धर्म प्रेमी विद्वत् जनों को नमस्ते। 🙏
आंग्ल दिनांक 21 जून 2022 को एक विशेष खगोलीय घटना आकाश में घटित होने जा रही है जिसका प्रत्यक्ष प्रभाव मानव जीवन पर पड़ने वाला है। यह घटना है सूर्य का दक्षिणायन। आज का यह विशेष लेख आप सबको इस खगोलीय घटना के विषय में महत्वपूर्ण जानकारी देने के साथ वर्तमान समय में प्रचलित गलत पञ्चाङ्गों के भ्रम से भी आप सबको बाहर लाने का कार्य करेगा।
👉प्रश्न:- क्या होती है संक्रांति?
👉उत्तर:- आप सबको विदित है कि पृथिवि सूर्य का चक्कर लगाती है किंतु जब हम पृथिवी पर स्थित हो कर आकाश का अवलोकन करते हैं तो हमें सूर्य पृथिवी का चक्कर लगाता प्रतीत होता है एवं पृथिवी स्थिर लगती है।
ज्योतिष विज्ञान की शैली में जिस पथ पर सूर्य पृथिवि का चक्कर लगाता प्रतीत होता है उसको "क्रांति वृत्त" कहा जाता है।
इस क्रांति वृत्त पर सूर्य की अवस्थिति से ही मास एवं ऋतुओं का निर्माण होता है।
सूर्य एक दिन में एक अंश की मध्यम गति क्रांति वृत्त पर करता हुआ 30 दिन में 30 अंश चलता है। यही 30 अंश का भाग राशि कहलाता है। 12 राशियों या 12 माह को मिला कर एक सौर वर्ष का निर्माण होता है।
सूर्य जब 30 अंश का संक्रमण पूरा कर अगले राशि में प्रवेश करता है तो उस राशि य्या सौरमास परिवर्तन को संक्रान्ति कहते हैं।
12 सौर महीनों की हेतु 12 संक्रान्तियां ही हैं।
👉प्रश्न :- 12 राशियां कौन कौन सी हैं?
👉उत्तर:- मेष राशि ,वृष राशि ,मिथुन राशि ,कर्क राशि ,सिंह राशि ,कन्या राशि,तुला राशि,वॄश्चिक राशि,धनु राशि,मकर राशि,कुम्भ राशि,मीन राशि। यह क्रम से 12 राशियाँ कही जाती हैं।
प्रत्येक राशि 30 अंश की होने के साथ एक सौर माह के बराबर होती है।
👉प्रश्न :-प्रमुख संक्रान्ति कौन- कौन सी हैं?
👉उत्तर:- वर्ष में 12 संक्रान्तियां होती है पूर्व में बता चुके हैं किंतु 4 प्रमुख संक्रांतियां जिनके आधार पर अन्य सभी का निर्धारण होता है वह निम्न हैं :-
१.सूर्य उत्तरायण या मकर संक्रांति
२.वसन्त सम्पात या मेष संक्रान्ति
३.सूर्य दक्षिणायन या कर्क संक्रान्ति
४.शरद सम्पात या तुला संक्रान्ति
इन संक्रांतियो के विषय में विस्तार से चर्चा करते हैं :-
🌹21/22 मार्च विषुव (मेष संक्रान्ति)🌹
सूर्य का भोगांश 0° एवं सूर्य भूमध्य रेखा पर उत्तरी गोलार्द्ध की ओर अग्रसर होता है। यह वसंत ऋतु का मध्य बिंदु होता है। वसंत ऋतु 21/22 फरवरी से आरम्भ हो कर 21/22 अप्रैल तक होती है। यह विषुववसंत ऋतु को दो भागों में विभक्त करता है। दिन और रात बराबर होते हैं। भूमध्य रेखा पर शंकु का छायालोप होता है।
🌹21/22 जून अयनांत (कर्क संक्रान्ति)🌹
सूर्य का भोगांश 90° एवं सूर्य उत्तरी गोलार्द्ध में अधिकतम क्रांति पर स्थित होता है। इस दिन पृथिवि के उत्तरी गोलार्ध का सूर्य की तरफ झुकाव अधिकतम होने के कारण उत्तरी गोलार्द्ध में सबसे बड़ा दिन और सबसे छोटी रात होती है। यह वर्षा ऋतु का आरम्भ बिंदु होता है। इस दिन से सूर्य दक्षिण गोल की ओर संक्रमण करना आरम्भ करते हैं। यह दक्षिणायन संक्रान्ति कहलाता है।
भूमध्य रेखा पर शंकु की छाया दक्षिण दिशा में सर्वाधिक होती है।
🌹21/22 सितंबर विषुव (तुला संक्रान्ति)🌹
सूर्य का भोगांश 180° एवं सूर्य भुमध्य रेखा पर दक्षिण गोलार्द्ध की ओर अग्रसर होता है। यह शरद ऋतु का मध्य बिंदु होता है । शरद ऋतु 21 /22 अगस्त से आरम्भ हो कर 21/22 अक्टूबर तक होती है। दिन और रात बराबर होते हैं। भुमध्य रेखा पर शंकु का छायालोप होता है।
