एक भाई ने इस ग्रुप में पोस्ट की थी कि प्राचीन काल में राजाओं की बहुत स्त्रियां होती थी और वह ब्रह्मचर्य को महत्व नहीं देते थे और लड़ाइयां लड़ते और युद्ध जीत जाते थे।
दूसरी उसने यह करी थी कि आज आधुनिक युग में भी लेकिन भारत जो ब्रह्मचर्य को महत्व दे रहा पीछे है लेकिन विदेशी लोग आगे हैं?
इसका क्या कारण है?
अब इसका उत्तर लीजिए 🔥
प्राचीन काल की बात की जाए तो आज से लाखों वर्ष पूर्व रामायण काल में जाएं तो वहां पाते हैं कि जब देवी सीता का हरण हो गया था तो वन में अकेले दो भाई श्रीराम और लक्ष्मण थे और उन्होंने सहायता के लिए अयोध्या से कोई सेना नहीं मंगाई बल्कि वहां वानरों की सेना गठित करके उस समय के बहुत शक्तिशाली रावण से युद्ध किया और विजयी हुए। श्री राम और लक्ष्मण संयमित जीवन जीते थे । यह है ब्रह्मचर्य की महिमा।
वीर बज्र अंगी हनुमान जी को कौन नहीं जानता । उनके अंग बज्र के समान मजबूत थे इसलिए उनका नाम बज्रंगी पड़ा था। वीर हनुमान जी के बिना संभवतः देवी सीता का पता लगाना भी मुश्किल था। उन्होंने रावण को चुनौती देते हुए कहा था, "रावण! यदि श्री राम की आज्ञा होती तो अभी यहीं पर तेरा राम नाम सत्य कर देता और देवी सीता को यहां से ले जाता ।" यह है ब्रह्मचर्य का प्रताप।
आज से लगभग ५ सहस्र वर्ष पूर्व महाभारत काल की हम बात करें तो राजा शांतनु और देवी गंगा का पुत्र देवव्रत जिसे भीष्म पितामह के नाम से जाना जाता है वह भी अपने ब्रह्मचर्य व्रत के प्रताप से महान बना था, उसके सामने बड़े बड़े वीर अर्जुन सरीखे योद्धा पानी भरते थे, वीर अर्जुन भी भीष्म पितामह को जब पराजित कर पाया तब उसने शिखंडी को आगे कर दिया था। उस महाभारत के युद्ध में भीष्म पितामह की उस समय आयु १७४ वर्ष थी । उस आयु में भी वह पराक्रमी योद्धा की भांति युद्ध करते थे, यह ब्रह्मचर्य की ही महिमा थी । उस समय आर्यावर्त्त में विद्या का लोप होने लगा था लेकिन फिर भी अधिकांश लोग ब्रह्मचर्य का महत्व तो समझते ही थे। लेकिन राजा शांतनु और देवी सत्यवती के दो पुत्र थे चित्रांगद और विचित्रवीर्य वह दोनों भोग में बहुत लिप्त रहते थे , तो उनकी ऐसी दशा हो गई थी कि अपना विवाह करवाने में भी असमर्थ थे । (क्योंकि उस समय स्वयंवर द्वारा विवाह होते थे ) जैसे तैसे भीष्म ने उनका विवाह करवाया तो काम और भोग में अत्यधिक लिप्त होने के कारण उनकी मृत्यु तक हो गई थी और संतान तक भी नसीब नहीं हुई, यह सब असंयमित जीवन जीने, ब्रह्मचर्य का लोप करने, वीर्यनाश के कारण ही हुआ था।
महाभारत का और अध्ययन करने पर हम पाते हैं श्रीकृष्ण और देवी रुक्मिणी ने विवाह के पश्चात भी १२ वर्ष ब्रह्मचर्य पालन किया था। और तेजस्वी पुत्र प्रद्युम्न को प्राप्त किया था जो गुण और शरीर से बिलकुल श्री कृष्ण के जैसा था । यह ब्रह्मचर्य की ही महिमा थी।
अब थोड़ा उस काल की बात करें जब ब्रह्मचर्य का महत्व बहुत ही कम लोग समझते थे अर्थात मध्यकाल में आचार्य चाणक्य हुए थे, आचार्य चाणक्य पूरे भारत को अखंड करना चाहते थे और उस पर एक चक्रवर्ती राजा को बैठाना चाहते थे, इसके लिए उन्होंने चंद्रगुप्त को तैयार किया तो जब चंद्रगुप्त मगध के राजा की पुत्री के प्रेम में उलझ रहा था तो उन्होंने चंद्रगुप्त से साफ मना कर दिया था क्योंकि आचार्य चाणक्य ब्रह्मचर्य का महत्व समझते थे।
मुगल काल की बात करें तो उस काल में भारत के राजा भी भोग में लिप्त रहते थे, केवल अपने ही राज्य से खुशी रहते थे, आपस में संगठित नहीं थे इसलिए मुगल यहां राज्य कर पाए और रही बात युद्ध लड़ने की तो उनके साथ बहुत बड़ी सेना होती थी युद्ध तो सेना लड़ती थी जिसकी जितनी बड़ी सेना होती थी वह युद्ध जीतता था।
हां राजा भी युद्ध लड़ते थे लेकिन सेना का भी बहुत बडा रोल था।
यदि वीर्य का महत्व नहीं है तो फिर व्यभिचारी बलात्कारी अकबर एक पत्नीव्रत, संयमित जीवन जीने वाले महाराणा प्रताप से क्यों घबराता था? क्यों जीवन भर महाराणा प्रताप के सामने नहीं आया?
