Monday, May 31, 2021

जय संतोषी माँ।

1975 में आज ही के दिन बॉलीवुड की एक फ़िल्म रिलीज़ हुई थी, नाम था जय संतोषी माँ।

15 लाख की लागत से बनी इस फ़िल्म नें बॉक्स ऑफिस पर उस वक्त के भारत मे पाँच से छः करोड़ रुपए कमाए थे। अपने समय में ये शोले के बाद सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म थी। इस फ़िल्म को देखने के लिए लोग सिनेमा हॉल तक बैलगाड़ियों में मीलों की यात्रा करते थे।  

दर्शक हॉल की सिनेमा स्क्रीन पर फूल औऱ सिक्के फेंकते थे। कई सारे थिएटर, जहां ये फ़िल्म लगी थी, मन्दिर कहलाये जाने लगे थे। जैसे शारदा टॉकीज को शारदा मन्दिर कहा जाने लगा था औऱ बन्द होने तक इस सिनेमा हॉल का नाम शारदा टॉकीज ही रहा। फ़िल्म देखने आने वाले लोग थिएटर के बाहर जूते चप्पल उतारते थे। उस वक्त के कई छोटे सिनेमा हॉल के मालिको नें पैसे कमाने के लिए थिएटर के बार दान पेटियाँ तक रखवा दी थी।

दिलचस्प बात ये है कि इस सन 1975 में जब ये फ़िल्म रिलीज़ हुई थी तो ज्यादातर लोगों ने इस देवी के बारे में सुना तक नहीं था। सन्तोषी माता का जिक्र पुराणों में कहीं भी नहीं है। सन्तोषी माता दरअसल भारत के कुछ गांवों में पूजी जाने वाली ग्राम देवी थी जिनकी मान्यता रोगों के उपचार के लिए थी। 

सम्भवतः सन 1960 में भीलवाड़ा में सन्तोषी माता का पहला मन्दिर बना था, जो कुछ हद तक प्रचलित था। इसके अलावा उनके कुछ छोटे छोटे मन्दिर रहे होंगे, पर वो आबादी के बहुत ही छोटे हिस्से तक सीमित थे। 

लेकिन बॉलीवुड ने ग्राम देवी संतोषी माता को देश के हर कोने में घर घर तक पहुंचा दिया। बॉलीवुड ने सन्तोषी माता को पौराणिक देवियों के समकक्ष लाकर खड़ा कर दिया। ये हैं बॉलीवुड की ताकत। ये कहानी उनके लिए है जिन्हें लगता है जिन्हें लगता है बॉलीवुड में कुछ भी होता रहे, इसका समाज पर कोई फर्क नहीं पड़ता। 

भारत में दैवीय कथाएँ और कहानियां मौजूद है जो कभी भी इतिहास भूगोल या समय के बंधन में बंधी हुई नहीं रही हैं।यहाँ एकमात्र सच लोगों का विश्वास है। विश्वास को ही सच माना जाता है औऱ इसके लिए किसी सबूत या गवाह की आवश्यकता नहीं पड़ती। 

अपनस्टैंडअप कॉमेडी, रैप बैटल औऱ बुध्दिजीवी बनने की होड़ में अपने ही धर्म, धर्म ग्रंथों  देवी देवताओं का मजाक उड़ाने वाली युवा हिन्दू कूलडुडों की एक बडी फौज जो हम आज देख रहे हैं वो बॉलीवुड ने ही पिछले 20-30 सालों में खड़ी की है। आज बच्चे वो फिल्में और वेबसीरीज़ देखकर बड़े हो रहे है जिनमें बहुत ही शातिर तरीके से इनमें देवी देवताओं को निशाना बनाया जाता है।

इनमें भद्दी पंक्तियों औऱ हास्य से भरे फूहड़ डॉयलॉग्स की भरमार है लेकिन फिर भी ये फिल्में, ये वेबसीरीज़ हिट होती हैं। आप जितना विरोध करेंगे, उतना ही इनको फायदा होगा। आप विरोध नहीं करेंगे तो तो आपके बच्चे अपनी जड़ों से दूर होते चले जाएंगे। दरअसल ये मकड़जाल है, जितना आप हाथ पैर हिलायेंगे, आपके बच्चे उतना ही ज्यादा इसमें फंसते चले जाएँगे।

