Saturday, July 25, 2020

डाॅग्स एंड इंडियन आर नॉट अलाउड।

 साल 1947 में भारत अंग्रेजों की गुलामी से आज़ाद हुआ, अंग्रेजों ने भारत पर करीब 200 सालों तक राज किया. इतने सालों में अंग्रेजों ने भारतीयों को अपना गुलाम बना कर रखा उन्हें हर तरीके से प्रताड़ित किया गया।
       भारत जिसे कभी सोने की चिड़िया कहा जाता था. जब अंग्रेज गए तो सब कुछ लूट कर ले गए और भारत को एक गरीब देश बना कर छोड़ गए। अंग्रेजों ने भारतीय को अपना नौकर बना कर रखा और हमेशा यही समझते रहे कि भारतीय अनपढ़ और जाहिल है।
                                     आप इस बात का अंदाज़ा इसी से लगा सकते हो कि ब्रिटिशर्स अपनी मौज मस्ती की जगहों या रेस्टोरेंट के बाहर एक बोर्ड लगा देतें थे जिसमे लिखा होता था ‘'डॉग्स एंड इंडियन आर नॉट अलाउड’' मतलब "कुत्तों 🐕और भारतीयों 👬का अंदर आना मना है।"
हुबहू यही दृश्य साल 1985 में अमिताभ बच्चन की आई फिल्म ‘मर्द’ में दिखाया गया था। और लगता है कि अंग्रेजों की वो मानसिकता आज तक चलती आ रही है। लेकिन हम ऐसा इसलिए ऐसा बोल रहे है क्योंकि आज भी देश में कुछ ऐसी जगह है जहाँ इंडियन के जानें पर रोक है।पर इन जगहों पर अंग्रेज बड़े आराम से जा सकतें है। जोकि ये बताने के लिए काफी है कि हम आज भी कहीं ना कहीं गुलाम हैं ब्रिटिशर्स के, तो चलिए आप को बताते है वो जगह कहाँ है।
                       ---:कसोल गांव:---
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हिमाचल प्रदेश का एक छोटा सा गांव जहाँ भारतीय न के बराबर है यहाँ सिर्फ इज़राइली लोग रहतें है।तभी इसे "मिनी इजरायल"✡️ भी कहा जाता है. यहाँ जिन भारतीयों के मकान है वे सिर्फ विदेशियों को ही रूम रेंट पर देतें है।अगर यहाँ कोई इंडियन रूम लेना भी चाहें तो यहाँ के लोग देनें में आनाकानी करतें है।
                    -----:पुडुचेरी के बीच:----
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तमिलनाडु का एक छोटा सा शहर। जहाँ बहुत कम ही लोग रहतें है।यहाँ ज्यादातर सिर्फ विदेशी टूरिस्ट ही आते है।पुंडुचेरी के कुछ बीच ऐसे है जहाँ भारतीयों का जाना माना है।इस बीच पर आप को सिर्फ विदेशी टूरिस्ट घूमते दिखंगे।लेकिन इंडियन नहीं दिखते।
                -----:यूनो-इन होटल, बेंगलुरू:----
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आप को जान कर आश्चर्य होगा लेकिन ये बिल्कुल सच है कि इस होटल में भारतीयों की एंट्री बैन थी।ये होटल साल 2012 में केवल जापानी लोगों के लिए ही बनवाया गया था पर किसी करण के चलतें बाद में इस होटल को साल 2014 में सील कर दिया गया था।
                            --------:गोवा के बीच:-----
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पुडुचेरी की तरह यहाँ के भी कुछ बीच पर भारतीय नहीं जा सकते। गोवा वैसे तो यहाँ का माहौल तो पार्टी और शराब के लिए काफी मशूहर है पर गोवा के कुछ ऐसे बीच है जहाँ भारतीयों को जाने से रोका जाता है।यहाँ के लोगों का ये मानना है कि भारत के टूरिस्ट विदेशी महिलाओं पर गंदे गंदे कमेंट करते है और वो कमेंट इसलिए करते हैं क्योंकि वे विदेशी महिलाएं अपने यहां अश्लीलता पूर्ण तरीके से पेश आते हैं। जिसकी वजह से यहाँ के कुछ बीच पर भारतीयों को बैन किया गाया है। जिससे वे खुलकर बीच पर मजे और मस्ती कर सकें।      ----:अंडमान और निकोबार जनजातियाँ का इलाका:----
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यहाँ का कुछ ऐसे इलाके है जहाँ की जनजातियों का बाहर की दुनिया से बिल्कुल भी कनेक्ट नहीं है।यहाँ के लोगों के लिए कहा जाता है कि अगर कोई भी बाहर के लोग आते है तो जिंदा वापस नहीं जा पाते है।
      
