पुस्तक मेले में अम्बेडकरवादियों की स्टाल पर सन्त कबीर के विषय में 2 किताब बिक रही थी जिनके चित्र दिए गए हैं. एक में लिखा है कि सन्त कबीर नास्तिक थे. दूसरी में लिखा है कि सन्त कबीर जी बौद्ध मान्यता से प्रभावित थे.
सन्त कबीर जी सनातन धर्म में आस्था रखते थे. वे ईश्वर, मुक्ति और पुनर्जन्म में विश्वास रखते थे. वे ईश्वर को सृष्टिकर्ता मानते थे.वे जन्म से नहीं गुणों से ब्राह्मणत्व मानते थे
गुरु ग्रन्थ साहिब में सन्त कबीर जी की वाणी है. उसमे कबीर जी खुद के बारे में कहते हैं.अपने पिछले जन्मों के बारे मे बताते हैं कि किसी जन्म मे मैं राजा बना तो किसी जन्म मे भिखारी। किसी जन्म में योगी बना, कभी यति= सन्यासी बना, कभी तपस्वी बना और कभी ब्रह्मचारी बना। यहां पर स्वयं सन्त कबीर दास जी स्वयं अपने पूर्व जन्मो के बारे मे बता रहे हैं। सन्त कबीर जी अपने पिछले जन्मों का हाल बताते हुए परमात्मा से कृपा मांग रहे है.
1**कबीर जी स्वयं अपने पुर्व जन्म के विषय मे क्या कहते हैं। (गुरू ग्रन्थ पृष्ठ 326)
जब हम राम गरभ होइ आए ॥१॥
मैं मां के गर्भ मे आने से पहले
जोगी जती तपी ब्रहमचारी ॥
योगी = योगसाधक, यति = सन्यासी, तपी = तपस्वी और ब्रह्मचारी था।
कबहू राजा छत्रपति कबहू भेखारी ॥
किसी जन्म में मैं सम्राट बना तो किसी जन्म मे भिखारी बना।
साकत मरहि संत सभि जीवहि ॥
साकत = शाक्त (वाममार्गी)
अब कबीर जी अपनी मान्यता को बताते हुए कहते हैं कि शाक्त ( जो शराब पीना, मांस खाना और पराई स्त्री से सम्बन्ध रखना आदि को धर्म का अंग मानते हैं) जीते जी भी मरे हुए के समान है (बुरे आचरण के कारण) । सन्त (संयमी, सदाचारी, परोपकरी) ही सच्चे अर्थों मे जीवित है।
राम रसाइनु रसना पीवहि ॥३॥
रसाइनु= रसायन आयुर्वेद में स्वास्थ्य वर्धक औषधियों को रसयान (जैसे च्यवनप्राश) कहते हैं । अपनी रसना (जीभ) से ईश्वर का जप करना जीवनदायी रसायन के समान है।
कहु कबीर प्रभ किरपा कीजै ॥
कबीर जी कहते हैं कि हे ईश्वर अब मुझ पर कृपा करो।
हारि परे अब पूरा दीजै ॥४॥
यहां पर कबीर दास जी प्रभु (परमात्मा) से पूर्णता (मुक्ति) की प्रार्थना करते हैं.
2- सन्त कबीर दास जी ने ईश्वर को सर्वव्यापक माना है। (गुरू ग्रन्थ पृष्ठ 855)
कहु कबीर मेरे माधवा तू सरब बिआपी ॥ Says Kabeer, O my Lord, You are contained in all. सरब बिआपी= सर्वव्यापी
तुम समसरि नाही दइआलु मोहि समसरि पापी ॥४॥३॥ There is none as merciful as You are, and none as sinful as I am. ||4||3||
3----संत कबीरदास जी ने ईश्वर को ब्रह्म कहा है (गुरू ग्रन्थ 1373)
कबीर मनु सीतलु भइआ पाइआ ब्रहम गिआनु ॥
सन्त कबीर दास जी कहते हैं कि ब्रह्मज्ञान को पाकर वैसे मन का सन्ताप दूर हो गया और शीतलता (शान्ति) प्राप्त हो गई ।
जिनि जुआला जगु जारिआ सु जन के उदक समानि ॥१७५॥
जैसे बुराई और स्वार्थ की आग से जल रहे संसार में श्रेष्ठ मनुष्य (सु =अच्छा, जन= मनुष्य) उदक (पानी) के समान हैं।
कबीर सारी सिरजनहार की जानै नाही कोइ ॥
सिरजनहार= सृष्टि का सृजन (निर्माण) करने वाला। यहां पर कबीर जी ब्रह्म अर्थात ईश्वर को सृष्टि का सृजन (निर्माण) करने वाला बता रहे हैं
4- ब्राह्मण जन्म से नहीं कर्म से होता है.गुरू ग्रन्थ साहेब पृष्ठ 324
गरभ वास महि कुलु नही जाती ब्रहम बिंदु ते सभ उतपाती ॥१॥
गर्भ में किसी का कुल या जाति नहीं होती .सभी की उत्पत्ति ब्रह्म अर्थात ईश्वर से होती है ।
कहु रे पंडित बामन कब के होए ॥ बामन कहि कहि जनमु मत खोए ॥
कहु कबीर जो ब्रहमु बीचारै ॥ सो ब्राहमणु कहीअतु है हमारै ॥४॥
कबीर जी कहते हैं कि जो ब्रह्म अर्थात ईश्वर का विचार करता है वही ब्राह्मण है.
No comments:
Post a Comment