Sunday, December 17, 2023

नालंदा विश्वविद्यालय:

अपने प्राचीन गौरव को समझने के लिए थोड़ा सा वक्त निकाले।
 
नालंदा विश्वविद्यालय अभी तक के ज्ञात इतिहास का सबसे महान विश्वविद्यालय है, इस बात को खुद भी समझे अपने बच्चों को भी इस जानकारी से अवगत कराए।

आज सैकड़ो छात्रों पर केवल एक अध्यापक उपलब्ध होता हो परंतु हजारों वर्ष पहले इस विश्वविद्यालय के वैभव के दिनों में इसमें 10,000 से अधिक छात्र और 2,000 शिक्षक शामिल थे। यानी कि केवल 5 छात्रों पर एक अध्यापक।

नालंदा में आठ अलग-अलग परिसर और 10 मंदिर थे, साथ ही कई अन्य मेडिटेशन हॉल और क्लासरूम थे। यहाँ एक पुस्तकालय 9 मंजिला इमारत में स्थित था, जिसमें 90 लाख पांडुलिपियों सहित लाखों किताबें रखी हुई थीं।  

इस विश्वविद्यालय में सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि कोरिया, जापान, चीन, तिब्बत, इंडोनेशिया, ईरान, ग्रीस, मंगोलिया समेत कई दूसरे देशो के विद्यार्थी भी पढ़ाई के लिए आते थे। 

सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि उस दौर में यहां लिटरेचर, एस्ट्रोलॉजी, साइकोलॉजी, लॉ, एस्ट्रोनॉमी, साइंस, वारफेयर, इतिहास, मैथ्स, आर्किटेक्टर, भाषा विज्ञानं, इकोनॉमिक, मेडिसिन समेत कई विषय पढ़ाएं जाते थे।

इसका पूरा परिसर एक विशाल दीवार से घिरा हुआ था जिसमें प्रवेश के लिए एक मुख्य द्वार था। उत्तर से दक्षिण की ओर मठों की कतार थी, केन्द्रीय विद्यालय में सात बड़े कक्ष थे और इसके अलावा तीन सौ अन्य कमरे थे, इनमें व्याख्यान हुआ करते थे। 

मठ एक से अधिक मंजिल के होते थे प्रत्येक मठ के आँगन में एक कुआँ बना था। आठ विशाल भवन, दस मंदिर, अनेक प्रार्थना कक्ष तथा अध्ययन कक्ष के अलावा इस परिसर में सुंदर बगीचे तथा झीलें भी थी, इस यूनिवर्सटी में देश विदेश से पढ़ने वाले छात्रों के लिए छात्रावास की सुविधा भी थी।

इस विश्वविद्यालय में प्रवेश परीक्षा इतनी कठिन होती थी की केवल विलक्षण प्रतिभाशाली विद्यार्थी ही प्रवेश पा सकते थे। यहां आज के विश्विद्यालयों की तरह छात्रों का अपना संघ होता था। वे स्वयं इसकी व्यवस्था तथा चुनाव करते थे। 

मै शुभांगी पंडित यह सब लिख रही हूँ लेकिन जिम्मेदारी आपकी भी है।

छात्रों को किसी प्रकार की आर्थिक चिंता न थी। उनके लिए शिक्षा, भोजन, वस्त्र औषधि और उपचार सभी निःशुल्क थे। राज्य की ओर से विश्वविद्यालय को दो सौ गाँव दान में मिले थे, जिनसे प्राप्त आय और अनाज से उसका खर्च चलता था।

लगभग 800 सालों तक अस्तित्व में रहने के बाद इस विश्वविद्यालय को भूखे-नंगे, असभ्य, आदमखोरों की नजायज ओलादों ने तहस नहस कर दिया।

इसके बाद भी सेक्युलर चिन्दुओ व भीमटो को इनमे अपना बाप नजर आता है।

Friday, December 8, 2023

जयकिशन श्रॉफ!!!

◆ कजाकिस्तान के कजाख लोग कभी बौद्ध सभ्यता से प्रभावित थे. कजाख की इली नदी के किनारे क्षेत्र में चट्टानों पर गौतम बुद्धा की बेहद सुंदर तस्वीर उत्कीर्ण है.

◆ हम बात करेंगे 1930 के कम्युनिस्ट कजाकिस्तान की जो USSR साम्राज्य का हिस्सा बन चुका था. 1930-33 में स्टालिन की सामूहिक कृषि  नियमों के कारण कजाकिस्तान में भीषण अकाल पड़ा.

◆ अकाल में 20,00,000 से अधिक लोग मारे गए. 

◆ अकाल के बाद कम्युनिस्ट सरकार ने अल्पसंख्यक समुदाय को प्रताड़ित कर देश से जबरन निकालना शुरू किया. लाखों अल्पसंख्यक समुदाय कजाकिस्तान छोड़कर भागने लगे.

◆ सेना को गोली मारने का आदेश था. कड़ाके की ठंड कजाकिस्तान से एक उइगर परिवार में देश से निकलना चाहता था. ठंड से बचने के लिए नानी, माँ और सात बेटियों ने लहसुन का पेस्ट लगा लिया. 

◆ लहसुन का पेस्ट से शरीर गर्मी फैल गयी जिसके कारण पूरे शरीर में फफोले पड़ गए. फफोले के कारण गस्त लगाते सैनिकों को लगा पूरा परिवार किसी भयंकर रोग से पीड़ित है इसी कारण सभी को सलामत छोड़ दिया.

◆ कजाकिस्तान से पूरा परिवार लाहौर आ गया. 1947 के बाद लाहौर से दिल्ली आ गए और सात बेटियों में एक रीटा जी थीं जिनकी मुलाकात गुजराती मूल के काकुभाई श्रॉफ से हुई. और दोनों को एक दूसरे से प्यार हुआ और फिर शादी.

◆ 1957 मुंबई में रीटा जी ने एक बच्चे को जन्म दिया जिसका नाम जयकिशन श्रॉफ पड़ा और येही बालक 1983 में HERO फ़िल्म से पूरे देश का HERO बन जाता है. नाम है जैकी श्रॉफ.

● फ़ोटो क्रेडिट : बॉलीवुड नोस्टाल्जिया.
इन्फॉर्मेशन सोर्स : टाइम्स ऑफ इंडिया, इंडिया टुडे, विकिपीडिया एंड गुफ्तगू वित जैकी श्रॉफ.

Thursday, December 7, 2023

सन 1895 का एक नमी भरा दिन...!

सन 1895 का एक नमी भरा दिन.... स्थान..भारत में मुंबई का जुहू समुद्र-तट..

हज़ारों लोगों की भीड़ के साथ मुंबई हाईकोर्ट के तत्कालीन जज महादेव गोविन्द रानाडे और महाराजा वड़ोदरा सेयाजी राव गायकवाड़ जैसे गणमान्य व्यक्ति वहां जे.के. स्कूल ऑफ़ आर्ट्स के एक अध्यापक शिवकर बापूजी तलपड़े के बुलावे पर उपस्थित थे !

सामने के खुले मैदान में एक अजीब सी मशीन.. जिसे इससे पहले किसी ने देखा न सुना.. भीड़ की नज़रों के सामने खड़ी थी.. और इस बड़ी सी मशीन के विषय में तलपड़े जी का दावा था कि वो उसे हवा में उड़ा सकते हैं.. ! विश्वास..कौतूहल.. अविश्वास के मिले-जुले भावों में डूबी हज़ारों जोड़ी आँखें उस मशीन को आश्चर्य भरी दृष्टि से ताक रही थी.. ! 
तलपड़े जी आत्मविश्वास से भरपूर अपने हाथों में एक छोटा सा चपटा यन्त्र थामे खड़े थे.. अचानक उनकी उँगलियों ने उस चपटे से यंत्र पर कुछ हरक़त की.. और .. यह क्या.. ?

उपस्थित जन-समुदाय की आँखें उस समय फटी सी रह गईं जब घरघराहट की सी आवाज़ निकालते हुए वो बड़ी सी मशीन धीरे-धीरे जमीन छोड़ने लगी.. लोगों ने बार-बार देखा.. आँखें मल-मल कर देखा..झुक-झुक कर देखा.. किन्तु वो मशीन सच में अब धरती के सम्पर्क में नहीं रह गयी थी.. एक-एक पल बीत रहा था और देखते ही देखते वो मशीन ज़मीन से कोई 1500 फुट की ऊंचाई पर चक्कर काटने लगी.. लोग अपनी आँखों के ऊपर हथेली रख सन्नाटे में डूबे वजनी लोहे के उस संजाल को हवा में नाचते देख रहे थे.. थोड़ी ही देर पश्चात तलपड़े जी के बाएँ हाथ में थमे चपटे छोटे यंत्र पर नाचती उँगलियों के आदेश को मान वो मशीन एक गर्ज़ना के साथ ज़मीन पर सकुशल वापस आ कर टिक गई.. कहीं कोई आवाज़ नहीं.. इतने में इस सन्नाटे को तोड़ते हुए तालियों का शब्द वहाँ गूँज उठा.. महाराजा वड़ोदरा सम्मोहन की सी अवस्था में बेतरह ताली बजा रहे थे.. फिर क्या था.. जनता की तालियों की गड़गड़ाहट उस भारी मशीन की गर्ज़ना के शब्द से होड़ करने लगी.. !

उसके पश्चात कुछ रहस्यमयी घटनाओं का एक सिलसिला.. इंग्लैंड की रैली ब्रदर्स नाम के एक कंपनी का भोले-भाले वैज्ञानिक तलपडे जी से संपर्क..उनकी संदेहजनक मृत्यु.. डिज़ाइन का लन्दन .. फिर वहाँ से अमरीका के राईट बंधुओं के हाथ लगना.. और महर्षी भारद्वाज द्वारा रचित 8 अध्याय.. 100 खण्ड.. 500 सिद्धांत.. तीन हज़ार श्लोक.. 32 तरीके से 500 तरह के विमान बनाना सिखाने वाले विमान शास्त्र के मानस-शिष्य शिवकर जी तलपड़े की अदम्य साधना के फल को दुनिया आज मक्कार अमरीकी "राईट बंधुओं की एक महान देन" के रूप में जानती है.., इस घटना के आठ वर्ष पश्चात 1903 में जिनका बनाया लोहे का कबाड़ मात्र डेढ़ सौ फुट हवा में उछल वापस ज़मीन से टकरा कर नष्ट हो गया था.. !

क्या ये पर्याप्त कारण नहीं कि हम अपनी मिटटी पर गर्व करें.. ?

जय भारत !
#airoplen #एयरोप्लेन

Sunday, December 3, 2023

राजा राममोहन राय से संबंधित कुछ विशिष्ट बातें ।

1. वह हिंदू नहीं इ'सा'ई था ।
2. उसके शरीर को ज'ला'या नहीं गया था, दफ'नाया गया था।
3. इंग्लैंड में ही म'रा था और वहीं पर उसकी क'ब्र है ।
4. उसकी क'ब्र को 10 वर्ष बाद वापस खोदा गया था ।
5. अंग्रेजी शिक्षा का पक्षधर था ।
6. संस्कृत विरोधी! अंग्रेजों को पत्र लिखा कि संस्कृत हटा दो।
7. इस्ट इंडिया कंपनी में 10 से ज्यादा वर्ष तक मुंशी रहा था ।
8. जब सती प्रथा थी ही नहीं तो वह खत्म कैसे करता । 
9. राजा की उपाधि मुगलों ने दी थी ।
10. संक्षेप में - वह मुग'लों और अंग्रेजों का दला'ल था ।

लोकतंत्र की धर्म हीन सरकार इन जैसों का हिंदू समाज का सुधारक बना दिया । ऐसी सरकारी साजिशो से बचने के लिए धार्मिक राजतंत्र की मांग करें

Tuesday, November 14, 2023

सेल्यूकस सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य से हार गया।

जब यूनानी आक्रमणकारी सेल्यूकस सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य से हार गया और उसकी सेना बंदी बना ली गयी तब उसने अपनी अतिसुंदर पुत्री हेलेन के विवाह का प्रस्ताव सम्राट चन्द्रगुप्त के पास भेजा..!
हेलेन,सेल्यूकस की सबसे छोटी अतिसुंदर पुत्री थी उसके विवाह का प्रस्ताव मिलने पर आचार्य चाणक्य ने सम्राट चन्द्रगुप्त से उसका विवाह कराया था..!!
पर उन्होंने विवाह से पहले हेलेन और चन्द्रगुप्त से कुछ शर्ते रखीं थीं,जिस पर ही उन दोनों का विवाह हुआ था

पहली शर्त यह थी कि उन दोनों के संसर्ग से उत्पन्न संतान उनके राज्य की उत्तराधिकारी नहीं होगी

और कारण बताया कि हेलेन एक विदेशी महिला है, भारत के पूर्वजों से उसका कोई नाता नहीं है, भारतीय संस्कृति से हेलेन पूर्णतः अनभिज्ञ है।
दूसरा कारण बताया की हेलेन विदेशी शत्रुओं की बेटी है। उसकी निष्ठा कभी भी भारत के साथ नहीं हो सकती ।

तीसरा कारण बताया की हेलेन का बेटा विदेशी माँ का पुत्र होने के नाते उसके प्रभाव से कभी मुक्त नहीं हो पायेगा और भारतीय माटी, भारतीय लोगों के प्रति कभी भी पूर्ण निष्ठावान नहीं हो पायेगा।
एक और शर्त आचार्य चाणक्य ने हेलेन के सामने रखी थी कि वह कभी भी चन्द्रगुप्त के राजकार्य में हस्तक्षेप नहीं करेगी और राजनीति और प्रशासनिक अधिकार से पूर्णतया दूर रहेगी
परन्तु गृहस्थ जीवन में हेलेन का पूर्ण अधिकार होगा।

विचार कीजिए .. भारत ही नहीं विश्वभर में आचार्य चाणक्य जैसा कूटनीतिज्ञ और महान नीतिकार राजनीतिज्ञ आज तक कोई दूसरा नहीं हुआ।
किन्तु दुर्भाग्य देखिए आज देश को वर्तमान में एक ऐसी ही महिला का कुपुत्र प्राप्त हुआ है,जो कभी भी भारत और भारतीय नागरिकों के हितों की चिन्ता नहीं करता,विदेशों में जाकर सदैव भारत एवं भारतीयों के विरुद्ध निरन्तर जहर उगलता रहता है।

यह सब आपके सामने है, मेरा संकेत सम्भवतः आप समझ ही गये होंगे।  

Monday, November 13, 2023

सूरन (जिमीकन्द)।

दीपावली के दिन सूरन की सब्जी बनती है,,,सूरन को जिमीकन्द (कहीं कहीं ओल) भी बोलते हैं,, आजकल तो मार्केट में हाईब्रीड सूरन आ गया है,, कभी-२ देशी वाला सूरन भी मिल जाता है,,,

बचपन में ये सब्जी फूटी आँख भी नही सुहाती थी,, लेकिन चूँकि बनती ही यही थी तो झख मारकर खाना पड़ता ही था,,तब मै सोचता था कि पापा लोग कितने कंजूस हैं जो आज त्यौहार के दिन भी ये खुजली वाली सब्जी खिला रहे हैं,,, दादी बोलती थी आज के दिन जो सूरन न खायेगा
अगले जन्म में छछुंदर जन्म लेगा,,
यही सोच कर अनवरत खाये जा रहे है कि छछुंदर न बन जाये😂😂 बड़े हुए तब सूरन की उपयोगिता समझ में आई,,

सब्जियो में सूरन ही एक ऐसी सब्जी है जिसमें फास्फोरस अत्यधिक मात्रा में पाया जाता है,, ऐसी मान्यता है और अब तो मेडिकल साइंस ने भी मान लिया है कि इस एक दिन यदि हम देशी सूरन की सब्जी खा ले तो स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में पूरे साल फास्फोरस की कमी नही होगी,,

मुझे नही पता कि ये परंपरा कब से चल रही है लेकिन सोचीए तो सही कि हमारे लोक मान्यताओं में भी वैज्ञानिकता छुपी हुई होती थी ,,,
धन्य पूर्वज हमारे जिन्होंने विज्ञान को परम्पराओं, रीतियों, रिवाजों, संस्कारों में पिरो दिया🙏🏻🙏

Sunday, September 10, 2023

जम्बूद्वीपे भारतवर्षे भरतखण्डे आर्यावर्ते ...!

