Sunday, June 19, 2022

वर्ष 1966 का गोरक्षा आंदोलन।

हरयाणे की आर्य जनता का सत्याग्रह 
लेखक :- श्री विरजानंद दैवकरणि, डॉ० रघुवीर वेदालंकार 
प्रस्तुति :- अमित सिवाहा 
            गोरक्षार्थ हरयाणा से जत्थे निरन्तर जा रहे थे। ९ सितम्बर १९६६ को जत्थेदार स्वामी सन्तोषानन्द जी ( रेवाड़ी ) के नेतृत्व के कुछ व्यक्तियों ने सत्याग्रह किया। गुरुकुल झज्जर के ब्रह्मचारी तथा कर्मचारी पूर्णरूपेण इस आन्दोलन के प्रति समर्पित थे। आचार्य भगवान्देव जी तो अपना समस्त समय गुरुकुल से बाहर रह कर सत्याग्रह के लिए लगा रहे थे , गुरुकुल से भी ब्रह्मचारियों तथ कर्मचारियों के जत्थे निरन्तर जा रहे थे। १२ अक्तूबर १९६६ को गुरुकुल झज्जर के ब्रह्मचारी यज्ञवीर किसरेंटी , रणवीर आसन , हरिदेव गौरीपुर और राजेन्द्र भालौठ रात को भागकर झज्जर से बहादुरगढ़ तक पैदल गये। सत्यार्थप्रकाश तथा ओम्ध्वज लिए हुए इन्होंने प्रात: काल इन्दिरा गांधी की कोठी पर सत्याग्रह किया और सात दिन तक तिहाड़ जेल में रहे। पुनः छोड़ दिये गये। ये दुबारा सत्याग्रह करना चाह रहे थे , किन्तु गुरुकुल से ब्रह्मचारी इन्द्रदेव मेधार्थी इनको लेने आगये और कहा कि आप अभी विद्यार्थी हैं , पढ़ाई करो , सत्याग्रह में हम बड़ी आयु के व्यक्ति जायेंगे। 
          ३० अक्तूबर १९६६ को ' हरयाणा गोरक्षा सम्मेलन रोहतक ' में आचार्य भगवान्देव जी ने भी सत्याग्रह कर जेल जाने की घोषणा कर दी। तभी से हरयाणो में उत्साह की लहर दौड़ गई और भारी संख्या में सत्याग्रह के लिये नाम आने प्रारम्भ हो गये। 
          ३ नवम्बर १९६६ को दुर्गाभवन रोहतक में सत्याग्रहियों का विदाई समारोह हुआ। जिस में हजारों की संख्या में उपस्थित जनता के समक्ष आचार्य जी ने घोषणा करते हुए कहा कि - " जब तक भारत में पूर्णरूप से गौ वंश की हत्या बन्द नहीं होगी तब तक हरयाणा से सत्याग्रहियों के जत्थे इसी प्रकार चलते रहेंगे। अब हम निश्चय कर चुके हैं कि हमारी गोमाता जीवित रहेगी तो हम जीयेंगे। यदि गौ के लिए हमें अपना सर्वस्व न्यौछावर करना पड़े तो सौभाग्य समझेंगे। " उपस्थित जनता ने उच्च जयघोषों के साथ इस घोषणा का स्वागत किया। 
         ४ नवम्बर १९६६ को आचार्य जी के नेतृत्व में ४०० सत्याग्रहियों का यह विशाल जत्था दयानन्दमठ रोहतक से रेलवे स्टेशन की ओर उत्साह का संचार करता हुआ जुलूस के रूप में आगे बढ़ा। मार्ग में रोहतक की जनता ने स्थान - स्थान पर इन धर्मवीरों का अभिनन्दन फलों , फूलों , मालाओं और जयकारों से किया। सत्याग्रह में भाग लेने हेतु गुरुकुल झज्जर के ६० ब्रह्मचारी , १० अध्यापक एवं कार्यकर्ता झज्जर से सीधे आर्यसमाज करोल बाग दिल्ली में पहुंच रहे थे। इस प्रकार कुल मिलाकर यह जत्था ४७० वीरों का हो गया था। इस जत्थे में ब्रह्मचारियों का उत्साह विशेष श्लाघनीय था।