अचानक से फिल्मों में नास्तिक हीरो की इंट्री औऱ गुलशन कुमार की हत्या असल मे लोगों के भीतर से इसी विश्वास को नष्ट करने की मुहिम थी। चर्च पोषित बॉलीवुड अपनी मुहीम में काफी हद तक सफल हुआ है। 30 साल से कम उम्र के युवाओं को अपने धर्म, अपने देवी-देवताओं, उनसे जुड़ी कहानियों औऱ अपने गुमनाम मंदिरों को जानने की कोई उत्सुकता नहीं है।

बॉलीवुड ने ही आज की युवा पीढ़ी के मन से वो विश्वास ही खत्म कर दिया है जो विश्वास सन 1975 में एक ग्राम देवी को पौराणिक देवियों के समानांतर लाकर खड़ा कर देता है।

Sunday, May 23, 2021

मैंने_गांधी_को_क्यों_मारा।

एक बार पढ़ना जरूर 

सुप्रीम कोर्ट से अनुमति मिलने पर प्रकाशित किया गया 
60 साल तक भारत में प्रतिबंधित रहा नाथूराम गोडसे 
का अंतिम भाषण -
                    #मैंने_गांधी_को_क्यों_मारा !

30 जनवरी 1948 को नाथूराम गोड़से ने महात्मा गांधी की गोली मारकर हत्या कर दी थी लेकिन नाथूराम गोड़से घटना स्थल से फरार नही हुए बल्कि उसने आत्मसमर्पण कर दिया 
नाथूराम गोड़से समेत 17 देशभक्तों पर गांधी की हत्या का मुकदमा चलाया गया इस मुकदमे की सुनवाई के दरम्यान #न्यायमूर्ति_खोसला से नाथूराम जी ने अपना वक्तव्य स्वयं पढ़ कर जनता को सुनाने की अनुमति माँगी थी जिसे न्यायमूर्ति ने स्वीकार कर लिया था पर यह कोर्ट परिसर तक ही सिमित रह गयी क्योकि सरकार ने नाथूराम के इस वक्तव्य पर प्रतिबन्ध लगा दिया था लेकिन नाथूराम के छोटे भाई और गांधी की हत्या के सह-अभियोगी गोपाल गोड़से ने 60 साल की लम्बी कानूनी लड़ाई लड़ने के बाद सुप्रीम कोर्ट में विजय प्राप्त की और नाथूराम का वक्तव्य प्रकाशित किया गया l

