गुरुकुल इन्द्रप्रस्थ का 100 वर्ष पुराना चित्र
एक समय गुरुकुल को जब आर्य समाज की सभाएं भी नहीं चला पाई, उस स्थिति में बंद पड़ा गुरुकुल कील की तरह पंडित शिवलाल आर्योपदेशक जी को चुभ रहा था।
पंडित जी देहली स्थित इन्द्रविद्या वाचस्पति जी से उनके निवास पर मिले, उन्होनें गुरुकुल को चलाने की स्वीकृति मांगी। इन्द्रविद्या वाचस्पति जी हंसकर बोले :- "शिवलाल जी जब गुरुकुल से सभाएं भी पल्ला झाड़ चूकी हैं, ऐसे में भला आप साधारण व्यक्ति कैसे चला पाओगे " । बात आई गई कर दी।
लेकिन धुन के धुरंधर पंडित शिवलाल जी फिर इन्द्रविद्या वाचस्पति जी से मिले। वाचस्पति जी ने इस बार हां कर दी। पंडित शिवलाल जी ने गुरुकुल चलाया ही नहीं अपितु गुरुकुल की गतिविधियां सुर्खियों में रहने लग गई।
थोड़े समय पश्चात खुद इन्द्रविद्या वाचस्पति जी गुरुकुल में पंडित शिवलाल जी से मिलने
गए। सज्जनों पंडित शिवलाल जी को जब वाचस्पति जी ने देखा तो धक्का सा लगा। क्योकिं उन्होने शरद ऋतु में भी फटा कंबल ओढ़ रखा था। वाचस्पति जी बोले :-
"शिवलाल जी कंबल तो नया ले लो"। पंडित शिवलाल जी बोले:- "मैं अपने ऐसो आराम पर पैसा लगा दुंगा तो गुरुकुल कैसे चलाऊंगा" ।
सज्जनों ऐसे देव पुरुष विरले ही जन्मते हैं। पंडित शिवलाल जी कोई सामान्य इंसान नहीं थे। देश धर्म व आर्यसमाज के प्रचार हेतु रेलवे की नौकरी तक छोड़ दी थी। सुप्रसिद्ध सोनीपत जिले के गांव जांटि में जन्म हुआ था। सांगी पंडित लख्मीचंद के चाचा थे।
-सन्दर्भ पुस्तक
क्रान्तिकारियों की शरणस्थली गुरुकुल इन्द्रप्रस्थ का इतिहास।
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