Thursday, June 25, 2020

भारत के कलंक कौन हैं?

सफूरा जरगर को जमानत मिलने पर कुछ लोग सोशियल मीडिया पर इस तरह नाच रहे थे कि उसके सामने सावन मे मोर का नाच भी फीका पड़ गया। उनमे एक अल्ट्रा सेक्यूलर लेखक हैं  हैं। वे कुछ दिन पहले लिख रहे थे कि पाणिनी ( अष्टाध्यायी रचनाकार महर्षि पाणिनी) पता नहीं भारत के थे या कहीं अन्य देश के परन्तु उनका ज्ञान गलत था। उसी तरह के एक सुपर सेक्यूलर वकील साहब है जो दिल्ली दंगो के मास्टरमाइंड को फेसबुक पर अपनी वकालत की मुफ्त सेवाएँ देने के लिए उछल रहे थे। एक मीणा जी हैं जो सफूरा जरगर की जमानत पर नाच रहे थे तो दूसरे हंसराज मीणा जी ने ट्विटर पर अभियान चलाया था कि सफूरा को रिहा करो क्योंकि बेचारी गर्भवती है। 
पता नहीं इन्हे दिल्ली दंगो मे बलिदान हुए हेड कांस्टेबल रत्नलाल मीणा जी की याद क्यों नहीं आई। चलिए मान लेते हैं कि IB अधिकारी अंकित शर्मा ब्राह्मण था और एक ब्राह्मण के मरने पर किसी सेक्यूलर को दुखी नहीं होना चाहिए। शायद उन्हे लगा कि बलिदानी हेड कांस्टेबल रत्नलाल मीणा जी पर दुखी होना ठीक नहीं। क्योंकि पहले तो वो पुलिस मे थे, दूसरे हनुमान जी के भक्त थे ( वही हनुमान जी जिनके चित्र पर 2 अप्रैल 2018 को इन भीम मीम वालों ने जूते मारे थे) तीसरे अपने ब्राह्मण अधिकारी DCP अमित शर्मा को बचाने की कोशिश कर रहे थे। 
कुछ दिन पहले एक भीम मीम वाले परिचित से बात हुई। उनका परिचय यह है कि जेब मे 5000 साल के स्वर्णों द्वारा दलित उत्पीड़न के डोक्यूमेंट लेकर घूमते हैं और जहां भी कम पढ़ा लिखा SC/OBC नवयुवा मिले उसे जरूर पढ़ाते हैं। ये अलग बात है कि एक बार उन्होने मुझे भी पढ़ाने की कोशिश की पर जब मैंने कुछ प्रश्न किए तो उस दिन से मेरे सामने वो 5000 साल पुराने डोक्यूमेंट नहीं दिखाते। दूसरी उनकी विशेषता है कि हम कागज नहीं दिखाएंगे के बहुत बड़े समर्थक हैं।  उदित राज, और चंद्रशेखर रावण के बहुत बड़े प्रशंसक हैं। जब से उन्हे पता चला कि सफूरा जरगर गर्भवती है तब से शाहीन बाग धरने पर ना जाने से दुखी हैं। अब शाहीन बाग के दूसरे धरने का इंतजार कर रहे हैं ताकि किसी दूसरी सफूरा को अपनी सेवाएँ दे सकें। एक बार मैंने मज़ाक मे कहा कि पाकिस्तान की ISI बमो मे AI व्यवस्था कर रही है। जय भीम कहने से वह बम नहीं फटेगा तो उस दिन से मुझ से नाराज हो गए। 
इन सब प्राणियों की विशेषता यह है कि ये रविश कुमार के बड़े फैन हैं। पूरे भारत मे इन्हे 4 यूनिवर्सिटी ही विद्वानो का अड्डा लगती हैं। JNU, AMU, जामिया और जादवपुर यूनिवर्सिटी। संविधान की किताब लेकर के, अंबेडकर का चित्र लगाकर तथा तिरंगे को हाथ में लेकर के आंदोलन करने की बात करते हैं उसी मंच के नीचे भारत के संविधान को अपना सबसे बड़ा दुश्मन बताने की बात की जाती है भारत की न्यायपालिका को मुसलमानों का दुश्मन बताने की कोशिश की जाती है  इस देश के संसाधनों का उपयोग किया इस देश के अच्छे कॉलेज और विश्वविद्यालय में शिक्षा प्राप्त की और उसके बाद भी देश के प्रति इतना जहर कि किस प्रकार से रेल की पटरी पर मवाद फैलाया जाए यह शाहिनबाग में बैठी महिलाओं और बच्चों को समझा रहा है 

 यह तो सिर्फ उसके नाम पर अपनी एकजुटता दिखाकर के देश के खिलाफ युद्ध की तैयारी प्रतीत होती है ऐसा लगता है यह बहुत कुछ तय करके आए हैं अच्छी-अच्छी विश्वविद्यालयों से शिक्षा प्राप्त लोग, गैर पढ़े लिखे लोगों को भड़का रहे हैं भारत के विरोध में। यह हिंदुत्व का विरोध कर रहे हैं यह भारत का विरोध कर रहे हैं यह भारत की संसद का विरोधकर रहे हैं यह भारत के संविधान का विरोध कर रहे हैं और यह सब इस देश के टुकड़े करने की तैयारी करते हुए प्रतीत हो रहे है

 आस्तीन के साँप हैं। इनसे सावधान रहिए 

1. विश्वविद्यालयों में बीफ फेस्टिवल बनाना अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझते है और अपने आपको अहिंसा महात्मा बुद्ध का शिष्य बताते हैं।

2. कश्मीर के पाक समर्थक आतंकियों को क्रांतिकारी और भारतीय सेना को बलात्कारी बताते हैं।

3. होली, दिवाली को प्रदुषण पर्व और बकरीद को भाईचारे का पर्व बताते हैं।

4. रोहिंग्या और बांग्लादेशियों को देश बसाने की वकालत और देश के सवर्णों को विदेशी आर्य बताते हैं।

5. कर्नल पुरोहित और असीमानन्द को देशद्रोही और याकूब मेनन को निर्दोष बताते हैं।

6. हिन्दू समाज की सभी मान्यताओं को अन्धविश्वास और इस्लाम/ईसाइयत में विज्ञान खोजते हैं।

7. हिन्दू देवी देवताओं की अश्लील तस्वीरों को अभिव्यक्ति कि स्वतंत्रता और मकबूल फ़िदा हुसैन को महान बताते हैं।

8. विदेशियों के वेदों के अनर्गल अर्थों को सही और स्वामी दयानन्द कृत वेदों के भाष्य को असंगत एवं अपूर्ण बताते हैं।

9. आर्यों को विदेशी और मुसलमान अल्पसंख्यकों का इस देश के संसाधनों पर पहला अधिकार बताते हैं।

10. गौमांस खाना मानवीय अधिकार और गौरक्षकों को गुंडा बोलते हैं।

11. श्री राम और श्री कृष्ण को मिथक और मुग़ल शासकों को महान और न्यायप्रिय बताते हैं।

12. इस्लामक आक्रांताओं को महान और छत्रपति शिवाजी को डरपोक/भगोड़ा बताते हैं।

13. ईसाईयों के छल-कपट से किये गए धर्मान्तरण को उचित और धर्मान्तरित हिन्दुओं की घर वापसी को अत्याचार बताते हैं।

14. लव जिहाद को प्रेम की अभिव्यक्ति और उसके विरोध को अत्याचार बताते हैं।

15. मुसलमानों की दर्जनों औलाद पैदा होने को अधिकार और हिन्दुओं द्वारा जनसँख्या नियंत्रण कानून बनाने को पिछड़ी सोच बताते हैं।

16. मौलवियों के अनाप-शनाप फतवों का समर्थन और तीन-तलाक पर कानून बनाने का विरोध करते हैं।

17. भारत में ब्रिटिश हुकूमत को न्यायप्रिय शासन एवं हिन्दू स्वराज की सोच को काल्पनिक बताते हैं।

18. उत्तर पूर्वी राज्यों से अफ़सा कानून हटाने की और चर्च की मान्यताओं के अनुसार सरकारी नियम बनाने की बात करते हैं।

19. नवरात्र के व्रत को ढोंग और इस्लामिक रोज़े को महान कृत्य बताते हैं।

20. सरकार को अत्याचारी और माओवादी नक्सलियों को संघर्ष करने वाला योद्धा बताते हैं।

21. भारत तेरे टुकड़े होंगे, कश्मीर की आज़ादी ऐसा नारा लगाने वालों का समर्थन और इनका विरोध करने वालों को भक्त कहते हैं।

22. NGO के नाम पर विदेशों से चंदा लेकर भारत में लगने वाली बड़ी परियोजनाओं को प्रदुषण के नाम पर बंद करवाते हैं।

23. वनवासियों को निर्धन रखकर भड़काते हैं और उन्हें नक्सली बनाते हैं।

24. संयम/सदाचार युक्त जीवन को पुरानी सोच एवं शराब पीने, चरित्रहीन और भ्रष्ट बनने को आधुनिक बताते हैं।

25. Voice of dissent के नाम पर देश, संस्कृति और सभ्यता के विरुद्ध जो भी कार्य हो उसका हर संभव समर्थन करते हैं।

यह छोटी से सूची है।  भेड़ की खाल ओढ़े इन भेड़ियों को पिछले 70 वर्षों से पोषित किया जा रहा हैं। इनके अनेक रूप है। मानवाधिकार कार्यकर्ता, विश्वविद्यालय में शिक्षक, NGO धंधे वाले, लेखक, पत्रकार, राजनीतिज्ञ, शोधकर्ता, छात्र नेता, चिंतक, बुद्धिजीवी, शोधकर्ता आदि। इनके समूल को नष्ट करने के लिए हिन्दू समाज को संगठित होकर नीतिपूर्वक संघर्ष करना पड़ेगा। इनकी जड़े बहुत गहरी हैं। 
पूरा वीडियो देखें 

https://www.youtube.com/watch?v=K7E1fKLL38Q

कब्र पूजा – मुर्खता अथवा अंधविश्वास।

चंद दिनों पहले अमिश देवगन टीवी रिपोर्टर ने मीडिया में अजमेर के ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती पर एक बयान दिया था। उनके इस बयान के विरुद्ध प्रतिक्रिया होने पर उन्होंने क्षमा मांग ली। सन 2009 में मैं दिल्ली आया था। उस समय हिन्दू राइटर फोरम के स्वर्गीय कृषणवल्लभ पालीवाल जी से मेरा विचार मन्थन अनेक विषयों पर होता था। उन्होंने मुझे ख्वाजा के इतिहास के विषय में खोज करने को कहा। उस समय तक मैंने पं गंगाप्रसाद उपाध्याय जी का मज़ार पूजा विषयक एक ट्रैक्ट ही पढ़ा था। साथ में एक अन्य अंग्रेजी पुस्तक के माध्यम से पता चला था कि 1920-30 के दशक में आर्यसमाज ने संयुक्त प्रान्त में एक विशेष आंदोलन हिन्दुओं की कब्र पूजा छुड़वाने के लिए चलाया था। उनका मुख्य लक्ष्य बहराइच स्थित सालार गाज़ी मियां की दरगाह था। मैंने नई सड़क से दो भागों में इस्लामिक इतिहासकार सैयद अतहर अब्बास रिज़वी की हिस्ट्री ऑफ़ सूफिज्म इन इंडिया ( A History of Sufism in India by Saiyid Athar Abbas Rizvi and S.S. Husain) की पुस्तक खरीद कर उसे अद्योपरांत पढ़ी। उसमें से सामग्री के आधार पर अंग्रेजी में तीन लेख लिखे। लेखों को इतना प्रोत्साहन मिला की उनका हिंदी अनुवाद भी किया। उसी लेख की सामग्री के आधार पर यह लेख कब्र पूजा: मूर्खता और अन्धविश्वास लिखा। मैं इसे छपवाकर विश्व पुस्तक मेले नई दिल्ली प्रगति मैदान और स्वामी श्रद्धानन्द बलिदान दिवस , रामलीला मैदान में बांटने गया। पालीवाल जी ने यह लेख देखकर मेरी पीठ थपथपाई और अपनी एक पुस्तक में इस सारी सामग्री का प्रयोग किया। पिछले 10 वर्षों में यह लेख लाखों बार पढ़ा गया। अनेक बार मेरा नाम हटाकर लोगों ने सोशल मीडिया में शेयर किया। अनेक यूट्यूब चैनल पर इस सामग्री के आधार पर वीडियो बनाये गए। सभी ने मिलकर परिश्रम किया। हज़ारों युवकों ने परस्पर वार्तालाप में मुझे बताया कि उन्होंने स्वयं अनेकों की कब्र पूजा इस लेख की सहायता से छुड़वाई हैं।  इस अभियान का आप भी भाग बने  यह लेख सभी हिन्दुओं को पढ़ाये और इस कब्रपूजा रूपी अन्धविश्वास से हिन्दुओं को मुक्ति दिलाये। 

कब्र पूजा – मुर्खता अथवा अंधविश्वास

 गर्मियों में देश के प्रधानमंत्री मोदी जी द्वारा अजमेर में दरगाह शरीफ पर चादर चढ़ाने के लिए बीजेपी के वरिष्ठ नेता मुख्तार अब्बास नक़वी को अजमेर भेजने हैं। यह समाचार भी आपने पढ़ा होगा। पूर्व में भी बॉलीवुड का कोई प्रसिद्द अभिनेता अभिनेत्री अथवा क्रिकेट के खिलाड़ी अथवा राजनेता चादर चदाकर अपनी फिल्म को सुपर हिट करने की अथवा आने वाले मैच में जीत की अथवा आने वाले चुनावो में जीत की दुआ मांगता रहा हैं। बॉलीवुड की अनेक फिल्मों में मुस्लिम कलाकारों ने अजमेर शरीफ की प्रशंसा में अनेक कव्वालियां गाई हैं जिसमें ए. आर. रहमान की अकबर फ़िल्म का ख्वाजा मेरे ख्वाजा सबसे प्रसिद्द हैं। पाठकों को जानकार आश्चर्य होगा की सन 2006 में UPA सरकार द्वारा NCERT बोर्ड के अंतर्गत लगाए गई इतिहास पुस्तक में भी ख्वाजा की चर्चा हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रतीक सूफी संत के रूप में की गई हैं। भारत की नामी गिरामी हस्तियों के दुआ मांगने से साधारण जनमानस में एक भेड़चाल सी आरंभ हो गयी है की अजमेर में दुआ मांगे से बरकत हो जाएगी , किसी की नौकरी लग जाएगी , किसी के यहाँ पर लड़का पैदा हो जायेगा , किसी का कारोबार नहीं चल रहा हो तो वह चल जायेगा, किसी का विवाह नहीं हो रहा हो तो वह हो जायेगा। 

कुछ प्रश्न हमें अपने दिमाग पर जोर डालने को मजबूर कर रहे हैं जैसे की यह गरीब नवाज़ कौन थे ?कहाँ से आये थे? इन्होने हिंदुस्तान में क्या किया और इनकी कब्र पर चादर चदाने से हमे सफलता कैसे प्राप्त होती है?