                     *मैंने गांधी को क्यों मारा*

नाथूराम गोड़से ने गांधी हत्या के पक्ष में अपनी 
150 दलीलें न्यायलय के समक्ष प्रस्तुति की
नाथूराम गोड़से के वक्तव्य के कुछ मुख्य अंश....
नाथूराम जी का विचार था कि गांधी की अहिंसा हिन्दुओं 
को कायर बना देगी कानपुर में गणेश शंकर विद्यार्थी को मुसलमानों ने निर्दयता से मार दिया था महात्मा गांधी सभी हिन्दुओं से गणेश शंकर विद्यार्थी की तरह अहिंसा के मार्ग पर चलकर बलिदान करने की बात करते थे नाथूराम गोड़से को भय था गांधी की ये अहिंसा वाली नीति हिन्दुओं को 
कमजोर बना देगी और वो अपना अधिकार कभी 
प्राप्त नहीं कर पायेंगे...
1919 को अमृतसर के जलियाँवाला बाग़ गोलीकांड 
के बाद से पुरे देश में ब्रिटिश हुकुमत के खिलाफ 
आक्रोश उफ़ान पे था...
भारतीय जनता इस नरसंहार के #खलनायक_जनरल_डायर 
पर अभियोग चलाने की मंशा लेकर गांधी के पास गयी 
लेकिन गांधी ने भारतवासियों के इस आग्रह को समर्थन 
देने से साफ़ मना कर दिया 
महात्मा गांधी ने खिलाफ़त आन्दोलन का समर्थन करके भारतीय राजनीति में साम्प्रदायिकता का जहर घोल दिया  महात्मा गांधी खुद को मुसलमानों का हितैषी की तरह पेश करते थे वो #केरल_के_मोपला_मुसलमानों द्वारा वहाँ के 
1500 हिन्दूओं को मारने और 2000 से अधिक हिन्दुओं 
को मुसलमान बनाये जाने की घटना का विरोध 
तक नहीं कर सके 
कांग्रेस के त्रिपुरा अधिवेशन में #नेताजी_सुभाष_चन्द्रबोस 
को बहुमत से काँग्रेस अध्यक्ष चुन लिया गया किन्तु गांधी ने #अपने_प्रिय_सीतारमय्या का समर्थन कर रहे थे गांधी ने सुभाष चन्द्र बोस से जोर जबरदस्ती करके इस्तीफ़ा देने के लिए मजबूर कर दिया...
23 मार्च 1931 को भगत सिंह सुखदेव और राजगुरु को फांसी दे दी गयी पूरा देश इन वीर बालकों की फांसी को 
टालने के लिए महात्मा गांधी से प्रार्थना कर रहा था लेकिन गांधी ने भगत सिंह की हिंसा को अनुचित ठहराते हुए देशवासियों की इस उचित माँग को अस्वीकार कर दिया 
गांधी #कश्मीर_के_हिन्दू_राजा_हरि_सिंह से कहा कि 
#कश्मीर_मुस्लिम_बहुल_क्षेत्र_है_अत:वहां का शासक 
कोई मुसलमान होना चाहिए अतएव राजा हरिसिंह को 
शासन छोड़ कर काशी जाकर प्रायश्चित करने जबकि  हैदराबाद के निज़ाम के शासन का गांधी जी ने समर्थन किया था जबकि हैदराबाद हिन्दू बहुल क्षेत्र था गांधी जी की नीतियाँ 
धर्म के साथ बदलती रहती थी उनकी मृत्यु के पश्चात 
सरदार पटेल ने सशक्त बलों के सहयोग से हैदराबाद को 
भारत में मिलाने का कार्य किया गांधी के रहते ऐसा करना संभव नहीं होता 
पाकिस्तान में हो रहे भीषण रक्तपात से किसी तरह से अपनी जान बचाकर भारत आने वाले विस्थापित हिन्दुओं ने दिल्ली की खाली मस्जिदों में जब अस्थाई शरण ली मुसलमानों ने मस्जिद में रहने वाले हिन्दुओं का विरोध किया जिसके आगे गांधी नतमस्तक हो गये और गांधी ने उन विस्थापित हिन्दुओं को जिनमें वृद्ध स्त्रियाँ व बालक अधिक थे मस्जिदों से खदेड़ बाहर ठिठुरते शीत में रात बिताने पर मजबूर किया गया 
महात्मा गांधी ने दिल्ली स्थित मंदिर में अपनी प्रार्थना सभा 
के दौरान नमाज पढ़ी जिसका मंदिर के पुजारी से लेकर 
तमाम हिन्दुओं ने विरोध किया लेकिन गांधी ने इस विरोध को दरकिनार कर दिया लेकिन महात्मा गांधी एक बार भी किसी मस्जिद में जाकर गीता का पाठ नहीं कर सके 
लाहौर कांग्रेस में वल्लभभाई पटेल का बहुमत से विजय 
प्राप्त हुयी किन्तु गान्धी अपनी जिद के कारण यह पद जवाहरलाल नेहरु को दिया गया गांधी अपनी मांग 
को मनवाने के लिए अनशन-धरना-रूठना किसी से बात 
न करने जैसी युक्तियों को अपनाकर अपना काम 
निकलवाने में माहिर थे इसके लिए वो नीति-अनीति का लेशमात्र विचार भी नहीं करते थे
14 जून 1947 को दिल्ली में आयोजित अखिल भारतीय कांग्रेस समिति की बैठक में भारत विभाजन का प्रस्ताव अस्वीकृत होने वाला था लेकिन गांधी ने वहाँ पहुँच कर 
प्रस्ताव का समर्थन करवाया यह भी तब जबकि गांधी  
ने स्वयं ही यह कहा था कि देश का विभाजन उनकी लाश 
पर होगा न सिर्फ देश का विभाजन हुआ बल्कि लाखों 
निर्दोष लोगों का कत्लेआम भी हुआ लेकिन गांधी 
ने कुछ नहीं किया....
धर्म-निरपेक्षता के नाम पर मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति के जन्मदाता महात्मा गाँधी ही थे जब मुसलमानों ने हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाये जाने का विरोध किया तो महात्मा गांधी ने सहर्ष ही इसे स्वीकार कर लिया और हिंदी की जगह हिन्दुस्तानी (हिंदी+उर्दू की खिचड़ी) को बढ़ावा देने लगे  बादशाह राम और बेगम सीता जैसे शब्दों का 
