Saturday, July 31, 2021

कुंदरू।

आसानी से हर जगह उपलब्ध होने वाले कुंदरू में सेहत का खजाना छिपा है।

बरसात के मौसम में झाड़ीनुमा कुंदरू के बेल कच्चे-पक्के मकानों ,दलानो और पेड़ पौधों पर पर अपना साम्राज्य फैलाए दिख जाते हैं। परवल के जैसे दिखने वाले हरे-लाल रंग के इस सब्जी को हम कुदंरू,कुदंरी जैसे अनेकों स्थानीय नामों से जानते हैं। हालांकि बहुत सारे लोग इसे फालतू समझते हैं। हकीकत यह है की हमारे बेहतर स्वास्थ्य के लिए कुंदूरु बहुत ही अच्छी सब्जी है। आपको बता दें  की यह छोटी-सी सब्जी गुणों के मामले में अन्य सब्जियों से बिल्कुल कम नहीं है। कुंदरू या कुंदरी का सेवन आपको कई तरह के लाभ पहुंचाने का काम कर सकता है। 

आइए, पहले कुंदरू के बारे में जान लेते हैं, फिर इसके फायदों के बारे में बात करें।

कुंदरू एक मौसमी सब्जी है। इसका वैज्ञानिक नाम कोकिनिया कॉर्डिफोलिया (coccinia cordifolia) है, जो कुकुरबिटेसी (cucurbitaceae) के परिवार से संबंधित है। कुंदरू बेल पर लगते हैं और बेल करीब 3 से 5 मीटर तक लंबी हो सकती है। यह पेड़ या झाड़ी के सहारे फैलती है, जिस कारण यह पेड़ या झाड़ी को पूरी तरह ढक लेती है। इसके फूल का रंग सफेद होता है। शुरुआत में इसकी खेती एशिया और अफ्रीका के कुछ देशों में होती थी, लेकिन समय के साथ-साथ यह सब्जी पूरे विश्व में फैल गई। आज यह सभी देशों में अलग-अलग नाम से प्रचलित है। कुंदरू अनेक पोषक तत्वों से समृद्ध सब्जी है। यही कारण है कि इसका इस्तेमाल औषधि के रूप में भी किया जाता है।

1. पाचन के लिए
कुंदरू की सब्जी का सेवन करने से पाचन क्रिया को बेहतर किया जा सकता है। इसके लिए इसमें पाए जाने वाले फाइबर की भूमिका अहम होती है (1)। एक शोध में पाया गया है कि फाइबर भोजन को पचाकर मल को शरीर से बाहर निकालने का काम कर सकता है 

2. कैंसर
कैंसर को सबसे घातक बीमारी माना गया है। इस रोग से पीड़ित मरीज के इलाज पर लाखों रुपये खर्च हो जाते हैं। वहीं, कुछ खाद्य पदार्थ ऐसे हैं, जिनका सेवन करने से कैंसर को होने से रोका जा सकता है। इनमें से एक कुंदरू भी है। कुंदरू में एंटी-कैंसर गुण पाए जाते हैं, जो इस बीमारी को होने से रोकने में मदद कर सकते हैं।

3. मधुमेह
मधुमेह के दौरान विशेषज्ञ कुछ सब्जियों व फलों का सेवन करने से मना करते हैं। ऐसे में कुंदरू का उपयोग मधुमेह के रोगियों के लिए लाभकारी हो सकता है। कुंदरू में एंटी हाइपरग्लाइसेमिक प्रभाव पाया जाता है, जो रक्त में शुगर के स्तर को संतुलन में रखने का काम कर सकता है, जिससे मधुमेह की समस्या को नियंत्रित किया जा सकता है ।

4. प्रतिरक्षा प्रणाली के लिए
शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर होने पर कई तरह के रोग उत्पन्न होने का खतरा बढ़ सकता है। ऐसे में कुंदरू का सेवन कर शरीर की प्रतिरक्षा क्षमता को बढ़ाया जा सकता है। इसके लिए कुंदरू में मौजूद विटामिन-ए फायदेमंद हो सकता है। विटामिन-ए सकारात्मक रूप से इम्यून सिस्टम को प्रभावित करता है (5)। इसलिए, कुंदरू के फायदे इम्यून सिस्टम को मजबूत कर सकते हैं।