गरीब नवाज़ भारत में लूटपाट करने वाले , हिन्दू मंदिरों का विध्वंश करने वाले ,भारत के अंतिम हिन्दू राजा पृथ्वी राज चौहान को हराने वाले व जबरदस्ती इस्लाम में धर्म परिवर्तन करने वाले मुहम्मद गौरी के साथ भारत में शांति का पैगाम लेकर आये थे। पहले वे दिल्ली के पास आकर रुके फिर अजमेर जाते हुए उन्होंने करीब 700  हिन्दुओ को इस्लाम में दीक्षित किया और अजमेर में वे जिस स्थान पर रुके उस स्थान पर तत्कालीन हिन्दू राजा पृथ्वी राज चौहान का राज्य था। ख्वाजा के बारे में चमत्कारों की अनेको कहानियां प्रसिद्ध है की जब राजा पृथ्वी राज के सैनिको ने ख्वाजा के वहां पर रुकने का विरोध किया क्योंकि वह स्थान राज्य सेना के ऊँटो को रखने का था तो पहले तो ख्वाजा ने मना कर दिया फिर क्रोधित होकर शाप दे दिया की जाओ तुम्हारा कोई भी ऊंट वापिस उठ नहीं सकेगा।  जब राजा के कर्मचारियों ने देखा की वास्तव में ऊंट उठ नहीं पा रहे है तो वे ख्वाजा से माफ़ी मांगने आये और फिर कहीं जाकर ख्वाजा ने ऊँटो को दुरुस्त कर दिया। दूसरी कहानी अजमेर स्थित आनासागर झील की हैं। ख्वाजा अपने खादिमो के साथ वहां पहुंचे और उन्होंने एक गाय को मारकर उसका कबाब बनाकर खाया। कुछ खादिम पनसिला झील पर चले गए कुछ आनासागर झील पर ही रह गए। उस समय दोनों झीलों के किनारे करीब 1000 हिन्दू मंदिर थे, हिन्दू ब्राह्मणों ने मुसलमानो के वहां पर आने का विरोध किया और ख्वाजा से शिकायत कर दी।

ख्वाजा ने तब एक खादिम को सुराही भरकर पानी लाने को बोला।  जैसे ही सुराही को पानी में डाला तभी दोनों झीलों का सारा पानी सुख गया।  ख्वाजा फिर झील के पास गए और वहां स्थित मूर्ति को सजीव कर उससे कलमा पढवाया और उसका नाम सादी रख दिया। ख्वाजा के इस चमत्कार की सारे नगर में चर्चा फैल गई। पृथ्वीराज चौहान ने अपने प्रधान मंत्री जयपाल को ख्वाजा को काबू करने के लिए भेजा। मंत्री जयपाल ने अपनी सारी कोशिश कर डाली पर असफल रहा और ख्वाजा नें उसकी सारी शक्तिओ को खत्म कर दिया।  राजा पृथ्वीराज चौहान सहित सभी लोग ख्वाजा से क्षमा मांगने आये।  काफी लोगो नें इस्लाम कबूल किया पर पृथ्वीराज चौहान ने इस्लाम कबूलने इंकार कर दिया। तब ख्वाजा नें भविष्यवाणी करी की पृथ्वी राज को जल्द ही बंदी बना कर इस्लामिक सेना के हवाले कर दिया जायेगा। निजामुद्दीन औलिया जिसकी दरगाह दिल्ली में स्थित हैं ने भी ख्वाजा का स्मरण करते हुए कुछ ऐसा ही लिखा है।

           बुद्धिमान पाठकगन स्वयं अंदाजा लगा सकते हैं की इस प्रकार के करिश्मो को सुनकर कोई मुर्ख ही इन बातों पर विश्वास ला सकता है। भारत में स्थान स्थान पर स्थित कब्रे उन मुसलमानों की हैं जो भारत पर आक्रमण करने आये थे और हमारे वीर हिन्दू पूर्वजो ने उन्हें अपनी तलवारों से परलोक पंहुचा दिया था। ऐसी ही एक कब्र बहरीच गोरखपुर के निकट स्थित है।  यह कब्र गाज़ी मियां की है। गाज़ी मियां का असली नाम सालार गाज़ी मियां था एवं उनका जन्म अजमेर में हुआ था। इस्लाम में गाज़ी की उपाधि किसी काफ़िर यानि गैर मुसलमान को क़त्ल करने पर मिलती थी। गाज़ी मियां के मामा मुहम्मद गजनी ने ही भारत पर आक्रमण करके गुजरात स्थित प्रसिद्ध सोमनाथ मंदिर का विध्वंश किया था। कालांतर में गाज़ी मियां अपने मामा के यहाँ पर रहने के लिए गजनी चला गया। कुछ काल के बाद अपने वज़ीर के कहने पर गाज़ी मियां को मुहम्मद गजनी ने नाराज होकर देश से निकला दे दिया। उसे इस्लामिक आक्रमण का नाम देकर गाज़ी मियां ने भारत पर हमला कर दिया।  हिन्दू मंदिरों का विध्वंश करते हुए,हजारों हिन्दुओं का क़त्ल अथवा उन्हें गुलाम बनाते हुए, नारी जाति पर अमानवीय कहर बरपाते हुए गाज़ी मियां ने बाराबंकी में अपनी छावनी बनाई और चारो तरफ अपनी फौजे भेजी। कौन कहता है की हिन्दू राजा कभी मिलकर नहीं रहे? मानिकपुर,बहराइच आदि के 24 हिन्दू राजाओ ने राजा सोहेल देव पासी के नेतृत्व में जून की भरी गर्मी में गाज़ी मियां की सेना का सामना किया और उसकी सेना का संहार कर दिया। राजा सोहेल देव ने गाज़ी मियां को खींच कर एक तीर मारा जिससे की वह परलोक पहुँच गया। उसकी लाश को उठाकर एक तालाब में फेंक दिया गया।  हिन्दुओं ने इस विजय से न केवल सोमनाथ मंदिर के लूटने का बदला ले लिया था बल्कि अगले 200 सालों तक किसी भी मुस्लिम आक्रमणकारी का भारत पर हमला करने का दुस्साहस नहीं हुआ।
                                                                                                                 कालांतर में फ़िरोज़ शाह तुगलक ने अपनी माँ के कहने पर बहरीच स्थित सूर्य कुण्ड नामक तालाब को भरकर उस पर एक दरगाह और कब्र गाज़ी मियां के नाम से बनवा दी जिस पर हर जून के महीने में सालाना उर्स लगने लगा। मेले में एक कुण्ड में कुछ बेहरूपियें बैठ जाते है और कुछ समय के बाद लाइलाज बिमारिओं को ठीक होने का ढोंग रचते है। पूरे मेले में चारों तरफ गाज़ी मियां के चमत्कारों का शोर मच जाता है और उसकी जय-जयकार होने लग जाती है।  हजारों की संख्या में मुर्ख हिन्दू औलाद की, दुरुस्ती की, नौकरी की, व्यापार में लाभ की दुआ गाज़ी मियां से मांगते है, शरबत बांटते है , चादर चदाते है और गाज़ी मियां की याद में कव्वाली गाते है।

कुछ सामान्य से 10  प्रश्न हम पाठको से पूछना चाहेंगे?

1 .क्या एक कब्र जिसमे मुर्दे की लाश मिट्टी में बदल चूँकि है वो किसी की मनोकामनापूरी कर सकती है?

2. सभी कब्र उन मुसलमानों की है जो हमारे पूर्वजो से लड़ते हुए मारे गए थे, उनकी कब्रों पर जाकर मन्नत मांगना क्या उन वीर पूर्वजो का अपमान नहीं है जिन्होंने अपने प्राण धर्म रक्षा करते की बलि वेदी पर समर्पित कर दियें थे?

3. क्या हिन्दुओ के राम, कृष्ण अथवा 33 कोटि देवी देवता शक्तिहीन हो चुकें है जो मुसलमानों की कब्रों पर सर पटकने के लिए जाना आवश्यक है?

4. जब गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहाँ हैं की कर्म करने से ही सफलता प्राप्त होती हैं तो मजारों में दुआ मांगने से क्या हासिल होगा?

5. भला किसी मुस्लिम देश में वीर शिवाजी, महाराणा प्रताप, हरी सिंह नलवा आदि वीरो की स्मृति में कोई स्मारक आदि बनाकर उन्हें पूजा जाता है तो भला हमारे ही देश पर आक्रमण करने वालो की कब्र पर हम क्यों शीश झुकाते है?

6. क्या संसार में इससे बड़ी मुर्खता का प्रमाण आपको मिल सकता है?

7.. हिन्दू जाति कौन सी ऐसी अध्यात्मिक प्रगति मुसलमानों की कब्रों की पूजा कर प्राप्त कर रहीं है जिसका वर्णन पहले से ही हमारे वेदों- उपनिषदों आदि में नहीं है?

8. कब्र पूजा को हिन्दू मुस्लिम एकता की मिसाल और सेकुलरता की निशानी बताना हिन्दुओ को अँधेरे में रखना नहीं तो ओर क्या है?

9. इतिहास की पुस्तकों कें गौरी – गजनी का नाम तो आता हैं जिन्होंने हिन्दुओ को हरा दिया था पर मुसलमानों को हराने वाले राजा सोहेल देव पासी का नाम तक न मिलना क्या हिन्दुओं की सदा पराजय हुई थी ऐसी मानसिकता को बना कर उनमें आत्मविश्वास और स्वाभिमान की भावना को कम करने के समान नहीं है?

10. क्या हिन्दू फिर एक बार 24 हिन्दू राजाओ की भांति मिल कर संगठित होकर देश पर आये संकट जैसे की आंतकवाद, जबरन धर्म परिवर्तन ,नक्सलवाद,लव जिहाद, बंगलादेशी मुसलमानों की घुसपैठ आदि का मुंहतोड़ जवाब नहीं दे सकते?

आशा हैं इस लेख को पढ़ कर आपकी बुद्धि में कुछ प्रकाश हुआ होगा।  अगर आप आर्य राजा राम और कृष्ण जी महाराज की संतान हैं तो तत्काल इस मुर्खता पूर्ण अंधविश्वास को छोड़ दे और अन्य हिन्दुओ को भी इस बारे में प्रकाशित करें।

इस लेख से सम्बंधित अन्य कुछ हिंदी/अंग्रेजी लेख

True Face of Sufism 

https://vedictruth.blogspot.com/2015/01/true-face-of-sufism.html

Khwaja Muinuddin Chisti / Nizamuddin Auliya – The Real Face

https://vedictruth.blogspot.com/2013/09/khwaja-muinuddin-chisti-nizamuddin.html

सूफियों द्वारा भारत का इस्लामीकरण

https://vedictruth.blogspot.com/2015/10/blog-post.html

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Sunday, June 21, 2020

इस्लाम में स्वतंत्र चिंतन की मांग।

हैरिस सुलतान की पुस्तक ‘द कर्स ऑफ गॉड:  ह्वाय आई लेफ्ट इस्लाम’  में वैज्ञानिक तर्कों से इस्लामी विचारों और परंपराओं की समालोचना है। उन की पड़ताल के बिन्दु हैं – 1. क्या अल्लाह के होने का कोई सबूत है?  2. क्या इस्लाम में बताई गई नैतिकता अच्छी है?  3. क्या इस्लाम में दी गई जानकारियाँ सही हैं ?

उन्होंने पाया कि अल्लाह की तमाम बातों से तो बच्चे जैसी वह मानसिकता मालूम होती है, जो मामूली बात पर भी रूठने, चिल्लाने, धमकी देने लगता हो: ‘मेरी पूजा करो, वरना मार डालूँगा’! उस में अपना अस्तित्व दिखा सकने की भी क्षमता या बुद्धि नहीं है। अल्लाह छिपा हुआ है, मगर शिकायत करता है कि हम उसे नहीं मानते। फिर इस गॉड, यहोवा या अल्लाह ने अपने संदेशवाहक (प्रॉफेट) को एक नामालूम से अरब क्षेत्र में ही क्यों भेजे? बड़े-बड़े इलाकों अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, चीन, आदि में रहने वाले करोड़ों लोगों को संदेश देना क्यों नहीं सूझा? इन महाद्वीपों ने तो सदियों तक मुहम्मद का नाम भी नहीं सुना। तब उन करोडों निर्दोष लोगों को अल्लाह ने अपने संदेश से वंचित, और इस प्रकार, इस्लाम न मानने से जहन्नुम का भागी क्यों बनाया? अतः या तो इस्लाम न मानने में कोई बुराई नहीं, न कोई जहन्नुम है, या फिर अल्लाह को ही दुनिया का पता नहीं है!

फिर, कुरान स्पष्ट नहीं है। सुन्नी और शिया अपना-अपना मतलब निकालते हैं। दोनों सही नहीं हो सकते। यह शुरू से चल रहा है। यानी कुरान आसानी से गलत समझी जा सकती है। यह कोई बढ़िया किताब होने का सबूत नहीं। इसे कमजोर तरीके से लिखा गया, या इस की बातें ही कमजोर हैं। तथ्यगत जानकारियों की दृष्टि से भी कुरान में कोई ऐसा ज्ञान नहीं जिससे वैज्ञानिक, चिंतक, आविष्कारक जैसे लोग बन सकें। एक ओर दावा है कि उस में सारी साइंटिफिक बातें हैं, दूसरी ओर सदियों से दुनिया में कभी कोई मुस्लिम साइंटिस्ट नहीं बना। जो इक्के-दुक्के हुए भी, वे काफिर देशों में, काफिरों की संस्थाओं में पढ़कर, काफिर साइंटिस्टों की सोहबत में ही हुए। यह दिखाता है कि इस्लामी किताबें दुनिया के बारे में भी सही जानकारियों से खाली हैं।

यह तथ्य उस दावे को भी काटता है कि सारी दुनिया, धन-संपत्ति, बढ़िया चीजें, अल्लाह ने मुसलमानों के लिए बनाई हैं। वास्तव में यह सब काफिरों को ही सदिय़ों से, इस्लाम से पहले से और आज भी हासिल हैं। अल्लाह के अनुसार चलते हुए मुसलमानों ने अपने बूते कभी कुछ नहीं बनाया, न आज बना पाते हैं। जबकि बिना अल्लाह की परवाह किए, स्वतंत्र चिंतन और वैज्ञानिक शोध से हर तरह के काफिरों ने सैकड़ों आविष्कार किए, नई तकनीकें और बेहतरीन चीजें बनाईं। इस्लाम से पहले भी और आज भी। काफिर सारी दुनिया में हर क्षेत्र में उपलब्धियाँ हासिल करते रहे हैं। मुसलमान ऐसा क्यों नहीं कर सके?

उलटे ठीक अरब, जहाँ अल्लाह के संदेश और संदेशवाहक मुहम्मद आए, जहाँ अरब को शत-प्रतिशत इस्लामी बनाकर वहाँ से यहूदियों, क्रिश्चियनों और पगानों (अनेक देवी-देवताओं को मानने वाले) को मार भगाया या खत्म किया गया – वही अरब सब से पिछड़े और कमजोर बने रहे! वह भी सदियों से लगातार। इस का संबंध इस्लामी विचार-व्यवहार से है, वरना दक्षिण कोरिया एक मामूली पिछड़े गाँव जैसी चीज से पचास वर्ष में विश्व का एक तकनीकी सुपरपावर बन गया! अब मुसलमान भी इसे समझने लगे हैं कि इस्लाम वैज्ञानिक, तकनीकी, आर्थिक, और सांस्कृतिक पिछड़ेपन का एक कारक है।

सो, कई कारणों से मुसलमानों में मुलहिद बढ़ रही है। एक आकलन से पाकिस्तान में 40 लाख, तुर्की में 48 लाख, मलेशिया में 18 लाख, और सऊदी अरब में 16 लाख लोग नास्तिक हैं। वे स्वतंत्र चिंतन की आजादी की माँग कर रहे हैं। यह सरासर अनुचित है कि कोई इस्लाम न माने, तो उसे मार डालें। यह इस्लाम की कुंठा, टैबू भी दिखाता है। वह सवालों को प्रतिबंधित रखना चाहता है। खुला विचार-विमर्श ही इस अटपटेपन का इलाज है।

हैरिस एक महत्वपूर्ण तथ्य पर ध्यान दिलाते हैं। कई बर्बर प्रथाओं का मजाक उड़ाते रहने से ही अंततः उसे छोड़ा गया। सऊदी अरब में स्त्रियों को जो अधिकार मिल रहे हैं, वह दुनिया हँसी उड़ने से ही संभव हुआ कि स्त्री कार क्यों नहीं चला सकती? दफ्तरों में काम क्यों नहीं कर सकती? अकेले बाजार क्यों नहीं जा सकती? इसलिए व्यर्थ इस्लामी विचारों की आलोचना करना, उन का मजाक बनाना अच्छा है। इस से मुस्लिम शासकों पर मानवीयता का दबाव पड़ता है। इस्लाम के ‘सम्मान’ के नाम पर चुप्पी, या आलोचकों को दंडित करना, मुसलमानों की हानि ही करना है जो अनुचित बंधनों में जकड़े रखे गए हैं।  अपनी पुस्तक के औचित्य में हैरिस पूछते हैं कि मुसलमानों को क्या अधिकार है कि वे तो दूसरों को उपदेश देंगे, पर दूसरे उन्हें उपदेश नहीं दे सकते? यदि मुसलमान समझते हैं कि वे सही हैं, और दूसरे गलत, तो इस की जाँच-पड़ताल चलनी चाहिए। तब हो सकता है कि उलटा ही निष्कर्ष मिले।

हैरिस की पुस्तक का बड़ा हिस्सा कुरान में तथ्य जैसी बातों का वैज्ञानिक विश्लेषण है। अन्य हिस्से में सामाजिक, बौद्धिक दावों और इतिहास की समीक्षा है। जैसे, इस्लामी विद्वानों का यह कहना गलत है कि इस्लामी विचार बदले नहीं जा सकते क्योंकि वे ‘अल्लाह के शब्द’ हैं। लेकिन वही विद्वान इस्लामी किताबों में दी गई गुलामी, सेक्स-गुलामी, पत्नी को मारने-पीटने वाले निर्देश, आदि की आज भिन्न व्याख्या करने की कोशिश करते हैं। यह 150 साल पहले नहीं होता था। उन बातों को जस का तस रखा, बताया, समझाया जाता था। लेकिन अब उस से इंकार करते हुए घुमावदार बातें होती हैं। यहाँ तक कहा जाता जाता है कि प्रोफेट मुहम्मद ने ही गुलामी खत्म की! यह न केवल गलत है, बल्कि सौ साल पहले तक किसी इस्लामी व्य़ाख्या में नहीं कहा जाता था। यह एक उदाहरण भर है।

वस्तुतः कुरान और सुन्ना के अनेक कायदे कई मुस्लिम देशों में छोड़े जा चुके। पाकिस्तान या तुर्की के जीवन में संगीत और कला की आम स्वीकृति इस्लाम-विरुद्ध है। पर बदस्तूर चल रही है। यह साबित करता है कि इस्लामी विचार बदले जा रहे हैं, चाहे वे अल्लाह के निर्देश हों या न हों। इस्लाम में एक मात्र ईनाम या उपलब्धि है – मरने पर जन्नत जाना। अल्लाह या प्रोफेट ने यही कहा है। इस के अलावा इस दुनिया में काफिरों को हराकर उन का माल, और उन की स्त्रियों, बच्चों को गुलाम बना कर बेचने से मिला गनीमा। बस। लेकिन उस जन्नत के अस्तित्व का, या वह केवल मुसलमानों के लिए रिजर्व होने का सबूत क्या है? शून्य। तब इस्लाम के लिए सारी लड़ाई, छल-प्रपंच, आदि करते रहना कौन सी बुद्धिमानी है!

