Sunday, December 27, 2020

जोधाबाई और अकबर।

जब भी मैं जोधाबाई और अकबर के विवाह प्रसंग को सुनता या देखता था तो मन में कुछ अनुत्तरित सवाल कौंधने लगते थे। 
आन, बान और शान के लिए मर मिटने वाले, शूरवीरता के लिए पूरे विश्व मे प्रसिद्ध भारतीय क्षत्रिय, अपनी अस्मिता से क्या कभी इस तरह का समझौता कर सकते हैं?? 
हजारों की संख्या में एक साथ अग्नि कुंड में जौहर करने वाली क्षत्राणियों में से कोई स्वेच्छा से किसी मुगल से विवाह कर सकती हैं??
जोधा और अकबर की प्रेम कहानी पर केंद्रित अनेक फिल्में और टीवी धारावाहिक मेरे मन की टीस को और ज्यादा बड़ा देते। जब यह पीड़ा असहनीय हो गई तो एक दिन गुरुदेव श्री जे पी पाण्डेय जी से इस प्रसंग में इतिहास जानने की जिज्ञासा व्यक्त की तो गुरुवर ने अपने पुस्तकालय से अकबर के दरबारी 'अबुल फजल' द्वारा लिखित 'अकबरनामा' निकाल कर पढ़ने के लिए दी। उत्सुकतावश उसे एक ही बैठक में पूरा पढ़ डाला। पूरी किताब पढ़ने के बाद घोर आश्चर्य तब हुआ जब पूरी पुस्तक में जोधाबाई का कहीं कोई उल्लेख ही नही मिला। मेरी आश्चर्य मिश्रित जिज्ञासा को भांपते हुए गुरुवर श्री ने एक अन्य ऐतिहासिक ग्रंथ  'तुजुक-ए-जहांगिरी' जो जहांगीर की आत्मकथा है, दिया। इसमें भी आश्चर्यजनक रूप से जहांगीर ने अपनी मां जोधाबाई का एक भी बार जिक्र नही किया। हां कुछ स्थानों पर हीर कुँवर और हरका बाई का जिक्र जरूर था। अब जोधाबाई के बारे में सभी एतिहासिक दावे झूठे समझ आ रहे थे। कुछ और पुस्तकों और इंटरनेट पर उपलब्ध जानकारी के पश्चात हकीकत सामने आयी कि “जोधा बाई” का पूरे इतिहास में कहीं कोई नाम नहीं है। 
इस खोजबीन में एक नई बात सामने आई जो बहुत चौकानें वाली है। इतिहास में दर्ज कुछ तथ्यों के आधार पर पता चला कि आमेर के राजा भारमल को दहेज में 'रुकमा' नाम की एक पर्सियन दासी भेंट की गई थी जिसकी एक छोटी पुत्री भी थी। रुकमा की बेटी होने के कारण उस लड़की को 'रुकमा-बिट्टी' नाम से बुलाते थे। आमेर की महारानी ने रुकमा बिट्टी को 'हीर कुँवर' नाम दिया। चूँकि हीर कुँवर का लालन पालन राजपूताना में हुआ इसलिए वह राजपूतों के रीति-रिवाजों से भली भांति परिचित थी। राजा भारमल उसे कभी हीर कुँवरनी तो कभी हरका कह कर बुलाते थे। 
उत्तराधिकार के विवाद को लेकर जब पड़ोसी राजाओं ने राजा भारमल की सहायता करने से इनकार कर दिया तो उन्हें मजबूरन अकबर की सहायता लेनी पड़ी। सहायता के एवज में अकबर ने राजा भारमल की पुत्री से विवाह की शर्त रख दी तो राजा भारमल ने क्रोधित होकर प्रस्ताव ठुकरा दिया था। प्रस्ताव अस्वीकृत होने से नाराज होकर अकबर ने राजा भारमल को युद्ध की चुनौती दे दी। आपसी फूट के कारण आसपास के राजाओं ने राजा भारमल की सहायता करने से मना कर दिया। इस अप्रत्याशित स्थिति से राजा भारमल घबरा गए क्योंकि वे जानते थे कि अकबर की सेना उनकी सेना से बहुत बड़ी है सो युद्ध मे अकबर से जीतना संभव नही है। 
चूंकि राजा भारमल अकबर की लंपटता से भली-भांति परिचित थे सो उन्होंने कूटनीति का सहारा लेते हुए अकबर के समक्ष संधि प्रस्ताव भेजा कि उन्हें अकबर का प्रस्ताव स्वीकार है वे मुगलो के साथ रिश्ता बनाने तैयार हैं। अकबर ने जैसे ही यह संधि प्रस्ताव सुना तो विवाह हेतु तुरंत आमेर पहुँच गया। राजा भारमल ने अकबर को बेवकूफ बनाकर अपनी परसियन दासी रुकमा की पुत्री हीर कुँवर का विवाह अकबर से करा दिया जिसे बाद में अकबर ने मरियम-उज-जमानी नाम दिया।
चूँकि राजा भारमल ने उसका कन्यादान किया था इसलिये ऐतिहासिक ग्रंथो में हीर कुँवरनी को राजा भारमल की पुत्री बता दिया। जबकि वास्तव में वह कच्छवाह राजकुमारी नही दासी-पुत्री थी। 
राजा भारमल ने यह विवाह एक समझौते की तरह या राजपूती भाषा में कहें तो हल्दी-चन्दन किया था। 
इस विवाह के विषय मे अरब में बहुत सी किताबों में लिखा है (“ونحن في شك حول أكبر أو جعل الزواج راجبوت الأميرة في هندوستان آرياس كذبة لمجلس”) हम यकीन नहीं करते इस निकाह पर हमें संदेह है। 
इसी तरह ईरान के मल्लिक नेशनल संग्रहालय एन्ड लाइब्रेरी में रखी किताबों में एक भारतीय मुगल शासक का विवाह एक परसियन दासी की पुत्री से करवाए जाने की बात लिखी है।
'अकबर-ए-महुरियत' में यह साफ-साफ लिखा है कि (ہم راجپوت شہزادی یا اکبر کے بارے میں شک میں ہیں) हमें इस हिन्दू निकाह पर संदेह है क्योंकि निकाह के वक्त राजभवन में किसी की आखों में आँसू नही थे और ना ही हिन्दू गोद भरई की रस्म हुई थी। 
सिक्ख धर्म गुरू अर्जुन और गुरू गोविन्द सिंह ने इस विवाह के विषय मे कहा था कि (ਰਾਜਪੁਤਾਨਾ ਆਬ ਤਲਵਾਰੋ ਓਰ ਦਿਮਾਗ ਦੋਨੋ ਸੇ ਕਾਮ ਲੇਨੇ ਲਾਗਹ ਗਯਾ ਹੈ) कि क्षत्रियों ने अब तलवारों और बुद्धि दोनो का इस्तेमाल करना सीख लिया है, मतलब राजपुताना अब तलवारों के साथ-साथ बुद्धि का भी काम लेने लगा है।
17वी सदी में जब 'परसी' भारत भ्रमण के लिये आये तब उन्होंने अपनी रचना ”परसी तित्ता” में लिखा “यह भारतीय राजा एक परसियन वैश्या को सही हरम में भेज रहा है, अत: हमारे देव(अहुरा मझदा) इस राजा को स्वर्ग दें"।
भारतीय राजाओं के दरबारों में राव और भाटों का विशेष स्थान होता था वे राजा के इतिहास को लिखते थे और विरदावली गाते थे। उन्होंने साफ साफ लिखा है- ”गढ़ आमेर आयी तुरकान फौज ,ले ग्याली पसवान कुमारी ,राण राज्या राजपूता ले ली इतिहासा पहली बार ले बिन लड़िया जीत। (1563 AD)" मतलब आमेर किले में मुगल फौज आती है और एक दासी की पुत्री को ब्याह कर ले जाती है, हे रण के लिये पैदा हुए राजपूतों तुमने इतिहास में ले ली बिना लड़े पहली जीत 1563 AD।
ये ऐसे कुछ तथ्य हैं जिनसे एक बात समझ आती है कि किसी ने जानबूझकर गौरवशाली क्षत्रिय समाज को नीचा दिखाने के उद्देश्य से ऐतिहासिक तथ्यों से छेड़छाड़ की और यह कुप्रयास अभी भी जारी है.... 

Wednesday, December 23, 2020

राष्ट्रीय नामकरण आयोग।

राष्ट्रीय नामकरण आयोग के गठन की जरूरत है जो नामों को बदलने की नीति तैयार करे

-शंकर शरण

मार्क्सवादी इतिहासकार प्रो. इरफान हबीब ने इलाहाबाद और फैजाबाद के नाम बदलकर प्रयागराज और अयोध्या किए जाने पर व्यंग्य किया है। उनसे आशा थी कि वह इस का स्वागत करेंगे, किंतु आम वामपंथियों की तरह हबीब में भी हिंदू-चेतना का विरोध ही सबसे प्रमुख जिद है। विदेशी आक्रमणकारियों और शासकों द्वारा थोपे गए नाम हटाने का काम सारी दुनिया में होता रहा है। यहां तक कि देसी शासकों द्वारा किए गए जबरिया नामकरण भी बदले जाते रहे हैैं। कम्युनिज्म के पतन बाद रूस में लेनिनग्राड पुन: सेंट पीटर्सबर्ग और स्तालिनग्राड वोल्गोग्राद हो गया।

मध्य एशिया और पूर्वी यूरोप में भी असंख्य शहरों, सड़कों के नाम बदले। दक्षिण अफ्रीका में तो एक हजार से भी अधिक स्थानों के नाम बदले जा चुके हैं। इनमें शहर ही नहीं, बल्कि सड़क, हवाईअड्डे, नदी, पहाड़, बांधों तक के नाम हैं। वहां इस विषय पर ‘दक्षिण अफ्रीका ज्योग्राफिकल नेम काउंसिल’ नामक एक सरकारी आयोग बना था। वस्तुत: ऐसे नाम-परिवर्तनों का एक गहरा सांस्कृतिक, राजनीतिक, व्यावहारिक, महत्व है। जो नाम जन-मानस को चोट पहुंचाते या लोगों को भ्रमित करते हैं उन्हें बदला ही जाना चाहिए। क्या बख्तियार खिलजी, मुहम्मद तुगलक, बाबर, औरंगजेब या डायर जैसे नाम भारतवासियों को चोट नहीं पहुंचाते? तुगलक वह विदेशी शासक था जो अपनी असीम क्रूरता के लिए कुख्यात हुआ। बाबर और औरंगजेब के कारनामों की पूरी सूची हिंदुओं को दमित, उत्पीड़ित और अपमानित करने से भरी है। ऐसे आतताइयों के नामों से अपनी पहचान जोड़ना भारत का दोहरा अपमान है।

प्रो. हबीब जैसे बुद्धिजीवी हिंदू चेतना की उपेक्षा करते हैं। वह हिंदू इतिहास की लीपापोती और मुस्लिम इतिहास पर रंग-रोगन इसलिए करते हैं ताकि इस्लामी साम्राज्यवाद की जरूरत के अनुसार उसे हमारे राष्ट्रीय इतिहास का अंग बताया जाए, किंतु भारतीय इतिहास के प्रति सही, संपूर्ण जानकारी और समझ रखना हिंदुओं लिए सबसे गंभीर मुद्दा है। नामकरण विवाद को इसी संदर्भ में देखा जाना चाहिए।

इतिहासकार सीताराम गोयल ने लिखा है, हिंदू धर्म-समाज की एकता का एकमात्र स्रोत उसका समान इतिहास है। विशेषकर इस्लामी और ब्रिटिश साम्राज्यवादों के विरुद्ध लड़े गए स्वतंत्रता आंदोलन का इतिहास। लंबे समय से हिंदू अपने आध्यात्मिक केंद्र की वह चेतना खो चुके हैं जो पहले उनके समाज, संस्कृति और जीवन-पद्धति को एक रखती थी। यदि हिंदू अपने इतिहास की चेतना भी खो देते हैं तो उन्हें एक करने वाली कोई ठोस चीज नहीं रहेगी। इसीलिए हिंदू-विरोधी बौद्धिक हमारे इतिहास पर इतनी कुटिल नजरें गड़ाए हैं। सौभाग्यवश हिंदुओं को अपने महान अतीत पर अभी भी गर्व है।

हिंदू समाज ने मानवता की आध्यात्मिक, सांस्कृतिक, दार्शनिक और वैज्ञानिक संपदा में बड़ा योगदान दिया। वह आज भी अपने महान ऋषियों, संतो, वैज्ञानिकों, विद्वानों और योद्धाओं की स्मृति के प्रति श्रद्धावान है। उसे वह संकट काल याद है जब सदियों तक विदेशी आक्रमणकारी दस्तों से कठिन और अंतहीन लड़ाई लड़नी पड़ी थी। उन आक्रमणकारियों ने बड़े पैमाने पर हत्याएं कीं और लोगों को लूटा, गुलाम बनाया। साथ ही बलपूर्वक धर्मांतरण कराकर अपने किस्म की बर्बरता भी थोपी। इसका दंश आज भी झेलना पड़ा रहा है।