          ४ नवम्बर १९६६ को सायंकाल करोल बाग आर्यसमाज मन्दिर में सत्याग्रहियों के स्वागत में एक विशाल सभा हुई। जिसका उद्घाटन आर्य नेता पंडित जगदेवसिंह सिद्धान्ती संसद् सदस्य ने किया। अध्यक्ष पद से श्री प्रकाशवीर जी शास्त्री एम० पी० ने बोलते हुये कहा कि - " अब सारा देश जाग चुका है। अत: सरकार को गोहत्या बन्द करनी ही पड़ेगी। " ५ नवम्बर १९६६ को प्रात: काल यह सत्याग्रही जत्था करोलबाग आर्यसमाज दिल्ली से जयघोषों से गगन को गुंजाता हुआ बाहर निकला। सत्याग्रह का नेतृत्व स्वामी धर्मानन्द जी एवं आचार्य भगवान्देव जी कर रहे थे। इस विशाल जत्थे के अनेक विभाग थे , जिनके विभागाध्यक्ष भी पृथक् - पृथक् थे। जैसे गुरुकुल झज्जर तथा तहसील झज्जर के सत्याग्रहियों के अध्यक्ष स्वामी शान्तानन्द जी , महम चौबीसी के जत्थे के वैद्य बलराज जी , पाकस्मा मण्डल के जत्थे के पं० रामचन्द्र जी आर्य ( भालोठ ) , गुरुकुल सिंहपुरा से सम्बन्धित जत्थे के श्री राममेहर जी एडवोकेट ( मकड़ौली ) , तथा रोहणा और निस्तौली आदि सत्याग्रहियों के श्री दरयावसिंह तथा पहलवान् बदनसिंह थे । 
          " गोरक्षा आन्दोलन में अब तक यह जत्था सब से विशाल तथा अपूर्व था। जिस भी बाजार से सत्याग्रही गोमाता की जय बोलते हुये निकलते थे वहीं की जनता इन्हें देखने के लिए उमड़ पड़ती थी। इस प्रकार ५ , ६ मील पैदल चलकर ये हरयाणे के वीर गृहमंत्री श्री गुलजारीलाल जी नन्दा की कोठी पर पहुंचे। जहां पुलिस पहले से ही भारी संख्या में पंक्ति बद्ध मोटा रस्सा पकड़े खड़ी थी। पुलिस के एक उच्च अधिकारी ने आचार्य जी से कहा कि आप से नन्दा जी मिलना चाहते हैं अत: थोड़ी देर आप लोग शान्ति से बैठे। दो घण्टे प्रतीक्षा करने के बाद नन्दा जी आये और आचार्य जी को वार्ता के लिए अन्दर ले गये। आचार्य जी के साथ रामगोपाल शालवाले , स्वामी धर्मानन्द जी आर्यसमाज करौलबाग दिल्ली और राममेहर वकील ( रोहतक ) भी थे। बातचीत में श्री गृहमंत्री जी ने सहानुभूति एवं विवशता प्रकट की। जिस पर आचार्य जी ने बाहर आकर सत्याग्रहियों को सत्याग्रह करने का आदेश दे दिया। हरयाणे के वीर गोमाता की जय बोल कर नन्दा जी की कोठी की ओर बढ़े। जिस पर पुलिस ने निर्दयता के साथ लाठी चार्ज कर के पीछे धकेलने का असफल प्रयास किया। सत्याग्रहियों को नितान्त अहिंसात्मक सत्याग्रह करने का आदेश था और वे इसका पालन भी पूर्ण निष्ठा से कर रहे थे। इधर पुलिस लाठी चूंसे तथा शिर के लोहे के टोप आदि का प्रयोग कर रही थी। यह हिंसा और अहिंसा का संघर्ष दर्शनीय था। जो हरयाणे के वीर डोगराई क्षेत्र में पाकिस्तान के गोले गोलियों की अग्निवर्षा में भी आगे बढ़ने का अभ्यास कर चुके थे वे इन बेचारे पुलिस वालों की लाठियों की क्या परवाह करते। इस संघर्ष में दिलीपसिंह मकड़ोली एवं खेमराज जी झज्जर को काफी चोटें आई और उन्हें बेहोश अवस्था में जेल ले जाया गया। 
           सत्याग्रहियों का उत्साह विशेष प्रशसनीय था। ५ नवम्बर १९६६ को रात्रि तक सब सत्याग्रही तिहाड़ जेल में पहुंचा दिये गये। वहां जेल अधिकारियों का व्यवहार नितान्त निन्दनीय था। प्रात: ३ , ४ बजे से सायंकाल तक सत्याग्रहियों को निराहार रहना पड़ता था। कभी आटा कम मिलता तो कभी लकड़ी कम होती थी। ७ नवम्बर १९६६ को यह जत्था निरपराधी मानकर जेल से छोड़ दिया। सब लोग ८ , ९ मील दौड़ते हुए रात्रि को पटेल नगर आर्यसमाज में पहुंचे। नगर में कर्फयू होने से भोजन की व्यवस्था न हो सकी अतः कुछ चने चबाकर ही सो गये। हरयाणे के इस वीर जत्थे से सरकार अधिक भयभीत थी अतः अगले दिन प्रात : काल ही पुलिस ने आर्यसमाज मन्दिर पटेल नगर , दिल्ली का घेरा डाल लिया तथा सबको बन्द गाड़ियों में बैठाकर तिहाड़ जेल भेज दिया। 
