।। इन्होंने केवल मंदिर ही नही पूरा काशी ही हड़प लिया है ।।
1194 ईस्वी में शहाबुद्दीन मुहम्मद गौरी ने काशी पर कब्जा किया, और अपने श्रेष्ठ अफसरों को वहां नियुक्त किया, जिससे कि काशी से मूर्ति पूजा पूर्ण रूप से हट सकें ।।इस अफसर का नाम सैयद जमालुद्दीन था, और इसी ने किसी जमालुद्दीनपूरा मोहल्ला बसाया था । आज भी बनारस में जमालुद्दीन पूरा मोहल्ला है ।।
लेकिन इसके कुछ समय बाद ही काशी मुसलमानो के हाथ से निकल गया, और 1197 ईस्वी में कुतुबुद्दीन ऐबक ने इसे दुबारा जीता ।
कुतुबुद्दीन के बाद इल्तुतमिश गद्दी पर बैठा, उस समय अवध तथा काशी क्षेत्र की और हिन्दुओ ने बड़ी जबरदस्त जंग छेड़ दी, लेकिन हिन्दू जनता के बगावत को बड़ी निर्ममता से कुचल डाला, और बनारस पर मुसलमानो का अधिकार काफी मजबूत हो गया ।।
1197 से लेकर 1236 ईस्वी तक यानि कि 39 वर्ष तक काशी में ऐसा भीषण रक्तपात होता रहा कि, आज भी 1211 से लेकर 1236 ईस्वी तक का, काशी का कोई लिखित इतिहास ही नही है ।। काशी के हालात सीरिया अफगानिस्तान जैसे हो गए ।।
मुहम्मद गौरी एवं कुतुबुद्दीन ऐबक के समय ही काशी में भारी तबाही मच चुकी थी, प्रायः सभी मंदिर जमीदोज किये जा चुके थे ।
गुलाम वंश के शासकों द्वारा कई मस्जिदें हिन्दू मलबो के ढेर पर बनाई गई , उसमे मुख्यतः दारानगर में हनुमान फाटक के पास ढाई अगुरे की मस्जिद है, इस मस्जिद का गुम्बद दर्शनीय है, इस मस्जिद का निचला हिस्सा, मंदिर के मलबे से बना है ।। इसके निचले हिस्से में 1190 ईस्वी का एक संस्कृत लेख है, जिसमे पूर्ववर्ती हिन्दू शासकों द्वारा मस्जिद बनाने का उल्लेख है ।।
चौखम्बा मोहल्ले की चौबीस खम्बो वाली मस्जिद का इतिहास भी यही है ।।
गुलजार मुहल्ले में मकदूम साहब की दरगाह, तथा उत्तर पश्चिम की और दालाने भी हिन्दू मंदिरो के मलबे से बनी है ।।
भदउ मोहल्ले की मस्जिद भी हिन्दू मंदिरो के मलबे से बनी है ।।। राजघाट पर मस्जिद की एक दालान जो कि 150 फुट लम्बी और 25 फुट चौड़ी है, उसके खंबे गहरवार युग के है ।।
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