Sunday, December 17, 2023

नालंदा विश्वविद्यालय:

अपने प्राचीन गौरव को समझने के लिए थोड़ा सा वक्त निकाले।
 
नालंदा विश्वविद्यालय अभी तक के ज्ञात इतिहास का सबसे महान विश्वविद्यालय है, इस बात को खुद भी समझे अपने बच्चों को भी इस जानकारी से अवगत कराए।

आज सैकड़ो छात्रों पर केवल एक अध्यापक उपलब्ध होता हो परंतु हजारों वर्ष पहले इस विश्वविद्यालय के वैभव के दिनों में इसमें 10,000 से अधिक छात्र और 2,000 शिक्षक शामिल थे। यानी कि केवल 5 छात्रों पर एक अध्यापक।

नालंदा में आठ अलग-अलग परिसर और 10 मंदिर थे, साथ ही कई अन्य मेडिटेशन हॉल और क्लासरूम थे। यहाँ एक पुस्तकालय 9 मंजिला इमारत में स्थित था, जिसमें 90 लाख पांडुलिपियों सहित लाखों किताबें रखी हुई थीं।  

इस विश्वविद्यालय में सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि कोरिया, जापान, चीन, तिब्बत, इंडोनेशिया, ईरान, ग्रीस, मंगोलिया समेत कई दूसरे देशो के विद्यार्थी भी पढ़ाई के लिए आते थे। 

सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि उस दौर में यहां लिटरेचर, एस्ट्रोलॉजी, साइकोलॉजी, लॉ, एस्ट्रोनॉमी, साइंस, वारफेयर, इतिहास, मैथ्स, आर्किटेक्टर, भाषा विज्ञानं, इकोनॉमिक, मेडिसिन समेत कई विषय पढ़ाएं जाते थे।

इसका पूरा परिसर एक विशाल दीवार से घिरा हुआ था जिसमें प्रवेश के लिए एक मुख्य द्वार था। उत्तर से दक्षिण की ओर मठों की कतार थी, केन्द्रीय विद्यालय में सात बड़े कक्ष थे और इसके अलावा तीन सौ अन्य कमरे थे, इनमें व्याख्यान हुआ करते थे। 

मठ एक से अधिक मंजिल के होते थे प्रत्येक मठ के आँगन में एक कुआँ बना था। आठ विशाल भवन, दस मंदिर, अनेक प्रार्थना कक्ष तथा अध्ययन कक्ष के अलावा इस परिसर में सुंदर बगीचे तथा झीलें भी थी, इस यूनिवर्सटी में देश विदेश से पढ़ने वाले छात्रों के लिए छात्रावास की सुविधा भी थी।

इस विश्वविद्यालय में प्रवेश परीक्षा इतनी कठिन होती थी की केवल विलक्षण प्रतिभाशाली विद्यार्थी ही प्रवेश पा सकते थे। यहां आज के विश्विद्यालयों की तरह छात्रों का अपना संघ होता था। वे स्वयं इसकी व्यवस्था तथा चुनाव करते थे। 

मै शुभांगी पंडित यह सब लिख रही हूँ लेकिन जिम्मेदारी आपकी भी है।

छात्रों को किसी प्रकार की आर्थिक चिंता न थी। उनके लिए शिक्षा, भोजन, वस्त्र औषधि और उपचार सभी निःशुल्क थे। राज्य की ओर से विश्वविद्यालय को दो सौ गाँव दान में मिले थे, जिनसे प्राप्त आय और अनाज से उसका खर्च चलता था।

लगभग 800 सालों तक अस्तित्व में रहने के बाद इस विश्वविद्यालय को भूखे-नंगे, असभ्य, आदमखोरों की नजायज ओलादों ने तहस नहस कर दिया।

इसके बाद भी सेक्युलर चिन्दुओ व भीमटो को इनमे अपना बाप नजर आता है।

Friday, December 8, 2023

जयकिशन श्रॉफ!!!

