Thursday, September 23, 2021

युद्ध जिसने इजरायल निर्माण किया।

वह युद्ध जिसने इजरायल निर्माण किया व तुर्की के खलीफा साम्राज्य का अंत किया. 
हैफा युद्ध. Battle of Haifa (वह इतिहास जो हमसे छिपाया गया.)
23 सितंबर सन 1918 ई.जब हिन्दूओं ने खलीफा की सेना को हराया 
यह युद्ध प्रथम विश्व युद्ध के दौरान शांति के लिए सिनाई और फिलस्तीन के बीच चलाए जा रहे अभियान के अंतिम महीनों में लड़ा गया था, इस दिन भारतीय वीरों ने जर्मनी और तुर्कों की सेनाओं को हाइफा शहर से बाहर खदेड दिया गया था.
ब्रिटिश सेना की तरफ से इस युद्ध में भाग ले रही जोधपुर और मैसूर लांसर को हैफा पर फिर से कब्जा जमाने की जिम्मेदारी सौंपी गई। नेतृत्व कर रहे थे जोधपुर लांसर के मेजर दलपतसिंह
शेखावत और कैप्टन अमान सिंह जोधा।
पहाड़ी पर स्थित हैफा के किले पर काबिज जर्मन सेना लगातार मशीनगन से गोलीबारी कर रही थी। वहीं जोधपुर की सेना के पास सिर्फ नाम मात्र की बंदूकें ही थी।
मेजर दलपत सिंह के नेतृत्व में जोधपुर की सेना आगे बढ़ी तो जर्मन सेना ने गोलियों की बौछार कर दी। उन्हें एक बार पीछे हटना पड़ा।
इसके पश्चात उन्होंने अलग दिशा से चढ़ाई शुरू की। इस दौरान मैसूर लांसर की सेना लगातार फायरिंग कर उन्हें कवर प्रदान किया। इस युद्ध में जोधपुर की टुकड़ी ने जर्मन व तुर्की सेना को पराजित कर किले पर कब्जा कर लिया।
इस युद्ध में उन्होंने 1350 जर्मन व तुर्क सैनिकों को बंदी बना लिया। इसमें से से 35 अधिकारी भी शामिल थे। सैनिकों से ग्यारह मशीनगन के साथ ही बड़ी संख्या में हथियार जब्त किए गए। भीषण युद्ध में सीधी चढ़ाई करने के दौरान जोधपुर लांसर के मेजर दलपतसिंह गंभीर रूप से घायल हो गए।
इसके बावजूद उन्होंने प्रयास नहीं छोड़ा। इस युद्ध में दलपतसिंह सहित जोधपुर के आठ सैनिक शहीद हुए। जबकि साठ घोड़े भी मारे गए।
 23 सितंबर, 1918 को दिन में 2 बजे जोधपुर लांसर व मैसूर लांसर के घुड़सवारों ने हैफा शहर पर चढ़ाई की और एक घंटे में ही हैफा शहर के दुर्ग पर विजय पताका फहरा दी।
भारतीय शूरवीरों ने जर्मन- तुर्की सेना के 700 सैनिकों को युद्धबंदी बना लिया. इनमें 23 तुर्की तथा 2 जर्मन अफसर भी थे. वहीं 17 तोपें, 11 मशीनगन व हजारों की संख्या में जिंदा कारतूस भी जब्त किए गए. घुड़सवार हमले का यह निर्णायक युद्ध था।
23 सितम्बर को जोधपुर लांसर्स के हमले में तुर्की सेना के पांव उखाडऩे में मेजर शहीद दलपत सिंह शेखावत की अहम भूमिका रही। उन्हें मिलिट्री क्रॉस से सम्मानित किया गया। कैप्टन अमान सिंह बहादुर, दफादार जोरसिंह को इंडियन ऑर्डर ऑफ मेरिट एवं कैप्टन अनोप सिंह व सैकण्ड लेफ्टीनेंट सगतसिंह को मिलिट्री क्रॉस से नवाजा गया।
दलपत सिंह ने तुर्की सेना की तोपों का मुंह उन्हीं की ओर मोड़ते हुए जबरदस्त वीरता का परिचय दिया था। एेसे में उन्हें हीरो ऑफ हैफा के नाम से पूरा इजराइल इतिहास की पाठ्यपुस्तकों में पढ़ता है।
मारवाड़ की घुड़सवार सेना ने जर्मन सेना की मशीनगनों का मुकाबला करते हुए इजरायल के हाइफा शहर पर महज एक घंटे में कब्जा कर लिया था. इस युद्ध का नेतृत्व जोधपुर लांसर के मेजर दलपतसिंह शेखावत और कैप्टन अमान सिंह जोधा किया था.
तलवार और भालों से लड़ी गई ये लड़ाई आधुनिक भारत की बड़ी और आखिरी जंग थी, इसी जंग ने इजरायल राष्ट्र के निर्माण के रास्ते खोल दिए. अन्ततः 14 मई सन 1948 को यहूदियों का नया देश इजरायल बना.
जर्मन मशीनगनों पर भारी पड़ी तलवारें और भाले उस वक्त जोधपुर रियासत के घुड़सवारों के पास हथियार के नाम पर मात्र बंदूकें, लेंस एक प्रकार का भाला और तलवारें थी. वहीं जर्मन सेना तोपों तथा मशीनगनों से लैस थी, लेकिन राजस्थान के रणबांकुरों के हौसले के आगे दुश्मन पस्त हो गया, इस दौरान मेजर दलपत सिंह बलिदान हो गए.
हैफा में बलिदान हुए मेजर दलपत सिंह शेखावत पाली जिले के नाडोल के निकट देवली पाबूजी के रहने वाले थे, यहां के जागीरदार ठाकुर हरि सिंह के इकलौते पुत्र थे. ठाकुर दलपत सिंह को पढ़ाई के लिए जोधपुर के शासक सर प्रताप ने इंग्लैंड भेजा था, 18 साल की उम्र में वे जोधपुर लांसर में बतौर घुड़सवार भर्ती हुए और बाद में मेजर बने.
एक हजार तीन सौ पचास जर्मन सैनिक और तुर्क सैनिकों पर मुट्ठी भर भारतीय सैनिकों ने कब्जा कर लिया था, इसमें दो जर्मन अधिकारी, पैंतीस ओटोमन अधिकारी, सत्रह तोपखाना बंदूकें और ग्यारह मशीनगने भी शामिल थी. इस दौरान आठ लोग मारे गए, चौंतीस घायल हुए, साठ घोड़े मारे गए और तिरासी अन्य घायल हुए.
इस युद्ध में मेजर दलपत सिंह के समेत छह घुड़सवार जोधपुर लांसर सवार तगतसिंह, सवार शहजादसिंह, मेजर शेरसिंह आईओएम, दफादार धोकलसिंह, सवार गोपालसिंह और सवार सुल्तानसिंह भी इस युद्ध में शहीद हुए थे.
मेजर दलपत सिंह को मिलिट्री क्रॉस जबकि कैप्टन अमान सिंह जोधा को सरदार बहादुर की उपाधी देते हुए इंडियन आर्डर ऑफ मेरिट तथा ऑर्डर ऑफ ब्रिटिश इंपायर से सम्मानित किया गया था.

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