Tuesday, August 17, 2021

औरतें सारी काफ़िर हैं।

अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी के साथ ही कट्टरपंथी इस्लामिक विचारधारा से समूचा विश्व भयाक्रांत है। विशेषकर दक्षिण एशिया में अनिष्ट की आशंकाएं बढ़ गयी हैं। अफगानिस्तान के मदद की गुहार पर मूक दर्शक बनी दुनिया को लगा कि पराए पचड़े पड़कर कहीं वह खुद संकट में न पड़ जाए। दूसरी तरफ तालिबान ने जिस सहजता से अफगानिस्तान पर विजय प्राप्त की है, उससे यह भी स्पष्ट है कि वहां इस कट्टरपंथी इस्लामिक संगठन को स्थानीय लोगों और सेना का समर्थन भी प्राप्त था और इस समर्थन का आधार भी धार्मिक कट्टरता ही रही।

 आज अवसर है कि इस एक शताब्दी में इस्लामिक कट्टरपंथियों की जीत से किसी देश या स्थान विशेष पर पड़ने वाले प्रभावों पर फिर से गौर किया जाए। भारत के परिपेक्ष्य में समझने के लिए पांच घटनाओं पर दृष्टि डालना भी अत्यंत अवाश्यक हो गया है।

 भारत-पाकिस्तान विभाजन के समय जिस प्रकार पाकिस्तान के इस्लामिक कट्टरपंथियों ने 10 लाख लोगों को मौत के घाट उतार दिया, उसे भुला दिया जाना एक बहुत बड़ी चूक है। बटवारे के दंगों में सिख और हिन्दू परिवारों की महिलाएं प्रमुख रूप से निशाने पर थीं। कभी पड़ोसी रहे मुस्लिमों ने ही अगणित हिन्दू और सिख महिलाओं के साथ बलात्कार किया। निर्बल महिलाओं के समक्ष ही उनके परिवार की बर्बरता से हत्या की गई।

19 जनवरी 1990 को कश्मीर घाटी में मस्जिदों से रालिव-गलिव-चालिव का की घोषणा हुई। एक लोकतांत्रिक देश में अधिनायकवादी निजामे-मुस्तफा के तहत घाटी में रहने वाले सभी हिन्दुओं और सिखों की खुलेआम निर्मम हत्याएं होने लगीं। इस्लामिक कट्टरपंथियों ने घोषणा कर दी कि सभी गैर मुस्लिम पुरुष अपने घर की महिलाओं को वहीं छोड़ दें और खुद तुरंत घाटी छोड़कर भाग जाएं। जिन कश्मीरी पंडितों ने इस धमकी की अनदेखी की, उन्हें सरे चौराहे काट दिया गया। उनकी महिलाएं जबरिया भीड़ की संपत्ति घोषित कर दी गईं।

1990 के दशक में ही तालिबान सक्रिय हुआ। पाकिस्तान में बने इस आतंकी संगठन ने बहुत जल्द अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया। मुस्लिम बहुसंख्यक इस देश पर कब्जा जमाने के बाद तालिबान ने महिलाओं को आतंकियों के उपभोग की वस्तु बना दिया। घरों से जबरिया औरतें उठाई जाने लगीं। बहुत ही आश्चर्यजनक था कि एक तरफ महिलाओं पर अनगिनत पाबंदियां लगाई गईं और साथ ही उनका अंधाधुंध शारीरिक शोषण भी किया गया। गौरतलब है कि इस बार महिलाएं काफ़िर न होकर मुस्लिम ही थीं।

2014 में विश्व के लिए वीभत्स आतंकवाद का पर्याय बने इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया(आईएसआईएस) में शामिल होने के लिए पूरी दुनिया के मुसलमान इराक और सीरिया पहुँचने लगे। कट्टरपंथी इस्लामिक विचारधारा के इस संगठन ने असंख्य निर्दोषों की निर्ममता से हत्या की, महिलाओं का जघन्य शोषण किता और बाकायदा उसके वीडियो जारी किए। वीडियो जारी होने के बाद आईएसआईएस में शामिल होने के लिए दुनिया भर से कट्टरपंथी मुसलमानों की और बड़ी संख्या इराक और सीरिया में जमा होने लगी। हर कट्टरपंथी इस्लाममिक संगठन की तरह ही आईएस ने भी महिलाओं को उपभोग की वस्तु बनाया। चौराहों पर कूर्द बच्चियों और महिलाओं की नीलामी होने लगी। यहां तक कि आईएस में शामिल होने आईं अवयस्क बच्चियों और महिलाओं का समूहिक बलात्कार इस समूह का शगल था।

आज तालिबान ने दुबारा अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया है। उत्तर के प्रान्तों-शहरों पर जीत मिलने के साथ ही तालिबान लड़ाके निहत्थे लोगों की जघन्य हत्या करने लगे। अफगानिस्तान के सरकारी कर्मचारियों को साफ संदेश दे दिया गया कि वह अपने घर की सभी महिलाएं और बच्चियां तालिबान को चुपचाप सौंप दें। इतिहास में दर्ज चार घटनाओं और वर्तमान अफगान संघर्ष में दो बातों की पुनरावृत्ति हर बार हुई है। एक, निर्दोष-निहत्थे लोगों की बर्बरता से हत्या और दूसरा महिलाओं व बच्चियों के दानवीय शोषण। 

लेख के द्वितीय भाग में कट्टरपंथी इस्लाम की पैशाचिक प्रवृत्ति और इस षड्यंत्र के कारक मनोविज्ञान पर चर्चा होगी। 

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