सभी धर्म प्रेमी सज्जनों को नमस्ते जी।
आप सब वेदों के नाम से तो परिचित होंगे ही वेद चार हैं ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद ।
इन चारों वेदों में सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का ज्ञान -विज्ञान ,शिल्पकला, ज्योतिष, आयुर्वेद ,संगीत, संस्कृति आदि अनेकों विषय उपलब्ध हैं।
जो ज्ञान आधुनिक विज्ञान करोड़ो डॉलर खर्च कर के प्राप्त कर पाया वह समस्त ज्ञान बल्कि उससे भी कहीं अधिक गूढ़ ज्ञान वेदों में बताया गया है।
ज्ञान प्राप्ति के प्रयास में आधुनिक विज्ञान ने प्रकृति को कितना दूषित किया धरती ,जल आदि संसाधनों का कितना दोहन किया इस बात से सभी परिचित हैं किन्तु वेद का जो ज्ञान शुद्ध रूप में परमपिता परमात्मा द्वारा ऋषियों को दिया गया जो समस्त मानव ज्ञान का मूल स्तोत्र रहा उस वेद को वर्तमान समाज ने भुला दिया।
सूर्य विज्ञान के विषय मे वैदिक साहित्य में विस्तृत जानकारी दी गयी है। कुछ जानकारियां आइये आपसे साझा करता हूं और उचित स्थान पर आधुनिक विज्ञान के मत को भी प्रस्तुत किया गया है ताकि आप स्वयं तुलना कर समझ सकें कि वेद का विज्ञान कितना उन्नत है।
👉१- सूर्य के प्रकाश की गति
🔶 आधुनिक विज्ञान अनुसार - 1,86,286 मील प्रति सेकेण्ड है ।
🔷 वैदिक - 'ऋग्वेद' के सायण भाष्य में प्रकाश के वेग का प्रमाण प्राप्त होता है।
तरणिर्विश्वदर्शतो ज्योतिष्कृदसि सूर्य विश्वमा भासि रोचनम् || ऋग्वेद 1.50.4 ||
🌹अर्थ 🌹
संपूर्ण संसार में एकमात्र दर्शनीय हे सूर्य! तू समस्त साधकों का उद्धार करने वाला, प्रकाशक है तथा विशाल अंतरिक्ष को सभी ओर से प्रकाशित करता हैΙ
इस ऋग्वैदिक श्लोक का 14वीं शताब्दी ईस्वी में सायण द्वारा भी इसकी चर्चा और विस्तार किया गया। वह कहते है:
तथा च स्मर्यते योजनानां सहस्त्रं द्वे द्वे शते द्वे च योजने
एकेन निमिषार्धेन क्रममाण नमोऽस्तुते ||
हे सूर्य! नमन आपको। सूर्य की किरणें (सूर्या) एक निमिष में 2,202 योजन की यात्रा करती है।
ऋग्वेद के श्लोक अर्ध-निमिष में प्रकाश की गति के बारे में एक ठोस विचार देते हैं। एक निमिष एक सेकंड के 16/75वें हिस्से के बराबर होता है। और अर्ध-निमिष में सूर्य का प्रकाश 2,202 योजन चलता है। इस प्रकार प्रकाश के वेग की गणना इस प्रकार की जा सकती है:
1/2 निमिष यानि 8/75 सेकंड में प्रकाश 2,202 योजन की यात्रा करता है
1 योजन = 4 कोस
1 कोस = 2000 दण्ड
1 दण्ड = 2 गज
1 योजन = 4⨯2000⨯2 गज
= 16000 गज
= 16000/1760 मील (∵1 मील = 1760 गज)
= 100/11 मील
2202 योजन = (2202x100)/11 मील
इसलिए 8/75 सेकंड में, प्रकाश 220200/11 मील की यात्रा करता है और 1 सेकंड में, प्रकाश यात्रा (220200⨯75) / 11⨯8 मील = 1, 87, 670 मील
प्रकाश का वेग = 1, 87, 670 मील/सेकेण्ड
👉२- सूर्य की किरणों के बारे में
🔶आधुनिक विज्ञान - वैज्ञानिक सर आइजक न्यूटन ने इस तथ्य पर वैज्ञानिक प्रयोग किए तथा बताया कि श्वेत प्रकाश (सूर्य का प्रकाश या किरण) में सात रंग पहले से ही मौजूद होते है। प्रिज्म से गुजरने पर अपवर्तन के कारण यह 7 रंगों में विभक्त हो जाता है।
🔷वैदिक -
एको अश्वो वहति सप्तनामा । -ऋग्वेद 1-164-2
सूर्य के प्रकाश में 7 रंग होता है इस सूक्त में पहले से है ।