इतिहास की यही समान स्मृति हिंदू समाज को खिलजियों, तुगलकों, बहमनियों, सैयदों, लोदियों और मुगलों को देसी शासक मानने से रोकती है। यहां के देसी शासक मौर्य, शुंग, गुप्त, चोल, मौखारी, पाल, राष्ट्रकूट, यादव, मराठे, सिख, जाट आदि रहे हैं। इस्लामी आक्रमणकारियों का प्रतिरोध करने वाले काबुल के जयपाल शाहिया, गुजरात की महारानी नायकीदेवी, दिल्ली के पृथ्वीराज चौहान, कन्नौज के जयचंद्र हड़वाल, देवगिरि के सिंघनदेव, आंध्र के प्रलय नायक, विजयनगर के हरिहर और बुक्का और कृष्णदेवराय, महराणा सांगा, प्रताप, शिवाजी, बंदा बहादुर, महाराजा सूरजमल और रणजीत सिंह-ये सभी देशभक्त और स्वतंत्रताप्रेमी थे। इन्हें ‘निजी स्वार्थों के लिए लड़ने वाले’ स्थानीय सरदार कहना हिंदू चेतना को तोड़ने की कोशिश है, जो प्रो. हबीब जैसे माक्र्सवादी इतिहासकार दशकों से कर रहे हैं।

फिर भी हिंदू समाज इन नायकों का इस्लामी साम्राज्यवाद के विरुद्ध लड़ने वाले योद्धाओं के रूप में सम्मान करता है। यही वह चीज है जो हमारे वामपंथी, सेक्युलर, इस्लामी बुद्धिजीवियों के लिए समस्याएं खड़ी करती है। वे इस्लाम से पहले के भारत पर गर्व करने या तबके महान योद्धाओं का आदर करने के लिए राजी नहीं हैं। वे चाहते हैं कि हिंदू भी इस्लाम से पहले के भारत को ‘अंधकार का युग’ माने। इसके साथ ही वे यह भी चाहते हैं कि मुहम्मद बिन कासिम, महमूद गजनवी, मुहम्मद गोरी, अल्लाउद्दीन खिलजी, मुहम्मद तुगलक, सिकंदर लोदी, बाबर, औरंगजेब और अहमद शाह अब्दाली जैसे अपराधियों, गुंडे-गिरोहों, सामूहिक हत्यारों और आततायियों का सम्मान हिंदू भी करें।

वे यह भी चाहते हैं कि मध्यकाल के हिंदू वीरों को असंसुष्ट विद्रोही मान कर निंदित किया जाए, जिन्होंने यहां इस्लामी साम्राज्यवाद का प्रतिरोध किया और अंतत: उसे उखाड़ फेंका। वे जिद करते हैं कि यहां इस्लामी साम्राज्यवाद को फिर से जमाने की कोशिश करने वाले शाह वलीउल्ला, अली बंधुओं जैसे अलगाववादियों या हिंदुओं की हत्याएं करने वाले वहाबियों, मोपलाओं या देश तोड़ने वाले जिन्ना को भी स्वतंत्रता सेनानी कहकर आदर करें।

नामकरण पर विवाद खड़ा करना केवल ऊपरी बात नहीं है। यह संस्कृति के क्षेत्र में तमाम हिंदू चेतना को निरंतर तोड़ने की मांग का हिस्सा है। इसीलिए यहां हर तरह के हिंदू-विरोधी बुद्धिजीवी संस्कृत, प्राकृत और प्राचीन एवं मध्यकालीन भारत के देशी साहित्य के प्रति यदि घृणा नहीं तो बेरुखी जरूर रखते हैं। आक्रमणकारियों द्वारा थोपे गए नामों को आदर देने की जिद इसी मानसिकता का एक अंग है, लेकिन वस्तुत: यह भारत के हिंदुओं का अपमान है। यह भारत के स्वाभिमान को न केवल चोट पहुंचाता है, बल्कि हमारी नई पीढ़ियों को अज्ञानी और अचेत भी बनाता है।

देश की राजधानी दिल्ली के सबसे सुंदर मार्गों पर तुगलक, लोदी, बाबर आदि अनगिनत इस्लामी आक्रमणकारियों के नाम सजे हुए हैं। जबकि विक्रमादित्य, समुद्रगुप्त, कृष्णदेवराय, राणा सांगा, हेमचंद्र, हरिहर, बुक्का, रानी पद्मिनी, गोकुला, चंद्र बरदाई, आल्हा-ऊदल, जैसे अनूठे ऐतिहासिक सम्राटों, राजाओं, योद्धाओं के नाम गायब हैं। ये अपने व्यक्तित्व और कार्य में अनूठे रहे हैं। इनके नाम और काम से हिंदू नई पीढ़ियों को वंचित रखना हिंदू समाज को तोड़ने की सचेत कोशिश है। नगरों, सड़कों, भवनों, परियोजनाओं आदि के नामकरण के प्रति एक सुविचारित राष्ट्रीय नीति की जरूरत है। कोई राष्ट्रीय आयोग बनना चाहिए जो किसी सुसंगत सिद्धांत के अंतर्गत ऐसे सभी नामों को बदलने और आगामी नामकरणों की नीति तय करे। केवल वोट के लोभ या दलीय हित का प्रसार करने की मंशा वाले नामों और नामकरण की परंपरा को सदा के लिए समाप्त करना चाहिए।

Monday, December 21, 2020

साष्टांग प्रणाम

The prostration performed with eight organs hands, feet, knees, chest, head, eyes, mind and speech is called Sashtang Pranam.This also shows how Men and women should pray in front of God..

आठ अङ्गों सहित प्रणाम 🚩
साष्टांग प्रणाम दोर्भ्यां पादाभ्यां जानुभ्यामुरसा शिरसा दृशा। मनसा वचसा चेति प्रणामोsष्टांग ईरित:।।

Sunday, December 20, 2020

बिना स्वाध्याय हिन्दू एक कागज का शेर।

जी हाँ ! कोई इस शीर्षक का बुरा न माने । ये सत्य है कि बिना स्वाध्याय किए हिन्दू अपने धर्म को अच्छे से जान नहीं सकता और न जानने के कारण बाहर से तन हिन्दू और खाली मन, विचारहीनता के कारण हिन्दू एक कागज का शेर ही कहा जा सकता है । हिन्दू समाज की एकता और अखंडता की बातें बहुत समय से की जा रही हैं । लेकिन वैचारिक रूप से निर्बल हिन्दू खंडित ही रहेगा और कभी एक नहीं हो सकता । इसलिये हिन्दू समाज को विचारों से सबल बनने के लिये स्वाध्यायशील बनना ही होगा । अपने धर्म की मूल जानकारी के अभाव में ही हिन्दू समाज का दिन ब दिन पतन होता आ रहा है । बहुत सी विधर्मियों की संस्थाएँ हिन्दु युवाओं को इनकी इसी अज्ञानता के कारण ही निशाना बनाकर धर्म परिवर्तन का गंदा खेल खेलती आ रही हैं । ज़ाकिर नायक जैसे वहाबी इस्लाम प्रचारक ने हिन्दुओं की इसी अज्ञानता को भांपते हुए हज़ारों की संख्या में हिन्दु लड़कों और लड़कियों को वहाबी इस्लाम में शामिल किया । बैन्नी हिन नामक गोरे ईसाई प्रचारक ने दलित हिन्दुओं की धार्मिक अज्ञानता का भरपूर लाभ उठाया और लगभग २० लाख से ऊपर लोगों को ईसाई बनाया । ऐसे ही बहुत सी वामपंथी संस्थाएँ हिन्दु युवाओं को भोगवादी बनाकर कालेजों में नास्तिक बनाने पर तुली हुई हैं ।

ये सब इसलिये हो रहा है क्योंकि हिन्दू समाज में धार्मिक साक्षरता की भयंकर कमी है । हिन्दू परिवार अपने मूल धर्म की जानकारी से रहित हैं जिस कारण भारत में विदेशी और देशी भारत विरोधी संस्थाएँ हिन्दुओं को मानसिक रूप से और निर्बल बनाकर उनमें अलगाववाद के बीज बोकर भारत को खंड खंड करने के लिए उतारू हैं ।

त्तैतरीयारण्यक शिक्षावल्ली ७:११ में लिखा है :-
"स्वाध्यायान्मा प्रमदः स्वाध्यायप्रवचनीयाभ्यां न प्रमदितव्यम्" ( हे शिष्य ! तू स्वाध्याय में कभी प्रमाद न करना, स्वाध्याय और प्रवचन नित्य प्रति करते रहना )

परन्तु हमारे बहुत से मित्र हो सकता है स्वाध्याय करने का अर्थ समाचार पत्र, रागीनि, अश्लील साहित्य आदि का पढ़ना मान बैठें । तो उनको बता दें कि स्वाध्याय मे केवल विचारों को पोषण देने वाले ऋषियों के आर्ष ग्रंथों वेद, दर्शन, उपनिषद्, मनुस्मृति आदि का ही पढ़ना होता है । जिनको पढ़कर ही हम अपने धर्म को जानकर पूर्ण हो सकते हैं । क्योंकि वैदिक आर्ष ग्रंथों से इतर विचरों को पवित्र करने का कोई दूसरा कोई साधन नहीं हो सकता है । इसलिये स्वाध्याय तो अवश्य ही करना चाहिए । 

ऐसे ही कई और उदाहरण हमारे आर्य प्रचारकों के हैं जिनसे ये समझा जा सकता है कि स्वाध्यायशील आर्यों ने बढ़चढ़कर धर्मरक्षा में भाग लिया और विचारहीनता के कारण धर्मांतरित हो रहे हिन्दुओं को धर्मभ्रष्ट होने से रोका और उनको वेद मार्ग पर डाला । अब भी एक स्वाध्यायशील और विचारशील आर्य अपने आसपास के बड़े क्षेत्र में रह रहे हिन्दू समाज पर व्यापक प्रभाव डालता है और उनका धर्मपरिवर्तन होने से उन्हें रोक लेता है।  
धर्म ग्रंथों के स्वाध्याय का परिणाम 
क्या आपने कभी दाराशिकोह का नाम सुना है? शाहजहां का बड़ा बेटा और औरंगजेब का बड़ा भाई। उसने उपनिषदों का फारसी मे भाषान्तर किया है। उसने भूमिका मे लिखा है कि मैंने अरबी आदि अनेक भाषाएँ पढ़ी परंतु जो शान्ति संस्कृत पढ़ कर मिली वह कहीं नहीं मिली। 

मशहूर एक्शन मूवी सीरीज x-मैन फेम हॉलीवुड स्टार ह्यू जैकमैन इन दिनों हिन्दू धर्म को पूरी तरह फॉलो कर रहे हैं। वे ईसाई होने के बावजूद चर्च या बाइबिल की बजाय हिन्दू धर्म ग्रन्थ भगवद्गीता व् उपनिषद में शांति का मार्ग खोज रहे हैं।

खबर अनुसार सनातन धर्म से प्रभावित ह्यू जैकमैन का यहाँ तक कहना है कि – ” मुझे मेरे सवालों के जवाब चर्च नहीं गीता, उपनिषदों में मिले। “

एक अंग्रेजी अख़बार को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा – ” मुझे चर्च में ले जाया गया था और मेरे दिमाग में उठे प्रश्न मुझे परेशान करने लगे – तब मुझे कुछ ही जवाब मिले – मगर जैसे ही मैंने वैदिक विचारों, ग्रन्थों और तथ्यों को खोजा तो मुझे सब जवाब मिल गये और मैं पूरी तरह संतुष्ट हो पाया। ”

उन्होंने इस दौरान बताया कि वो हिन्दू आदि गुरु शन्कराचार्य व् महेश योगी से काफी प्रभावित हैं। वे बताते हैं कि जब से उन्होंने इन दोनों को पढना शुरू किया, उन्हें सनातन धर्म ग्रन्थों से लगाव होता चला गया।

इसके बाद उन्होंने भगवद्गीता और उपनिषद को पढना शुरू किया, जिनके लिए वो कहते हैं कि उन्हें इन दोनों में अपने जीवन के सभी प्रश्नों के जवाब मिल गये।
” I naturally sort of end up flowing towards that Vedic sort of tradition… I find it fits with me and my sensibilities. I used to question so much. I was brought up in a church and I fried my brains questioning, it felt quite limited – and as soon as I discovered more about Vedic ideas and philosophies and concepts, it felt right to me, it just felt natural.”

Monday, December 14, 2020

कुतुबुद्दीन ऐबक, और क़ुतुबमीनार।

किसी भी देश पर शासन करना है तो उस देश के लोगों का ऐसा ब्रेनवाश कर दो कि वो अपने देश, अपनी संसकृति और अपने पूर्वजों पर गर्व करना छोड़ दें । इस्लामी हमलावरों और उनके बाद अंग्रेजों ने भी भारत में यही किया. हम अपने पूर्वजों पर गर्व करना भूलकर उन अत्याचारियों को महान समझने लगे जिन्होंने भारत पर बे हिसाब जुल्म किये थे ।

अगर आप दिल्ली घुमने गए है तो आपने कभी विष्णू स्तम्भ (क़ुतुबमीनार) को भी अवश्य देखा होगा. जिसके बारे में बताया जाता है कि उसे कुतुबुद्दीन ऐबक ने बनबाया था. हम कभी जानने की कोशिश भी नहीं करते हैं कि कुतुबुद्दीन कौन था, उसने कितने बर्ष दिल्ली पर शासन किया, उसने कब विष्णू स्तम्भ (क़ुतुबमीनार) को बनवाया या विष्णू स्तम्भ (कुतूबमीनार) से पहले वो और क्या क्या बनवा चुका था ?

