Saturday, July 25, 2020

डाॅग्स एंड इंडियन आर नॉट अलाउड।

 साल 1947 में भारत अंग्रेजों की गुलामी से आज़ाद हुआ, अंग्रेजों ने भारत पर करीब 200 सालों तक राज किया. इतने सालों में अंग्रेजों ने भारतीयों को अपना गुलाम बना कर रखा उन्हें हर तरीके से प्रताड़ित किया गया।
       भारत जिसे कभी सोने की चिड़िया कहा जाता था. जब अंग्रेज गए तो सब कुछ लूट कर ले गए और भारत को एक गरीब देश बना कर छोड़ गए। अंग्रेजों ने भारतीय को अपना नौकर बना कर रखा और हमेशा यही समझते रहे कि भारतीय अनपढ़ और जाहिल है।
                                     आप इस बात का अंदाज़ा इसी से लगा सकते हो कि ब्रिटिशर्स अपनी मौज मस्ती की जगहों या रेस्टोरेंट के बाहर एक बोर्ड लगा देतें थे जिसमे लिखा होता था ‘'डॉग्स एंड इंडियन आर नॉट अलाउड’' मतलब "कुत्तों 🐕और भारतीयों 👬का अंदर आना मना है।"
हुबहू यही दृश्य साल 1985 में अमिताभ बच्चन की आई फिल्म ‘मर्द’ में दिखाया गया था। और लगता है कि अंग्रेजों की वो मानसिकता आज तक चलती आ रही है। लेकिन हम ऐसा इसलिए ऐसा बोल रहे है क्योंकि आज भी देश में कुछ ऐसी जगह है जहाँ इंडियन के जानें पर रोक है।पर इन जगहों पर अंग्रेज बड़े आराम से जा सकतें है। जोकि ये बताने के लिए काफी है कि हम आज भी कहीं ना कहीं गुलाम हैं ब्रिटिशर्स के, तो चलिए आप को बताते है वो जगह कहाँ है।
                       ---:कसोल गांव:---
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हिमाचल प्रदेश का एक छोटा सा गांव जहाँ भारतीय न के बराबर है यहाँ सिर्फ इज़राइली लोग रहतें है।तभी इसे "मिनी इजरायल"✡️ भी कहा जाता है. यहाँ जिन भारतीयों के मकान है वे सिर्फ विदेशियों को ही रूम रेंट पर देतें है।अगर यहाँ कोई इंडियन रूम लेना भी चाहें तो यहाँ के लोग देनें में आनाकानी करतें है।
                    -----:पुडुचेरी के बीच:----
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तमिलनाडु का एक छोटा सा शहर। जहाँ बहुत कम ही लोग रहतें है।यहाँ ज्यादातर सिर्फ विदेशी टूरिस्ट ही आते है।पुंडुचेरी के कुछ बीच ऐसे है जहाँ भारतीयों का जाना माना है।इस बीच पर आप को सिर्फ विदेशी टूरिस्ट घूमते दिखंगे।लेकिन इंडियन नहीं दिखते।
                -----:यूनो-इन होटल, बेंगलुरू:----
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आप को जान कर आश्चर्य होगा लेकिन ये बिल्कुल सच है कि इस होटल में भारतीयों की एंट्री बैन थी।ये होटल साल 2012 में केवल जापानी लोगों के लिए ही बनवाया गया था पर किसी करण के चलतें बाद में इस होटल को साल 2014 में सील कर दिया गया था।
                            --------:गोवा के बीच:-----
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पुडुचेरी की तरह यहाँ के भी कुछ बीच पर भारतीय नहीं जा सकते। गोवा वैसे तो यहाँ का माहौल तो पार्टी और शराब के लिए काफी मशूहर है पर गोवा के कुछ ऐसे बीच है जहाँ भारतीयों को जाने से रोका जाता है।यहाँ के लोगों का ये मानना है कि भारत के टूरिस्ट विदेशी महिलाओं पर गंदे गंदे कमेंट करते है और वो कमेंट इसलिए करते हैं क्योंकि वे विदेशी महिलाएं अपने यहां अश्लीलता पूर्ण तरीके से पेश आते हैं। जिसकी वजह से यहाँ के कुछ बीच पर भारतीयों को बैन किया गाया है। जिससे वे खुलकर बीच पर मजे और मस्ती कर सकें।      ----:अंडमान और निकोबार जनजातियाँ का इलाका:----
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यहाँ का कुछ ऐसे इलाके है जहाँ की जनजातियों का बाहर की दुनिया से बिल्कुल भी कनेक्ट नहीं है।यहाँ के लोगों के लिए कहा जाता है कि अगर कोई भी बाहर के लोग आते है तो जिंदा वापस नहीं जा पाते है।
      
