से यही चल आ रहा है लेकिन ये अब आगे नही चलना चाहिए। शायद ही नहीं बल्कि यकीनन अब लोगो में जागरूकता आ रही है जो अब हर शहर गांव व दूरदराज तक पहुंचनी चाहिए।" 

--एक महिला पत्रकार.. 
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