🌹21/22 दिसम्बर अयनांत (मकर संक्रान्ति)🌹
सूर्य का भोगांश 270° एवं सूर्य दक्षिण गोलार्द्ध में अधिकतम क्रांति में स्थित होता है। इस दिन पृथिवि के दक्षिण गोलार्द्ध का सूर्य की तरफ अधिकतम् झुकाव होने के कारण उत्तरी गोलार्ध में सबसे छोटा दिन और सबसे बड़ी रात होती है। यह शिशिर ऋतु का आरम्भ बिंदु होता है।इस दिन से सूर्य उत्तरी गोलार्द्ध की ओर संक्रमण करना आरम्भ करते हैं। यह उत्तरायण संक्रांति कहलाता है। भुमध्य रेखा पर शंकु की छाया उत्तरी दिशा में सर्वाधिक होती है।
दक्षिणायन या कर्क सक्रांति पर विस्तार से चर्चा करते हैं :-
👉प्रश्न:- क्या होती दक्षिणायन संक्रान्ति?
👉उत्तर :- जब सूर्य अपने उत्तर पथ के मार्ग पर परम् क्रांति पर पहुँच जाता है तब पृथिवि के उत्तरी गोलार्द्ध का अधिकतम झुकाव सूर्य की ओर होता है और उत्तरी गोलार्द्ध में सूर्य का भोगांश 90 अंश होता है। अब सूर्य उत्तर की ओर और आगे नहीं जा पाता तो अपने मार्ग को वृत्तीय बनाते हुए दक्षिण की ओर गति करने लगता है।
जिस दिन सूर्य का उत्तर पथ से दक्षिण पथ एवं दक्षिण गोल की ओर संक्रमण होता है उसी को दक्षिणायन संक्रान्ति य्या कर्क संक्रान्ति कहते हैं।
☀️कर्क संक्रान्ति के प्रत्यक्ष लक्षण :-☀️
सौर संक्रान्तियां कोई काल्पनिक वस्तु नहीं है अपितु इनको आकाश में घटित होते देखा जा सकता है। जब दक्षिणायन संक्रान्ति घटित होती है तब क्या लक्षण आकाश में एवं पृथिवि पर दिखते उनपर चर्चा करते हैं :-
१. पृथिवि के उत्तरी गोलार्द्ध का सूर्य की तरफ अधिकतम झुकाव होने से सबसे बड़ा दिन और सबसे छोटी रात होती है। यह लक्षण सिर्फ 21-22 जून यानी कर्क संक्रान्ति को ही घटित हो सकता है। अगर कोई पञ्चाङ्ग सबसे बड़ा दिन और सबसे छोटी रात किसी और दिन दिखाता और कर्क संक्रान्ति किसी और दिन तो समझ लीजिये वो गलत गणित पर बना है।
२.सूर्य उत्तर परम् क्रांति पर होगा बिना परम क्रांति के कर्क संक्रान्ति हो ही नहीं सकती है। गणित से परम् क्रांति 21-22 जून के अतिरिक्त अन्य किसी भी दिन नही आती है
३.कर्क रेखा पर सूर्य की किरणें लम्बवत पड़ने से शंकु की छाया नहीं बनती है। यह कर्क संक्रान्ति को परखने की सबसे प्रायोगिक विधि है कर्क रेखा जहाँ - जहाँ से हो कर जाती है उन सभी क्षेत्रों में जा कर आप स्वयं देख सकते हैं कि शंकु यन्त्र की छाया नहीं बनती है क्योंकि उस दिन सूर्य का प्रकाश ठीक कर्क रेखा पर लम्बवत पड़ता है।
इन तीन प्रमुख लक्षणों से कर्क संक्रान्ति की पहचान होती है और यह संक्रान्ति 21-22 जून के अतिरिक्त कभी भी सिद्ध नहीं की जा सकती है।
☀️कर्क संक्रान्ति का प्रभाव :-☀️
सौर कर्क संक्रांति के निम्न प्रभाव भी पृथिवि एवं सभी जीवों पर पड़ते हैं :-
१.इस दिन के साथ ही उत्तरी गोलार्द्ध में वर्षा ऋतु का आगमन हो जाता है और दृष्टिगत है कि मानसूनी वर्षा का उचित समय कर्क संक्रान्ति के आस पास ही आता है।
२.वर्षा ऋतु के आगमन के साथ ही सौर नभस् मास कर्क संक्रांति के तुरंत बाद ही आरम्भ हो जाता है। कर्क संक्रांति के बाद जो प्रथम शुक्ल प्रतिपदा आती है उस दिन से चांद्र श्रावण मास का आरम्भ होता है।
👉प्रश्न :- हम कर्क संक्रान्ति को आपके बताये अनुसार सबसे बड़े दिन और सबसे छोटी रात पर ही क्यों लें? अन्य समय कर्क संक्रान्ति क्यों नहीं हो सकती?
