Monday, May 29, 2017

दलित और शूद्र।

मैकाले पुत्रों और वामपंथियों की बातों में न आएं : दलित व् शुद्र नहीं होते है एक।
*प्रश्न :- "दलित" और "शूद्र" में क्या अंतर है ?*

( इस लेख का उद्धेश्य किसी वर्ग विशेष की भावनाएं आहत करना नहीं बल्कि जन मानस को सत्य से अवगत कराना है )

उत्तर :- "दलित" और "शूद्र" में वही अंतर है जो स्वर्ण और पीतल में होता है | पूर्वाग्रह से ग्रसित कुछ मैकाले पुत्र अपनी अज्ञानता एवं संकीर्ण मानसिकता के कारण शूद्र एवं दलित को एक ही मानते हैं, तथा पश्चिमी असभ्यता के कुप्रभाव में आकर वैदिक शास्त्रों का अध्ययन किये बिना ही वैदिक शास्त्रों के विरुद्ध ऊल - जलूल बकते रहते हैं |

दलित और शूद्र के मध्य अंतर समझने के लिए सर्वप्रथम दलित का अर्थ समझना होगा | "दलित" शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के "दल्" धातु से हुई है | दलित शब्द "फलित" शब्द का विलोम है |

दलित एवं फलित का शाब्दिक अर्थ इस प्रकार है –

"दलित" - : पीड़ित, शोषित, दबा हुआ, खिन्न, उदास, टुकडा, खंडित, तोडना, कुचलना, दला हुआ, पीसा हुआ, मसला हुआ, रौंदा हुआ, विनष्ट

"फलित" - : पिडामुक्त, उच्च, प्रसन्न, खुशहाल, अखंड, अखंडित, जोडना, समानता, एकरुप, पूर्णरूप, संपूर्ण

उपरोक्त शाब्दिक अर्थों से यह ज्ञात होता है कि दलित और फलित शब्द किसी जाति विशेष के लिए नहीं है बल्कि दलित और फलित तो कोई भी हो सकता है चाहे वह ठाकुर हो, पण्डित हो, बनिया हो, भंगी हो, चमार हो या हिन्दू हो, मुस्लिम हो, सिक्ख हो, जैन हो, पारसी हो अथवा किसी भी जाति या मजहब का हो |

अंग्रेजी भाषा में दलित शब्द का अर्थ OPPRESSED होता है | सर्वप्रथम उन्नीसवीं सदी में अंग्रेजों ( ईसाईयों ) द्वारा भारतीयों की प्राचीन सामजिक व्यवस्था को तोड़ने के लिए OPPERESSED ( दलित )  शब्द का प्रयोग एक जाति विशेष के लिए प्रारम्भ किया गया |

उन्नीसवी सदी से पूर्व भारतीय समाज में दलित शब्द का प्रयोग किसी समुदाय अथवा जाति विशेष के लिए नहीं किया जाता था | उन्नीसवीं सदी से पूर्व इस सम्पूर्ण भू – लोक में दलित जाति का एक भी व्यक्ति अस्तित्व में नहीं था क्योंकि वैदिक शास्त्रों के अनुसार मनुष्यों को चार वर्णों ( ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र ) में बाँटा गया है, जो कि कर्म आधारित व्यवस्था है जन्म आधारित नहीं और इन चार वर्णों से भिन्न पाँचवे को अनार्य, असुर या दस्यु कहा गया है |

किसी भी वैदिक शास्त्र में कहीं पर भी दलित जाति के लिए कोई भी आज्ञा अथवा निर्देश नहीं दिया गया है और न ही शूद्र = दलित होता है इस प्रकार का वर्णन आया है | इससे यह स्पष्ट है कि दलितों के जनक अंग्रेज ( ईसाई ) हैं, जिसका भारतीय वर्ण व्यवस्था से कोई सम्बन्ध नहीं |

अंग्रेजों ( ईसाइयों ) ने भारतीयों की सामाजिक एकता तोड़ने के लिए दलित जाति को जन्म दिया था और अज्ञानतावश आज भी हमारे देश में एक बहुत बड़ा वर्ग बिना सोचे समझे, बिना अपने पूर्वजों का इतिहास जाने स्वयं को "दलित जाति" का मानता है | हमारे देश के कुछ देशद्रोही असामाजिक तत्व विदेशियों के इशारे पर देश में अस्थिरता उत्पन्न करने के लिए दलितवाद का झंडा उठाये रहते हैं ऐसे समाज विरोधी स्वार्थी लोग माँ एवं मातृभूमि का सौदा करने के लिए सदैव तैयार रहते है और अपने नापाक मंसूबों को पूरा करने के लिए समाज में जातिवाद का जहर घोलते रहते हैं |

ऐसे असामाजिक तत्व ही समाज को बाँटने तथा जातिवाद को बढ़ावा देने के लिए तरह तरह की भ्रांतियाँ समाज में फैलाते रहते हैं | इनकी मूर्खता पर हँसी तो तब आती है जब ये दलित और शूद्र को एक ही मान कर अपनी ऊल – जलूल बकवास को आमजन के बीच प्रचारित करते हैं |

दलित और शूद्र के मध्य अंतर समझने के लिए शूद्र वर्ण की परिभाषा समझना आवश्यक भी है जो कि वैदिक शास्त्रों में इस प्रकार है –

" शोचनीयः शोच्यां स्थितिमापन्नो वा सेवायां साधुर अविध्द्यादिगुणसहितो मनुष्यो वा " अर्थात शूद्र वह व्यक्ति होता है जो अपने अज्ञान के कारण किसी प्रकार की उन्नत स्थिति को प्राप्त नहीं कर पाया और जिसे अपनी निम्न स्थिति होने की तथा उसे उन्नत करने की सदैव चिंता बनी रहती है अथवा स्वामी के द्वारा जिसके भरण पोषण की चिंता की जाती है |

"शूद्रेण हि समस्तावद यावत् वेदे न जायते" अर्थात जब तक कोई वेदाध्ययन नहीं करता तब तक वह शूद्र के समान है वह चाहे किसी भी कुल में उत्पन्न हुआ हो |

