स्कूल से लेकर यूनिवर्सिटी तक इतिहास में खिलजी को महान बताया जाता है. कितना महान था अलाउद्दीन खिलजी ?
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अलाउद्दीन खिलजी (1296-1316)
खिलजी दरबार के उस समय के मुस्लिम इतिहास लेखक जियाउद्दीन बरानी ने अपने प्रसिद्ध प्रलेख "तारीख-ई-शाही" में लिखा था― ''सारा गुजरात अलाउद्दीन की सेना का शिकार हो गया और सोमनाथ की मूर्ति, जो मुहम्मद गौरी के गज़नी चले जाने के बाद हिन्दुओं ने पुनः स्थापित कर दी गई थी, को हटाकर दिल्ली ले आया गया और लोगों के पैरों तले कुचले जाने, अपमानित किये जाने के लिए मस्जिदों की सीढ़ियों में लगा दी गई।'
(तारीख-ई-फीरोजशाही : जियाउद्दीन बारानी, अनु.एलियट और डाउसन, खण्ड III पृष्ठ १६३)
''अलाउद्दीन की सेनायें सम्पूर्ण देश के एक क्षेत्र के बाद दूसरे क्षेत्रों में गईं और विनाश किया। वे अपने साथ अधिकाधिक दास, काफिरों को धर्मान्तरित किया और हजारों हिन्दू महिलाओं को पकड़ कर लाये। जिन्हें योद्धाओं के हरम में भेज दिया गया। गाजी लोग पुनः गुजरात गये।
अब्दुल्ला वस्साफ ने अपने इतिहास प्रलेख-तारीख-ई- वस्साफ-में लिखा था― '' उन्होंने कम्बायत को घेर लिया और मुसलमानों ने इस्लाम के लिए पूर्ण जिहाद किया। निर्दयतापूर्वक चारों ओर-दायी और बाईं ओर सारी अपवित्र भूमि पर मूर्तिपूजकों का वध और कत्ल शुरू कर दिये और हिन्दुओं का रक्त मूसलाधार वर्षा की तरह बहा।'
(तारीख-ई-वस्साफ अब्दुल्ला वस्साफ अनु. एलियट और डाउसन, खण्ड III पृष्ठ ४२-४३)
लूट और मूर्ति भन्जन जियाउद्दीन बरानी की भाँति अब्दुला वस्साफ ने भी अल्लाउद्दीन द्वारा सोमनाथ की लूट का विस्तृत सजीव विवरण लिखा था। अपने प्रलेख में वस्साफ ने लिखा था―
"उन्होंने सोमनाथ में लगभग बीस हजार सुन्दर सभ्य हिन्दू महिलाओं को बन्दी बना लिया और अनगिनत बच्चों को, जिनकी संख्या कलम भी लिख भी न सके, भी बन्दी बना लिया.. संक्षेप में मुहम्मद की सेना ने सम्पूर्ण देश का विकराल विनाश किया, निवासियों के जीवनों को नष्ट किया, शहरों को लूटा; और उनके बच्चों को बन्दी बनाया, बहुत से मन्दिरों का विध्वंस किया गया, मूर्तियाँ तोड़ दी गईं और पैरों के नीचे रौंदी गईं और हजारों लोगों ने प्राण बचाने के लिए इस्लाम स्वीकार किया।
प्रसिद्ध सूफी कवि अमीर खुसरु ने लिखा था― "हमारे पवित्र सैनिकों की तलवारों के कारण सारा देश एक काँटों रहित जंगल जैसा हो गया है। हमारे सैनिकों की तलवारों के वारों के कारण काफिर हिन्दू भाप की तरह समाप्त कर दिये गये हैं। हिन्दुओं में शक्तिशाली लोगों को पाँवों तले रोंद दिया गया है। इस्लाम जीत गया है, मूर्ति पूजा हार गई है, दबा दी गई है।'
(तारीख-ई-अलाई अनु. एलियट और डाउसन, खण्ड III )
निजामुद्दीन औलिया जो दूर-दूर तक देहली के सूफी चिश्ती के रूप में विख्यात है, के कवि शिष्य, अमीर खुसरु, ने अपने प्रलेख "तारीख-ई-अलाई" में अलाउद्दीन द्वारा दक्षिण भारत में जिहाद का बड़े आनन्द के साथ विवरण किया है― ''उस समय के खलीफा की तलवार की जीभ, जो कि इस्लाम की ज्वाला की भी जीभ है, ने सारे हिन्दुस्तान के सम्पूर्ण अँधेरे को अपने मार्गदर्शन द्वारा प्रकाश दिया है...दूसरी ओर तोड़े गये सोमनाथ मन्दिर से इतनी धूल उड़ी जिसे समुद्र भी, भूमि पर नीचें स्थापित नहीं कर सका; दायीं ओर बायीं ओर, समुद्र से लेकर समुद्र तक हिन्दुओं के देवताओं की अनेकों राजधानियों को, जहाँ जिन्न के समय से ही काफिरों की शैतानी बस्तियाँ थी, सेना ने जीत लिया है और सभी कुछ विध्वंस कर दिया गया है। देवगिरी (अब दौलताबाद) में अपने प्रथम आक्रमण के प्रारम्भ द्वारा, सुल्तान ने, मूर्ति वाले मन्दिरों के ध्वंस द्वारा, गैर-मुसलमानों की सारी अपवित्रताओं को समाप्त कर दिया है और उन्हें इस्लाम में दीक्षित किया है ताकि अल्लाह के कानून के प्रकाश की किरणें इन अपवित्र देशों को पवित्र व प्रकाशित करें, मस्जिदों में नमाज़ें हों और अल्लाह की प्रशंसा हो।'