👉उत्तर:- ज्योतिष एक विज्ञान है जो सृष्टि के नियमों के अनुसार चलता है। ज्योतिष के नियम मैंने य्या आपने नहीं बनाए अपितु इनको बनाने वाले स्वयं परमपिता परमेश्वर ही हैं। ज्योतिष के प्रवर्तक ऋषियों एवं आचार्यों ने इन नियमों को खोज कर विद्या का रूप दिया है। संक्रांतियो को विषुव एवं अयन से जोड़ कर ही लिया जाएगा इस विषय में अनेकों प्रमाण है उनमें से कुछ यहां प्रस्तुत करते हैं :-
🔥वराहमिहिर द्वारा संकलित सूर्य सिद्धान्त से -🔥
भचक्रनाभौ विषुवद्वितयं समसूत्रगम् ।
अयनद्वितयं चैव चतसत्रः प्रथितास्तु ताः।।7।।
तदन्तरेषु संक्रान्ति द्वितयं द्वितयं पुनः ।
नैरन्तर्यात् तु संक्रान्तेर्ज्ञेयम् विष्णुपदीद्वयम्।।8।।
भानोर्मकरसंक्रान्तेः षण्मासा उत्तरायण ।
कर्कादेस्तु तथैव स्यात् षण्मासादक्षिणायनम्।।9।।
द्विराशिनाथा ऋतवस्ततोऽपि शिशिरादयः ।
मेषादयो द्वादशैते मासास्तैरेव वत्सर:।।10।।
सूर्य सिद्धान्त, मानाध्याय
🌹अर्थ🌹
प्राच्य अर्थात वसन्त संपात ही मेष संक्रान्ति का और प्रतीची संपात अर्थात शरद संपात तुला सक्रान्ति का सूचक है। सूर्य की
मकर संक्रान्ति से छः महीने उत्तरायण अवधि और कर्क संक्रान्ति से छः महीने दक्षिणायण के होते हैं। स्पष्ट है कि उत्तरायण ही मकर संक्रान्ति, दक्षिणायण ही कर्क संक्रान्ति और वसन्त तथा शरद संपात ही मेष तथा तुला संक्रान्तियां हैं। यही दृक एवं गणितागत भी है। इसके अन्यथा संक्रान्तियों को लेना शास्त्र विहित है।
🔥वराहमिहिर कृत पंचसिद्धांतिका से :-🔥
उदगयनं मकरादावृतवः शिशिरादयस्य सूर्यवशात्।
द्विभवनकालसमानं दक्षिणमयनं च कर्कटकात्।।
पंचसिद्धान्तिका 3/25
उपरोक्त प्रमाण में भी यह बताया गया है कि संक्रान्तियां अयन और विषुव सम्बद्ध हैं। 6 महीने के उत्तरायण और 6 माह का दक्षिणायन अवधि होती है।
🔥विष्णु पुराण से -🔥
शरद्वसन्तयोर्मध्ये विषुवं तु विभाव्यते ।
तुलामेषगते भानौ समरात्रिदिनं तु तत् ।।
कर्कटावस्थिते भानोर्दक्षिणायनमुच्यते।
उत्तरायणमप्युक्तं मकरस्थे दिवाकरे।।
त्रिंशन्मुहुर्त कथितमहोरात्रं तु यान्मया।
तानि पञ्चदश ब्रह्मन् पक्ष इत्यभिधीयते ।।
मासः पक्षद्वयेनोक्तो द्वौ मासो चार्कजावृतुः ।
ऋतुत्रयं चाप्ययनं द्वेऽयने वर्षसंज्ञिते ।।
शरद्वसन्तयोर्मध्ये तद्भानुः प्रतिपद्यते ।
मेषादौ च तुलादौ च मैत्रेय विषुव स्थितः ।
तदा तुल्यं अहोरात्रं करोति तिमिरा पहः ।
दशपञ्चमुहुर्त वै तदेतदुभयं स्मृतम् ।।
विष्णुपुराण, 2/8/67-70 व 74,75
