लेखक :- स्वामी ओमानंद सरस्वती
पुस्तक :- आर्यसमाज के बलिदान
प्रस्तुति :- अमित सिवाहा
धर्म पर ही मिटूगा मैं धर्म ही मुझको प्यारा है ।
यही हमदर्द है मेरा यही मेरा सहारा है ।।
हिन्दू जाति का धार्मिक इतिहास बलिदान की रक्त रञ्जित कहानियों से भरा पड़ा है । इस शस्य स्यामल सुन्दर देश पर जिस किसी विदेशी ने आक्रमण किया , उसी ने इस जाति का नामो निशान तक मिटा देने का प्रयत्न किया ; परन्तु कुछ ऐसी दैवी सम्पत्ति - दिव्य - रण इस जाति में हैं जिन्होंने इसकी सदा रक्षा की है । कुरान की इस निष्ठुरता , क्रूरता , द्वेष की आधारस्थली शिक्षा ने कि काफिरों को मारने से बहिश्त मिलता है , वे कदापि क्षमा के योग्य नहीं हैं - संसार में कितना हत्याकांड मचाया है , कैसे - कैसे अनर्थ किये हैं , इसको इतिहास भलीभांति जानता है ।
आर्यावर्त्त में २५० या ३०० वर्ष का शासनकाल उसमें भी औरङ्गजेब जमाना इनके शासन और सभ्यता का नमूना है । गुरु तेगबहादुर की निर्मम हत्या , बन्दा बैरागी और उसके साथियों का अमानुषिक उपायों द्वारा प्राणहरण तथा इस्लाम कबूल करवाने के लिए जगह जगह मुहम्मदी तलवारों द्वारा हुए कत्लेआम का इतिहास हम दोहराना नहीं चाहते । हम पाठकों को उस धर्मवीर की कहानी सुनाना चाहते हैं जो हिन्दू जाति का सुपुत्र था , आर्यभूमि का लाल था और अपनी इस मातृभूमि से दूर कन्दहार देश में अपने धर्म के कारण इस्लामी कानून का शिकार हो गया ।
मुरली मनोहर कन्दहार का रहने वाला था । उसके माता - पिता व्यापार करते हुए उसी प्रान्त में जा बसे थे । मुरली कपूर खत्रियों के कुल का सुपुत्र था । कपड़े की दुकान करता था । उसके शरीर का गठन सुन्दर था । रंग गोरा था । देह बलिष्ठ थी । आयु उसकी लगभग २३ वर्ष की होगी । उसकी नसों में आर्य जाति का रक्त वेग से प्रवाहित होता था । गीता का वह परम भक्त था । वह नित्य स्नानादि से निवृत होकर गीता का पाठ किया करता था । अपनी मधुर वाणी से जब वह श्लोक का उच्चारण करता था तब लोग तन्मय होकर सुनने लग जाते थे । इस प्रकार सुख शांति और आनन्द के साथ उन के दिन व्यतीत हो रहे थे ।
नित्य की भान्ति मुरली मनोहर नदी पर स्नान करने गया । उससे कुछ दूरी पर कुछ पठान भी स्नानादि कर रहे थे । उन्होंने छेड़खानी प्रारम्भ की । दोनों हाथों से पानी उलीचने लगे । पहले तो मुरली कुछ नहीं बोला परन्तु जब जप करना कठिन हो गया तब उसने निषेध किया । पठान तो मौका ही ढूंढ रहे थे । विवाद बढ़ने लगा । पहले तो पठानों ने मुरली के माता पिता को गालियाँ दी । पश्चात् उसके मुंह पर थूक कर देवी देवताओं को गाली देने लग गये । मुरली गाली सहन न कर सका । वह भी मनुष्य था । उसमें भी आत्मसम्मान की मात्रा विद्यमान थी । उसने भी उसी तरह जवाब लौटाना शुरू कर दिया । पठान क्रोध से आग बबूला हो गये । उन्होंने चिल्ला कर कहा - अच्छा काफिर कल देखा जायेगा । मुरली ने सोचा चलो बात खत्म हुई , परन्तु पठान तो वैसे नहीं थे ।
नहाकर वह घर आया । कपड़े पहनकर दुकान जाने को तैयारी कर रहा था कि उसे मालूम हुआ कि उसका मकान अफगान सिपाहियों ने घेर लिया है । वह बाहर आया और कैद कर लिया गया । मुरली मनोहर कन्दहार के गवर्नर के पास लाया गया । कचहरी में पठान चिल्ला उठे - खून कर दो । काफिर है कल ! कत्ल । हाकिम की निगाह ने न्याय अन्याय सब कुछ ऐक नजर में समझ लिया । परन्तु वह स्थिति को पलटने में असमर्थ था । मजहबी जोश के विरुद्ध निर्णय करना उसके काबू के बाहर की बात थी ।