दो खरीदे हुए गुलाम
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कुतुबुद्दीन ऐबक, मोहम्मद गौरी का खरीदा हुआ गुलाम था. मोहम्मद गौरी भारत पर कई हमले कर चुका था मगर हर बार उसे हारकर वापस जाना पडा था. ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की जासूसी और कुतुबुद्दीन की रणनीति के कारण मोहम्मद गौरी, तराइन की लड़ाई में पृथ्वीराज चौहान को हराने में कामयाबी रहा और अजमेर / दिल्ली पर उसका कब्जा हो गया ।

ढाई दिन का झोपड़ा
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अजमेर पर कब्जा होने के बाद मोहम्मद गौरी ने चिश्ती से इनाम मांगने को कहा. तब चिश्ती ने अपनी जासूसी का इनाम मांगते हुए, एक भव्य मंदिर की तरफ इशारा करके गौरी से कहा कि तीन दिन में इस मंदिर को तोड़कर मस्जिद बना कर दो. तब कुतुबुद्दीन ने कहा आप तीन दिन कह रहे हैं मैं यह काम ढाई दिन में कर के आपको दूंगा  ।

कुतुबुद्दीन ने ढाई दिन में उस मंदिर को तोड़कर मस्जिद में बदल दिया. आज भी यह जगह "अढाई दिन का झोपड़ा" के नाम से जानी जाती है. जीत के बाद मोहम्मद गौरी, पश्चिमी भारत की जिम्मेदारी "कुतुबुद्दीन" को और पूर्वी भारत की जिम्मेदारी अपने दुसरे सेनापति "बख्तियार खिलजी" (जिसने नालंदा को जलाया था) को सौंप कर वापस चला गय था ।

दोनों गुलाम को शासन
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कुतुबुद्दीन कुल चार साल ( 1206 से 1210 तक) दिल्ली का शासक रहा. इन चार साल में वो अपने राज्य का विस्तार, इस्लाम के प्रचार और बुतपरस्ती का खात्मा करने में लगा रहा. हांसी, कन्नौज, बदायूं, मेरठ, अलीगढ़, कालिंजर, महोबा, आदि को उसने जीता. अजमेर के विद्रोह को दबाने के साथ राजस्थान के भी कई इलाकों में उसने काफी आतंक मचाय ।

विष्णु स्तम्भ 
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जिसे क़ुतुबमीनार कहते हैं वो महाराजा वीर विक्रमादित्य की वेदशाला थी. जहा बैठकर खगोलशास्त्री वराहमिहर ने ग्रहों, नक्षत्रों, तारों का अध्ययन कर, भारतीय कैलेण्डर "विक्रम संवत" का आविष्कार किया था. यहाँ पर 27 छोटे छोटे भवन (मंदिर) थे जो 27 नक्षत्रों के प्रतीक थे और मध्य में विष्णू स्तम्भ था, जिसको ध्रुव स्तम्भ भी कहा जाता था ।

दिल्ली पर कब्जा करने के बाद उसने उन 27 मंदिरों को तोड दिया. विशाल विष्णु स्तम्भ को तोड़ने का तरीका समझ न आने पर उसने उसको तोड़ने के बजाय अपना नाम दे दिया. तब से उसे क़ुतुबमीनार कहा जाने लगा. कालान्तर में यह यह झूठ प्रचारित किया गया कि क़ुतुब मीनार को कुतुबुद्दीन ने बनबाया था. जबकि वो एक विध्वंशक था न कि कोई निर्माता.

कुतुबुद्दीन ऐबक की मौत का सच
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अब बात करते हैं कुतुबुद्दीन की मौत की. इतिहास की किताबो में लिखा है कि उसकी मौत पोलो खेलते समय घोड़े से गिरने पर से हुई. ये अफगान / तुर्क लोग "पोलो" नहीं खेलते थे, पोलो खेल अंग्रेजों ने शुरू किया. अफगान / तुर्क लोग बुजकशी खेलते हैं जिसमे एक बकरे को मारकर उसे लेकर घोड़े पर भागते है, जो उसे लेकर मंजिल तक पहुंचता है, वो जीतता है ।

कुतबुद्दीन ने अजमेर के विद्रोह को कुचलने के बाद राजस्थान के अनेकों इलाकों में कहर बरपाया था. उसका सबसे कडा विरोध उदयपुर के राजा ने किया, परन्तु कुतुबद्दीन उसको हराने में कामयाब रहा. उसने धोखे से राजकुंवर कर्णसिंह को बंदी बनाकर और उनको जान से मारने की धमकी देकर, राजकुंवर और उनके घोड़े शुभ्रक को पकड कर लाहौर ले आया.

एक दिन राजकुंवर ने कैद से भागने की कोशिश की, लेकिन पकड़ा गया. इस पर क्रोधित होकर कुतुबुद्दीन ने उसका सर काटने का हुकुम दिया. दरिंदगी दिखाने के लिए उसने कहा कि बुजकशी खेला जाएगा लेकिन इसमें बकरे की जगह राजकुंवर का कटा हुआ सर इस्तेमाल होगा. कुतुबुद्दीन ने इस काम के लिए, अपने लिए घोड़ा भी राजकुंवर का "शुभ्रक" चुना.

कुतुबुद्दीन "शुभ्रक" घोडे पर सवार होकर अपनी टोली के साथ जन्नत बाग में पहुंचा. राजकुंवर को भी जंजीरों में बांधकर वहां लाया गया. राजकुंवर का सर काटने के लिए जैसे ही उनकी जंजीरों को खोला गया, शुभ्रक घोडे ने उछलकर कुतुबुद्दीन को अपनी पीठ से नीचे गिरा दिया और अपने पैरों से उसकी छाती पर कई बार किये, जिससे कुतुबुद्दीन वहीं पर मर गया ।

शुभ्रत मरकर भी अमर हो गया
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इससे पहले कि सिपाही कुछ समझ पाते राजकुवर शुभ्रक घोडे पर सवार होकर वहां से निकल गए. कुतुबुदीन के सैनिको ने उनका पीछा किया मगर वो उनको पकड न सके. शुभ्रक कई दिन और कई रात दौड़ता रहा और अपने स्वामी को लेकर उदयपुर के महल के सामने आ कर रुका. वहां पहुंचकर जब राजकुंवर ने उतर कर पुचकारा तो वो मूर्ति की तरह शांत खडा रहा ।

वो मर चुका था, सर पर हाथ फेरते ही उसका निष्प्राण शरीर लुढ़क गया. कुतुबुद्दीन की मौत और शुभ्रक की स्वामिभक्ति की इस घटना के बारे में हमारे स्कूलों में नहीं पढ़ाया जाता है लेकिन इस घटना के बारे में फारसी के प्राचीन लेखकों ने काफी लिखा है. धन्य है भारत की भूमि जहाँ इंसान तो क्या जानवर भी अपनी स्वामी भक्ति के लिए प्राण दांव पर लगा देते हैं ।

Thursday, December 10, 2020

अथ काम-रेड कथा।

JNU का हाल देखते हुए Atul Kumar Rai की 5 साल पहले की लिखी एक कालजयी पोस्ट जो आज की वर्तमान परिस्थिती में भी प्रासंगिक है....
अभी पुष्पा को कालेज आये चार ही दिन हुए थे कि उसकी मुलाक़ात एक क्रांतिकारी से हो गयी. लम्बी कद का बेतरतीब दाढी रखे एक सांवला सा लौंडा ...ब्रांडेड जीन्स पर फटा हुआ कुरता पहने क्रान्ति की बोझ में इतना दबा था कि उसे दूर से देखने पर ही यकीन हो जाता था ..इसे नहाये मात्र सात दिन हुये हैं..... .बराबर उसके शरीर से क्रांति की गन्ध आती रहती थी.

लाल गमछे के साथ झोला लटकाये गोल्ड फ्लेक किंग का की कश लेते हुए क्रांति कर ही रहा था तब तक....पुष्पा ने कहा..."नमस्ते भैया जी.."हुंह ये संघी हिप्पोक्रेसी."..काहें का भइया और काहें का नमस्ते?..हम इसी के खिलाफ तो लड़ रहे हैं...प्रगतिशीलता की लड़ाई...ये घीसे पीटे संस्कार..ये मानसिक गुलामी के सिवाय कुछ नहीं.आज से सिर्फ लाल सलाम साथी कहना।

पुष्पा ने सकुचाते हुए पूछा.."आप क्या करते हैं ..क्रांतिकारी ने कहा.."हम क्रांति करते हैं....जल,जंगल,जमीन की लड़ाई लड़ते हैं..शोषितों वंचितों की आवाज उठातें हैं.. क्या तुम मेरे साथ क्रांति करोगी ? पुष्पा ने सर झुकाया और धीरे से कहा."नहीं मैं यहाँ पढ़ने आई हूँ.कितने अरमानों से मेरे मजदूर पिता ने मुझे यहाँ भेजा है..पढ़ लिखकर कुछ बन जाऊं तो समाज सेवा मेरा भी सपना है....."

क्रांतिकारी ने सिगरेट जलाई और बेतरतीब दाढ़ी को खुजाते हुए कहा..यही बात मार्क्स सोचे होते..लेनिन और मावो सोचे होते....कामरेड चे ग्वेरा....? बोलो ?

तुमने पाश की वो कविता पढ़ी है..."सबसे खतरनाक होता है मुर्दा शान्ति से भर जाना"तुम ज़िंदा हो पुष्पा.मुर्दा मत बनों....क्रांति को तुम्हारी जरूरत है....लो ये सिगरेट पियो...."

पुष्पा ने कहा..."सिगरेट से क्रांति कैसे होगी..? क्रांतिकारी ने कहा.."याद करो मावो और चे को वो सिगरेट पीते थे...और जब लड़का पी सकता है तो लड़की क्यों नहीं....हम इसी की तो लड़ाई लड़ रहे हैं..." यही तो साम्यवाद है । और सुनों कल हमारे प्रखर नेता कामरेड फलाना आ रहे हैं....हम उनका भाषण सुनेंगे..और अपने आदिवासी साथियों के विद्रोह को मजबूत करेंगे...लाल सलाम.चे.मावो..लेनिन.."

पुष्पा ने कहा..."लेकिन ये तो सरासर अन्याय है...कामरेड फलाना के लड़के तो अमेरिका में पढ़ते हैं...वो एसी कमरे में बिसलेरी पीते हुए जल जंगल जमीन पर लेक्चर देते हैं...और वो चाहतें हैं की कुछ लोग अपना सब कुछ छोड़कर नक्सली बन जाएँ और बन्दूक के बल पर दिल्ली पर अपना अधिकार कर लें...ये क्या पागलपन है..उनके अपने लड़के क्यों नहीं लड़ते ये लड़ाई. हमें क्यों लड़ा रहे.? क्या यही क्रांति है" ?

क्रांतिकारी को गुस्सा आया...उसने कहा.."तुम पागल हो..जाहिल लड़की..तुम्हें ये सब बिलकुल समझ नहीं आएगा...तुमने न अभी दास कैपिटल पढ़ा है न कम्युनिस्ट मैनूफेस्टो...न तुम अभी साम्यवाद को ठीक से जानती हो न पूंजीवाद को..."

पुष्पा ने प्रतिवाद करते हुए कहा...."लेकिन इतना जरूर जानती हूँ कामरेड कि मार्क्सवाद शुद्ध विचार नही है..इसमें मैन्यूफैक्चरिंग फॉल्ट है।यह हीगल के द्वन्दवाद,इंग्लैण्ड के पूँजीवाद.और फ्रांस के समाजवाद का मिला जुला रायता है.जो न ही भारतीय हित में है न भारतीय जन मानस से मैच करता है।

क्रांतिकारी ने तीसरी सिगरेट जलाई.और हंसते हुए कहा."ये बुर्जुर्वा हिप्पोक्रेसी..तुम कुछ नहीं जानती. छोड़ो तुम्हें अभी और पढ़ने की जरूरत है.कल आवो हम फैज़ को गाएंगे...." बोल के लब आजाद हैं तेरे' पाश को गुनगुनाएंगे..हम क्रांति करेंगे...."आई विल फाइट कामरेड"
"हम लड़ेंगे साथी..उदास मौसम के खिलाफ"

अगले दिन उदास मौसम के खिलाफ खूब लड़ाई हुई...पोस्टर बैनर नारे लगे...साथ जनगीत डफली बजाकर गाया गया और क्रांति साइलेंट मोड में चली गयी.. तब तक दारु की बोतलें खुल चूकीं थीं.

क्रांतिकारी ने कहा..."पुष्पा ये तुम्हारा नाम बड़ा कम्युनल लगता है..पुष्पा पांडे....नाम से मनुवाद की बू आती है...कुछ प्रोग्रेसिव नाम होना चाहिए.आई थिंक..कामरेड पूसी सटीक रहेगा।

पुष्पा अपना कामरेडी नामकरण संस्कार सुनकर हंस ही रही थी तब तक क्रान्तिकारी ने दारु की गिलास को आगे कर दिया.पुष्पा ने दूर हटते हुए कहा...."नहीं...ये नहीं..हो सकता।"

क्रान्तिकारी ने कहा..."तुम पागल हो..क्रान्ति का रास्ता दारु से होकर जाता है..याद करो मावो लेनिन और चे को...सबने लेने के बाद ही क्रांति किया है.." पुष्पा ने कहा..लेकिन दारु तो ये अमेरिकन लग रही...हम अभी कुछ देर पहले अमेरिका को जी भरके गरिया रहे थे.