Vedic description of Bharatvarsh. 

According to Puranas and Vedas, the earth had seven islands- Jambu, Plaksh, Shalmali, Kush, Crunch, Shak and Pushkar. Jammu Island is located in the middle of all the islands. Aryavarta sub-continent is also known as 'Bharatkhand' or 'Bhrat Bhoomi'. 

The name “Bharat” was symbolic in nature revealing the fact that the whole country was highly enlightened spiritually. Bharat means “devoted to light as against darkness”. Bha means Light and Knowledge, rata means Devoted. Arya" means "knowledgeable" and "vart" means "residence" means the state where the ultimate knowledgeable used to live was called Aryavarta. 

Vishnu Puran being one of the oldest and most authentic puranas has a great description of Bharatvarsh although many details need researches to be understood. Vishnu Puran describes Bharat;

रत्नाकरधौतपदां हिमालयकिरीटिनीम्।
ब्रह्मराजर्षिरत्नाढ्याम वन्देभारतमातम्॥

Salute to my mother India, whos' feet are washed by the sea, adorned with Himalaya, she, who possess many Brahmarishi and Rajarishi. The country that lies north of the ocean, and south of the snowy mountains, is called Bharata, for there dwelt the descendants of Bharat. 

Even Identification of Hindu from Rigveda Barhaspatya Agam says;

हिमालयं समारभ्य: यावत् इंदु सरोवरं।
तं देवनिर्मितं देशं हिंदुस्थानं प्रचक्षते।।

Starting from Himalayas and extending upto the Indian Ocean is the nation built by Gods, Hindusthan.

आसिंधु सिंधुपर्यंताः यस्य भारत भूमिकाः l
पितृभूः पुण्यभूश्चैवः स वै हिंदुरिति स्मृतः ll

A Hindu is a person who regards this land of Bharatavarsha, from the Indus to the seas as his Fatherland as well as his holy land, that is the cradle land of his religion. 

 According to the Puranas, this country is known as Bharatavarsh after the king Bharata Chakravarti. This has been mentioned in Vishnu Purana (2,1,31), Vayu Purana,(33,52), Linga Purana(1,47,23), Brahmanda Purana (14,5,62), Agni Purana ( 107,11–12), Skanda Purana, Khanda (37,57) and Markandaya Purana (50,41) it is clearly stated that this country is known as Bharata Varsha. Vishnu Purana mentions:

ऋषभो मरुदेव्याश्च ऋषभात भरतो भवेत्
भरताद भारतं वर्षं, भरतात सुमतिस्त्वभूत्

Rishabha was born to Marudevi, Bharata was born to Rishabh, Bharatavarsha arose from Bharata, and Sumati arose from Bharata —Vishnu Purana (2,1,31)

ततश्च भारतं वर्षमेतल्लोकेषुगीयते
भरताय यत: पित्रा दत्तं प्रतिष्ठिता वनम (विष्णु पुराण, २,१,३२)

This country is known as Bharatavarsha since the times the father entrusted the kingdom to the son Bharata and he himself went to the forest for ascetic practices —Vishnu Purana (2,1,32)

The realm of Bharata is known as Bharatavarsha in the Mahabharata (the core portion of which is itself known as Bharata) and later texts. The term varsa means a division of the earth, or a continent. Inhibited portion of Bhumandala has 7 concentric islands (Jambu dvipa, Palakshdvipa, Shamli dvipa, Kusha dvipa,  Krauncha dvipa, Shaka dvipa, Pushkar dvipa) and seven oceans in between. Each island is twice bigger in size than the previous one. Smallest island is Jambu dvipa with One Lac Yojana diameter. Our earth (1000 yojana diameter) is a portion of Jambu dvipa at the south. Jambudvip word came from a particular Jamun (black berry) tree, which is 1100 Yojan high and found in this island.

During the 2nd half of first Manu, Maharaj Priyavrat (eldest son of Swayambhuv Manu) ruled. He created 7 islands and 7 oceans,  when he found that the Sunlight was not equally distributed on Bhumandal during Uttarayan and Dakshinayan. He appointed his 7 sons as the ruler of these islands. 

 Agnidhara was the son of Priyavrat Maharaj,  who was given Jambu dvipa. Agnidhara's son was Nabhi Maharaj, on whose name, Bharatvarsh was earlier known as Ajnabh Varsh. His son was Lord Rishabh dev and his son was Bharat Maharaj,  on whose name the word "Ajnabh Varsh" was changed to "Bharatvarsh".  Bharatvarsh was further divided in 9 islands and one among them is Bharat Khand or Sudarshan dvipa or our earth. Nine Varsha’s in Jambudvipa are Kuru varsh, Hiranmay Varsh, Ramyak Varsh, Ilavrat Varsh, Ketumala Varsh, Bhadrashva Varsh, Hari Varsh, Kimpurush Varsh and Bharat Varsh.

A version of the Bhagavata Purana says, the name Bharata is after Jata Bharata who appears in the fifth canto of the Bhagavata – Vishnu Purana (2.3.1)

उत्तरं यत्समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम् ।
वर्षं तद् भारतं नाम भारती यत्र संततिः ।।

The country (varṣam) that lies north of the (Indian) ocean and south of the snowy mountains (Himalayas) is called Bharatam; there dwell the descendants of Bharata.

Aryavarta ( आर्यावर्त, abode of the Aryans) is a name for North India in classical Sanskrit literature. The Manu Smriti (2.22) gives the name to “the tract between the Himalaya and the Vindhya ranges, from the Eastern (Bay of Bengal) to the Western Sea (Arabian Sea)”.

 एवं दक्षिणेनेलावृतं निषधो हेमकूटो हिमालय इति प्रागायता यथा, नीलादयोऽयुतयोजनोत्सेधा हरिवर्षकिम्पुरुषभारतानां यथासङ्ख्यम् ॥ (भागवत पुराण 5.16.9)

In Devi Bhagavata Mahapuruana; Bharatavarsha Varnan (8th Skanda 11th Chapter) where Indian subcontinent has been clearly laid out.

Narayana said “ O Narada ! In this land of Bharatavarsha I dwell as the aadi purusha Narayana. I will describe the rivers and mountains of this land. By looking at the mountains Malaya, MangalaPrastha, Mainaak, Trikuta, Rishabha, Kutaka, Devagiri, Rishyamuka, Shrishaila, Vyenkataadri, Mahendra, Vindhya, VaariDhaara, RikshaParvata, Drona, Chitrakuta, Govardhana, Raivataka, NeelaParvata, Gouramukha, KamaGiri and others a man acquires punya. 

The Vayu Purana says ‘he who conquers the whole of Bharata-varsa is celebrated as a samrat’ (Vayu Purana 45, 86).

सप्तद्वीपपरिक्रान्तं जम्बूदीपं निबोधत।
अग्नीध्रं ज्येष्ठदायादं कन्यापुत्रं महाबलम।।
प्रियव्रतोअभ्यषिञ्चतं जम्बूद्वीपेश्वरं नृपम्।।
तस्य पुत्रा बभूवुर्हि प्रजापतिसमौजस:।
ज्येष्ठो नाभिरिति ख्यातस्तस्य किम्पुरूषोअनुज:।।
नाभेर्हि सर्गं वक्ष्यामि हिमाह्व तन्निबोधत। 
(वायु पुराण 31-37, 38)
 
The Mahabharata depicts an advanced ancient civilisation. An era with fantastic weapons such as the Bhrahmastra which were as powerful as modern day nukes and other modern technologies like cloning, surrogacy and long distance telecast. Its hard to imagine that a civilisation this awesome could have existed so long ago. 

 The earth plates (land mass) started taking the division into 7 continents. In Jambu Dweep Nirmana parva ( pay attention to name of this sub chapter ) which is part of Bhishma Parva of Mahabharata; seven islands- Jambu, Plaksh, Shalmali, Kush, Crunch, Shak and Pushkar.

The seven main chains of mountains in Bharata are - Mahendra (Chain of hills extending from Odisha), Malaya (Southern portion of Western Ghats), Sahya ( Northern parts of Western Ghats), Suktimat, Riksa ( Mountains of Gondwana), Vindhya ( Chain of mountains across Central India), Paripatra ( Northern and western parts of Vindhya or mountains of Gujarat).
 
The name of our country, sometimes known as Bharatvarsha and Aryavarta, is today India. But the India we have today is only a small piece of Jambudweep (Asia).

Hundreds of rivers take birth from these mountains. By taking bath and drinking the waters of those holy rivers or even just by seeing them and uttering their auspicious names, a man is freed of sins acquired through body and mind. Some of the rivers are Tamraparni, Chandravashaa, Kritamaal, Kaaveri, Payaswinii, Tungabhadra, Venaa, Krishnavena, Godavari, Bheemarathi, Sharkaraa, Vartakaa, Nivivandhya, Taapi, Revaa, Narmadaa, Mandaakini,  Saraswati, Sindhu, Andha, Sonana, RishiKulyaa, Trisomaa, VedaSmriti, Kaushiki, Ganga, Yamuna, Drishadvati, Gomati, Sarayu, Oghavati, Saptavati, Sushamaa, Shatadru, Chandrabhaga, MarudVridhaa,  Bitastaa, Baitarani, Aslikee, Biswaa etc. Being born in this land of BharataVarsha, sattvick and sometimes rajasik individuals attain divine, human and hellish realms respectively, according to their own karmas. And they also attain moksha by observing sannyasa vanaprastha etc rules according to their respective varnas. 

Narayan said; O Narada, this is how the sages, siddhas and rishis sing the glories of the land of Bharatavarsha.

Earth geography is given with map of earth and moon together. It has two meaning. One is map of earth as she appears from sky and other is reflection of Earth. Thus a question came about of how the earth looked like reflected from the sky, described in the great immortal Sanskrit epic of the Mahabharata, Bhishma Parva (Ch 5), Jamvu-khanda Nirvana Parva (Ch 6 verses 15 / 16) give a description of the world (called Sudarshana). This is how he described the face of the world: 
 
सुदर्शनं प्रवक्ष्यामि द्वीपं तु कुरुनन्दन। परिमण्डलो महाराज द्वीपोऽसौ चक्रसंस्थितः।। 

यथा च पुरुषः पश्येद आदर्शे मुखम आत्मनः (Just like a man sees the reflection of his face in the mirror) 

एवं सुदर्शन दवीपॊ दृश्यते चन्द्रमण्डले (Similarly, the reflection of Sudarshan (earth) is seen in the lunar mansion (universe)

दविर अंशे पिप्पलस तत्र दविर अंशे च शशॊ महान (In two parts of Sudarshan there are Peepal (fig) leaves, and two parts have a giant rabbit) 

सर्वौषधिसमावापैः सर्वतः परिवृंहितः (The land masses are covered with medicinal plants and herbs) 

आपस ततॊ ऽनया विज्ञेया एष संक्षेप उच्यते (Everything apart from these land masses are covered with water) 
 
Oh Kurunandan (Kaurava’s King), describe to the island called Sudarsana. This island is circular and of the form of a wheel. The planet named Sudarshan (Earth) looks spherical. Like a man views himself in the mirror the same way it appears from space. One of its parts looks like a big Peepal Tree (sacred fig) Leaves and the other part looks like one big Rabbit standing on its foot. 

 And it is surrounded on all sides with the salt ocean. As a person can see his own face in a mirror, even so is the island called Sudarsana seen in the lunar disc. Two of its parts seem to be a peepul tree, while two others look like a large hare. In the first phase, you see Peepal leaves and the next phase you see a rabbit.  
 
Years later the attempt was made by Indian saint/sage Ramanujacharya (1017–1137 CE), a Hindu theologian, philosopher sketched out the map, the verses made him analyse the image in detail, following which the drawing was made and the map was created, below is a sample of what he came up with leaves and a rabbit. Some scholars claim that Sriman Thiruvenkata Ramanuja Jeeyar (1806-1877) came up with this map. 

Tulsidasji has mentioned in the Uttarkand of Ramcharitmanas how spread was the kingdom of Lord Shriram : 
 
भूमि सप्त सागर मेखला। एक भूप रघुपति कोसला l भुअन अनेक रोम प्रति जासू। यह प्रभुता कछु बहुत न तासू ॥1॥ 

सो महिमा समुझत प्रभु केरी। यह बरनत हीनता घनेरी l सोउ महिमा खगेस जिन्ह जानी॥ फिरि एहिं चरित तिन्हहुँ रति मानी ॥2॥ 

Shri Raghunathji in Ayodhya is the only king of the earth with a belt of seven seas. For those who have many universes in each / this dominion of seven islands is not much; Rather, on understanding that glory of the Lord, in saying (that He is the sole emperor of the seven island earth surrounded by seven oceans) He has great inferiority, but those who have known that glory, they also believe in great love in this pastime.

First world map based on Mahabharata

Saturday, September 2, 2023

डाइलिसिस!

क्या आप जानते हैं डाइलिसिस के दौरान, खून को लाल वाली ट्यूब से बाहर निकाला जाता है , फिर dialysis मशीन से वो खून गुजरता है, और फिर नीली ट्यूब से उसे वापस शरीर में डाला जाता है…

इस प्रक्रिया को पूरा होने में चार घंटे लगते हैं और मरीज़  bed पे immobile रहता है.!

ये प्रोसीजर हफ़्ते में तीन बार होता है, इसका मतलब एक महीने में १२ बार, और हर बार ये चार घंटे लेता है, इसका मतलब अढ़तालीस घंटे…

जो लोग किडनी के किसी रोग से त्रस्त नहीं हैं, और जो स्वस्थ हैं उनके लिए उनकी किडनी और लीवर ये काम बिना किसी परेशानी के दिन में छत्तीस बार करते हैं..