मशहूर पर्यटक नगरी नैनीताल के बुजुर्ग बाशिंदों से आप बात करें तो वे बताएंगे कि कैसे उस दौर में नैनीताल की मॉल रोड में भारतीयों के चलने पर पाबंदी थी और बोर्ड टंगा होता था, ''डॉग्स एंड इंडियंस आर नॉट अलाउड'', यानि 'कुत्तों और भारतीयों का प्रवेश वर्जित है'।नैनी झील के किनारे किनारे चलते मॉल रोड में दो परतें हैं।फैली हुई खूबसूरत मॉल रोड के ​बजाय भारतीय केवल, उससे कुछ इंच नीचे झील से चिपकी दूसरी संकरी सड़क पर ही चल सकते थे।यह भारतीयों की गुलामी और ब्रिटिश प्रभुसत्ता का प्र​तीक था। साथ ही यह उस 'श्रेष्ठता बोध' के घमंड का भी प्रतीक था जिसकी पैठ ब्रिटिश साम्राज्य की चेतना में हमेशा ही बहुत गहरी थी।
                            आज इतिहास के इस दूसरे छोर पर खड़े होकर किसी भी व्यक्ति को यह बात अमानवीय लगेगी लेकिन उस दौर में यह स्वीकार्य थी। वो औपनिवेशिक दौर था और ब्रिटिश साम्राज्य का भारत पर कब्जा था।लेकिन आजादी के करीब 7 दशक बीत जाने के बाद भी भारत में कई ऐसी जगहें हैं जहां, कम से कम गरीब भारतीयों के आने पर अघोषित पाबंदी है।तो हम सब कैसे मान सकते हैं कि हम आज स्वतंत्र हैं। कहां है वो स्वतंत्रता जिसका सपना हमारे वीर क्रांतिकारी लोगों ने देखा था।इस तरह से ये स्वतंत्रता एक कोरी कल्पना भर ही लगती है और कुछ नहीं।

इसका एक उदाहरण दिल्ली में पिछले दिनों दिखाई दिया। सोनाली शेट्टी नाम की एक महिला अपने पति के जन्मदिन के मौके पर कुछ गरीब बच्चों को खाना खिलाना चाहती थीं। उन्होंने राजधानी दिल्ली के बीचों बीच मौजूद कनॉट प्लेस में कुछ बच्चों को जुटाया और उन्हें लेकर टॉलस्टॉय रोड पर मौजूद शिवसागर रेस्टोरेंट गईं।लेकिन वहां उन्हें रेस्टोरेंट के मालिक ने भीतर नहीं बैठने दिया। उसका तर्क था कि बच्चों ने गंदे कपड़े पहने हैं, वे साफ सुथरे नहीं हैं।
                             दिल्ली के एक पत्रकार ने सोनाली से इस मामले पर बात कर उसका वीडियो यूट्यूब पर अपलोड किया है।इस वीडियो में अपने साथ हुए वाकये से आहत सोनाली का कहना है, ''गांधी जी को भी किसी ने यही कहा था कि ''डॉग्स एंड इंडियंस आर नॉट अलाउड'', और यह रेस्तरां वाले भी वही कर रहे हैं कि "पुअर किड्स एंड डॉग्स आर नॉट अलाउड.'' वे कहती हैं कि वे बच्चों को पैसे देकर खाना खिला रहीं थीं ना कि मुफ्त में।रेस्टोरेंट वालों को बच्चों के कपड़ों से एतराज नहीं होना चाहिए था। हालांकि इस मामले के गर्माने के बाद दिल्ली सरकार के वरिष्ठ मंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा है कि वे इस मामले की जांच करवाएंगे और दोषी पाए जाने पर रेस्टोरेंट का ​लाइसेंस रद्द कर दिया जाएगा।
यूं तो सोनाली के साथ हुआ यह वाकया बेहद आम है। देश भर में गरीब तबके के और भी बच्चों और लोगों को यह दंश हर रोज झेलना होता है। उनके लिए देश भर की संभ्रांत जगहों में हमेशा ही एक अदृश्य बोर्ड टंगा होता है जिसकी क्लिष्ठ भाषा सिर्फ ये अनपढ़ ही पढ़ सकते हैं, ''डॉग्स एंड पुअर इंडियंस आर स्ट्रिक्टली नॉट अलाउड"! 

