आज 17 सितम्बर भगवान विश्वकर्मा जी की पूजा की जाती है. यह कन्या संक्रान्ति के दिन होती है
इस वीडियो को पूरा सुनें. आपको पता चलेगा कि धर्म संस्कृति के दीमक कौन हैं? किस तरह अज्ञान फैलाया जा रहा है. वक्ता लगातार झूठ बोल रहा है. इसकी 4 बड़ी झूठ ये हैं.
1. भगवान विश्वकर्मा जयन्ती/ पूजा दिवस 17 सितम्बर को अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार मनाया जाता है जो ब्रिटिश ने शुरू किया.
2 . भारत में लौहे के बारे में ब्रिटिश से पहले नहीं पता था.
3.भारत में नदियों के ऊपर पुल बनाने का ज्ञान ब्रिटिश से पहले नहीं था.
4 हावड़ा पुल की नीव का दिन है 17 सितम्बर 1913
सच्चाई -
1 भगवान विश्वकर्मा जी की जयन्ती माघ शुक्ल त्रयोदशी को व पूजा कन्या संक्रान्ति के दिन होती है. जिस तरह मकर सक्रान्ति प्रायः 14 जनवरी को होती है इसी तरह कन्या संक्रान्ति प्रायः 17 सितम्बर को होती है.
2-भारत में लौहे के विषय में ज्ञान कई हजार साल पुराना है. आयुर्वेद में तो लौहे के चिकित्सकीय प्रयोग भी हैं जो खून की कमी को दूर करने के लिए दिए जाते हैं.
3- पुल बनाने की जानकारी हजारों सालों से है. इतिहास में युद्धों में पुल तोड़े जाने का विवरण है.
4 हावड़ा पुल की नींव का दिन अज्ञात है. वर्ष है 1936.. यह पुल 3 फरवरी 1943 को जनता के लिए खोला गया था.
यह सब झूठ फैलाने का एकमात्र उद्देश्य उस वर्ग को सनातन संस्कृति से तोड़ना है जो भगवान विश्वकर्मा को प्रथम इन्जिनियर मानता है.लिखने को तो हम भी इसे भीमटा ज्ञान लिख सकते थे परन्तु हमारे संस्कार असभ्य शब्दों का प्रयोग से रोकते हैं.
भगवान विश्वकर्मा जी मन्दिर आंध्र प्रदेश के मछलीपट्टनम का है। निश्चित रूप से भगवान विश्वकर्मा जी का सम्बन्ध इस भूमि से रहा होगा तभी उनका मन्दिर है वहां पर।
विश्वकर्मा जी के कुल का संक्षिप्त विवरण--
बृहस्पते भगिनी भुवना ब्रह्मवादिनी।
प्रभासस्य तस्य भार्या बसूनामष्टमस्य च।
विश्वकर्मा सुतस्तस्यशिल्पकर्ता प्रजापतिः॥
विश्वकर्मा जी की माँ बृहस्पति जी की वेदव्याख्या करने वाली बहन भुवना थी। इनके पिता प्रभास जी थे जो आठ वसुओं मे से एक हैं। ( वसु अर्थात बसाने वाला। यह प्राचीनकाल की उपाधि या पद है। ) शिल्पकर्ता प्रजापति (प्रजा का पालन करने वाले) विश्वकर्मा उनके पुत्र हैं।
विश्वकर्मा जी का शत प्रतिशत सम्बन्ध सनातन वैदिक धर्म और भारत भूमि से है। जब विश्वकर्मा जी के पूर्वज आर्य हैं तब विश्वकर्मा जी के वंशज अनार्य कैसे। भगवान विश्वकर्मा जी की सभी मूर्तियों मे जनेऊ दिखाया जाता है। जनेऊ आर्यत्व का प्रतीक है।
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