मशहूर पर्यटक नगरी नैनीताल के बुजुर्ग बाशिंदों से आप बात करें तो वे बताएंगे कि कैसे उस दौर में नैनीताल की मॉल रोड में भारतीयों के चलने पर पाबंदी थी और बोर्ड टंगा होता था, ''डॉग्स एंड इंडियंस आर नॉट अलाउड'', यानि 'कुत्तों और भारतीयों का प्रवेश वर्जित है'।नैनी झील के किनारे किनारे चलते मॉल रोड में दो परतें हैं।फैली हुई खूबसूरत मॉल रोड के ​बजाय भारतीय केवल, उससे कुछ इंच नीचे झील से चिपकी दूसरी संकरी सड़क पर ही चल सकते थे।यह भारतीयों की गुलामी और ब्रिटिश प्रभुसत्ता का प्र​तीक था। साथ ही यह उस 'श्रेष्ठता बोध' के घमंड का भी प्रतीक था जिसकी पैठ ब्रिटिश साम्राज्य की चेतना में हमेशा ही बहुत गहरी थी।
                            आज इतिहास के इस दूसरे छोर पर खड़े होकर किसी भी व्यक्ति को यह बात अमानवीय लगेगी लेकिन उस दौर में यह स्वीकार्य थी। वो औपनिवेशिक दौर था और ब्रिटिश साम्राज्य का भारत पर कब्जा था।लेकिन आजादी के करीब 7 दशक बीत जाने के बाद भी भारत में कई ऐसी जगहें हैं जहां, कम से कम गरीब भारतीयों के आने पर अघोषित पाबंदी है।तो हम सब कैसे मान सकते हैं कि हम आज स्वतंत्र हैं। कहां है वो स्वतंत्रता जिसका सपना हमारे वीर क्रांतिकारी लोगों ने देखा था।इस तरह से ये स्वतंत्रता एक कोरी कल्पना भर ही लगती है और कुछ नहीं।

इसका एक उदाहरण दिल्ली में पिछले दिनों दिखाई दिया। सोनाली शेट्टी नाम की एक महिला अपने पति के जन्मदिन के मौके पर कुछ गरीब बच्चों को खाना खिलाना चाहती थीं। उन्होंने राजधानी दिल्ली के बीचों बीच मौजूद कनॉट प्लेस में कुछ बच्चों को जुटाया और उन्हें लेकर टॉलस्टॉय रोड पर मौजूद शिवसागर रेस्टोरेंट गईं।लेकिन वहां उन्हें रेस्टोरेंट के मालिक ने भीतर नहीं बैठने दिया। उसका तर्क था कि बच्चों ने गंदे कपड़े पहने हैं, वे साफ सुथरे नहीं हैं।
                             दिल्ली के एक पत्रकार ने सोनाली से इस मामले पर बात कर उसका वीडियो यूट्यूब पर अपलोड किया है।इस वीडियो में अपने साथ हुए वाकये से आहत सोनाली का कहना है, ''गांधी जी को भी किसी ने यही कहा था कि ''डॉग्स एंड इंडियंस आर नॉट अलाउड'', और यह रेस्तरां वाले भी वही कर रहे हैं कि "पुअर किड्स एंड डॉग्स आर नॉट अलाउड.'' वे कहती हैं कि वे बच्चों को पैसे देकर खाना खिला रहीं थीं ना कि मुफ्त में।रेस्टोरेंट वालों को बच्चों के कपड़ों से एतराज नहीं होना चाहिए था। हालांकि इस मामले के गर्माने के बाद दिल्ली सरकार के वरिष्ठ मंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा है कि वे इस मामले की जांच करवाएंगे और दोषी पाए जाने पर रेस्टोरेंट का ​लाइसेंस रद्द कर दिया जाएगा।
यूं तो सोनाली के साथ हुआ यह वाकया बेहद आम है। देश भर में गरीब तबके के और भी बच्चों और लोगों को यह दंश हर रोज झेलना होता है। उनके लिए देश भर की संभ्रांत जगहों में हमेशा ही एक अदृश्य बोर्ड टंगा होता है जिसकी क्लिष्ठ भाषा सिर्फ ये अनपढ़ ही पढ़ सकते हैं, ''डॉग्स एंड पुअर इंडियंस आर स्ट्रिक्टली नॉट अलाउड"! 