ऐसे में मेरे मन में एक सवाल बहुत बार कौंधता है,कि जब अंग्रेजों के समय में हम सबकी यही स्थिति थी तो फिर ये पढ़ें लिखे अंग्रेजों जैसे दिखने वाले हिंदुस्तानी लोग अंबेडकर, जिन्ना, नेहरू, मौलाना आजाद, राजेंद्र प्रसाद बगैरा किस गुप्त दरवाजे से जाकर लंदन की खाक छान कर भारत में अंग्रेजों की सत्ता संम्भालने के लायक हो गये ????🤔🤔 
           तो इसका उत्तर मुझे मैकाले के उस कथन में मिल गया।  2 फरवरी 1835 को ब्रिटेन की संसद में 'थॉमस बैबिंगटन मैकाले' के भारत के प्रति विचार और योजना 'मैं भारत में काफी घूमा हूं। दाएं-बाएं, इधर-उधर मैंने यह देश छान मारा और मुझे एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं दिखाई दिया, जो भिखारी हो, जो चोर हो। इस देश में मैंने इतनी धन-दौलत देखी है, इतने ऊंचे चारित्रिक आदर्श और इतने गुणवान मनुष्य देखे हैं कि मैं नहीं समझता कि हम कभी भी इस देश को जीत पाएंगे।

जब तक हम इसकी रीढ़ की हड्डी को नहीं तोड़ देते, जो इसकी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत है और इसलिए मैं ये प्रस्ताव रखता हूं कि हम इसकी पुरानी और पुरातन शिक्षा व्यवस्था, उसकी संस्कृति को बदल डालें, क्योंकि अगर भारतीय सोचने लग गए कि जो भी विदेशी और अंग्रेजी है वह अच्छा है और उनकी अपनी चीजों से बेहतर हैं, तो वे अपने आत्मगौरव, आत्मसम्मान और अपनी ही संस्कृति को भुलाने लगेंगे और वैसे बन जाएंगे, जैसा हम चाहते हैं। एक पूर्णरूप से गुलाम भारत।'
 
मैकाले ने न कुछ गलत कहा, न ही कुछ नया। ये काम तो अंग्रेजों से पहले आए आक्रांता भी कर ही चुके थे। इस्लामिक आक्रांताओं ने भी भारत की सनातन और वैदिक सभ्यता पर ही चोट की थी। अंग्रेजी हुकुमत को भी मैकाले का ये शोध बहुत भा गया था। उन्होंने इसी पर काम किया और आज नतीजा सबके सामने है।और ये नतीजा इन्हीं लोगों के रूप में सामने आया जिन्हें हमने संविधान निर्माता, प्रथम प्रधानमंत्री, प्रथम शिक्षा मंत्री, आदि के रूप में देखा और जाना।

कहने को हम भारतीय हैं लेकिन हम अपने ही इतिहास से अनजान हैं। हमारा अनजान होना एक सोची-समझी रणनीति थी। मैकाले बेशक सच बोल रहा था लेकिन वो अपने देश यानी ब्रिटेन के पक्ष में योजना भी बना रहा था। उसका शोध इतना सटीक था कि ब्रिटिश संसद ने भी उसका लोहा माना और उसे 'लॉर्ड' की उपाधि से सम्मानित किया। 

