नरगिस (देवप्रकाश उर्फ अब्दुल लतीफ की बहिन) की सत्य कथा-*
अमृतसर की कहानी है यह...नरगिस यहीं बयाही थी...कभी कभी उसका भाई अब्दुल लतीफ अपनी बहन से मिलने आता था...इस बार भी आया था...तो भाई के लिए बहन ने बाजार से जिंदा मछली मंगवाई और उसे छिलने लगी...मछली तड़प रही थी और वह छील रही थी...भाई ने कहा, ‘‘बहन तुझे इस मछली पर दया नहीं आती।’’
‘‘क्या तुम आर्य समाजी हो गए, जो ऐसी बात करते हो भाईजान!’’
‘‘आर्य समाजी ! वे कौन लोग होते हैं?’’
‘‘बुतपरस्ती करते नहीं और शाकाहारी होते हैं...काफिरों की तरह...उन्हीं की एक जात है।’’
‘‘तुम उनके बारे में कैसे जानती हो?’’
‘‘यहां मौलवी साहब से किसी आर्य समाजी से शास्त्रार्थ हुआ था, वहीं से मैं नूरे हकीकत यानी कि सत्यार्थ प्रकाश लाई थी, अलमारी में रखा है पढ़ ले तु भी, बड़ी अच्छी किताब है भाईजान...।’’
अब्दुल लतीफ उर्दू, फारसी और अरबी पढ़ा हुआ था और मौलवी फाजिल तक के विद्यार्थियों को पढ़ाता था, उसने वह नूरे हकीकत जिसके लेखक स्वामी दयानंद सरस्वती थे, उसको पढ़ा और निष्कर्ष निकाला कि वेद ही सब सत्य विद्याओं की पुस्तक है, इसका प्रचार प्रसार करना चाहिए। अब अब्दुल लतीफ ने अपना नाम देवप्रकाश रख लिया था, यह नाम भी उसकी बहन ने उसका रखा था। वह शास्त्रार्थ करने लगा, सबसे पहला शास्त्रार्थ उसका श्रद्धानंद फिल्लौरी से हुआ, जिन्होंने ओम जय जगदीश हरे की आरती लिखी थी, उसमें फिल्लौरी जी हार गए और उन्होंने सिद्ध कर दिया कि वेद में मूर्तिपूजा नहीं। फिर उन्होंने 1936 में तीन महमदियों से ऐतिहासिक मुबाहिसा यानी कि शास्त्रार्थ किया और सिद्ध कर दिया कुरान अवैज्ञानिक ग्रंथ है, ईश्वरीय किताब नहीं, इसके बाद तो ये मुस्लिमों के पीछे हाथ धोकर पड़ गए और इन्होंने कुरान परिचय के नाम से 800 पृष्ठों का एक ग्रंथ तैयार किया, जिसमें कुरान और हदीसों का खंडन है। मंदिरों की लूट भी इनकी प्रसिद्ध रचना है, जो फारसी ग्रन्थों के आधार पर लिखी गई है। 29 अक्टूबर 1972 को पौराणिकों ने इन्हें सार्वजनिक सभा में सम्मानित किया। 91 वर्ष की उम्र में ये वेदों का प्रचार करते हुए दयानंद मठ, दीनानगर, पंजाब में यह संसार छोड़कर चले गए। मुस्लिमों की अतार्किक बातों का खंडन करने के लिए कुरान परिचय ग्रंथ को आज अनेक हिन्दू पढ़ते हैं और सोचते हैं कि यह किसी महान हिन्दू विद्वान की लिखी हुई है, वे नहीं जानते कि इसके लेखक देवप्रकाश जन्म से मुस्लिम थे और नरगिस के कारण आर्य बने थे । प्यारी नरगिस अपने बच्चों के साथ वैदिक धर्म की शरण में आई और देवप्रकाश जैसा भाई आर्य समाज को दिया ।
“तुझे वैदिक धर्म में ए सज्जन आना मुबारिक हो
सच्चाई का जलवा ये दिखलाना मुबारिक हो।
अविद्या की घटनाओं और खिज़ा के तुन्द झोंकों से
निकल कर गुलशने बहदत में आ जाना मुबारिक हो”-
(साभार वेद वृक्ष की छांव तले..लेखिका फरहाना ताज
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