ऐसे में मेरे मन में एक सवाल बहुत बार कौंधता है,कि जब अंग्रेजों के समय में हम सबकी यही स्थिति थी तो फिर ये पढ़ें लिखे अंग्रेजों जैसे दिखने वाले हिंदुस्तानी लोग अंबेडकर, जिन्ना, नेहरू, मौलाना आजाद, राजेंद्र प्रसाद बगैरा किस गुप्त दरवाजे से जाकर लंदन की खाक छान कर भारत में अंग्रेजों की सत्ता संम्भालने के लायक हो गये ????🤔🤔 
           तो इसका उत्तर मुझे मैकाले के उस कथन में मिल गया।  2 फरवरी 1835 को ब्रिटेन की संसद में 'थॉमस बैबिंगटन मैकाले' के भारत के प्रति विचार और योजना 'मैं भारत में काफी घूमा हूं। दाएं-बाएं, इधर-उधर मैंने यह देश छान मारा और मुझे एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं दिखाई दिया, जो भिखारी हो, जो चोर हो। इस देश में मैंने इतनी धन-दौलत देखी है, इतने ऊंचे चारित्रिक आदर्श और इतने गुणवान मनुष्य देखे हैं कि मैं नहीं समझता कि हम कभी भी इस देश को जीत पाएंगे।

जब तक हम इसकी रीढ़ की हड्डी को नहीं तोड़ देते, जो इसकी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत है और इसलिए मैं ये प्रस्ताव रखता हूं कि हम इसकी पुरानी और पुरातन शिक्षा व्यवस्था, उसकी संस्कृति को बदल डालें, क्योंकि अगर भारतीय सोचने लग गए कि जो भी विदेशी और अंग्रेजी है वह अच्छा है और उनकी अपनी चीजों से बेहतर हैं, तो वे अपने आत्मगौरव, आत्मसम्मान और अपनी ही संस्कृति को भुलाने लगेंगे और वैसे बन जाएंगे, जैसा हम चाहते हैं। एक पूर्णरूप से गुलाम भारत।'
 
मैकाले ने न कुछ गलत कहा, न ही कुछ नया। ये काम तो अंग्रेजों से पहले आए आक्रांता भी कर ही चुके थे। इस्लामिक आक्रांताओं ने भी भारत की सनातन और वैदिक सभ्यता पर ही चोट की थी। अंग्रेजी हुकुमत को भी मैकाले का ये शोध बहुत भा गया था। उन्होंने इसी पर काम किया और आज नतीजा सबके सामने है।और ये नतीजा इन्हीं लोगों के रूप में सामने आया जिन्हें हमने संविधान निर्माता, प्रथम प्रधानमंत्री, प्रथम शिक्षा मंत्री, आदि के रूप में देखा और जाना।

कहने को हम भारतीय हैं लेकिन हम अपने ही इतिहास से अनजान हैं। हमारा अनजान होना एक सोची-समझी रणनीति थी। मैकाले बेशक सच बोल रहा था लेकिन वो अपने देश यानी ब्रिटेन के पक्ष में योजना भी बना रहा था। उसका शोध इतना सटीक था कि ब्रिटिश संसद ने भी उसका लोहा माना और उसे 'लॉर्ड' की उपाधि से सम्मानित किया। 