◆ कजाकिस्तान के कजाख लोग कभी बौद्ध सभ्यता से प्रभावित थे. कजाख की इली नदी के किनारे क्षेत्र में चट्टानों पर गौतम बुद्धा की बेहद सुंदर तस्वीर उत्कीर्ण है.

◆ हम बात करेंगे 1930 के कम्युनिस्ट कजाकिस्तान की जो USSR साम्राज्य का हिस्सा बन चुका था. 1930-33 में स्टालिन की सामूहिक कृषि  नियमों के कारण कजाकिस्तान में भीषण अकाल पड़ा.

◆ अकाल में 20,00,000 से अधिक लोग मारे गए. 

◆ अकाल के बाद कम्युनिस्ट सरकार ने अल्पसंख्यक समुदाय को प्रताड़ित कर देश से जबरन निकालना शुरू किया. लाखों अल्पसंख्यक समुदाय कजाकिस्तान छोड़कर भागने लगे.

◆ सेना को गोली मारने का आदेश था. कड़ाके की ठंड कजाकिस्तान से एक उइगर परिवार में देश से निकलना चाहता था. ठंड से बचने के लिए नानी, माँ और सात बेटियों ने लहसुन का पेस्ट लगा लिया. 

◆ लहसुन का पेस्ट से शरीर गर्मी फैल गयी जिसके कारण पूरे शरीर में फफोले पड़ गए. फफोले के कारण गस्त लगाते सैनिकों को लगा पूरा परिवार किसी भयंकर रोग से पीड़ित है इसी कारण सभी को सलामत छोड़ दिया.

◆ कजाकिस्तान से पूरा परिवार लाहौर आ गया. 1947 के बाद लाहौर से दिल्ली आ गए और सात बेटियों में एक रीटा जी थीं जिनकी मुलाकात गुजराती मूल के काकुभाई श्रॉफ से हुई. और दोनों को एक दूसरे से प्यार हुआ और फिर शादी.

◆ 1957 मुंबई में रीटा जी ने एक बच्चे को जन्म दिया जिसका नाम जयकिशन श्रॉफ पड़ा और येही बालक 1983 में HERO फ़िल्म से पूरे देश का HERO बन जाता है. नाम है जैकी श्रॉफ.

● फ़ोटो क्रेडिट : बॉलीवुड नोस्टाल्जिया.
इन्फॉर्मेशन सोर्स : टाइम्स ऑफ इंडिया, इंडिया टुडे, विकिपीडिया एंड गुफ्तगू वित जैकी श्रॉफ.

Thursday, December 7, 2023

सन 1895 का एक नमी भरा दिन...!

सन 1895 का एक नमी भरा दिन.... स्थान..भारत में मुंबई का जुहू समुद्र-तट..

हज़ारों लोगों की भीड़ के साथ मुंबई हाईकोर्ट के तत्कालीन जज महादेव गोविन्द रानाडे और महाराजा वड़ोदरा सेयाजी राव गायकवाड़ जैसे गणमान्य व्यक्ति वहां जे.के. स्कूल ऑफ़ आर्ट्स के एक अध्यापक शिवकर बापूजी तलपड़े के बुलावे पर उपस्थित थे !

सामने के खुले मैदान में एक अजीब सी मशीन.. जिसे इससे पहले किसी ने देखा न सुना.. भीड़ की नज़रों के सामने खड़ी थी.. और इस बड़ी सी मशीन के विषय में तलपड़े जी का दावा था कि वो उसे हवा में उड़ा सकते हैं.. ! विश्वास..कौतूहल.. अविश्वास के मिले-जुले भावों में डूबी हज़ारों जोड़ी आँखें उस मशीन को आश्चर्य भरी दृष्टि से ताक रही थी.. ! 
तलपड़े जी आत्मविश्वास से भरपूर अपने हाथों में एक छोटा सा चपटा यन्त्र थामे खड़े थे.. अचानक उनकी उँगलियों ने उस चपटे से यंत्र पर कुछ हरक़त की.. और .. यह क्या.. ?