उपरोक्त प्रमाण भी स्पष्ट रूप से यह बता रहे हैं कि संक्रांतियो को विषुव व अयन से जोड़कर ही लिया जाए। उत्तरायण संक्रान्ति में सबसे छोटा दिन व दक्षिणायन संक्रान्ति में सबसे बड़ा दिन होता है। विषुव संक्रांतियो में दिन-रात्रि के मान बराबर होते हैं।
🔥शिवमहापुराण से :-🔥
तस्माद्दशगुणज्ञेयं रवि संक्रमणेबुधाः।
विषुवे तद्दशगुणमयनेतद्दशस्मृतम्।।
इसलिए बुद्धिमानों को सूर्य के दस गुना गोचर को जानना चाहिए। इसे भूमध्य रेखा में दस गुना माया कहा जाता है।
यह श्लोक भी सूर्य की गति को अयन और विषुव आधारित ही बता रहा है।
🔥वेदाङ्ग ज्योतिष से :-🔥
स्यात्दादि युगं माघ स्तपः शुक्लो दिनंत्यचः।।६।।
यजुर्वेदांग ज्योतिष
यहाँ भी यही बताया जा रहा है माघ संक्रांति के बाद जो पहला शुक्ल पक्ष आएगा वही माघ शुक्ल पक्ष होगा। इसलिए संक्रांतियां ही सौर एवं चांद्र महीनों का आधार हैं।
🔥श्रीमद्भागवत पुराण से-🔥
श्रीमद्भागवत पंचमस्कन्ध – इक्कीसवां अध्याय
यन्मध्यगतोभगवांस्तपताम्पतिस्तपन् आतपेन त्रिलोकीं प्रतपत्यवभासयत्यात्मभासा स एष उदगयनदक्षिणायन
वैषुवतसंज्ञाभिर्मान्द्यशैष्यसमानाभिर्गतिभिरारोहणावरोहण समानस्थानेषु यथासवनमभिपद्यमानो मकरादिषु राशिष्वहोरात्राणि दीर्घहस्वसमानानि विधत्ते।।3।।
यदा मेषतुलयोर्वतते तदाहोरात्राणि समानानि भवन्ति यदा वृषभादिषु पञ्चसु च राशिषु चरति तदाहान्येव वर्धन्ते हसति च मासिमास्येकैका घटिका रात्रिषु ।। 4 ।।
यदा वृश्चिकादिषु पञ्चसु वर्तते तदाहोरात्राणि विपर्ययाणि भवन्ति
यावद्दक्षिणायनमहानि वर्धन्ते यावदुदगयनं रात्रयः ।।5 ।।
🌹अर्थ🌹
सौरमण्डल के मध्य भाग में स्थित ग्रह और नक्षत्रों के अधिपति भगवान् सूर्य अपने ताप और प्रकाश से तीनों लोकों को तपाते और प्रकाशित करते रहते हैं। वे उत्तरायण, दक्षिणायन और विषुवत् नामवाली क्रमशः मन्द, शीघ्र और समान गतियों से चलते हुए समयानुसार मकरादि राशियों में ऊंचे, नीचे और समान स्थान में जाकर दिन-रात को बडा, छोटा या
समान करते हैं। जब सूर्य मेष या तुला राशि पर आते हैं तब दिन-रात समान हो जाते हैं, जब वृष आदि पांच राशियों
में चलते हैं तब प्रति मास रात्रियां एक-एक घटी कम हो जाती है और दिन उसी हिसाब से बढ़ते जाते हैं। जब वृश्चिक आदि
पांच राशियों में चलते हैं तब दिन और रात्रि में इसके विपरीत परिवर्तन होता है। इस प्रकार उत्तरायण आने पर दिन बढ़ता है
और दक्षिणायन आने पर रात्रियां ।
👉प्रश्न :- चलिए मान लेते हैं संक्रांतियां अयन और विषुव व ऋतुबद्ध हैं किंतु सौर महीने ऋतुओं के साथ जुड़े इसके क्या प्रमाण है?