5. किडनी स्टोन
किडनी स्टोन को दूर करने के लिए कुंदरू का उपयोग किया जा सकता है। दरअसल, कुंदरू में कैल्शियम की अच्छी मात्रा पाई जाती है। कैल्शियम पाचन तंत्र में स्टोन के बनने की सभी आशंकाओं को कम कर सकता है (6) (7)। ध्यान रहे कि आपको डॉक्टर ही बेहतर बता सकते हैं किडनी स्टोन होने पर प्रतिदिन कैल्शियम की कितनी मात्रा लेनी चाहिए।

6. हृदय के लिए 
कुंदरू अनेक पौष्टिक गुणों से समृद्ध होता है, जो हृदय को स्वस्थ रखने का काम कर सकता है। कुंदरू में विभिन्न प्रकार के फ्लेवोनोड्स पाए जाते हैं, जो एंटीऑक्सीडेंट, एंटीइंफ्लेमेटरी, एंटीबैक्टीरियल और मुख्य रूप से कार्डियो प्रोटेक्टिव गतिविधि की तरह काम करते हैं। ये ह्रदय रोग का कारण बनने वाले फ्री-रेडिकल्स को जड़ खत्म करते हैं (3)।

7. संक्रमण
ज्यादातर बीमारियों के फैलने का मुख्य कारण संक्रमण होता है, लेकिन कुंदरू के सेवन से संक्रमण को रोका जा सकता है। इसके लिए कुंदरू के एंटी बैक्टीरियल और एंटी-माइक्रोबियल गुण लाभदायक हो सकते हैं (3)।

8. डिप्रेशन
डिप्रेशन के कारण कई लोग मानसिक संतुलन खो देते है। डिप्रेशन को दूर करने के लिए एंटीऑक्सीडेंट सहायक हो सकता है। विटामिन-ए और सी में एंटीऑक्सीडेंट पर्याप्त रूप से पाया जाता है (8)। वहीं, कुंदरू को विटामिन ए और सी का अच्छा स्रोत माना गया है (1)। इसलिए, कहा जा सकता है कि कुंदरू खाने के फायदे में डिप्रेशन को खत्म करना भी शामिल है।

9. नर्वस सिस्टम
एक शोध के अनुसार, एंटीऑक्सीडेंट नर्वस सिस्टम से जुड़े रोगों से निपटने का काम कर सकता है, जिससे नर्वस सिस्टम को सुरक्षित रखा जा सकता है (8)। वहीं, एक अन्य अध्ययन के अनुसार कुंदरू में विटामिन-सी पाया जाता है, जो एंटीऑक्सीडेंट की तरह काम कर सकता है (1)। इसलिए, कुंदरू के फायदे नर्वस सिस्टम से जुड़ी समस्याओं में भी कारगर हैं।

10. वजन घटाने में फायदेमंद 
वजन को घटाने के लिए कुंदरू का उपयोग किया जा सकता है। कुंदरू में फाइबर की भरपूर मात्रा पाई जाती है, जो वजन को कम करने में सहायक हो सकता है (1)। फाइबर भोजन को पचाने के साथ-साथ भूख को शांत रख सकता है (9)। इसलिए, कुंदरू के फायदे वजन कम करे में नजर आ सकते हैं।

11. थकान
कई लोगों को किसी भी तरह का काम करने पर जल्दी थकान महसूस होने लगते है। थकान की समस्या से राहत पाने में आयरन सहायक हो सकता है (10)। वहीं, कुंदरू में प्रचुर मात्रा में आयरन पाया जाता है, इसलिए ऐसा कहा जा सकता है कि कुंदरू थकान को दूर करने का काम कर सकता है (7)।

कुंदरू का उपयोग – 
इसे सब्जी बनाकर खाया जा सकता है।
कुंदरू की चटनी बनाकर उपयोग में लाया जा सकता है।
कुंदरू को कई सब्जियों के साथ मिलकर मिक्स वेज बनाई जा सकती है।
कुंदरू के वडा (Vada) भी बनाए जा सकते हैं।
कब खाएं :
इसे सब्जी या चटनी के तौर पर दोपहर या रात के खाने के साथ खा सकते हैं।
कितना खाएं :
एक समय में एक कटोरी कुंदरू की सब्जी खाई जा सकती है।

Monday, July 26, 2021

70% बीमारियों से बचना है तो।

70% बीमारियों से बचना है तो घर की #चक्की का आटा और #सिल_बट्टे पर पिसे #मसाले और #चटनी खाएं