हैरिस मुसलमानों को कहते हैं कि उस काल्पनिक जन्नत के लिए इस्लाम द्वारा हराम ठहराई गई सभी चीजों: संगीत, कला, किसी से दोस्ती चाहे वह कोई भी धर्म माने या नास्तिक हो, मिल-जुल कर रहने, आदि से वंचित रहना बेतुकी बात है! अपने पिता और भाई को भी ठुकराएं, यदि वह इस्लाम न मानें (कुरान, 9-23)। इस तरह, आप दुनिया की आधी आबादी को सताने की ठाने रहें, ताकि आप को जन्नत मिले, बड़ी बेढ़ब सीख है। महान लेखक अनातोले फ्रांस को उद्धृत करते हैरिस कहते हैं, ‘‘यदि 5 करोड़ लोग भी कोई मूर्खतापूर्ण बात कह रहे हों, तब भी वह बात मूर्खतापूर्ण ही रहेगी।’’

- डॉ. शंकर शरण (१६ जून २०२०)

Tuesday, June 16, 2020

बॉलीवुड का इस्लामीकरण कैसे हुआ....?

सभी जानते हैं कि संजय दत्त के पिता सुनील दत्त एक #हिंदू थे और उनकी पत्नी फातिमा राशिद यानी नर्गिस एक मुस्लिम थी।

लेकिन दुर्भाग्य देखिए कि संजय दत्त ने हिंदू धर्म को छोड़कर इस्लाम #कबूल कर लिया लेकिन वह इतना चतुर भी है कि अपना फिल्मी नाम नहीं बदला।

जरा सोचिए कि हम सभी लोग इन कलाकारों पर हर साल कितना धन खर्च करते हैं। सिनेमा के मंहगा टिकटों से लेकर केबल टीवी के बिल तक।

हमारे नादान बच्चे भी अपने #जेबखर्च में से पैसे बचाकर इनके पोस्टर खरीदते हैं और इनके प्रायोजित टीवी कार्यक्रमों में शामिल होने के लिए हजारों रुपए के फोन करते हैं।

एक विचारणीय बिन्दू यह भी है कि बाॅलीवुड में शादियों का तरीका ऐसा क्यों है कि #शाहरुख खान की पत्नी गौरी छिब्बर एक हिंदू है।

आमिर खान की पत्नियां रीमा दत्ता /किरण राव और सैफ अली खान की पत्नियाँ अमृता सिंह / करीना कपूर दोनों हिंदू हैं।

इसके पिता नवाब पटौदी ने भी हिंदू लड़की शर्मीला टैगोर से शादी की थी।

फरहान अख्तर की पत्नी अधुना भवानी और फरहान आजमी की पत्नी आयशा टाकिया भी हिंदू हैं।

अमृता अरोड़ा की शादी एक मुस्लिम से हुई है जिसका नाम शकील लदाक है।

सलमान खान के भाई अरबाज खान की पत्नी मलाइका अरोड़ा हिंदू हैं और उसके छोटे भाई सुहैल खान की पत्नी सीमा सचदेव भी हिंदू हैं।

अनेक उदाहरण ऐसे हैं कि हिंदू अभिनेत्रियों को अपनी शादी बचाने के लिए #धर्म_परिवर्तन भी करना पड़ा है।

आमिर खान के भतीजे इमरान की हिंदू पत्नी का नाम अवंतिका मलिक है। संजय खान के बेटे जायद खान की पत्नी मलाइका पारेख है।

फिरोज खान के बेटे फरदीन की पत्नी नताशा है। इरफान खान की बीवी का नाम सुतपा सिकदर है। नसरुद्दीन शाह की हिंदू पत्नी रत्ना पाठक हैं।

एक समय था जब मुसलमान एक्टर हिंदू नाम रख लेते थे क्योंकि उन्हें डर था कि अगर दर्शकों को उनके मुसलमान होने का पता लग गया तो उनकी फिल्म देखने कोई नहीं आएगा।

ऐसे लोगों में सबसे मशहूर नाम युसूफ खान का है जिन्हें दशकों तक हम #दिलीप_कुमार समझते रहे।

महजबीन अलीबख्श मीना कुमारी बन गई और मुमताज बेगम जहाँ देहलवी #मधुबाला बनकर हिंदू हृदयों पर राज करती रही।

बदरुद्दीन जमालुद्दीन काजी को हम जॉनी वाकर समझते रहे और हामिद अली खान विलेन अजित बनकर काम करते रहे।

हममें से कितने लोग जान पाए कि अपने समय की मशहूर अभिनेत्री रीना राय का असली नाम सायरा खान था।

आज के समय का एक सफल कलाकार जॉन अब्राहम भी दरअसल एक मुस्लिम है जिसका असली नाम फरहान इब्राहिम है।

जरा सोचिए कि पिछले 50 साल में ऐसा क्या हुआ है कि अब ये मुस्लिम कलाकार हिंदू नाम रखने की जरूरत नहीं समझते बल्कि उनका मुस्लिम नाम उनका ब्रांड बन गया है।

यह उनकी मेहनत का परिणाम है या हम लोगों के अंदर से कुछ खत्म हो गया है?

जरा सोचिए कि हम कौन सी फिल्मों को बढ़ावा दे रहे हैं?

क्योंकि ऐसा फिल्म उद्योग का सबसे बड़ा फाइनेंसर दाऊद इब्राहिम चाहता है। टी-सीरीज का मालिक गुलशन कुमार ने उसकी बात नहीं मानी और नतीजा सबने देखा।

आज भी एक फिल्मकार को मुस्लिम हीरो साइन करते ही दुबई से आसान शर्तों पर कर्ज मिल जाता है। इकबाल मिर्ची और अनीस इब्राहिम जैसे आतंकी एजेंट सात सितारा होटलों में खुलेआम मीटिंग करते देखे जा सकते हैं।

सलमान खान, शाहरुख खान, आमिर खान, सैफ अली खान, नसीरुद्दीन शाह, फरहान अख्तर, नवाजुद्दीन सिद्दीकी, फवाद खान जैसे अनेक नाम हिंदी फिल्मों की सफलता की गारंटी बना दिए गए हैं।

अक्षय कुमार, मनोज कुमार और राकेश रोशन जैसे फिल्मकार इन दरिंदों की आंख के कांटे हैं।

तब्बू, हुमा कुरैशी, सोहा अली खान और जरीन खान जैसी प्रतिभाशाली अभिनेत्रियों का कैरियर जबरन खत्म कर दिया गया क्योंकि वे मुस्लिम हैं और इस्लामी कठमुल्लाओं को उनका काम #गैरमजहबी लगता है।

फिल्मों की कहानियां लिखने का काम भी सलीम खान और जावेद अख्तर जैसे मुस्लिम लेखकों के इर्द-गिर्द ही रहा जिनकी कहानियों में एक भला-ईमानदार मुसलमान, एक पाखंडी ब्राह्मण, एक अत्याचारी - बलात्कारी क्षत्रिय, एक कालाबाजारी वैश्य, एक राष्ट्रद्रोही नेता, एक भ्रष्ट पुलिस अफसर और एक गरीब दलित महिला होना अनिवार्य शर्त है।

इन फिल्मों के गीतकार और संगीतकार भी मुस्लिम हों तभी तो एक गाना #मौला के नाम का बनेगा और जिसे गाने वाला पाकिस्तान से आना जरूरी है।

इन अंडरवर्ड के हरामखोरों की असिलियत को पहचानिये और हिन्दू समाज को संगठित करिये तब ही हम  अपने धर्म की रक्षा कर पाएंगे ।
कुछ समय के लिए इस #चित्रपट_नगरी का बहिष्कार करने की जरूरत है।

#हर_हर_महादेव ✍

Sunday, June 14, 2020

बच्चा पैदा करने के लिए क्या आवश्यक है।

पुरुष का वीर्य और औरत का गर्भ !!!

लेकिन रुकिए ...सिर्फ गर्भ ???

नहीं... नहीं...!!!

एक ऐसा शरीर जो इस क्रिया के लिए तैयार हो। 
जबकि वीर्य के लिए 13 साल और 70 साल का 
वीर्य भी चलेगा।
लेकिन गर्भाशय का मजबूत होना अति आवश्यक है, 
इसलिए सेहत भी अच्छी होनी चाहिए। 
एक ऐसी स्त्री का गर्भाशय 
जिसको बाकायदा हर महीने समयानुसार 
माहवारी (Period) आती हो। 
जी हाँ !
वही माहवारी जिसको सभी स्त्रियाँ
हर महीने बर्दाश्त करती हैं। 
बर्दाश्त इसलिए क्योंकि 
महावारी (Period) उनका Choice नहीं है। 
यह कुदरत के द्वारा दिया गया एक नियम है। 
वही महावारी जिसमें शरीर पूरा अकड़ जाता है, 
कमर लगता है टूट गयी हो, 
पैरों की पिण्डलियाँ फटने लगती हैं, 
लगता है पेड़ू में किसी ने पत्थर ठूँस दिये हों, 
दर्द की हिलोरें सिहरन पैदा करती हैं। 
ऊपर से लोगों की घटिया मानसिकता की वजह से 
इसको छुपा छुपा के रखना अपने आप में 
किसी जँग से कम नहीं।

बच्चे को जन्म देते समय 
असहनीय दर्द को बर्दाश्त करने के लिए 
मानसिक और शारीरिक दोनो रूप से तैयार हों। 
बीस हड्डियाँ एक साथ टूटने जैसा दर्द 
सहन करने की क्षमता से परिपूर्ण हों।

गर्भधारण करने के बाद शुरू के 3 से 4 महीने 
जबरदस्त शारीरिक और हार्मोनल बदलाव के चलते 
उल्टियाँ, थकान, अवसाद के लिए 
मानसिक रूप से तैयार हों। 
5वें से 9वें महीने तक अपने बढ़े हुए पेट और 
शरीर के साथ सभी काम यथावत करने की शक्ति हो।

गर्भधारण के बाद कुछ 
विशेष परिस्थितियों में तरह तरह के 
हर दूसरे तीसरे दिन इंजेक्शन लगवानें की 
हिम्मत रखती हों।
(जो कभी एक इंजेक्शन लगने पर भी 
घर को अपने सिर पर उठा लेती थी।) 
प्रसव पीड़ा को दो-चार, छः घंटे के अलावा 
दो दिन, तीन दिन तक बर्दाश्त कर सकने की क्षमता हो। और अगर फिर भी बच्चे का आगमन ना हो तो 
गर्भ को चीर कर बच्चे को बाहर निकलवाने की 
हिम्मत रखती हों।

अपने खूबसूरत शरीर में Stretch Marks और 
Operation का निशान ताउम्र अपने साथ ढोने को तैयार हों। कभी कभी प्रसव के बाद दूध कम उतरने या ना उतरने की दशा में तरह-तरह के काढ़े और दवाई पीने का साहस 
रखती हों।
जो अपनी नीन्द को दाँव पर लगा कर 
दिन और रात में कोई फर्क ना करती हो।
3 साल तक सिर्फ बच्चे के लिए ही जीने की शर्त पर गर्भधारण के लिए राजी होती हैं।

एक गर्भ में आने के बाद 
एक स्त्री की यही मनोदशा होती है 
जिसे एक पुरुष शायद ही कभी समझ पाये। 
औरत तो स्वयं अपने आप में एक शक्ति है, 
बलिदान है। 
इतना कुछ सहन करतें हुए भी वह 
तुम्हारें अच्छे-बुरे, पसन्द-नापसन्द का ख्याल रखती है।
अरे जो पूजा करनें योग्य है जो पूजनीय है 
उसे लोग बस अपनी उपभोग समझते हैं। 
उसके ज़िन्दगी के हर फैसले, 
खुशियों और धारणाओं पर 
 अपना अँकुश रख कर खुद को मर्द समझते हैं। 
इस घटिया मर्दानगी पर अगर इतना ही घमण्ड है 
तो बस एक दिन खुद को उनकी जगह रख कर देखें
अगर ये दो कौड़ी की मर्दानगी 
बिखर कर चकनाचूर न हो जाये तो कहना।
याद रखें 
जो औरतों की इज्ज़त करना नहीं जानतें 
वो कभी मर्द हो ही नहीं सकतें।
अगर किसी को मेरे बातो का बुरा लगा हो तो -- क्षमा प्रार्थी हूँ

#गर्भधारण##की_वैदिक_विधि_को_जानें_शास्त्रों_में_वर्णित_गर्भ_संस्कार_के_आधार_पर_तेजस्वी_संतान_प्राप्त_करें

#वैदिक_चिकित्सा_की_ओर_लौटें
#वैदिक_वैद्यशाला_से_टेलीग्राम_पर_जुड़ें। 

Friday, June 12, 2020

मेवात।

हरियाणा के मेवात की स्थिति देखकर मैं हैरान हूं कि दिल्ली से मात्र 130 किलोमीटर दूर ऐसे हालत कैसे बन गए ?? 

 आजादी के समय मेवात में हिंदू और मुसलमानों की जनसंख्या 50 - 50% थी आज मुसलमान 90% हो गए और हिंदू मात्र 10%

 130 गांव से 100% हिंदुओं को खदेड़ दिया गया उनकी मकानों और जमीनों पर कब्जा कर लिया गया

 पैनल में विश्व हिंदू परिषद के महासचिव सुरेंद्र जैन थे उन्होंने बताया कि खट्टर जी नौकरशाही के दबाव में हैं नौकरशाही और प्रशासन जो उनसे रिपोर्ट देता है वह उस पर विश्वास कर लेते हैं कभी वह जमीनी हकीकत जानने की कोशिश नहीं करते 

उन्होंने कहा कि मैंने दो मंदिरों के बारे में बताया कि यह मंदिर तोड़ दिए गए तब खट्टर को प्रशासन ने रिपोर्ट दिया कि वह मंदिर नहीं था और खट्टर साहब ने वह बात मान लिया 

फिर विश्व हिंदू परिषद ने अपने स्तर से जब नक्शा और पटवारी की दस्तावेज दिखाए तब जाकर खट्टर साहब को विश्वास हुआ कि वहां मंदिर था

 और सबसे दुखद बात है उच्च वर्ग के हिंदू बहुत पहले ही मेवात छोड़ चुके हैं अब वहां जितने भी बसे हैं बचे हैं वह ज्यादातर दलित हैं 

बाल्मीकि समाज के एक रिटायर्ड जज भी चैनल पर थे जज साहब ने खुद अपने स्तर पर जांच किया और जो कंडीशन बताएं वह बेहद दर्दनाक है 

उस जज साहब ने बताया कि हमारे समाज यानी बाल्मीकि समाज की दो दो लड़कियों को विवाह के समय मंडप से उठाकर धर्म परिवर्तन करवा दिया गया 

40 से ज्यादा बाल्मीकि समाज की महिलाओं का जबर्दस्ती धर्म परिवर्तन करवा दिया गया

मेवात वही जगह है जहां पर तबलीगी जमात की स्थापना की गई थी 

मेवात वही जगह है जिसे तबलीगी जमात ने एक प्रयोगशाला के तौर पर इस्तेमाल किया और सबसे पहले डेमोग्राफी बदलकर इस्लामिक शासन लाने का शरिया नियम लागू करने का एक सफल प्रयोग किया

 मेवात में हर वर्ष तबलीगी जमात का सम्मेलन तो होता ही है तबलीगी जमात से जुड़ी महिलाओं का भी सम्मेलन होता है और वह महिलाएं मेवात की मुस्लिम महिलाओं को खूब भड़कती  है कि तुम हिंदुओं को मारो उनकी संपत्ति पर कब्जा करो

मेवात में सरकारी दस्तावेज के अनुसार पिछले 10 सालों में अट्ठारह सौ हिंदुओं ने धर्म परिवर्तन किया

