आज दुनिया मे सबसे ज्यादा विस्थापित मुस्लिम हैं। इन्हे प्रायः उन देशो से निकाला गया है जो शरिया के अनुसार चलते हैं। परन्तु क्या इन्होने कभी अपने शरणदाता का उपकार माना? नहीं
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इस्लामिक स्टेट से भागकर यूरोप में आये शरणार्थियो के उत्पात ने यूरोपीय देशो को बता दिया है कि इस्लाम शान्ति का मजहब है और इस्लाम और अपराध का दूर दूर तक कोई रिश्ता नहीं है.
जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्केल की उदारवादी आप्रवासी नीति के कारण साल 2015 में जर्मनी में अनुमान से ज्यादा मुस्लिम शरणार्थी आ गए। जिनकी अनुमानित संख्या करीब 11 लाख बतायी जा रही है।
जर्मनी के कोलोन में 31 दिसंबर 2015 की रात ने जर्मनी में सब कुछ बदल दिया।
जो जर्मन मुस्लिम शरणार्थियों का स्वागत कर रहे थे, उस रात ने उनके अंदर न सिर्फ शरणार्थियों के प्रति बल्कि पूरे इस्लाम के प्रति नफरतों के बीज बो दिए।
न सिर्फ जर्मनी बल्कि पूरे विश्व में इस घटना क्रम ने सनसनी फैला दी, जिसके प्रभाव पूरे मुस्लिम समुदाय को निशाने पर ले रहे हैं।
कोलोन में 31 दिसंबर 2015 की रात जर्मन लड़कियों पर यौन हमले हुए। जांच में सामने आया कि ये हमले करने वाले लोग मुस्लिम शरणार्थी थे। उस रात लगभग 1,200 शिकायतें आईं जिनमें से 500 से ज्यादा यौन हमलों की थीं। इस घटना ने पूरे जर्मनी को दहला दिया जगह जगह से शरणार्थियों के विरोध की आवाजें सुनाई देने लगीं हैं.
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बेल्जियम ने पहले मोरक्को और तुर्की से और बाद में अल्जीरिया व ट्यूनीसिया से भी 1974 तक प्रवासी श्रमिक बुलाए। समय के साथ उन्हें अपने परिवार भी बेल्जियम लाने की छूट दे दी गई।
1960 से आस पास के मुस्लिम देशों से मुस्लिमों का आना शुरू हो गया। सरकार ने समरसता बनाते हुए 1974 में इस्लाम को एक धर्म की मान्यता भी दे दी। जिसको देश की सभी सुविधाएं और समानता का अधिकार दिया जाने लगा। आज बेल्जियम की राजधानी ब्रसेल्स में 350 से अधिक मस्जिदें हैं। यह ना भूलें की यह एक श्रमिक की भांति देश में लाये गए थे।
बेल्जियम स्कूलों में मुस्लिम छात्र सरकारी खर्चे पर अपने धर्म की कुरान की शिक्षा ले सकते है। मुस्लिम जैसा सभी देशों में करते है अपनी जनसंख्या को शून्य से पांच दशक में 10% तक बढ़ा ली। राजधानी ब्रसेल्स में 35% तक आ चुकी हैं। जर्मन में हेब्दो चार्ली के आतंकी इसी स्थान से थे। बेल्जियम अब आतंक का अड्डा बन गया है। बेल्जियम को शरीयत से चलाने की कोशिशों ने जोर पकड़ लिया है। यहाँ हर एक को 12 वर्ष तक पढ़ाई और वोट देने का कानून है। अभी चुनाव में मात्र दो काउंसलर है पर होने बाले चुनाव में इस्लामिक पार्टी ने एलान किया है कि यदि उसकी पार्टी जीतती है तो देश में शरिया लागू कर दिया जाएगा।
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यूरोप और इस्लामी दुनिया की समझ रखने वाले लेखक विचारक डेनियल पाइप्स इस पर अपनी राय बड़ी संजीदगी से रखते हुए कहते है कि मुसलमानों की उत्साही आस्था जिहादी सक्षमता और इस्लामी सर्वोच्चता की भावना से यूरोप की क्षरित ईसाइयत से अधिक भिन्न है. इसी अन्तर के चलते मुसलमान यूरोप को धर्मान्तरण और नियन्त्रण के परिपक्व महाद्वीप मानते हैं. डेनियल कुछेक मुस्लिम धर्म गुरुओं के अहंकारी सर्वोच्च भाव से युक्त दावों के उदाहरण सामने रखते है जैसे उमर बकरी मोहम्मद ने कहा “ मैं ब्रिटेन को एक इस्लामी राज्य के रूप में देखना चाहता हूँ. मैं इस्लामी ध्वज को 10 डाउनिंग स्ट्रीट में फहराते देखना चाहता हूँ”. या फिर बेल्जियम मूल के एक इमाम की भविष्यवाणी “ जैसे ही हम इस देश पर नियन्त्रण स्थापित कर लेंगे जो हमारी आलोचना करते हैं हमसे क्षमा याचना करेंगे. उन्हें हमारी सेवा करनी होगी. तैयारी करो समय निकट है. डेनियल इससे भी आगे बढ़कर एक ऐसी स्थिति का चित्र भी खींचते हैं जहाँ अमेरिका की नौसेना के जहाज यूरोप से यूरोपियन मूल के लोगों के सुरक्षित निकास के लिये दूर-दूर तक तैनात होंगे.