"जन्मना जायते शूद्रः संस्कारात द्विज उच्यते" अर्थात प्रत्येक मनुष्य चाहे किसी भी कुल में उत्पन्न हुआ हो वह जन्म से शूद्र ही होता है | उपनयन संस्कार में दीक्षित होकर विदध्याध्ययन करने के बाद ही द्विज बनता है |

जो मनुष्य अपने अज्ञान तथा अविद्ध्या के कारण किसी प्रकार की उन्नत स्थिति को प्राप्त नहीं कर पाता वह शूद्र रह जाता है | महर्षि मनु ने शूद्र के कर्म इस प्रकार बताये हैं –

एकमेव तु शूद्रस्य प्रभु: कर्म समादिशत | एतेषामेव वर्णानां शुश्रूषामनसूयया ||

अर्थात परमात्मा ने शूद्र वर्ण ग्रहण करने वाले व्यक्तियों के लिए एक ही कर्म निर्धारित किया है वो यह है कि अन्य तीनों वर्णों के व्यक्तियों के यहाँ सेवा या श्रम का कार्य करके जीविका करना |

क्योंकि अशिक्षित व्यक्ति शूद्र होता है अतः वह सेवा या श्रम का कार्य ही कर सकता है इसलिए उसके लिए यही एक निर्धारित कर्म है |

उपरोक्त तुलनात्मक अध्ययन से यह सिद्ध होता है कि शूद्र एवं दलित एक दूसरे से भिन्न हैं | शूद्र कर्मानुसार वैदिक वर्ण व्यवस्था में आता है जबकि दलित अंग्रेजों द्वारा दी गयी जन्मजात व्यवस्था में आता है |

वैदिक वर्ण व्यवस्था के अनुसार शूद्रों को वर्ण परिवर्तन का अधिकार है, शूद्रों को अछूत नहीं माना है, शूद्रों को समाज में सम्माननीय माना है, शूद्रों को दण्ड में भी छूट है जबकि इसके विपरीत अंग्रेजों ( ईसाईयों ) द्वारा निर्मित दलित जाति के लोगों को अंग्रजों के ही द्वारा दिए गए भारतीय संविधान में न तो जाति परिवर्तन का अधिकार है, न ही उन्हें सम्माननीय माना है और न ही दण्ड व्यवस्था में किसी प्रकार की छूट दी गयी है |

मैं समस्त देशवासियों से निवेदन करता हूँ कि अंग्रजों ( ईसाईयों ) द्वारा दी गयी जातिवाद – दलितवाद की व्यवस्था को दें

भारत में जो भी गरीब है चाहे वो किसी भी जाति का हो, वो दलित ही है, और आरक्षण सिर्फ दलितों को ही मिलना चाहिए माने ऐसे लोग जो आर्थिक दृष्टि से शोषित हो, चाहे वो किसी भी जाति के हो

Sunday, May 28, 2017

गाय की थन सम्बन्धी चिकित्सा।

आज कल हमे थनों(udder) से सम्बंधित अनेक समस्याएं सुनने को मिल रही है जैसे थन में सूजन, थनैला रोग, दूध में खून, थन फटना- कटना आदि। इन बीमारियों का यदि ठीक समय पर इलाज नही किया गया तो यही बीमारी गाय की मृत्यु का  भी कारण बन सकती है।
हम आसानी से लगभग बीमारी ठीक कर सकते हैं।
इस सम्बन्ध में कुछ देसी और होमियोपैथी दवा इस प्रकार है
🌿🌿देसी दवा
   *🌹🌹दूध में खून🌹🌹*
👉दूध में ख़ून आना,बिना सूजन के — सफ़ेद फिटकरी फूला २५० ग्राम , अनारदाना १०० ग्राम , पपड़ियाँ कत्था ५० ग्राम , कद्दू मगज़ ( कद्दूके छीले बीज ) ५० ग्राम ,फैड्डल ५० ग्राम ,
सभी को कूटपीसकर कपडछान कर लें । ५०-५० ग्राम की खुराक बनाकर सुबह-सायं देने से ख़ून आना बंद हो जाता है ।
*🌹🌹थोड़ी-थोड़ी देर में पवासना🌹🌹*
👉डौकलियों दूध उतरना ( थोड़ी -थोड़ी देर बाद पवसना,( दूध उतरना ) एक बार में पुरा दूध नहीं आता ) रसकपूर -१० ग्राम , टाटरी नींबू – ३० ग्राम , जवाॅखार -३० ग्राम , फरफेन्दूवाँ – ५० ग्राम , कूटपीसकर कपडछान करके १०-१० ग्राम की खुराक बना लेवें । १० ग्राम दवा केले में मिलाकर रोज खिलाए ।
*🌹🌹थन फटना🌹🌹*
👉 थन फटना ( थानों में दरारें पड़ना ) — रूमीमस्तगीं असली – ३ ग्राम , शुद्ध सरसों तैल -२० ग्राम , जस्त – १० ग्राम , काशतकारी सफेदा -२० ग्राम , सिंहराज पत्थर – १० ग्राम , पपड़ियाँ कत्था -५ ग्राम ।
रूमीमस्तगीं को सरसों के के तैल में पकाने लेवें । और बाक़ी सभी चीज़ों को कूट पीसकर कपडछान कर लें फिर पके हूए सरसों के तैल में मिलाकर मरहम बना लें ।
दूध निकालने के बाद थनो को धोकर यह मरहम लगाये प्रतिदिन लाभ अवश्य होगा ।
*🌹🌹थनों में सूजन🌹🌹*
👉निकासा ( थनो मे व बाँक में सूजन आना ) -:- सतावर -१०० ग्राम ,फरफेन्दूवाँ -१०० ग्राम , कासनी-१०० ग्राम ,खतमी- ५० ग्राम , काली जीरी -५० ग्राम , कलौंजी -३० ग्राम , टाटरी -३० ग्राम कूटपीसकर छान लेवें ।
इसकी दस खुराक बना लेवें । और एक किलो ताज़े पानी में मिलाकर नित्य देवें ।
👉निकासा- निकासा मे कददू को छोटे – छोटे टुकड़ों में काटकर गाय- भैंस को खिलाने से भी बहुत आराम आता है ।
*🌹🌹थनैला रोग🌹🌹*
👉 गाय के थन में गाँठ पड़ जाना व थन मर जाना एेसे मे । अमृतधारा १०-१२ बूँद , एक किलो पानी में मिलाकर ,थनो को दिन मे ३-४ बार धोयें यह क्रिया ५ दिन तक करे । और गाय को एक मुट्ठी बायबिड्ंग व चार चम्मच हल्दी प्रतिदिन देने से लाभ होगा ।एक मसरी की दाल के दाने के बराबर देशी कपूर भी खिलाऐ ।
👉शीशम के मुलायम पत्ते लेकर बारीक पीसकर सायं के समय थनो पर लेप करें और प्रात: २५० ग्राम नीम की पत्तियाँ १ किलो पानी में पकाकर जब २५० ग्राम रह जाये तो पानी को सीरींज़ में भरकर थन में चढ़ा दें ।और थन को भींचकर व दूध निकालने के तरीक़े से थन को खींचें तो अन्दर का विग्रहों बाहर आयेगा। ऐसी क्रिया को प्रात: व सायं १००-१०० ग्राम पानी बाहर -भीतर होना चाहिए ।
🐃🐃🐃🐃🐃🐃🐃🐃
🌿🌿होमियोपैथी दवा
👉थन की लगभग सभी समस्याओं में Arnica Montana 1M  दे सकते हैं।
*🌹🌹थन की सूजन(mastitis)🌹🌹*
👉लाल सूजन में ApisBeladona दें। पत्थर जैसी कड़ी सूजन में koniyam दें, जब पस पड़नेवाली हो तो Beladona के बाद ब्रायोनिया दें।
*🌹🌹स्तनों का तरेड़ जाना🌹🌹*
👉ऐसे में Retenhia दें।
*🌹🌹अन्य जानकारी🌹🌹*
👉यदि थन या बांक में सूजन का हल्का बैंगनी रंग हो तो Arnica की 1-2 मात्रा दें।
👉यदि छिल गया हो या घाव हो तो Calendula Q (Q अर्थात् मदर टिंचर) पिला दे और इसकी क्रीम भी आती है वो भी लगा सकते हैं।
👉Beladona से लाभ नही हो रहा तो Mercurius दें।
👉सूजन बढ़ने पर Brayonia दें।
👉सूजन के साथ कड़ा पन हो तो केवल Calceria flu orica देने से कड़ा पन समाप्त हो जाएगा और बढ़ना बन्द हो जायेगा।
🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻
            *🌹🌹निर्देश🌹🌹*
देसी दवा ऐसे दी जा सकती है,लेकिन गाय गर्भवती हो तो होम्योपैथी दवा सावधानी से देनी चाहिए, नही तो गर्भपात हो सकता है।
🙏🙏जय गौ माँ 🙏🙏

