आर्य सिद्धान्त विमर्श
प्र. यज्ञ के मुख्यत: कितने अर्थ होते हैं ?
उत्तर - तीन प्रकार के अर्थ होते हैं।
प्र. वे अर्थ कौन-कौन से हैं ?
उत्तर - (१) देव पूजा, (२) संगति करण, (३) दान
प्र. देव पूजा से क्या तात्पर्य है ? आर्ष दृष्टि
उत्तर - इसमें जड़ और चेतन दोनों प्रकार के देवों की पूजा होती है, जैसे - यज्ञ से जल, वायु, पृथ्वी, आदि जड़ देवता शुद्ध होते हैं तो ये इनकी पूजा है साथ ही यज्ञ के बाद माता पिता गुरु आदि बड़ों को नमस्ते प्रणाम किया जाता है उनका सम्मान किया जाता है तो यह चेतन देवों की पूजा है । गर्व से कहो,हम आर्य हैं…
प्र. संगतिकरण से क्या तात्पर्य है?
उत्तर - संगति करण से तात्पर्य मिलजुल कर संगठित हो जाना । जैसे यज्ञ में घी, और हवन आदि सामग्री के सभी पदार्थ मिल जुल कर संगठित हो जाते हैं व वायुमंडल को शुद्ध करते हैं । ऐसे ही यज्ञ वेदी में पति-पत्नी पुत्र-पुत्री बंधु-बांधव सब मिलकर यज्ञ करते हैं, संगठित होते हैं तथा आपस में एक दूसरे का सहयोग करने की भावना को बढ़ाते हैं यह संगति करण का अर्थ हुआ । आर्ष दृष्टि
प्र. यज्ञ के समय यजमान क्या दान करता है वह क्या बन जाता है ? पाखण्ड खण्डन
उत्तर - यज्ञ के समय यजमान घी और सामग्री का दान करता है वह देवता बन जाता है । क्योंकि जो देता है वह देवता होता है, इस अर्थ में चूंकि यजमान घी और सामग्री की आहुति देता है तो वह देवता बन जाता है ।
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