अगर आप इसे पढ़ रहे हैं तो , शराब पीना छोड़िए, प्रोसेस्ड फ़ूड ख़ाना छोड़िए, जंकी फ़्राई ख़ाना छोड़िए, अनावश्यक मीठा ख़ाना बंद कीजिए और मुझे लगता है ये सारे विकल्प आपके लिए काफ़ी सस्ते और आसान होंगे.! राजीव भाई द्वारा बताए गए नियमों का पालन करें। बाजारू चीजों से दूर रहे। घर का बना शुद्ध खाएं।

Sunday, August 13, 2023

महर्षि दयानंद ,मल्ल और मथुरा के अखाड़े।

मथुरा महाभारत काल से ही मल्लो  की भूमि रही है। मथुरा के राजा कंस के दरबार में अनेकों  मल्ल रहते थे। चाणूर  ,मुष्टिक  ऐसे ही दो मल्ल थे जिनको श्री कृष्ण जी  ने मारा था। यह भारत की राजव्यवस्था रही है यहां प्रत्येक राजा अपने राज्य  में मल्ल अर्थात पहलवानों को विशेष प्रोत्साहन देता था राज प्रबन्ध से उनकी खुराक देखरेख का विशेष प्रबंध रहता था । यही कारण रहा ब्रिटिश काल तक देश की 500 से अधिक रियासतों में भी  यह परंपरा रही है। राजे महाराजे मल्ल युद्ध कुश्ती की प्रतिस्पर्धा के शौकीन थे । बड़े-बड़े दंगल आयोजित कराते थे प्रत्येक रियासत में 1,2 नामी पहलवान मल्ल रहता था। लेकिन बात जब ब्रज मंडल अर्थात मथुरा के पहलवानों की होती है तो इनकी धाक पूरे अविभाजित भारत में रही है। एक जमाने में छोटे से मथुरा मुख्य नगर में 150 से अधिक अखाड़े थे... जिनमें आजादी के कुछ दशकों बाद तक भी मल्लो की कवायद हुंकार  सुनी जा सकती थी। इन अखाड़ों में 6 से 10 घंटे तक मथुरा के चोबे  पहलवान बिना रुके बिना थके आपस में जोर आजमाइश करते रहते थे। मथुरा के मल्ल पेशावर अमृतसर लाहौर रावलपिंडी जाकर वहां के मांसाहारी  पहलवानों को पराजित करते थे। मथुरा के मल्लो को देखकर ही विपक्षी पहलवान भयभीत हो जाते थे। कोलकाता के एक दंगल में गामा पहलवान भी ऐसे ही भयभीत हो गया था । वह मुकाबला मथुरा के मल्ल चंदन व गामा पहलवान के बीच हुआ था घंटे की जद्दोजहद  के बाद बराबरी पर छुटा था वह मुकाबला ।

 कुच बिहार के राजा ने उसे मुकाबला का आयोजन कराया था कोलकाता के ईडन गार्डन में। मथुरा के मल्ल पूरी तरह शाकाहारी होते थे अंगीठी पर 5 किलो दूध उसमें 1 किलो शुद्ध देसी घी 1 किलो बादाम डालकर जब वह सामग्री साढे तीन किलो हो जाती थी इसका सेवन प्रत्येक मल्ल करता था इसे अखनी बोला जाता था।

अविभाजित पंजाब के मशहूर मुस्लिम कल्लू खान पहलवान की मां को बड़ा अचरज हुआ था यह जानकर कि उसके बेटे को जिस मथुरा के पहलवान ने हराया है वह पूरी तरह शाकाहारी है।

। मथुरा के मल्लो की इस विशेषता पर सर्वप्रथम लेखनी से प्रकाश आदित्य ब्रह्मचारी महान दार्शनिक समाज सुधारक आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानंद सरस्वती ने डाला है। अंग्रेजी राज में  उन्होंने गौ संरक्षण को लेकर लिखी गई अपनी लघु पुस्तक गौकरुणानिधि में लिखा है।

स्वामी जी महाराज लिखते है " मांसाहारी से शाकाहारी  अधिक बलवान होता है जंगली भैंसा मांस नहीं खाता यदि वह शेरों के झुंड पर गिरे एक दो को तो मार ही डालें।
और जो प्रत्यक्ष दृष्टांत देखना चाहे तो एक मांसाहारी का एक दूध घी और अन्नाहारी मथुरा के मल्ल  चोबे से बाहु युद्ध हो तो अनुमान है कि मांसाहारी को पटक कर उसकी छाती पर चोबा चढ़ बैठेगा। पुनः  परीक्षा होगी कि किस-किस के खाने में बल  अधिक होता है भला तनिक विचार तो करो कि छिलकों के खाने से अधिक बल होता है अथवा रस और जो सार रूप है उसके खाने से? मांस छिलके के समान है और दूध घी रस के तुल्य है इसे जो युक्ति पूर्व खाए तो मांस से अधिक गुण और बलकारी होता है तो फिर मांस खाना व्यर्थ है और हानिकारक अन्याय अधर्म और दुष्ट कर्म क्यों नहीं?

महर्षि दयानंद जी के गुरु दंडी संन्यासी विरजानन्द मथुरा के ही निवासी थे । मथुरा में रहकर ही उन्होंने उनसे  अष्टाध्यायी  व्याकरण महाभाष्य अन्य आर्ष ग्रंथों को  पढा था 3 वर्ष । ऐसे में यह सहज है उन्होंने मथुरा के अखाडो  में मथुरा के मल्ल चोबो के बल की थाह ली हो वैसे महर्षि दयानंद भी अतुल्य बलशाली थे।

स्वामी दयानंद जी ने अंग्रेजी राज में ईसाइयों मुसलमानों द्वारा  की जा रही गो हत्या मांसाहार के विरुद्ध  बहुत बड़ा आंदोलन चलाया था। गाय व अन्य उपयोगी पालतू जंगली पशुओं के संरक्षण प्रकृति में इनके महत्व को उजागर करती हुई  गौ आधारित अर्थव्यवस्था को लेकर 'गोकरूणानिधि'  पुस्तक लिखी थी। महारानी विक्टोरिया से भी गौ हत्याबंदी की तत्काल मांग की थी। एक करोड़ भारत की देसी प्रजा के हस्ताक्षर से युक्त पत्र का भी मनोरथ  उन्होने उठाया था उनकी आकस्मिक मृत्यु से उनका यह कार्य  अधूरा रह गया। स्वामी दयानंद ने हीं हरियाणा के रेवाड़ी में देश की सबसे पहली गौशाला अहीर  रेवाडी नरेश से कहकर उन्हें आदेशित कर स्थापित कराई थी ।

मथुरा के मल्लो पर लौट कर आते हैं मथुरा के मल्ल शाकाहारी थे लेकिन स्वभाव  से बेहद शांत थे आखिर पहलवान क्रोधी नहीं हो सकता वह पहलवान ही नहीं  जो क्रोध करें ।यही कारण रहा जब अहमद शाह अबदाली ने मथुरा पर हमला किया लुटेरे तुर्क मंगोल मुगलो ने मथुरा पर हमले किए यहां के मंदिरों को लूटा किया एक भी मल्ल चोबे  ने आगे आकर प्रतिकार नहीं किया। निरीह  जीव की भांति देखते रहे। कुछ लोग कहते हैं मल्लो का यह धर्म था वह किसी भी युद्ध में हिस्सा नहीं लेंगे केवल अपने राजा  के आदेश पर ही अपनी मल्ल विद्या  का प्रदर्शन करेंगे अखाड़े में ही वह प्रतिपक्षी के प्राण हर सकते हैं केवल। उनका यह आदर्श मथुरा पर बहुत भारी पड़ा।

आज मथुरा के अधिकांश अखाड़े में ताला लग गया है तो कुछ पर बंदूक धारी सफेदपोशो का कब्जा है ।अक्सर अखाड़े की जमीन शहर के बीचो-बीच होती है जमीन की कीमत कई गुना बढ़ जाती हैं अवसरवादी लोग ऐसी संपत्तियों को कब्जाते  हैं, साथ ही समृद्ध परंपरा भी लुप्त हो जाती है। दिल्ली एनसीआर के अखाड़ो में भी ऐसा ही हुआ उनकी भी मथुरा के अखाड़ो की तरह दुखद परिणीति हुई अवैध कब्जे के रूप में।

आर्य सागर खारी ✍

Tuesday, July 25, 2023

बांके इज़ बैक

जौनपर को गौरवान्वित करने वाली इतिहास में गुम कहानी
ईनाम पूरे पचास हज़ार!!!!

कितना इनाम रखे है सरकार हम पर…पूरे पचास हज़ार सरदार….यानी यहां से 50-50 कोस दूर जब कोई बच्चा रोता है तो माँ कहती है सो जा बेटा नहीं तो गब्बर सिंह आजायेगा… ये डायलॉग सभी ने सुना ही होगा….और सलीम मियाँ की कलम की कारीगरी पर खूब ताली भी बजाई होगी…. 
पर इस डायलॉग के पीछे भी एक सच्ची कहानी है….. और कमीनगी भी...

दर असल हिंदुस्तानी गर्व की एक लोकोक्ति को सलीम ने उठाया और एक क्रूर डकैत के किरदार के मुंह में रख दिया….
जानते हैं भारत के आजतक के इतिहास में सबसे बड़ा इनाम किसके सर पर रखा गया??अगर मैं आज 165 साल पहले की उस 50 हज़ार की रकम की कीमत निकालूं तो आज बैठेगी करीब 30 करोड़……. जी हाँ एक हिंदुस्तानी योद्धा के सर की कीमत तब की अंग्रेज सरकार ने तय की थी 50 हज़ार….. और वो भी आज से 166 साल पहले यानी 1857 में…. उसकी पूरी टोली के सर का इनाम तो तब भी #दो_लाख_से_ऊपर था….. और हम ठहरे हिंदुस्तानी पैसे के मामले में बाप के सगे नहीं तो देश भक्त क्रांतिकारी क्या लाये….
1857 की क्रांति में कई जियालों ने गोरों को नाकों चने चबवा दिए थे लेकिन दुर्भाग्य से हिंदुस्तान हिंदुस्तान से लड़ा और हार गया… पर फिर भी कुछ क्रांतिकारी थे जो न अभी तक हार मानने को तैयार थे न लड़ाई से हटने को और ऐसे ही योद्धा थे मछली शहर के #बांके_चमार….. जौनपुर के इलाके में बांके का अंग्रेज़ो पर खौफ तारी था…. उनकी 40-50 की टोली अचानक प्रकट होती और किसी काफ़िले या अंग्रेज़ो के शिविर को नेस्तनाबूद कर देती….. जो गोरा हाथ लगता उसे मौत के घाट उतार दिया जाता….. कानपुर के बाद सबसे ज्यादा अंग्रेज़ो को बांके ने अपना शिकार बनाया….
इस छापामार जंग का जब अंग्रेज़ो को कोई जवाब न सूझा उन्होंने हिंदुस्तानियत की अपनी समझ को ध्यान रख बांके पर 50 हज़ार का इनाम रख दिया….. अब उस समय की दुनियाँ का ये सबसे बड़ा ईनाम था….. जब ये खबर बांके तक पहुंची वो हँस पड़ा और उसने ऐलान किया के आज से 50 कोस के दायरे में कोई अंग्रेज जिंदा नहीं छोड़ा जाएगा….
तब के समय कहावत चल पड़ी की गोरी माएँ अपने बच्चों को इस खौफ से रोने भी न देती थीं के बांके न आजाये….. खैर आगे वही हुआ जो होता आया इतने बड़े इनाम के लालच में स्थानीय जमीदारों ने बांके की मुखबिरी कर दी और धोखे से गिरफ्तार करवा दिया…… अंग्रेज सरकार ने भी बिना एक पल गवाए बांके और 17 अन्य साथियों को फांसी पर लटका दिया….. 
बस यही से आगे बांके चमार का नाम इतिहास से मिटा दिया गया….. न किसी नीले वस्त्रधारी महापुरुष को कभी उनकी याद आयी, न UP के किसी दलित नेता नेत्री को और न ही किसी कथित आर्मी को….. अन्य किसी की बात भी क्या करें….
न बांके की कोई स्मृति बची, न इतिहास और न वो कहावत…. उस 50 हज़ार के ईनाम की कहानी जरूर ब्रिटिश राज की फाइलों में रही और वहीं कहीं से उसे पकड़ लिया सलीम मियाँ ने…..
तो कभी ये भी याद कर लें के कोई बांके चमार था जो इस देश पर मर मिटा…. न अंग्रेज़ो ने उसकी जागीर छीनी थी न उत्तराधिकारी अस्वीकार किया था….. वो बस मिट्टी के लिए लड़ा और बलिदान हो गया…. तो कभी गब्बर इज़ बैक की जगह

‘बांके इज़ बैक भी कह डालिये….. असली तो वही था!!!

Friday, July 14, 2023

नरभक्षी के तर्क ।

मनुष्यों को बेधड़क नरमाँस का सेवन करना चाहिए। इसके पक्ष में तर्क बहुत ठोस और अकाट्य हैं :

1. नरमाँस में प्रोटीन होता है, जो कि जीवन के लिए अत्यावश्यक है।

2. नरमाँस स्वादिष्ट होता है। एक नरभक्षी अफ्रीकी तानाशाह ने बताया था कि मनुष्य और विशेषकर बच्चों के माँस से सुस्वादु कुछ भी नहीं होता। पशुओं का माँस उसकी तुलना में बहुत ही बेस्वाद है। और स्वाद से बड़ी कोई चीज़ नहीं।

3. हम एक लोकतान्त्रिक देश में रहते हैं और संविधान ने हमें अपनी पसंद का भोजन करने की स्वतंत्रता दी है। किसी को जीने की आज़ादी हो न हो, मुझे खाने की आज़ादी अवश्य है।

4. हम क्या खाएँ और क्या नहीं, ये तय करने वाला कोई और कैसे हो सकता है?

5. यही खाद्य-शृंखला है। शक्तिशाली मनुष्यों को दुर्बलों को मारकर खा जाना चाहिए। यही प्रकृति का नियम है। जीव जीव का भोजन है। मछली मछली को खाती है, साँप साँप को, मनुष्य मनुष्य को।

6. प्रकृति ने मनुष्य को कैनाइन दांत माँस खाने के लिए दिए हैं और मनुष्य सर्वभक्षी होते हैं।

7. पेड़-पौधों में भी जीवन होता है। पानी में जीवाणु होते हैं। जो सब्ज़ी खाता है और पानी पीता है, वह भी तो जीव-हत्यारा है। फिर आप किसी को नरमाँस का सेवन करने से कैसे रोक सकते हैं?

8. दुनिया में मनुष्यों की संख्या इतनी अधिक है कि अगर हम उनको मारकर नहीं खाएँगे तो किसी के भी रहने की जगह नहीं बचेगी।

9. पृथ्वी इतनी मात्रा में अनाज और सब्ज़ी का उत्पादन नहीं कर सकती, इसलिए भी मनुष्यों को मारकर खाना हमारे लिए ज़रूरी है। अगर नरभक्षी न हों और सब शाकाहारी बन जाएँ तो लोग भूखों मरने लगेंगे।

10. किन मनुष्यों को मारकर खाना चाहिए? जो कम क्यूट दिखते हों, जो मूर्ख हों, अनुपयोगी हों, गूंगे हों, जो आप पर निर्भर हों, और जिन्हें खाना धर्म में निषिद्ध न हो, उन्हें मारकर खाया जा सकता है।

11. अगर आपका घर आदमखोरों की बस्ती में है और आपके बच्चे रात को लौटकर घर न आएँ तो मान लें उन्हें किसी ने मारकर खा लिया होगा। कृपया इसकी शिक़ायत न करें। अगर आपको इस पर ऐतराज़ होता है तो आप फ़ासिस्ट हैं, आप नफ़रत फैलाते हैं, आप दूसरों की पसंद को स्वीकार नहीं करते, आप अपनी मर्ज़ी औरों पर थोपना चाहते हैं। आपको अपने पर शर्म आनी चाहिए।
कृपया इन तर्कों का विरोध नहीं कीजिये, क्योंकि नब्बे फ़ीसदी मनुष्यजाति पहले ही इन तर्कों का हवाला देकर माँसभक्षण कर रही है और जानवरों को मार रही है। वैज्ञानिक आधार पर एक कारण बता दीजिये कि इन तर्कों को मनुष्यों पर लागू क्यों नहीं किया जा सकता?
कापी पेस्ट |
रावण द्वारा #माता_सीता_का_हरण करके श्रीलंका जाते समय पुष्पक विमान का मार्ग क्या था?

