" बसपन का प्यार " वायरल होने के बाद ऐसी धारणा बन गई है कि अब अच्छे कंटेंट की वैल्यू नहीं रही। अब घटिया कंटेंट ही वायरल हो रहा है। यह धारणा पूर्ण रूप से गलत नहीं कही जा सकती। आज सोशल मीडिया पर हर दूसरी वीडियो गालियों से भरी हुई है। हर दूसरी वीडियो पोर्न वीडियो की श्रेणी में रखी जा सकती है। इन विडियोज पर करोड़ों व्यू हैं। ज़ाहिर है सेक्स और गालियां बिक रही हैं। बिक रहा है घटिया कंटेंट।
लेकिन क्या अचानक से घटिया कंटेंट बनना अधिक हो गया है। नहीं, ऐसा नहीं है। मंटो, फ़ैज़, फ़िराक़, फ़राज़, मीर, ग़ालिब, रफ़ी,मुकेश,किशोर, मन्ना डे, मेहंदी हसन पहले भी कई सौ करोड़ में गिने चुने थे। आज भी गिने चुने हैं। अंतर बस इतना ही है कि पहले घटिया कंटेंट को कला का दर्जा नहीं दिया जाता था। इसलिए वह घटिया कंटेंट टीवी, अख़बार, रेडियो पर प्रसारित नहीं होता था। आज सोशल मीडिया और बाजारू टीआरपी मीडिया के सा जाने से इस घटिया विकृत कंटेंट को मंच मिल गया है। इसलिए लग रहा है कि घटिया कंटेंट ज़्यादा बन रहा है।
एक बार और ध्यान देने की है। चूंकि उस्ताद बनने में उम्र निकल जाती है और नंगानाच जल्दी शोहरत देता है, इसलिए सभी नंगे होने के लिए बेताब हैं। आज " बसपन। का प्यार " हिट होने के बाद लाखों लोगों में इसी तरह का कुछ करने की होड़ होगी। मगर वे भूल जाते हैं कि वे सफल हो भी गए तो यह कामयाबी स्थाई नहीं होगी। कल को तय है कि लेबरी करनी पड़े या कहीं बर्तन मांजने पड़ें। क्यूंकि इस कामयाबी से जिदंगी भर न काम मिलेगा और न रोटी।
सोशल मीडिया और इंटरनेट ने आज पूरी पीढ़ी को तबाह कर दिया है। भारत जैसे देश में जहां इच्छाओं का दमन हुआ है, वहां सोशल मीडिया और इंटरनेट का विनाशकारी प्रभाव ही पड़ना था। सोशल मीडिया लड़कीबाजी, लड़के बाज़ी का अड्डा है युवाओं के लिए। इंटरनेट पर पोर्न देखी जा रही है। रील्स और मीम्स बनाकर लोग खुद को कलाकार समझ रहे हैं।" बसपन का प्यार " नया क्लासिक है। जहां चीन अमेरिका अपनी युवा पीढ़ी को एक ऐसी दिशा दे रही है कि जहां से ऑस्कर, नोबल विजेता, ओलंपिक चैंपियन निकलेंगे, वहीं भारत में लोफर, टपोरी, खलिहर, बेरोज़गार बनने की कोशिश तेज़ी से की जा रही है।
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