मनुष्यों को बेधड़क नरमाँस का सेवन करना चाहिए। इसके पक्ष में तर्क बहुत ठोस और अकाट्य हैं :
1. नरमाँस में प्रोटीन होता है, जो कि जीवन के लिए अत्यावश्यक है।
2. नरमाँस स्वादिष्ट होता है। एक नरभक्षी अफ्रीकी तानाशाह ने बताया था कि मनुष्य और विशेषकर बच्चों के माँस से सुस्वादु कुछ भी नहीं होता। पशुओं का माँस उसकी तुलना में बहुत ही बेस्वाद है। और स्वाद से बड़ी कोई चीज़ नहीं।
3. हम एक लोकतान्त्रिक देश में रहते हैं और संविधान ने हमें अपनी पसंद का भोजन करने की स्वतंत्रता दी है। किसी को जीने की आज़ादी हो न हो, मुझे खाने की आज़ादी अवश्य है।
4. हम क्या खाएँ और क्या नहीं, ये तय करने वाला कोई और कैसे हो सकता है?
5. यही खाद्य-शृंखला है। शक्तिशाली मनुष्यों को दुर्बलों को मारकर खा जाना चाहिए। यही प्रकृति का नियम है। जीव जीव का भोजन है। मछली मछली को खाती है, साँप साँप को, मनुष्य मनुष्य को।
6. प्रकृति ने मनुष्य को कैनाइन दांत माँस खाने के लिए दिए हैं और मनुष्य सर्वभक्षी होते हैं।
7. पेड़-पौधों में भी जीवन होता है। पानी में जीवाणु होते हैं। जो सब्ज़ी खाता है और पानी पीता है, वह भी तो जीव-हत्यारा है। फिर आप किसी को नरमाँस का सेवन करने से कैसे रोक सकते हैं?
8. दुनिया में मनुष्यों की संख्या इतनी अधिक है कि अगर हम उनको मारकर नहीं खाएँगे तो किसी के भी रहने की जगह नहीं बचेगी।
9. पृथ्वी इतनी मात्रा में अनाज और सब्ज़ी का उत्पादन नहीं कर सकती, इसलिए भी मनुष्यों को मारकर खाना हमारे लिए ज़रूरी है। अगर नरभक्षी न हों और सब शाकाहारी बन जाएँ तो लोग भूखों मरने लगेंगे।
10. किन मनुष्यों को मारकर खाना चाहिए? जो कम क्यूट दिखते हों, जो मूर्ख हों, अनुपयोगी हों, गूंगे हों, जो आप पर निर्भर हों, और जिन्हें खाना धर्म में निषिद्ध न हो, उन्हें मारकर खाया जा सकता है।
11. अगर आपका घर आदमखोरों की बस्ती में है और आपके बच्चे रात को लौटकर घर न आएँ तो मान लें उन्हें किसी ने मारकर खा लिया होगा। कृपया इसकी शिक़ायत न करें। अगर आपको इस पर ऐतराज़ होता है तो आप फ़ासिस्ट हैं, आप नफ़रत फैलाते हैं, आप दूसरों की पसंद को स्वीकार नहीं करते, आप अपनी मर्ज़ी औरों पर थोपना चाहते हैं। आपको अपने पर शर्म आनी चाहिए।
कृपया इन तर्कों का विरोध नहीं कीजिये, क्योंकि नब्बे फ़ीसदी मनुष्यजाति पहले ही इन तर्कों का हवाला देकर माँसभक्षण कर रही है और जानवरों को मार रही है। वैज्ञानिक आधार पर एक कारण बता दीजिये कि इन तर्कों को मनुष्यों पर लागू क्यों नहीं किया जा सकता?
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