Saturday, May 27, 2017

गौ - चिकित्सा - गर्भ समस्या ।

१ - गर्भपात रोग 

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कारण व लक्षण - यह एक प्रकार का छूत का रोग है । कभी-कभी कोई गर्भवती मादा पशु आपस में लड़ पड़ती है , उससे गर्भपात हो जाता है । गर्भिणी को अधिक गरम वस्तु खिला देने से और गर्मी में रखने से भी यह रोग हो जाया करता है । उस हालत में कभी कोई साँड़ या बैल या बछड़ा उसके साथ संयोग कर लें तो गर्भपात हो जाता है ।

रोगी गर्भिणी ( गाभिन गाय या भैंस आदि ) के गर्भाशय तथा योनिमार्ग पर सूजन आ जाती है । निश्चित समय के पूर्व ही बच्चा गिर जाता है । गर्भपात के पश्चात् जेर ( झर ) का न गिरना , पेशाब बदबूदार होना आदि इसके लक्ष्ण है । गर्भपात के बाद रोगी मादा पशु को दूसरी बार गर्भ रहे तो ५ माह बाद उसे नीचे लिखी दवा देनी चाहिए , ताकि उक्त बीमारी की आशंका न रहे ।

१ - औषधि - शिवलिंगी के बीज ८ नग ,बछड़े वाली गाय का घी २४० ग्राम , बीजों को महीन पीसकर घी में मिलाकर रोगी गर्भिणी पशु को बोतल द्वारा हिलाकर पिलाया जाय । इसी मात्रा में प्रतिमास रोगी पशु को सुबह के समय यह दवा पिलायी जाय ।

२ - औषधि - गाय के दूध से बनी दही ४८० ग्राम , गँवारपाठा ( घृतकुमारी ) ४८० ग्राम , पानी ७२० ग्राम , गँवारपाठा का गूद्दा निकालकर दही में मिलाकर पान के साथ रोगी पशु को पिलायें ।

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२ - गाय- भैंस का गर्भ धारण न करना 
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कारण व लक्षण - साधारणत: अधिक कमज़ोर पशु निश्चित समय पर गर्भ नहीं धारण करते । मादा पशु सयोंग करने की इच्छा नहीं प्रकट करती है और इस ओर से पुर्ण उदास रहती है ।

१ - औषधि - इस प्रकार के पशुओं को" ई" प्रकार का खाद्यान्न पदार्थ विटामिन अधिक मात्रा में खिलाना चाहिए ।उसे खिलाकर मादा पशु को तगड़ा बनाया जाय । हाड़जूड की पिंगरे २ नग , पिगरों को रोटी के साथ दबाकर रोगी पशु को ३ दिन तक रोज़ सुबह खिलायें ।

२ - औषधि - छुवारे ४नग सेंककर उसका बीज निकालकर फेंक दिया जाय । उसके गूदे को रोटी के साथ रोगी पशु को ८ दिन तक रोज़ सुबह खिलाया जायें ।

३ - औषधि - पलास ( ढाक) के पत्तों के पास की गाँठ के २ नग लेकर रोटी में रोगी पशु को ४ दिन तक रोज़ सुबह पिलायें ।

४ - औषधि - भिलावा ४ नग गुड १०० ग्राम , गुड़ के साथ भिलावें को मिलाकर रोगी पशु को ३ दिन तक खिला दिया जाय ।

५ - औषधि - रोगी पशु को मूँगफली का तैल ४८० ग्राम , एक दिन छोड़कर ४ बार पिलायें ।

६ - औषधि - गुँजाफल ( चोहटली ,रत्ती ) ४ नग कुटकर गुड़ में मिलाकर रोगी पशु को रोज़ सुबह ४ दिन तक खिलाये ।