#रोटी #सब्जी को संस्कारित रूप में तैयार करने की दिशा ने मानव की पहली खोज रही : सल्ला लोढ़ी।शिला, सिलोटु, सिल्वाटु, सिळवाटू, सिलौटा, सिलोटी, सिला लोढ़ी या सिलबट्टा......चटनी या मसालों को पीसने की इस पारंपरिक 'मशीन' से हर कोई परिचित होंगा।

अब भी कई घरों में इसका उपयोग किया जाता है. सिलबट्टा यानि पत्थर का ऐसा छोटा चोकौर या लंबा टुकड़ा जिससे मसाला आदि पीसा जाता है. सिल और पीसने का लोढ़ा. जो बड़ी सिल होती है उसे सिलौटा और जो छोटी सिल होती है उसे सिलोटी कहा जाता है. 

सिल और बट्टा होते अलग अलग हैं लेकिन एक के बिना दूसरे का कोई वजूद नहीं है. सिल जमीन पर रखा पत्थर जिस पर बट्टे से अनाज पीसा जाता है.

#मिस्र की पुरानी सभ्यताओं में जो सिल मिला था वह बीच में थोड़ा दबा हुआ है। आज भी सिल का बीच का हिस्सा मामूली गहरा होता है. बट्टे को दोनों हाथों से पकड़कर और घुटनों के बल बैठकर सिल पर अनाज या मसाले पीसे जाते हैं.

सिलोटु में पीसे गये मसालों से सब्जी का स्वाद ही बदल जाता है और यह भोजन स्वास्थ्य के लिये भी उत्तम होता है. लेकिन आजकल पिसे हुए मसालों का जमाना है या फिर सिलबट्टे की जगह मिक्सी ने ले ली है. सिलोटु घर के किसी कोने में दु​बका हुआ है.

वही सिलबट्टा जो हजारों वर्षों से भारत ही नहीं मिस्र तक की सभ्यताओं का अहम अंग रहा है. 

आयुर्वेद पुरोधा #वाग्भट्ट ने अपने चौथे सिद्धांत से हमें सिलोटा के महत्व का पता चल जाता है. इस सिद्धांत के अनुसार, ''कोई भी कार्य यदि अधिक गति से किया जाता है तो उससे वात (शरीर के भीतर की वह वायु जिसके विकार से अनेक रोग होते हैं) उत्पन्न होता है. कहने का मतलब है कि यदि हम किसी खाद्य सामग्री को बहुत तेजी से पीसकर तैयार करते हैं तो उसके सेवन से वात पैदा होता है.

भारत में वैसे भी 70 प्रतिशत रोग #वातजनित हैं. रसोई में जो भी प्रक्रियाएं अपनायी जाएं वे गतिमान और सूक्ष्म नहीं होनी चाहिए. अगर आटा धीरे धीरे पिसा हुआ होता है यानि उसे घर में पीसा जाता है तो वह कई गुणों से भरपूर होता है लेकिन चक्की में आटा बहुत तेजी से पीसा जाता है. 

यही सूत्र मसालों पर भी लागू होता है और इसलिए सिलबट्टा में पीसे गये मसालों को अधिक गुणकारी माना जाता है.

असल में घर की चक्की और सिलबट्टा  के उपयोग से भोजन का स्वाद बढ़ने के साथ स्वास्थ्य भी अच्छा रहता है और इनके उपयोग करने वाले का भी समुचित व्यायाम हो जाता है. लेकिन अब बिजली से चलने वाली चक्की और मिक्सी के प्रयोग से भोजन का स्वाद कम हो गया और भोजन भी पौष्टिकता से भरपूर नहीं है.

लोग मिक्सी से भोजन की #पौष्टिकता पर पड़ रहे कुप्रभावों से भी अवगत हैं लेकिन इसके बावजूद दौड़ती भागती जिंदगी में मिक्सी रानी का पूरा दबदबा है. उसके सामने सिलबट्टा 'बेचारा' बन गया है जबकि गुणों के मामले में वह बादशाह है.

आटे की चक्की ने तो हमारे गांवों में भी बहुत पहले प्रवेश कर दिया था लेकिन सिलोटा यानि सिलबट्टा का ठाठ बाट बने रहे. 

सिलबट्टा को रखने की एक निय​त जगह होती थी जिसे हमेशा साफ सुथरा रखा जाता था. सिलबट्टा को इस्तेमाल से पहले और बाद में अच्छी तरह से धोया और पोछा जाता था और बाद में दीवार के सहारे से शान से खड़ा कर दिया जाता था. 