क्रांतिकारी ने गिलास मुंह के पास सटाकर काजू का नमकीन उठाया और कहा..."अरे वो सब छोड़ो पागल..समय नहीं ..क्रान्ति करो. दुनिया को तेरी जरूरत है....याद करो चे को मावो को.....हाय मार्क्स।

पुष्पा का सारा विरोध मार्क्स लेनिन और साम्यवाद के मोटे मोटे सूत्रों के बोझ तले दब गया.....वो कुछ ही समय बाद नशे में थी.क्रांतिकारी ने क्रांति के अगले सोपान पर जाकर कहा..."कामरेड पुसी ..अपनी ब्रा खोल दो.."
पुष्पा ने कहा.."इससे क्या होगा?...

क्रांतिकारी ने उसका हाथ दबाते हुए कहा.. "अरे तुम महसूस करो की तुम आजाद हो..ये गुलामी का प्रतीक है..ये पितृसत्ता के खिलाफ तुम्हारे विरोध का तरीका है..तुम नहीं जानती सैकड़ों सालों से पुरुषों ने स्त्रियों का शोषण किया है.हम जल्द ही एक प्रोटेस्ट करने वाले हैं...."फिलिंग फ्रिडम थ्रो ब्रा" जिसमें लड़कियां कैम्पस में बिना ब्रा पहने घूमेंगी।"

पुष्पा अकबका गई..."ये सब क्या बकवास है कामरेड..ब्रा न पहनने से आजादी का क्या रिश्ता" ? क्रांतिकारी ने कहा....'यही तो स्त्री सशक्तिकरण है कामरेड पुसी...देह की आजादी...जब पुरुष कई स्त्रियों को भोग सकता है...तो स्त्री क्यों नहीं....क्या तुम उन सभी शोषित स्त्रियों का बदल लेना चाहोगी ?" पुष्पा ने पूछा...."हाँ लेकिन कैसे"?...

क्रान्तिकारी ने कहा..."देखो जैसे पुरुष किसी स्त्री को भोगकर छोड़ देता है...वैसे तुम भी किसी पुरुष को भोगकर छोड़ दो...."पुष्पा को नशा चढ़ गया था..."कैसे बदला लूँ..कामरेड...?

क्रांतिकारी की बांछें खिल गयीं..उसने झट से कहा..."अरे मैं हूँ न..पुरुष का प्रतीक मुझे मान लो..मुझे भोगो कामरेड और हजारों सालों से शोषण का शिकार हो रही स्त्री का बदला लो।" बदला लो कामरेड.....उस दैत्य पुरुष की छाती पर चढ़कर बदला लो।"

कहतें हैं फिर रात भर लाल सलाम और क्रान्ति के साथ बिस्तर पर स्त्री सशक्तिकरण का दौर चला..बार बार क्रांति स्खलित होती रही.कामरेड ने दास कैपिटल को किनारे रखकर कामसूत्र का गहन अध्ययन किया.

अध्ययन के बाद सुबह पुष्पा उठी तो...आँखों में आंशू थे..क्या करने आई थी ये क्या करने लगी...गरीब माँ बाप का चेहरा याद आया.हाय! कुछ् दिन से कितनी चिड़चिड़ी होती जा रही...चेहरा इतना मुरझाया सा...अस्तित्व की हर चीज से नफरत होती जा रही.नकारात्मक बातें ही हर पल दिमाग में आती है....हर पल एक द्वन्द सा बना रहता है...."अरे क्या पुरुषों की तरह काम करने से स्त्री सशक्तिकरण होगा की स्त्री को हर जगह शिक्षा और रोजगार के उचित अवसर देकर.....पुष्पा का द्वन्द जारी था.

उसने देखा क्रांतिकारी दूर खड़ा होकर गाँजा फूंक रहा है.पुष्पा ने कहा."सुनों मुझे मन्दिर जाने का मन कर रहा है.अजीब सी बेचैनी हो रही है...लग रहा पागल हो जाउंगी....."

क्रांतिकारी ने गाँजा फूंकते हुए कहा.."पागल हो गयी हो..क्या तुम नहीं जानती की धर्म अफीम है"? जल्दी से तैयार हो जा..हमारे कामरेड साथी आज हमारा इन्तजार कर रहे...हम आज संघियों के सामने ही "किस आफ लव करेंगे".शाम को याकूब,इशरत और अफजल के समर्थन में एक कैंडील मार्च निकालेंगे..

पुष्पा ने कहा..."इससे क्या होगा ये सब तो आतंकी हैं. देशद्रोही....सैकड़ों बेगुनाहों को हत्या की है...कितनों का सिंदूर उजाड़ा है...कितनों का अनाथ किया है...क्रांतिकारी ने कहा..."तुम पागल हो लड़की.

पुष्पा जोर से रोई...."नहिं मुझे नहीं जाना... मुझे आज शाम दुर्गा जी के मन्दिर जाना है...मुझे नहीं करनी क्रांति...मैं पढ़ने आई हूँ यहाँ...मेरे माँ बाप क्या क्या सपने देखें हैं मेरे लिए.....नहीं ये सब हमसे न होगा...."

क्रांतिकारी ने पुष्पा के चेहरे को हाथ में लेकर कहा....."तुमको हमसे प्रेम नहीं.?...गर है तो ये सब बकवास सोचना छोड़ो....." याद करो मार्क्स और चे के चेहरे को...सोचो जरा क्या वो परेशानियों के आगे घुटने टेक दिए...नहीं...उन्होंने क्रान्ति किया। आई विल फाइट कामरेड....
पुष्पा रोई...लेकिन हम किससे फाइट कर रहे हैं..?

क्रांतिकारी ने आवाज तेज की और कहा ये सोचने का समय नहीं.....हम आज शाम को ही महिषासुर की पूजा करेंगे...और रात को बीफ पार्टी करके मनुवाद की ऐसी की तैसी कर देंगे.. फिर बाद दारु के साथ चरस गाँजा की भी व्यवस्था है।

पुष्पा को गुस्सा आया..चेहरा तमतमाकर बोली...."अरे जब दुर्गा जी को मिथकीय कपोल कल्पना मानते हो तो महिषासुर की पूजा क्यों....?
क्रान्तिकारी ने कहा.अब ये समझाने का बिलकुल वक्त नहीं...तुम चलो...मुझसे थोड़ा भी प्रेम है तो चलों..हाय चे हाय मावो...हाय क्रांति..."
.
इस तरह से क्रांति की विधिवत शुरुवात हुई.... धीरे-धीरे कुछ दिन लगातार दिन में क्रांति और रात में बिस्तर पर क्रांति होती रही...पुष्पा अब सर्टिफाइड क्रांतिकारी हो गयी थी...पढ़ाई लिखाई छोड़कर सब कुछ करने लगी थी...कमरे की दीवाल पर दुर्गा जी हनुमान जी की जगह चे और मावो थे....अगरबत्ती की जगह..सिगरेट..और गर्भ निरोधक के साथ सर दर्द और नींद की गोलियां....अब पुष्पा के सर पे क्रांति का नशा हमेशा सवार रहता...

कुछ दिन बीते.एक साँझ की बात है पुष्पा ने अपने क्रांतिकारी से कहा..."सुनो क्रांतिकारी..तुम अपने बच्चे के पापा बनने वाले हो...आवो हम अब शादी कर लें?

कहते हैं तब क्रांतिकारी की हवा निकल गयी...मैंनफोर्स और मूड्स के बिज्ञापनों से विश्वास उठ गया..उसने जोर से कहा.."नहीं पुष्पा...कैसे शादी होगी..मेरे घर वाले इसे स्वीकार नहीं करेंगे....हमारी जाति और रहन सहन सब अलग है......यार सेक्स अलग बात है और शादी वादी वही बुर्जुवा हिप्पोक्रेसी....मुझे ये सब पसन्द नहीं..हम इसी के खिलाफ तो लड़ रहे हैं। ?

पुष्पा तेज तेज रोने लगी.... वो नफरत और प्रतिशोध से भर गयी...लेकिन अब वो वहां खड़ी थी जहाँ से पीछे लौटना आसान न था।

कहतें हैं क्रांति के पैदा होने से पहले क्रांतिकारी पुष्पा को छोड़कर भाग खड़ा हुआ और क्रान्ति गर्भपात का शिकार हो गयी।लेकिन इधर पता चला है की क्रांतिकारी अपनी जाति में विवाह करके Hongkong में नौकरी कर रहा है और कामरेड पुष्पा अवसाद के हिमालय पर खड़े होकर सार्वजनिक गर्भपात के दर्द से उबरने के बाद जोर से नारा लगा रही..

"भारत की बर्बादी तक जंग चलेगी जंग चलेगी
काश्मीर की आजादी तक जंग चलेगी जंग चलेगी।"

Tuesday, December 8, 2020

मांसाहार उचित या अनुचित ?

प्रोफेसर आर्य एवं मौलाना साहिब की भेंट आज बाज़ार में हो जाती है।  मौलाना साहिब जल्दी में थे बोले की ईद आने वाली हैं इसलिए क़ुरबानी देने के लिए बकरा खरीदने जा रहा हूँ। आर्य साहिब के मन में तत्काल उन लाखो निर्दोष बकरों, बैलो, ऊँटो आदि का ख्याल आया जिनकी गर्दनो पर अल्लाह के नाम पर तलवार चला दी जाएगी। वे सब बेकसूर जानवर धर्म के नाम पर क़त्ल कर दिए जायेगे। 

आर्य जी से रहा न गया और वे मौलाना साहिब से बोले की -यह क़ुरबानी मुस्लमान लोग क्यों देते हैं?

यूँ तो मौलाना जल्दी में थे पर जब इस्लाम का प्रश्न हो तो समय निकल ही आया।  अपनी लम्बी बकरा दाड़ी पर हाथ फेरते हुए बोले- इसके पीछे एक पुराना किस्सा है।  हज़रत इब्राहीम से एक बार सपने में अल्लाह ने उनकी सबसे प्यारी चीज़ यानि उनके बेटे की क़ुरबानी मांगी। अगले दिन इब्राहीम जैसे ही अपने बेटे इस्माइल की क़ुरबानी देने लगे।  तभी अल्लाह ने उन के बेटे को एक मेढ़े में तब्दील कर दिया और हज़रत इब्राहीम ने उसकी क़ुरबानी दे दी। अल्लाह उन पर बहुत मेहरबान हुआ और बस उसके बाद से हर साल मुस्लमान इस दिन को बकर ईद के नाम से बनते है और इस्लाम को मानने वाले बकरा, मेढ़े, बैल आदि की क़ुरबानी देंते हैं।  उस बकरे के मांस को गरीबो में बांटा जाता हैं। इसे जकात कहते है। इससे भारी पुण्य मिलता है। 

आर्य जी- जनाब अगर अनुमति हो तो में कुछ पूछना चाहता हूँ?

मौलाना जी – बेशक से

आर्य जी- पहले तो यह की बकर का असली मतलब गाय होता है। न की बकरा फिर बकरे, बैल, ऊंट आदि की क़ुरबानी क्यों दी जाती हैं ?

दूसरे बकर ईद के स्थान पर इसे गेंहू ईद कहते तो अच्छा होता क्योंकि एक किलो गौशत में तो दस किलो के बराबर गेंहू आ जाता हैं। वो ना केवल सस्ता पड़ता हैं, अपितु खाने के लिए कई दिनों तक काम आता है। 

आपका यह हजरत इब्राहीम वाला किस्सा कुछ कम जँच रहा है। क्योंकि अगर इसे सही माने तो अल्लाह अत्याचारी होने के साथ साथ क्रूर भी साबित होता है। 

आज अल्लाह किसी मुस्लमान के सपने में क़ुरबानी की प्रेरणा देने के लिए क्यों नहीं आते? क्या आज के मुसलमानों को अपने अल्लाह पर विश्वास नहीं है की वे अपने बेटो की क़ुरबानी नहीं देते? बल्कि एक निरपराध पशु के कत्ल के गुन्हेगार बनते हैं। यह संभव ही नहीं हैं क्योंकि जो अल्लाह या भगवान प्राणियों की रक्षा करता है। वह किसी के सपने में आकर उन्हें मारने की प्रेरणा देगा। 

                                        मुसलमानों की बुद्धि को क्या हो गया हैं? अगर हज़रत इब्राहीम को किसी लड़की के साथ बलात्कार करने को अल्लाह कहते तो वे उसे नहीं मानते तो फिर अपने इकलौते लड़के को मारने के लिए कैसे तैयार हो गए? मुसलमानों को तत्काल इस प्रकार का कत्लेआम को बंद कर देना चाहिए। मुसलमानों के सबसे पाक किताब कुरान-ए-शरीफ के अल हज 22:37में कहा गया है-  न उनके मांस अल्लाह को पहुँचते हैं और न उनके रक्त , किन्तु उसे तुम्हारा तकवा (धर्मप्रयाणता) पहुँचता हैं। यही बात अल- अनआम 6:38 में भी कही गई है। हदीसो में भी इस प्रकार के अनेक प्रमाण मिलते हैं। यहाँ तक की मुसलमानों में सबसे पवित्र समझी जाने वाली मक्का की यात्रा पर किसी भी प्रकार के मांसाहार, यहाँ तक की जूं तक को मारने की अनुमति नहीं होती हैं। तो फिर अल्लाह के नाम पर इस प्रकार कत्लेआम क्यों होता है?

