1981 में डॉ मैरी विठ्ठिल Dr. Mary Vithithil केरल की मलयालम पत्रिका शब्दधाम नामक पत्रिका की सम्पादिका मालाबार गई और 1921 के हिंदू नरसंहार में भाग लेने वाले कई लोगों का साक्षात्कार लिया। उन्होंने श्रृंखला का शीर्षक दिया, "मोपला लाहला का एक उदासीन स्मरण। "... (“A nostalgic remembrance of the Mopallah Lahala”).
उन्ही दंगाइयों में से एक साक्षात्कार उन्होंने 81 साल के अब्दुल्ला कुट्टी के साथ किया था। ये उसके शब्द हैं ...।
“जब दंगे शुरू हुए तो हमारे बीच बहुत उत्साह था। रोज हम सड़कों पर खड़े होकर दंगाइयों के आने और उनके साथ आने का इंतजार करते। हम उनके साथ गए लेकिन हमने किसी को नहीं मारा
दंगाइयों ने करिपथ इलम (ब्राह्मण घर) Karipath Illam( Brahmin House) पर हमला किया और सभी निवासियों को मार डाला। उन्होंने सारी दौलत ले ली और फिर उस इल्म को एक ऐसी जगह में बदल दिया, जहां असहाय हिंदुओं को लाया जाता था और जबरदस्ती धर्मांतरण या हत्या कर दी जाती थी।
हमने मांस पकाया और उन्हें बलपूर्वक खिलाया .. इस की गंध के कारण उनको कई दिन तक उल्टी हुई । इस तरह के लोगों को हमने लात मारकर गिरा दिया गया। कईयों ने कई दिन तक कुछ भी खाने से मना कर दिया।
जब हमने 25 हिंदुओं को इकट्ठा किया ... उन्हें कुएं के किनारे ले जाया गया। तब दीनवालों ने उनसे पूछा ... स्लाम कबूल करेंगे या आप इंग्लैंड जाना चाहते हैं (मतलब मौत)।
अधिकांश ने मौत चुनी और इसलिए उनकी गर्दन काटकर उन्हे कुएं में फेंक दिया । कई लोग तुरंत नहीं मरे, लेकिन घंटों और कभी-कभी दिनों तक तड़पते रहे।
हर रोज हम पालतू पशुओं को लाते और चावल के साथ पकाते ... हम अच्छी तरह से खाते थे और इसने हमें और अधिक और दंगों में सक्रिय कर दिया।
पकड़े गए इन हिंदुओं में से हमें एक आदिवासी लड़का मिला जिसने तीर और धनुष बनाया। वह परिवर्तित हो गया और जल्द ही दंगों में शामिल हो गया। उनके दीन का नाम अली रख दिया। ...
एक और शख्स जो हमसे जुड़ गया वो था बिरन कुट्टी। वह ब्रिटिश सेना से सेवानिवृत्त हुए थे और इसलिए उनके पास एक बंदूक थी। उन्होंने दंगों में इस बंदूक का इस्तेमाल किया।
जैसे-जैसे दंगे अधिक से अधिक हिंसक होते गए ... क्षेत्र के कुएं शवों से भर गए ... "
अब्दुल्ला कुट्टी ने इन सभी गंभीर घटनाओं को बहुत याद किया और उन्होंने कहा कि यह गोरखा रेजिमेंट के अंदर आने के बाद ही रुका है।
अधिकतम संख्या में हिंदुओं को टुकड़े टुकड़े करके या उनकी गर्दन काट कर कुएं मे फेंक दिया गया। ऐसा कहा जाता है कि इस तरह मारे गए हिंदुओं के कंकाल गर्मियों में आने पर कुएं में देखे जा सकते हैं और कुएं सूख जाते हैं।
यह याद रखना अच्छा होगा कि कांग्रेस और कम्युनिस्ट सरकारों ने बाद में इन दंगाइयों को 1980 के दशक में इन नरसंहार करने वाले मोपला मुस्लिमो को स्वतंत्रता सेनानी पेंशन दी। दूसरी तरफ जो हिंदू सब कुछ खो चुके थे जीवन, सम्मान, परिवार, स्थिति, घर, संपत्ति और धन ऐसी किसी भी पेंशन से इनकार कर दिया गया था।
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यह पोस्ट का एक अंश मूलतः मलयालम पत्रिका के विवरण के आधार पर इंग्लिश मे था। मैंने अनुवाद किया है। इंग्लिश से हिन्दी मे अनुवादित।
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