इन्हीं लॉर्ड मैकाले की बताई शिक्षा पद्धति और इतिहास को मानने के लिए हम आज भी मजबूर हैं। हमें अपनी संस्कृति और धरोहर से तोड़ने का जो प्रयास वर्षों पहले किया गया था, आज हम उसे आत्मसात किए घूम रहे हैं। देश ने कई क्षेत्रों में तरक्की की है और ऐसे में हमें अपने विस्मृत गौरवशाली इतिहास को सही तरीके से जानने की भी जरूरत है।
                 भारत इतना संपन्न था कि सोने-चांदी के सिक्के चलते थे, कागज के नोट नहीं। जिस भारत को इतिहास में अशिक्षित और निर्धन दिखाने की साजिश की गई, वहां धन-दौलत की कमी होती तो इस्लामिक आततायी और अंग्रेजी दलाल यहां आते ही क्यूं? लाखों-करोड़ रुपए के हीरे-जवाहरात ब्रिटेन भेजे गए जिसके प्रमाण आज भी हैं, मगर ये मैकाले का प्रबंधन ही है कि आज भी हम 'अंग्रेजी और अंग्रेजी संस्कृति' के सामने नतमस्तक दिखाई देते हैं। 
 
आज भारत की सनातन सभ्यता और पुरातन संस्कृति में बोलने वालों को किसी विचारधारा का मान लिया जाता है। ये भी एक दुर्भाग्यपूर्ण सच है कि हमें सांस्कृतिक रूप से लूटने की साजिश तो विदेशियों ने बनाई लेकिन इसे अमलीजामा हमारे अपनों ने ही पहनाया है। 
 
मैकाले के ही शब्दों में उसकी रणनीति के मुताबिक उसने अपनी संसद को सलाह दी थी कि 'हमें हिन्दुस्तानियों का एक ऐसा वर्ग तैयार करना है, जो हम अंग्रेज शासकों एवं उन करोड़ों भारतीयों के बीच दुभाषिए का काम कर सके, जिन पर हम शासन करते हैं। हमें हिन्दुस्तानियों का एक ऐसा वर्ग तैयार करना है जिनका रंग और रक्त भले ही भारतीय हों लेकिन वह अपनी अभिरुचि, विचार, नैतिकता और बौद्धिकता में अंग्रेज हों।' 
 
इन शब्दों को पढ़कर आप ये सोचें कि ये तो आज के हालात को देखते हुए किसी ने टिप्पणी लिखी है तो भी आश्चर्य की बात नहीं होगी। अंग्रेजों की प्रशासनिक क्षमता का यही जादू है कि वर्षों पहले ही उन्होंने अपनी योजना के परिणाम देख लिए थे। इसके बावजूद अपने अन्य उपनिवेशों की तरह वे भारत की सनातन सभ्यता को पूरी तरह मिटा नहीं पाए। अलबत्ता वो इस योजना में कामयाब हो गए कि हम अपनी सभ्यता और संस्कृति को विस्मृत कर दें। 
 
आज हम अपनी परंपराओं को जानते तो हैं लेकिन बहुत ही टूटे-फूटे तरीके से और शायद बहुत हद तक उसके बिगड़े हुए रूप में। अब जरूरत इस बात को भी समझने की है कि हमारी ऐसी क्या संस्कृति थी कि उसे खत्म करने के लिए इतनी दीर्घकालिक साजिश को रचा गया?
 