वरिष्ठ पत्रकार और #उत्तराखंड़ी परंपराओं के जानकार श्री विवेक जोशी के शब्दों में, ''आधुनिक मिक्सर की इस दादी के कभी बड़े राजसी ठाठ थे. इनकी नियत जगह होती, इनको इस्तेमाल से पहले और बाद में धो पोछकर दीवार के सहारे टिका दिया जाता. कुछ तो धूप आरती भी करते. समझा जाता था कि घर की खुशहाली के लिये यह सगुन है. हो भी क्यों ना..सेहत का राज इससे जुड़ा था.

एक कहानी है..एक दादी के मरने के बाद कुछ ना मिला सिवाय एक संदूक के। लालची बहुओं ने खोला तो उसमें था 'सिलबट्टा '. दादी का संदेश साफ था लेकिन बहुओं ने उसे फेंक दिया और संदूक को चारपाई के नीचे रख दिया. तब से यही होता आ रहा है.. "सेहत फेंक दी गयी और कलह को चारपाई के नीचे जगह मिल गयी.''

मसालों से लेकर लूण (नमक) पीसने, आलू या मूली की ठेचा (आलू, मूली या अन्य तरकारी को कुचलकर बनायी गयी रसदार सब्जी), दाल पीसने या दाल और किसी अन्य अनाज को दलिया करने, दाल के पकोड़े बनाने आदि के लिये सिलबट्टा का उपयोग किया जाता है.

सिलबट्टे पर बनायी गयी चटनी जैसा स्वाद मिक्सी की चटनी में कभी नहीं आ सकता है.

सिलबट्टे पर पिसे मसालों की महक से चेहरे पर खिल उठती है मुस्कान....

सिलबट्टा पत्थर से बनता है. पत्थर में कई बार के खनिज भी होते हैं और इसलिए सिलबट्टा में मसाले पीसने से ये खनिज भी उनमें शामिल होते रहते हैं जिससे न सिर्फ स्वाद में वृद्धि होती है बल्कि यह स्वास्थ्य के लिये भी उत्तम होता है.

सिलबट्टे में मसाले पीसते वक्त #व्यायाम होता है उससे पेट बाहर नही निकलता, इससे विशेषकर इससे #यूटेरस की बहुत अच्छी कसरत हो जाती है. महिलाएं पहले हर रोज सिलबट्टे का उपयोग करती थी और इससे तब बच्चे की #सिजेरियन डिलीवरी की जरूरत नहीं पडती थी. मतलब सिलबट्टे का उपयोग किया तो #जच्चा_बच्चा दोनों स्वस्थ.

सिलबट्टा आदि में सब कुछ धीरे धीरे पिसता है तथा अनाज या मसाला जरूरत से ज्यादा सूक्ष्म भी नहीं होता है. इससे वात संबंधी रोग नहीं होते हैं. #मिक्सी आदि में न केवल तेजी से पिसाई होती है बल्कि वह अतिसूक्ष्म भी हो जाता है. इस तरह से वह #वातकारक है.

सिलबट्टा का उपयोग करने से मिक्सी की जरूरत नहीं पड़ेगी जिससे बिजली का खर्च भी कम होगा.

सिलबट्टा का धार्मिक महत्व....
सिलबट्टा सिर्फ #रसोई तक सीमित नहीं है बल्कि उसका धार्मिक महत्व भी है. गांवों में हर किसी के घर में सिलबट्टा होता है. जिसके घर विवाह होता है वह एक सिल जरूर खरीदता है. #पाणिग्रहण के समय "शिला रोहण" के लिए सिलबट्टा गरीब से गरीब व्यक्ति खरीदता है.  इसे पार्वती का प्रतीक माना जाता है और यह बेटी की सखी के रूप में उसके साथ ससुराल जाता है.'' 

#पुष्करणा ब्राह्मणों में विवाह के समय वर वधू का हथलेवा जोड़ने के लिए मेहंदी और पान के पत्तों को सिलबट्टे पर ही पिसा जाता है.

विभिन्न तरह के यज्ञों में भी सिलबट्टा के उपयोग की बात सामने आती है. इसे दषद उपल नाम से जाना जाता है. यज्ञ में अन्न सिद्ध करने के जिन साधनों का वर्णन है उनमें #सूप, #चलनी, #ओखली, #मूसल आदि के साथ सिलबट्टा भी शामिल है.