अव दिवस्तारयन्ति सप्त सूर्यस्य रश्मय: । – अथर्ववेद 17-10 /17/9
सूर्य की सात किरणें दिन को उत्पन्न करती है। सूर्य के अंदर काले धब्बे होते है। जिसे विज्ञान आज इन धब्बो को सौर कलंक कहा है।
सप्तवर्णी रश्मियों जैसे सात अश्वो से नियोजित रथ में सुशोभित है ” सर्व द्रष्टा सूर्य ! तेजस्वी रश्मियों से युक्त तू दिव्यता को धारण करता है
ऋग्वेद 1-50-8
सूर्य को स्वर्ग में स्थापित कर दिया , जिससे सब उसके दर्शन कर सके —-ऋग्वेद 1-52-8
सूर्य को आकाश में इसलिए स्थापित किया क़ि मानव मात्र दर्शन कर सके। सूर्य ही स्वर्ग लोक कहलाता है।
सूर्य का अस्त नहीं होता है।सूर्य का दिखायी देना है उदय है और न दिखाई देना है अस्त है।
सूर्य की किरणों में सात रंग हैं। जिन्हें वेदों में सात रश्मियां कहा गया है-
'' सप्तरश्मिरधमत् तमांसि। '' -ऋग्वेद 4-50-4
अर्थात-सूर्य की सात रश्मियां हैं। सूर्य की इन रश्मियों के सात रंग हैं- बैंगनी, जामुनी, नीला, हरा, पीला, नारंगी और लाल।
इन्हें तीन भागों में बांटा गया है- गहरा, मध्यम और हल्का। इस प्रकार सात गुणित तीन से 21 प्रकार की किरणें हो जाती हैं। अथर्ववेद में कहा गया है-
''ये त्रिषप्ता: परियन्ति विश्वा रुपाणि बिभ्रत:। ''
अथर्ववेद 1-1-1
अर्थात यह 21 प्रकार की किरणें संसार में सभी दिशाओं में फैली हुई हैं तथा इनसे ही सभी रंग-रूप दृष्टिगोचर हैं। वेदों के अनुसार संसार में दिखाई देने वाले सभी रंग सूर्य की किरणों के कारण ही दिखाई देते हैं। सूर्य किरणों से मिलने वाली रंगों की ऊर्जा हमारे शरीर को मिले इसके लिए ही सूर्य को अघ्र्र्य देने का धार्मिक विधान है।
👉३- सूर्य की बनावट
🔶आधुनिक विज्ञान - सूर्य का बाह्य प्रभामंडल दृश्यमान अंतिम परत है। इसके उपर की परते नग्न आंखों को दिखने लायक पर्याप्त प्रकाश उत्सर्जित करने के लिहाज से सूर्यकेन्द्र के सापेक्ष ठंडी या काफी पतली है। और उसके चारो ओर गैसों का आवरण है ।
🔷वैदिक -
'शकमयं धूमम् आराद् अपश्यम्, विषुवता पर एनावरेण।' ऋग्वेद(1.164.43)
यानी सूर्य के चारों और दूर-दूर तक शक्तिशाली गैस फैली हुई हैं। यहां गैस के लिए धूम शब्द का प्रयोग किया गया है।
👉४- ग्रहण के बारे में
🔶आधुनिक विज्ञान - ग्रहण एक खगोलीय अवस्था है जिसमें कोई खगोलिय पिंड जैसे ग्रह या उपग्रह किसी प्रकाश के स्रोत जैसे सूर्य और दूसरे खगोलिय पिंड जैसे पृथ्वी के बीच आ जाता है जिससे प्रकाश का कुछ समय के लिये अवरोध हो जाता है इस अवस्था को ग्रहण कहते है।
🔷वैदिक -
यं वै सूर्य स्वर्भानु स्तमसा विध्यदासुर: ।
अत्रय स्तमन्वविन्दन्न हयन्ये अशक्नुन ॥
ऋग्वेद 5-40-9
अर्थात जब चंद्रमा पृथ्वी ओर सूर्य के बीच में आ जाता है तो सूर्य पूरी तरह से स्पष्ट दिखाई नहीं देता। चंद्रमा द्वारा सूर्य के प्रकाश को ढंक लेना ही सूर्य ग्रहण है ।
👉५- सूर्य से ग्रहों की दूरी
आज पृथ्वी से सूर्य की दूरी ( 1.5 ×10 की घातांक 8 KM) है। इसे एयू (खगोलीय इकाई- astronomical unit) कहा जाता है। इस अनुपात के आधार पर निम्न सूची बनती है :-
ग्रह आर्यभट्ट का मान आधुनिक विज्ञान
बुध 0.375 एयू 0.387 एयू
शुक्र 0.725 एयू 0.723 एयू
मंगल 1.538 एयू 1.523 एयू
गुरु 5.16 एयू। 5.20 एयू
शनि 9.41 एयू। 9.54 एयू
ग्रहों की दूरी क्या हजारो वर्षो में प्रभावित नही हुई होगी ?