दरअसल, जो देश अपनी जड़ों को मजबूत रखते हुए आगे बढ़ता है, वो एक विश्वशक्ति के रूप में उभरता है। अपनी भाषा, अपनी समृद्ध परंपरा और अपने पुरातन ज्ञान का सम्मान किसी देश को तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद कैसे आगे बढ़ा सकता है, इसका उदाहरण जापान और चीन जैसे कई देशों ने दिया है। ऐसे कई देश आज भी अपनी परंपरा और सिद्धांतों का अनुपालन करते हैं। 
              हम भी यदि अपने पुराने ताने-बाने को समझें और आज उसके जो प्रासंगिक हिस्से हैं उन्हें अपनाएं तो दोबारा उसी स्तर पर पहुंच सकते हैं, जहां हम पहले थे। आज हम ललचाई नजरों से विकसित देश बनने का सपना देखते हैं। उदाहरण के तौर पर दक्षिण भारतीयों के परिश्रम से बसाए गए सिंगापुर को भी अपने सामने रखते हैं लेकिन कभी यहां परिवर्तन नहीं ला पाते हैं। इसकी बड़ी वजह है आज भी उस झूठे इतिहास और शिक्षा पद्धति में विश्वास रखना, जो हमें गुलाम बनाए रखने के लिए ईजाद किए गए थे।

Monday, July 20, 2020

श्रीमद्भगवद्गीता में आतंकवाद नहीं है।

लेखक श्री विष्णु शर्मा 

प्रायः अनेक प्रकार के विभिन्न विचारधारा वाले लोग गीता पर यह आक्षेप लगाते रहते हैं कि गीता में जिहाद है और भीषण नरसंहार का आदेश दिया गया है किंतु आश्चर्य की बात तो ये है कि ऐसे लोगों ने कभी गीता को उठाकर तक भी देखा नहीं होता.. केवल सुनी सुनाई बातों पर ही मुहर लगाकर ये असत्य प्रचारित करने लगते हैं जबकि सच इसके बिल्कुल ही विपरीत होता है। आइए देखें सत्य क्या है : - 

जब भगवान श्रीकृष्ण पांडवों का अधिकार मांगने हस्तिनापुर जाते हैं तो दुर्योधन साफ इनकार कर देता है और कहता है - 

' सूच्यग्रं नैव दास्यामि विना युद्धेन केशव! ' 

अर्थात ' मैं बिना युद्ध किए सुईं की नोंक जितनी भूमि नहीं दूंगा ' 

इस वाक्यांश से दुर्योधन की नीयत साफ पता चलती है कि यदि उस से ज़रा सी भी जमीन चाहिए तो उस से युद्ध करना होगा.. इसके अलावा और कोई रास्ता नहीं है 

इस प्रकार युद्ध की नींव दुर्योधन शांति प्रस्ताव को ठोकर मारकर ही रख देता है

और भीष्म द्रोण कृप आदि भी विवश होकर उसका ही साथ देते हैं और अपनी विवशता इन 
शब्दों में व्यक्त करते हुए लगभग सभी एक ही बात कहते हैं - 

 
 अर्थस्य पुरुषो दासो दासत्वर्थो न कस्यचित्।
 इति सत्यं महाराज बद्धोऽस्म्यर्थेन कौरवैः ॥ 

अतस्त्वां क्लीववद् वाक्यं ब्रवीमि कुरुनन्दन ।
भृतोऽस्म्यर्थेन कौरव्य युद्धादन्यत् किमिच्छसि॥

महाराज ! पुरुष अर्थ का दास है, अर्थ किसी का दास नहीं है। यह सच्ची बात है। मैं कौरवों के द्वारा अर्थ से बँधा हुआ हूँ ॥ 

कुरुनन्दन ! इसीलिये आज मैं तुम्हारे सामने नपुंसक के समान वचन बोलता हूँ। धृतराष्ट्र के पुत्रों ने धन के द्वारा मेरा भरण-पोषण किया है। इसलिये ( तुम्हारे पक्ष होकर ) उनके साथ युद्ध करनेके अतिरिक्त तुम क्या चाहते हो,यह बताओ।। 

( यह कथन भीष्म, द्रोण , कृप और शल्य का है, पुनरुक्ति दोष न हो इसलिए एक ही बार दिया जा रहा है , विस्तृत जानकारी के लिए महाभारत के भीष्म पर्व का भीष्म वध पर्वाध्याय पढ़ें जोकि महाभारत में गीता के तुरंत बाद ही है )

