मथुरा महाभारत काल से ही मल्लो की भूमि रही है। मथुरा के राजा कंस के दरबार में अनेकों मल्ल रहते थे। चाणूर ,मुष्टिक ऐसे ही दो मल्ल थे जिनको श्री कृष्ण जी ने मारा था। यह भारत की राजव्यवस्था रही है यहां प्रत्येक राजा अपने राज्य में मल्ल अर्थात पहलवानों को विशेष प्रोत्साहन देता था राज प्रबन्ध से उनकी खुराक देखरेख का विशेष प्रबंध रहता था । यही कारण रहा ब्रिटिश काल तक देश की 500 से अधिक रियासतों में भी यह परंपरा रही है। राजे महाराजे मल्ल युद्ध कुश्ती की प्रतिस्पर्धा के शौकीन थे । बड़े-बड़े दंगल आयोजित कराते थे प्रत्येक रियासत में 1,2 नामी पहलवान मल्ल रहता था। लेकिन बात जब ब्रज मंडल अर्थात मथुरा के पहलवानों की होती है तो इनकी धाक पूरे अविभाजित भारत में रही है। एक जमाने में छोटे से मथुरा मुख्य नगर में 150 से अधिक अखाड़े थे... जिनमें आजादी के कुछ दशकों बाद तक भी मल्लो की कवायद हुंकार सुनी जा सकती थी। इन अखाड़ों में 6 से 10 घंटे तक मथुरा के चोबे पहलवान बिना रुके बिना थके आपस में जोर आजमाइश करते रहते थे। मथुरा के मल्ल पेशावर अमृतसर लाहौर रावलपिंडी जाकर वहां के मांसाहारी पहलवानों को पराजित करते थे। मथुरा के मल्लो को देखकर ही विपक्षी पहलवान भयभीत हो जाते थे। कोलकाता के एक दंगल में गामा पहलवान भी ऐसे ही भयभीत हो गया था । वह मुकाबला मथुरा के मल्ल चंदन व गामा पहलवान के बीच हुआ था घंटे की जद्दोजहद के बाद बराबरी पर छुटा था वह मुकाबला ।
कुच बिहार के राजा ने उसे मुकाबला का आयोजन कराया था कोलकाता के ईडन गार्डन में। मथुरा के मल्ल पूरी तरह शाकाहारी होते थे अंगीठी पर 5 किलो दूध उसमें 1 किलो शुद्ध देसी घी 1 किलो बादाम डालकर जब वह सामग्री साढे तीन किलो हो जाती थी इसका सेवन प्रत्येक मल्ल करता था इसे अखनी बोला जाता था।
अविभाजित पंजाब के मशहूर मुस्लिम कल्लू खान पहलवान की मां को बड़ा अचरज हुआ था यह जानकर कि उसके बेटे को जिस मथुरा के पहलवान ने हराया है वह पूरी तरह शाकाहारी है।
। मथुरा के मल्लो की इस विशेषता पर सर्वप्रथम लेखनी से प्रकाश आदित्य ब्रह्मचारी महान दार्शनिक समाज सुधारक आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानंद सरस्वती ने डाला है। अंग्रेजी राज में उन्होंने गौ संरक्षण को लेकर लिखी गई अपनी लघु पुस्तक गौकरुणानिधि में लिखा है।
स्वामी जी महाराज लिखते है " मांसाहारी से शाकाहारी अधिक बलवान होता है जंगली भैंसा मांस नहीं खाता यदि वह शेरों के झुंड पर गिरे एक दो को तो मार ही डालें।
और जो प्रत्यक्ष दृष्टांत देखना चाहे तो एक मांसाहारी का एक दूध घी और अन्नाहारी मथुरा के मल्ल चोबे से बाहु युद्ध हो तो अनुमान है कि मांसाहारी को पटक कर उसकी छाती पर चोबा चढ़ बैठेगा। पुनः परीक्षा होगी कि किस-किस के खाने में बल अधिक होता है भला तनिक विचार तो करो कि छिलकों के खाने से अधिक बल होता है अथवा रस और जो सार रूप है उसके खाने से? मांस छिलके के समान है और दूध घी रस के तुल्य है इसे जो युक्ति पूर्व खाए तो मांस से अधिक गुण और बलकारी होता है तो फिर मांस खाना व्यर्थ है और हानिकारक अन्याय अधर्म और दुष्ट कर्म क्यों नहीं?
महर्षि दयानंद जी के गुरु दंडी संन्यासी विरजानन्द मथुरा के ही निवासी थे । मथुरा में रहकर ही उन्होंने उनसे अष्टाध्यायी व्याकरण महाभाष्य अन्य आर्ष ग्रंथों को पढा था 3 वर्ष । ऐसे में यह सहज है उन्होंने मथुरा के अखाडो में मथुरा के मल्ल चोबो के बल की थाह ली हो वैसे महर्षि दयानंद भी अतुल्य बलशाली थे।
स्वामी दयानंद जी ने अंग्रेजी राज में ईसाइयों मुसलमानों द्वारा की जा रही गो हत्या मांसाहार के विरुद्ध बहुत बड़ा आंदोलन चलाया था। गाय व अन्य उपयोगी पालतू जंगली पशुओं के संरक्षण प्रकृति में इनके महत्व को उजागर करती हुई गौ आधारित अर्थव्यवस्था को लेकर 'गोकरूणानिधि' पुस्तक लिखी थी। महारानी विक्टोरिया से भी गौ हत्याबंदी की तत्काल मांग की थी। एक करोड़ भारत की देसी प्रजा के हस्ताक्षर से युक्त पत्र का भी मनोरथ उन्होने उठाया था उनकी आकस्मिक मृत्यु से उनका यह कार्य अधूरा रह गया। स्वामी दयानंद ने हीं हरियाणा के रेवाड़ी में देश की सबसे पहली गौशाला अहीर रेवाडी नरेश से कहकर उन्हें आदेशित कर स्थापित कराई थी ।
मथुरा के मल्लो पर लौट कर आते हैं मथुरा के मल्ल शाकाहारी थे लेकिन स्वभाव से बेहद शांत थे आखिर पहलवान क्रोधी नहीं हो सकता वह पहलवान ही नहीं जो क्रोध करें ।यही कारण रहा जब अहमद शाह अबदाली ने मथुरा पर हमला किया लुटेरे तुर्क मंगोल मुगलो ने मथुरा पर हमले किए यहां के मंदिरों को लूटा किया एक भी मल्ल चोबे ने आगे आकर प्रतिकार नहीं किया। निरीह जीव की भांति देखते रहे। कुछ लोग कहते हैं मल्लो का यह धर्म था वह किसी भी युद्ध में हिस्सा नहीं लेंगे केवल अपने राजा के आदेश पर ही अपनी मल्ल विद्या का प्रदर्शन करेंगे अखाड़े में ही वह प्रतिपक्षी के प्राण हर सकते हैं केवल। उनका यह आदर्श मथुरा पर बहुत भारी पड़ा।
आज मथुरा के अधिकांश अखाड़े में ताला लग गया है तो कुछ पर बंदूक धारी सफेदपोशो का कब्जा है ।अक्सर अखाड़े की जमीन शहर के बीचो-बीच होती है जमीन की कीमत कई गुना बढ़ जाती हैं अवसरवादी लोग ऐसी संपत्तियों को कब्जाते हैं, साथ ही समृद्ध परंपरा भी लुप्त हो जाती है। दिल्ली एनसीआर के अखाड़ो में भी ऐसा ही हुआ उनकी भी मथुरा के अखाड़ो की तरह दुखद परिणीति हुई अवैध कब्जे के रूप में।
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