Sunday, May 28, 2023

वीरसावरकर.

एक महान लेखक जिनकी पुस्तकों को उनके प्रकाशन से पहले दो देशों की सरकारों ने प्रतिबंधित कर दिया था।

वीर सावरकर पहले क्रांतिकारी राष्ट्रभक्त स्वातंत्र्य वीर थे जिनके मरणोपरांत 26 फरवरी 2003 को उसी संसद में मूर्ति लगी जिसमे कभी उनके निधन पर शोक प्रस्ताव भी रोका गया था

सावरकर भारत के पहले व्यक्ति थे जिन्होंने 1857 की लड़ाई को भारत का 'स्वाधीनता संग्राम' बताते हुए लगभग एक हज़ार पृष्ठों का इतिहास 1907 में लिखा

 

वीर सावरकर पहले भारतीय थे जिसने सन् 1906 में ‘स्वदेशी’ का नारा दे, विदेशी कपड़ों की होली जलाई थी। 

वीर सावरकर पहले भारतीय थे जिन्होंने पूर्ण स्वतंत्रता की मांग की।

सावरकर ने ही वह पहला भारतीय झंडा बनाया था, जिसे जर्मनी में 1907 की अंतर्राष्ट्रीय सोशलिस्ट कांग्रेस में मैडम कामा ने फहराया था।

बाल गंगाधर तिलक की पार्टी स्वराज में कुछ दिन रहने के बाद सावरकर ने हिंदू महासभा नाम की अलग पार्टी बना ली। इसके बाद 1937 में भारतीय हिंदू महासभा के अध्यक्ष बने और आगे जाकर भारत छोड़ो आंदोलन का हिस्सा बने।

वीर सावरकर पहले ऐसे क्रांतिकारी थे जिन्होंने विदेशी वस्त्रों का दहन किया,तब बाल गंगाधर तिलक ने अपने पत्र केसरी में उनको शिवाजी के समान बताकर उनकी प्रशंसा की थी

वीर सावरकर ऐसे पहले बैरिस्टर थे जिन्होंने 1909 में ब्रिटेन में ग्रेज-इन परीक्षा पास करने के बाद ब्रिटेन के राजा के प्रति वफादार होने की शपथ नही ली... इस कारण उन्हें बैरिस्टर होने की उपाधि का पत्र कभी नही दिया गया

वीर सावरकर पहले ऐसे लेखक थे जिन्होंने अंग्रेजों द्वारा ग़दर कहे जाने वाले संघर्ष को '1857 का स्वातंत्र्य समर' नामक ग्रन्थ लिखकर सिद्ध कर दिया

'1857 का स्वातंत्र्य समर' विदेशों में छापा गया और भारत में भगत सिंहने इसे छपवाया था जिसकी एक एक प्रति तीन-तीन सौ रूपये में बिकी थी... भारतीय क्रांतिकारियों के लिए यह पवित्र गीता थी... पुलिस छापों में देशभक्तों के घरों में यही पुस्तक मिलती थी

सावरकर पहले क्रान्तिकारी थे जिनका मुकद्दमा अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय हेग में चला, मगर ब्रिटेन और फ्रांस की मिलीभगत के कारण उनको न्याय नही मिला और बंदीबनाकर भारत लाया गया..

हिन्दू को परिभाषित करते हुए लिखा कि-'आसिन्धु: सिन्धुपर्यन्ता यस्य भारत भूमिका| पितृभू: पुण्यभूश्चैव स वै हिन्दुरिती स्मृतः.'अर्थात समुद्र से हिमालय तक भारत भूमि जिसकी पितृभू है जिसके पूर्वज यहीं पैदा हुए हैं व यही पुण्यभू है, जिसके तीर्थ भारत भूमि में ही हैं,

वीर सावरकर पहले ऐसे राष्ट्रभक्त हुए जिनके शिलालेख को अंडमान द्वीप की सेल्युलर जेल के कीर्ति स्तम्भ से UPA सरकार के मंत्री मणिशंकर अय्यर ने हटवा दिया था और उसकी जगह गांधी का शिलालेख लगवा दिया 

वे एक महान क्रांतिकारी, इतिहासकार, समाज सुधारक, विचारक, चिंतक, साहित्यकार थे, जिनसे अंग्रेजी सत्ता भयभीत थी

सावरकर वह कवि थे, जिन्होंने कलम-काग़ज़ के बिना जेल की दीवारों पर पत्थर के टुकड़ों से कवितायें लिखीं.

उन्होंने अपनी रची दस हज़ार से भी अधिक पंक्तियों को प्राचीन वैदिक साधना के अनुरूप वर्षों स्मृति में सुरक्षित रखा, जब तक वह किसी न किसी तरह देशवासियों तक न पहुंच गई

वीर सावरकर को ब्रिटिश सरकार ने क्रान्ति कार्यों के लिए दो-दो आजन्म कारावास की सजा दी, जो विश्व के इतिहास की पहली एवं अनोखी सजा थी.

