Monday, May 12, 2014

संस्कार

संस्कार मूलता संस्कृत भाषा का शब्द है. जिसका अर्थ है मनुष्य का वह कर्म जो अलंकृत व सुसज्जित हो, लेकिन आज मानव अपने संस्कारो को भूलता जा रहा है आज से कुछ वर्षो पूर्व अर्थात हमारे दादा दादी के समय में वह लोग अपने बड़े बुजुर्गो का सम्मान करते थे. बच्चे अपने गुरुजनों का सम्मान करते थे. बीच बाजार कही भी कोई भी परिजन मिल जाता उसका बड़े आदर के साथ सम्मान करते थे. लेकिन आज के बच्चे में अपने माता – पिता, गुरुजनों या अपने बड़े बुजुर्गो के लिए वह आदर नहीं रहा. इसके लिए कौन जिम्मेदार है. माता – पिता या हमारे आस पास का वातावरण ? बड़ो का आदर सिर्फ किताबो में रह गई है. अगर आज के अभिवावक अपने को अनुसाशन में रखे तो शायद काफी हद तक हम अपने बच्चो में एक अच्छा संस्कार दे सकते हैं. जो माता-पिता अपने बच्चो को अनुसाशन में नहीं रखते उनके बच्चे वृधावस्था में उनको घर से बेघर या उनको छोड़ कर चले जातें है बच्चे जैसा घर में देखते हैं वेसे ही संस्कार उसमें आते हैं. अगर आज आप अपने माता-पिता के साथ ऊँची आवाज में भी बात करते है तो बच्चे में भी वही आदत आती है. तो पहले अपने को अनुशाषित करना जरुरी है. जोकि बेहद महत्वपूर्ण हैं. आज के व्यस्त समय में जो अभिवावक अपनी संतानों के समय नहीं दे पाते वह अभिवावक अपने माता-पिता को अपने साथ रख बच्चो में अच्छे संस्कार दे सकते हैं क्योंकि आपकी अनुपस्थी में आपकी संतान अपने दादा-दादी के साथ अच्छे माहोल में रहेगा. लकिन अभिवाको को खुद को अनुशाषित रहना पड़ेगा. अभिवावकों को चाहिए की बच्चों के सामने अपने माता-पिता से बेहद शांत और सौहार्द पूर्वक बात करें. जिससे बच्चों में अपने माता-पिता की एक अच्छी छवि बनेगी. बहुत से अभिवावक विद्यालय में दी गयी सजा के लिए विद्यालय में जा कर बच्चों के सामने ही उनके अध्यापको को भला बुरा कहते हैं, जिससे बच्चों में अध्यापको के प्रति सम्मान की भावना नहीं रहती . भारत देश वह देश है जहाँ गुरु को भगवान का दर्जा दिया जाता है लेकिन यह कैसी विडंबना है आज इस देश में गुरु, माता-पिता या हमारे बुजुर्गो को वह सम्मान नहीं मिलता.

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