ऐसे बहुत उदाहरण मिल जाएंगे- पराई स्त्री को माता समान मानने वाले छत्रपति शिवाजी महाराज ने तो औरंगजेब को नाकों चने चबाने को मजबूर कर दिया था । यह संयम और ब्रह्मचर्य की ही महिमा थी।
और थोड़ा आधुनिक युग की बात कर लें अंग्रेजी राज्य में एक व्यक्ति हुए जिनका नाम था प्रोफेसर राममूर्ति उन्हें कलयुगी भीम भी कहा जाता है। उन्होंने ब्रह्मचर्य के प्रताप से बहुत बड़े-बड़े करतब दिखाए थे । वह ब्रह्मचर्य के बल पर हजारों हजारों दंड प्रतिदिन लगाते थे और लोहे की आधा इंच 1 इंच मोटी जंजीरों को तोड़ना तो उनके लिए आम बात थी । बड़ी-बड़ी मोटरगाड़ियों को रोक दिया करते थे। हाथी को अपनी छाती पर चढ़ा लेते थे। यह है ब्रह्मचर्य की महिमा।
आजकल जिन्हें ब्रह्मचर्य करना बस की नहीं है, वह कुतर्क किया करते हैं । ऐसा ही एक बार एक राजा ने ऋषि दयानंद से कहा था कि "स्वामी जी! आप ब्रह्मचर्य की महिमा बहुत बताते हैं लेकिन आप ब्रह्मचारी हैं और मुझे तो आप में कोई विशेष बल प्रतीत नहीं होता। उस समय तो ऋषि दयानंद शांत रहे लेकिन सांझ के समय जब राजा अपनी घोड़ा गाड़ी पर बैठकर कही जा रहा था तो घोड़ा गाड़ी चलाने वाले ने देखा कि घोड़े आगे नहीं बढ़ रहे उसने बहुतेरा जोर लगाया, उसका जोर तो उन घोड़ों पर ही चल रहा था उसने बहुत चाबुक मारे लेकिन गाड़ी टस से मस नहीं हो रही थी । राजा आश्चर्य में पड़ गया कि आखिर गाड़ी आगे क्यों नहीं बढ़ रही? इसी सोच उसने पीछे की ओर देखा तो ऋषि दयानंद गाड़ी का एक पहिया एक हाथ से पकड़े हुए थे। शरीर पर ओज और तेज दिखाई दे रहा है । उनके द्वारा बलपूर्वक गाड़ी को पकड़े रहने के कारण ही गाड़ी आगे नहीं बढ़ रही थी। राजा ने नीचे उतर कर सन्यासी से क्षमा याचना की, अब उस राजा को ब्रह्मचर्य का प्रत्यक्ष प्रमाण मिल गया था।
और यह तो सिर्फ एक घटना है ऐसी अनेकों घटनाएं ऋषि दयानन्द के जीवन में देखने को मिलती हैं। कहीं से उनका जीवन चरित्र पढ़ लेना । केवल शारीरिक बल ही नहीं, उनकी स्मृति, उनकी मानसिक और आत्मिक शक्ति के बहुत उदाहरण मिल जाएंगे।
अभी भी किसी भाई को ब्रह्मचर्य के विषय में कोई शंका है या वह यह समझता है कि ब्रह्मचर्य पालन से कोई लाभ नहीं होता तो उसे चुनौती है संजय बैंसला निवासी खुशक बडोली जिसने ब्रह्मचर्य बल पर गिनीज बुक रिकॉर्ड बनाए हैं और कुलदीप आर्यवीर (२५००० दंड लगाने का वर्ल्ड रिकॉर्ड है गिनीज बुक में) और संदीप आर्यवीर (३५ घंटे से अधिक समय तक सूर्य नमस्कार का वर्ल्ड रिकॉर्ड) इन में से किसी भाई से कोई भी व्यभिचारी, वीर्यनाश करने वाला, वीर्यपात करने वाला इनसे जाकर के लड़ सकता है।
Open Challenge
और अंतिम बात कि भारत के लोग अभी भी ब्रह्मचर्य को महत्व नहीं दे रहे हैं, अगर दे रहे होते तो यह पोस्ट करने की आवश्यकता ही नहीं पड़ती।
भारत में तो यह चल रहा है, सोनू मेरी डार्लिंग, बसपन का प्यार मेरा भूल नहीं जाना रे!...
और जो खिलाड़ी ओलंपिक में मेडल लेकर आ रहे हैं उनसे कभी मुलाकात हो तो पूछना कि वह कितना अधिक ब्रह्मचर्य को महत्व देते हैं।
No comments:
Post a Comment