आर्यभट्ट के ग्रहों की दूरी के मान आधुनिक विज्ञान की तुलना में काफी सटीक हैं। यह सिद्ध करता है प्राचीन भारत में खगोलविज्ञान कितना उन्नत था और वह विज्ञान वेद आधारित ही था।
👉६- सूर्य एक जीवाणुनाशक
🔶आधुनिक विज्ञान - अंधकार जीवाणुओं के परिवर्धन में सहायक है। बहुत से जीवाणु, जो सक्रिय रूप से अंधकार में चर (mobile) होते हैं, प्रकाश में लाए जाने पर आलसी हो जाता हैं तथा सूर्य के प्रकाश में पतले स्तर में रखे गए जीवाणु तीव्रता से मरते हैं। इन परिस्थितियों में कुछ केवल 10-15 मिनट के लिये जीवित रहते हैं। इसी कारण सूर्य का प्रकाश रोगजनक जीवाणुओं का नाश करनेवाले शक्तिशाली कारकों में माना गया है। साधारणत: दृश्य वर्णक्रम (spectrum) जीवाणुओं पर थोड़ा ही विपरीत प्रभाव रखते हैं तथा प्रकाश के वर्णक्रम के पराबैंगनी (ultraviolet) छोर में यह घातक शक्ति निहित रहती है।
🔷वैदिक -
'उत पुरस्तात् सूर्य एत, दुष्टान् च ध्नन् अदृष्टान् च,
सर्वान् च प्रमृणन् कृमीन्।' अथर्ववेद (3.7)
अर्थात -
सूर्य का प्रकाश दिखाई देने वाले और न दिखाई देने वाले सभी प्रकार के प्रदूषित जीवाणुओं और रोगाणुओं को नष्ट करने की क्षमता रखता है।
👉७ - चंद्रमा पर प्रकाश
🔶आधुनिक विज्ञान -
चंद्रमा का स्वयं का प्रकाश नहीं है। वह पृथ्वी का एकमात्र उपग्रह है। वह सूर्य की किरणों से प्रकाशित होता है।
🔷वैदिक -
सुषुम्णः सूर्य रश्मिः चंद्रमा गरन्धर्व, अस्यैको रश्मिः चंद्रमसं प्रति दीप्तयते।'
निरुक्त( 2.6)
'आदित्यतोअस्य दीप्तिर्भवति।'
यानी सूर्य की सुषुम्ण नामक किरणें चंद्रमा को प्रकाश देती हैं। चंद्रमा का स्वयं का प्रकाश नहीं है। वह सूर्य की किरणों से प्रकाशित होता है।
👉८- सूर्य ही संसार की ऊर्जा का स्रोत है (Solar Radiation)- सूर्य ही वायुमण्डल एवं पृथ्वी पर मिलने वाली उष्मा का अजस्र स्रोत है और इससे विकिरण के माध्यम से दी की जाने वाली सम्पूर्ण ऊर्जा को सौर विकरण (Solar Radiation) कहा जाता है। यही बात यजुर्वेद में कही गयी है-
सूर्य आत्मा जगतस्तस्थुषश्च यजुर्वेद 7/42
यहाँ ‘आत्मा’ शब्द ही ऊर्जा का बोधक है। क्योंकि वर्तमान वैज्ञानिक भाषा में ऊर्जा वह है ‘जो किसी वस्तु में कार्य की क्षमता है उसे ऊर्जा कहत हैं’ और क्षमता आत्मा में होती है। किसी कार्य को सम्पादिक करने के लिए आत्मिक ऊर्जा की महती आवश्यकता होती है इस प्रकार यह सूर्य सम्पूर्ण विश्व की अजस्र ऊर्जा का स्रोत है।