इन्हीं लॉर्ड मैकाले की बताई शिक्षा पद्धति और इतिहास को मानने के लिए हम आज भी मजबूर हैं। हमें अपनी संस्कृति और धरोहर से तोड़ने का जो प्रयास वर्षों पहले किया गया था, आज हम उसे आत्मसात किए घूम रहे हैं। देश ने कई क्षेत्रों में तरक्की की है और ऐसे में हमें अपने विस्मृत गौरवशाली इतिहास को सही तरीके से जानने की भी जरूरत है।
                 भारत इतना संपन्न था कि सोने-चांदी के सिक्के चलते थे, कागज के नोट नहीं। जिस भारत को इतिहास में अशिक्षित और निर्धन दिखाने की साजिश की गई, वहां धन-दौलत की कमी होती तो इस्लामिक आततायी और अंग्रेजी दलाल यहां आते ही क्यूं? लाखों-करोड़ रुपए के हीरे-जवाहरात ब्रिटेन भेजे गए जिसके प्रमाण आज भी हैं, मगर ये मैकाले का प्रबंधन ही है कि आज भी हम 'अंग्रेजी और अंग्रेजी संस्कृति' के सामने नतमस्तक दिखाई देते हैं। 
 
आज भारत की सनातन सभ्यता और पुरातन संस्कृति में बोलने वालों को किसी विचारधारा का मान लिया जाता है। ये भी एक दुर्भाग्यपूर्ण सच है कि हमें सांस्कृतिक रूप से लूटने की साजिश तो विदेशियों ने बनाई लेकिन इसे अमलीजामा हमारे अपनों ने ही पहनाया है। 
 
मैकाले के ही शब्दों में उसकी रणनीति के मुताबिक उसने अपनी संसद को सलाह दी थी कि 'हमें हिन्दुस्तानियों का एक ऐसा वर्ग तैयार करना है, जो हम अंग्रेज शासकों एवं उन करोड़ों भारतीयों के बीच दुभाषिए का काम कर सके, जिन पर हम शासन करते हैं। हमें हिन्दुस्तानियों का एक ऐसा वर्ग तैयार करना है जिनका रंग और रक्त भले ही भारतीय हों लेकिन वह अपनी अभिरुचि, विचार, नैतिकता और बौद्धिकता में अंग्रेज हों।' 
 
इन शब्दों को पढ़कर आप ये सोचें कि ये तो आज के हालात को देखते हुए किसी ने टिप्पणी लिखी है तो भी आश्चर्य की बात नहीं होगी। अंग्रेजों की प्रशासनिक क्षमता का यही जादू है कि वर्षों पहले ही उन्होंने अपनी योजना के परिणाम देख लिए थे। इसके बावजूद अपने अन्य उपनिवेशों की तरह वे भारत की सनातन सभ्यता को पूरी तरह मिटा नहीं पाए। अलबत्ता वो इस योजना में कामयाब हो गए कि हम अपनी सभ्यता और संस्कृति को विस्मृत कर दें। 
 
आज हम अपनी परंपराओं को जानते तो हैं लेकिन बहुत ही टूटे-फूटे तरीके से और शायद बहुत हद तक उसके बिगड़े हुए रूप में। अब जरूरत इस बात को भी समझने की है कि हमारी ऐसी क्या संस्कृति थी कि उसे खत्म करने के लिए इतनी दीर्घकालिक साजिश को रचा गया?
 
दरअसल, जो देश अपनी जड़ों को मजबूत रखते हुए आगे बढ़ता है, वो एक विश्वशक्ति के रूप में उभरता है। अपनी भाषा, अपनी समृद्ध परंपरा और अपने पुरातन ज्ञान का सम्मान किसी देश को तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद कैसे आगे बढ़ा सकता है, इसका उदाहरण जापान और चीन जैसे कई देशों ने दिया है। ऐसे कई देश आज भी अपनी परंपरा और सिद्धांतों का अनुपालन करते हैं। 
              हम भी यदि अपने पुराने ताने-बाने को समझें और आज उसके जो प्रासंगिक हिस्से हैं उन्हें अपनाएं तो दोबारा उसी स्तर पर पहुंच सकते हैं, जहां हम पहले थे। आज हम ललचाई नजरों से विकसित देश बनने का सपना देखते हैं। उदाहरण के तौर पर दक्षिण भारतीयों के परिश्रम से बसाए गए सिंगापुर को भी अपने सामने रखते हैं लेकिन कभी यहां परिवर्तन नहीं ला पाते हैं। इसकी बड़ी वजह है आज भी उस झूठे इतिहास और शिक्षा पद्धति में विश्वास रखना, जो हमें गुलाम बनाए रखने के लिए ईजाद किए गए थे।

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