चलन शुरू हुआ...
कुछ एक मुसलमान द्वारा वंदेमातरम् गाने का विरोध करने 
पर महात्मा गांधी झुक गये और इस पावन गीत को भारत 
का राष्ट्र गान नहीं बनने दिया 
गांधी ने अनेक अवसरों पर शिवाजी महाराणा प्रताप व 
गुरू गोबिन्द सिंह को पथभ्रष्ट देशभक्त कहा वही दूसरी 
ओर गांधी मोहम्मद अली जिन्ना को क़ायदे-आजम 
कहकर पुकारते था
कांग्रेस ने 1931 में स्वतंत्र भारत के राष्ट्र ध्वज बनाने के 
लिए एक समिति का गठन किया था इस समिति ने 
सर्वसम्मति से चरखा अंकित भगवा वस्त्र को भारत का 
राष्ट्र ध्वज के डिजाइन को मान्यता दी किन्तु गांधी जी 
की जिद के कारण उसे बदल कर तिरंगा कर दिया गया 
जब सरदार वल्लभ भाई पटेल के नेतृत्व में सोमनाथ 
मन्दिर का सरकारी व्यय पर पुनर्निर्माण का प्रस्ताव पारित किया गया तब गांधी जी जो कि मन्त्रीमण्डल के सदस्य 
भी नहीं थे ने सोमनाथ मन्दिर पर सरकारी व्यय के प्रस्ताव 
को निरस्त करवाया और 13 जनवरी 1948 को आमरण अनशन के माध्यम से सरकार पर दिल्ली की मस्जिदों का सरकारी खर्चे से पुनर्निर्माण कराने के लिए दबाव डाला 
भारत को स्वतंत्रता के बाद पाकिस्तान को एक समझौते के तहत 75 करोड़ रूपये देने थे भारत ने 20 करोड़ रूपये 
दे भी दिए थे लेकिन इसी बीच 22 अक्टूबर 1947 को पाकिस्तान ने कश्मीर पर आक्रमण कर दिया केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल ने आक्रमण से क्षुब्ध होकर 55 करोड़ की 
राशि न देने का निर्णय लिया | जिसका महात्मा गांधी ने 
विरोध किया और आमरण अनशन शुरू कर दिया जिसके परिणामस्वरूप 55 करोड़ की राशि भारत ने पाकिस्तान 
को दे दी महात्मा गांधी भारत के नहीं अपितु पाकिस्तान 
के राष्ट्रपिता थे जो हर कदम पर पाकिस्तान के पक्ष में 
खड़े रहे फिर चाहे पाकिस्तान की मांग जायज हो या 
नाजायज गांधी ने कदाचित इसकी परवाह नहीं की 
उपरोक्त घटनाओं को देशविरोधी मानते हुए नाथूराम 
गोड़से जी ने महात्मा गांधी की हत्या को न्यायोचित 
ठहराने का प्रयास किया...
नाथूराम ने न्यायालय में स्वीकार किया कि माहात्मा गांधी बहुत बड़े देशभक्त थे उन्होंने निस्वार्थ भाव से देश सेवा की  
मैं उनका बहुत आदर करता हूँ लेकिन किसी भी देशभक्त 
को देश के टुकड़े करने के एक समप्रदाय के साथ पक्षपात करने की अनुमति नहीं दे सकता हूँ गांधी की हत्या के 
सिवा मेरे पास कोई दूसरा उपाय नहीं था...!!
#नाथूराम_गोड़सेजी द्वारा अदालत में 
दिए बयान के मुख्य अंश...
मैने गांधी को नहीं मारा
मैने गांधी का वध किया है..
वो मेरे दुश्मन नहीं थे परन्तु उनके निर्णय राष्ट्र के 
लिए घातक साबित हो रहे थे...
जब व्यक्ति के पास कोई रास्ता न बचे तब वह मज़बूरी 
में सही कार्य के लिए गलत रास्ता अपनाता है...
मुस्लिम लीग और पाकिस्तान निर्माण की गलत निति 
के प्रति गांधी की सकारात्मक प्रतिक्रिया ने ही मुझे 
मजबूर किया...
पाकिस्तान को 55 करोड़ का भुगतान करने की 
गैरवाजिब मांग को लेकर गांधी अनशन पर बैठे..
बटवारे में पाकिस्तान से आ रहे हिन्दुओ की आपबीती 
और दुर्दशा ने मुझे हिला के रख दिया था...
अखंड हिन्दू राष्ट्र गांधी के कारण मुस्लिम लीग 
के आगे घुटने टेक रहा था...
बेटो के सामने माँ का खंडित होकर टुकड़ो में बटना 
विभाजित होना असहनीय था...
अपनी ही धरती पर हम परदेशी बन गए थे..
मुस्लिम लीग की सारी गलत मांगो को 
गांधी मानते जा रहे थे..
मैने ये निर्णय किया कि भारत माँ को अब और 
विखंडित और दयनीय स्थिति में नहीं होने देना है 
तो मुझे गांधी को मारना ही होगा
और मैने इसलिए गांधी को मारा...!!
मुझे पता है इसके लिए मुझे फाँसी ही होगी 
और मैं इसके लिए भी तैयार हूं...
और हां यदि मातृभूमि की रक्षा करना अपराध हे 
तो मै यह अपराध बार बार करूँगा हर बार करूँगा ...
और जब तक सिन्ध नदी पुनः अखंड हिन्द में न बहने 
लगे तब तक मेरी अस्थियो का विसर्जन नहीं करना...!!
मुझे  फाँसी देते वक्त मेरे एक हाथ में केसरिया ध्वज 
और दूसरे हाथ में #अखंड_भारत का नक्शा हो...
मै फाँसी चढ़ते वक्त अखंड भारत की जय 
जयकार बोलना चाहूँगा...!!
हे भारत माँ मुझे दुःख है मै तेरी इतनी 
ही सेवा कर पाया....!!
#नाथूराम_गोडसे