उस मार्ग में कौन सा #वैज्ञानिक_रहस्य छुपा हुआ है ?
उस मार्ग के बारे में हज़ारों साल पहले कैसे जानकारी थी ? पढ़िए इन प्रश्नों के उत्तर जो वामपंथी इतिहारकारों के लिए मृत्यु समान हैं.
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मेरे देशबंधुओं,
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रावण ने माँ सीताजी का अपहरण पंचवटी (नासिक, महाराष्ट्र) से किया और पुष्पक विमान द्वारा हम्पी (कर्नाटक), लेपक्षी (आँध्रप्रदेश) होते हुए श्रीलंका पहुंचा.
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आश्चर्य होता है जब हम आधुनिक तकनीक से देखते हैं कि नासिक, हम्पी, लेपक्षी और श्रीलंका बिलकुल एक सीधी लाइन में हैं. अर्थात ये पंचवटी से श्रीलंका जाने का सबसे छोटा रास्ता है।
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अब आप ये सोचिये कि उस समय Google Map नहीं था जो Shortest Way बता देता. फिर कैसे उस समय ये पता किया गया कि सबसे छोटा और सीधा मार्ग कौन सा है?
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या अगर भारत विरोधियों के अहम् संतुष्टि के लिए मान भी लें कि चलो रामायण केवल एक महाकाव्य है जो वाल्मीकि ने लिखा तो फिर ये बताओ कि उस ज़माने में भी गूगल मैप नहीं था तो रामायण लिखने वाले वाल्मीकि को कैसे पता लगा कि पंचवटी से श्रीलंका का सीधा छोटा रास्ता कौन सा है?
महाकाव्य में तो किन्ही भी स्थानों का ज़िक्र घटनाओं को बताने के लिए आ जाता।
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लेकिन क्यों वाल्मीकि जी ने सीता हरण के लिए केवल उन्हीं स्थानों का ज़िक्र किया जो पुष्पक विमान का सबसे छोटा और बिलकुल सीधा रास्ता था?
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ये ठीक वैसे ही है कि आज से 500 साल पहले गोस्वामी तुलसीदास जी को कैसे पता कि पृथ्वी से सूर्य की दूरी क्या है? (जुग सहस्त्र जोजन पर भानु = 152 मिलियन किमी - हनुमानचालीसा), जबकि नासा ने हाल ही के कुछ वर्षों में इस दूरी का पता लगाया है.
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अब आगे देखिये...
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पंचवटी वो स्थान है जहां प्रभु श्री राम, माता जानकी और भ्राता लक्ष्मण वनवास के समय रह रहे थे.
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यहीं शूर्पणखा आई और लक्ष्मण से विवाह करने के लिए उपद्रव करने लगी। विवश होकर लक्ष्मण ने शूपर्णखा की नाक यानी नासिका काट दी. और आज इस स्थान को हम नासिक (महाराष्ट्र) के नाम से जानते हैं। आगे चलिए...
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पुष्पक विमान में जाते हुए सीताजी ने नीचे देखा कि एक पर्वत के शिखर पर बैठे हुए कुछ वानर ऊपर की ओर कौतुहल से देख रहे हैं तो सीता ने अपने वस्त्र की कोर फाड़कर उसमें अपने कंगन बांधकर नीचे फ़ेंक दिए, ताकि राम को उन्हें ढूढ़ने में सहायता प्राप्त हो सके.
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जिस स्थान पर सीताजी ने उन वानरों को ये आभूषण फेंके वो स्थान था 'ऋष्यमूक पर्वत' जो आज के हम्पी (कर्नाटक) में स्थित है.
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इसके बाद... वृद्ध गिद्धराज जटायु ने रोती हुई सीताजी को देखा, देखा कि कोई राक्षस किसी स्त्री को बलात अपने विमान में लेके जा रहा है।
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जटायु ने सीताजी को छुड़ाने के लिए रावण से युद्ध किया. रावण ने तलवार से जटायु के पंख काट दिए.
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इसके बाद जब राम और लक्ष्मण सीताजी को ढूंढते हुए पहुंचे तो उन्होंने दूर से ही जटायु को सबसे पहला सम्बोधन 'हे पक्षी' कहते हुए किया. और उस जगह का नाम दक्षिण भाषा में 'लेपक्षी' (आंधप्रदेश) है।
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अब क्या समझ आया आपको? पंचवटी---हम्पी---लेपक्षी---श्रीलंका. सीधा रास्ता.सबसे छोटा रास्ता. हवाई रास्ता, यानि हमारे जमाने में विमान होने के सबूत
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गूगल मैप का निकाला गया फोटो नीचे है.
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अपने ज्ञान-विज्ञान, संस्कृति को भूल चुके भारतबन्धुओं रामायण कोई मायथोलोजी नहीं है.
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ये महर्षि वाल्मीकि द्वारा लिखा गया सत्य इतिहास है. जिसके समस्त वैज्ञानिक प्रमाण आज उपलब्ध हैं.
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इसलिए जब भी कोई वामपंथी हमारे इतिहास, संस्कृति, साहित्य को मायथोलोजी कहकर लोगों को भ्रमित करने का या खुद को विद्वान दिखाने का प्रयास करे तो उसको पकड़कर बिठा लेना और उससे इन सवालों के जवाब पूछना. एक का भी जवाब नहीं दे पायेगा।
सत्य सनातन धर्म की जय।🚩🚩 साभार 🙏🏼
#काशीमथुरामुक्तिआंदोलन

Wednesday, June 21, 2023

दामोदर राव (असली नाम आनंद राव).

झांसी के अंतिम संघर्ष में महारानी की पीठ पर बंधा उनका बेटा दामोदर राव (असली नाम आनंद राव) सबको याद है. रानी की चिता जल जाने के बाद उस बेटे का क्या हुआ
वो कोई कहानी का किरदार भर नहीं था, 1857 के विद्रोह की सबसे महत्वपूर्ण कहानी को जीने वाला राजकुमार था जिसने उसी गुलाम भारत में जिंदगी काटी, जहां उसे भुला कर उसकी मां के नाम की कसमें खाई जा रही थी.
अंग्रेजों ने दामोदर राव को कभी झांसी का वारिस नहीं माना था, सो उसे सरकारी दस्तावेजों में कोई जगह नहीं मिली थी. ज्यादातर हिंदुस्तानियों ने सुभद्रा कुमारी चौहान के कुछ सही, कुछ गलत आलंकारिक वर्णन को ही इतिहास मानकर इतिश्री कर ली.
1959 में छपी वाई एन केलकर की मराठी किताब ‘इतिहासाच्य सहली’ (इतिहास की सैर) में दामोदर राव का इकलौता वर्णन छपा.
महारानी की मृत्यु के बाद दामोदार राव ने एक तरह से अभिशप्त जीवन जिया. उनकी इस बदहाली के जिम्मेदार सिर्फ फिरंगी ही नहीं हिंदुस्तान के लोग भी बराबरी से थे.
आइये, दामोदर की कहानी दामोदर की जुबानी सुनते हैं –
15 नवंबर 1849 को नेवलकर राजपरिवार की एक शाखा में मैं पैदा हुआ. ज्योतिषी ने बताया कि मेरी कुंडली में राज योग है और मैं राजा बनूंगा. ये बात मेरी जिंदगी में सबसे दुर्भाग्यपूर्ण ढंग से सच हुई. तीन साल की उम्र में महाराज ने मुझे गोद ले लिया. गोद लेने की औपचारिक स्वीकृति आने से पहले ही पिताजी नहीं रहे.
मां साहेब (महारानी लक्ष्मीबाई) ने कलकत्ता में लॉर्ड डलहॉजी को संदेश भेजा कि मुझे वारिस मान लिया जाए. मगर ऐसा नहीं हुआ.
डलहॉजी ने आदेश दिया कि झांसी को ब्रिटिश राज में मिला लिया जाएगा. मां साहेब को 5,000 सालाना पेंशन दी जाएगी. इसके साथ ही महाराज की सारी सम्पत्ति भी मां साहेब के पास रहेगी. मां साहेब के बाद मेरा पूरा हक उनके खजाने पर होगा मगर मुझे झांसी का राज नहीं मिलेगा.
इसके अलावा अंग्रेजों के खजाने में पिताजी के सात लाख रुपए भी जमा थे. फिरंगियों ने कहा कि मेरे बालिग होने पर वो पैसा मुझे दे दिया जाएगा.
मां साहेब को ग्वालियर की लड़ाई में शहादत मिली. मेरे सेवकों (रामचंद्र राव देशमुख और काशी बाई) और बाकी लोगों ने बाद में मुझे बताया कि मां ने मुझे पूरी लड़ाई में अपनी पीठ पर बैठा रखा था. मुझे खुद ये ठीक से याद नहीं. इस लड़ाई के बाद हमारे कुल 60 विश्वासपात्र ही जिंदा बच पाए थे.
नन्हें खान रिसालेदार, गनपत राव, रघुनाथ सिंह और रामचंद्र राव देशमुख ने मेरी जिम्मेदारी उठाई. 22 घोड़े और 60 ऊंटों के साथ बुंदेलखंड के चंदेरी की तरफ चल पड़े. हमारे पास खाने, पकाने और रहने के लिए कुछ नहीं था. किसी भी गांव में हमें शरण नहीं मिली. मई-जून की गर्मी में हम पेड़ों तले खुले आसमान के नीचे रात बिताते रहे. शुक्र था कि जंगल के फलों के चलते कभी भूखे सोने की नौबत नहीं आई.
असल दिक्कत बारिश शुरू होने के साथ शुरू हुई. घने जंगल में तेज मानसून में रहना असंभव हो गया. किसी तरह एक गांव के मुखिया ने हमें खाना देने की बात मान ली. रघुनाथ राव की सलाह पर हम 10-10 की टुकड़ियों में बंटकर रहने लगे.
मुखिया ने एक महीने के राशन और ब्रिटिश सेना को खबर न करने की कीमत 500 रुपए, 9 घोड़े और चार ऊंट तय की. हम जिस जगह पर रहे वो किसी झरने के पास थी और खूबसूरत थी.
देखते-देखते दो साल निकल गए. ग्वालियर छोड़ते समय हमारे पास 60,000 रुपए थे, जो अब पूरी तरह खत्म हो गए थे. मेरी तबियत इतनी खराब हो गई कि सबको लगा कि मैं नहीं बचूंगा. मेरे लोग मुखिया से गिड़गिड़ाए कि वो किसी वैद्य का इंतजाम करें.
मेरा इलाज तो हो गया मगर हमें बिना पैसे के वहां रहने नहीं दिया गया. मेरे लोगों ने मुखिया को 200 रुपए दिए और जानवर वापस मांगे. उसने हमें सिर्फ 3 घोड़े वापस दिए. वहां से चलने के बाद हम 24 लोग साथ हो गए.
ग्वालियर के शिप्री में गांव वालों ने हमें बागी के तौर पर पहचान लिया. वहां तीन दिन उन्होंने हमें बंद रखा, फिर सिपाहियों के साथ झालरपाटन के पॉलिटिकल एजेंट के पास भेज दिया. मेरे लोगों ने मुझे पैदल नहीं चलने दिया. वो एक-एक कर मुझे अपनी पीठ पर बैठाते रहे.
हमारे ज्यादातर लोगों को पागलखाने में डाल दिया गया. मां साहेब के रिसालेदार नन्हें खान ने पॉलिटिकल एजेंट से बात की.
उन्होंने मिस्टर फ्लिंक से कहा कि झांसी रानी साहिबा का बच्चा अभी 9-10 साल का है. रानी साहिबा के बाद उसे जंगलों में जानवरों जैसी जिंदगी काटनी पड़ रही है. बच्चे से तो सरकार को कोई नुक्सान नहीं. इसे छोड़ दीजिए पूरा मुल्क आपको दुआएं देगा.
फ्लिंक एक दयालु आदमी थे, उन्होंने सरकार से हमारी पैरवी की. वहां से हम अपने विश्वस्तों के साथ इंदौर के कर्नल सर रिचर्ड शेक्सपियर से मिलने निकल गए. हमारे पास अब कोई पैसा बाकी नहीं था.
सफर का खर्च और खाने के जुगाड़ के लिए मां साहेब के 32 तोले के दो तोड़े हमें देने पड़े. मां साहेब से जुड़ी वही एक आखिरी चीज हमारे पास थी.
इसके बाद 5 मई 1860 को दामोदर राव को इंदौर में 10,000 सालाना की पेंशन अंग्रेजों ने बांध दी. उन्हें सिर्फ सात लोगों को अपने साथ रखने की इजाजत मिली. ब्रिटिश सरकार ने सात लाख रुपए लौटाने से भी इंकार कर दिया.
दामोदर राव के असली पिता की दूसरी पत्नी ने उनको बड़ा किया. 1879 में उनके एक लड़का लक्ष्मण राव हुआ.दामोदर राव के दिन बहुत गरीबी और गुमनामी में बीते। इसके बाद भी अंग्रेज उन पर कड़ी निगरानी रखते थे। दामोदर राव के साथ उनके बेटे लक्ष्मणराव को भी इंदौर से बाहर जाने की इजाजत नहीं थी।
इनके परिवार वाले आज भी इंदौर में ‘झांसीवाले’ सरनेम के साथ रहते हैं. रानी के एक सौतेला भाई चिंतामनराव तांबे भी था. तांबे परिवार इस समय पूना में रहता है. झाँसी के रानी के वंशज इंदौर के अलावा देश के कुछ अन्य भागों में रहते हैं। वे अपने नाम के साथ झाँसीवाले लिखा करते हैं। जब दामोदर राव नेवालकर 5 मई 1860 को इंदौर पहुँचे थे तब इंदौर में रहते हुए उनकी चाची जो दामोदर राव की असली माँ थी। बड़े होने पर दामोदर राव का विवाह करवा देती है लेकिन कुछ ही समय बाद दामोदर राव की पहली पत्नी का देहांत हो जाता है। दामोदर राव की दूसरी शादी से लक्ष्मण राव का जन्म हुआ। दामोदर राव का उदासीन तथा कठिनाई भरा जीवन 28 मई 1906 को इंदौर में समाप्त हो गया। अगली पीढ़ी में लक्ष्मण राव के बेटे कृष्ण राव और चंद्रकांत राव हुए। कृष्ण राव के दो पुत्र मनोहर राव, अरूण राव तथा चंद्रकांत के तीन पुत्र अक्षय चंद्रकांत राव, अतुल चंद्रकांत राव और शांति प्रमोद चंद्रकांत राव हुए।
दामोदर राव चित्रकार थे उन्होंने अपनी माँ के याद में उनके कई चित्र बनाये हैं जो झाँसी परिवार की अमूल्य धरोहर हैं। 
उनके वंशज श्री लक्ष्मण राव तथा कृष्ण राव इंदौर न्यायालय में टाईपिस्ट का कार्य करते थे ! अरूण राव मध्यप्रदेश विद्युत मंडल से बतौर जूनियर इंजीनियर 2002 में सेवानिवृत्त हुए हैं। उनका बेटा योगेश राव सॅाफ्टवेयर इंजीनियर है। वंशजों में प्रपौत्र अरुणराव झाँसीवाला, उनकी धर्मपत्नी वैशाली, बेटे योगेश व बहू प्रीति का धन्वंतरिनगर इंदौर में सामान्य नागरिक की तरह माध्यम वर्ग परिवार हैं। 
कांग्रेस के चाटुकारों ने तो सिर्फ नेहरू परिवार की ही गाथा गाई है इन लोगों को तो भुला ही दिया गया है जिन्होंने असली लड़ाई लड़ी थी अंग्रेजो के खिलाफ आइए इस को आगे पीछे बढ़ाएं और लोगों को सच्चाई से अवगत कराए l

Saturday, June 10, 2023

हेलेन और चन्द्रगुप्त.