इस से इन सब विवशता पता चलती है साथ ही ये भी ज्ञात होता है कि ये सभी जानते थे कि ये सभी गलत पक्ष का साथ दे रहे हैं और गलत पक्ष का साथ देने वाला भी उतना ही गलत होता है जितना कि गलत करने वाला।

अब आते श्रीमदभगवत गीता पर - 

यद्यपि ( हालांकि) अर्जुन विषाद में डूबकर शोकाकुल हो जाते हैं फिर भी वे कौरवों को आततायी और दुष्ट मानते हैं : - 

निहत्य धार्तराष्ट्रान्नः का प्रीतिः स्याजनार्दन।
पापमेवाश्रयेदस्मान् हत्वैतानाततायिनः॥

" हे जनार्दन! धृतराष्ट्र के इन पुत्रों का हनन करने से हमें क्या सुख प्राप्त हो सकता है। यद्यपि ये आततायी हैं, दुष्ट हैं तो भी इहें मारने से हमें पाप ही लगेगा। "  ( गीता - 1/36 ) 

यहां आततायी शब्द बहुत महत्वपूर्ण है। वसिष्ठ स्मृति में आततायी के लक्षण इस प्रकार दिए गए हैं - 

अग्निदो गरदश्चैव शस्त्रपाणिः धनापहः । क्षेत्रदारहरश्चैव षडेत आततायिनः ॥' 

 अर्थात - 

1. घर में आग लगाने वाला 
2. विष देने या खिलाने वाला 
3. शस्त्र हाथ में लेकर मारने के लिए आने वाला 
4. धन लूटने वाला 
5. खेत या भूमि लूटने वाला 
6. स्त्री हरण करने वाला 

ये सभी छह प्रकार का काम करने वाले लोग आततायी हैं और कौरवों में आततायियों के छह के छह लक्षण घट रहे थे -

1. लाक्षागृह में आग लगवाना 
2. भीमसेन को धोखे से विष देना 
3. हमेशा युद्ध में शस्त्र लेकर मारने को तैयार रहना 
4. द्यूत ( जुए) में पांडवों का धन , राजपाट हथिया लेना 
5. जयद्रथ द्वारा  द्रौपदी का हरण करना एवं दुर्योधन तथा दुशासन द्वारा भरी सभा में द्रौपदी का अपमान करना तथा उसे निर्वस्त्र करने की कोशिश करना 
6. जीविका के लिए पांच गांवों तक का न देना 

इस प्रकार समस्त कौरव मारे जाने योग्य थे क्योंकि वे सभी आततायी थे। मनु स्मृति में भी आततायी को देखते ही मारने का आदेश है - 

‘आततायिनमायान्तं हन्यादेवाविचारयन्।' 

इसलिए भगवान श्री कृष्ण इन सबको वध्य मानते थे क्योंकि जिस देश के गणमान्य लोग ही पापी हों वहां की प्रजा भी धीरे धीरे वैसी ही हो जाती है। 

क्रमशः

Saturday, July 18, 2020

20 साल बाद भारत।

रोज की तरह आज भी लगभग सुबह पौने पाँच बजे, तेज शोर से अचानक नींद खुल गई!!.. अजान हो रही थी !!..

अब मस्जिदे बहुत ज्यादा दूरी पर नही रह गई थी. हर मोहल्ले में मिलने वाले पार्क अब मस्जिदों का रूप ले चुके है !!.. अजान ही अब अलार्म बन चुकी थी !!..

हमने नित्य कर्म किया और सुबह की सैर को चल पड़े !!..

अब सड़के 20 साल पहले वाली सड़के नही रह गई थी, स्वच्छ !.. अब सड़को पर जगह जगह अंडों के छिलके पड़े रहना आम बात थी !.. छिलकों से बचते हुए सड़क पार करने में ही, योग हो जाया करता था !!..

योग सिर्फ कहावतों और कहानी किस्सों में बचा था !.. संविधान में नए कानून के तहत योग को 'हराम' घोषित किया जा चुका था !..
 योग अब बैन था !!..

