वेदों को छोड़ कर #पुराणों में विश्वास करने का परिणाम (सही है या नहीं) स्वयं निर्णय करें।
१. अवतारवाद मिला (केवल भारत में - अन्य कहीं नहीं)
२. मूर्तिपूजा का प्रचलन हुआ और निराकार ईश्वर से दूरी बनाई
३. सत्य ईश्वरीय ज्ञान वेदों से विमुख हुए।
४. जातिवाद को पोषित किया और वैदिक वर्ण व्यवस्था भुला दी गई।
५.पाखण्ड और अंधविश्वास बढ़ा और वैदिक संस्कार भूल गए
६.आपसी फूट बढ़ी, विदेशियों के ग़ुलाम बने और स्वदेशी गौरव नष्ट हुआ।
७. हिंदू महान शक्ति छोटे छोटे मत मतांतरों में बिखर गई और हम को ग़ुलामी मिली।
८. बलि प्रथा चली और बलिवैश्वदेव यज्ञ छूटा
९.कल्पित देवी -देवताओ की लीलाएं शुरू हुईं और महान आत्माओं का त्रिस्कार हुआ।
१०. अवैदिक फलित ज्योतिष का प्रचलन हुआ, कर्म फल व्यवस्था पर विश्वास कम हुआ, परिश्रम में विश्वास करना कम हुआ और विज्ञान से दूर होते गए।
११ मांसाहार का सेवन बढ़ा और सात्विकता समाप्त हुई।
११. कुरान और बाइबिल का प्रचलन बढ़ा और सत्य सनातन वैदिक धर्म की मान्यताओं में आस्था कम होने लगी।
१२. धर्म परिवर्तन को बढ़ावा मिला। जातिवाद को बढ़ावा मिला।
१३. धर्मनिरपेक्षता वढ़ी और वैदिक संस्कृति व मानवतावाद का त्याग होता गया।
१४. अश्लीलता बढ़ी और सदाचार कम होता गया।
१५. जगत को मिथ्या कहा और सच्चे ईश्वर, प्रकृति और आत्मा के गुण कर्म स्वभाव को भूलते गए।
१६. काल्पनिक स्वर्ग नरक का आविष्कार हुआ और वैदिक
सुख-दुःख से अनजान हो गए।
१७. परस्पर राग, द्वेष, घृणा, ईर्ष्या अहंकार आदि बढ़ा, धर्म के १० लक्षण और यम नियम भूल गए, और वेदों व योग दर्शन के अनुसार सर्वशक्तिमान सर्व व्यापक परमात्मा की स्तुति प्रार्थना उपासना करना छोड़ दिया।
१८. अपने ऋषीयों व महापुरुषों की आज्ञाओं और विचारों की अवहेलना हुई और हिंदू समाज छोटे छोटे समुदायों में बंटता गया। कमजोर हो गया।
१९. भ्रस्टाचार, अंध विश्वास, फलित ज्योतिष और मूर्ति पूजा बढ़ी और राष्ट्र की अवनति हुई।
२०. अपने आर्ष ग्रंथ, दर्शन और संस्कृति को भूल गए और वैदिक संस्कारो को छोड़ दिया।
#नोट :..
१. पुराणों की रचना महाभारत काल के बाद हुई है।
२. इनकी रचना ऋषि वेद व्यास द्वारा नहीं की गई है जैसी की समाज में भाँति फैली हुई है।
३. यह भ्रांति कुछ स्वार्थी मनुष्यों के द्वारा जानकर फैलाई गई है ताकि उनकी जीविका आसानी से, बिना परिश्रम किये, चलती रहे।
४. पुराणों में अधिकतर बातें वेद विरुद्ध पाई जाती हैं।
५. ऋषि दयानंद सरस्वती वेदों के महान ज्ञाता थे। इस बात को भारतीय व विदेशी - सभी विद्वान मानते हैं।
६. #ऋषि_दयानंद_जी और #स्वामी_ब्रह्मानंद_जी ने भी पुराणों को मान्यता नहीं दी है। उन्होंने पुराणों की उसी बात को माना है जो वेदानुसार है, प्रकृति और सृष्टि के नियमों के अनुसार है।
🌞 ।। एक विनम्र निवेदन ।।🌞
मित्रों। यदि आप उपरोक्त विचारों से सहमत हैं तो:
वैदिक संस्कृति, हिंदू समाज और राष्ट्र हित में वेदों की शरण में आइए। पूरे विश्व में भारत का और अपना गौरव बढाइए।
#ॐ_तत्सत्त
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