(तारीख-ई-अलाई अमीर खुसरु - अनु. एलियट और डाउसन, खण्ड III पृष्ठ ८५)
बर्नी ने अपने प्रलेख में आगे लिखा कि― "सुल्तान ने काज़ी से पूछा कि इस्लामी कानून में हिन्दुओं की क्या स्थिति है? काज़ी ने उत्तर दिया, 'ये जाजिया (टैक्स) देने वाले लोग हैं और जब आय अधिकारी इनसे चाँदी मांगें तो इन्हें अपनी जान बचाने के लिए पूर्ण विनम्रता, व आदर से सोना देना चाहिए। यदि अफसर इनके मुँह में थूक फेंकें तो इन्हें उसे लेने के लिए अपने मुँह खोल देने चाहिए। इस्लाम की महिमा गाना इनका कर्तव्य है...अल्लाह इन पर घृणा करता है, इसीलिए वह कहता है― ''इन्हें दास बना कर रखो।''
हिन्दुओं को नीचा दिखाकर रखना एक इस्लामी कर्तव्य है क्योंकि हिन्दू पैगम्बर के सबसे बड़े शत्रु हैं और चूंकि पैगम्बर ने हमें आदेश दिया है कि हम इनका वध करें, इनको लूट लें, इनको बन्दी बना लें, इस्लाम में परिवर्तित कर लें या हत्या कर दें (कुरान. ९ : ५)।
इस पर अलाउद्दीन ने कहा― ''अरे काजी! तुम तो बड़े विद्वान आदमी हो यह पूरी तरह इस्लामी कानून के अनुसार ही है, कि (आर्यों) हिन्दुओं को निकृष्टतम दासता और आज्ञाकारिता के लिए विवश किया जाए... हिन्दू तब तक विनम्र और दास नहीं बनेंगे जब तक इन्हें अधिकतम निर्धन न बना दिया जाए।'
(तारीख-ई-फीरोजशाही-बारानी अनु. एलियट और डाउसन, खण्ड III पृष्ठ १८४-८५)
बारानी की तारीख― "ई-फीरोजशाही" के संदर्भ में मोरलैण्ड ने अपने प्रसिद्ध शोध, ''अग्रेरियन सिस्टम इन मुस्लिम इण्डिया'' में लिखा है― 'सुल्तान ने इस्लामी विद्वानों से उन नियमों और कानूनों को पूछा, ताकि हिन्दुओं को पीसा जा सके, सताया जा सके, और उनकी सम्पत्ति और अधिकार, सब छीना जा सके।'
(मोरलैण्ड-दी ऐग्रेरियान सिस्टम इन मुस्लिम इण्डिया एण्ड दी देहली सुल्तनेट, भारतीय विद्या भवन द्वितीय आवृत्ति पृष्ठ २४)
इस सन्दर्भ में बारानी ने लिखा कि जिन हिन्दुओं ने अल्लाह का मज़हब इस्लाम स्वीकार नहीं किया अलाउद्दीन ने उन्हें यातनाएँ देकर कत्ल करा दिया और उनके आश्रितों की दशा इतनी हीन, पतित और कष्ट युक्त बना दी थी, और उन्हें इतनी दयनीय दशा में पहुँचा दिया था, कि उनकी महिलाएं और बच्चे मुसलमानों के घर भीख माँगने के लिए विवश थे।'
(तारीख-ई-फीरोजशाही और फ़तवा-ई-जहानदारी : एलियट और डाउसन, खण्ड III)
सभी मुस्लिम शासकों के लिए दास हिन्दुओं की क्रय- विक्रय सरकारी आय का एक महत्वपूर्ण स्त्रोत था। किन्तु खिलजियों और तुगलकों के काल में हिन्दुओं पर इन यातनाओं का स्वरूप गगन चुम्बी एवं अधिकतम हो गया था।
अमीर खुसरु ने बताया― ''तुर्क जब चाहते थे हिन्दुओं को पकड़ लेते, क्रय कर लेते अथवा बेच देते थे और उनकी महिलाओं को सुल्तान और उसके अफसरों या सिपहसालारों के हरम में भेज दिया जाता था। इन यातनाओं से बचने के लिए मस्जिदों के बाहर मुसलमान बनने के लिए (आर्यों) हिन्दुओं की कतारें हमेशा लगी ही रहती थी।
(अमीर खुसरु : नूर सिफर : एलियट और डाउसन, खण्ड III पृष्ठ ५६१)
बरनी ने आगे लिखा कि ''घर में काम अाने वाली वस्तुएँ जैसे गेहूँ, चावल, घोड़ा और पशु आदि के मूल्य जिस प्रकार निश्चित किये जाते हैं, अलाउद्दीन ने बाजार में हिन्दू दासों के मूल्य भी निश्चित कर दिये। एक हिन्दू लड़के का विक्रय मूल्य २०-३० तन्काह तय किया गया था। दास लड़कों का उनके कार्यक्षमता के आधार पर वर्गीकरण किया जाता था।
काम करने वाली लड़कियों का मानक सौंदर्य था। अच्छी दिखने वाली स्वस्थ यौवनशील लड़की का मूल्य २०-४० तन्काह, और सुन्दर उच्च परिवार की लड़की का मूल्य एक हजार से लेकर दो हजार तन्काह होता था।''
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