👉उत्तर :- सौर संक्रान्ति अयन, विषुव व ऋतुओं को नियंत्रित करने वाली होती हैं। इन्हीं सौर संक्रांतियो से सौर माह निर्मित होते हैं एवं चांद्र मास इन्ही का अनुसरण करते हैं।
12 मास ऋतुबद्ध हैं इसके प्रमाण प्रस्तुत करते हैं :-
मधु॑श्च॒ माध॑वश्च॒ वास॑न्तिकावृ॒तू
यजुर्वेद १३/२५
मधुश्च माधवश्च वासन्तिकावृतू शुक्रश्च शुचिश्च ग्रैष्मावृतू नभश्च नभस्यश्च वार्षिकावृतू इषश्चोर्जश्च शारदावृतू सहश्च सहस्यश्च हैमन्तिकावृतू तपश्च तपस्यश्च शैशिरावृत् ।
—तै.सं.४.४.११
अर्थात् - मधु और माधव वसन्त ऋतु, शुक्र और शुचि ग्रीष्म ऋतु, नभस् और नभस्य वर्षा ऋतु, इष और ऊर्ज शरद् ऋतु, सहस और सहस्य हेमन्त ऋतु एवं तपस और तपस्य शिशिर
ऋतुवाले मास हैं।
चैत्रौमधुरितिस्मृतः वैशाखो माधवः प्रोक्तः शुक्रर्जेष्ठ उदाहृतः शुचि प्रोक्तस्तथा आषाढ़ो नभः ।
श्रावण इष्यते प्रौष्ठपादौनभस्यश्च इषश्चाश्वयुजो स्मृतः ऊर्जारकः कार्तिको प्रोक्तो मार्गशीर्षः सहस् तथा।
सहस्यः पौषः इति उक्तो माघस्यात तपेवच फाल्गुनः तपस्याखो मासो यदुकुलोदुहाः ।
विष्णुधर्मोत्तर पुराण ३ / २६
उपरोक्त प्रमाण में भी यही बताया गया है कि 12 सौर मास ऋतुबद्ध होने के साथ ही चांद्र मास उन्ही के अनुगामी होते हैं।
👉विशेष ध्यान देने योग्य तथ्य
सूर्य का आर्द्रा प्रवेश ३० गते शुचि मास के १५:२३ बजे एवं
दक्षिणायन प्रवेश ३१ गते शुचिमास (२१ जून २०२२) १४.४४ बजे होगा।
जो भी सनातन/वैदिक /हिन्दू कर्क संक्रांति य्या दक्षिणायन को 21-22 जून के अतिरिक्त अन्य किसी दिन मनाते हैं वे ज्योतिष के विषय में अनजान हैं।
नभस् मास भी सदैव वर्षा ऋतु का प्रथम मास ही होता है। और यह कर्क संक्रान्ति से आरम्भ हो जाता है। इसके बाद का पहला शुक्ल पक्ष श्रावण चांद्र मास का आरम्भ होता है। अगर आप श्रावण मास का आरम्भ गलत तिथि से कर रहे तो आप भी जाने- अनजाने में अज्ञानता पूर्वक अपराध कर रहे हैं।
पञ्चाङ्ग की त्रुटि के कारण हम न केवल संक्रांतियां अपितु अन्य सभी व्रत,पर्व एवं त्योहार भी गलत तिथि एवं ऋतु में माना रहे हैं।
इस त्रुटि को दूर कर भारतीय जनता को शुद्व पञ्चाङ्ग देने का कार्य आचार्य दार्शनेय लोकेश जी ने पुरुषार्थ एवं समग्रता से किया है।
यह पञ्चाङ्ग "श्री मोहन कृति आर्ष पत्रकम्" के नाम से सम्पादित एवं उपलब्ध है।
आप सभी लोग इसे vedrishi.com से भी प्राप्त कर सकते हैं।
आप सबसे निवेदन है शुद्ध पञ्चाङ्ग का ही उपयोग करें एवं अपने पर्वों व त्यौहारों को सही तिथि पर ही मनाएं।
सत्य सनातन वैदिक धर्म की जय🕉🕉🌹🌹
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