        जो सत्याग्रही कार्यवश आर्यसमाज मन्दिर से बाहर गये होने से गिरफ्तार न हो सके उन्होंने स्वामी धर्मानन्द जी के नेतृत्व में करोलबाग आर्यसमाज मन्दिर से सत्याग्रह किया। जिन पर पुलिस ने क्रूरता से लाठी चलाई। १३ सत्याग्रहियों को घातक चोटें लगी। जिन में स्वामी धर्मानन्द , श्री बनीसिंह आसन , श्री ब्रह्मचारी निजानन्द , कसानसिंह गांधरा , प्रीतसिंह आर्य पौली एवं राममेहर एडवोकेट का नाम विशेष उल्लेखनीय है। 
        गोरक्षा सत्याग्रह में ७ नवम्बर १९६६ का दिन सर्वदा स्मरण रहेगा जबकि देश भर के लगभग दस लाख गो भक्तों ने दिल्ली आकर संसद् भवन पर गोवध बन्दी की मांग को लेकर प्रदर्शन किया। लोकसभा भवन के सामने मंच पर साधु महात्मा और नेता बैठे थे। स्वामी रामेश्वरानन्द जी ( घरौंडा ) ने अपील की कि यदि सरकार नहीं सुनती है तो पार्लियामेंट को घेर लो। यह सुनते ही लोग संसद् भवन के द्वार पर लगे सीखचों पर चढ़ने लगे। तभी किसी ने माईक का तार काट दिया और आंसू गैस , लाठी तथा गोली चलने लगी। इस भीड़ में गुरुकुल झज्जर के ७ व्यक्ति थे। जैसे वैद्य बलवन्तसिंह ( बलियाना ) , मनुदेव ( फरमाणा ) , धर्मदेव ( हुमायूंपुर ) , योगानन्द शास्त्री ( भदानी ) , विरजानन्द ( भगड्याणा ) , धर्मपाल महाराष्ट्र आदि। इस गोलीकांड में शतश : साधु तथा अन्य लोग मारे गये , जिन्हें रात में ही कहीं ले जाकर जला दिया गया। गोभक्तों पर इतना बड़ा अत्याचार पहले कभी नहीं हुआ था। जब गोली चली तो भगदड़ मच गई। इसी अफरा - तफरी में गुरुकुल के सभी लोग बिछुड़ गये। योगानन्द शास्त्री और विरजानन्द लोकसभा भवन से कश्मीरी गेट , बस अड्डे तक पैदल आये और रात को गुरुकुल पहुंचे। शेष लोग दूसरे दिन प्रात: काल झज्जर पहुंचे।
          जेल के अन्दर अनेक सम्प्रदायों के महात्मा एवं भारत के कोने - कोने से आये गोभक्त सत्याग्रहियों का अति प्रेम से सत्संग होता था। प्रत्येक वार्ड में यज्ञ , सन्ध्या , कथा , व्याख्यान , सत्संग की व्यवस्था थी। अनेक प्रकार की कठिनाइयों के होते हुये भी सत्याग्रही एक अद्भुत मस्ती का अनुभव करते थे। जेल अधिकारियों के दुर्व्यवहार से दुखित होकर स्वामी रामेश्वरानन्द जी ने अनशन आरम्भ कर दिया। सात दिन होने पर भी जब अधिकारियों ने कोई ध्यान नहीं दिया तो जेल के सभी सत्याग्रहियों ने भी अनशन आरम्भ कर दिया जिस पर सरकार को झुकना पड़ा।
           इस जत्थे की पेशी २२ नवम्बर १९६६ को थी किन्तु मजिस्ट्रेट ने अचानक १९ नवम्बर को ही जेल से बाहर कर दिया। जेल में ब्रह्मचारी नियम पूर्वक व्यायाम , स्नान , संध्या , स्वाध्याय करते रहे। वहां का वातावरण गुरुकुल के समान ही पवित्र बन गया था। लोग उसे जेल न कहकर सत्संग भवन कहा करते थे और किसी प्रकार का कष्ट अनुभव नहीं करते थे। जेल के भीतर प्रतिदिन सायं चार बजे धार्मिक , भजन , उपदेश आदि होते थे। महात्मा रामचन्द्र वीर विराटनगर ( अलवर ) के सुपुत्र आचार्य धर्मेन्द्रनाथ जी के व्याख्यान तथा #श्री_नत्थासिंह आर्य भजनोपदेशक के भजन नित्यप्रति होते थे। 