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३ - गाय, भैंस का बार - बार गाभिन होना
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कारण व लक्षण - यदि गाय , भैंस आदि को अधिक मात्रा में गरम चीज़ें खा लेने के कारण उनके शरीर का ताप बढ़ जाता है । और उनमे बार - बार गाभिन होने का रोग पैदा हो जाता है । साँड़ में कोई दोष होने के कारण भी ये रोग पैदा होता है । मादा पशु में अधिक चर्बी होने के कारण भी यह रोग होता है । ऐसी स्थिति में पशु बार- बार गाभिन होती रहती है और गाभिन नहीं रहती है ।

१ - औषधि - मादा पशु जैसै ही गर्भधारण करे याने संयोग करें वैसे ही उसे धीरे से ज़मीन पर गिराकर उसे ४-५ पल्टी दी जाय फिर उसका मुँह ऊपर करके बाँध दिया जाय । और १२ घन्टे तक उस पशु को बैठने नहीं दिया जाय । केवल उसे पानी ही पिलाया जाये और २४ घन्टे तक घास बिलकुल खाने दिया जायें ।

२ - औषधि - गाय का घी २४० ग्राम , कत्था ६० ग्राम , केले की जड़ का रस १२० ग्राम , पहले केले की जड़ को कूट कर उसका रस निकाल कर , घी को गरम करके सभी चीज़ें आपस में मिलाकर रोगी पशु को दोनों समय पिलाया जायें ।

३ - औषधि - असली सिन्दुर ९ ग्राम , गाय का दूध २४० ग्राम , मिट्टी ४० ग्राम , मिट्टी को दूध में घोलकर कपड़छान कर लें । यह दवा केवल एक दिन ही दोनों समय देनी चाहिए ।

४ - औषधि - रोगी पशु के कान काटकर कान मे कगोंरे बना दिये जायें जिससे पशु कमज़ोर होकर गर्भधारण कर लेगा और खान - पान में पशु को उत्तेजक पदार्थ नहीं खिलाना चाहिए ।

आलोक -:- मादा पशु के ज़्यादा तगड़ा होने से वह बार - बार गर्मी ( हीट ) पर आती है । इसलिए गर्भ नहीं ठहरता । अत: उसकी खुराक कम करके उसकी चर्बी घटने से उसको गर्भ ठहर सकेगा ।
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४ - पशुओं में डिलिवरी व हीट समस्या । 
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१ - गाय को हीट पर लाना - गाय को हीट पर लाने के लिए काली तोरई पकने के बाद पेंड से तोड़कर आग मे भून लें ,और ठंडी कर लें तथा ठंडी होने पर तोरई की कुट्टी काट कर गाय को खिला दें । गाय दो से तीन दिन में हीट पर आ जायेगी ,तभी गर्भाधान करा दें तो गाय का गर्भ ठहर जायेगा वह गाभिन रहेगी ।

२ - छुवारे लेकर उनकी गीरी निकालकर छुवारों में गुड़ भरकर और छुवारों को गुड़ में लपेटकर रोटी में दबाकर ७-८ दिन तक गाय को खिलाने से गाय हीट पर आती है ।

३ - छुवारे की आधी गीरी को गुड़ में लपेटकर खिलायें तो गाय जल्दी ही जेर डाल देगी , तथा बाॅस के पत्ते भी खिलाकर जल्दी ही डाल देती है ।

५ - गाय - भैंस को हीट में लाने के लिए -- करन्जवा बीज ३० बीज , चोहटली बीज ( लाल कून्जा बीज ) ३० दाने , लौंग ३० दाने , मुहावले बीज १० दाने , सभी को लेकर कुटकर १५ खुराक बना लें । एक खुराक रोज़ सायं को केवल रोटी में देनी चाहिए ़, दवा गाय को हीट आने तक देवें ।

६ - पशुओं में गर्भधारण के लिए -- जो पशु बार-बार हीट पर आने पर भी गर्भ नही ठहरता इसके लिए सिंहराज पत्थर १५० ग्राम , जलजमनी के बीज १५० ग्राम , खाण्ड २५० ग्राम , खाण्ड को छोड़कर अन्य सभी दवाईयों को कूटकर तीनों दवाईयों को आपस में मिला लें और तीन खुराक बनालें , एक खुराक नई होने ( गर्भाधान ) कराने के तुरन्त बाद , दवाई में थोड़ा सा पानी मिलाकर लड्डू बनाकर गाय को खिला देना चाहिए ।५-५ घंटे के अन्तर पर तीनों खुराक देवें । गाय गर्भधारण करेगी ।


५ - - गर्भाधान के बाद गाय अवश्य गाभिन रहे इसके लिए -
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औषधि - गर्भाधान से पहले गाय की योनि में किसी पलास्टीक के पतले पाईप मे ५ ग्राम सुँघने वाला तम्बाकू पीसकर भर लें और पाईप को योनि में अन्दर डालकर ज़ोर से फूँक मार दें, जिससे वह तम्बाकू योनि में अन्दर चला जायें,फिर गर्भाधान कराये तो गाय अवश्य ही गाभिन रहेगी ।



६ - गाय - भैंस डिलिवरी के बाद यदि जेर नहीं डालती तो उसका उपचार 
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१ - औषधि - चिरचिटा ( अपामार्ग ) के पत्ते तोड़कर उन्हें रगड़कर बत्ती बनाकर गाय - भैंस के सींग व कानों के बीच में इस बत्ती को फँसा कर ,माथे के ऊपर से लेकर कान व सींगों के बीच से कपड़ा लेते हुए सिर के ऊपर गाँठ बाँध देवें , गाय तीन चार घंटे में ही जेर डाल देगी ।

२- औषधि - यदि ५-६ घंटे से ज़्यादा हो गये है तो चिरचिटा की जड़ ५०० ग्राम पानी में पकाकर , ५० ग्राम चीनी मिलाकर देने से लाभ होगा ।

३- औषधि - यदि ८-९ घण्टे हो गये है तो जवाॅखार १० ग्राम , गूगल १० ग्राम , असली ऐलवा १० ग्राम , इन सभी दवाईयों को कूटकर तीन खुराक बना लें ।१-१ घण्टे के अन्तर पर रोटी में रखकर यह खुराक देवें।