आज का विज्ञान भी सोलन रेडियेशन को मानता है। यह सौर विकिरण चारों ओर अंतरिक्ष में फैलता है और सूर्य से 15 करोड़ किमी. की औसत दूरी पर स्थित हमारी पृथ्वी भी इसका क सूक्ष्म अंश (2 अरबवाँ भाग) प्राप्त करती है फिर भी पृथ्वी को प्राप्त होने वाला यही सूक्ष्म अंश बहुत महत्वपूर्ण है और इसी से पृथ्वी की सम्पूर्ण भौतिक एवं जैविक घटनाएं नियंत्रित होतीं हैं।
👉९- अंतरिक्ष में अनेक सूर्य तथा सौरमण्डल (Solar System)– सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाने वाले विभिन्न ग्रहों, उपग्रहों, धूमकेतुओं, क्षुद्र ग्रहों तथा अनेक आकाशीय पिण्डों के समूह या परिवार को सौरमण्डल कहते हैं, परन्तु वैज्ञानिकों ने इस बात की पुष्टि की है कि दृष्यमान सूर्य के सदृश अंतरिक्ष में अनेक सूर्य हैं तथा उनकी परिक्रमा अन्य आकाशीय पिण्ड कर रहे हैं।
ऋग्वेद में यह बात हजारों साल पहले ही कह दी गयी है।
सप्त दिशो॒ नानासूर्यः सप्तक्रांति ऋत्विज: ।
ऋग्वेद 9-114-3
🌹विशेष - 🌹
प्राचीन काल से खगोल विज्ञान वेदांग का हिस्सा रहा है। ऋग्वेद, शतपथ ब्राहृण आदि ग्रथों में नक्षत्र, चान्द्रमास, सौरमास, मल मास, ऋतु परिवर्तन, उत्तरायन, दक्षिणायन, आकाशचक्र, सूर्य की महिमा, कल्प का माप आदि के संदर्भ में अनेक उद्धरण मिलते हैं। इस हेतु ऋषि प्रत्यक्ष अवलोकन करते थे। कहते हैं, ऋषि दीर्घतमस् सूर्य का अध्ययन करने में ही प्रसिद्ध हुए, ऋषि गृत्स्मद ने चन्द्रमा के गर्भ पर होने वाले परिणामों के बारे में बताया। यजुर्वेद के 18वें अध्याय के चालीसवें मंत्र में यह बताया गया है कि सूर्य किरणों के कारण चन्द्रमा प्रकाशमान है।
यंत्रों का उपयोग कर खगोल का निरीक्षण करने की पद्धति रही है। आर्यभट्ट के समय आज से लगभग 1500 से अधिक वर्ष पूर्व पाटलीपुत्र मे
वेधशाला(Observatory) थी, जिसका प्रयोग कर आर्यभट्ट ने कई निष्कर्ष निकाले।
भास्कराचार्य सिद्धान्त शिरोमणि ग्रंथ के यंत्राध्याय प्रकरण में कहते हैं, "काल" के सूक्ष्म खण्डों का ज्ञान यंत्रों के बिना संभव नहीं है। इसलिए अब मैं यंत्रों के बारे में कहता हूं। वे नाड़ीवलय यंत्र, यष्टि यंत्र, घटी यंत्र, चक्र यंत्र, शंकु यंत्र, चाप, तुर्य, फलक आदि का वर्णन करते हैं।
प्रत्यक्ष निरीक्षण एवं अचूक ग्रहीय व कालगणना का हजारों वर्षों से पुराना इतिहास रखने वाले हम भारतीय आज पश्चिमी देशों की ओर उम्मीद से देखते है जबकि उनसे बेहतर हम सदियो से थे बस अपना आत्मगौरव भूले बैठे है । आइये वेदों की ओर लौटें,वैदिक ज्ञान-विज्ञान को पुनः समाज में स्थापित कर सम्पूर्ण मानवता को लाभान्वित करें।बेहतर सनातन परंपरा को आगे बढ़ाए ।
सत्य सनातन वैदिक धर्म की जय 🕉🕉🔥🔥
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