गांवों में यह भी मान्यता है कि सिल और बट्टा एक साथ बेचा और खरीदा नहीं जाता है. बट्टे को #शिव का और सिल को #पार्वती का स्वरूप माना जाता है. इन दोनों को जन्म देने वाला "शिल्पकार" इनका पिता समान होता है और  इसलिए वह दोनों को एक साथ नहीं देता. पहले दोनों में किसी एक को लेना पड़ता था फ़िर कुछ दिन बाद इसकी जोड़ी पूरी करनी पड़ती है.

यह भी कहा जाता है कि दीपावली पूजन के बाद चूने या गेरू में रूई भिगोकर चक्की, चूल्हा, सिलबट्टा और सूप पर तिलक करना चाहिए. #उत्तराखंड के #कुमांऊ संभाग में ग्वल या #गोलू_देवता की कहानी भी सिलबट्टा से जुड़ी है.

अतः आपसे अनुरोध है कि घर में मसाले आदि पीसने के लिये अधिक से अधिक सिलौटा का उपयोग करने की कोशिश करिये. थोड़ा समय जरूर लगेगा लेकिन फायदे भी तो अनेक हैं. उम्मीद है कि हमारे गांव घरों में सिलौटा, सिलोटु या सिलोटी अपना स्थान बरकरार रखेगी.

लेखक : अजीत कुमार यादव

Wednesday, July 21, 2021

अजान में क्या बोला जाता है?

मस्जिदों में लाउडस्पीकर पर अजान में क्या बोला जाता है? सभी सनातनी हिन्दू जाने
सर्वप्रथम मुअज्जिन 4 बार 'अल्लाह हू अकबर' यानी अल्लाह सबसे बड़ा है, कहता है। 
इसके बाद वह 2 बार कहता है- 'अशहदो अल्ला इलाह इल्लल्लाह' अर्थात मैं गवाही देता हूँ कि अल्लाह के सिवाय कोई पूज्य नहीं है। 
फिर 2 बार कहता है- 'अशहदु अन-ना मुहम्मदर्रसूलुल्लाह' जिसका अर्थ है- मैं गवाही देता हूँ कि हजरत मुहम्मद अल्लाह के रसूल (उपदेशक) हैं।
फिर मुअज्जिन दाहिनी ओर मुँह करके 2 बार कहता है- 'हय-या अललसला' अर्थात् आओ नमाज की ओर।
फिर बाईं ओर मुँह करके 2 बार कहता है- 'हय-या अलल फलाह' यानी आओ कामयाबी की ओर।
इसके बाद वह सामने (पश्चिम) की ओर मुँह करके कहता है- 'अल्लाह हू अकबर' अर्थात अल्लाह ही एकमात्र सबसे बड़ा है।
अंत में एक बार 'ला इलाह इल्लल्लाह' अर्थात् अल्लाह के सिवा कोई भी #पूज्य नहीं है। 
फजर यानी भोर की अजान में मुअज्जिन एक वाक्य अधिक कहता है- 'अस्सलात खैरूम मिनननौम' अर्थात नमाज नींद से बेहतर है।
उसके बाद मोहम्मद के बताए हुए रास्ते कुरान में से बताए जाते है।
जिसमे जिहाद सबसे अहम है और उसके द्वारा गजवा ए हिन्द के तरीके बताए जाते हैं
अब कुछ सवाल-:
भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश में क्या इस तरह से लाउडस्पीकर पर दूसरे धर्मों के मानने वालों की भावनाओं को ठेस पहुंचाया जा सकता है ?
धर्म निरपेक्ष देश में क्या कोई यह कह सकता है कि सिर्फ अल्लाह ही एकमात्र पूज्य है❗❓ दूसरे कोई पूज्य नहीं है?? क्या अजान एक धर्मनिरपेक्ष देश में जायज़ हैं❓ क्यों नहीं ये तत्काल बंद होनी चाहिए❓ जब इससे हम हिंदुओं की भावनायें आहत होती है।
कुछ भी करो पर हर सनातनधर्मी को ये पोस्ट जरूर सनातन हिन्दू समाज तक फैलानी होगी ताकि वह इस का मतलब समझ सकें।अब फैसला सभी सनातनी हिन्दुओं को ही करना है,क्योंकि गुलाम पैदा होना आपकी किस्मत हो सकता है लेकिन क्या गुलामी में मरना आपकी कायरता, अकर्मण्यता नहीं कहलायेगा❓❓
*🚩जय श्री राम 🚩*