नोट:-मैं गोडसे को हत्यारा मानता हूं क्योंकी उन्होंने हत्या की है लेकिन राष्ट्रविरोधी नहीं बाकी ऊपर लिखे विचार किसी लेखक के नहीं बल्कि नाथूराम गोडसे के हैं बाकी पाठक के अपने विचार हो सकते हैं जिसे शब्दों के मर्यादा में रह के कहने की पूरी आजादी है विमर्श कीजिये खुले मन से ना गांधीवादी बन के ना ही गोड़सेवादी बन के बल्कि अपने विवेक से सोचिए 

Thursday, May 20, 2021

चौरासी_लाख_योनियों।

#चौरासी_लाख_योनियों के #चक्र का #शास्त्रों में वर्णन-
          
 #३० लाख बार वृक्ष योनि में जन्म होता है ।
इस योनि में सर्वाधिक कष्ट होता है ।
धूप ताप,आँधी, वर्षा आदि में बहुत शाखा तक टूट जाती हैं ।
शीतकाल में पतझड में सारे पत्ता पत्ता तक झड़ जाता है।लोग कुल्हाड़ी से काटते हैं ।

उसके बाद जलचर प्राणियों के रूप में ९ लाख बार जन्म होता है । 
हाथ और पैरों से रहित देह और मस्तक। सड़ा गला मांस  ही खाने को मिलता है ।
एक दूसरे का मास खाकर जीवन  रक्षा करते हैं ।

उसके बाद कृमि योनि में १० लाख बार जन्म होता है ।
  
और फिर ११ लाख बार पक्षी योनि में जन्म होता है। 
वृक्ष ही आश्रय स्थान होते हैं ।
जोंक, कीड़-मकोड़े, सड़ा गला जो कुछ भी मिल जाय, वही खाकर उदरपूर्ति करना।
स्वयं भूखे रह कर संतान को खिलाते हैं और जब संतान उडना सीख जाती है  तब पीछे मुडकर भी नहीं देखती । काक और शकुनि का जन्म दीर्घायु होता है ।

उसके बाद २० लाख बार पशु योनि,वहाँ भी अनेक प्रकार के कष्ट मिलते हैं ।
अपने से बडे हिंसक और बलवान् पशु सदा ही पीडा पहुँचाते रहते हैं ।
भय के कारण पर्वत कन्दराओं में छुपकर रहना। 
एक दूसरे को मारकर खा जाना । कोई केवल घास खाकर ही जीते हैं । 
किन्ही को  हल खीचना, गाडी खीचना आदि कष्ट साध्य कार्य करने पडते हैं । 
रोग शोक आदि होने पर  कुछ बता भी नहीं सकते।सदा मल मूत्रादि में ही रहना पडता है ।