जब यूनानी आक्रमणकारी सेल्यूकस सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य से हार गया और उसकी सेना बंदी बना ली गयी तब उसने अपनी अतिसुंदर पुत्री हेलेन के विवाह का प्रस्ताव सम्राट चन्द्रगुप्त के पास भेजा..

हेलेन,सेल्यूकस की सबसे छोटी अतिसुंदर पुत्री थी उसके विवाह का प्रस्ताव मिलने पर आचार्य चाणक्य ने सम्राट चन्द्रगुप्त से उसका विवाह कराया था..!!

पर उन्होंने विवाह से पहले हेलेन और चन्द्रगुप्त से कुछ शर्ते रखीं थीं,जिस पर ही उन दोनों का विवाह हुआ था

पहली शर्त यह थी कि उन दोनों के संसर्ग से उत्पन्न संतान उनके राज्य की उत्तराधिकारी नहीं होगी

और कारण बताया कि हेलेन एक विदेशी महिला है, भारत के पूर्वजों से उसका कोई नाता नहीं है भारतीय संस्कृति से हेलेन पूर्णतः अनभिज्ञ है

दूसरा कारण बताया की हेलेन विदेशी शत्रुओं की बेटी है। उसकी निष्ठा कभी भी भारत के साथ नहीं हो सकती 

तीसरा कारण बताया की हेलेन का बेटा विदेशी माँ का पुत्र होने के नाते उसके प्रभाव से कभी मुक्त नहीं हो पायेगा और भारतीय माटी, भारतीय लोगों के प्रति कभी भी पूर्ण निष्ठावान नहीं हो पायेगा

एक और शर्त आचार्य चाणक्य ने हेलेन के सामने रखी थी कि वह कभी भी चन्द्रगुप्त के राजकार्य में हस्तक्षेप नहीं करेगी और राजनीति और प्रशासनिक अधिकार से पूर्णतया दूर रहेगी
परन्तु गृहस्थ जीवन में हेलेन का पूर्ण अधिकार होगा

विचार कीजिए .. भारत ही नहीं विश्वभर में आचार्य चाणक्य जैसा कूटनीतिज्ञ और महान नीतिकार राजनीतिज्ञ आज तक कोई दूसरा नहीं हुआ 

किन्तु दुर्भाग्य देखिए आज देश को वर्तमान में एक ऐसी ही महिला का कुपुत्र प्राप्त हुआ है,जो कभी भी भारत और भारतीय नागरिकों के हितों की चिन्ता नहीं करता,विदेशों में जाकर सदैव भारत एवं भारतीयों के विरुद्ध निरन्तर जहर उगलता रहता है।

Thursday, June 8, 2023

40 वर्ष तक के कार्यकाल में 42 युद्ध लड़े

जिस व्यक्ति ने अपनी आयु के 20 वे वर्ष में पेशवाई के सूत्र संभाले हों,||
40 वर्ष  तक के कार्यकाल में 42 युद्ध लड़े हों और सभी जीते हों यानि जो सदा "अपराजेय" रहा हो,||
जिसके एक युद्ध को अमेरिका जैसा राष्ट्र अपने सैनिकों को पाठ्यक्रम के रूप में पढ़ा रहा हो ..ऐसे 'परमवीर' को आप क्या कहेंगे ...?
आप उसे नाम नहीं दे पाएंगे ..क्योंकि आपका उससे परिचय ही नहीं,||
सन 18 अगस्त सन् 1700 में जन्मे उस महान पराक्रमी पेशवा का नाम है -
 " बाजीराव पेशवा "||

"अगर मुझे पहुँचने में देर हो गई तो इतिहास लिखेगा कि एक राजपूत ने मदद मांगी और ब्राह्मण भोजन करता
 रहा||"
ऐसा कहते हुए भोजन की थाली छोड़कर बाजीराव अपनी सेना के साथ राजा छत्रसाल की मदद को बिजली की गति से दौड़ पड़े,||

धरती के महानतम योद्धाओं में से एक , अद्वितीय , अपराजेय और अनुपम योद्धा थे बाजीराव बल्लाल,||

छत्रपति शिवाजी महाराज का हिन्दवी स्वराज का सपना जिसे पूरा कर दिखाया तो सिर्फ - बाजीराव बल्लाल भट्ट जी ने,||

अटक से कटक तक , कन्याकुमारी से सागरमाथा तक केसरिया लहराने का और हिंदू स्वराज लाने के सपने को पूरा किया पेशवा 'बाजीराव प्रथम' ने,||

इतिहास में शुमार अहम घटनाओं में एक यह भी है कि दस दिन की दूरी बाजीराव ने केवल पांच सौ घोड़ों के साथ 48 घंटे में पूरी की, बिना रुके, बिना थके,||

देश के इतिहास में ये अब तक दो आक्रमण ही सबसे तेज माने गए हैं,||
 एक अकबर का फतेहपुर से गुजरात के विद्रोह को दबाने के लिए नौ दिन के अंदर वापस गुजरात जाकर हमला करना और दूसरा बाजीराव का दिल्ली पर हमला,||

बाजीराव दिल्ली तक चढ़ आए थे,||
 आज जहां तालकटोरा स्टेडियम है, वहां बाजीराव ने डेरा डाल दिया,||
 उन्नीस-बीस साल के उस युवा ने मुगल ताकत को दिल्ली और उसके आसपास तक समेट दिया था,||

तीन दिन तक दिल्ली को बंधक बनाकर रखा,||
 मुगल बादशाह की लाल किले से बाहर निकलने की हिम्मत ही नहीं हुई,||
यहां तक कि 12वां मुगल बादशाह और औरंगजेब का नाती दिल्ली से बाहर भागने ही वाला था कि उसके लोगों ने बताया कि जान से मार दिए गए तो सल्तनत खत्म हो जाएगी,||
 वह लाल किले के अंदर ही किसी अति गुप्त तहखाने में छिप गया,||
बाजीराव मुगलों को अपनी ताकत दिखाकर वापस लौट गए,||

हिंदुस्तान के इतिहास के बाजीराव बल्लाल अकेले ऐसे योद्धा थे जिन्होंने अपनी मात्र 40 वर्ष की आयु में 42 बड़े युद्ध लड़े और

Monday, June 5, 2023

भारत में सेवा करने वाले ब्रिटिश अधिकारि.

भारत में सेवा करने वाले ब्रिटिश अधिकारियों को इंग्लैंड लौटने पर सार्वजनिक पद/जिम्मेदारी नहीं दी जाती थी। तर्क यह था कि उन्होंने एक गुलाम राष्ट्र पर शासन किया है जिसकी वजह से उनके दृष्टिकोण और व्यवहार में फर्क आ गया होगा। अगर उनको यहां ऐसी जिम्मेदारी दी जाए, तो वह आजाद ब्रिटिश नागरिकों के साथ भी उसी तरह से ही व्यवहार करेंगे। इस बात को समझने के लिए नीचे दिया गया वाकया जरूर पढ़ें...

एक ब्रिटिश महिला जिसका पति ब्रिटिश शासन के दौरान पाकिस्तान और भारत में एक सिविल सेवा अधिकारी था। महिला ने अपने जीवन के कई साल भारत के विभिन्न हिस्सों में बिताए, अपनी वापसी पर उन्होंने अपने संस्मरणों पर आधारित एक सुंदर पुस्तक लिखी।

महिला ने लिखा कि जब मेरे पति एक जिले के डिप्टी कमिश्नर थे तो मेरा बेटा करीब चार साल का था और मेरी बेटी एक साल की थी। डिप्टी कलेक्टर को मिलने वाली कई एकड़ में बनी एक हवेली में रहते थे। सैकड़ों  लोग डीसी के घर और परिवार की सेवा में लगे रहते थे। हर दिन पार्टियां होती थीं, जिले के बड़े जमींदार हमें अपने शिकार कार्यक्रमों में आमंत्रित करने में गर्व महसूस करते थे और हम जिसके पास जाते थे, वह इसे सम्मान मानता था। हमारी शान और शौकत ऐसी थी कि ब्रिटेन में महारानी और शाही परिवार भी मुश्किल से मिलती होगी।

ट्रेन यात्रा के दौरान डिप्टी कमिश्नर के परिवार के लिए नवाबी ठाट से लैस एक आलीशान कंपार्टमेंट आरक्षित किया जाता था। जब हम ट्रेन में चढ़ते तो सफेद कपड़े वाला ड्राइवर दोनों हाथ बांधकर हमारे सामने खड़ा हो जाता और यात्रा शुरू करने की अनुमति मांगता। अनुमति मिलने के बाद ही ट्रेन चलने लगती।

एक बार जब हम यात्रा के लिए ट्रेन में सवार हुए, तो परंपरा के अनुसार, ड्राइवर आया और अनुमति मांगी। इससे पहले कि मैं कुछ बोल पाती, मेरे बेटे का किसी कारण से मूड खराब था। उसने ड्राइवर को गाड़ी न चलाने को कहा।  ड्राइवर ने हुक्म बजा लाते हुए कहा, जो हुक्म छोटे सरकार। कुछ देर बाद स्टेशन मास्टर समेत पूरा स्टाफ इकट्ठा हो गया और मेरे चार साल के बेटे से भीख मांगने लगा, लेकिन उसने ट्रेन को चलाने से मना कर दिया। आखिरकार, बड़ी मुश्किल से, मैंने अपने बेटे को कई चॉकलेट के वादे पर ट्रेन चलाने के लिए राजी किया और यात्रा शुरू हुई।

कुछ महीने बाद, वह महिला अपने दोस्तों और रिश्तेदारों से मिलने यूके लौट आई। वह जहाज से लंदन पहुंचे, उनकी रिहाइश वेल्स में एक काउंटी में थी जिसके लिए उन्हें ट्रेन से यात्रा करनी थी। वह महिला स्टेशन पर एक बेंच पर अपनी बेटी और बेटे को बैठाकर टिकट लेने चली गई। लंबी कतार के कारण बहुत देर हो चुकी थी, जिससे उस महिला का बेटा बहुत परेशान हो गया था। जब वह ट्रेन में चढ़े तो आलीशान कंपाउंड की जगह फर्स्ट क्लास की सीटें देखकर उस बच्चे को फिर गुस्सा आ गया।

ट्रेन ने समय पर यात्रा शुरू की तो वह बच्चा लगातार चीखने-चिल्लाने लगा। वह ज़ोर से कह रहा था, "यह कैसा उल्लू का पट्ठा ड्राइवर है। उसने हमारी अनुमति के बिना  ट्रेन चलाना शुरू कर दी है। मैं पापा को बोल कर इसे जूते लगवा लूंगा।" महिला को बच्चे को यह समझाना मुश्किल हो रहा था कि यह उसके पिता का जिला नहीं है, यह एक स्वतंत्र देश है। यहां डिप्टी कमिश्नर जैसा तीसरे दर्जे का सरकारी अफसर तो क्या प्रधानमंत्री और राजा को भी यह अख्तियार नहीं है कि वह लोगों को अपने अहंकार को संतुष्ट करने के लिए अपमानित कर सके।

आज भले ही हमने अंग्रेजों को खदेड़ दिया है लेकिन हमने गुलामी को अभी तक देश बदर नहीं किया। आज भी कई अधिकारी, एसपी, मंत्री, सलाहकार और राजनेता अपने अहंकार को संतुष्ट करने के लिए आम लोगों को घंटों सड़कों पर परेशान करते हैं।

प्रोटोकॉल आम जनता की सुविधा के लिए होना चाहिए, ना कि उनके लिए परेशानी का कारण।

Copied from अमित भदौरिया मुखिया कांयछी

Sunday, June 4, 2023

सिन्धु घाटी की लिपि : क्यों अंग्रेज़ और कम्युनिस्ट इतिहासकार नहीं चाहते थे कि इसे पढ़ाया जाए!

▪️इतिहासकार अर्नाल्ड जे टायनबी ने कहा था - विश्व के इतिहास में अगर किसी देश के इतिहास के साथ सर्वाधिक छेड़ छाड़ की गयी है, तो वह भारत का इतिहास ही है।

भारतीय इतिहास का प्रारम्भ सिन्धु घाटी की सभ्यता से होता है, इसे हड़प्पा कालीन सभ्यता या सारस्वत सभ्यता भी कहा जाता है। बताया जाता है, कि वर्तमान सिन्धु नदी के तटों पर 3500 BC (ईसा पूर्व) में एक विशाल नगरीय सभ्यता विद्यमान थी। मोहनजोदारो, हड़प्पा, कालीबंगा, लोथल आदि इस सभ्यता के नगर थे।

पहले इस सभ्यता का विस्तार सिंध, पंजाब, राजस्थान और गुजरात आदि बताया जाता था, किन्तु अब इसका विस्तार समूचा भारत, तमिलनाडु से वैशाली बिहार तक, आज का पूरा पाकिस्तान एवं अफगानिस्तान तथा (पारस) ईरान का हिस्सा तक पाया जाता है। अब इसका समय 7000 BC  से भी प्राचीन पाया गया है।

इस प्राचीन सभ्यता की सीलों, टेबलेट्स और बर्तनों पर जो लिखावट पाई जाती है उसे सिन्धु घाटी की लिपि कहा जाता है। इतिहासकारों का दावा है, कि यह लिपि अभी तक अज्ञात है, और पढ़ी नहीं जा सकी। जबकि सिन्धु घाटी की लिपि से समकक्ष और तथाकथित प्राचीन सभी लिपियां जैसे इजिप्ट, चीनी, फोनेशियाई, आर्मेनिक, सुमेरियाई, मेसोपोटामियाई आदि सब पढ़ ली गयी हैं।

आजकल कम्प्यूटरों की सहायता से अक्षरों की आवृत्ति का विश्लेषण कर मार्कोव विधि से प्राचीन भाषा को पढना सरल हो गया है।

सिन्धु घाटी की लिपि को जानबूझ कर नहीं पढ़ा गया और न ही इसको पढने के सार्थक प्रयास किये गए।
भारतीय इतिहास अनुसन्धान परिषद (Indian Council of Historical Research) जिस पर पहले अंग्रेजो और फिर कम्युनिस्टों का कब्ज़ा रहा, ने सिन्धु घाटी की लिपि को पढने की कोई भी विशेष योजना नहीं चलायी।

आखिर ऐसा क्या था सिन्धु घाटी की लिपि में? अंग्रेज और कम्युनिस्ट इतिहासकार क्यों नहीं चाहते थे, कि सिन्धु घाटी की लिपि को पढ़ा जाए?

