Tuesday, April 12, 2022

बहुसंख्यक मूल निवासियों पर अल्पसंख्यक विदेशियों का प्रभा।

“जब किसी स्थान के बहुसंख्यक मूल निवासियों पर अल्पसंख्यक विदेशियों का प्रभाव हो। उनके संसाधनों से किसी विदेशी प्रशासनिक प्रांत की आर्थिक वृद्धि होती हो, तो यह उपनिवेशवाद कहलाता है।”

उपनिवेशवाद की इस परिभाषा को पढ़ते हुए मैकडोनाल्ड के बर्गर खा रहा था। यह अमरीका का प्रभाव है। इससे अमरीका की आर्थिक वृद्धि हो रही होगी। अमेजन से सामान खरीदने या फ़ेसबुक पर लिखने से भी अमरीका में किसी को फ़ायदा होगा। क्या यह उपनिवेशवाद है? 

उपनिवेश कोई नयी चीज नहीं है। ताकतवर साम्राज्यों ने दूर-दराज़ में पहले भी अपने अड्डे जमाए थे। मसलन रोमन साम्राज्य द्वारा इंग्लैंड के द्वीपों और अफ़्रीका पर राज, मंगोल द्वारा पश्चिम एशिया और रूस पर, और कुछ हद तक मुग़लों द्वारा भारत पर राज। हर काल-खंड में इस तरह अपने मूल स्थान से दूर जाकर शक्ति और व्यापार को बढ़ाया गया है। 

लेकिन जो उपनिवेशवाद (colonialism) शब्द अब अधिक रूढ़ है, वह पंद्रहवीं सदी में यूरोपीय देशों द्वारा खोजी जहाज़ी यात्राओं से जन्मा है। 

स्पेन और पुर्तगाल ने जैसे ही ग़ैर-ईसाई दुनिया का काग़ज़ी बँटवारा किया, कोलंबस ने अमरीका और वास्को द गामा ने भारत के समुद्री रास्ते की खोज कर ली। सोलहवीं सदी की शुरुआत गोवा में पुर्तगाली और क्यूबा में स्पैनिश कॉलोनी बनने से हुई। जल्द ही (1500 ई.) पुर्तगालियों ने ब्राज़ील भी ढूँढ लिया। पुर्तगालियों की गति तेज़ थी। उन्होंने भारत से मसाला व्यापार पर अच्छी पकड़ बना ली। आखिर उनके हाथ आया भी असली इंडिया था, जिसकी कुछ समझ पहले से यूरोप को थी। 

दूसरी तरफ़, स्पैनिश अलग ही भँवर में फँसे हुए थे। उनको अमरीका की धरती पर ऐसे इंडियन मिले, जिनके विषय में उनको कोई जानकारी नहीं थी। उन्हें नहीं मालूम था कि वहाँ सोना कहाँ है, खेती कहाँ होती है, क्या व्यवहार हैं। वे शून्य से शुरू कर रहे थे। उन्हें तो यह भी नहीं पता था कि अमरीका आखिर है कितना बड़ा? वे कुछ दर्जन कैरीबियन द्वीपों में ही दुनिया बसा रहे थे।

यूरोप के कई युवाओं को इस नयी उपनिवेश पद्धति में आकर्षण लगा। वहाँ उन्हें अधिक आज़ादी थी, रोमांच था, और सबसे बड़ी बात कि हिसाब लेने वाले कम लोग थे। उन्हें लूटने की लगभग छूट थी। इसलिए उनसे किसी नैतिकता की उम्मीद भी बेकार है। उनके साथ कुछ पादरी ज़रूर आते थे, लेकिन उनकी नैतिकता भी यही थी कि धर्म का यथा-संभव प्रसार हो। चाहे इसके लिए कोई भी कदम उठाना पड़ा। ईश्वर के नाम पर ही युद्ध, बलप्रयोग और हत्यायें हो रही थी।

इसी उद्देश्य से हर्नांड कोर्टेज इंडियनों पर साम-दाम-दंड-भेद से विजय पाने निकले। उनके पास सेना थी, आधुनिक अस्त्र थे, और अच्छा-खासा बैक-अप था। मेक्सिको के इंडियन के पास उनकी जमीन थी, उनके जंगल थे, उनके अपने ईश्वर के प्रतिमान थे। वे इतनी जल्दी हार मानने वाले नहीं थे। एज्टेक ने ज़रूर ग़लतियाँ की, लेकिन माया के गुरिल्लाओं ने तो दो सदियों तक स्पेन का मुक़ाबला किया। 

कोर्टेज की शुरुआत भी करारी हार से होने वाली थी। उनका जहाज जैसे ही तट पर पहुँचा, उन्होंने देखा कि एक विशाल मंदिर की सीढ़ियों के ऊपर कुछ होम चल रहा है। अग्नि में एक पदार्थ फेंकते हुए मंत्र पढ़े जा रहे हैं। मूर्तियों पर रक्त डाला जा रहा है। उन्हें अब तक एक दुभाषिया मिल गया था। उसने बताया कि वहाँ असुरों (devils) से मुक्ति के लिए पूजा चल रही है। उन्होंने पूछा- असुर कौन?

उत्तर मिला- आप! 

(क्रमशः)

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