हम घर पहुंचे !. बच्चे स्कूल जाने को तैयार हो चुके थे !..
कुर्ता पजामा और जालीदार टोपी !..
अब स्कूलों की यही यूनिफॉर्म थी !!.. हम बच्चों को कुर्ता पजामा और टोपी पहनाकर स्कूल छोड़ने चले गए !!..

वापिस आये तो श्रीमती जी ने कहा, जाइये सब्जी ले आइये !..
अब सब्जियों के मार्केट काफी कम हो गए थे !..
जहां-तहाँ, सिर्फ मछली, मटन, अंडों की दुकानें. बीच मे एक दो सब्जी के ठेले !!..

अब एक ही ठेले पे मछली, अंडे, सब्जी सब साथ होती थी !.
एक ही तराजू पे मछली भी तुलती थी, और सब्जी भी !!.. मन पक्का कर हम ले आये सब्जी !!..
श्रीमती जी ने खाना बनाया और हम खाकर, दफ्तर की और चल दिये !!..

अब दफ्तर वो 20 साल पहले वाले दफ्तर नही थे !!.. जब दफ्तर की शुरुआत में राष्ट्रगान होता था और समापन पर राष्ट्रीय गीत !!..
दफ्तर की शुरुआत अजान से हुई !!..
हमने अजान पढ़ी और काम मे लग गए !.. दफ्तर का समय खत्म हुआ !.. नियमानुसार नमाज हुई !... 
हमने नमाज पढ़ी और घर आ गए !!..

तब तक बच्चे भी स्कूल से आ चुके थे !.. कोचिंग क्लासेस जाने की तैयारी कर रहे थे !!.. #उर्दू_स्पोकन_क्लासेस !!.. जी !!.. अब सारे मार्केट की दुकानों के नाम और सूचना पट उर्दू में ही लिखे जाते थे !!..
उर्दू सीखना अब "जरूरी" भी था और "मजबूरी" भी !!..

बच्चे कोचिंग चले गए !.. हम श्रीमती जी के साथ tv देखने लगे.. सीरियल के नाम भी बदल गए थे !.. खाला हो तो ऐसी, आपकी आपा, बकरा किश्तों पे और नमाज पढ़ने के तरीके जैसे !..
अब इन्हें ही देखना हमारी नियति बन चुकी थी !..

बच्चे कोचिंग से आ गए !.. खाना खाकर अजीब सी जिद करने लगे !..

पापा पापा बहुत दिन हो गए मन्दिर गए हुए !!..

अब नेपाल कब जाएंगे ??..

जी ! अब सबसे नजदीक में मन्दिर नेपाल में ही थे !!..
देश के मंदिर तो "गोल गुम्बद" बन चुके थे !..

हां-हां जाएंगे बेटा जरूर जाएंगे मन्दिर !.. पर गर्मी की छुट्टियों में !!.
ये सुन बच्चे नाराज होकर चले गए !!..
बच्चों की ये हालत देखकर श्रीमतीजी की आंखों से आँसू बहने लगे !!..

हम दोनों 20 साल पहले के अतीत में खो गए !..
***
किस तरह हम आज से 20 साल पहले कालेज की पार्किंग में ' मोदी जी, योगी जी' को गालिया दे रहे थे !!.. उन्हें बांटने वाला कहकर भला-बुरा कह रहे थे !!..

फिर वो कालेज की कैंटीन , जहाँ चाय पी-पीकर मोदी-योगी को गरिया रहे थे !!.. टेबल पर बैठे मुस्लिम दोस्तो से ज्यादा, हिंदुत्व के विरुद्ध खून हमारा खौलता था !!..
हम अपने ही हिन्दू भाइयों को ऐसे गरियाते जैसे अपने मुस्लिम दोस्तो को खुद के #सेक्युलर और #लिबरल होने का प्रमाण पत्र दे रहे हो !!..

कुछ हिन्दू मित्रो ने हमे समझाया भी था !!.. जनसंख्या कानून पर समर्थन भी मांगा था !!... किन्तु उस समय हमारे ऊपर #खुली_सोच !!.. #मॉर्डनाइजेशन !!.. और #लिब्रिज्म !!.. का नशा छाया हुआ था !!..
किस तरह हमने उन हिन्दू मित्रो को पूरे कालेज के सामने अपमानित किया !!..