सबसे दुखद खुलासा यह हुआ की मेवात में सीआरपीएफ का बहुत बड़ा कैंप बनाने का प्रस्ताव स्वीकृत हो चुका था लेकिन तबलीगी जमात के लोग और मुस्लिम समाज मैं आज तक वहां पर बनने नहीं दिया . यह स्थिति देश के अधिकतर मुस्लिम बहुल क्षेत्रों की हैं लेकिन सरकार कि कोई ठोस नीति नहीं है आज भी मुसलमानों को चार चार शादियां करने का अधिकार दे रखा है एक देश में अलग-अलग कानून कैसा अत्याचार है. वंदे मातरम जय भारत सभी मनुष्य परमात्मा के बनाए हुए हैं लेकिन जन्म देने के बाद उनको क्या संस्कार दिए हुए हैं यह निर्भर करता है प्रत्येक मुसलमान का एक एजेंडा नहीं हो सकता क्योंकि कभी अशफाक उल्ला खान तो कभी अब्दुल कलाम ने देश के लिए कार्य किया है लेकिन अधिकतर आबादी को मूर्खता पूर्वक इस कार्य में लगाया जा रहा है यह दुर्भाग्यपूर्ण है

जवाहरलाल नेहरु को थप्पड़ मारा।

कश्मीर के राजा हरिसिंह ने भरे दरबार में जवाहरलाल नेहरु को थप्पड़ भी मारा था 
पूरी कहानी पढ़िए .... ------------

आप लोगों में से बहुत ही कम जानते होंगे कि नेहरू पेशे से वकील था लेकिन किसी भी क्रांतिकारी का उसने केस नहीं लड़ा ॥

बात उस समय की है जिस समय महाराजा हरिसिंह 1937 के दरमियान ही जम्मू कश्मीर में लोकतंत्र स्थापित करना चाहते थे लेकिन शेख अब्दुल्ला इसके विरोध में थे क्योंकि शेख अब्दुल्ला महाराजा हरिसिंह के प्रधानमंत्री थे और कश्मीर का नियम यह था कि जो प्रधानमंत्री होगा वही अगला राजा बनेगा लेकिन महाराजा हरि सिंह प्रधानमंत्री के कुकृत्य से भलीभांति परिचित थे इसलिए कश्मीर के लोगों की भलाई के लिए वह 1937 में ही वहां लोकतंत्र स्थापित करना चाहते थे लेकिन शेख अब्दुल्ला ने बगावत कर दी और सिपाहियों को भड़काना शुरू कर दिया लेकिन राजा हरि सिंह ने समय रहते हुए उस विद्रोह को कुचल डाला और शेख अब्दुल्ला को देशद्रोह के केस में जेल के अंदर डाल दिया ॥

शेख अब्दुल्ला और जवाहरलाल नेहरू की दोस्ती प्रसिद्ध थी , जवाहरलाल नेहरू शेख अब्दुल्ला का केस लड़ने के लिए कश्मीर पहुंच जाते हैं , वह बिना इजाजत के राजा हरिसिंह द्वारा चलाई जा रही कैबिनेट में प्रवेश कर जाते हैं , महाराजा हरि सिंह के पूछे जाने पर नेहरु ने बताया कि मैं भारत का भावी प्रधानमंत्री हूं ॥

राजा हरिसिंह ने कहा चाहे आप कोई भी है , बगैर इजाजत के यहां नहीं आ सकते , अच्छा रहेगा आप यहां से निकल जाएं ॥

नेहरु ने जब राजा हरि सिंह के बातों को नहीं माना तो राजा हरिसिंह ने गुस्सा में आकर नेहरु को भरे दरबार में जोरदार थप्पड़ जड़ दिया और कहा यह तुम्हारी कांग्रेस नहीं है या तुम्हारा ब्रिटिश राज नहीं है जो तुम चाहोगे वही होगा ॥ तुम होने वाले प्रधानमंत्री हो सकते हो लेकिन मैं वर्तमान राजा हूं और उसी समय अपने सैनिकों को कहकर कश्मीर की सीमा से बाहर फेंकवा दिया ॥

कहते हैं फिर नेहरू ने दिल्ली में आकर शपथ ली कि वह 1 दिन शेख अब्दुल्ला को कश्मीर के सर्वोच्च पद पर बैठा कर ही रहेगा इसीलिए बताते हैं कि कश्मीर को छोड़कर अन्य सभी रियासतों का जिम्मा सरदार पटेल को दिया गया और एकमात्र कश्मीर का जिम्मा भारत में मिलाने के लिए जवाहरलाल नेहरु ने लिया था ॥

सरदार पटेल ने सभी रियासतों को मिलाया लेकिन नेहरू ने एक थप्पड़ के अपमान के लिए भारत के साथ गद्दारी की ओर शेख अब्दुल्ला को मुख्यमंत्री बनाया और 1955 में जब वहां की विधानसभा ने अपना प्रस्ताव पारित करके जवाहरलाल नेहरू को पत्र सौंपा कि हम भारत में सभी शर्तों के साथ कश्मीर का विलय करना चाहते हैं तो जवाहरलाल नेहरू ने कहा ---- नहीं अभी वह परिस्थितियां नहीं आई है कि कश्मीर का पूर्ण रूप से भारत में विलय हो सके ॥ इस प्रकार उस पत्र को प्रधानमंत्री नेहरू ने ठुकरा दिया था और उसका खामियाजा भारत आज तक भुगत रहा है

शांतिप्रिय मजहब।

कुरान की कुछ आयतें जिनसे पता चलता हैं की इस्लाम एक शांतिप्रिय मजहब हैं हर हिन्दू को कुरान की ये आयत पढ़नी चाहिए ताकि इस्लाम को जान सके। 

Wednesday, June 10, 2020

ब्राह्मण-विरोध के पीछे क्या है?

हमारे देश में ब्राह्मण-विरोध की पूरी लॉबी है, जो बात-बेबात किसी बहाने ब्रांह्मणों के प्रति घृणा फैलाने में लगी रहती है। ‘हेट स्पीच’ के विरुद्ध नारेबाजी करने वाले ब्राह्मणों के विरुद्ध खुद घृणा फैलाते हैं। कुछ पहले ट्विटर मालिक जैक डोरसी की फोटो के साथ ‘ब्राह्मणवादी पितृसत्ता को कुचल डालो!’ के आवाहन वाले पोस्टर प्रचारित हुए थे। यह साफ-साफ किसी समुदाय के विरुद्ध घृणा फैलाना (हेट स्पीच) है। मगर ब्राह्मणों के विरुद्ध ऐसे उत्तेजक आवाहनों पर हमारे राजनीतिक लोग आपत्ति नहीं करते।

कुछ लोग इसे ‘विदेशी’, ‘औपनिवेशिक’ मिशनरियों की कारस्तानी मानते हैं।  लेकिन यह केवल ऐतिहासिक आरंभ के हिसाब से सही है। पर स्वतंत्र भारत में यह यहीं के राजनीतिक स्वार्थी, धूर्त या अज्ञानी लोग करते रहे हैं। आज बाहरी लोग हमारे ही प्रतिष्ठित एक्टिविस्टों, बुद्धिजीवियों की बातें दुहराते हैं। वेंडी डोनीजर की हिन्दू-विरोधी पुस्तकों में तमाम हवाले भारतीय वामपंथियों और हिन्दू-द्वेषी लेखकों, पत्रकारों के मिलते हैं।

अतः मूल समस्या हिन्दू नेताओं की है। स्वतंत्र होकर भी वे विचारों में गुलाम, नकलची और सुसुप्त बने रहे हैं। वे अपने ऊपर हर लांछन स्वीकार करते और दुहराते भी हैं। उन के शासनों में भी दशकों से पाठ्य-पुस्तकों में ‘वेदों के वर्चस्व’ और ‘ब्राह्मणवाद’ का नकारात्मक उल्लेख बना हुआ है। उन्हें इस से मच्छर काटने जितना भी कष्ट नहीं होता! वास्तव में, ब्राह्मणवाद अनर्गल शब्द है। यह यहाँ का शब्द ही नहीं है! इसे ईसाई मिशनरियों ने भारत के हिन्दू धर्म-समाज को बदनाम करने के लिए गढ़ा था। पर इसे हटाने का काम हम ने नहीं किया। हिन्दू नेताओं ने तो जैसे मान लिया है कि इस पर कुछ करने की जरूरत नहीं।

जैक वाले प्रसंग पर कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने ट्वीट किया था, ‘‘ब्राह्मण विरोध भारतीय राजनीति की सचाई है। मंडल कमीशन के बाद यह उत्तर भारत में और मजबूत हो गया। हम (ब्राह्मण) तो मानो भारत के यहूदी जैसे निशाना बना दिए गए हैं और अब हमें इस के साथ ही रहना सीखना होगा।’’यदि इतने बड़े, तेज नेता ऐसी मानसिकता से ग्रस्त हैं, तो हिन्दू धर्म के शत्रुओं का मनोबल क्यों नहीं बढ़ेगा? ब्राह्मणों को गाली देना राजनीतिक फैशन जरूर है। लेकिन इस के पीछे की झूठी मान्यताओं, तथा इसे हवा देने वाली हिन्दू-विरोधी राजनीति को तो बेनकाब किया जा सकता है। फिर हमारे भ्रमित लोग और विदेशी भी झूठे मुहावरे छोड़ देंगे। यह सामान्य शिक्षा का काम है। यह कठिन भी नहीं है। इस में कोताही के जिम्मेदार सिर्फ भारतीय नेतागण हैं।

दूसरी ओर, ठोस सचाई यह है कि जैसे बदनाम यहूदियों ने ही गत दो सदियों में यूरोपीय सभ्यता की उन्नति में सर्वोपरि भूमिका निभाई, उसी तरह ब्राह्मणों ने तीन हजार से भी अधिक वर्षों से भारत की महान सभ्यता में अप्रतिम योगदान दिया। यहाँ तमाम ऐतिहासिक, लौकिक विवरणों में ब्राह्मणों का उल्लेख विद्वान, मगर निर्धन व्यक्तियों के रूप में आता है।भारत में राज्य-शासन प्रायः क्षत्रियों, जाटों, यादवों, मराठों और मध्य जातियों के लोगों के हाथ था। धन-संपत्ति वैश्यों, व्यापारियों के हाथ थी। ब्राह्मण का काम वैदिक ज्ञान का संरक्षण करना, शिक्षा देना और धर्म-संस्कृति की समग्र चिंता करना रहा। इसीलिए, संपूर्ण भारत में ब्राह्मणों का सम्मान सदैव रहा है। उन्हें कभी, किसी बात के लिए लांछित करने का कोई उदाहरण नहीं है।

ब्राह्मणों को निशाना बनाने का काम ईसाई मिशनरियों और कम्युनिस्टों का शुरू किया हुआ है। इन का घोषित लक्ष्य हिन्दू धर्म को खत्म करना था। अतः यहाँ धर्म-ज्ञाता ब्राह्मणों को निशाना बनाना स्वभाविक था। इस पर अनेक पुस्तकें स्वयं ईसाई मिशनरियों द्वारा लिखी हुई हैं, जिस से पूरा हाल समझा जा सकता है।आज ‘ब्राह्मणवाद’ का लांछन और ब्राह्मणों का विरोध उस वैदिक ज्ञान-परंपरा के खात्मे की चाह है, जिस के खत्म होने से हिन्दू धर्म-समाज खत्म हो जाएगा। अतः ब्राह्मणों से घृणा का अर्थ उन के मूल काम वेदांत और शास्त्र-अध्ययन से घृणा है। क्रिश्चियन और इस्लामी, दोनों साम्राज्यवादी मतवाद खुल कर इस में लगे हैं। उन की यह चाह उत्कट इसलिए भी है, क्योंकि यदि उपनिषदों का ज्ञान विश्व में अधिक फैला, तो स्वयं उन मतवादों का अस्तित्व नहीं रहेगा। वेदांत इतना वैज्ञानिक, सशक्त, और मानव-मात्र के लिए हितकारी है।

अतः ब्राह्मण-विरोध का निहितार्थ हिन्दू धर्म-समाज के खात्मे की चाह है। तमाम एक्टिविस्टों का ब्राह्मणवाद-विरोध अगले ही वाक्य में हिन्दू-विरोध पर पहुँच आता है। इस का नेतृत्व और पोषण सदैव चर्च-मिशनरी संस्थान और वामपंथी करते रहे हैं। वरना, स्वयं देखने की बात है कि भारत में ब्राह्मणों की स्थिति पहले से खराब हुई है। निर्धन तो वे पहले भी थे, पर आज उन्हें वंचित और सताया तक जा रहा है।

अंग्रेजी शिक्षा-प्रणाली के बढ़ते वर्चस्व ने शिक्षा में ब्राह्मणों का पारंपरिक उच्च स्थान नष्ट कर दिया। आज वे अपनी रोटी-रोटी किसी भी तरह कमाने को विवश हैं। दिल्ली में 50 से अधिक सुलभ शौचालयों की सफाई में ब्राह्मण समुदाय के लोग कार्यरत हैं। उस शौचालय श्रृंखला के संस्थापक भी ब्राह्मण हैं। अनेक समुदायों की तुलना में ब्राह्मणों की प्रति व्यक्ति आय बहुत कम है। हमारे नेताओं में भी इक्का-दुक्का ही ब्राह्मण हैं। सभी राज्यों में निचली और मध्य जातियों के लोग सत्ताधारी है। तब किस ‘ब्राह्मणवादी’ वर्चस्व को कुचलने की बात हो रही है?

हमारे मूढ़ एक्टिविस्ट ध्यान दें – यह स्वयं उन के खात्मे की पहली सीढ़ी है। एक हिन्दू के रूप में उन का अस्तित्व दाँव पर है। ब्राह्मण का अर्थ मुख्यतः ज्ञान, सदाचार, सेवा और त्याग रहा है। यही भारत का धर्म था, जिस के वे ज्ञाता और शिक्षक थे। उन के विरुद्ध जहर घोलना बमुश्किल सवा-सौ सालों का धंधा है। यहाँ लोकतांत्रिक के साथ-साथ दुष्प्रचार राजनीति भी शुरू हुई। हल्के नेताओं ने किसी समूह को साथ लाने के लिए दूसरे को लांछित करने का धंधा शुरू कर दिया।

सचाई जानने के लिए स्वामी विवेकानन्द का प्रसिद्ध व्याख्यान ‘वेदान्त का उद्देश्य’ पढ़ें। उस में ब्राह्मणों के गौरव, इतिहास और भूमिका का उल्लेख है। विवेकानन्द ब्राह्मण नहीं थे, किन्तु महान ज्ञानी और दुनिया देखे हुए थे। उन की बातों पर गंभीरता से ध्यान देना चाहिए। उन के प्रकाश में हिन्दू-विरोधी बुद्धिजीवियों की लफ्फाजियाँ परखनी चाहिए। वर्ण और जाति का अंतर, सिद्धांत, व्यवहार, बाहरी आक्रमणों के बाद आई विकृतियों को समझना चाहिए। स्वतंत्र भारत में चले नेहरूवादी वामपंथ के दुष्परिणाम भी।

फिर, हिन्दुओं की तुलना में आज भी शेष दुनिया की वास्तविकता भी आँख खोलकर देखनी चाहिए। जिस हिन्दू धर्म-समाज में विविध देवी-देवता, विविध अवतार, विविध गुरू-ज्ञानी, विविध रीति-रिवाज, विविध श्रद्धा प्रतीकों का सम्मान है, उसी को ‘वर्चस्ववादी’, ‘पितृसत्तात्मक’ बताया जाता है! जबकि क्रिश्चियन, इस्लामी मतवादों में खुलेआम एकाधिकार का दावा है, जिस में दूसरे मतवालों को जीने देने तक की मंजूरी नहीं। साथ ही, उन में पुरुष गॉड और पुरुष प्रोफेट हैं। सारे पोप, बिशप, ईमाम और मुल्ले, फतवे देने वाले केवल पुरुष हैं। वहाँ स्त्रियों की स्थिति हाल तक और आज भी नीच है। लेकिन उसे ‘समानता’-वादी बताया जाता है! दोनों बातें एक ही लोग और संस्थाएं प्रसारित करती हैं।

परन्तु यदि कोई पितृसत्तात्मक, वर्चस्ववादी है तो चर्च व इस्लामी संस्थाएं, जिसे आज भी पूरी दुनिया में प्रत्यक्ष देखा जा सकता है। पर हमारी आँखों में धूल झोंक कर हिन्दू धर्म-समाज को ही निशाना बनाया गया है। यह सब मुख्यतः हिन्दू नामों वाले मूढ़ या स्वार्थी भारतीयों के माध्यम से होता है। बाहरी शत्रु इसे बढ़ावा देते हैं, मगर यह संभव इसीलिए होता है क्योंकि हम स्वयं गफलत में हैं। तमाम दलों के नेता इस के उदाहरण हैं। अतः मिशनरियों पर रंज होने के बदले हमें अपना अज्ञान दूर करना चाहिए।

Tuesday, June 9, 2020

जय मीम जय भीम और गंगा जामुनी तहजीब।

जम्मू कश्मीर - परिसीमन के नाम पर हुए 'खेल' की कहानी

भारत मे इतने सारे राज्य हैं, केंद्र शासित प्रदेश हैं। क्या आपके मन मे कभी आया कि किस हिसाब से किसी राज्य या केंद्र शासित प्रदेशों में विधानसभा और लोकसभा सीटें बनाई जाती हैं?