४- औषधि - यदि गाय को ७२ घण्टे बाद इस प्रकार उपचार करें-- कैमरी की गूलरी ५०० ग्राम , या गूलर की गूलरी ३०० ग्राम , अजवायन १०० ग्राम , खुरासानी अजवायन ५० ग्राम , सज्जी ७० ग्राम , ऐलवा असली ३० ग्राम , इन सभी दवाओं को लेकर कूटकर ५०-५० ग्राम की खुराक बना लें । ५०० ग्राम गाय के दूध से बना मट्ठा ( छाछ ) में एक उबाल देकर दवाईयों को मट्ठे में ही हाथ से मथकर पशु को नाल से दें दें । बाक़ी खुराक सुबह -सायं देते रहे ।


७ - जेर ( बेल ) डालने के लिए । 
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१ - औषधि - डिलिवरी के बाद जब गाय का बच्चा अपने पैरों पर खड़ा हो जाये , तब गाय का दूध निकाले और उसमें से एक चौथाई दूध को गाय को ही पीला दें ,और बाद मे बाजरा , कच्चा जौं , कच्चा बिनौला , आपस में मिलाकर गाय के सामने रखें इस आनाज को खाने के २-३ घंटे के अन्दर ही गाय जेर डाल देगी और उसका पेट भी साफ़ हो जायेगा ।



८ - रोग - गाय के ब्याने के बाद उसका पिछला हिस्सा ठण्डे पानी से धोने के कारण , गाय का
शरीर जूड़ जाने पर । 

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१ - औषधि - अलसी के बीज १५० ग्राम को कढ़ाई में भूनकर , १५० ग्राम गुड में मिलाकर गाय को खिलाने से वह गाय जो अकड़ गयी थी वह खड़ी हो जायेगी तीसरे दिन फिर से एक खुराक देना चाहिए । बाद उसका पिछला हिस्सा ठण्डे पानी से धोने के कारण , गाय का शरीर जूड़ जाने पर ।

मोदी सरकार ने उठाया गौ रक्षा के लिए पहला सार्थक कदम...

जय गौ माता
तीन साल के बाद मोदी सरकार ने उठाया गौ रक्षा के लिए पहला सार्थक कदम :-
केंद्र सरकार द्वारा जारी किए गया। नये कानून की रूप रेखा
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केंद्र सरकार ने 25 मई को गौरक्षा पर पहले केंद्रीय कानून को नोटिफाई कर दिया. माने नए कानून का ऐलान कर दिया. इसके तहत पूरे देश में गाय को मारने के लिए नहीं बेचा जा सकेगा. माने वो कत्लखाने पर नहीं बेची जा सकेंगी. अगले तीन महीनों में ये देश-भर में लागू हो जाएगा.
अब तक गौरक्षा पर देश के अलग-अलग राज्यों के अपने कानून थे. इसके अलावा खेती के काम आने वाले जानवरों के लिए प्रिवेंशन ऑफ क्रूएलिटी टू एनिमल्स एक्ट (1960) के नियम थे. अब केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने कुछ नए नियम लागू किए हैं जो पूरे देश में लागू होंगे. ये नियम पर्यावरण मंत्री अनिल माधव दवे ने पारित कराए थे. 18 मई 2017 को दवे का निधन हो गया था. नए नियमों की खासम-खास बातें ये रहींः
1. देश की अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं से 50 किलोमीटर अंदर तक के इलाकों में जानवरों का बाज़ार नहीं लगाया जा सकेगा. गाय-बैल इन्हीं बाज़ारों में बेचे जाते हैं. ये नियम जानवरों की देश से बाहर होने वाली तस्करी को ध्यान में रखकर बनाया गया है. भारत से बड़ी संख्या में गाय-बैलों स्मगल होकर बांग्लादेश पहुंचते रहे हैं.
2. इसी तरह राज्यों की सीमा से 25 किलोमीटर के अंदर तक भी पशु-बाज़ार नहीं लगाए जा सकेंगे. ये राज्यों के बीच होने वाली स्मगलिंग रोकने के लिए है. अब अगर किसी को जानवर राज्य की सीमा के पार ले जाने हुए तो राज्य सरकार के ‘नॉमिनी’ की अनुमति लेनी पड़ेगी.
3. अब सारे पशु-बाज़ारों के लिए ज़िला पशु-बाज़ार कमिटी की इजाज़त ज़रूरी होगी. इस कमिटी का अध्यक्ष ज़िले का मैजिस्ट्रेट होगा. कमिटी में दो प्रतिनिधी राज्य सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त एनिमल वेलफेयर ग्रुप के भी होंगे.
4. पशु बाज़ार कैसे हों, इसके लिए भी 30 नियमों का ऐलान हुआ है. इनके मुताबिक पशु बाज़ारों में पानी, पंखे, रैम्प और डॉक्टर जैसी सुविधाओं का इंतज़ाम रखना होगा. बीमार जानवरों के लिए अलग से इंतज़ाम करना होगा.
5. पशु-बाज़ार लाने-ले जाने के लिए आमतौर पर ट्रक काम में लाए जाते हैं. इनके लिए भी नियम बनाए गए हैं. अब एक वेटरनरी इंस्पेक्टर इस बात का ध्यान रखेगा कि जानवरों को ट्रक में सही तरह से चढ़ाया-उतारा गया है कि नहीं. ये वेटरनरी इंस्पेक्टर किसी जानवर को बेचने के लिए ‘अनफिट’ भी घोषित कर सकेगा.
6. अब गाय-बैल बेचने से पहले काफी काग़ज़ी कार्यवाही करनी होगी. बेचने वाले और खरीदने वाले दोनों को सबूत पेश करना होगा कि वो किसान हैं. इसके लिए ज़मीन के कागज़ात दिखाने होंगे.
7. गाय खरीद की पांच रसीदें बनानी होंगी. ये अलग-अलग विभागों में जमा होंगी. एक राजस्व (रेवेन्यू) विभाग में देनी होगी, एक इलाके के पशु अस्पताल के डॉक्टर के पास जमा होगी और एक पशु-बाज़ार कमिटी के पास जमा होगी. बची दो रसीदों में से एक-एक बेचने वाले और खरीदने वाले के पास रहेगी.
8. जिन जानवरों को सरकारी शेल्टर में रखा जाएगा उनके मालिकों को उनका खर्च उठाना होगा. एक जानवर के लिए ये फीस कितनी होगी ये राज्य सरकारें तय करेंगी और हर साल के 1 अप्रैल को इस फीस का ऐलान होगा. जो किसान ये फीस नहीं चुकाएंगे, ये फीस उनकी बाकी देनदारियों में जोड़ दी जाएगी.
संविधान के आर्टिकल 48 में डायरेक्टिव प्रिंसिपल्स ऑफ स्टेट पॉलिसी दिए हैं. माने वो उद्देश्य जिनकी तरफ सरकार को कदम बढ़ाने चाहिए. देश में गौहत्या बैन करना इन्हीं में से एक है. ये पहली बार है कि किसी सरकार ने पूरे देश के लिए इस तरह के नियमों का ऐलान किया हो. इस लिहाज़ से ये नए नियम खास हो जाते हैं. नीयम किस तरह लागू किए जाएंगे, ये फिलहाल सामने आना बाकी है. लेकिन इतना तय है कि नए नियमो से अब गायो की खरीद फरोख्त नियंत्रित होगी और गौ हत्या मुक्त भारत की दिशा में ये एक सार्थक पहल है।
वन्दे गौ मातरम ।

