हर रोज टेलीविज़न पर, अखबारों मे इस तरह के विज्ञापन आते हैं। जिनमे हनुमान जी के नाम पर ताबीज, माला, हनुमान यन्त्र आदि बेचा जाता है. इससे पहले यह अखबारों और पत्रिकाओं में बिकता था. अब ऑनलाइन भी बिकता है. इसका हनुमान जी से कोई सम्बन्ध नहीं है. यह शुद्ध ठगी है. ये लोग आपकी श्रद्धा का उपयोग धंधे के लिए करते हैं. इनसे कष्ट दूर नहीं होते. इनसे कोई समृद्धि नहीं आती. इनसे कोई परीक्षा पास नही हो सकती. इनसे भाग्य नहीं बदलता. बिल गेट्स, वारेन बफ्फे, मुकेश अम्बानी किसी यन्त्र से धनी नहीं बने. ओलम्पिक विजेता, राजनेता व नोबल विजेता इन ताबीजों, धागों व यंत्रों से सफल नहीं होते.
ध्यान दें-
1- हनुमान जी ने बिना किसी मूल्य के श्रीराम जी का कार्य किया. तो आज अचानक हनुमान जी को एजेंटों की जरूरत कैसे हो गई. ये हनुमान जी की अपमान है.
2- यदि इन धातु और प्लास्टिक के टुकड़ों (श्री यन्त्र , नजर रक्षा कवच आदि) में कोई गुण होता तो धनी उद्योगपति व राजनेता इन्हें अपने पास ही रखते.
3- ईश्वर को रिश्वत नहीं चाहिए.
4- हम इनका विरोध नहीं करेंगे तो ये इसी तरह लोगों को ठगते रहेंगे.
5-जब भूत प्रेत पिशाच आदि होते ही नहीं तब हनुमान जी किसे भगाएंगे.
कैसे थे हनुमान जी? वाल्मीकि रामायण से हनुमान जी के गुणों को जानिए.
पहली बार हनुमान जी से भेंट होने पर भगवान श्राीरम जी लक्ष्मण से हनुमान जी के विषय में कहते हैं.
(१) वेदज्ञ और राजमन्त्री हनुमान जी :-
सचिवोऽयं कपीन्द्रस्य सुग्रीवस्य महात्मनः । तमेव कांक्षमाणस्य ममान्तिक मिहागतः ।।२३।।
ना ऋग्वेद विनीतस्य ना यजुर्वेदधरिणः । ना सामवेदविदुषः शक्यमेवविभाषितम् ।।२८।।
( वल्मिक रामायण किष्किन्धा काण्ड सर्ग-३ )
अर्थात् :- हे लक्षमण ! यह ( हनुमान जी ) सुग्रीव के मन्त्री हैं और उनकी इच्छा से यह मेरे पास आये हैं । जिस व्यक्ति ने ऋग्वेद को नहीं पढ़ा है, जिसने यजुर्वेद को धारण नहीं किया है, जो सामवेद का पण्डित नहीं है, वह व्यक्ति, जैसी वाणी यह बोल रहे हैं वैसी नहीं बोल सकता है ।
शब्दशास्त्र ( व्कायरण ) के पण्डित हनुमान जी :-
नृनं व्याकरण कृत्मनमनेन बहुधा श्रुतम् । बहुव्यवहारतानेन न किञ्चिदशाब्दितम् ।।२९।।
( वल्मिकी रामायण किष्किन्धा काण्ड सर्ग-३ )
अर्थात् :- इन्होंने निश्चित ही सम्पूर्ण व्याकरण पढ़ा है क्योंकि इन्होंने अपने सम्पूर्ण वर्तालाप में एक भी अशुद्ध शब्द का उच्चारण नहीं किया है ।
श्रीरामो लक्ष्मणं प्राह पश्यैनं बटृरूपिणाम । शब्दशास्त्रमशेण श्रुतं नृनमनेकधा ।।१७।।
अनेकभाषितं कृत्सनं न किञ्चिदपशब्दितम् । ततः प्राह हनुमन्तं राघवो ज्ञान विग्रहः ।।१८।।
( वल्मिकी रामायण किष्किन्धा काण्ड सर्ग-१ )
अर्थात् :- राम ने कहा "हे लक्षमण ! इस ब्रह्मचारी को देखो । अवश्य ही इसने सम्पूर्ण व्याकरण कई बार भली प्रकार से पढ़ा है । देखो ! इतनी बातें कहीं किन्तु इसके बोलने में कहीं कोई एक भी अशुद्धि नहीं हुई ।
वाक्यज्ञो वाक्य कुशलः पुनः न उवाच किंचन ॥
तम् अभ्यभाष सौमित्रे सुग्रीव सचिवम् कपिम् ।
वाक्यज्ञम् मधुरैः वाक्यैः स्नेह युक्तम् अरिन्दम ॥
न मुखे नेत्रयोः च अपि ललाटे च भ्रुवोः तथा ।
अन्येषु अपि च सर्वेषु दोषः संविदितः क्वचित् ॥
अविस्तरम् असंदिग्धम् अविलम्बितम् अव्यथम् ।
उरःस्थम् कण्ठगम् वाक्यम् वर्तते मध्यमे स्वरम् ॥
अञ्जनि पुत्र हनुमान जी श्री राम चन्द्र से प्रथम भेट में ही मन मोह लिया जिसके प्रत्युतर में भगवन ने लक्ष्मण जी से ये कहा ।
वाक्यज्ञ बीर श्री रामचंद्र और लक्षमण से इस प्रकार वाक्यकुशल हनुमान जी चुप हो गए ।
हे लक्षमण सुग्रीव के वाक्यविशारद सचिव और शत्रुओ के नाश करने वाले इस कपीश्रेष्ठ से तुम मधुर वाणी नीति पूर्वक से तुम बात करो
इतना ही नही प्रत्युत बोलते समय भी इनके नेत्र ललाट और भौहे तथा शरीर के अन्य अव्यय विकृत को प्राप्त नही हुआ ।
इन्होने अपने कथन से न ही अन्धाधुन बढ़ाया है और न ही इतना संक्षिप्त ही किया की उनका भाव समझने में भ्रम उत्पन्न हो इन्होने ने अपने कथन को व्यक्त करते समय न ही शीघ्रता ही दिखलाई और न ही विलम्ब किया इनके कहे हुए वचन हृदयस्थ और कंठगत है जो अक्षर जहाँ उठान चाहिए वही उठाया है इनका स्वर भी मध्यम है ।
इनकी वाणी व्याकरण से संस्कारित क्रम संपन्न और न ही धीमी है न ही तेज ये जो बाते कहते है वो अत्यंत मधुर और गुण युक्त है ।
लक्षमण द्वारा हनुमान की प्रसंसा ।
प्रसन्न मुख वर्णः च व्यक्तम् हृष्टः च भाषते ।
न अनृतम् वक्ष्यते वीरो हनूमान् मारुतात्मजः ॥४-४-३२॥
धीर पवन तनय हर्षित हो प्रसन्न मुख से बातचीत कर रहे है इससे जान पड़ता है की ये कभी झूठ नही बोलते ।
सुग्रीव द्वारा हनुमान जी की प्रशंसा ।
तेजसा वा अपि ते भूतम् न समम् भुवि विद्यते । तत् यथा लभ्यते सीता तत् त्वम् एव अनुचिंतय ॥४-४४-६॥
त्वयि एव हनुमन् अस्ति बलम् बुद्धिः पराक्रमः। देश काल अनुवृत्तिः च नयः च नय पण्डित ॥४-४४-७॥
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