ऐसा क्यों है कि हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड जैसे बड़े प्रदेशो में 4-5 लोकसभा सीटें ही हैं, जबकि दिल्ली जैसे छोटे केंद्र शासित प्रदेश में 7 सीटें हैं? ऐसे ही और भी कई उदाहरण देखने को मिल जाएंगे.......लेकिन आज का मुद्दा है जम्मू और कश्मीर

जम्मू और कश्मीर राज्य को तीन मुख्य भागो में बांटा गया है, कश्मीर घाटी, जम्मू और लद्दाख। लेकिन अगर आप सीटों के बंटवारे को देखेंगे, तो आप चौंक जाएंगे कि ये कैसा गड़बड़ झाला किया हुआ है अभी तक कि सरकारों ने।

चलिये थोड़ा इतिहास की तरफ चलते हैं।

जम्मू और कश्मीर राज्य का संविधान 1957 में लागू किया गया था। ये संविधान 1939 के महाराजा हरि सिंह द्वारा बनाये गए 'जम्मू कश्मीर राज्य के संविधान 1939' पर ही आधारित था। जब आजादी के बाद महाराजा हरिसिंह ने भारतीय गणराज्य मव सम्मिलित होने का निर्णय किया था, उसके बाद इसी 1939 के संविधान के अंतर्गत ही जम्मू और कश्मीर को भारतीय गणराज्य में सम्मिलित किया गया था। लेकिन नेहरू जी के परम मित्र और अब्दुल्ला खानदान के पहले चिराग, शेख अब्दुल्ला ने एक खेल खेला और मनमाने तरीके से जम्मू को 30 सीटें दी, वहीं कश्मीर घाटी को 43 सीटें दी और सबसे बड़े इलाके लद्दाख को मात्र 2 सीटें मिली।

अब आप पूछेंगे कि ऐसा क्यों किया? बाप का राज था क्या?

जी बिल्कुल, बाप का ही तो राज्य था......नेहरू हमेशा ही शेख अब्दुल्ला के करीबी रहे, और नेहरू ने अब्दुल्ला को हमेशा 'फ्री हैंड' दिया.......जिसका लाभ शेख अब्दुल्ला ने उठाया।
अब आप सोचिये, जम्मू कश्मीर में कुल सीट हुई 43(कश्मीर घाटी) + 30 (जम्मू) + 2 (लद्दाख) = 75

बहुमत की सरकार बनाने के लिए चाहिए 38 सीटें......तो जो पार्टी कश्मीर घाटी में 43 सीटें जीत जाएगी, वो हमेशा ही राज करेगी.......और किया भी। शेख अब्दुल्ला ने जम्मू कश्मीर पर एकछत्र राज किया। नेहरू ने उन्हें जम्मू कश्मीर का प्रधानमंत्री भी बनाया। जी हाँ, 1953 तक जम्मू कश्मीर में मुख्यमंत्री को प्रधानमंत्री ही कहा जाता है......नेहरू जी की प्यार की पॉलिटिक्स थी भई .

आपको ये जानकर झटका भी लग सकता है, की वो नेहरू ही थे जिन्होंने अब्दुल्ला को पाकिस्तान भेजा था, शांति की बात करने के लिए.....भारत और पाकिस्तान के बीच मध्यस्थ बनने के लिए। बीच बीच मे नेहरू-गांधी परिवार के अब्दुल्ला से संबंध बिगड़ भी गए, और अब्दुल्ला को जेल में भी डाला गया, लेकिन फिर 1974 में इंदिरा गांधी और अब्दुल्ला के बीच सम्झौता  हुआ, और अब्दुल्ला को फिर से मुख्यमंत्री बनाया गया, फिर उनके बेटे फारूख अब्दुल्ला मुख्यमंत्री बने और फिर अब्दुल्ला और मुफ़्ती के बीच कश्मीर के सिंहासन की बंदरबांट चलती रही।

मुद्दे पर वापस आते हैं, 2011 के जनगणना  के अनुसार जम्मू डिवीज़न की जनसंख्या 53,78,538 है और जम्मू पूरे राज्य का 25.93% भाग है और पूरे राज्य की 42.89% जनसंख्या जम्मू डिवीज़न में रहती है।

कश्मीर डिवीज़न की जनसंख्या है 68,88,475, जिसमे 96.40% मुस्लिम आबादी है। कश्मीर डिवीज़न पूरे राज्य का मात्र 15.73% भाग है, वहीं इसमे जनसंख्या है 54.93%।

वहीं लद्दाख डिवीज़न पूरे राज्य का 58.33% इलाका है, और जनसंख्या के हिसाब से लद्दाख में पूरे राज्य की 2.18% जनसंख्या रहती है।

अभी कब आंकड़ों के हिसाब से, कश्मीर डिवीज़न को 46 सीट्स मिली हुई हैं, जम्मू को 37 और लद्दाख को मात्र 4।

अब आप स्वयं सोचिये, कोई भी पोलिटिकल पार्टी अगर कश्मीर डिवीज़न (कश्मीर घाटी) में सभी सीटें जीत ले, तो वो पूरे राज्य पर शासन करती रहेगी, आज़ादी के बाद यही गलत परिसीमन ही तो सबसे बड़ा कारण है कि कश्मीर घाटी के 2 परिवार ही हमेशा पूरे राज्य पर एकछत्र राज करते आये हैं। कांग्रेस (जो स्वयं एक परिवार की प्राइवेट पार्टी है) ने हमेशा इन्ही दोनों परिवारों से मिलजुल कर सरकारें बनाई हैं।

आखिरी परिसीमन हुआ था 1995 में, जब राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू था। उस समय परिस्थितियां बड़ी ही विकट थी। जस्टिस KK gupta की अध्यक्षता में ये कार्य सम्पन्न हुआ। भारतीय संविधान के अनुसार, हर 10 साल में परिसीमन किया जाना चाहिए, और 1995 के बाद ये 2005 में होना चाहिए था।

लेकिन 2005 से पहले पता है क्या हुआ?

2002 में फारूख अब्दुल्ला सरकार ने परिसीमन को 2026 तक के लिए Freeze कर दिया। अब्दुल्ला सरकार ने जम्मू कश्मीर Representation of the People act और जम्मू कश्मीर के संविधान की धारा 47(3) को amend किया, और ये जोड़ दिया कि " जब तक 2026 के जनसंख्या कब आंकड़े नही आएंगे, तब तक जम्मू और कश्मीर में विधानसभा सीट्स की संख्या और उनके परिसीमन के बारे में कोई कदम नही उठाया जाएगा।

और अगला census होगा 2021 में, और उसके बाद अगला होगा 2031 में.......तो एक तरह है फारूख अब्दुल्ला सरकार ने 2031 तक परिसीमन (delimitation) को असंभव सा ही बना दिया था। तब उनका पोता या पोती मुख्यमंत्री बनने लायक हो ही जायेगा।

अच्छा एक और किस्सा सुनिए, आपने SC ST के लिए reserved सीट्स का तो सुना ही होगा। हर राज्य में इस तरह की सीटें होती हैं, जहां से पिछड़े वर्ग के लोग चुनाव लड़ सकते हैं। लेकिन जम्मू और कश्मीर में इस मामले में भी एक झोल है।

जम्मू कश्मीर में कुल 7 सीटें हैं जो SC - ST के लिए reserved हैं, और ये सभी सीटें जम्मू डिवीज़न में हैं। कश्मीर घाटी में एक भी नही है .

जबकि 1991 में गुज्जर, बकरवाल और गद्दी जाति जनजाति के लोगो को जम्मू कश्मीर राज्य में SCST का दर्जा मिला था.......लेकिन लगभग 28 सालो में कश्मीर घाटी में इन लोगो के लिए एक भी सीट रिज़र्व नही हुई, जबकि ये लोग कश्मीर घाटी और आस पास के इलाकों में पाए जाते हैं। अब क्यों नही मिले इसका कारण जानना आसान है।

ये अल्पसंख्यक अधिकार, SC - ST अधिकार जैसे चोंचले कश्मीर घाटी में नही चलते साहब......वहाँ तो निजाम-ऐ-मुस्तफा चला रहा है पिछले 30 सालों से .

अब मोदी सरकार 2.0 ने राज्यपाल को ये अधिकार दे दिया है कि वे delimitation की प्रक्रिया शुरू कर सकते हैं। अगर ये कार्य सही तरीके से होता है, तो यकीन मानिए, जम्मू और कश्मीर की राजनीति हमेशा के लिए बदल जाएगी। ये 2 परिवार हमेशा के लिए ध्वस्त हो जाएंगे, और कश्मीर घाटी का ब्लैकमेल भी खत्म हो जाएगा।
साभार - श्री पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ जी

वीडियो में पाकिस्तानी आलिम मोमिन और काफिर की मानसिकता बता रहा है।

https://www.facebook.com/288736371149169/posts/3435437166479058/

Sunday, June 7, 2020

शून्य।

जब मैंने बैंगलोर यूनिवर्सिटी में टेक्निकल एजुकेशन के लिए एडमिशन लिया था तो उस समय कॉलेजों में नए स्टूडेंट की रैगिंग बैन नहीं हुआ करती थी.

तो, सीनियरों का राज हुआ करता था.

एक बार सीनियरों ने मुझे नया देख कर मुझे अपने पास बुलाया.. 
और, पूछा.. नए आए हो क्या बे ?

मैंने भी मासूमियत से जबाब दिया.. जी सर.

तो, उन्होंने कहा कि यहाँ इतनी भास्ट (कठिन) पढ़ाई पढ़ने आये हो तो देखें कि तुम्हें अकल-उकल है कि नहीं.

तुम ये बताओ कि दिल्ली कहाँ है ?
मैंने कहा... सर, भारत में.

उन्होंने फिर पूछा ... तो फिर, भारत कहाँ है ?
मैं : सर, एशिया में .

सीनियर : एशिया कहाँ है ?
मैं : पृथ्वी पर

सीनियर : पृथ्वी कहाँ है ?
मैं : गैलेक्सी अर्थात आकाशगंगा में.

सीनियर : फिर, आकाशगंगा कहाँ है ?
मैं : ब्रह्मांड में.

सीनियर : ब्रह्मांड कहाँ है ?
मैं : अंतरिक्ष में .

सीनियर : अंतरिक्ष कहाँ है ?
मैं : शून्य में.

सीनियर : शून्य कहाँ है फिर ?
मैं : मैथेमेटिक्स की किताब में.

सीनियर : किताब कहाँ है ?
मैं : दिल्ली में.

इस पर एक सीनियर ने कहा कि ... साले का मूंछ का भी रेघा नहीं आया है... लेकिन, काबिल कुछ ज्यादा ही है.

उस समय सोशल मीडिया का उतना चलन नहीं था... लेकिन, मेरा ये उत्तर कॉलेज में बहुत वाइरल हुआ था.

अब मैं ये तो नहीं जानता कि मेरी जानकारी का स्रोत क्या था... लेकिन, इतना जरूर जानता हूँ कि... 
हमारे अनेकों धर्मग्रंथ... ब्रह्मांड एवं अंतरिक्ष को शून्य बताते हैं.

और... जो मैने बताया था वो लगभग सभी सनातनी हिन्दू को मालूम रहता है.

लेकिन... कोई ये नहीं जानता कि आखिर धर्मग्रंथ आखिर अंतरिक्ष और ब्रह्मांड को "शून्य" क्यों कहते हैं... 
जबकि, अंतरिक्ष में तो अरबों खरबों तारे और ग्रह-नक्षत्र आदि मौजूद हैं और वे हमें दिखते भी हैं.

असल में हमारे धर्मग्रंथ... अंतरिक्ष में मौजूद तारों और ग्रह-नक्षत्रों की "संख्या को शून्य नहीं" बताते हैं...

बल्कि, उनके "वैल्यूएशन को शून्य" बताते हैं.

👉 आप ये बात भली-भांति जानते हैं कि.... 6 अगस्त, 1945 को विश्व ने पहली परमाणु विस्फ़ोट त्रासदी को देखा... क्योंकि, इसी दिन अमेरिका ने जापान पर परमाणु बम गिराया था.

और, अमेरिका द्वारा जापान पर गिराए गए "लिटिल बॉय" नामक परमाणु हथियार में 64 किलो यूरेनियम का इस्तेमाल किया गया था.

इस 64 किलो का महज 900 ग्राम हिस्सा ही बम की प्रक्रिया में इस्तेमाल हो सका था और उस 900 ग्राम में भी... महज 0.7 ग्राम यूरेनियम ही पूरी तरह विशुद्ध ऊर्जा में तब्दील हो पाया था. 

इस तरह, देखा जाए तो, लिटिल बॉय बेहद ही फिसड्डी बम था.

फिर भी.... महज 0.7 ग्राम यूरेनियम से मतलब कि ... एक कागज के नोट से भी हल्की सामग्री का विस्फोट एक झटके में सवा लाख लोगों के लिए काल का पर्याय बन गया.
अब विचारणीय तथ्य है कि... जब महज 0.7 ग्राम यूरेनियम में इतनी ऊर्जा है तो...

पूरे ब्रह्मांड में टोटल कितनी ऊर्जा होगी ???? 

आपका जबाब होगा... अकल्पनीय. 

लेकिन.... सच तो यह है कि... ब्रह्मांड में कोई ऊर्जा है ही नहीं... 
और, ब्रह्मांड में ऊर्जा की मात्रा "शून्य" है.

असल में..... जहाँ, मैटर पार्टिकल्स, एन्टीमैटर तथा प्रकाश कणों में निहित ऊर्जा "पॉजिटिव" होती है.
वहीं, यह पॉजिटिव ऊर्जा अपने चारों ओर ग्रेविटी की शक्ति से निर्मित एक ऐसा "कुआं" (Gravity well) निर्मित करती है जो "नेगेटिव एनर्जी" से बना होता है.

तथा.... पृथ्वी समेत आकाशीय पिंड नेगेटिव एनर्जी के इसी गड्ढे में फंसे हुए सूर्य की परिक्रमा करने पर बाध्य हैं.

इस तरह..... इस ब्रह्मांड में जितनी पॉजिटिव एनर्जी है.... ठीक उतनी ही, बिना किसी अंतर के, उसी मात्रा में ग्रेविटेशनल ऊर्जा के रूप में नेगेटिव एनर्जी भी मौजूद है.

ब्रह्मांड का अस्तित्व इस पॉजिटिव-नेगेटिव एनर्जी की कशमकश पर ही टिका हुआ है.

पॉजिटिव और नेगेटिव एक-दूसरे को कैंसिल आउट करते हैं.

जब आप इनदोनों को मिलाएंगे तो उत्पन्न परिणाम शून्य होगा.

इसे बेहतर समझने के लिए आप एक मैदान की कल्पना कीजिये.

आप मैदान से मिट्टी निकालते जाइए और मिट्टी के इस्तेमाल से एक गगनचुंबी ईमारत बनाते जाइए... 

जितनी ऊंची इमारत होगी, गड्ढा भी उतना ही गहरा होता जाएगा.

फिर आप .... इमारत को तोड़ कर मिट्टी गड्ढे में भर दीजिये, पॉजिटिव एनर्जी यानी इमारत गायब और साथ ही साथ नेगेटिव एनर्जी यानी गड्ढा भी गायब... 

शेष रह जाएगा सपाट मैदान .... यानि.. शून्य... 

यह कुछ ऐसा ही है....  मानों आप जीरो बैलेंस के साथ क्रेडिट कार्ड के सहारे शॉपिंग कर रहे हैं.

आप जितना सामान खरीदेंगे, उतना ही बैलेंस नेगेटिव होता जाएगा.

लेकिन, सामान बेच के लोन भर दीजिये तो क्रेडिट कार्ड का बैलेंस फिर से शून्य हो जाएगा.
.
तो, इस पूरे लेख का सारांश यह है कि....

ब्रह्मांड में प्रत्येक पॉजिटिव एनर्जी अपने चारों ओर नेगेटिव एनर्जी का आवरण निर्मित करती है.

ब्रह्मांड का अस्तित्व इसी रस्साकशी पर टिका है.

पॉजिटिव का अस्तित्व नेगेटिव पर आधारित है.

पॉजिटिव-नेगेटिव को मिला दीजिये तो अस्तित्व का भ्रम टूट जाएगा..

और.... रह जायेगा सिर्फ़.... "शून्य"

इस तरह.... ब्रह्मांड को बनाने के लिए तकनीकी तौर पर कोई ऊर्जा कभी खर्च ही नहीं हुई.

क्योंकि.... सब कुछ शून्य है.

🚩🚩🚩 आश्चर्य इस बात का नहीं है कि.... ब्रह्मांड की ऊर्जा वैल्यूएशन शून्य है.