Friday, May 26, 2017

पढ़े भयंकर युद्ध की कहानी!

वीर हिन्दू योद्धा जोगराज सिंह गुर्जर जिसने तैमूर की सेना को गाजर मूली की तरह काट दिया !

हिन्दू समाज की सबसे बड़ी समस्या यह है कि वे जातिवाद से ऊपर उठ कर सोच ही नहीं सकते। यही पिछले 1200 वर्षों से हो रही उनकी हार का मुख्य कारण है। इतिहास में कुछ प्रेरणादायक घटनाएं मिलती है। जब जातिवाद से ऊपर उठकर हिन्दू समाज ने एकजुट होकर अक्रान्तायों का न केवल सामना किया अपितु अपने प्राणों की बाजी लगाकर उन्हें यमलोक भेज दिया। तैमूर लंग के नाम से सभी भारतीय परिचित है। तैमूर के अत्याचारों से हमारे देश की भूमि रक्तरंजित हो गई। उसके अत्याचारों की कोई सीमा नहीं थी।
तैमूर लंग ने मार्च सन् 1398 ई० में भारत पर 92000 घुड़सवारों की सेना से तूफानी आक्रमण कर दिया। तैमूर के सार्वजनिक कत्लेआम, लूट खसोट और सर्वनाशी अत्याचारों की सूचना मिलने पर संवत् 1455 (सन् 1398 ई०) कार्तिक बदी 5 को देवपाल राजा (जिसका जन्म निरपड़ा गांव जि० मेरठ में एक जाट घराने में हुआ था) की अध्यक्षता में हरयाणा सर्वखाप पंचायत का अधिवेशन जि० मेरठ के गाँव टीकरी, निरपड़ा, दोगट और दाहा के मध्य जंगलों में हुआ।
सर्वसम्मति से निम्नलिखित प्रस्ताव पारित किये गये (1) सब गांवों को खाली कर दो। (2) बूढे पुरुष स्त्रियों तथा बालकों को सुरक्षित स्थान पर रखो। (3) प्रत्येक स्वस्थ व्यक्ति सर्वखाप पंचायत की सेना में भर्ती हो जाये। (4) युवतियाँ भी पुरुषों की भांति शस्त्र उठायें। (5) दिल्ली से हरद्वार की ओर बढ़ती हुई तैमूर की सेना का छापामार युद्ध शैली से मुकाबला किया जाये तथा उनके पानी में विष मिला दो। (6) 500 घुड़सवार युवक तैमूर की सेना की गतिविधियों को देखें और पता लगाकर पंचायती सेना को सूचना देते रहें।
पंचायती सेना पंचायती झण्डे के नीचे 80,000 मल्ल योद्धा सैनिक और 40,000 युवा महिलायें शस्त्र लेकर एकत्र हो गये। इन वीरांगनाओं ने युद्ध के अतिरिक्त खाद्य सामग्री का प्रबन्ध भी सम्भाला। दिल्ली के सौ सौ कोस चारों ओर के क्षेत्र के वीर योद्धा देश रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति देने रणभूमि में आ गये। सारे क्षेत्र में युवा तथा युवतियां सशस्त्र हो गये। इस सेना को एकत्र करने में धर्मपालदेव जाट योद्धा जिसकी आयु 95 वर्ष की थी, ने बड़ा सहयोग दिया था। उसने घोड़े पर चढ़कर दिन रात दूर दूर तक जाकर नर नारियों को उत्साहित करके इस सेना को एकत्र किया। उसने तथा उसके भाई करणपाल ने इस सेना के लिए अन्न, धन तथा वस्त्र आदि का प्रबन्ध किया।
प्रधान सेनापति, उप प्रधान सेनापति तथा सेनापतियों की नियुक्ति
सर्वखाप पंचायत के इस अधिवेशन में सर्वसम्मति से वीर योद्धा जोगराजसिंह गुर्जर को प्रधान सेनापति बनाया गया। यह खूबड़ परमार वंश का योद्धा था जो हरद्वार के पास एक गाँव कुंजा सुन्हटी का निवासी था। बाद में यह गाँव मुगलों ने उजाड़ दिया था। वीर जोगराजसिंह के वंशज उस गांव से भागकर लंढोरा (जिला सहारनपुर) में आकर आबाद हो गये जिन्होंने लंढोरा गुर्जर राज्य की स्थापना की। जोगराजसिंह बालब्रह्मचारी एवं विख्यात पहलवान था। उसका कद 7 फुट 9 इंच और वजन 8 मन था। उसकी दैनिक खुराक चार सेर अन्न, 5 सेर सब्जी फल, एक सेर गऊ का घी और 20 सेर गऊ का दूध।
महिलाएं वीरांगनाओं की सेनापति चुनी गईं उनके नाम इस प्रकार हैं  (1) रामप्यारी गुर्जर युवति (2) हरदेई जाट युवति (3) देवीकौर राजपूत युवति (4) चन्द्रो ब्राह्मण युवति (5) रामदेई त्यागी युवति। इन सब ने देशरक्षा के लिए शत्रु से लड़कर प्राण देने की प्रतिज्ञा की।