          इसके बाद सत्याग्रह निरन्तर चलता रहा , गिरफ्तारियां होती रही। आचार्य भगवानदेव जी ने ३०० गोभक्तों के साथ १८ जनवरी १९६७ को तीसरी बार सत्याग्रह किया। इस बार भी गरुकुल झज्जर के अनेक ब्रह्मचारी इस सत्याग्रह में सम्मिलित थे। इस प्रकार ६ मास तक चलने वाले गोरक्षा आन्दोलन में गुरुकुल के ब्रह्मचारी तथा कार्यकर्ता कई बार सत्याग्रह करके जेल गये । न केवल गुरुकुल के ब्रह्मचारी ही अपितु गुरुकुल की विद्यार्य सभा के अधिकारी भी कई बार जेल गये थे । इस सत्याग्रह में गुरुकुल झज्जर तथा अन्य हरियाणा वासियों के योगदान के विषय में डॉ० सत्यकेतु ने लिखा है हिन्दी सत्याग्रह के समान अब गोरक्षा सत्याग्रह में भी हरयाणा का कर्त्तव्य प्रमुख रहा। हरियाणा के अनेक गुरुकुलों के प्राध्यापकों , ब्रह्मचारियों तथा कर्मचारियों ने भी सत्याग्रह में भाग लिया।
         इस बार आचार्य भगवानदेव जी के सत्याग्रही जत्थे को फिरोजपुर ( पंजाब ) की जेल में भेजा गया तथा एक मास की कैद की गई। इस जत्थे में गुरुकुल झज्जर के ब्रह्मचारियों के साथ रोहणा ग्राम के ५२ सत्याग्रही भी थे। तीन दिन बाद दिल्ली से सूचना आई कि सत्याग्रह के विषय में सरकार समझौता करना चाहती है अतः आचार्य जी को फिरोजपुर से दिल्ली बुलाया गया। इनके साथ दरयावसिंह आर्य रोहणा और ब्रह्मचारी दयानन्द कितलाना भी गये। दिल्ली जाकर पता लगा कि गोरक्षा की सफलता हेतु कोई समझौता न होकर केवल राजनीतिक दृष्टि से लाभ उठाने के लिए तत्कालीन जनसंघ के नेताओं ने गोरक्षा आन्दोलन के सूत्रधार चारों शंकराचार्य , स्वामी करपात्री , जैनमुनि सुशील कुमार आदि को झांसा देकर प्रभुदत्त ब्रह्मचारी और शंकराचार्य का अनशन तुड़वाया क्योंकि १९६७ के चुनाव निकट थे अत: गोरक्षा के कारण जनमत को कांग्रेस के विरुद्ध हुआ जानकर जनसंघ ने सत्ता प्राप्त करने का अवसर ढूंढा। सरसंघ चालक गुरु गोलवलकर को बीच में डालकर यह दांव खेला गया। गोरक्षा आन्दोलन के प्राण आचार्य भगवान्देव जी और प्रोफेसर रामसिंह इस चाल को समझ गये और उन्होंने समझौता करने से निषेध कर दिया। परन्तु जनसंघ के नेताओं को चुनाव की जल्दी थी , इसलिए जनता से विश्वासघात करके सत्याग्रह बन्द कर दिया और ये बलिदान तथा पुलिस के अत्याचार सहने वाले लोगों का तप , त्याग सब व्यर्थ होगया। 
            एक मास पश्चात् जब फिरोजपुर जेल से गुरुकुल के अध्यापक और ब्रह्मचारी छूटने थे तब श्री योगानंद शास्त्री और श्री बलवानसिंह इंजीनियर ( झाड़ली ) इनके पास फिरोजपुर गये और इन्हें लेकर भगतसिंह आदि के समाधि स्थल दिखाने ले गये। वहां उस स्थल की दुर्दशा देखकर सभी को कष्ट हुआ कि जिन वीरों ने देश की स्वतन्त्रता हेतु बलिदान दिया उनका समाधि स्थल उजाड़ जैसा पड़ा हो उनके फोटो फटे हुए हों। वहां कोई दार्शनीय स्थल जैसा कुछ नहीं था। अत: योगानन्द शास्त्री ने ज्ञानी जैलसिंह को पत्र लिखकर प्रार्थना की कि ऐसे वीरों की यादगार को भव्य रूप दिया जाना चाहिए। फलतः इस विषय में सरकार ने पूरा ध्यान दिया और अब वह स्थान अत्यन्त भव्य और दार्शनीय हो गया है।
नीचे फोटो में श्री आचार्य भगवान देव जी (स्वामी ओमानन्द जी) एवं महाशय रामपत वानप्रस्थी जी आसन्न वाले हैं।

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