प्रोफेसर थॉमस होमर-डिक्सन कहते हैं कि इस्लामिक शरणार्थी यूरोप के लिए चुनौती बड़ी है. क्योंकि ये मध्य-पूर्व और अफ्रीका के अस्थिर इलाकों के क़रीब है. यहां की उठा-पटक और आबादी की भगदड़ का सीधा असर पहले यूरोप पर पड़ेगा. हम आतंकी हमलों की शक्ल में ऐसा होता देख भी रहे हैं. अमरीका, बाक़ी दुनिया से समंदर की वजह से दूर है. इसलिए वहां इस उठा-पटक का असर देर से होगा.जब अलग-अलग धर्मों, समुदायों, जातियों और नस्लों के लोग एक देश में एक-दूसरे के आमने-सामने होंगे, तो झगड़े बढ़ेंगे. पश्चिमी देशों में शरणार्थियों की बाढ़ आने के बाद यही होता दिख रहा है. वहीं कुछ जानकारों का ये भी कहना है कि हो सकता है पश्चिमी सभ्यताएं ख़त्म ना हों लेकिन उनका रंग-रूप जरूर बदलेगा. लोकतंत्र, उदार समाज जैसे फलसफे मिट्टी में मिल जाएंगे. चीन जैसे अलोकतांत्रिक देश, इस मौक़े का फायदा उठाएंगे. ऐसा होना भी एक तरह से सभ्यता का पतन ही कहलाएगा. किसी भी सभ्यता की पहचान वहां के जीवन मूल्य और सिद्धांत होते हैं. अगर वही नहीं रहेंगे, तो सभ्यता को जिंदा कैसे कहा जा सकता है? यह आज यूरोपियन लोगों के लिए सबसे बड़ा सवाल है.
4-
भारत मे घुसे हुए बंगलादेशी और रोहींग्या शरणार्थी नहीं घुसपैठिए हैं।
उन अघोषित घुसपैठियों में से आधे तो पुरानी सरकारों के दौरान नागरिकता पा भी चुके हैं किन्तु बहुतों के पास कोई कागजात नहीं है । असली आक्रोश उनके लिये ही है । उनकी संख्या करोड़ों में है,जबकि CAA का लाभ तो मुट्ठी भर गैर−मुस्लिमों को मिलने जा रहा है । अतः आक्रोश इस बात का है कि उन अवैध करोड़ों का क्या होगा जो न भारत के बन सके और न अब बांग्लादेश या पाकिस्तान के ही रहे । वे शरणार्थी भी नहीं हैं और न ही उत्पीड़ित,वे उन लोगों के अंश हैं जिन्होंने भारत के टुकड़े करके पाकिस्तान ले लिये थे । जिनको पिछली केन्द्र सरकारों अथवा दिल्ली वा बंगाल आदि की राज्य सरकारों ने गलत तरीके से भारतीय होने के कागजात धरा दिये हैं,जैसे कि आधारकार्ड,वोटर कार्ड,राशन कार्ड,आदि,उनको भी भय है कि कहीं उनके इतिहास की छानबीन न होने लगे । ऐसे सात करोड़ घुसपैठिये आक्रोशित हैं और उनके करोड़ों मित्र भी ।
लंबे समय तक लेफ्ट फ्रंट का गढ़ रहे पश्चिम बंगाल में हर चौथा व्यक्ति मुसलमान है, पर वहां भी जेलों में लगभग आधे कैदी मुसलमान हैं. बंगाल में कभी किसी सांप्रदायिक पार्टी का राज नहीं रहा. यही नहीं, महाराष्ट्र में हर तीसरा तो उत्तर प्रदेश में हर चौथा कैदी मुसलमान है.
जम्मू-कश्मीर, पुडुचेरी और सिक्किम के अलावा देश के अमूमन हर सूबे में मुसलमानों की जितनी आबादी है, उससे अधिक अनुपात में मुसलमान जेल में हैं.
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