अंग्रेज और कम्युनिस्ट इतिहासकारों की नज़रों में सिन्धु घाटी की लिपि को पढने में निम्नलिखित खतरे थे -

1. सिन्धु घाटी की लिपि को पढने के बाद उसकी प्राचीनता और अधिक पुरानी सिद्ध हो जायेगी। इजिप्ट, चीनी, रोमन, ग्रीक, आर्मेनिक, सुमेरियाई, मेसोपोटामियाई से भी पुरानी. जिससे पता चलेगा, कि यह विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यता है। भारत का महत्व बढेगा जो अंग्रेज और कम्युनिस्ट इतिहासकारों को बर्दाश्त नहीं होगा।
2. सिन्धु घाटी की लिपि को पढने से अगर वह वैदिक सभ्यता साबित हो गयी तो अंग्रेजो और कम्युनिस्टों द्वारा फैलाये गए आर्य- द्रविड़ युद्ध वाले प्रोपगंडा के ध्वस्त हो जाने का डर है।

3. अंग्रेज और कम्युनिस्ट इतिहासकारों द्वारा दुष्प्रचारित ‘आर्य बाहर से आई हुई आक्रमणकारी जाति है और इसने यहाँ के मूल निवासियों अर्थात सिन्धु घाटी के लोगों को मार डाला व भगा दिया और उनकी महान सभ्यता नष्ट कर दी। वे लोग ही जंगलों में छुप गए, दक्षिण भारतीय (द्रविड़) बन गए, शूद्र व आदिवासी बन गए’, आदि आदि गलत साबित हो जायेगा।

कुछ फर्जी इतिहासकार सिन्धु घाटी की लिपि को सुमेरियन भाषा से जोड़ कर पढने का प्रयास करते रहे तो कुछ इजिप्शियन भाषा से, कुछ चीनी भाषा से, कुछ इनको मुंडा आदिवासियों की भाषा, और तो और, कुछ इनको ईस्टर द्वीप के आदिवासियों की भाषा से जोड़ कर पढने का प्रयास करते रहे। ये सारे प्रयास असफल साबित हुए।

सिन्धु घाटी की लिपि को पढने में निम्लिखित समस्याए बताई जाती है - 
सभी लिपियों में अक्षर कम होते है, जैसे अंग्रेजी में 26, देवनागरी में 52 आदि, मगर सिन्धु घाटी की लिपि में लगभग 400 अक्षर चिन्ह हैं। सिन्धु घाटी की लिपि को पढने में यह कठिनाई आती है, कि इसका काल 7000 BC से 1500 BC तक का है, जिसमे लिपि में अनेक परिवर्तन हुए साथ ही लिपि में स्टाइलिश वेरिएशन बहुत पाया जाता है। लेखक ने लोथल और कालीबंगा में सिन्धु घाटी व हड़प्पा कालीन अनेक पुरातात्विक साक्षों का अवलोकन किया।

भारत की प्राचीनतम लिपियों में से एक लिपि है जिसे ब्राह्मी लिपि कहा जाता है। इस लिपि से ही भारत की अन्य भाषाओँ की लिपियां बनी। यह लिपि वैदिक काल से गुप्त काल तक उत्तर पश्चिमी भारत में उपयोग की जाती थी। संस्कृत, पाली, प्राकृत के अनेक ग्रन्थ ब्राह्मी लिपि में प्राप्त होते है।

सम्राट अशोक ने अपने धम्म का प्रचार प्रसार करने के लिए ब्राह्मी लिपि को अपनाया। सम्राट अशोक के स्तम्भ और शिलालेख ब्राह्मी लिपि में लिखे गए और सम्पूर्ण भारत में लगाये गए।

सिन्धु घाटी की लिपि और ब्राह्मी लिपि में अनेक आश्चर्यजनक समानताएं है। साथ ही ब्राह्मी और तमिल लिपि का भी पारस्परिक सम्बन्ध है। इस आधार पर सिन्धु घाटी की लिपि को पढने का सार्थक प्रयास सुभाष काक और इरावाथम महादेवन ने किया।

सिन्धु घाटी की लिपि के लगभग 400 अक्षर के बारे में यह माना जाता है, कि इनमे कुछ वर्णमाला (स्वर व्यंजन मात्रा संख्या), कुछ यौगिक अक्षर और शेष चित्रलिपि हैं। अर्थात यह भाषा अक्षर और चित्रलिपि का संकलन समूह है। विश्व में कोई भी भाषा इतनी सशक्त और समृद्ध नहीं जितनी सिन्धु घाटी की भाषा।

बाएं लिखी जाती है, उसी प्रकार ब्राह्मी लिपि भी दाएं से बाएं लिखी जाती है। सिन्धु घाटी की लिपि के लगभग 3000 टेक्स्ट प्राप्त हैं।

इनमे वैसे तो 400 अक्षर चिन्ह हैं, लेकिन 39 अक्षरों का प्रयोग 80 प्रतिशत बार हुआ है। और ब्राह्मी लिपि में 45 अक्षर है। अब हम इन 39 अक्षरों को ब्राह्मी लिपि के 45 अक्षरों के साथ समानता के आधार पर मैपिंग कर सकते हैं और उनकी ध्वनि पता लगा सकते हैं।

ब्राह्मी लिपि के आधार पर सिन्धु घाटी की लिपि पढने पर सभी संस्कृत के शब्द आते है जैसे - श्री, अगस्त्य, मृग, हस्ती, वरुण, क्षमा, कामदेव, महादेव, कामधेनु, मूषिका, पग, पंच मशक, पितृ, अग्नि, सिन्धु, पुरम, गृह, यज्ञ, इंद्र, मित्र आदि।

निष्कर्ष यह है कि -
1. सिन्धु घाटी की लिपि ब्राह्मी लिपि की पूर्वज लिपि है।
2. सिन्धु घाटी की लिपि को ब्राह्मी के आधार पर पढ़ा जा सकता है।
3. उस काल में संस्कृत भाषा थी जिसे सिन्धु घाटी की लिपि में लिखा गया था।
4. सिन्धु घाटी के लोग वैदिक धर्म और संस्कृति मानते थे।
5. वैदिक धर्म अत्यंत प्राचीन है।
हिन्दू सभ्यता विश्व की सबसे प्राचीन व मूल सभ्यता है, हिन्दुओं का मूल निवास सप्त सैन्धव प्रदेश (सिन्धु सरस्वती क्षेत्र) था जिसका विस्तार ईरान से सम्पूर्ण भारत देश था।वैदिक धर्म को मानने वाले कहीं बाहर से नहीं आये थे और न ही वे आक्रमणकारी थे। आर्य - द्रविड़ जैसी कोई भी दो पृथक जातियाँ नहीं थीं जिनमे परस्पर युद्ध हुआ हो।

Sunday, May 28, 2023

वीरसावरकर.

एक महान लेखक जिनकी पुस्तकों को उनके प्रकाशन से पहले दो देशों की सरकारों ने प्रतिबंधित कर दिया था।

वीर सावरकर पहले क्रांतिकारी राष्ट्रभक्त स्वातंत्र्य वीर थे जिनके मरणोपरांत 26 फरवरी 2003 को उसी संसद में मूर्ति लगी जिसमे कभी उनके निधन पर शोक प्रस्ताव भी रोका गया था

सावरकर भारत के पहले व्यक्ति थे जिन्होंने 1857 की लड़ाई को भारत का 'स्वाधीनता संग्राम' बताते हुए लगभग एक हज़ार पृष्ठों का इतिहास 1907 में लिखा

 

वीर सावरकर पहले भारतीय थे जिसने सन् 1906 में ‘स्वदेशी’ का नारा दे, विदेशी कपड़ों की होली जलाई थी। 

वीर सावरकर पहले भारतीय थे जिन्होंने पूर्ण स्वतंत्रता की मांग की।

सावरकर ने ही वह पहला भारतीय झंडा बनाया था, जिसे जर्मनी में 1907 की अंतर्राष्ट्रीय सोशलिस्ट कांग्रेस में मैडम कामा ने फहराया था।

बाल गंगाधर तिलक की पार्टी स्वराज में कुछ दिन रहने के बाद सावरकर ने हिंदू महासभा नाम की अलग पार्टी बना ली। इसके बाद 1937 में भारतीय हिंदू महासभा के अध्यक्ष बने और आगे जाकर भारत छोड़ो आंदोलन का हिस्सा बने।

वीर सावरकर पहले ऐसे क्रांतिकारी थे जिन्होंने विदेशी वस्त्रों का दहन किया,तब बाल गंगाधर तिलक ने अपने पत्र केसरी में उनको शिवाजी के समान बताकर उनकी प्रशंसा की थी

वीर सावरकर ऐसे पहले बैरिस्टर थे जिन्होंने 1909 में ब्रिटेन में ग्रेज-इन परीक्षा पास करने के बाद ब्रिटेन के राजा के प्रति वफादार होने की शपथ नही ली... इस कारण उन्हें बैरिस्टर होने की उपाधि का पत्र कभी नही दिया गया

वीर सावरकर पहले ऐसे लेखक थे जिन्होंने अंग्रेजों द्वारा ग़दर कहे जाने वाले संघर्ष को '1857 का स्वातंत्र्य समर' नामक ग्रन्थ लिखकर सिद्ध कर दिया

'1857 का स्वातंत्र्य समर' विदेशों में छापा गया और भारत में भगत सिंहने इसे छपवाया था जिसकी एक एक प्रति तीन-तीन सौ रूपये में बिकी थी... भारतीय क्रांतिकारियों के लिए यह पवित्र गीता थी... पुलिस छापों में देशभक्तों के घरों में यही पुस्तक मिलती थी

सावरकर पहले क्रान्तिकारी थे जिनका मुकद्दमा अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय हेग में चला, मगर ब्रिटेन और फ्रांस की मिलीभगत के कारण उनको न्याय नही मिला और बंदीबनाकर भारत लाया गया..

हिन्दू को परिभाषित करते हुए लिखा कि-'आसिन्धु: सिन्धुपर्यन्ता यस्य भारत भूमिका| पितृभू: पुण्यभूश्चैव स वै हिन्दुरिती स्मृतः.'अर्थात समुद्र से हिमालय तक भारत भूमि जिसकी पितृभू है जिसके पूर्वज यहीं पैदा हुए हैं व यही पुण्यभू है, जिसके तीर्थ भारत भूमि में ही हैं,

वीर सावरकर पहले ऐसे राष्ट्रभक्त हुए जिनके शिलालेख को अंडमान द्वीप की सेल्युलर जेल के कीर्ति स्तम्भ से UPA सरकार के मंत्री मणिशंकर अय्यर ने हटवा दिया था और उसकी जगह गांधी का शिलालेख लगवा दिया 

वे एक महान क्रांतिकारी, इतिहासकार, समाज सुधारक, विचारक, चिंतक, साहित्यकार थे, जिनसे अंग्रेजी सत्ता भयभीत थी

सावरकर वह कवि थे, जिन्होंने कलम-काग़ज़ के बिना जेल की दीवारों पर पत्थर के टुकड़ों से कवितायें लिखीं.

उन्होंने अपनी रची दस हज़ार से भी अधिक पंक्तियों को प्राचीन वैदिक साधना के अनुरूप वर्षों स्मृति में सुरक्षित रखा, जब तक वह किसी न किसी तरह देशवासियों तक न पहुंच गई

वीर सावरकर को ब्रिटिश सरकार ने क्रान्ति कार्यों के लिए दो-दो आजन्म कारावास की सजा दी, जो विश्व के इतिहास की पहली एवं अनोखी सजा थी.

साल 1937 में वे अखिल भारतीय हिन्दू महासभा के अहमदाबाद में हुए 19वें सत्र के अध्यक्ष चुने गये, जिसके बाद वे पुनः सात वर्षों के लिये अध्यक्ष चुने गये।

उस समय धार्मिक भजनों का पाठ करना केवल ब्राह्मणों का निजीकरण था। 1930 में, सावरकर ने पतितपावन मंदिर के परिसर में 'ऑल हिंदू गणपति महोत्सव' शुरू किया, जहां हिंदु के भंगी समुदाय के एक व्यक्ति द्वारा धार्मिक भजन सुनाए गए थे।

आजादी के लिए काम करने के लिए उन्होंने एक गुप्त सोसायटी बनाई थी, जो 'मित्र मेला' के नाम से जानी गई।

'इंडियन सोसियोलॉजिस्ट' और 'तलवार' में उन्होंने अनेक लेख लिखे, जो बाद में कोलकाता के 'युगांतर' में भी छपे।

वीर सावरकर 1911 से 1921 तक अंडमान जेल में रहे। 1921 में वे स्वदेश लौटे और फिर 3  साल जेल भोगी। जेल में 'हिन्दुत्व' पर शोध ग्रंथ लिखा

 

9 अक्टूबर 1942 को भारत की स्वतंत्रता के लिए चर्चिल को समुद्री तार भेजा और आजीवन अखंड भारत के पक्षधर रहे।

6 जुलाई 1920 को अपने भाई नारायण राव को लिखे एक पत्र में, सावरकर लिखते हैं "मुझे जातिगत भेदभाव और छुआछूत के खिलाफ बगावत करने की ज़रूरत है, जितना कि मुझे भारत के विदेशी कब्जे के खिलाफ लड़ने की ज़रूरत महसूस होती है"।

मंदिरों में अछूतों के लिए पहुंच प्रदान करने के लिए आंदोलन करते हुए उन्होंने उस विचार को जन के भीतर प्रचारित किया जिसमें कहा गया था कि 'वह भगवान जो अछूत द्वारा पूजा करने से अशुद्ध हो जाता है वह भगवान नहीं है।'

"भगवान की पूजा करना सभी जातियों के हिंदूओं का जन्म सिद्ध अधिकार है। इस अधिकार का प्रयोग करने की अनुमति देना वास्तविक धार्मिकता है।

अंडमान की सेल्यूलर जेल में रहते हुए उन्होंने बंदियों को शिक्षित करने का काम तो किया ही, साथ ही साथ वहां हिंदी के प्रचार-प्रसार हेतु काफी प्रयास किया।

सावरकर का हिंदुत्व धर्म पर नहीं अपितु हिंदुस्थान राष्ट्र के आधार पर था । इसलिए 26 फरवरी 1966 को उनके निधन के बाद एक लेख में लंदन टाइम्स ने उन्हें ‘पहला हिंदू राष्ट्रवादी’ करार दिया था।

मातृभूमि! तेरे चरणों में पहले ही मैं अपना मन अर्पित कर चुका हूँ। देश सेवा में ईश्वर सेवा है, यह मानकर मैंने तेरी सेवा के माध्यम से भगवान की सेवा की - वीर सावरकर

वे प्रथम क्रान्तिकारी थे, जिन पर स्वतंत्र भारत की सरकार ने झूठा मुकदमा चलाया और बाद में निर्दोष साबित होने पर माफी मांगी।

इनके नाम पर ही पोर्ट ब्लेयर के विमानक्षेत्र का नाम वीर सावरकर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा रखा गया है।

सावरकर 50 साल कैद की सजा सुनाए जाने के बाद भी उतने भावुक नहीं हुए, जितने कि उन्होंने 1931 में मंदिरों में अछूतों के प्रवेश से संबंधित एक गीत लिखा था। इस गीत का अनुवाद "मुझे भगवान की मूर्ति के दर्शन करने दो, भगवान की पूजा करने दो।" गीत लिखते समय उनकी आंखों से आंसू बह निकले।

मनुष्य की सम्पूर्ण शक्ति का मूल उसके अहम की प्रतीति में ही विद्यमान है।

मन सृष्टि के विधाता द्वारा मानव-जाति को प्रदान किया गया एक ऐसा उपहार है, जो मनुष्य के परिवर्तनशील जीवन की स्थितियों के अनुसार स्वयं अपना रूप और आकार भी बदल लेता है।

कष्ट ही तो वह चाक शक्ति है जो मनुष्य को कसौटी पर परखती है और उसे आगे बढ़ाती है।

कर्तव्य की निष्ठा संकटों को झेलने में, दुःख उठाने में और जीवन – भर संघर्ष करने में ही समाविष्ट है। यश – अपयश तो मात्र योगायोग की बातें हैं।

Friday, May 26, 2023

उठता लहंगा, बढ़ती इज्जत ?

