पैगम्बर मुहम्मद को मक्का से निकाल दिया गया था वे मदीना आये यहूदियों के साथ भाईचारा स्थापित किया और कुछ वर्षों बाद मक्का के सिंहासन पर कब्जा किया। इसके बाद उन्ही यहूदियों को कहा गया कि अपने घर छोड़कर चले जाओ, मुहम्मद की मृत्यु के दूसरे वर्ष तक आज के सऊदी अरब में एक भी गैर मुस्लिम नही बचा सिर्फ उनकी पत्नियां बची थी जो की अब मुसलमानो की वैश्या का काम रही थी।
अब आगे बढ़ते है, आठवी सदी में पर्शिया (ईरान) पर मुसलमानो का आक्रमण हुआ पारसियों को सीधा आदेश था कि अपने घर से निकलो। पारसी बाहर आते, उनसे कहा जाता मुसलमान बनो जो बन गए वो ठीक जो ना बने उनकी महिलाओं को उसी समय चौराहे पर नंगा किया जाता और पुरुष की गर्दन काट दी जाती। रतन टाटा, बोमन ईरानी और होमी जहाँगीर भाभा इन सभी के पूर्वज पर्शियन ही थे और इनके पुरखो ने मुसलमानो का ये भाईचारा झेला है।
अब और आगे बढिये 10वी सदी तक जब कुषाणों के शासन का अंत हो गया आज के अफगानिस्तान पर इस्लामिक आक्रमण हुआ, बौद्ध भिक्षुओं के सिर मुंडे होते थे अतः उन्हें वही से चीर दिया जाता था। भिक्षुओ को साफ आदेश था कि बस अफगानिस्तान खाली कर दो नही तो मारे जाओगे।
अब और आगे आते है 1947 में जैसे ही पाकिस्तान के अब्दुल को पता चला कि उसका अलग देश है और पड़ोस में रहने वाले किशन की बेटी बड़ी खूबसूरत है। उसने सदियों के सेक्युलरिज्म को त्याग दिया और अपनी बेटी जैसी पड़ोसन के साथ वही किया जो इस्लाम मे जायज था। लाहौर और कराची में 30 लाख हिन्दू और सिख महिलाओ को नग्न अवस्था मे परेड करने पर मजबूर किया गया था।
अब मुद्दे पर आते है समस्या मुसलमान है ही नही, समस्या है उनके चार शब्द अल्लाह, इस्लाम, उम्मा और जेहाद। दुख की बात ये है की उनकी सामाजिक व्यवस्था ऐसी है कि वे इससे ऊपर उठ नही सकते।
भारत का मुसलमान ठीक वही सोचता है जो हमारा दुश्मन पाकिस्तान सोचता है। इजरायल भारत का रक्षा मित्र है लेकिन चूंकि वो एन्टी इस्लामिक है इसलिए भारत के हित साइड में और इस्लाम प्रथम के तहत इजरायल से भारत के मुसलमान नफरत करते है।
जब कश्मीर से धारा 370 हटी तो एक साधारण मुसलमान को उतना ही दुख था जितना जैश ए मोहम्मद और लश्कर ए तैय्यबा के मुसलमानो को। भारत का मुसलमान विश्व के सबसे पिछड़े और गरीब समाजो में आता है, लेकिन उसका सपना शिक्षा व्यवसाय ना होकर सिर्फ जेहाद और उम्मा है।
भारत का मुसलमान तालिबान की जीत पर प्रसन्न होता है, वह जेहादी कश्मीरियत की बात करता है, उसे औरंगजेब और अलाउद्दीन खिलजी ज्यादा पसंद है, उसे भारतीय व्यंजन नही अपितु बिरयानी और मुगलई भोजन पसन्द है। उसका जेहाद हमसे शस्त्रों का नही अपितु पूरी संस्कृति का है।
और इन सबका समाधान सिर्फ एक ही है सामाजिक बहिष्कार, ध्यान रहे आर्थिक तो हो ही रहा है सामाजिक भी आवश्यक है। जिसमे किराए से घर देना भी शामिल है, कश्मीरी फाइल्स में याद कीजिये पंडित को मरवाने में मुख्य भूमिका पड़ोस वाले अब्दुल की थी ..,
यह पोस्ट इसलिए लिखा गया है ताकि आपके और मेरे जैसे गैर मुसलमान जो भविष्य में भी मुसलमान नही बनना चाहते वे अपने इतिहास से सबक ले। हम भले ही हिन्दू, ईसाई, यहूदी और पारसी में बंटे हो लेकिन इस्लाम रूपी दूरबीन से हम अल्लाह को ना मानने वाले शैतान के साये काफ़िर है। काफ़िर को मारकर उसकी महिला से ज्यादती करके एक जेहादी को जन्म देना ही इस्लाम का मूल संदेश है।
आप जितना जल्दी ये संदेश समझ लेंगे खुद को अरब, ईरान, अफगानिस्तान और कश्मीर का गैर मुसलमान होने से बचा लेंगे।
लेकिन पैगम्बर मुहम्मद ने सिंहासन भी बाहुबल से कब्जाया और अपने शत्रुओं को भी क्रूरता से मारा। कश्मीरी पंडित कश्मीर के गैर मुसलमानों की कहानी नही है अपितु ये इतिहास की उस किताब का अध्याय या चैप्टर मात्र है जिसे मुसलमान गैर मुसलमानों के रक्त से 1400 वर्षो से रंजित कर रहे है।
इससे बचने का एक ही उपाय है सभी काफ़िर एक हो जाये जाति पाती का त्याग कर हिंदुत्व रक्षा का एक कवच बनाये और जब इस्लामिक आतंकवाद का अंत हो जाएगा ।।
हमारा ध्येय हिंदू समृद्धि सुरक्षा और सम्मान।
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