  गौ का शरीर समस्त पशु योनियों में श्रेष्ठ एवं अंतिम माना गया है ।

तत्पश्चात् ४ लाख बार मानव योनि में जन्म होता है ।
इनमे सर्वप्रथम घोर अज्ञान से आच्छादित ,पशुतुल्य आहार -विहार,वनवासी वनमानुष का जन्म मिलता है।

उसके बाद पहाडी जनजाति के रूप में नागा,कूकी,संथाल आदि में ।

उसके बाद वैदिक धर्मशून्य अधम कुल में ,पाप कर्म करना एवं मदिरा आदि निकृष्ट और निषिद्ध वस्तुओं का सेवन ही सर्वोपरि ।

उसके बाद शूद्र कुल में जन्म होता है । 
उसके बाद वैश्य कुल में ।
फिर क्षत्रिय  और अंत में ब्राह्मणकुल में जन्म मिलता है ।

और सबसे अंत में ब्राह्मणकुल में जन्म मिलता है ।
यह जन्म एक ही बार मिलता है ।
जो ब्रह्मज्ञान सम्पन्न है वही ब्राह्मण है।
अपने उद्धार के लिए वह आत्मज्ञान से परिपूर्ण हो जाता है ।
यदि,,,  इस दुर्लभ जन्म में भी ज्ञान नहीं प्राप्त कर लेता तो पुनः चौरासी लाख योनियों में घूमता रहता है।

भगवच्छरणागति के अलावा कोई और सरल उपाय नहीं है ।

यह मानव जीवन बहुत ही दुर्लभ है।
बहुत लम्बा सफर तय करके ही यहाँ तक पहुँचे हैं ।
अतः अपने मानव जीवन को सार्थक बनाइये, हरिजस गाइये।🙏🙏🙏

#आध्यात्मिक_ज्ञान  इसको अवश्य ही पढ़ना चाहिए। 

Tuesday, May 18, 2021

रमजान का इस्लाम से क्या लेना देना?

वैसे रमज़ान का असली नाम रामदान ( ﺭﻣﻀﺎﻥ)है । यह अरबी शब्द रमीदा से बना है , जिसका अर्थ होता है , चिलचिलाती गर्मी या सूखापन ।

रामदान इस्लामिक कलेंडर का 9 वा महीना है । इस्लामिक विश्वास के अनुसार इस दिन क़ुरआन की पहली सूरह मुहम्मद पर अवतरित हुई ।

लेकिन एक सच यह भी है कि इस्लाम के 99% कर्मकांड यहुदियों , ईसाइयो, Sabeanism, Zoroastrianism, और paganism (मूर्तिपूजकों) से आये है ।

रमजान भी अरब के मूर्तिपूजकों का त्योहार था। यह एक सर्वविदित सत्य है कि इस्लाम ने अरब मूर्तिपूजकों से रमजान का कॉन्सेप्ट लिया । 
जैसा कि Sahih Bukhari 5:58:172 अत्यधिक स्पष्ट प्रमाण है ,

" हजरत आयशा फरमाती है कि अरब में अज्ञानता की अवधि में आशुरा का दिन था जिस दिन कुरैश के जनजाति उपवास करते थे । पैगंबर ने भी इस दिन उपवास रखा था। इस प्रकार जब वह मदीना चले गए, तो उन्होंने उस दिन पर उपवास किया और मुसलमानो को आदेश दिया कि वह (मुस्लिम) इस दिन पर उपवास करें। जब रमजान के उपवास को आज्ञा दी गई थी, तो लोगों के लिए आशुरा के दिन उपवास करना वैकल्पिक हो गया।

आशुरा (मुहर्रम का 10 वां) का उपवास कुरैश मूर्ति पूजको से आया हुआ था । इस्लाम मे रमजान उपवास सबियन परंपरा से भी बहोत बाद में आया था।

जैसा क़ुरआन में भी कई बार सबाइयो को वर्णित किया गया है जैसे [ अल बकरा 2:62], [ अल हज्ज 22:17] , [अल मईदा 5:69] ।