सन 1980 तक लड़कियाँ कालेज में साड़ी पहनती थी या फिर सलवार सूट। 
इसके बाद साड़ी पूरी तरह गायब हुई और सलवार सूट के साथ जीन्स आ गया। 
2005 के बाद सलवार सूट लगभग गायब हो गया और इसकी जगह Skin Tight काले सफेद #स्लैक्स आ गए, फिर 2010 तंक लगभग #पारदर्शी_स्लैक्स आ गए जिसमे #आंतरिक_वस्त्र पूरी तरह स्प्ष्ट दिखते हैं।

फिर सूट, जोकि पहले घुटने या जांघो के पास से 2 भाग मे कटा होता था, वो 2012 के बाद कमर से 2 भागों में बंट गया और 

फिर 2015 के बाद यह सूट लगभग ऊपर नाभि के पास से 2 भागो मे बंट गया, जिससे कि लड़की या महिला के नितंब पूरी तरह स्प्ष्ट दिखाई पड़ते हैं और 2 पहिया गाड़ी चलाती या पीछे बैठी महिला अत्यंत विचित्र सी दिखाई देती है, मोटी जाँघे, दिखता पेट।

आश्चर्य की बात यह है कि यह पहनावा कॉलेज से लेकर 40 वर्ष या ऊपर उम्र की महिलाओ में अब भी दिख रहा है। बड़ी उम्र की महिलायें छोटी लड़कियों को अच्छा सिखाने की बजाए उनसे बराबरी की होड़ लगाने लगी है। नकलची महिलाए, 

अब कुछ नया हो रहा 2018 मे, स्लैक्स ही कुछ Printed या रंग बिरंगा सा हो गया और सूट अब कमर तक आकर समाप्त हो गया यानि उभरे हुए नितंब अब आपके दर्शन हेतु प्रस्तुत है।

साथ ही कॉलेजी लड़कियों या बड़ी महिलाओ मे एक नया ट्रेंड और आ गया, स्लैक्स अब पिंडलियों तंक पहुच गया, कट गया है नीचे से

(पुरुषों की वेशभूषा में पिछले 40 वर्ष मे कोई उल्लेखनीय परिवर्तन नही हुआ) 

पहले पुरुष साधारण या कम कपड़े पहनते थे, नारी सौम्यता पूर्वक अधिक कपड़े पहनती थी, पर अब टीवी सीरियलों, फिल्मों की चपेट में आकर हिन्दू नारी के आधे कपड़े स्वयं को Modern बनने में उतर चुके हैं।

यूरोप द्वारा प्रचारित #नंगेपन के षडयंत्र की सबसे आसान शिकार, भारत की मॉडर्न महिलाए है, जो फैशन के नाम पर खुद को नंगा करने के प्रति वेहद गंभीर है, पर उन्हें यह ज्ञात नहीं कि वो जिसकी नकल कर इस रास्ते पर चल पड़ी है, उनको इस नंगापन के लिए विज्ञापनों में करोड़ो डॉलर मिलते है। उन्हें कपडे न पहनने के पैसे मिलते हैं। 

यहाँ कुछ महिलाए सोचेंगी की हमे क्या पहनना है ये हम तय करेंगे कोई और नहीं, तो आप अपनी जगह बिलकुल सही हैं, लेकिन ज़रा सोचिये यदि आप ऐसे कपडे पहनती हैं जिसके कारण आप खुद को असहज महसूस करती हो, ऐसे दिखावे के कपडे पहनने से क्या फायदा?

कल्याण - नारी अंक, गीताप्रेस अवश्य पढ़ें।
यह पोस्ट केवल हमारी बहु, बेटियों, माताओं, बहनों को यूरोप द्वारा प्रचारित नंगेपन के षडयंत्र का शिकार बननें से रोकने के लिए है, यदि इस पोस्ट को आप अपनें बहनों, बेटियों से शेयर करें तो हो सकता है, हमारा आनें वाला समाज प्रगति की ओर तत्पर होवे। 

और हां सुनो लडकियों/महिलाओं जो आपके शुभचिंतक हैं वही चाहते हैं कि आप मर्यादा मे सुशोभित और सुसज्जित रहें आप की तरफ कोई  नजर उठाकर ना देखे वरना दुनिया तो नंगा ही देखना चाहती है

Note-अगर कम कपड़े पहनना ही मॉडर्न होना है 
तो जानवर इसमें आप से बहुत आगे हैं-
ओर तो ओर जो माता है, माताएं सासू है वहीं अपनी बेटी -बहू से अगं प्रदर्शन या भारतीय संस्कृति परिधान पहनने से हिचकिचाते हैं,या पिछड़ापन लगता है।ऐसी माताएं आपने अधिनस्थ को क्या कह सकती है ।

आज ही पता चला खांग्रेस की छटपटाहट का कारण.

नरेंद्र मोदी ने इलाहाबाद संग्रहालय में रखा हुआ “सेंगोल” निकाल कर लोकसभा में स्थापित करने का निर्णय किया है।

यह “सेंगोल” सनातन संस्कृति का चिन्ह है जो 800 वर्ष तक राज करने वाले “चोला राजवंश” की निशानी है और जो राज चलाने के लिए मार्गदर्शन करता था राजवंश के राजाओं का।

नेहरू ने इसे स्वीकार तो कर लिया परंतु क्योंकि यह सनातन की निशानी था, इसे लोकसभा में स्थापित न करके संग्रहालय में रखवा दिया और किसी को इसके बारे में जानकारी ही नहीं हुई।

गयासुद्दीन नेहरू ने न्यायप्रिय शासन संचालन के लिए अंग्रेजों से सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में सैंगोल ग्रहण किया था, उसके बाद प्रधानमंत्री बने। इस परंपरा को क्यों भुला दिया गया? यह नेहरू और कांग्रेस के लिए फिर से एक बड़ा प्रश्न बनकर सामने आ गया है।

इससे भी बड़ी दुख की बात है कि सैंगोल के शीर्ष पर भोले बाबा के अनन्य भक्त नंदी की मूरत बनी हुई है। जब मोदी जी सैंगोल स्वीकार कर शासन पीठ के समक्ष इसे स्थापित करेंगे, तो एक बार फिर भारत की तथाकथित धर्मनिरपेक्षता पर प्रश्न खड़ा हो जाएगा। लेकिन इस प्रश्न के लिए भी कौन उत्तरदाई है, गयासुद्दीन नेहरू.

#सेंगोल का अर्थ कर्तव्यपरायणता होता है। यह एक #राजदंड है। शिवभक्त महाशक्ति चोल राजा अपने 500 वर्ष के लंबे शासनकाल में सत्ता हस्तांतरित करते थे।
यह पवित्र राजदंड वैदिक #पुजारियों द्वारा पहले गंगाजल से पवित्र किया जाता है। फिर क्रमशः शासक को सौंपते हैं। उत्तरापथ में राजमुकुट से सत्ता हस्तांतरित होती है।

1947 में राजगोपालाचारी के अनुरोध पर कि भारतीय संस्कृति में सत्ता हस्तांतरण एक प्रक्रिया से होती है, नेहरू तैयार हो गये।

चेन्नई के सोनारों ने एक पवित्र सेंगोल बनाया। जिसे पहले लाकर माउंटबेटन को दिया गया। फिर पुजारियों ने मंत्रोच्चार से इसे गंगाजल से पवित्र किया और नेहरू को सौंप दिया।

यह कार्य तमिलनाडु के शैव मठ थिवरुदुथुराई के महायाजकों ने संपन्न कराया गया था।

तमिलनाडु की कलाकार पद्मा सुब्रमण्यम ने जब प्रधानमंत्री को यह अवगत कराया तो उस सेंगोल की बहुत खोज हुई।
प्रयागराज के संग्रहालय में यह सेंगोल मिला। जो लिखा गया था वह कहने योग्य नहीं है। इसे संग्रहालय में नेहरू की छड़ी कहके रखा गया था।

सेंगोल पर गोल पृथ्वी बनी है। उस पर भगवान शिव के वाहन नंदी हैं। यह सनातन धर्म के राज्यधर्म का एक प्रतीक अब नई संसद में लोकसभा अध्यक्ष की पीठ के पास होगा।
प्रधानमंत्री ने अपनी सांस्कृतिक परंपरा में यह अमूल्य योगदान किया है।

Tuesday, May 23, 2023

ताइवान के लोग भारतीयों से नफरत करते हैं क्यों...?

जानना जरूरी है!

ताइवान में  करीब एक वर्ष बिताने पर एक भारतीय महानुभाव की कई लोगों से दोस्ती हो चुकी थी, परंतु फिर भी उन्हें लगा कि वहाँ के लोग उनसे कुछ दूरी बनाकर रखते हैं, वहाँ के किसी दोस्त ने कभी उन्हें अपने घर चाय के लिए तक नहीं बुलाया था...?

उन्हें यह बात बहुत अखर रही थी अतः आखिरकार उन्होंने एक करीबी दोस्त से पूछ ही लिया...?

थोड़ी टालमटोल करने के बाद उसने जो बताया, उसे सुनकर उस भारतीय महानुभाव के तो होश ही उड़ गए।

ताइवान वाले दोस्त ने पूछा, “200 वर्ष राज करने के लिए कितने ब्रिटिश भारत में रहे...?”

भारतीय महानुभाव ने कहा कि लगभग “10,000 रहे होंगे!”

तो फिर 32 करोड़ लोगों को यातनाएँ किसने दीं? वह आपके अपने ही तो लोग थे न...?

जनरल डायर ने जब "फायर" कहा था... तब 1300 निहत्थे लोगों पर गोलियाँ किसने दागी थीं? उस समय ब्रिटिश सेना तो वहाँ थी ही नहीं!

क्यों एक भी बंदूकधारी (सब के सब भारतीय) पीछे मुड़कर जनरल डायर को नहीं मार पाया...?

फिर उसने उन भारतीय महानुभाव से कहा, आप यह बताओ कि कितने मुगल भारत आए थे? उन्होंने कितने वर्ष तक भारत पर राज किया? और भारत को गुलाम बनाकर रखा! और आपके अपने ही लोगों को धर्म परिवर्तन करवाकर आप के ही खिलाफ खड़ा कर दिया!

जोकि 'कुछ' पैसे के लालच में, अपनों पर ही अत्याचार करने लगे! अपनों के साथ ही दुराचार करने लगे…!!

तो मित्र, आपके अपने ही लोग, कुछ पैसे के लिए, अपने ही लोगों को सदियों से मार रहे हैं...? आपके इस स्वार्थी धोखेबाज, दगाबाज, मतलबपरस्त, 'दुश्मनों से यारी और अपने भाईयों से गद्दारी'😢

इस प्रकार के व्यवहार एवं इस प्रकार की मानसिकता के लिए, हम भारतीय लोगों से सख्त नफ़रत करते हैं!

इसीलिए हमारी यही कोशिश रहती है कि यथासंभव, हम भारतीयों से सरोकार नहीं रखते...? उसने बताया कि, जब ब्रिटिश हांगकांग में आए तब एक भी व्यक्ति उनकी सेना में भरती नहीं हुआ क्योंकि उन्हें अपने ही लोगों के विरुद्ध लड़ना गवारा नहीं था...?

यह भारतीयों का दोगला चरित्र है, कि अधिकाँश भारतीय हर वक्त, बिना सोचे समझे, पूरी तरह बिकने के लिए तैयार रहते हैं...? और आज भी भारत में यही चल रहा है।

विरोध हो या कोई और मुद्दा, राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में और खुद के फायदों वाली गतिविधियों में भारत के लोग आज भी, राष्ट्र हित को हमेशा दोयम स्थान देते हैं, आप लोगों के लिए "मैं और मेरा परिवार" पहले रहता है "समाज और देश" जाए भाड़ में...?

Saturday, May 20, 2023

केरला की सच्ची स्टोरी*

वीरांगना नगेली कौन??* 

हम प्रत्येक शनिवार को महिला दिवस के रूप में मनाएंगे और क्रांतिकारी महिलाएं जैसे कि वीरांगना फूलन देवी और वीरांगना नगेली, वीरांगना झलकारी बाई कोरी को नमन करेंगें और उनके जीवन संघर्षों को जन जन तक पहुंचाने की कोशिश करेंगे। 

*‼️जब हिन्दू धर्म में महिलाओं को स्तन ढकने का भी  अधिकार नहीं था इसलिए स्तन ही काट दिया ‼️*

नंगेली का नाम केरल के बाहर शायद किसी ने न सुना हो. किसी स्कूल के इतिहास की किताब में उनका ज़िक्र या कोई तस्वीर भी नहीं मिलेगी.

लेकिन उनके साहस की मिसाल ऐसी है कि एक बार जानने पर कभी नहीं भूलेंगे, क्योंकि नंगेली ने स्तन ढकने के अधिकार के लिए अपने ही स्तन काट दिए थे.

केरल के इतिहास के पन्नों में छिपी ये लगभग सौ से डेढ़ सौ साल पुरानी कहानी उस समय की है जब केरल के बड़े भाग में त्रावणकोर के राजा का शासन था.

जातिवाद की जड़ें बहुत गहरी थीं और निचली जातियों की महिलाओं को उनके स्तन न ढकने का आदेश था. उल्लंघन करने पर उन्हें 'ब्रेस्ट टैक्स' यानी 'स्तन कर' देना पड़ता था.

डॉ.शीबा
केरल के श्री शंकराचार्य संस्कृत विश्वविद्यालय में जेंडर इकॉलॉजी और दलित स्टडीज़ की एसोसिएट प्रोफ़ेसर डॉ. शीबा केएम बताती हैं कि ये वो समय था जब पहनावे के कायदे ऐसे थे कि एक व्यक्ति को देखते ही उसकी जाति की पहचान की जा सकती थी.

डॉ. शीबा कहती हैं, "ब्रेस्ट टैक्स का मक़सद जातिवाद के ढांचे को बनाए रखना था. ये एक तरह से एक औरत के निचली जाति से होने की कीमत थी. इस कर को बार-बार अदा कर पाना इन ग़रीब समुदायों के लिए मुमकिन नहीं था."

केरल के हिंदुओं में जाति के ढांचे में नायर जाति को शूद्र माना जाता था जिनसे निचले स्तर पर एड़वा और फिर दलित समुदायों को रखा जाता था.