उपप्रधान सेनापति(1) धूला भंगी (बालमीकी) (2) हरबीर गुलिया जाट चुने गये। धूला भंगी जि० हिसार के हांसी गांव (हिसार के निकट) का निवासी था। यह महाबलवान्, निर्भय योद्धा, गोरीला (छापामार) युद्ध का महान् विजयी धाड़ी (बड़ा महान् डाकू) था जिसका वजन 53 धड़ी था। उपप्रधान सेनापति चुना जाने पर इसने भाषण दिया कि  “मैंने अपनी सारी आयु में अनेक धाड़े मारे हैं। आपके सम्मान देने से मेरा खूब उबल उठा है। मैं वीरों के सम्मुख प्रण करता हूं कि देश की रक्षा के लिए अपना खून बहा दूंगा तथा सर्वखाप के पवित्र झण्डे को नीचे नहीं होने दूंगा। मैंने अनेक युद्धों में भाग लिया है तथा इस युद्ध में अपने प्राणों का बलिदान दे दूंगा।” यह कहकर उसने अपनी जांघ से खून निकालकर प्रधान सेनापति के चरणों में उसने खून के छींटे दिये। उसने म्यान से बाहर अपनी तलवार निकालकर कहा “यह शत्रु का खून पीयेगी और म्यान में नहीं जायेगी।” इस वीर योद्धा धूला के भाषण से पंचायती सेना दल में जोश एवं साहस की लहर दौड़ गई और सबने जोर जोर से मातृभूमि के नारे लगाये।
दूसरा उपप्रधान सेनापति हरबीरसिंह जाट था जिसका गोत्र गुलिया था। यह हरयाणा के जि० रोहतक गांव बादली का रहने वाला था। इसकी आयु 22 वर्ष की थी और इसका वजन 56 धड़ी (7 मन) था। यह निडर एवं शक्तिशाली वीर योद्धा था।
सेनापतियों का निर्वाचन  उनके नाम इस प्रकार हैं (1) गजेसिंह जाट गठवाला (2) तुहीराम राजपूत (3) मेदा रवा (4) सरजू ब्राह्मण (5) उमरा तगा (त्यागी) (6) दुर्जनपाल अहीर।
जो उपसेनापति चुने गये (1) कुन्दन जाट (2) धारी गडरिया जो धाड़ी था (3) भौन्दू सैनी (4) हुल्ला नाई (5) भाना जुलाहा (हरिजन) (6) अमनसिंह पुंडीर राजपुत (7) नत्थू पार्डर राजपुत (8) दुल्ला (धाड़ी) जाट जो हिसार, दादरी से मुलतान तक धाड़े मारता था। (9) मामचन्द गुर्जर (10) फलवा कहार।
सहायक सेनापति  भिन्न भिन्न जातियों के 20 सहायक सेनापति चुने गये।
वीर कवि प्रचण्ड विद्वान् चन्द्रदत्त भट्ट (भाट) को वीर कवि नियुक्त किया गया जिसने तैमूर के साथ युद्धों की घटनाओं का आंखों देखा इतिहास लिखा था।
प्रधान सेनापति जोगराजसिंह गुर्जर के ओजस्वी भाषण के कुछ अंश
“वीरो! भगवान् कृष्ण ने गीता में अर्जुन को जो उपदेश दिया था उस पर अमल करो। हमारे लिए स्वर्ग (मोक्ष) का द्वार खुला है। ऋषि मुनि योग साधना से जो मोक्ष पद प्राप्त करते हैं, उसी पद को वीर योद्धा रणभूमि में बलिदान देकर प्राप्त कर लेता है। भारत माता की रक्षा हेतु तैयार हो जाओ। देश को बचाओ अथवा बलिदान हो जाओ, संसार तुम्हारा यशोगान करेगा। आपने मुझे नेता चुना है, प्राण रहते-रहते पग पीछे नहीं हटाऊंगा। पंचायत को प्रणाम करता हूँ तथा प्रतिज्ञा करता हूँ कि अन्तिम श्वास तक भारत भूमि की रक्षा करूंगा। हमारा देश तैमूर के आक्रमणों तथा अत्याचारों से तिलमिला उठा है। वीरो! उठो, अब देर मत करो। शत्रु सेना से युद्ध करके देश से बाहर निकाल दो।”
यह भाषण सुनकर वीरता की लहर दौड़ गई। 80,000 वीरों तथा 40,000 वीरांगनाओं ने अपनी तलवारों को चूमकर प्रण किया कि हे सेनापति! हम प्राण रहते-रहते आपकी आज्ञाओं का पालन करके देश रक्षा हेतु बलिदान हो जायेंगे।
मेरठ युद्ध तैमूर ने अपनी बड़ी संख्यक एवं शक्तिशाली सेना, जिसके पास आधुनिक शस्त्र थे, के साथ दिल्ली से मेरठ की ओर कूच किया। इस क्षेत्र में तैमूरी सेना को पंचायती सेना ने दम नहीं लेने दिया। दिन भर युद्ध होते रहते थे। रात्रि को जहां तैमूरी सेना ठहरती थी वहीं पर पंचायती सेना धावा बोलकर उनको उखाड़ देती थी। वीर देवियां अपने सैनिकों को खाद्य सामग्री एवं युद्ध सामग्री बड़े उत्साह से स्थान-स्थान पर पहुंचाती थीं। शत्रु की रसद को ये वीरांगनाएं छापा मारकर लूटतीं थीं। आपसी मिलाप रखवाने तथा सूचना पहुंचाने के लिए 500 घुड़सवार अपने कर्त्तव्य का पालन करते थे। रसद न पहुंचने से तैमूरी सेना भूखी मरने लगी। उसके मार्ग में जो गांव आता उसी को नष्ट करती जाती थी। तंग आकर तैमूर हरद्वार की ओर बढ़ा।
हरद्वार युद्ध मेरठ से आगे मुजफ्फरनगर तथा सहारनपुर तक पंचायती सेनाओं ने तैमूरी सेना से भयंकर युद्ध किए तथा इस क्षेत्र में तैमूरी सेना के पांव न जमने दिये। प्रधान एवं उपप्रधान और प्रत्येक सेनापति अपनी सेना का सुचारू रूप से संचालन करते रहे। हरद्वार से 5 कोस दक्षिण में तुगलुकपुर पथरीगढ़ में तैमूरी सेना पहुंच गई। इस क्षेत्र में पंचायती सेना ने तैमूरी सेना के साथ तीन घमासान युद्ध किए।