आश्चर्य इस बात का है कि.... जब आज से हजारों-लाखों साल पहले.... तथाकथित एडवांस कहे जाने वाले पश्चिमी सभ्यता के लोग ... जंगलों में नंग-धड़ंग, गुफाओं में रहते थे और कौतूहल से चाँद-तारे को देखा करते थे.

उस समय भी हमारे ऋषि-महर्षियों को ब्रह्मांड से लेकर ब्रह्मांड में मौजूद समस्त ऊर्जा का ज्ञान था और उन्होंने आज से लाखों साल पहले ही इसे ... "शून्य"  बता दिया था.

आखिर... ऐसी उन्नत सभ्यता-संस्कृति, पूर्वजों के ज्ञान एवं धार्मिक ग्रंथ पर हमें गर्व क्यों नहीं होना चाहिए ???

मुझे तो खुद पर बेहद गर्व है कि मैं महान सनातन हिन्दू धर्म का एक हिस्सा हूँ.

जय महाकाल...!!!

Friday, June 5, 2020

ताली बजायेंगे।

#____________जब_भारतीय_राजाओं को हराकर अंग्रेज जुलूस निकाल रहे थे तब भी हम ताली बजा रहे थे????

#____________जॉर्ज_पञ्चम के स्वागत में so called राष्ट्रगान गाया गया तब भी ताली बजा रहे थे..?????

#___________ईष्ट_इंडिया_कम्पनी लूट रही थी तब भी ताली बजा रहे थे आज #WHO के द्वारा लूट जाएंगे तब भी आप ताली बजायेंगे............????????????

#___________500 केस थे तो सब बंद था, 1,82,000 केस हो गए तो सब खोल दिया, लेकिन आप ‘#आत्मनिर्भर PM’ के लिए ताली बजाते रहिए ????????????????

क्या आपको नही लगता आप एक #हिजड़े की भाँति हो चुके है या फिर हिजड़ा ही है समझिये स्वयं को??????

आपको शायद #मुझपर_गुस्सा आ रहा हो लेकिन सच्चाई झुठलाया भी नही जा सकता................???????

यदि सच सुनने की #हिम्मत तो आगे #पढियेगा अन्यथा इसी नीचे अपनी निजी राय रख कर चले जाइयेगा.........???

________कोरोना का अलर्ट जारी हुआ. एयरपोर्ट पर स्क्रीनिंग का आदेश हो गया. उसके बाद करीब 80 लाख लोग देश में आए. मात्र 15 लाख की स्क्रीनिंग हुई.

____________लेकिन सरकार चूंकि बहुत मजबूत है, फैसला कड़ा लेती है, इसलिए जो भी सड़ा है, उस पर ताली बजाइए, क्योंकि हर फैसला कड़ा है. #कड़े_फैसले_के_सड़े_नतीजे पर कुछ मत पूछिए. तारीफ कीजिए. इसके ​अलावा कोई विकल्प नहीं है........??????

#__________क्यों_बंद किया, #क्यों_खोल दिया, #क्या_योजना थी, क्या लक्ष्य था, क्या हासिल हुआ, यह सब मत पूछिए. तब भी ताली बजाई थी, अब भी ताली बजाना है. ताली ही आपका नसीब है..........?????

डॉक्टरों के तीन संगठनों ने मिलकर बयान जारी किया है कि लॉकडाउन को लेकर, मजदूरों को लेकर, मेडिकल तैयारियों को लेकर सरकार की #शुरुआती_रणनीति_खराब थी और सरकार #अपने_देश_के_विशेषज्ञों की बात नहीं सुनी, #विदेशी_विशेषज्ञों की बात सुनी.

अपने #देश_की_समस्याओं के बारे में अपने ​ही विद्वानों की नहीं सुनते. इसी चक्कर में इकोनॉमी डूबी है और इसी चक्कर में देश में तबाही मची हुई है......???

खैर आपकी जय हो आप ताली अच्छा बजाते हैं.....??

#एक दिन आपका जिन्दा रहना ही विकास बनकर न रह जाय......

राम राम💐💐

लव जिहाद।

सभी हिन्दू माता पिता ध्यान दे ***

आजकल लव जिहाद के मामले बहुत ही बढ़ गये है हर दिन नये मामले सामने आ रहे है 
मै इसलिए आपको बता रहा हूँ क्योंकि मै हिन्दुओं के माता पिता को उन जोखिमों से अवगत कराना हूँ जो उनके बच्चों को झेलना पढता है और साथ मे उनके माता पिता को भी 

👉 लडकियों किसी भी उम्र मे जिहादियो से फस जाती है 

👉 लगभग सभी मामलों मे मुसलिम लडके, हिन्दू लडकियों को बाइक की सवारी पर घुमाने ले जाते है जिससे हिन्दू लडकियों को महसूस कराया जाय कि वह स्वतंत्र है और उन्हें भी आजादी से जीने का हक है 

👉 मुस्लिम लडको को लडकियों मे यौन क्रिया को जागरूक करने के लिए अलग से प्रशिक्षित किया जाता है, वे लडकियों का हाथ पकड़कर एक दोस्ताना गले लगाकर अनुचित स्थानो को गलती से छूकर शुरू करते है अगर लड़की विरोध करती है तो अनजान बनने का नाटक करके उसका विश्वास जीतने की कोशिश करते है जब तक लड़की पूरी तरह से उनके काबू मे न आ जाय, फिर जब लड़की इनके प्रेम जाल मे फस कर अपना सब कुछ न्यौछावर कर देती है तब उसके शारिरिक संबंधों का विडियो गुप्त रूप से बना लिया जाता है ताकि लड़की को बलैकमेल करके उससे कुछ भी गलत कराया जा सके 

👉 इस मामले मे ज्यादातर मातापिता तब तक अनजान रहते है अपने बहन बेटियों के बारे मे जब पता लगता है तब तक बहुत देर हो चुका होता है और मामला हाथ से निकलता प्रतीत होता है 

👉 एक बार जब मातापिता को पता चलता है तब वे इस संबंध को तोड़ने की कोशिश करते है तब ये मुस्लिम लड़के हिन्दू लडकियों को घर से भागने के लिए दबाव बनाते है या हिन्दू लडकियों को उनके शारीरिक संबंधों के विडियो को वायरल करने की धमकी देकर बलैकमेल करने की कोशिश करते है इस बात से हिन्दू लड़की अनजान रहती है कि उसकी अनुमति के बिना उसका विडियो बनाया गया है 

👉 अगर लड़की विरोध करती है और संबंध तोडने को कहती है तब मुसलिम लडका विडियो को वायरल करने की धमकी देकर बदनाम करने की कोशिश करता रहेगा और फिर उस लड़की पर अपना विश्वास बनाने के लिए उससे शादी करने का भरोसा दिलाएगा

👉 यदि लड़की के मातापिता इस मामले मे हस्तक्षेप करते है तो लडका अस्थायी रूप से लडकी से दूर रहेगा और लडकी के 18 साल हो जाने के बाद वह फिर से लडकी से संम्पर्क करके उसको अपने जाल मे फसा लेता है और लडकी पूरी तरह से उसके मोहपाश मे ऐसी जकड़ जाती है कि वह अपने मातापिता के विरोध मे खड़ी हो जाती है, उस लडकी को अपने परिवार से ज्यादा अच्छा उसका प्रेमी लगता है जिसके लिए वो कुछ भी करने को तैयार हो जाती है 

👉 अधिकतर मामलों मे हिन्दू लडकियाँ अपने मुस्लिम प्रेमी के साथ घर छोड़कर भाग जाती है और शादी करने से पहले खुशी खुशी अपना धर्म परिवर्तन कर लेती है फिर उसके साथ निकाह कर लेती है, लगभग 6 माह या 1 साल तक उनको कोई समस्या नही होती बडे प्यार के साथ हसी खुशी अपनी जिन्दगी काटती है, फिर उनके साथ शुरू होता है घने यातनाओं का दौर मारपीट गाली गलौज का दौर 

👉 अब वह मुस्लिम लडका उस लडकी को छोड़ किसी दूसरी हिन्दू लड़की से शादी करेगा 

👉 अब पहली लडकी इस मामले मे अपना विरोध जरूर करेगी तब उसके विरोध के स्वर को दबाने के लिए उस मुस्लिम लडके के घर के बाप भाई द्वारा उसका बलात्कार किया जायेगा और उस परिवार की मुस्लिम महिलाएँ दिन प्रति दिन उसकी कुटाई जमकर करती रहेंगी 

👉 कई मामलों मे अगर लडकी ज्यादा विरोध करती है तब उसको मोबाइल के बिना घर के अंदर कमरे मे बंद कर दिया जाता है बिलकुल जेल की तरह फिर उस कमरे मे लगातार लडकी का यौन शोषण का अंतहीन दौर मुस्लिम पुरुषो द्वारा किया जाने लगता है उसको अपने मित्रों और रिश्तेदार पुरुषो मे भी यौन शोषण करने के लिए सौप दिया जाता है 

👉 अगर फिर भी किसी तरह से लडकी उनके चंगुल से भाग जाती है तब उसको अपने बच्चे की कस्टडी नही मिलती है अगर उसका 2 बच्चा है तो दूसरा बच्चा पति को ही मिलेगा यह कानून उसका समर्थन करेगा

👉 अगर न्यायालय मासिक भुगतान लडकी को देने को कहती है तो भी पति उसको भुगतान नही करेगा क्योंकि यह एक असमान्य शादी है क्योंकि वह हिन्दू से मुस्लिम बन गयी होती है इसलिए मुस्लिम कानून के अनुसार लडकी अपने पति की संपति पर कोई अधिकार का दावा नही पेश कर सकती है लेकिन लड़का हिन्दू रीति रिवाज के अनुसार लडकी के मातापिता की संपत्ति पर अपना अधिकार का दावा कर सकता है 

👉 अधिकतर मामलों मे लव जिहाद की शिकार हिन्दू लडकियों की जिन्दगी बरबाद ही हो जाती है कई मामलों मे उनकी हत्या तक हो जाती है 

इसलिए हर हिन्दू मातापिता अपनी लडकियों को हिन्दू धर्म से और संस्कारों से परिचित कराये उनको इस खतरे से आगाह कराये  उनके मित्रों पर ध्यान दे उनके मोबाइल और कंप्यूटर पर नजर बनाए रखे उनके दायरे मे आने वाले हर पुरुषो पर नजर बनाए रखे और अपनी बहन बेटी से अच्छे  मधुर संबंध बनाए जिससे वह अपने दिल की बात बिना झिझक आपसे साँझा कर सके 
क्योंकि सावधानी ही बचाव है 

अगर फिर भी लडकी जिहादियो से फस जाय तो उस पर अपना क्रोध न करे बल्कि उसको अपने पूरे विश्वास मे ले जिससे जिहादी को लड़की पर सहानुभूति जताने का कोई मौका न मिल सके अगर लडकी को कोई गलत विडियो जिहादियो ने बनाया भी है तो अपने लडकी को कमजोर न करे उसके साथ उसके इस पल मे उसका साथ दे और लडके पर कानूनी कार्यवाही करे और जरूरत पडने पर लडकी को किसी अच्छे साइयट्रिक से सम्पर्क करे जिससे वह इस विषम घडी से बाहर आ सके। 

क्या वास्तव में ऐसा ही है ?

यदि हमारे पूर्वज युद्ध हारते ही रहे तो हम 1400 साल से जिंदा कैसे हैं... 
हम 1400 सालों से हिन्दू कैसे बने हुए हैं... 
हमारे पूर्वजों की भूमि की चौहद्दी प्रायः वैसी ही क्यूँ है... 
और उसी चौहद्दी को पुनः हासिल करने को हम प्रतिबद्ध क्यूँ है—

आजकल लोगों की एक सोच बन गई है कि राजपूतों ने लड़ाई तो की, लेकिन वे एक हारे हुए योद्धा थे, जो कभी अलाउद्दीन से हारे, कभी बाबर से हारे, कभी अकबर से, कभी औरंगज़ेब से...

क्या वास्तव में ऐसा ही है ?

यहां तक कि समाज में भी ऐसे कईं राजपूत हैं, जो महाराणा प्रताप, पृथ्वीराज चौहान आदि योद्धाओं को महान तो कहते हैं, लेकिन उनके मन में ये हारे हुए योद्धा ही हैं

महाराणा प्रताप के बारे में ऐसी पंक्तियाँ गर्व के साथ सुनाई जाती हैं :-

"जीत हार की बात न करिए, संघर्षों पर ध्यान करो"

"कुछ लोग जीतकर भी हार जाते हैं, कुछ हारकर भी जीत जाते हैं"

असल बात ये है कि हमें वही इतिहास पढ़ाया जाता है, जिनमें हम हारे हैं

* मेवाड़ के राणा सांगा ने 100 से अधिक युद्ध लड़े, जिनमें मात्र एक युद्ध में पराजित हुए और आज उसी एक युद्ध के बारे में दुनिया जानती है, उसी युद्ध से राणा सांगा का इतिहास शुरु किया जाता है और उसी पर ख़त्म

राणा सांगा द्वारा लड़े गए खंडार, अहमदनगर, बाड़ी, गागरोन, बयाना, ईडर, खातौली जैसे युद्धों की बात आती है तो शायद हम बता नहीं पाएंगे और अगर बता भी पाए तो उतना नहीं जितना खानवा के बारे में बता सकते हैं

भले ही खातौली के युद्ध में राणा सांगा अपना एक हाथ व एक पैर गंवाकर दिल्ली के इब्राहिम लोदी को दिल्ली तक खदेड़ दे, तो वो मायने नहीं रखता, बयाना के युद्ध में बाबर को भागना पड़ा हो तब भी वह गौण है

मायने रखता है तो खानवा का युद्ध जिसमें मुगल बादशाह बाबर ने राणा सांगा को पराजित किया

सम्राट पृथ्वीराज चौहान की बात आती है तो, तराईन के दूसरे युद्ध में गौरी ने पृथ्वीराज चौहान को हराया

तराईन का युद्ध तो पृथ्वीराज चौहान द्वारा लडा गया आखिरी युद्ध था, उससे पहले उनके द्वारा लड़े गए युद्धों के बारे में कितना जानते हैं हम ?

* इसी तरह महाराणा प्रताप का ज़िक्र आता है तो हल्दीघाटी नाम सबसे पहले सुनाई देता है

हालांकि इस युद्ध के परिणाम शुरु से ही विवादास्पद रहे, कभी अनिर्णित माना गया, कभी अकबर को विजेता माना तो हाल ही में महाराणा को विजेता माना

बहरहाल, महाराणा प्रताप ने गोगुन्दा, चावण्ड, मोही, मदारिया, कुम्भलगढ़, ईडर, मांडल, दिवेर जैसे कुल 21 बड़े युद्ध जीते व 300 से अधिक मुगल छावनियों को ध्वस्त किया

महाराणा प्रताप के समय मेवाड़ में लगभग 50 दुर्ग थे, जिनमें से तकरीबन सभी पर मुगलों का अधिकार हो चुका था व 26 दुर्गों के नाम बदलकर मुस्लिम नाम रखे गए, जैसे उदयपुर बना मुहम्मदाबाद, चित्तौड़गढ़ बना अकबराबाद

फिर कैसे आज उदयपुर को हम उदयपुर के नाम से ही जानते हैं ?... ये हमें कोई नहीं बताता

असल में इन 50 में से 2 दुर्ग छोड़कर शेष सभी पर महाराणा प्रताप ने विजय प्राप्त की थी व लगभग सम्पूर्ण मेवाड़ पर दोबारा अधिकार किया था

दिवेर जैसे युद्ध में भले ही महाराणा के पुत्र अमरसिंह ने अकबर के काका सुल्तान खां को भाले के प्रहार से कवच समेत ही क्यों न भेद दिया हो, लेकिन हम तो सिर्फ हल्दीघाटी युद्ध का इतिहास पढ़ेंगे, बाकी युद्ध तो सब गौण हैं इसके आगे!!!!

* महाराणा अमरसिंह ने मुगल बादशाह जहांगीर से 17 बड़े युद्ध लड़े व 100 से अधिक मुगल चौकियां ध्वस्त कीं, लेकिन हमें सिर्फ ये पढ़ाया जाता है कि 1615 ई. में महाराणा अमरसिंह ने मुगलों से संधि की | ये कोई नहीं बताएगा कि 1597 ई. से 1615 ई. के बीच क्या क्या हुआ |

* महाराणा कुम्भा ने 32 दुर्ग बनवाए, कई ग्रंथ लिखे, विजय स्तंभ बनवाया, ये हम जानते हैं, पर क्या आप उनके द्वारा लड़े गए गिनती के 4-5 युद्धों के नाम भी बता सकते हैं ?