मौलाना जी- आर्य जी यहाँ तक तो सब ठीक हैं पर मांसाहार करने में क्या बुराई हैं?

आर्य जी -पहले तो शाकाहार विश्व को भुखमरी से बचा सकता है। आज विश्व की तेजी से फैल रही जनसँख्या के सामने भोजन की बड़ी समस्या है। एक कैलोरी मांस को तैयार करने में 10 कैलोरी के बराबर शाकाहारी पदार्थ की खपत हो जाती है। अगर सारा विश्व मांसाहार को छोड़ दे तो धरती के सिमित संसाधनों का उपयोग सही प्रकार से हो सकता है।  कोई भी भूखा नहीं रहेगा। क्यूंकि दस गुना मनुष्यो का पेट भरा जा सकेगा। अफ्रीका में तो अनेक मुस्लिम देश भुखमरी के शिकार हैं। अगर ईद के नाम की जकात में उन्हें शाकाहारी भोजन दिया जाये तो 10 गुणा लोगों का पेट भरा जा सकता हैं। 

    दूसरे मांसाहार अनेक बीमारियों की जड़ हैं। इससे दिल के रोग, गोउट(Gout), कैंसर जैसे अनेको रोगों की वृद्धि देखी गई हैं।  एक मिथक यह है की मांसाहार खाने से ज्यादा ताकत मिलती है। इस मिथक को पहलवान सुशील कुमार ने विश्व के नंबर एक पहलवान है और पूर्ण रूप से शाकाहारी है तोड़ दिया है। आपसे ही पूछते है की क्या आप अपना मांस किसी को खाने देंगे? नहीं ना तो फिर आप कैसे अन्य का मांस खा सकते हैं?
मौलाना जी – आर्य जी आप शाकाहार की बात कर रहे है तो क्या पोंधो में आत्मा नहीं होती हैं? क्या उसे खाने से पाप नहीं लगता है? महान वैज्ञानिक जगदीश चन्द्र बासु के मुताबिक तो पोंधो में जान होती है?
आर्य जी- पोंधो में आत्मा की स्थिति सुषुप्ति की होती हैं। अर्थात सोये हुए के समान, अगर किसी पशु का कत्ल करे तो उसे दर्द होता है, वो रोता है, चिल्लाता है। मगर किसी पोंधे को कभी दर्द होते, चिल्लाते नहीं देखा जाता। जैसे कोमा के मरीज को दर्द नहीं होता है। उसी प्रकार से पोंधो को भी उखाड़ने पर दर्द नहीं होता हैं। उसकी उत्पत्ति खाने के लिए ही ईश्वर ने की है।  जगदीश बासु का कथन सही हैं की पोंधो में प्राण होते हैं पर उसमे आत्मा की क्या स्थिती है और पोंधो को दर्द नहीं होता है। इस बात पर वैज्ञानिक मौन है। सबसे महतव्पूर्ण बात है की शाकाहारी भोजन प्रकृति के लिए हानिकारक नहीं है। कुरान या बाइबिल की मान्यता के अनुसार किसी भी पशु को ईश्वर ने भोजन के लिए पैदा किया है तब तो पशुओं की स्वाभाविक प्रवृति यही होनी चाहिये की वे स्वयं मनुष्य के पास उसका भोज्य पदार्थ बनने के लिए आये और दूसरे बिना संघर्ष के अपने प्राण दे देने चाहिये?
मौलाना जी- परन्तु हिन्दुओ में कोलकता की काली और गुवहाटी की कामख्या के मंदिर में पशु बलि दी जाती हैं। वेदों में भी हवन आदि में तो पशु बलि का विधान है।
आर्य जी- जो स्वयं अंधे हैं वे दूसरो को क्या रास्ता दीखायेंगे? हिन्दू जो पशु बलि में विश्वास रखते है खुद ही वेदों की आज्ञा के विरुद्ध कार्य कर रहे है। पशु बलि देने से केवल और केवल पाप लगता है।  भला किसी को मारकर आपको सुख कैसे मिल सकता है? जहाँ तक वेदों का प्रश्न है मध्यकाल में कुछ अज्ञानी लोगो ने हवन आदि में पशु बलि देना आरंभ कर दिया था। उसे वेद संगत दिखाने के लिए महीधर, सायण आदि ने वेदों के कर्म कांडी अर्थ कर दिए। जिससे पशु बलि का विधान वेदों से सिद्ध किया जा सके। बाद में मैक्समूलर , ग्रिफीथ आदि पाश्चात्य लोगो ने वेदों के उसी गलत निष्कर्षों का अंग्रेजी में अनुवाद कर दिया। जिससे पूरा विश्व यह समझने लगा की वेदों में पशु बलि का विधान है। आधुनिक काल में ऋषि दयानंद ने जब देखा की वेदों के नाम पर किस प्रकार से घोर प्रपंच किया गया है। तो उन्होंने वेदों का एक नया भाष्य किया जिससे फैलाई गयी भ्रांतियों को मिटाया जा सके।  देखो वेदों में पशु रक्षा के विषय में बहुत सुंदर बात लिखी है-

ऋगवेद ५/५१/१२ में अग्निहोत्र को अध्वर यानि जिसमे हिंसा की अनुमति नहीं है कहाँ गया है

यजुर्वेद १२/३२ में किसी को भी मारने से मनाही है

यजुर्वेद १६/३ में हिंसा न करने को कहाँ गया है

अथर्ववेद १९/४८/५ में पशुओ की रक्षा करने को कहाँ गया है

अथर्ववेद ८/३/१६ में हिंसा करने वाले को मारने का आदेश है

ऋगवेद ८/१०१/१५ में हिंसा करने वाले को राज्य से निष्काषित करने का आदेश है
इस प्रकार चारो वेदों में अनेको प्रमाण हैं जिनसे यह सिद्ध होता हैं की वेदों में पशु बलि अथवा मांसाहार का कोई वर्णन नहीं है। 

मौलाना जी – हमने तो सुना हैं की अश्वमेध में घोड़े की, अज मेध में बकरे की, गोमेध में गों की और नरमेध में आदमी की बलि दी जाती थी।  

आर्य जी- आपकी शंका अच्छी है। मेध शब्द का अर्थ केवल मात्र मारना नहीं है।  मेधावी शब्द का प्रयोग जिस प्रकार से श्रेष्ठ अथवा बुद्धिमान के लिए किया जाता है उसी प्रकार से मेध शब्द का प्रयोग श्रेष्ठ कार्यो के लिए किया जाता है। 

 शतपथ 13/1/6/3 एवं 13/2/2/3 में कहाँ गया हैं की जो कार्य राष्ट्र उत्थान के लियें किया जाये उसे अश्वमेध कहते है।  निघंटु 1/1 एवं शतपथ 13/15/3 के अनुसार अन्न को शुद्ध रखना, संयम रखना, सूर्य की रौशनी से धरती को शुद्ध रखने में उपयोग करना आदि कार्य गोमेध कहलाते हैं। महाभारत शांति पर्व 337/1-2 के अनुसार हवन में अन्न आदि का प्रयोग करना अथवा अन्न आदि की उत्पादन क्षमता को बढ़ाना अजमेध कहलाता है। मनुष्य के मृत शरीर का उचित प्रकार से दाह कर्म करना नरमेध कहलाता है। 

मौलाना जी – हमने तो सुना है की श्री राम जी मांस खाते थे एवं महाभारत वनपर्व 207 में रांतिदेव राजा ने गाय को मारने की अनुमति दी थी। 

आर्य जी- रामायण , महाभारत आदि पुस्तकों में उन्हीं लोगो ने मिलावट कर दी हैं। जो हवन में पशु बलि एवं मांसाहार आदि मानते थे। वेद स्मृति परंपरा से सुरक्षित है इसलिए वेदों में कोई मिलावट नहीं हो सकती। वेदों मे से एक शब्द अथवा एक मात्रा तक को बदला नहीं जा सकता। रामायण में सुंदर कांड स्कन्द 36 श्लोक 41 मेंस्पष्ट कहाँ गया हैं की श्री राम जी मांस नहीं लेते वे तो केवल फल अथवा चावल लेते है। 

महाभारत अनुशासन पर्व 115/40 में रांतिदेव को शाकाहारी बताया गया है। 

शांति पर्व 261/47 में गाय और बैल को मारने वाले को पापी कहा गया हैं। इस प्रकार के अन्य प्रमाण भी मिलते हैं जिनसे यह भी सिद्ध होता है की रामायण एवं महाभारत में मांस खाने की अनुमति नहीं हैं। जो भी प्रमाण मांसाहार के समर्थन में मिलते है, वे सभी सब मिलावट हैं। 

मौलाना जी – तो क्या आर्य जी हमे किसी को भी मारने की इजाजत नहीं है?

आर्य जी – बिलकुल मौलाना साहिब। यहाँ तक की कुरान के उस अल्लाह को ही मानना चाहिए जो अहिंसा, सत्य,प्रेम, भाईचारे का सन्देश देता हैं।  क़ुरबानी, मारना,जलना,घृणा करना,पाप करना आदि सिखाने वाली बातें ईश्वरकृत नहीं हो सकती। 

हदीस ज़द अल-माद में इब्न क़य्यिम ने कहाँ हैं की “गाय के दूध- घी का इस्तेमाल करना चाहिए क्योंकी यह सेहत के लिए फायदेमंद है और गाय का मांस सेहत के लिए नुकसानदायक हैं”

मौलाना जी- आर्य जी आपकी बातों में दम बहुत है और साथ ही साथ वे मुझे जच भी रही है। अब मैं कभी भी जीवन भर मांस नहीं खाऊंगा। ईद पर बकरा नहीं काटूँगा और साथ ही साथ अपने अन्य मुस्लिम भाइयों को भी इस सत्य के विषय में बताऊंगा।  
आर्य जी आपका सही रास्ता दिखने के लिए अत्यंत धन्यवाद। 

लेखक- डॉ विवेक आर्य

Saturday, December 5, 2020

हिंदू-सिखों का कत्लेआम।

पाकिस्तान में सन् 1947 में हिंदू-सिखों का कत्लेआम हुआ। स्त्रियों के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया। उन्हें नग्न कर घुमाया गया। उनके वक्ष काट डाले गए। कइयों ने कुएं में कूद जान दे दी। उसी भयावहता को बयां करते हुए के सी आर्यन ने यह पेंटिंग बनाई थी 1 बाप, 7 बेटियां और गुजरांवाला का एक कुआं......!

एक जमीन...
गुजरांवाला। पाकिस्तान पंजाब का एक शहर। सरदार हरि सिंह नलवा की जमीन। यहां कभी एक पंजाबी हिंदू खत्री परिवार रहता था। मुखिया थे- लाला जी उर्फ बलवंत खत्री। बड़े जमींदार। शानदार कोठी थी। लाला जी का एक भरा-पूरा परिवार इस कोठी में रहता था। पत्नी थी- प्रभावती और बच्चे थे आठ। सात बेटियां
और एक बेटा.....!
एक बेटा है। मुख्तार भाई हमारे परिवार की तरह हैं......!
एक चेतावनी...
उसका जवाब था, “मुख्तार भाई ही भीड़ लेकर निकले हैं, लाला जी। सारे हिंदू-सिख भारत भाग रहे हैं। 300-400 लोगों का एक जत्था घंटे भर में निकलने वाला है। परिवार के साथ शहर के गुरुद्वारे पहुंचिए।” यह कह वह सिख डाकिया सरपट भागा। उसे दूसरे घर तक भी शायद खबर पहुंचानी रही होगी....!

एक संवाद...
लाला जी पीछे मुड़े तो सात महीने की गर्भवती प्रभावती की आंखों से आंसू निकल रहे थे। उसने सारी बात सुन ली थी। उसने कहा- लाला जी हमे निकल जाना चाहिए। मैंने बच्चों से गहने, पैसे, कागज बांध लेने को कहा है। पर लाला जी का मन नहीं मान रहा था। कहा- हम कहीं नहीं जाएंगे। सरदार झूठ बोल रहा है। मुख्तार भाई ऐसा नहीं कर सकते। मैं खुद उनसे बात करूंगा। प्रभावती ने बताया- वे पिछले महीने घर आए थे। कहा कि सलीम को लाजो पसंद है। वे चाहते हैं कि दोनों का निकाह हो जाए। लज्जो ने भी बताया था कि सलीम अपने दोस्तों के साथ उसे छेड़ता है। इसी वजह से उसने घर से बाहर निकलना बंद कर दिया। लाला बलवंत बोले- तुमने यह बात पहले क्यों नहीं बताई। मैं मुख्तार भाई से बात करता। प्रभावती बोलीं- आप भी बहुत भोले हैं। मुख्तार भाई खुद लज्जो का निकाह सलीम से करवाना चाहते हैं। अब उसे जबरन ले जाने के लिए आ रहे हैं.....!