उप प्रधानसेनापति हरबीरसिंह गुलिया ने अपने पंचायती सेना के 25,000 वीर योद्धा सैनिकों के साथ तैमूर के घुड़सवारों के बड़े दल पर भयंकर धावा बोल दिया जहां पर तीरों* तथा भालों से घमासान युद्ध हुआ। इसी घुड़सवार सेना में तैमूर भी था। हरबीरसिंह गुलिया ने आगे बढ़कर शेर की तरह दहाड़ कर तैमूर की छाती में भाला मारा जिससे वह घोड़े से नीचे गिरने ही वाला था कि उसके एक सरदार खिज़र ने उसे सम्भालकर घोड़े से अलग कर लिया। (तैमूर इसी भाले के घाव से ही अपने देश समरकन्द में पहुंचकर मर गया)। वीर योद्धा हरबीरसिंह गुलिया पर शत्रु के 60 भाले तथा तलवारें एकदम टूट पड़ीं जिनकी मार से यह योद्धा अचेत होकर भूमि पर गिर पड़ा।
(1) उसी समय प्रधान सेनापति जोगराजसिंह गुर्जर ने अपने 22000 मल्ल योद्धाओं के साथ शत्रु की सेना पर धावा बोलकर उनके 5000 घुड़सवारों को काट डाला। जोगराजसिंह ने स्वयं अपने हाथों से अचेत हरबीरसिंह को उठाकर यथास्थान पहुंचाया। परन्तु कुछ घण्टे बाद यह वीर योद्धा वीरगति को प्राप्त हो गया। जोगराजसिंह को इस योद्धा की वीरगति से बड़ा धक्का लगा।
(2) हरद्वार के जंगलों में तैमूरी सेना के 2805 सैनिकों के रक्षादल पर भंगी कुल के उपप्रधान सेनापति धूला धाड़ी वीर योद्धा ने अपने 190 सैनिकों के साथ धावा बोल दिया। शत्रु के काफी सैनिकों को मारकर ये सभी 190 सैनिक एवं धूला धाड़ी अपने देश की रक्षा हेतु वीरगती को प्राप्त हो गये।
(3) तीसरे युद्ध में प्रधान सेनापति जोगराजसिंह ने अपने वीर योद्धाओं के साथ तैमूरी सेना पर भयंकर धावा करके उसे अम्बाला की ओर भागने पर मजबूर कर दिया।
इस युद्ध में वीर योद्धा जोगराजसिंह को 45 घाव आये परन्तु वह वीर होश में रहा। पंचायती सेना के वीर सैनिकों ने तैमूर एवं उसके सैनिकों को हरद्वार के पवित्र गंगा घाट (हर की पौड़ी) तक नहीं जाने दिया। तैमूर हरद्वार से पहाड़ी क्षेत्र के रास्ते अम्बाला की ओर भागा। उस भागती हुई तैमूरी सेना का पंचायती वीर सैनिकों ने अम्बाला तक पीछा करके उसे अपने देश हरयाणा से बाहर खदेड़ दिया।
वीर सेनापति दुर्जनपाल अहीर मेरठ युद्ध में अपने 200 वीर सैनिकों के साथ दिल्ली दरवाज़े के निकट स्वर्ग लोक को प्राप्त हुये।
इन युद्धों में बीच बीच में घायल होने एवं मरने वाले सेनापति बदलते रहे थे। कच्छवाहे गोत्र के एक वीर राजपूत ने उपप्रधान सेनापति का पद सम्भाला था। तंवर गोत्र के एक जाट योद्धा ने प्रधान सेनापति के पद को सम्भाला था। एक रवा तथा सैनी वीर ने सेनापति पद सम्भाले थे। इस युद्ध में केवल 5 सेनापति बचे थे तथा अन्य सब देशरक्षा के लिए वीरगति को प्राप्त हुये।
इन युद्धों में तैमूर के ढ़ाई लाख सैनिकों में से हमारे वीर योद्धाओं ने 1,60,000 को मौत के घाट उतार दिया था और तैमूर की आशाओं पर पानी फेर दिया।
हमारी पंचायती सेना के वीर एवं वीरांगनाएं 35,000, देश के लिये वीरगति को प्राप्त हुए थे।
प्रधान सेनापति की वीरगति - वीर योद्धा प्रधान सेनापति जोगराजसिंह गुर्जर युद्ध के पश्चात् ऋषिकेश के जंगल में स्वर्गवासी हुये थे।
(सन्दर्भ जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठान्त ३७९,३८३ )
ध्यान दीजिये। एक सवर्ण सेना का उपसेनापति वाल्मीकि था। अहीर, गुर्जर से लेकर 36 बिरादरी उसके महत्वपूर्ण अंग थे। तैमूर को हराने वाली सेना को हराने वाली कौन थे? क्या वो जाट थे? क्या वो राजपूत थे? क्या वो अहीर थे? क्या वो गुर्जर थे? क्या वो बनिए थे? क्या वो भंगी या वाल्मीकि थे? क्या वो जातिवादी थे?
नहीं वो सबसे पहले देशभक्त थे। धर्मरक्षक थे। श्री राम और श्री कृष्ण की संतान थे,गौ, वेद , जनेऊ और यज्ञ के रक्षक थे।
आज भी देश उसी संकट में आ खड़ा हुआ है। आज भी विधर्म हिन्दुओ के जड़ों को काट रहे है। आज भी हिन्दुओ में फिर से जातिवाद से ऊपर उठ कर एकजुट होकर अपने धर्म, अपनी संस्कृति और अपनी मातृभूमि की रक्षा का व्रत लेना हैं। यह तभी सम्भव है जब हिन्दू अपनी संकीर्ण मानसिकता से ऊपर उठकर सोचना आरम्भ करेंगे ।