महाराणा कुम्भा ने आबू, मांडलगढ़, खटकड़, जहांजपुर, गागरोन, मांडू, नराणा, मलारणा, अजमेर, मोडालगढ़, खाटू, जांगल प्रदेश, कांसली, नारदीयनगर, हमीरपुर, शोन्यानगरी, वायसपुर, धान्यनगर, सिंहपुर, बसन्तगढ़, वासा, पिण्डवाड़ा, शाकम्भरी, सांभर, चाटसू, खंडेला, आमेर, सीहारे, जोगिनीपुर, विशाल नगर, जानागढ़, हमीरनगर, कोटड़ा, मल्लारगढ़, रणथम्भौर, डूंगरपुर, बूंदी, नागौर, हाड़ौती समेत 100 से अधिक युद्ध लड़े व अपने पूरे जीवनकाल में किसी भी युद्ध में पराजय का मुंह नहीं देखा

* चित्तौड़गढ़ दुर्ग की बात आती है तो सिर्फ 3 युद्धों की चर्चा होती है :-
1) अलाउद्दीन ने रावल रतनसिंह को पराजित किया
2) बहादुरशाह ने राणा विक्रमादित्य के समय चित्तौड़गढ़ दुर्ग जीता
3) अकबर ने महाराणा उदयसिंह को पराजित कर दुर्ग पर अधिकार किया

क्या इन तीन युद्धों के अलावा चित्तौड़गढ़ पर कभी कोई हमले नहीं हुए ?

* इस तरह राजपूतों ने जो युद्ध हारे हैं, इतिहास में हमें वही पढ़ाया जाता है

बहुत से लोग हमें नसीहत देते हैं कि तुम राजपूतों के पूर्वजों ने सही रणनीति से काम नहीं लिया, घटिया हथियारों का इस्तेमाल किया इसीलिए हमेशा हारे हो

अब उन्हें किन शब्दों में समझाएं कि उन्हीं हथियारों से हमने अनगिनत युद्ध जीते हैं, मातृभूमि का लहू से अभिषेक किया है, सैंकड़ों वर्षों तक विदेशी शत्रुओं की आग उगलती तोपों का अपनी तलवारों से सामना किया है

लेकिन अब सेक्यूलरता बहुत बड़ गई है ,बच्चों को भी झूटा इतिहास रटाया जा रहा है ,जरूरत है इतिहास मे संसोधन करने की जिससे की सत्य सभी के सामने आये 
वन्दे मातरम। 

Thursday, June 4, 2020

पंडित जी और नाविक:-

आज गंगा पार होने के लिए कई लोग एक नौका में बैठे, धीरे-धीरे नौका सवारियों के साथ सामने वाले किनारे की ओर बढ़ रही थी, एक पंडित जी भी उसमें सवार थे। पंडित जी ने नाविक से पूछा “क्या तुमने भूगोल पढ़ी है?”

भोला- भाला नाविक बोला “भूगोल क्या है इसका मुझे कुछ पता नहीं।”

पंडितजी ने पंडिताई का प्रदर्शन करते कहा, “तुम्हारी पाव भर जिंदगी पानी में गई।”

फिर पंडित जी ने दूसरा प्रश्न किया, “क्या इतिहास जानते हो? महारानी लक्ष्मीबाई कब और कहाँ हुई तथा उन्होंने कैसे लडाई की ?”

नाविक ने अपनी अनभिज्ञता जाहिर की तो  पंडित जी ने विजयीमुद्रा में कहा “ ये भी नहीं जानते तुम्हारी तो आधी जिंदगी पानी में गई।”

फिर विद्या के मद में पंडित जी ने तीसरा प्रश्न पूछा “महाभारत का भीष्म-नाविक संवाद या रामायण का केवट और भगवान श्रीराम का संवाद जानते हो?”

अनपढ़ नाविक क्या कहे, उसने इशारे में ना कहा, तब पंडित जी मुस्कुराते हुए बोले “तुम्हारी तो पौनी जिंदगी पानी में गई।”

तभी अचानक गंगा में प्रवाह तीव्र होने लगा। नाविक ने सभी को तूफान की चेतावनी दी, और पंडितजी से पूछा “नौका तो तूफान में डूब सकती है, क्या आपको तैरना आता है?”

पंडित जी गभराहट में बोले “मुझे तो तैरना-वैरना नहीं आता है ?”

नाविक ने स्थिति भांपते हुए कहा ,“तब तो समझो आपकी पूरी जिंदगी पानी में गयी।”

कुछ ही देर में नौका पलट गई। और पंडित जी बह गए।

मित्रों, विद्या वाद-विवाद के लिए नहीं है और ना ही दूसरों को नीचा दिखाने के लिए है। लेकिन कभी-कभी ज्ञान के अभिमान में कुछ लोग इस बात को भूल जाते हैं और दूसरों का अपमान कर बैठते हैं। याद रखिये शाश्त्रों का ज्ञान समस्याओं के समाधान में प्रयोग होना चाहिए शश्त्र बना कर हिंसा करने के लिए नहीं।

कहा भी गया है, जो पेड़ फलों से लदा होता है उसकी डालियाँ झुक जाती हैं। धन प्राप्ति होने पर सज्जनों में शालीनता आ जाती है। इसी तरह, विद्या जब विनयी के पास आती है तो वह शोभित हो जाती है। इसीलिए संस्कृत में कहा गया है, ‘विद्या विनयेन शोभते।’

पोस्ट बहुत ही ज्ञानवर्धक है ध्यान से पढ़ें।

एक यादव जी की परिश्रम सफल हो गई।  वह सरकारी विभाग में एक बहुत बड़े पद पर कार्यरत थे|

वह अपने आप को मल-मूत्र निवासी कहने वाले व्यक्ति के पास गए और बोले मैं अपनी मेहनत एवं परिश्रम से आज एक सरकारी पद पर कार्यरत हूं।

मल मूत्र निवासी- गलत है साहब पर यह जो आपकी नौकरी है हमारे  बाबा साहब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर  जी की देन है।

यादव जी तो पढ़े लिखे थे उन्होंने तत्काल जवाब दिया मेरी नौकरी में  साहब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर  जी की क्या देन है? 
मैं तो आभीर(अहीर) हूं यादव हूं मेरे पूर्वज तो राजा महाराजा रहे उत्तर भारत से लेकर दक्षिण भारत तक| मुगल एवं अंग्रेजी शासन के कालखंड बस हम सामाजिक एवं आर्थिक रूप से पिछड़ गए भला हो सामान्य जाति के बीपी सिंह का जिन्होंने आर्टिकल 340 के अंतर्गत हमारे आर्थिक एवं सामाजिक स्थिति को देखते हुए 27% आरक्षण से नवाजा जिसकी वजह से आज हम नौकरी कर रहे हैं इसमें बाबा साहब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जी का क्या योगदान है?

 मल-मूत्र निवासी - लेकिन संविधान तो हमारे बाबा  साहब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर  जी  ने बनाया था 

यादव जी ने फिर अपनी बुद्धि का प्रदर्शन किया और बोल उठे- काहे का संविधान मल-मूत्र निवासी 70 साल हो गए अभी भी आपकी बुद्धि अंग्रेजों की गुलामी वाली ही है क्या? कुछ पढ़े लिखे हो कि अंगूठा छाप ही हो? भारतीय संविधान बनाने में तो 386 लोग थे जो संविधान सभा के सदस्य थे| पूर्व राष्ट्रपति माननीय राजेंद्र प्रसाद जी संविधान सभा के अध्यक्ष थे अन्य लोगों की तरह अंबेडकर भी संविधान सभा में एक सदस्य थे उन्होंने केवल महाराष्ट्र में 12 प्रकार की अछूत जातियों के लिए संविधान में सुझाव दिए थे खासकर उसमें महार एवं चमार प्रमुख थे तो इसमें अहिर अर्थात यादवों के लिए क्या किया? वैसे भी संविधान समिति संविधान प्रारूप समिति के प्रमुख बीएन राव यादव थे, संविधान को अपने हाथों से लिखने वाले प्रेम बिहारी रायजादा थे तो आपके 
बाबा साहब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जी क्या कर रहे थे?

अपने आप को  मल-मूल निवासी कहने वाले-
हमारे बाबा साहब नहीं होते तो तुम्हारे घर की महिलाओं को पढ़ने की आजादी नहीं होती! उनको सती प्रथा में जला दिया जाता था बाल विवाह कर दिया जाता था जिसको बाबा साहब ने बंद करवाया| तुम्हें मंदिर में घुसे नहीं जाता था तुम तो क्यों मंदिर में चढ़ावा के लिए हो पुजारी नहीं बन सकते!

यादव जी ने एक बार फिर से मजबूती के साथ अपना पक्ष रखा- अफ्रीकी मल-मूत्र निवासी काले साहब- काहे को झूठ बोल रहे हो? यादव हूं मूर्ख नहीं आप की तरह! आप कह रहे हो कि बाबा साहब ने महिलाओं को पढ़ने का अधिकार दिया| जबकि संविधान बनने से पहले ही संविधान सभा में 15 महिलाएं थी उसमें से 90% महिलाएं पढ़ी-लिखी ग्रेजुएट थी| जिनका नाम 
अम्मू स्वामीनाथन,दक्षिणानी वेलायुद्ध,बेगम एजाज रसूल,दुर्गाबाई देशमुख,हंसा जिवराज मेहता,कमला चौधरी,लीला रॉय,मालती चौधरी,
पूर्णिमा बनर्जी,राजकुमारी अमृत कौर,रेनुका रे,सरोजिनी नायडू, सुचेता कृपलानी,विजया लक्ष्मी पंडित,एनी मास्कारेन अब बताइए आपके बाबा साहब ने किन महिलाओं को पढ़ने का अधिकार दिया था?
और रही बात बाल विवाह कानून की तो वह 1929 में ही आ गया था जब भारत का संविधान ही नहीं बना था! और रही बात सती प्रथा की तो वह कानून 1829 में ही आ गया था जब भारत का संविधान ही नहीं बना था! खरिया सब सामाजिक बुराइयां है जिन को खत्म करने के लिए खुद ही हिंदू समाज के लोग आगे आए थे ईश्वरचंद विद्यासागर,राधा मोहन राय आदि इसमें आपके बाबा साहब ने क्या किया था? आपके बाबा साहेब इतने ही महान थे तो मुस्लिम महिलाओं को हलाला,मुताह, तीन तलाक आदि जैसे मुस्लिम महिलाओं पर हो रहे अत्याचार को क्यों नहीं बंद करवाया क्या वह महिला नहीं थी या आपके बाबा साहेब डरते थे इस्लामिक जिहाद से? और रही बात मंदिर की तो मंदिर,मस्जिद, गुरुद्वारा,चर्च आदि यह हमारी धार्मिक स्वतंत्र अभिव्यक्ति की आजादी है मुस्लिम में मौलाना ,काजी| ईसाई में फादर| सिख में गुरु ग्रंथि| जैन एवं बौद्ध में भंते एवं भिक्षु | वैसे ही हिंदू में पुजारी होते हैं हम उनसे अपने आराध्य की पूजा करवाते हैं उनको मजदूरी देते हैं तो आपको क्यों जलन हो रही है हमारे लगभग सभी मंदिर ट्रस्ट होते हैं साउथ के मंदिर बालाजी में हमारी यादव समाज से ही ट्रस्ट के अध्यक्ष रह चुके हैं, पूजा पूजा पाठ कर आना पुजारियों को काम होता है मालिकों का नही!  मौलाना निकाह करा सकता है, स्वागत विवाह करा सकता है ,बौद्ध भिक्षु विवाह करा सकता है, सिख विवाह करा सकता है, इसके अलावा पूजा भी करा सकता है। तो हिंदुओं में पुजारी यह सब क्यों नहीं करा सकते? तुम केवल हिंदुओं पर ही क्यों सवाल उठाते हो? अन्य लोगों से सवाल पूछने में तुम्हारी फटती है क्या? 
अपने आराध्य एवं वंशजों की पूजा पाठ करवाना उन्हें श्रद्धा सुमन समर्पित करना कब से पाखंड हो गया? आप लोग इतने दिन से विज्ञान-विज्ञान चिल्ला रहे हैं, आज तक नासा एवं इसरो में एक भी % अपने आपको मल-मूत्र निवासी कहने वाले क्यों नहीं है? अंतरराष्ट्रीय आईटी कंपनी गूगल का सीईओ ब्राह्मण क्यों है? माइक्रोसॉफ्ट का CEO ब्राह्मण क्यों है? सबसे बड़े पाखंडी तो आप लोग ही हो 70 साल से आरक्षित होकर भी अंगूठा छाप बने खुद को वैज्ञानिक कहते हो?
हम जितने बड़े धार्मिक है उतने बड़े वैज्ञानिक सोच के व्यक्ति भी हैं विज्ञान हमारा सहायक है साधक नहीं! विज्ञान हमसे है हम विज्ञान से नहीं!

 मल-मूल निवासी - लेकिन आप लोग मंदिरों में चढ़ावा चढ़ाते हैं ?पैसे चढ़ाते हैं? उससे क्या फायदा होता है?
लेकिन जब बीमारी से इलाज की बात आती है तो डॉक्टर करते हैं।
देवी देवताओं एवं आराध्यों को चढ़ावा करने से क्या फायदा?

यादव जी ने फिर अपनी बुद्धि का परिचय दिया और बोले-हम चढावा चढाते है अपने पूर्वजों एवं कुलदेवियों को श्रद्धा प्रदर्शित करने के लिए ना कि उनसे कुछ लेने के लिए! यह काम तो आप लोगों का जय बाबा -जय बाबा करते हो और फ्री का राशन एससी,एसटी वेलफेयर  में लाखों करोड़ों का फंड जनता के टैक्स से लेते हो| और रही बात डॉक्टर की तो डॉक्टर हमारा इलाज करते हैं , हमें हमेशा के लिए अमर नहीं कर देते! इलाज काम से पैसा लेते हैं जैसे मंदिरों में पैसे देते हैं वैसे हम डॉक्टरों को ही पैसे देते हैं फ्री में नहीं करते! डॉक्टर और बीमारी एवं दवाई एक प्रकार का बिजनेस है जिसके विस्तार में तीनों एक दूसरे के पूरक है पहले बीमारी पैदा करते हैं फिर डॉक्टर उसका इलाज करते हैं और दवाई बनाकर व्यापार करते हैं जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण कोविड-19 है जिसको मानवों ने अपनी जिज्ञासा को अशांत करने के लिए तरह-तरह के अबोध जिओ पर परीक्षण कर उनकी हत्या करके उनके डीएनए वायरस सैंपल लिए फिर उनकी लापरवाही से उस वायरस को फैलवा करके, उसका इलाज ढूंढना है दवाई बनाएंगे, मास्क बनाएंगे, सैनिटाइजर बनाएंगे, वेंटिलेटर बनाएंगे फिर चालू होगा बिजनेस एवं व्यापार का टर्नओवर| हमारा चढ़ावा देवी देवताओं एवं आराध्यों के लिए भौतिक एवं सांसारिक सुख से मुक्ति के लिए होता है निर्माण के लिए होता है सांसारिक लाभ के लिए नहीं! जिन बीमारियों के एवं घटनाओं के जिम्मेदार प्राकृतिक आपदाओं के जिम्मेदार हम स्वयं हैं उसके लिए हम अपने देवी देवताओं एवं आराध्य को जिम्मेदार क्यों मानेंगे ?क्या उन्होंने कहा था ऐसा करने के लिए? हम कौन होते हैं ईश्वर को देने वाले?