दलित समुदाय
उस दौर में दलित समुदाय के लोग ज़्यादातर खेतिहर मज़दूर थे और ये कर देना उनके बस के बाहर था. ऐसे में एड़वा और नायर समुदाय की औरतें ही इस कर को देने की थोड़ी क्षमता रखती थीं.

डॉ. शीबा के मुताबिक इसके पीछे सोच थी कि अपने से ऊंची जाति के आदमी के सामने औरतों को अपने स्तन नहीं ढकने चाहिए.

वो बताती हैं, "ऊंची जाति की औरतों को भी मंदिर में अपने सीने का कपड़ा हटा देना होता था, पर निचली जाति की औरतों के सामने सभी मर्द ऊंची जाति के ही थे. तो उनके पास स्तन ना ढकने के अलावा कोई विकल्प नहीं था."

इसी बीच एड़वा जाति की एक महिला, नंगेली ने इस कर को दिए बग़ैर अपने स्तन ढकने का फ़ैसला कर लिया.

केरल के चेरथला में अब भी इलाके के बुज़ुर्ग उस जगह का पता बता देते हैं जहां नंगेली रहती थीं.

मोहनन नारायण 
ऑटो चलाने वाले मोहनन नारायण हमें वो जगह दिखाने साथ चल पड़े. उन्होंने बताया, "कर मांगने आए अधिकारी ने जब नंगेली की बात को नहीं माना तो नंगेली ने अपने स्तन ख़ुद काटकर उसके सामने रख दिए."

लेकिन इस साहस के बाद ख़ून ज़्यादा बहने से नंगेली की मौत हो गई. बताया जाता है कि नंगेली के दाह संस्कार के दौरान उनके पति ने भी अग्नि में कूदकर अपनी जान दे दी.

नंगेली का जन्म स्थान
नंगेली की याद में उस जगह का नाम मुलच्छीपुरम यानी 'स्तन का स्थान' रख दिया गया. पर समय के साथ अब वहां से नंगेली का परिवार चला गया है और साथ ही इलाके का नाम भी बदलकर मनोरमा जंक्शन पड़ गया है.

बहुत कोशिश के बाद वहां से कुछ किलोमीटर की दूरी पर रह रहे नंगेली के पड़पोते मणियन वेलू का पता मिला.

मणियन
साइकिल किनारे लगाकर मणियन ने बताया कि नंगेली के परिवार की संतान होने पर उन्हें बहुत गर्व है.

उनका कहना था, "उन्होंने अपने लिए नहीं बल्कि सारी औरतों के लिए ये कदम उठाया था जिसका नतीजा ये हुआ कि राजा को ये कर वापस लेना पड़ा."

लेकिन इतिहासकार डॉ. शीबा ये भी कहती हैं कि इतिहास की किताबों में नंगेली के बारे में इतनी कम पड़ताल की गई है कि उनके विरोध और कर वापसी में सीधा रिश्ता कायम करना बहुत मुश्किल है.
वो कहती हैं, "इतिहास हमेशा पुरुषों की नज़र से लिखा गया है, पिछले दशकों में कुछ कोशिशें शुरू हुई हैं महिलाओं के बारे में जानकारी जुटाने की, शायद उनमें कभी नंगेली की बारी भी आ जाए और हमें उनके साहसी कदम के बारे में विस्तार से और कुछ पता चल पाए."

बैटरी सबसे पहले भारत मे बनी।

बैटरी बनाने की जो विधि है,जो आधुनिक विज्ञान ने भी स्वीकार कर रखी है,वो महर्षि अगस्त द्वारा दी गयी विधि है। 
महर्षि अगस्त ने सबसे पहले बैटरी बनाई थी और उसका विस्तार से वर्णन भी किया है अगस्तसंहिता मे। पूरा बैटरी बनाने की विधि या तकनीक उन्होंने दी है.माने जो सभ्यता बैटरी बनाना जानते हो वो विद्युत् के बारे मे भी जानते होंगे क्योंकि बैटरी ये ही करता है, कर्रेंट फ्लो के लिए ही हम उसका उपयोग करते है। ये अलग बात है के वो डायरेक्ट करेंट है और आज की दुनिया मे हम जो उपयोग करते है वो अल्टरनेटिव करेंट है। लेकिन डायरेक्ट कर्रेट का सबसे पहले जानकारी दुनिया को हुई तो वो भारत मे महर्षि अगस्त को ही है।

अगस्त्य संहिता में एक सूत्र हैः

संस्थाप्य मृण्मये पात्रे ताम्रपत्रं सुसंस्कृतम्‌।
छादयेच्छिखिग्रीवेन चार्दाभि: काष्ठापांसुभि:॥
दस्तालोष्टो निधात्वय: पारदाच्छादितस्तत:।
संयोगाज्जायते तेजो मित्रावरुणसंज्ञितम्‌॥

अर्थात् एक मिट्टी का बर्तन लें, उसमें अच्छी प्रकार से साफ किया गया ताम्रपत्र और शिखिग्रीवा (मोर के गर्दन जैसा पदार्थ अर्थात् कॉपरसल्फेट) डालें। फिर उस बर्तन को लकड़ी के गीले बुरादे से भर दें। उसके बाद लकड़ी के गीले बुरादे के ऊपर पारा से आच्छादित दस्त लोष्ट (mercuryamalgamated zinc sheet) रखे। इस प्रकार दोनों के संयोग से अर्थात् तारों के द्वारा जोड़ने पर मित्रावरुणशक्ति की उत्पत्ति होगी।

यहाँ पर उल्लेखनीय है कि यह प्रयोग करके भी देखा गया है जिसके परिणामस्वरूप 1.138 वोल्ट तथा 23 mA धारा वाली विद्युत उत्पन्न हुई। स्वदेशी विज्ञान संशोधन संस्था (नागपुर) के द्वारा उसके चौथे वार्षिक सभा में ७ अगस्त, १९९० को इस प्रयोग का प्रदर्शन भी विद्वानों तथा सर्वसाधारण के समक्ष किया गया।
अगस्त्य संहिता में आगे लिखा हैः
अनेन जलभंगोस्ति प्राणो दानेषु वायुषु।
एवं शतानां कुंभानांसंयोगकार्यकृत्स्मृत:॥

अर्थात सौ कुम्भों (अर्थात् उपरोक्त प्रकार से बने तथा श्रृंखला में जोड़े ! सौ सेलों) की शक्ति का पानी में प्रयोग करने पर पानी अपना रूप बदल कर प्राण वायु (ऑक्सीजन) और उदान वायु (हाइड्रोजन) में परिवर्तित हो जाएगा।

फिर लिखा गया हैः

वायुबन्धकवस्त्रेण निबद्धो यानमस्तके उदान स्वलघुत्वे बिभर्त्याकाशयानकम्‌।

अर्थात् उदान वायु (हाइड्रोजन) को बन्धक वस्त्र (air tight cloth) द्वारा निबद्ध किया जाए तो वह विमान विद्या (aerodynamics) के लिए प्रयुक्त किया जा सकता है।

स्पष्ट है कि यह आज के विद्युत बैटरी का सूत्र (Formula for Electric battery) ही है। साथ ही यह प्राचीन भारत में विमान विद्या होने की भी पुष्टि करता है।

इस प्रकार हम देखते हैं कि हमारे प्राचीन ग्रन्थों में बहुत सारे वैज्ञानिक प्रयोगों के वर्णन हैं, आवश्यकता है तो उन पर शोध करने की। किन्तु विडम्बना यह है कि हमारी शिक्षा ने हमारे प्राचीन ग्रन्थों पर हमारे विश्वास को ही समाप्त कर दिया है।

Wednesday, May 17, 2023

तो आंबेडकर ने अंग्रेजो के खिलाफ संघर्ष में सक्रिय हिस्सा क्यों नहीं लिया??

ये वो सवाल है जो भारतीय समाज की संरचना, इसमें मौजूद शोषण की संस्थाओं के वर्चस्व, इसकी कार्यात्मकता और डायनेमिक्स को समझने के अनिच्छुक लोग अक्सर पूछा करते हैं...... कुछ विस्तार से इस पर बात!
यूँ तो अपढ़ कुपढ़ बेपढ़ लोगों के ऐसे सवालों को महत्वपूर्ण मानने की कोई ज़रूरत नहीं होनी चाहिए, ऐसा कहा जा सकता है! लेकिन सवाल तो सवाल है और अक़्सर  अपरकास्ट के ठीक ठाक चेतना के लोग ये सवाल खड़ा करते रहते हैं और कई बार वो इसका जवाब जानने के लिये ये सवाल नहीं करते बल्कि इस सवाल के ज़रिये उत्पीड़ित सबऑलटर्न आइडेंटिटीस के पूरे आंदोलन को खारिज़ करने के लिये इसका इस्तेमाल करते हैं. 
कुछ समय पहले चर्चित लेखक अशोक कुमार पांडेय ने अपनी एक फेसबुक पोस्ट में अप्रत्यक्ष रूप से आंबेडकर पर निशाना साधते हुए लिखा कि स्वतंत्रता संघर्ष में भाग न लेने वाले और अंग्रेजों के यहां नौकरी करने वालों के वंशजों को भी शर्मिंदा होना चाहिए, उनके बेहूदा तर्क का मैंने उचित जवाब देने की कोशिश की आंबेडकर पर इस तरह हमला करने वाले धूर्त  ये नहीं देखते कि अंग्रेजों के यहां नौकरी करने से पहले आंबेडकर ने सैन्य सचिव के पद पर बड़ौदा राज्य में नौकरी की थी, जहाँ दुनिया के शीर्ष संस्थानों से उच्च शिक्षित आंबेडकर को सवर्ण चपरासी फ़ाइल फेंककर देते थे, सैन्य सचिव अपने ऑफिस में पानी नहीं पी सकता था, उन्हें कोई भी किराए पर आवास देने को तैयार नहीं था, बड़ौदा के राजा भी अपनी रियासत में आंबेडकर को घर नहीं दिला पाये! ऑफिसर्स क्लब में बड़ी मुश्किल से केवल एक मुस्लिम वेटर अलग बर्तनो में आंबेडकर को सर्व करने को तैयार था!
       ये सब देखने जानने और समझने से इंकार करने वाले सवर्ण हमारे देश में बुद्धिजीवी कहलाते हैं.. 
    अयोध्या सिंह,अरुण शौरी और अब अशोक कुमार पाण्डे जैसे लेखक आंबेडकर के खिलाफ़ अभियान चलाते रहे हैं!
आंबेडकर को नीचा दिखाने या उनके खिलाफ़ परसेस्पशन बनाने के मिशन में अशोक कुमार पांडे सबसे नए और सबसे चालाक लेखक हैं । वो आंबेडकर को नीचा दिखाने के साथ तुलसीदास के बचाव में भी खड़े हो जाते हैं।
  भारत का,खासकर हिंदी का अपरकास्ट मार्क्सवादी बौद्धिक अक्सर ऐसा ही होता है। भारत के विकास की इस मंजिल में उसे ऐसा ही होना है..
हमे लेखन का जवाब लेखन से ही देना चाहिए ।
    हमे कहना चाहिए कि गांधी ने अंग्रेजो के खिलाफ नमक सत्याग्रह किया और आंबेडकर ने जातिवादी सवर्णो के खिलाफ महाड में पानी का सत्याग्रह किया..... नमक ज़्यादा ज़रूरी है या पानी?? 
अंग्रेजों के चले जाने के बाद नमक सत्याग्रह की ज़रूरत नहीं रही लेकिन दलित पानी के लिये आज भी संघर्ष करते हैं, तथाकथित आज़ाद भारत में आंबेडकर का पानी का सत्याग्रह आज भी जारी है!
    आंबेडकर की भूमिका को नकारात्मक बताने वाले अपढ़ कुपढ़ और बेपढ़ लोगों की अच्छी ख़ासी तादात उत्तराखंड में भी है उन्हें एक स्थानीय उदाहरण देता हूँ। 
      उत्तराखण्ड के रचनात्मक शिक्षक मंडल के एक यू ट्यूब ऑडियो में प्रो शेखर पाठक ने बताया कि कुमाऊँ के अल्मोड़ा जिले के सल्ट में 5 सितंबर 1942 को अंग्रेजो के खिलाफ सत्याग्रहियों का जनविद्रोह हुआ... जिसे सल्ट का जनविद्रोह या गांधी द्वारा 'कुमाऊँ का बारदोली' कहा गया!
प्रो पाठक के मुताबिक आंदोलनकारियों में और अंग्रेजो के हाथों  मारे गये लोगों में दलित भी थे... एक दलित 'बड़वाराम' अपना वाद्य नरसिंहा बजाकर आंदोलनकारियों का हौंसला बढ़ा रहे थे.. 
जाद भारत में  1980 में इसी सल्ट में 'बड़वाराम' के समुदाय के लोगों ने एक विवाह समारोह में दूल्हे को पालकी में ले जाने की 'हिमाक़त' कर दी...बेचारे समझे होंगे कि भारत तो आज़ाद हो चुका है और हमारे पुरखे 'बड़वाराम' ने भी अंग्रेजो के खिलाफ लड़ाई में हिस्सा लिया था ...लेकिन वो ग़लत थे आज़ाद भारत में उनकी इस हिमाक़त के बदले उसी सल्ट के कफल्टा में 14 दलित ज़िंदा जला दिये गये....वो शहीद हुए... वो आजाद भारत के सल्ट के शहीद हैं... वो असली जनविद्रोह था... आजाद भारत का सल्ट का जनविद्रोह जो 'बड़वाराम' के वंशजों ने किया । उन्होंने सवर्णो के मातहत नरसिम्हा बजाने से इंकार किया, और अपने मानवीय अधिकारों के लिये मारे गये.... 
स्वतंत्रता संघर्ष में हिस्सा लेने वाले लोगों के वंशजों के साथ उन्हीं की जमीन पर उसी जगह पर आजाद भारत में ये सुलूक किया गया और धूर्त लोग पूछते हैं कि आंबेडकर ने अंग्रेजो के खिलाफ संघर्ष में हिस्सा क्यों नहीं लिया? 
     क्योंकि आंबेडकर 'बड़वाराम' की तरह सवर्णों के मातहत बाजा नहीं बजाना चाहते थे क्योंकि आंबेडकर जानते थे कि 'बड़वा' का मतलब कीड़ा मकौड़ा होता है.
क्योंकि  उन्हें पता था कि सवर्णों की मंशा उन्हें इस्तेमाल कर कीड़े मकोड़े की तरह मसल देने की है! क्योंकि सवर्ण दलित को केवल कीड़े का नाम ही नहीं देते वो उसे कीड़े से ज़्यादा मानते भी नहीं । आंबेडकर ने कीड़े मकोड़ों का नहीं बल्कि इंसानों का महान संघर्ष चलाया 
वो संघर्ष आज भी जारी है...
इस तस्वीर को देखें 

तस्वीर में क्लासरूम से बाहर बिठाये गये आदमी से अगर क्लास के भीतर से  कोई ये सवाल करे कि 
" क्लास में ज़हरीला साँप घुस आया है तुम आकर इसे मारते क्यों नहीं???  "
तो इंसानी इतिहास का इससे बेहूदा और बेशर्म सवाल और कोई नहीं हो सकता।
– मोहन मुक्त
- प्रा. जावेद पाशा, संकलन