एक गुरुद्वारा...
गुरुद्वारा हिंदू-सिखों से खचाखच भरा था। पुरुषों के हाथों में तलवारें थी। गुजरांवाला पहलवानों के लिए मशहूर था। कई मंदिरों और गुरुद्वारों के अपने अखाड़े थे। हट्टे-कट्टे हिंदू-सिख गुरुद्वारे के द्वार पर सुरक्षा में मुस्तैद थे। कुछ लोग छत से निगरानी कर रहे थे। कुछ लोग कुएं के पास रखे पत्थरों पर तलवारों को धार दे रहे थे। महिलाएं, लड़कियां और बच्चे दहशत में थे। माएं नवजातों और बच्चों को सीने से चिपकाए हुईं थी...!

एक भीड़...
अचानक एक भीड़ की आवाज आनी शुरू हुई। यह भीड़ बड़ी मस्जिद की तरफ से आ रही थी। वे नारा लगा रहे थे,
- पाकिस्तान का मतलब क्या, ला इलाहा इल्लल्लाह
- हंस के लित्ता पाकिस्तान, खून नाल लेवेंगे हिंदुस्तान
- कारों, काटना असी दिखावेंगे
- किसी मंदिर विच घंटी नहीं बजेगी हून
- हिंदू दी जनानी बिस्तर विच, ते आदमी श्मशान विच

एक निशाना...
प्रभावती एक खिड़की के पास बेटियों के साथ बैठी थी। इकलौता बेटा मुख्य दरवाजे के बाहर मुस्तैद था। अचानक भीड़ की आवाज शांत हो गई। फिर मिनट भर के भीतर ही 'ला इलाहा इल्लल्लाह' का वही शोर शुरू हो गया। हर सेकेंड के साथ शोर बढ़ती जा रही थी। भीड़ में शामिल लोगों के हाथों में तलवार, फरसा, चाकू, चेन और अन्य हथियार थे। गुरुद्वारा उनका निशाना था....!

एक प्रतिज्ञा...
गुरुद्वारे का प्रवेश द्वार अंदर से बंद था। कुछ लोग द्वार पर तो कुछ दीवार से सट कर हथियारों के साथ खड़े थे। अचानक पुजारी और पहलवान सुखदेव शर्मा की आवाज गूंजी। वे बोले, “वे हमारी मां, बहन, पत्नी और बेटियों को लेने आ रहे हैं। उनकी तलवारें हमारी गर्दन काटने के लिए है। वे हमसे समर्पण करने और धर्म बदलने को कहेंगे। मैंने फैसला कर लिया है। झुकुंगा नहीं। अपना धर्म नहीं छोड़ूंगा। न ही उन्हें अपनी स्त्रियों को छूने दूंगा।” चंद सेकेंड के सन्नाटे के बाद 'जो बोले सो निहाल, सत श्री अकाल, वाहे गुरु जी दा खालसाए वाहे गुरु जी दी फतह' से गुरुद्वारा गूंज उठा। वहां मौजूद हर किसी ने हुंकार भरी- हममें से कोई अपने पुरखों का धर्म नहीं छोड़ेगा......!

एक इंतजार...
50-60 लोगों ने गुरुद्वारे में घुसने की कोशिश की। देखते ही देखते ही सिर धड़ से अलग हो गया। गुरुद्वारे में मौजूद लोगों को कोई नुकसान नहीं हुआ था। महिलाएं और बच्चे भी अंदर हॉल में सुरक्षित थे। यह देख वह मजहबी भीड़ गुरुद्वारे से थोड़ा पीछे हट गई। करीब 30 मिनट तक गुरुद्वारे से 50 मीटर दूर वे खड़े होकर मजहबी नारे लगाते रहे। ऐसा लगा रहा था मानो उन्हें किसी चीज का इंतजार है। जिसका इंतजार था, वे आ गए थे। हजारों का हुजूम। बाहर हजारों लोग। गुरुद्वारे के अंदर मुश्किल से 400 हिंदू-सिख। उनमें 50-60 युवा। बाकी बुजुर्ग, महिलाएं और बच्चे....!!

एक उन्माद...
अंतिम लड़ाई का क्षण आ चुका था। भीड़ ने एक सिख महिला को आगे खींचा। वह नग्न और अचेत थी। भीड़ में शामिल कुछ लोग उसे नोंच रहे थे। अचानक किसी ने उसका वक्ष तलवार से काट डाला और उसे गुरुद्वारे के भीतर फेंक दिया....!!

एक सवाल...
गुरुद्वारे में मौजूद गुजरांवाला के हिंदू-सिखों ने इससे पहले इस तरह की बर्बरता के बारे में सुना ही था। पहली बार आंखों से देखा। अब हर कोई अपनी स्त्री के बारे में सोचने लगा। यदि उनकी मौत के बात उनकी स्त्री इनके हाथ लग गईं तो क्या होगा? उन्हें अब केवल मौत ही सहज लग रही थी। उसके अलावा सब कुछ भयावह.!

एक कत्लेआम...
भीड़ ने दरवाजे पर चढ़ाई की। कत्लेआम मच गया। हिंदू-सिख लड़े बांकुरों की तरह। पर गिनती के लोग, हजारों के हुजूम के सामने कितनी देर टिकते...!

एक मुक्ति...
लाजो ने कहा- तुस्सी काटो बापूजी, मैं मुसलमानी नहीं बनूंगी। लाला बलवंत रोने लगे। आवाज नहीं निकल पा रही थी। लाजो ने फिर कहा- जल्दी करिए बापूजी। लाला बलवंत फूट-फूटकर रोने लगे। भला कोई बाप अपने ही हाथों अपनी बेटियों की हत्या कैसे करे? लाजो ने कहा- यदि आपने नहीं मारा तो वे मेरे वक्ष... बात पूरी होने से पहले ही लाला जी ने लाजो का सिर धड़ से अलग कर दिया। अब राजो की बारी थी। फिर भागो... पारो... गायो... इशो... और आखिरकार उर्मी। लाला जी हर बेटी का माथा चमूते गए और सिर धड़ से अलग करते गए। सबको एक-एक कर मुक्ति दे दी। लेकिन उस मजहबी भीड़ से मृत महिलाओं का शरीर भी सुरक्षित नहीं था। नरपिशाचों के हाथ बेटियों का शरीर न छू ले, यह सोच सबके शव को लाला जी ने गुरुद्वारे के कुएं में डाल दिया !

एक आदेश...
लाल बलवंत ने प्रभावती से कहा- गुरुद्वारे के पिछले दरवाजे पर तांगा खड़ा है, तुम बलदेव के साथ निकलो। कुछ लोग तुम्हें सुरक्षित स्टेशन तक लेकर जाएंगे। वहां से एक जत्था भारत जाएगा। तुम दोनों निकलो। प्रभावती ने कहा- मैं आपके बिना कहीं नहीं जाऊंगी। लाला जी बोले- तुम्हें अपने पेट में पल रहे बच्चे के लिए जिंदा रहना होगा। तुम जाओ, मैं पीछे से आता हूं। लाला जी ने प्रभावती का माथा चूमा। बलदेव को गले लगाया और कहा जल्दी करो। तांगा प्रभावती और बलदेव को लेकर स्टेशन की तरफ चल दिया........!

एक पिता...
फिर लाला जी ने खुद को चाकुओं से गोदा। उसी कुएं में छलांग लगा दी, जिसमें सात बेटियों को काट कर डाला था।

साभार

Tuesday, December 1, 2020

महाभारत युद्ध में एकमात्र जीवित।

माना जाता है कि महाभारत युद्ध में एकमात्र जीवित बचा कौरव युयुत्सु था और 24,165 कौरव सैनिक लापता हो गए थे। लव और कुश की 50वीं पीढ़ी में शल्य हुए, ‍जो महाभारत युद्ध में कौरवों की ओर से लड़े थे।
शोधानुसार जब महाभारत का युद्ध हुआ, तब श्रीकृष्ण की आयु 83 वर्ष थी। महाभारत युद्ध के 36 वर्ष बाद उन्होंने देह त्याग दी थी। इसका मतलब 119 वर्ष की आयु में उन्होंने देहत्याग किया था। भगवान श्रीकृष्ण द्वापर के अंत और कलियुग के आरंभ के संधि काल में विद्यमान थे। ज्योतिषिय गणना के अनुसार कलियुग का आरंभ शक संवत से 3176 वर्ष पूर्व की चैत्र शुक्ल एकम (प्रतिपदा) को हुआ था। वर्तमान में 1936 शक संवत है। इस प्रकार कलियुग को आरंभ हुए 5112 वर्ष हो गए हैं।

इस प्रकार भारतीय मान्यता के अनुसार श्रीकृष्ण विद्यमानता या काल शक संवत पूर्व 3263 की भाद्रपद कृ. 8 बुधवार के शक संवत पूर्व 3144 तक है। भारत का सर्वाधिक प्राचीन युधिष्ठिर संवत जिसकी गणना कलियुग से 40 वर्ष पूर्व से की जाती है, उक्त मान्यता को पुष्ट करता है। कलियुग के आरंभ होने से 6 माह पूर्व मार्गशीर्ष शुक्ल 14 को महाभारत का युद्ध का आरंभ हुआ था, जो 18 दिनों तक चला था। आओ जानते हैं महाभारत युद्ध के 18 दिनों के रोचक घटनाक्रम को।

महाभारत युद्ध से पूर्व पांडवों ने अपनी सेना का पड़ाव कुरुक्षेत्र के पश्चिमी क्षेत्र में सरस्वती नदी के दक्षिणी तट पर बसे समंत्र पंचक तीर्थ के पास हिरण्यवती नदी (सरस्वती नदी की सहायक नदी) के तट पर डाला। कौरवों ने कुरुक्षेत्र के पूर्वी भाग में वहां से कुछ योजन की दूरी पर एक समतल मैदान में अपना पड़ाव डाला।

दोनों ओर के शिविरों में सैनिकों के भोजन और घायलों के इलाज की उत्तम व्यवस्था थी। हाथी, घोड़े और रथों की अलग व्यवस्था थी। हजारों शिविरों में से प्रत्येक शिविर में प्रचुर मात्रा में खाद्य सामग्री, अस्त्र-शस्त्र, यंत्र और कई वैद्य और शिल्पी वेतन देकर रखे गए।
दोनों सेनाओं के बीच में युद्ध के लिए 5 योजन (1 योजन= 8 किमी की परिधि, विष्णु पुराण के अनुसार 4 कोस या कोश= 1 योजन= 13 किमी से 16 किमी)= 40 किमी का घेरा छोड़ दिया गया था।
कौरवों की ओर थे सहयोगी जनपद:- गांधार, मद्र, सिन्ध, काम्बोज, कलिंग, सिंहल, दरद, अभीषह, मागध, पिशाच, कोसल, प्रतीच्य, बाह्लिक, उदीच्य, अंश, पल्लव, सौराष्ट्र, अवन्ति, निषाद, शूरसेन, शिबि, वसति, पौरव, तुषार, चूचुपदेश, अशवक, पाण्डय, पुलिन्द, पारद, क्षुद्रक, प्राग्ज्योतिषपुर, मेकल, कुरुविन्द, त्रिपुरा, शल, अम्बष्ठ, कैतव, यवन, त्रिगर्त, सौविर और प्राच्य।

कौरवों की ओर से ये यौद्धा लड़े थे : भीष्म, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य, कर्ण, अश्वत्थामा, मद्रनरेश शल्य, भूरिश्र्वा, अलम्बुष, कृतवर्मा, कलिंगराज, श्रुतायुध, शकुनि, भगदत्त, जयद्रथ, विन्द-अनुविन्द, काम्बोजराज, सुदक्षिण, बृहद्वल, दुर्योधन व उसके 99 भाई सहित अन्य हजारों यौद्धा।

पांडवों की ओर थे ये जनपद : पांचाल, चेदि, काशी, करुष, मत्स्य, केकय, सृंजय, दक्षार्ण, सोमक, कुन्ति, आनप्त, दाशेरक, प्रभद्रक, अनूपक, किरात, पटच्चर, तित्तिर, चोल, पाण्ड्य, अग्निवेश्य, हुण्ड, दानभारि, शबर, उद्भस, वत्स, पौण्ड्र, पिशाच, पुण्ड्र, कुण्डीविष, मारुत, धेनुक, तगंण और परतगंण।

पांडवों की ओर से लड़े थे ये यौद्धा : भीम, नकुल, सहदेव, अर्जुन, युधिष्टर, द्रौपदी के पांचों पुत्र, सात्यकि, उत्तमौजा, विराट, द्रुपद, धृष्टद्युम्न, अभिमन्यु, पाण्ड्यराज, घटोत्कच, शिखण्डी, युयुत्सु, कुन्तिभोज, उत्तमौजा, शैब्य और अनूपराज नील।
तटस्थ जनपद : विदर्भ, शाल्व, चीन, लौहित्य, शोणित, नेपा, कोंकण, कर्नाटक, केरल, आन्ध्र, द्रविड़ आदि ने इस युद्ध में भाग नहीं लिया।