साल 1937 में वे अखिल भारतीय हिन्दू महासभा के अहमदाबाद में हुए 19वें सत्र के अध्यक्ष चुने गये, जिसके बाद वे पुनः सात वर्षों के लिये अध्यक्ष चुने गये।

उस समय धार्मिक भजनों का पाठ करना केवल ब्राह्मणों का निजीकरण था। 1930 में, सावरकर ने पतितपावन मंदिर के परिसर में 'ऑल हिंदू गणपति महोत्सव' शुरू किया, जहां हिंदु के भंगी समुदाय के एक व्यक्ति द्वारा धार्मिक भजन सुनाए गए थे।

आजादी के लिए काम करने के लिए उन्होंने एक गुप्त सोसायटी बनाई थी, जो 'मित्र मेला' के नाम से जानी गई।

'इंडियन सोसियोलॉजिस्ट' और 'तलवार' में उन्होंने अनेक लेख लिखे, जो बाद में कोलकाता के 'युगांतर' में भी छपे।

वीर सावरकर 1911 से 1921 तक अंडमान जेल में रहे। 1921 में वे स्वदेश लौटे और फिर 3  साल जेल भोगी। जेल में 'हिन्दुत्व' पर शोध ग्रंथ लिखा

 

9 अक्टूबर 1942 को भारत की स्वतंत्रता के लिए चर्चिल को समुद्री तार भेजा और आजीवन अखंड भारत के पक्षधर रहे।

6 जुलाई 1920 को अपने भाई नारायण राव को लिखे एक पत्र में, सावरकर लिखते हैं "मुझे जातिगत भेदभाव और छुआछूत के खिलाफ बगावत करने की ज़रूरत है, जितना कि मुझे भारत के विदेशी कब्जे के खिलाफ लड़ने की ज़रूरत महसूस होती है"।

मंदिरों में अछूतों के लिए पहुंच प्रदान करने के लिए आंदोलन करते हुए उन्होंने उस विचार को जन के भीतर प्रचारित किया जिसमें कहा गया था कि 'वह भगवान जो अछूत द्वारा पूजा करने से अशुद्ध हो जाता है वह भगवान नहीं है।'

"भगवान की पूजा करना सभी जातियों के हिंदूओं का जन्म सिद्ध अधिकार है। इस अधिकार का प्रयोग करने की अनुमति देना वास्तविक धार्मिकता है।

अंडमान की सेल्यूलर जेल में रहते हुए उन्होंने बंदियों को शिक्षित करने का काम तो किया ही, साथ ही साथ वहां हिंदी के प्रचार-प्रसार हेतु काफी प्रयास किया।

सावरकर का हिंदुत्व धर्म पर नहीं अपितु हिंदुस्थान राष्ट्र के आधार पर था । इसलिए 26 फरवरी 1966 को उनके निधन के बाद एक लेख में लंदन टाइम्स ने उन्हें ‘पहला हिंदू राष्ट्रवादी’ करार दिया था।

मातृभूमि! तेरे चरणों में पहले ही मैं अपना मन अर्पित कर चुका हूँ। देश सेवा में ईश्वर सेवा है, यह मानकर मैंने तेरी सेवा के माध्यम से भगवान की सेवा की - वीर सावरकर

वे प्रथम क्रान्तिकारी थे, जिन पर स्वतंत्र भारत की सरकार ने झूठा मुकदमा चलाया और बाद में निर्दोष साबित होने पर माफी मांगी।

इनके नाम पर ही पोर्ट ब्लेयर के विमानक्षेत्र का नाम वीर सावरकर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा रखा गया है।

सावरकर 50 साल कैद की सजा सुनाए जाने के बाद भी उतने भावुक नहीं हुए, जितने कि उन्होंने 1931 में मंदिरों में अछूतों के प्रवेश से संबंधित एक गीत लिखा था। इस गीत का अनुवाद "मुझे भगवान की मूर्ति के दर्शन करने दो, भगवान की पूजा करने दो।" गीत लिखते समय उनकी आंखों से आंसू बह निकले।

मनुष्य की सम्पूर्ण शक्ति का मूल उसके अहम की प्रतीति में ही विद्यमान है।

मन सृष्टि के विधाता द्वारा मानव-जाति को प्रदान किया गया एक ऐसा उपहार है, जो मनुष्य के परिवर्तनशील जीवन की स्थितियों के अनुसार स्वयं अपना रूप और आकार भी बदल लेता है।

कष्ट ही तो वह चाक शक्ति है जो मनुष्य को कसौटी पर परखती है और उसे आगे बढ़ाती है।

कर्तव्य की निष्ठा संकटों को झेलने में, दुःख उठाने में और जीवन – भर संघर्ष करने में ही समाविष्ट है। यश – अपयश तो मात्र योगायोग की बातें हैं।

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