इस बात का प्रमाण खुद क़ुरआन ही है ,

क़ुरआन अल-बक़रा (Al-Baqarah):183 - ऐ ईमान लानेवालो! तुमपर रोज़े अनिवार्य किए गए, जिस प्रकार तुमसे पहले के लोगों पर किए गए थे, ताकि तुम डर रखनेवाले बन जाओ ।

उदाहरण स्वरूप यहुदियों से इस्लाम में गए कर्मकांड और प्रथाएं ________________________________

खतना (यहुदियों में बच्चे के पैदा होने के 8 दिन बाद इज़लाम में 7 दिन बाद) , दाढ़ी के बाल रखना , सुअर और कुत्तों से नफरत करना , विश्राम के दिन का concept , नमाज , रोजा , हज , किबले कि ओर झुकना , पूजा स्थल , एकेश्वरवाद , नबीवाद और पैग़म्बरवाद , एडम से अब्राहम तक पैगम्बर मानना , समूह में नमाज पढ़ना , पशु को हलाल करना (बलि प्रथा) , जकात देना , महिलाओं द्वारा सिर को ढकना , कपड़ो से मजहब का symbolize करना , अविवाहित स्त्रियों का अकेले न रहना , महिलाओं के गीत गाने पर प्रतिबंध , वुजू का concept , नीदा (बच्चे पैदा करने के बाद पति से अलग होने के दिनों की संख्या ), बच्चे के नामकरण के दिन , विवाह के समय मेहर की प्रथा , विवाह के होने की गवाही की प्रथा , गैर मजहब में विवाह की अनुमति की सख्त मनाही , दफन करते समय की नमाज , और कब्र की दिशा ।

मूर्तिपूजकों से इस्लाम गए कर्मकांड और प्रथाएं - 
_________________________________

हज्जे अस्वद या संगे अस्वद (संग अर्थात पत्थर, अस्वद अर्थात अश्वेत यानी काला)
(काला जन्नती पत्थर शिवलिंग मक्केश्वर महादेव) चूमना , मजारों पर मत्थे पटकना , अल्लाह , मुहम्मद के नाम का लॉकेट पहनना , मजहब को numerology से जोड़कर 786 को लकी नम्बर मानना जैसे पौराणिक हिन्दू 108 आदि संख्याओं को लकी मानते है । हिंदू पूजा के दौरान बिना सिला हुआ वस्त्र या धोती पहनते हैं, उसी तरह हज के दौरान भी बिना सिला हुआ सफेद सूती कपड़ा ही पहना जाता है। जिस प्रकार हिंदुओं की मान्यता होती है कि गंगा का पानी शुद्ध होता है ठीक उसी प्रकार मुस्लिम भी अबे जम-जम के पानी को पाक मानते हैं। जिस तरह हिंदू गंगा स्नान के बाद इसके पानी को भरकर अपने घर लाते हैं ठीक उसी प्रकार मुस्लिम भी मक्का के अबे जम-जम का पानी भर कर अपने घर ले जाते हैं। ये भी एक समानता है कि गंगा को मुस्लिम भी पाक मानते हैं और इसकी अराधना किसी न किसी रूप में जरूर करते हैं।

एक प्रसिद्ध पौराणिक मान्यता के अनुसार काबा में “पवित्र गंगा” है। जिसका निर्माण रावण ने किया था, रावण शिव भक्त था वह शिव के साथ गंगा और चन्द्रमा के महात्म को समझता था और यह जानता था कि कि कभी शिव को गंगा से अलग नही किया जा सकता। जहाँ भी शिव होंगे, पवित्र गंगा की अवधारणा निश्चित ही मौजूद होती है। काबा के पास भी एक पवित्र झरना पाया जाता है, इसका पानी भी पवित्र माना जाता है।
इस्लामिक काल से पहले भी इसे पवित्र (आबे ज़म-ज़म) ही माना जाता था। रावण की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने रावड़ को एक शिवलिंग प्रदान किया जिसें लंका में स्थापित करने का कहा और बाद जब रावड़ आकाश मार्ग से लंका की ओर जाता है पर रास्ते में कुछ ऐसे हालत बनते हैं की रावण को शिवलिंग धरती पर रखना पड़ता है। वह दुबारा शिवलिंग को उठाने की कोशिश करता है पर खूब प्रयत्न करने पर भी लिंग उस स्थान से हिलता नहीं।