उपस्थित जन-समुदाय की आँखें उस समय फटी सी रह गईं जब घरघराहट की सी आवाज़ निकालते हुए वो बड़ी सी मशीन धीरे-धीरे जमीन छोड़ने लगी.. लोगों ने बार-बार देखा.. आँखें मल-मल कर देखा..झुक-झुक कर देखा.. किन्तु वो मशीन सच में अब धरती के सम्पर्क में नहीं रह गयी थी.. एक-एक पल बीत रहा था और देखते ही देखते वो मशीन ज़मीन से कोई 1500 फुट की ऊंचाई पर चक्कर काटने लगी.. लोग अपनी आँखों के ऊपर हथेली रख सन्नाटे में डूबे वजनी लोहे के उस संजाल को हवा में नाचते देख रहे थे.. थोड़ी ही देर पश्चात तलपड़े जी के बाएँ हाथ में थमे चपटे छोटे यंत्र पर नाचती उँगलियों के आदेश को मान वो मशीन एक गर्ज़ना के साथ ज़मीन पर सकुशल वापस आ कर टिक गई.. कहीं कोई आवाज़ नहीं.. इतने में इस सन्नाटे को तोड़ते हुए तालियों का शब्द वहाँ गूँज उठा.. महाराजा वड़ोदरा सम्मोहन की सी अवस्था में बेतरह ताली बजा रहे थे.. फिर क्या था.. जनता की तालियों की गड़गड़ाहट उस भारी मशीन की गर्ज़ना के शब्द से होड़ करने लगी.. !

उसके पश्चात कुछ रहस्यमयी घटनाओं का एक सिलसिला.. इंग्लैंड की रैली ब्रदर्स नाम के एक कंपनी का भोले-भाले वैज्ञानिक तलपडे जी से संपर्क..उनकी संदेहजनक मृत्यु.. डिज़ाइन का लन्दन .. फिर वहाँ से अमरीका के राईट बंधुओं के हाथ लगना.. और महर्षी भारद्वाज द्वारा रचित 8 अध्याय.. 100 खण्ड.. 500 सिद्धांत.. तीन हज़ार श्लोक.. 32 तरीके से 500 तरह के विमान बनाना सिखाने वाले विमान शास्त्र के मानस-शिष्य शिवकर जी तलपड़े की अदम्य साधना के फल को दुनिया आज मक्कार अमरीकी "राईट बंधुओं की एक महान देन" के रूप में जानती है.., इस घटना के आठ वर्ष पश्चात 1903 में जिनका बनाया लोहे का कबाड़ मात्र डेढ़ सौ फुट हवा में उछल वापस ज़मीन से टकरा कर नष्ट हो गया था.. !

क्या ये पर्याप्त कारण नहीं कि हम अपनी मिटटी पर गर्व करें.. ?

जय भारत !
#airoplen #एयरोप्लेन

Sunday, December 3, 2023

राजा राममोहन राय से संबंधित कुछ विशिष्ट बातें ।

1. वह हिंदू नहीं इ'सा'ई था ।
2. उसके शरीर को ज'ला'या नहीं गया था, दफ'नाया गया था।
3. इंग्लैंड में ही म'रा था और वहीं पर उसकी क'ब्र है ।
4. उसकी क'ब्र को 10 वर्ष बाद वापस खोदा गया था ।
5. अंग्रेजी शिक्षा का पक्षधर था ।
6. संस्कृत विरोधी! अंग्रेजों को पत्र लिखा कि संस्कृत हटा दो।
7. इस्ट इंडिया कंपनी में 10 से ज्यादा वर्ष तक मुंशी रहा था ।
8. जब सती प्रथा थी ही नहीं तो वह खत्म कैसे करता । 
9. राजा की उपाधि मुगलों ने दी थी ।
10. संक्षेप में - वह मुग'लों और अंग्रेजों का दला'ल था ।

लोकतंत्र की धर्म हीन सरकार इन जैसों का हिंदू समाज का सुधारक बना दिया । ऐसी सरकारी साजिशो से बचने के लिए धार्मिक राजतंत्र की मांग करें