Sunday, January 23, 2022

पुराने जमाने में जब हॉस्पिटल नहीं होते थे तो . . .

बच्चे की नाभि कौन काटता था मतलब पिता से भी पहले कौन सी जाति बच्चे को स्पर्श करती थी ?

आपका मुंडन करते वक्त कौन स्पर्श करता था ?

शादी के मंडप में नाईं और धोबन भी होती थी। लड़की का पिता लड़के के पिता से इन दोनों के लिए साड़ी की मांग करता था।

वाल्मीकियनो के बनाये हुए सूप से ही छठ व्रत होता हैं ।

आपके घर में कुँए से पानी कौन लाता था?

भोज के लिए पत्तल कौन सी जाति बनाती थी?

किसने आपके कपडे धोये?

डोली अपने कंधे पर कौन मीलो मीलो दूर से लाता था और उनके जिन्दा रहते किसी की मजाल न थी की आपकी बिटिया को छू भी दे।

किसके हाथो से बनाये मिटटी की सुराही से जेठ में आपकी आत्मा तृप्त हो जाती थी ?

कौन आपकी झोपड़ियां बनाता था?

कौन फसल लाता था?

कौन आपकी चिता जलाने में सहायक सिद्ध होता हैं?

जीवन से लेकर मरण तक सब सबको कभी न कभी स्पर्श करते थे।

. . . और कहते है की छुआछूत था ??
यह छुआ छूत की बीमारी मुस्लिमों और अंग्रेजों ने हिंदु धर्म को तोड़ने के लिए एक शाजिस के तहत डाली थी। 

जातियां थी, पर उनके मध्य एक प्रेम की धारा भी बहती थी, जिसका कभी कोई  उल्लेख नहीं करता। 
अगर जातिवाद होता तो राम कभी सबरी के झूठे बेर ना खाते, कृष्ण कभी सुदामा के पैर ना धोते.... 

जाति में मत टूटीये, धर्म से जुड़िये . . . देश जोड़िये। सभी को अवगत कराएं

सभी जातियाँ सम्माननीय हैं...
एक हिंदु, एक भारत श्रेष्ठ भारत🚩🚩🚩
ll जय श्री राम ll

Thursday, January 20, 2022

सत्यविचार!

पुष्पा के खास दोस्त का नाम "केशव" था । पुष्पा की मां का नाम "पार्वती" था । उसके पिता का नाम "वेंकटरमण" था । उसकी प्रेमिका का नाम "श्रीवल्ली" था । उसके ससुर का नाम "मुनिरत्नम" था ।

पुष्पा के मालिक का नाम "कोंडा रेड्डी" था । जिस डीएसपी ने पुष्पा को पकड़ा था उसका नाम "गोविंदम" था ।
जिस थानेदार ने पुष्पा के साथ इंट्रोगेशन किया उसका नाम "कुप्पाराज" था ।

पुष्पा के सबसे बड़े दुश्मन का नाम "मंगलम श्रीनू" था । जो पुष्पा को मारना चाहता था , श्रीनू का साला उसका नाम "मोगलिस" था ।
डॉन कोंडा रेड्डी के विधायक दोस्त मंत्री जी का नाम "भूमिरेड्डी सिडप्पा नायडू" था ।
लाल चंदन का सबसे बड़ा खरीददार "मुरुगन" था ।

फ़िल्म मुझे इसलिए भी अच्छी लगी क्योंकि इसमें कैरेक्टर वाइज कोई न सलीम था न कोई जावेद था । न रहम दिल अब्दुल चचा थे । न पांच वक्त का नमाजी सुलेमान था ।
न अली-अली था न मौला-मौला था । न दरगाह थी , न मस्जिद थी , न अजान थी । न सूफियाना सियापा था ।
 
बस माथों पर लाल चंदन के तिलक थे । मंदिर थे । मंत्र थे । संस्कृत के श्लोक थे ।
काम शुरू करने से पूर्व देवी की पूजा थी । नए दूल्हा-दुल्हन के चेक पोस्ट से गुजरने पर उन्हें भेंट देने की प्रथा थी । पत्तल में खाना था । देशज वेशभूषा थी । अपनी प्रथाओं , परंपराओं का सम्मान था ।

बस यही सब बातें थी जो मैं बॉलीवुड में बहुत मिस करता हूँ और मेरी तरह बहुत से लोग करते होंगे । साउथ सिनेमा की ओर बॉलीवुड के दर्शकों का  झुकाव होने एक कारण यह भी है ।

ऐसी फिल्में देखने के बाद महसूस होता है कि हां हम अपने ही देश में है..............

सनातनी भारत भूमि पर ही हैं............।