वेंकटेश पण्डित के अनुसर यह स्थान वर्तमान में सऊदी अरब के मक्का नामक स्थान पर स्थित है। सऊदी अरब के पास ही यमन नामक राज्य भी है जहाँ श्री कृष्ण ने कालयवन नामक राक्षस का विनाश किया था। जिसका जिक्र श्रीमदभगवत पुराण में भी आता है ।

पहले राजा भोज ने मक्का में जाकर वहां स्थित प्रसिद्ध शिव लिंग मक्केश्वर महादेव का पूजन किया था, इसका वर्णन भविष्य-पुराण में निम्न प्रकार है :-

"नृपश्चैवमहादेवं मरुस्थल निवासिनं !
गंगाजलैश्च संस्नाप्य पंचगव्य समन्विते :
चंद्नादीभीराम्भ्यचर्य तुष्टाव मनसा हरम !
इतिश्रुत्वा स्वयं देव: शब्दमाह नृपाय तं!
गन्तव्यम भोज राजेन महाकालेश्वर स्थले !!"

ईसा के लगभग 60 वर्ष पूर्व रोमन इतिहास लेखक Diodorus Siculus लिखता है -
यहाँ इस देश में एक मन्दिर है, जो अरबों का अत्यन्त पूजनीय है।

Abraha 553 ईसा पूर्व अरेबिया के Aksumite राज्य का सैन्य प्रमुख लिखता है कि , अरब में मूर्तिपूजक रहते है ।

Sahih al-Bukhari, Vol 5 / 661 में भी साफ साफ वर्णित है कि इस्लाम से पहले अरब के लोग पत्थर पूजक थे ।

इतिहासकारो के अनुसार , पूरे अरब में 360 मन्दिर थे । (प्रमाण Hadith Bukhari 3:43:658 स्नेप शॉट दे दिया हु । )

इसके अतिरिक्त चंद्रमा देखकर उपवास तोड़ना भी पौराणिक हिन्दूओ की कम्पलीट नकल है । 
हज के दरम्यान सिर मुंडवाना , काबा के 7 anticlockwise चक्कर लगाना भी पैराणिक हिन्दुओ की नकल है ।

क़ुरआन में भी प्रमाण है अरबो के मूर्तिपूजक होने के ,

अन-नज्म (An-Najm):18 - निश्चय ही उसने अपने रब की बड़ी-बड़ी निशानियाँ देखीं

अन-नज्म (An-Najm):19 - तो क्या तुमने लात और उज़्ज़ा

अन-नज्म (An-Najm):20 - और तीसरी एक और (देवी) मनात पर विचार किया?

अरब में मुहम्मद पैगम्बर से पूर्व शिवलिंग को 'लात' कहा जाता था। मक्का के कावा में जिस काले पत्थर की उपासना की जाती रही है, भविष्य पुराण में उसका उल्लेख मक्केश्वर के रूप में हुआ है।

इस तरह कई इस्लामिक परम्पराए मूर्तिपूजकों से आई है । इसी तरह 5 बार नमाज पढ़ना इस्लाम में जोरथस्ट्रीयन्स की नकल है ।
साभार भाई श्री Vivek Arya

Monday, May 10, 2021

गुरु धन्वन्तरि।

”मृत्यु-व्याधि-जरानाशी पीयूषं ‌‌‌‌‌‌‌‌ परमौषधम्।
ब्रह्मछर्यं महद्यत्नं सत्यमेब बदाम्यहम्।।
अर्थात: ये शोल्क् दिन के उजाले के जैसे सरल है फिरभी आप सभी के बोध्गम्य हेतु सरल हिंदी मे अनुबाद कर रहे है.... ये श्लोक विष्णु स्वरुप् श्री श्री श्री गुरु धन्वन्तरि ने अपने शिष्यो से कहे....                                           

 ''जो ब्यक्ति आजन्म मृत्यु अबधि तक परम निष्ठा के सहित  ब्रह्मअस्तित्व स्वरुप् ब्रह्मचर्य के पालन करते है उसे नहीं कोई -अकाल मृत्यु, व्याधि (रोग), ज़रा (अक्षमता) नहीं होता। उसके शरीर मैं ये ब्रह्मछर्य 
पीयूष (अमृत) के तरह परम ओशद् के जैसा काम करता है, ये सत्य है ,मैं धन्वन्तरि  यही दवा करता हूँ ।