अपने आप को मल मूत्र निवासी कहने वाले-
चलो माना कि आपने सही कहा परंतु हमारे बाबा साहब  का सम्मान  क्यों नही करते हो? उन्होंने तो संविधान में समानता का अधिकार दिया? आप उनका सम्मान करें  जिस तरीके से तुम बात कर रहे हो इससे तो लगता है तुम आर्यों के संतान हो तभी तो बौद्ध भंते त्रिपिटिका चार्य राहुल सांकृत्यायन ने साम्यवाद क्यों? पृष्ठ संख्या 143 पर अहिर अर्थात यादव को आर्यों का पुत्र कहा है|

यादव जी ने फिर से अपनी बुद्धि का परिचय देते हुए बोले-
अफ्रीकी मल मूत्र निवासी जी राहुल सांकृत्यायन ने सही कहा है हम अहिर अर्थात यादव आर्यों के ही वंशज है, यदु पृथु सब आर्यों के ही कबीले थे|
लेकिन तुम भी कम नहीं हो तुम्हारे रंग रूप शक्ल के हाव-भाव शरीर की बनावट अफ्रीका के मलमूत्र निवासियों से मैच करती है। तुमको भी तो बहुत इतिहासकारों ने अफ़्रीका युगांडा ऑस्ट्रेलिया का माना है| हम तो इस देश के मूल निवासी है हमने तो अपनी मातृभूमि को ही महत्त्व दिया है हमारे आदि ग्रंथ वेदों में भी जिसको यूनेस्को संरक्षित करके रखा है उसमें भी हमने भारत भूमि को माता ही कहा है| तुम संविधान के किस समानता की बात करते हो वही संविधान जो सबके लिए अपराध कर एक कानून और आपके लिए अलग से एससी एसटी एक्ट? फिर संविधान समानता की बात कैसे करता है संविधान की प्रस्तावना के मूल अधिकार में आर्टिकल 14 कहता है जाति धर्म के आधार पर कोई भी व्यक्ति आरक्षित नहीं होगा फिर आपको जाति के आधार पर आरक्षण कैसे मिल गया और हम ओबीसी को आर्थिक एवं सामाजिक आधार पर यह तो संविधान के सबसे बड़े आसमान तक का पर्याय है|

यादव जी ने अपनी बुद्धि का इस्तेमाल करते हुए लास्ट में बोले- सबसे बड़ा ही प्रमाण है कि ओबीसी जनरल दोनों पर लगने वाला एससी एसटी एक्ट ही हम को उनके समीप ज्यादा रखती है आपसे दूर हम यादव हैं अर्थात आ ही रहे हमारे समाज में महापुरुषों की कमी नहीं है हमारे आदि पुरुष यदुवंशी श्री कृष्ण और बहुत से उत्तरण दक्षिण भारत में अहिर एवं यादव राजवंशों का अस्तित्व आज भी अभिलेखों में मौजूद है हम शिक्षित आर्थिक रूप से मजबूत अपने परिश्रम से है किसी बाबा साहब की मदद से नहीं।
 हम यादव पर लगने वाला एससी एसटी एक्ट ही तुम्हारी मय्यत में आखिरी कील होगा| हम वह यादव नहीं जो हमको बहुजन वाद ब्राह्मणवाद मनुवादी में उलझा करके हम को उल्लू बना दोगे हम कृष्ण के वंशज हैं वीर लोरिक अहिर के वंशज है| शिक्षा का प्रसार हो रहा है  बाबा साहेब के नाम पर झूठ फ़ैलाने वालो की पोल खुल रही है|उन्होने किसके लिए क्या किया जग जाहिर है|वह महारों एवं चमारों के बाबा होंगे हमारे नहीं हमारे नंदलाल, गोपाल, मुरलीधर, यदुवंशी माधव है श्रेष्ठ है एवं उनके मित्र सुदामा जैसे बिप्र|

     जय यादव- जय माधव
शिक्षित समाज- जागृत समाज
 

सनातन धर्म के खिलाफ एवं ऐसा ही पोस्ट आया था उसी पोस्ट को मद्देनजर रखते हुए मैंने यह पोस्ट बनाया है

आज से 3 या 4 साल पहले सोशल साइट पर डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जी को लेकर कोई कुछ भी विरोध नहीं करता था लेकिन आज सभी लोगों को भीमराव अंबेडकर जी का विरोधी बना रहे हैं उनके नाम के पीछे छुप कर जो क्रिप्टो क्रिश्चियन हैं सनातन धर्म के खिलाफ पोस्ट कर रहे हैं और जो अपने आप को कथाकथि दलित कहने वाले लोग हैं इनके षड्यंत्र को समझ नहीं पा रहे हैं और यह भी उनके बहकावे में आ गए हैं।

हमें यह सब पोस्ट लिखना अच्छा नहीं लगता है लेकिन मजबूरी में लिखना पड़ता है ।

कोविड19 : समाज के नाश का महाषड्यंत्र?

* Physical distancing को social distancing क्यों कहा? जरा सोचिए! कोई षड्यंत्र दिखा? आप डरे हुए हैं तो नहीं सोच पायेंगे।

* समाज में व्यक्ति में साथ होने का भाव होता है। साथ हिम्मत देता है। जबकि भीड़ में व्यक्ति में अकेला होने का भाव होता है। अकेलापन डर पैदा करता है।

* समाज, रोगी की सेवा/चिकित्सा करता है। भीड़, रोगी को मरने के लिए अकेला छोड़ देती है। इतना ही नहीं, कोई सेवा करना चाहे तो उसे भी पास नहीं जाने देती।

* व्यक्ति को समाज से अलग कर TV-मोबाइल से दिन-रात डराओ। वह भयंकर कायर हो जायेगा, उसका सोचना बंद हो जायेगा। फिर आप जैसे नचाओगे, नाचेगा क्योंकि कायर का खुदका दिमाग काम नहीं करता।

– साबुन से हाथ धोओ। वह दिनभर धोता रहेगा।
– हाथ केमिकल से sanitize करो, वह यही करता कराता रहेगा।
इतना ही नहीं, यदि पूरी body पर sanitizer छिड़क दो तो उसे स्वर्ग से कम की अनुभूति नहीं होगी।
– कोविड19 हवा से नहीं फैलता फिर भी मास्क लगाओ, वह यही करेगा। 

मैं रोज घर से निकलता हूँ। पिछले 70 दिन में रोज कई लोगों/मरीजों से मिला हूँ। मैंने आज तक एक बार भी साबुन, sanitizer का उपयोग नहीं किया, मास्क नहीं लगाया। 

मैं जैसे पहले हाथ धोता था, उसी तरह धोता हूँ। साबुन की जगह मिट्टी से या गोबर की राख से हाथ धोता था, धोता हूँ। मास्क की जगह नाक में देशी गाय का घी डालता हूँ, पहले भी डालता था।

भारत के लोगों की इम्युनिटी और देशों की तुलना में अच्छी है। क्यों? भारत की सरकार होती तो इसका प्रचार करती लेकिन देश में तो इंडियन सरकार है जो अपने वैश्विक आकाओं (MNC, WHO, UN...) और भक्तों से पीठ ठुकवाने - शाबासी बटोरने में लगी है – देखो! जो काम अमेरिका, फ्रांस, इटली, स्पेन .... न कर सका, मोदीजी ने कड़ा कदम उठाकर कर दिखाया। 135 करोड़ के भारत में 70 दिनों में COVID19 से सिर्फ 5000 लोग मरे हैं। 

वास्तविकता यह है कि मोदीजी हड़बड़ी में लॉक डाउन न करते तो इतने लोग भी न मरते। ये मुख्यतः हड़बड़ी से फैली अराजकता, अव्यवस्था और भय से मरे हैं।

भारत के लोगों की इम्युनिटी बढ़िया होने का कारण –
1. यहाँ मांस खानेवालों का भी 90% भोजन शाकाहारी है।
2. यहाँ अधिकतर लोग माँ-पत्नी द्वारा प्रेम से बनाया पारम्परिक व ताजा भोजन ही करते हैं।
3. इंडिया में गरीबी के कारण ही क्यों न हो, खेतों में अभी भी पश्चिमी देशों की तुलना में कम फर्टीलाइजर-पेस्टिसाइड डाला जा रहा है और इंडियन सरकारों की तमाम कोशिशों के बाद भी भारतीयों ने 7 करोड़ देशी गाय-बैल कत्लखानों तक नहीं पहुँचने दिये। इनका अन्न को अमृत बनानेवाला गोबर खेतों में पहुँच रहा है।
4. कुछ गिने-चुने इंडियन AC में रहते हैं, भारतीय तो खुली हवा में साँस लेना पसन्द करते हैं।
5. भारतीयों को अन्य देशों की अपेक्षा सूर्य का लाभ अधिक मिलता है।
6. यहाँ सप्ताह-15 दिन में उपवास की परंपरा है।
7. भारतीयों के घरों में बाहर के जूते-चप्पल नहीं चलते।
8. 99% branded चीजें घटिया होती हैं। अभी पश्चिम की तरह हमारे लोग branded के 100% गुलाम नहीं हुए हैं।
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संक्षेप में हमारे देश की इम्युनिटी बढ़िया होने का कारण – इंडिया में अभी भी भारत जिंदा है।

समाज के नाश का षड्यंत्र आज नहीं, हजारों वर्षों से चल रहा है –
जिस पश्चिम का इंडिया दीवाना है, वहाँ 500 साल पहले जनता को शादी की अनुमति नहीं थी। क्यों? क्योंकि उनके फिलॉसफर एरिस्टोटल का मानना था कि शादी हुई तो परिवार बनेगा, परिवार से समाज बनेगा, समाज राजा के लिए खतरा है। ईसाइयत के उदय के बाद बिना शादी के पैदा हुए बच्चों को एक religious institute में रखा जाने लगा, जिसे 'CONVENT' कहते हैं। उसे सिर्फ यह बताया जाता था कि वह पाप की औलाद है, इसलिए गुलाम रहकर अपने पापों को काटे। चर्च की नन व प्रिस्ट ही उसके माई-बाप हैं, इसलिए वह उन्हें ही Mother-Father कहता था। सोचा कि आपको convent में पढ़े होने का गर्व हो तो उसकी असलियत बताता चलूँ।

जो ईरान में हुआ, भारत में भी होगा?

इस्लाम ने दुनिया की बहुत सी सभ्यताओं को लील लिया और अंधकार युग में पहुंचा दिया। ऐसा हुआ तो विश्व से सभ्यताओं के साथ ही मानवता नष्ट हो जाएगी। ईरान को इस्लामी चंगुल से छुड़ाना होगा और भारत को इस्लाम से बचाना होगा।

क्या भारत में वही हो रहा है, जो ईरान में हुआ। इस्लाम दमनकारी है और यह मानव के जीवन में अतिक्रमण करता है.. निजता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता को नष्ट कर गुलामों जैसा जीवन व्यतीत करने पर मजबूर करता है.. दमन व अत्याचार के हथियार से ही ये अब तक सफलता प्राप्त करता रहा है। इन फोटो में देखिए, मजहबी कूरता का रूप। एक इस्लाम के कब्जे से पूर्व का ईरान है, जहां आनंद, स्वतंत्रता और सभ्यता है और दूसरी फोटो आज के इस्लामी अंधकार युग के ईरान की है। इसी तरह तीसरी फोटो भारत की मुसलमान महिलाओं की हैं, जिन्हें मजहबी दमन के कारण मनुष्य की तरह रहने, पहनने तक के अधिकार नहीं मिल रहे। 

इस्लाम की यह रणनीति आज से नहीं, मुहम्मद के समय से है। है। काबा में 360 मूर्तियां थीं और ये मूर्तियां अलग-अलग जनजातियों के संरक्षकों की थीं। उस समय अरब में यहूदी, ईसाई, जोराष्ट्रियन, सैबियंस (लुप्त हो चुका अद्वैतवादी सम्प्रदाय) और सभी तरह के धर्मावलंबी रहते थे। ये सभी स्वंत्रतापूर्वक अपने-अपने धर्म को निभाते थे। इस्लाम के आने के साथ ही अरब में धार्मिक असहिष्णुता पैदा हुई। मुहम्मद की अगुवाई में अरब प्रायद्वीप की उन्नत सभ्यता को नष्ट कर इस्लामी अंधकार युग में डाल दिया गया। यही ईरान में हुआ और यही गजवा-ए-हिंद के रूप में भारत में भी हो रहा है। 

ईरान अर्थात फारस की सभ्यता अति उन्नत थी। इस्लाम के कब्जे से पूर्व यह वही ईरान था, जहां कला, संस्कृति और ज्ञान-विज्ञान स्थापित था। डॉ शीरीन टी. हन्टर ने ‘ईरान डिवाइडेड: द हिस्टारिकल रूट्स ऑफ इरानियन डिबेट्स ऑन आइडेंटिटी, कल्चर...’ में लिखते हैं कि अतिवादी ईरानी स्कूल ऑफ थॉट का कहना है कि इस्लाम से पूर्व ईरान में असभ्यता और अंधकार था। जबकि सच यह है कि इस्लाम के आने के बाद ईरान अंधकारयुग में चला गया। देखते-देखते अरब और इस्लाम ईरान की महान सभ्यता को लील गए । ईसा पूर्व 550 में मदीना, बेबीलोनिया साम्राज्य को पराजित कर जिस सभ्यता को साइरस द ग्रेट ने स्थापित किया था, उसे इस्लाम ने चंद सालों में इस्लामी कू्ररता, दमन और चरमपंथ से लूट लिया। पर कहते हैं न कि जड़ें हमेशा अपनी ओर बुलाती हैं, शायद फारस के लोगों को उनकी जड़ें पुकार रही हैं और ईरान के निर्वासित क्राउन प्रिंस रजा पहलवी की उस स्वीकारोक्ति को जीना चाहते हैं, जिसमें उन्होंने कहा था कि हां, हम ईरानी आर्य हैं। आर्य भारत के लोग भी हैं और गजवा-ए-हिंद यहां भी आर्यों को समाप्त करने के लिए पूरा जोर लगा रहा है, सऊदी की वहाबी आतंकी मानसिकता की मदद से और पेट्रोडालर के टुकड़े डालकर। 

ईरानी लेखक व चिंतक Dr. Naila H Shirazi कहती हैं, "ईरान में लोगों के जीवन की बेहतरी में इस्लाम का नाममात्र का भी योगदान नहीं है। इस्लाम अत्याचारी और दमनकारी है। लोकतंत्र की पुनस्र्थापना करनी ही होगी। वहां के लोगों को और मजबूती से खड़ा होना होगा और इस्लामी शासन के खिलाफ बगावत करनी होगी, क्राउन प्रिंस रजा पहलवी को अपने आंदोलन के माध्यम से ताकतवर बनाना होगा।" 

ईरान उस इस्लाम के अत्याचार, चरमपंथ और कू्ररता के आगे 1979 में आखिकार पराजित हो गया। पर भारत प्रारंभ से कू्रर, बर्बर और असभ्य इस्लाम से पिछले 1400 सालों से न केवल लड़ रहा है, बल्कि इस्लाम को पराजित कर रहा है। पर इधर, स्थितियां चिंताजनक हुई हैं, खासकर भारत की आजादी के बाद सत्ता हिंदू के रूप में वेश बदलकर आए मुगल नेहरू और उनके वंशजोंं के हाथों में जाने से। ये छद्मवेषी मुगल भारत की महान सभ्यता और संस्कृति को तोडऩे में बड़े पैमाने पर कामयाब भी हो चुके हैं और इन्हें यह कामयाबी इसलिए मिली कि इन्होंने गजवा-ए-हिंद यानी भारत का इस्लामीकरण सीधा करने के बजाय हिंदू होने का मुखौटा लगाकर किया। ईरान तो अंधकार युग में है और लोकतंत्र व स्वतंत्रता दमनकारी और अत्चायारी इस्लाम के चंगुल में बेडिय़ोंं में जकडक़र रखी गई है, पर भारत में अभी भी कांग्रेस व अन्य विपक्षी पार्टियों की भारतीय संस्कृति व सभ्यता के खिलाफ खतरनाक साजिशों के बावजूद लोकतंत्र का बड़ा परिमाण बचा हुआ है। 

पर सवाल यह है कि कब तक? 1000 साल की गुलामी से आजादी के बाद भी भारतीय संस्कृति के प्रतीक और उसकी सबसे पवित्र भूमि प्रयाग काल्पनिक अल्लाह के नाम पर है। विश्व के आदर्श पुरुषोत्तम राम का उनके जन्म स्थान पर मंदिर तक बनाने की स्थिति नहीं है। विश्व को आलोकित करने वाले ज्ञान-विज्ञान का स्रोत वेद और गीता को सांप्रदायिक बताकर लुप्त प्राय बनाने का षडयंत्र किया जा रहा है। विश्व को ज्ञान का भंडार देने वाली संस्कृत भाषा और उसके साहित्य को लुप्त सा कर दिया गया है। जिहाद हर रूप में, भूमि जिहाद, जनसंख्या जिहाद, लव जिहाद जोरों पर चल रहा है...

विडम्बना यह है कि छद्म हिंदू (कोप्टिक मुसलमान) के सहयोग भारत की सभ्यता और संस्कृति को नष्ट कर दारुल-इस्लाम बनाने की मानवता के खिलाफ साजिश चल रही है। ईरान से रजा पहलवी भगाए गए, भारत से उस राजा दाहिर के वंशजों को ही मुसलमानों ने नष्ट कर दिया, जिसने मुहम्मद के परिवार के लोगों की जान बचाई थी। भारत में भी इस्लाम अपनी क्रूरता और बर्बरता का रूपरंग बदलकर अब उसी धोखेबाजी व चालबाजी से मानव सभ्यता को नष्ट करने की ओर बढ़ चला है, जो तब किया था, जब इस्लाम की शुरुआत हुई थी। भारत विरोधी व  मानवता विरोधी दलों, बुद्धिजीवियों की साजिश कामयाब हुई तो इस्लाम पूरी दुनिया को निगल कर अंधकार में पहुंचा देगा। यदि भारत नाकाम हुआ तो पूरा विश्व नाकाम होगा और सभ्यता मिट जाएगी। इससे हमें लडऩा होगा, इस्लाम की साम्राज्यवादी आक्रामकता से भारतवासियों को लडऩा होगा। पूरा विश्व हमारी ओर देख रहा है, हमें बर्बर और महान सभ्यताओं को लील कर अंधकार युग में ले जाने को आतुर बर्बर, क्रूर व जेहादी इस्लाम से युद्ध जीतना ही होगा।