मुकदमा शुरू हुआ । गवाहों ने साबित कर दिया कि काफिर मुरली ने ' पीर ' को गालियां दी हैं । मुरली के चेहरे को देखकर हाकिम का दिल कांप गया । उसने कहा- " मुरलीमनोहर " ! पीर को गालियां देकर सचमुच तुमने काफिर का काम किया है । कानून में तुम्हारी सजा मौत है लेकिन तुम्हारी नौजवानी और पहली भूल के कारण मैं तुम्हें माफी दे सकता हूं यदि तुम इस्लाम धर्म को स्वीकार कर लो । बड़े आराम से तुम अपना जीवन बिता सकोगे । मुरली यह सुनकर चौंक उठा । उसने कहा - मैं इस्लाम धर्म कभी भी कबूल नहीं करूगा । मैं सच्चा हिन्दू हूं । जीते जी कभी भी हिन्दू जाति के भाल पर कलङ्क का टीका नहीं लगा सकता । हाकिम ने कहा - बेवकूफ ! बे मौत मरेगा । जीने मरने का सवाल है । सोचकर जवाब दो । मुरली मनोहर ने कहा - हम कौनसे सदा जीने के लिए आये हैं । यह जान तो जाने के लिये ही है । फिर क्यों चार दिन की जिन्दगी के लिये अपना धर्म छोड़ कर अधर्म को ग्रहण करू , अपना नाम कलङ्कित करू ' , अपने वंश का नाम डुबाऊं और जिस जाति में जन्म लिया उसका नाम बदनाम करूं । इस्लाम धर्म का नाम लेना मेरे लिए पाप है । इस्लाम कबूल करने की बनिस्बत मैं इस कचहरी की दीवार पर सिर पटक कर मर जाना अच्छा समझता हूँ । हाकिम ने कहा - मुरली मनोहर ! आज रात भर सोचने का तुम्हें फिर मौका देता हूँ । अच्छी तरह सोच लो । "
मुरली रात भर गीता का पाठ करता रहा और भगवान् से प्रार्थना करता रहा कि उसे वह शक्ति और बल प्रदान करे कि मृत्यु का सामना शान्ति के साथ कर सके । प्रातः मुरली के माता पिता रोते रोते मिलने आये । मां ने कहा -बेटा , मेरी बात मान ले । यदि तू जिन्दा रहेगा तो मैं कभी देख तो लूगी । मुरली का चित्त यह सुनकर मन्युपूर्ण हो गया । उसने कहा - मैं अपनी माता के मुख से यह क्या बात सुन रहा हूं । मुझे ऐसी आशा नहीं थी । मां ! तुम हिन्दू नारी होती हुई यह क्या कह रही हो । यदि यही उपदेश देना था , तो मुझे क्यों आर्य जाति में उत्पन्न किया , क्यों बचपन ही से गीता के श्लोकों का पाठ कराया । मां , तुम आर्य माता हो , आर्यत्व का परिचय दो । यह पठान भी देखलें कि किस प्रकार एक प्रार्य माता अपने पुत्र को कर्तव्य के रणाङ्गण में विजय का आशीर्वाद देकर भेजती है । हाकिम ने पूछा - क्या इरादा है ? मुरली ने कहा- मैं हिन्दू हूं - आर्य जाति का पुत्र हूं । उनका पवित्र रक्त मेरी धमनियों में चल रहा है । मुझे अपने धर्म को बेचने या बर्बाद करने का कोई अधिकार नहीं । जाति का ही मुझ पर अधिकार है । आपका म्लेच्छ धर्म ग्रहण नहीं कर सकता । एक ऊंची जगह पर मुरली को आधा गाड़ दिया गया । हिन्दू जनता अपने सपूत को आंखों के सामने मरते देख गर्म गर्म आंसू बहा रही थी । ईंट , पत्थर , ढेलों से पठानों ने मुरली को मार डाला । वे एक काफिर को मार कर अत्यधिक प्रसन्नता प्रकट कर रहे थे । हकीकतराय की स्मृति को पुनः जगा कर , अपने धर्म प्रेम का परिचय देकर मुरली परमात्मा की गोद में चला गया
( दयानन्द सन्देश दिल्ली के कर्मवीर परिशिष्टाङ्क की सहायता से । )
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