पितामह भीष्म की सलाह पर दोनों दलों ने एकत्र होकर युद्ध के कुछ नियम बनाए। उनके बनाए हुए नियम निम्नलिखित हैं-
1. प्रतिदिन युद्ध सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक ही रहेगा। सूर्यास्त के बाद युद्ध नहीं होगा।
2. युद्ध समाप्ति के पश्‍चात छल-कपट छोड़कर सभी लोग प्रेम का व्यवहार करेंगे।
3. रथी रथी से, हाथी वाला हाथी वाले से और पैदल पैदल से ही युद्ध करेगा।
4. एक वीर के साथ एक ही वीर युद्ध करेगा।
5. भय से भागते हुए या शरण में आए हुए लोगों पर अस्त्र-शस्त्र का प्रहार नहीं किया जाएगा।
6. जो वीर निहत्था हो जाएगा उस पर कोई अस्त्र नहीं उठाया जाएगा।
7. युद्ध में सेवक का काम करने वालों पर कोई अस्त्र नहीं उठाएगा।
प्रथम दिन का युद्ध : प्रथम दिन एक ओर जहां कृष्ण-अर्जुन अपने रथ के साथ दोनों ओर की सेनाओं के मध्य खड़े थे और अर्जुन को गीता का उपदेश दे रहे थे इसी दौरान भीष्म पितामह ने सभी योद्धाओं को कहा कि अब युद्ध शुरू होने वाला है। इस समय जो भी योद्धा अपना खेमा बदलना चाहे वह स्वतंत्र है कि वह जिसकी तरफ से भी चाहे युद्ध करे। इस घोषणा के बाद धृतराष्ट्र का पुत्र युयुत्सु डंका बजाते हुए कौरव दल को छोड़ पांडवों के खेमे में चले गया। ऐसा युधिष्ठिर के क्रियाकलापों के कारण संभव हुआ था। श्रीकृष्ण के उपदेश के बाद अर्जुन ने देवदत्त नामक शंख बजाकर युद्ध की घोषणा की।

इस दिन 10 हजार सैनिकों की मृत्यु हुई। भीम ने दु:शासन पर आक्रमण किया। अभिमन्यु ने भीष्म का धनुष तथा रथ का ध्वजदंड काट दिया। पहले दिन की समाप्ति पर पांडव पक्ष को भारी नुकसान उठाना पड़ा। विराट नरेश के पुत्र उत्तर और श्वेत क्रमशः शल्य और भीष्म के द्वारा मारे गए। भीष्म द्वारा उनके कई सैनिकों का वध कर दिया गया।

कौन मजबूत रहा : पहला दिन पांडव पक्ष को नुकसान उठाना पड़ा और कौरव पक्ष मजबूत रहा।

दूसरे दिन का युद्ध : कृष्ण के उपदेश के बाद अर्जुन तथा भीष्म, धृष्टद्युम्न तथा द्रोण के मध्य युद्ध हुआ। सात्यकि ने भीष्म के सारथी को घायल कर दिया।
द्रोणाचार्य ने धृष्टद्युम्न को कई बार हराया और उसके कई धनुष काट दिए, भीष्म द्वारा अर्जुन और श्रीकृष्ण को कई बार घायल किया गया। इस दिन भीम का कलिंगों और निषादों से युद्ध हुआ तथा भीम द्वारा सहस्रों कलिंग और निषाद मार गिराए गए, अर्जुन ने भी भीष्म को भीषण संहार मचाने से रोके रखा। कौरवों की ओर से लड़ने वाले कलिंगराज भानुमान, केतुमान, अन्य कलिंग वीर योद्धा मार गए।
कौन मजबूत रहा : दूसरे दिन कौरवों को नुकसान उठाना पड़ा और पांडव पक्ष मजबूत रहा।

तीसरा दिन : कौरवों ने गरूड़ तथा पांडवों ने अर्धचंद्राकार जैसी सैन्य व्यूह रचना की। कौरवों की ओर से दुर्योधन तथा पांडवों की ओर से भीम व अर्जुन सुरक्षा कर रहे थे। इस दिन भीम ने घटोत्कच के साथ मिलकर दुर्योधन की सेना को युद्ध से भगा दिया। यह देखकर भीष्म भीषण संहार मचा देते हैं। श्रीकृष्ण अर्जुन को भीष्म वध करने को कहते हैं, परंतु अर्जुन उत्साह से युद्ध नहीं कर पाता जिससे श्रीकृष्ण स्वयं भीष्म को मारने के लिए उद्यत हो जाते हैं, परंतु अर्जुन उन्हें प्रतिज्ञारूपी आश्वासन देकर कौरव सेना का भीषण संहार करते हैं। वे एक दिन में ही समस्त प्राच्य, सौवीर, क्षुद्रक और मालव क्षत्रियगणों को मार गिराते हैं।
भीम के बाण से दुर्योधन अचेत हो गया और तभी उसका सारथी रथ को भगा ले गया। भीम ने सैकड़ों सैनिकों को मार गिराया। इस दिन भी कौरवों को ही अधिक क्षति उठाना पड़ती है। उनके प्राच्य, सौवीर, क्षुद्रक और मालव वीर योद्धा मारे जाते हैं।
कौन मजबूत रहा : इस दोनों ही पक्ष ने डट कर मुकाबला किया।

चौथा दिन : चौथे दिन भी कौरव पक्ष को भारी नुकसान हुआ। इस दिन कौरवों ने अर्जुन को अपने बाणों से ढंक दिया, परंतु अर्जुन ने सभी को मार भगाया। भीम ने तो इस दिन कौरव सेना में हाहाकार मचा दी, दुर्योधन ने अपनी गज सेना भीम को मारने के लिए भेजी, परंतु घटोत्कच की सहायता से भीम ने उन सबका नाश कर दिया और 14 कौरवों को भी मार गिराया, परंतु राजा भगदत्त द्वारा जल्द ही भीम पर नियंत्रण पा लिया गया। बाद में भीष्म को भी अर्जुन और भीम ने भयंकर युद्ध कर कड़ी चुनौती दी।
कौन मजबूत रहा : इस दिन कौरवों को नुकसान उठाना पड़ा और पांडव पक्ष मजबूत रहा।

पांचवें दिन का युद्ध : श्रीकृष्ण के उपदेश के बाद युद्ध की शुरुआत हुई और फिर भयंकर मार-काट मची। दोनों ही पक्षों के सैनिकों का भारी संख्या में वध हुआ। इस दिन भीष्म ने पांडव सेना को अपने बाणों से ढंक दिया। उन पर रोक लगाने के लिए क्रमशः अर्जुन और भीम ने उनसे भयंकर युद्ध किया। सात्यकि ने द्रोणाचार्य को भीषण संहार करने से रोके रखा। भीष्म द्वारा सात्यकि को युद्ध क्षेत्र से भगा दिया गया। सात्यकि के 10 पुत्र मारे गए।
कौन मजबूत रहा : इस दोनों ही पक्ष ने डट कर मुकाबला किया।

छठे दिन का युद्ध : कौरवों ने क्रोंचव्यूह तथा पांडवों ने मकरव्यूह के आकार की सेना कुरुक्षे‍त्र में उतारी। भयंकर युद्ध के बाद द्रोण का सारथी मारा गया। युद्ध में बार-बार अपनी हार से दुर्योधन क्रोधित होता रहा, परंतु भीष्म उसे ढांढस बंधाते रहे। अंत में भीष्म द्वारा पांचाल सेना का भयंकर संहार किया गया।
कौन मजबूत रहा : इस दोनों ही पक्ष ने डट कर मुकाबला किया।

सातवें दिन का युद्ध : सातवें दिन कौरवों द्वारा मंडलाकार व्यूह की रचना और पांडवों ने वज्र व्यूह की आकृति में सेना लगाई। मंडलाकार में एक हाथी के पास सात रथ, एक रथ की रक्षार्थ सात अश्‍वारोही, एक अश्‍वारोही की रक्षार्थ सात धनुर्धर तथा एक धनुर्धर की रक्षार्थ दस सैनिक लगाए गए थे। सेना के मध्य दुर्योधन था। वज्राकार में दसों मोर्चों पर घमासान युद्ध हुआ।
इस दिन अर्जुन अपनी युक्ति से कौरव सेना में भगदड़ मचा देता है। धृष्टद्युम्न दुर्योधन को युद्ध में हरा देता है। अर्जुन पुत्र इरावान द्वारा विन्द और अनुविन्द को हरा दिया जाता है, भगदत्त घटोत्कच को और नकुल सहदेव मिलकर शल्य को युद्ध क्षेत्र से भगा देते हैं। यह देखकर एकभार भीष्म फिर से पांडव सेना का भयंकर संहार करते हैं।
विराट पुत्र शंख के मारे जाने से इस दिन कौरव पक्ष की क्षति होती है।
कौन मजबूत रहा : इस दोनों ही पक्ष ने डट कर मुकाबला किया।

आठवें दिन का युद्ध : कौरवों ने कछुआ व्यूह तो पांडवों ने तीन शिखरों वाला व्यूह रचा। पांडव पुत्र भीम धृतराष्ट्र के आठ पुत्रों का वध कर देते हैं। अर्जुन की दूसरी पत्नी उलूपी के पुत्र इरावान का बकासुर के पुत्र आष्ट्रयश्रंग (अम्बलुष) के द्वारा वध कर दिया जाता है।
घटोत्कच द्वारा दुर्योधन पर शक्ति का प्रयोग परंतु बंगनरेश ने दुर्योधन को हटाकर शक्ति का प्रहार स्वयं के ऊपर ले लिया तथा बंगनरेश की मृत्यु हो जाती है। इस घटना से दुर्योधन के मन में मायावी घटोत्कच के प्रति भय व्याप्त हो जाता है।
तब भीष्म की आज्ञा से भगदत्त घटोत्कच को हराकर भीम, युधिष्ठिर व अन्य पांडव सैनिकों को पीछे ढकेल देता है। दिन के अंत तक भीमसेन धृतराष्ट्र के नौ और पुत्रों का वध कर देता है।
पांडव पक्ष की क्षति : अर्जुन पुत्र इरावान का अम्बलुष द्वारा वध।
कौरव पक्ष की क्षति : धृतराष्ट्र के 17 पुत्रों का भीम द्वारा वध।
कौन मजबूत रहा : इस दोनों ही पक्ष ने डट किया और दोनों की पक्ष को नुकसान उठाना पड़ा। हालांकि कौरवों को ज्यादा क्षति पहुंची।

नौवें दिन का युद्ध : कृष्ण के उपदेश के बाद भयंकर युद्ध हुआ जिसके चलते भीष्म ने बहादुरी दिखाते हुए अर्जुन को घायल कर उनके रथ को जर्जर कर दिया। युद्ध में आखिरकार भीष्म के भीषण संहार को रोकने के लिए कृष्ण को अपनी प्रतिज्ञा तोड़नी पड़ती है। उनके जर्जर रथ को देखकर श्रीकृष्ण रथ का पहिया लेकर भीष्म पर झपटते हैं, लेकिन वे शांत हो जाते हैं, परंतु इस दिन भीष्म पांडवों की सेना का अधिकांश भाग समाप्त कर देते हैं।
कौन मजबूत रहा : कौरव

दसवां दिन : भीष्म द्वारा बड़े पैमाने पर पांडवों की सेना को मार देने से घबराए पांडव पक्ष में भय फैल जाता है, तब श्रीकृष्ण के कहने पर पांडव भीष्म के सामने हाथ जोड़कर उनसे उनकी मृत्यु का उपाय पूछते हैं। भीष्म कुछ देर सोचने पर उपाय बता देते हैं।
इसके बाद भीष्म पांचाल तथा मत्स्य सेना का भयंकर संहार कर देते हैं। फिर पांडव पक्ष युद्ध क्षे‍त्र में भीष्म के सामने शिखंडी को युद्ध करने के लिए लगा देते हैं। युद्ध क्षेत्र में शिखंडी को सामने डटा देखकर भीष्म ने अपने अस्त्र त्याग दिए। इस दौरान बड़े ही बेमन से अर्जुन ने अपने बाणों से भीष्म को छेद दिया। भीष्म बाणों की शरशय्या पर लेट गए। भीष्म ने बताया कि वे सूर्य के उत्तरायण होने पर ही शरीर छोड़ेंगे, क्योंकि उन्हें अपने पिता शांतनु से इच्छा मृत्यु का वर प्राप्त है।
पांडव पक्ष की क्षति : शतानीक
कौरव पक्ष की क्षति : भीष्म
कौन मजबूत रहा : पांडव

ग्यारहवें दिन : भीष्म के शरशय्या पर लेटने के बाद ग्यारहवें दिन के युद्ध में कर्ण के कहने पर द्रोण सेनापति बनाए जाते हैं। ग्यारहवें दिन सुशर्मा तथा अर्जुन, शल्य तथा भीम, सात्यकि तथा कर्ण और सहदेव तथा शकुनि के मध्य युद्ध हुआ। कर्ण भी इस दिन पांडव सेना का भारी संहार करता है।
दुर्योधन और शकुनि द्रोण से कहते हैं कि वे युधिष्ठिर को बंदी बना लें तो युद्ध अपने आप खत्म हो जाएगा, तो जब दिन के अंत में द्रोण युधिष्ठिर को युद्ध में हराकर उसे बंदी बनाने के लिए आगे बढ़ते ही हैं कि अर्जुन आकर अपने बाणों की वर्षा से वर्षा से उन्हें रोक देता है। नकुल, युधिष्ठिर के साथ थे व अर्जुन भी वापस युधिष्ठिर के पास आ गए। इस प्रकार कौरव युधिष्ठिर को नहीं पकड़ सके।
पांडव पक्ष की क्षति : विराट का वध
कौन मजबूत रहा : कौरव

बारहवें दिन का युद्ध : कल के युद्ध में अर्जुन के कारण युधिष्ठिर को बंदी न बना पाने के कारण शकुनि व दुर्योधन अर्जुन को युधिष्ठिर से काफी दूर भेजने के लिए त्रिगर्त देश के राजा को उससे युद्ध कर उसे वहीं युद्ध में व्यस्त बनाए रखने को कहते हैं, वे ऐसा करते भी हैं, परंतु एक बार फिर अर्जुन समय पर पहुंच जाता है और द्रोण असफल हो जाते हैं।
होता यह है कि जब त्रिगर्त, अर्जुन को दूर ले जाते हैं तब सात्यकि, युधिष्ठिर के रक्षक थे। वापस लौटने पर अर्जुन ने प्राग्ज्योतिषपुर (पूर्वोत्तर का कोई राज्य) के राजा भगदत्त को अर्धचंद्र को बाण से मार डाला। सात्यकि ने द्रोण के रथ का पहिया काटा और उसके घोड़े मार डाले। द्रोण ने अर्धचंद्र बाण द्वारा सात्यकि का सिर काट ‍लिया।
सात्यकि ने कौरवों के अनेक उच्च कोटि के योद्धाओं को मार डाला जिनमें से प्रमुख जलसंधि, त्रिगर्तों की गजसेना, सुदर्शन, म्लेच्छों की सेना, भूरिश्रवा, कर्णपुत्र प्रसन थे। युद्ध भूमि में सात्यकि को भूरिश्रवा से कड़ी टक्कर झेलनी पड़ी। हर बार सात्यकि को कृष्ण और अर्जुन ने बचाया।
पांडव पक्ष की क्षति : द्रुपद
कौरव पक्ष की क्षति : त्रिगर्त नरेश
कौन मजबूत रहा : दोनों

तेरहवें दिन : कौरवों ने चक्रव्यूह की रचना की। इस दिन दुर्योधन राजा भगदत्त को अर्जुन को व्यस्त बनाए रखने को कहते हैं। भगदत्त युद्ध में एक बार फिर से पांडव वीरों को भगाकर भीम को एक बार फिर हरा देते हैं फिर अर्जुन के साथ भयंकर युद्ध करते हैं। श्रीकृष्ण भगदत्त के वैष्णवास्त्र को अपने ऊपर ले उससे अर्जुन की रक्षा करते हैं।
अंततः अर्जुन भगदत्त की आंखों की पट्टी को तोड़ देता है जिससे उसे दिखना बंद हो जाता है और अर्जुन इस अवस्था में ही छल से उनका वध कर देता है। इसी दिन द्रोण युधिष्ठिर के लिए चक्रव्यूह रचते हैं जिसे केवल अभिमन्यु तोड़ना जानता था, परंतु निकलना नहीं जानता था। अतः अर्जुन युधिष्ठिर, भीम आदि को उसके साथ भेजता है, परंतु चक्रव्यूह के द्वार पर वे सबके सब जयद्रथ द्वारा शिव के वरदान के कारण रोक दिए जाते हैं और केवल अभिमन्यु ही प्रवेश कर पाता है।
ये लोग करते हैं अभिमन्यु का वध : कर्ण के कहने पर सातों महारथियों कर्ण, जयद्रथ, द्रोण, अश्वत्थामा, दुर्योधन, लक्ष्मण तथा शकुनि ने एकसाथ अभिमन्यु पर आक्रमण किया। लक्ष्मण ने जो गदा अभिमन्यु के सिर पर मारी वही गदा अभिमन्यु ने लक्ष्मण को फेंककर मारी। इससे दोनों की उसी समय मृत्यु हो गई।
अभिमन्यु के मारे जाने का समाचार सुनकर जयद्रथ को कल सूर्यास्त से पूर्व मारने की अर्जुन ने प्रतिज्ञा की अन्यथा अग्नि समाधि ले लेने का वचन दिया।
पांडव पक्ष की क्षति : अभिमन्यु
कौन मजबूत रहा : पांडव

चौदहवें दिन : अर्जुन की अग्नि समाधि वाली बात सुनकर कौरव पक्ष में हर्ष व्याप्त हो जाता है और फिर वे यह योजना बनाते हैं कि आज युद्ध में जयद्रथ को बचाने के लिए सब कौरव योद्धा अपनी जान की बाजी लगा देंगे। द्रोण जयद्रथ को बचाने का पूर्ण आश्वासन देते हैं और उसे सेना के पिछले भाग में छिपा देते हैं।
युद्ध शुरू होता है भूरिश्रवा, सात्यकि को मारना चाहता था तभी अर्जुन ने भूरिश्रवा के हाथ काट दिए, वह धरती पर गिर पड़ा तभी सात्यकि ने उसका सिर काट दिया। द्रोण द्रुपद और विराट को मार देते हैं।
तब कृष्ण अपनी माया से सूर्यास्त कर देते हैं। सूर्यास्त होते देख अर्जुन अग्नि समाधि की तैयारी करने लगे जाते हैं। छिपा हुआ जयद्रथ जिज्ञासावश अर्जुन को अग्नि समाधि लेते देखने के लिए बाहर आकर हंसने लगता है, उसी समय श्रीकृष्ण की कृपा से सूर्य पुन: निकल आता है और तुरंत ही अर्जुन सबको रौंदते हुए कृष्ण द्वारा किए गए क्षद्म सूर्यास्त के कारण बाहर आए जयद्रथ को मारकर उसका मस्तक उसके पिता के गोद में गिरा देते हैं।
पांडव पक्ष की क्षति : द्रुपद, विराट
कौरव पक्ष की क्षति : जयद्रथ, भगदत्त

पंद्रहवें दिन : द्रोण की संहारक शक्ति के बढ़ते जाने से पांडवों के ‍खेमे में दहशत फैल गई। पिता-पुत्र ने मिलकर महाभारत युद्ध में पांडवों की हार सुनिश्चित कर दी थी। पांडवों की हार को देखकर श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से छल का सहारा लेने को कहा। इस योजना के तहत युद्ध में यह बात फैला दी गई कि ‘अश्वत्थामा मारा गया’, लेकिन युधिष्‍ठिर झूठ बोलने को तैयार नहीं थे। तब अवंतिराज के अश्‍वत्थामा नामक हाथी का भीम द्वारा वध कर दिया गया। इसके बाद युद्ध में यह बाद फैला दी गई कि ‘अश्वत्थामा मारा गया’।
जब गुरु द्रोणाचार्य ने धर्मराज युधिष्ठिर से अश्वत्थामा की सत्यता जानना चाही तो उन्होंने जवाब दिया- ‘अश्वत्थामा मारा गया, परंतु हाथी।’ श्रीकृष्ण ने उसी समय शंखनाद किया जिसके शोर के चलते गुरु द्रोणाचार्य आखिरी शब्द ‘हाथी’ नहीं सुन पाए और उन्होंने समझा मेरा पुत्र मारा गया। यह सुनकर उन्होंने शस्त्र त्याग दिए और युद्ध भूमि में आंखें बंद कर शोक में डूब गए। यही मौका था जबकि द्रोणाचार्य को निहत्था जानकर द्रौपदी के भाई धृष्टद्युम्न ने तलवार से उनका सिर काट डाला।
कौरव पक्ष की क्षति : द्रोण
कौन मजबूत रहा : पांडव

सोलहवें दिन का युद्ध : द्रोण के छल से वध किए जाने के बाद कौरवों की ओर से कर्ण को सेनापति बनाया जाता है। कर्ण पांडव सेना का भयंकर संहार करता है और वह नकुल व सहदेव को युद्ध में हरा देता है, परंतु कुंती को दिए वचन को स्मरण कर उनके प्राण नहीं लेता। फिर अर्जुन के साथ भी भयंकर संग्राम करता है।
दुर्योधन के कहने पर कर्ण ने अमोघ शक्ति द्वारा घटोत्कच का वध कर दिया। यह अमोघ शक्ति कर्ण ने अर्जुन के लिए बचाकर रखी थी लेकिन घटोत्कच से घबराए दुर्योधन ने कर्ण से इस शक्ति का इस्तेमाल करने के लिए कहा। यह ऐसी शक्ति थी जिसका वार कभी खाली नहीं जा सकता था। कर्ण ने इसे अर्जुन का वध करने के लिए बचाकर रखी थी।
इस बीच भीम का युद्ध दुःशासन के साथ होता है और वह दु:शासन का वध कर उसकी छाती का रक्त पीता है और अंत में सूर्यास्त हो जाता है।
कौरव पक्ष की क्षति : दुःशासन
कौन मजबूत रहा : दोनों
सत्रहवें दिन : शल्य को कर्ण का सारथी बनाया गया। इस दिन कर्ण भीम और युधिष्ठिर को हराकर कुंती को दिए वचन को स्मरण कर उनके प्राण नहीं लेता। बाद में वह अर्जुन से युद्ध करने लग जाता है। कर्ण तथा अर्जुन के मध्य भयंकर युद्ध होता है। कर्ण के रथ का पहिया धंसने पर श्रीकृष्ण के इशारे पर अर्जुन द्वारा असहाय अवस्था में कर्ण का वध कर दिया जाता है।
इसके बाद कौरव अपना उत्साह हार बैठते हैं। उनका मनोबल टूट जाता है। फिर शल्य प्रधान सेनापति बनाए गए, परंतु उनको भी युधिष्ठिर दिन के अंत में मार देते हैं।
कौरव पक्ष की क्षति : कर्ण, शल्य और दुर्योधन के 22 भाई मारे जाते हैं।
कौन मजबूत रहा : पांडव

अठारहवें दिन का युद्ध : अठारहवें दिन कौरवों के तीन योद्धा शेष बचे- अश्‍वत्थामा, कृपाचार्य और कृतवर्मा। इसी दिन अश्वथामा द्वारा पांडवों के वध की प्रतिज्ञा ली गई। सेनापति अश्‍वत्थामा तथा कृपाचार्य के कृतवर्मा द्वारा रात्रि में पांडव शिविर पर हमला किया गया। अश्‍वत्थामा ने सभी पांचालों, द्रौपदी के पांचों पुत्रों, धृष्टद्युम्न तथा शिखंडी आदि का वध किया।

पिता को छलपूर्वक मारे जाने का जानकर अश्वत्थामा दुखी होकर क्रोधित हो गए और उन्होंने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग कर दिया जिससे युद्ध भूमि श्मशान भूमि में बदल गई। यह देख कृष्ण ने उन्हें कलियुग के अंत तक कोढ़ी के रूप में जीवित रहने का शाप दे डाला।
इस दिन भीम दुर्योधन के बचे हुए भाइयों को मार देता है, सहदेव शकुनि को मार देता है और अपनी पराजय हुई जान दुर्योधन भागकर सरोवर के स्तंभ में जा छुपता है। इसी दौरान बलराम तीर्थयात्रा से वापस आ गए और दुर्योधन को निर्भय रहने का आशीर्वाद दिया।
छिपे हुए दुर्योधन को पांडवों द्वारा ललकारे जाने पर वह भीम से गदा युद्ध करता है और छल से जंघा पर प्रहार किए जाने से उसकी मृत्यु हो जाती है। इस तरह पांडव विजयी होते हैं।
पांडव पक्ष की क्षति : द्रौपदी के पांच पुत्र, धृष्टद्युम्न, शिखंडी
कौरव पक्ष की क्षति : दुर्योधन
कुछ यादव युद्ध में और बाद में गांधारी के शाप के चलते आपसी युद्ध में मारे गए। पांडव पक्ष के विराट और विराट के पुत्र उत्तर, शंख और श्वेत, सात्यकि के दस पुत्र, अर्जुन पुत्र इरावान, द्रुपद, द्रौपदी के पांच पुत्र, धृष्टद्युम्न, शिखंडी, कौरव पक्ष के कलिंगराज भानुमान, केतुमान, अन्य कलिंग वीर, प्राच्य, सौवीर, क्षुद्रक और मालव वीर।
कौरवों की ओर से धृतराष्ट्र के दुर्योधन सहित सभी पुत्र, भीष्म, त्रिगर्त नरेश, जयद्रथ, भगदत्त, द्रौण, दुःशासन, कर्ण, शल्य आदि सभी युद्ध में मारे गए थे।
युधिष्ठिर ने महाभारत युद्ध की समाप्ति पर बचे हुए मृत सैनिकों का (चाहे वे शत्रु वर्ग के हों अथवा मित्र वर्ग के) दाह-संस्कार एवं तर्पण किया था। इस युद्ध के बाद युधिष्ठिर को राज्य, धन, वैभव से वैराग्य हो गया।
कहते हैं कि महाभारत युद्ध के बाद अर्जुन अपने भाइयों के साथ हिमालय चले गए और वहीं उनका देहांत हुआ।
बच गए योद्धा : महाभारत के युद्ध के पश्चात कौरवों की तरफ से 3 और पांडवों की तरफ से 15 यानी कुल 18 योद्धा ही जीवित 
बचे थे जिनके नाम हैं- कौरव के : कृतवर्मा, कृपाचार्य और अश्वत्थामा, जबकि पांडवों की ओर से युयुत्सु, युधिष्ठिर, अर्जुन, भीम, नकुल, सहदेव, कृष्ण, सात्यकि आदि।
संदर्भ : महाभारत
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