#साम्प्रदायिक कहकर उन्हें बदनाम किया. हमेशा उनसे घृणा की !!..

ये सब सोचते-सोचते अचानक हमारे मुँह से निकल पड़ा !..

श्रीमती जी काश उस समय कालेज में हमें #सेक्युरिज्म का कीड़ा ना काटा होता और आप #लिब्रिजम की चादर ओढ़े ना बैठी होती !!.. तो आज ये दिन ना देखने पड़ते !..
आज हमारे बच्चों की इस हालत के जिम्मेदार कोई और नही, सिर्फ हम है !..
*** 
दोस्तो ये तो सिर्फ एक कल्पना थी ..हक़ीक़त भी बन सकती है.. अतः ये हक़ीक़त ना बने हम सबको एकजुट होकर कड़े जनसंख्या कानून के लिए आवाज उठाना होगा.. मोदी योगी और हिन्दू भाइयो का साथ देना होगा.. 

#छद्म_सेक्युरिज्म और #ढोंगी_लिब्रिज्म से बाहर आना होगा !!.. सख्त जनसँख्या नियंत्रण क़ानून पर खुलकर समर्थन करना ही होगा ...

वरना आने वाली पीढ़ियां तुम्हे कभी माफ नही करेंगी !!

Friday, July 17, 2020

वेद,कुरान और बाइबिल में नारी का तुलनात्मक अध्ययन।

वर्तमान समय में आज भी हमारे देश में स्त्रियों का अपमान हो रहा है, विभिन्न प्रकार के धार्मिक पुस्तक बनाएं जा रहे हैं, धर्म भी विभाजित कर दिए गए हैं जिसमें स्त्रियों को कलंकित किया जा रहा है जिसका प्रभाव हमारे साधारण भाइयों, जवान युवक पर पड़ रहा है। वो उन्हें सदैव नीच दृष्टि से देखते हैं, अश्लील बातें करते हैं, स्त्रियों का विरोध तक करते हैं। ये बहुत ही निन्दनीय है कि नारी जिससे समस्त संसार है उसे ही मनुष्य नीच निगाहों से देखते हैं। इसका सबसे बड़ा कारण है वेद की आज्ञा को न मानकर कुरान और बाइबिल आदि के बातों को मानना जबकि प्राचीन-वैदिक काल में स्त्रियों का सम्मान किया जाता था। उस समय स्त्रियां विदुषी हुआ करती थीं; गार्गी, मैत्रेयी, सुलभा, वयुना, धारिणी आदि इसके उदाहरण हैं। यहां सभी पुस्तकों से नारी के अस्तित्वों एवं अधिकारों का संक्षिप्त विवरण देता हूं फिरअन्तर समझ आएगा कि किस पुस्तक अथवा ग्रन्थ ने नारी के अस्तित्व को ऊंचा बनाये रखा है?

इस लेख में हम वेद, क़ुरान और बाइबिल में नारी विषय का तुलनात्मक अध्ययन करेंगे।

कुरान में स्त्रियों की दशा-

कुरान भी ऐसी ही पुस्तक हुई है कि जिसने स्त्रियों के अस्तित्व को मिटा दिया है। कुरान में कुंवारा रहना मना है बिना विवाह के कोई मनुष्य रह नहीं सकता। इसमें स्त्रियों को नीचा दिखलाने के सन्देश ही दिए गए हैं। देखिए-

व करना फी बयूतिकुन्ना। -(सूरते अहज़ाब आयत ३२)
और ठहरी रहो अपने घरों में।
यह वही आयत है जिसके आधार पर परदा प्रथा खड़ी की गई है। इससे शारीरिक, मानसिक, नैतिक व आध्यात्मिक सब प्रकार की हानियां होती हैं और हो रही हैं।

फ़मा अस्तमतअतमाबिहि मिन्हुन्ना फ़आतूहुन्ना अजूरहुन्ना फ़री ज़तुन।
और जिनसे तुम फ़ायदा उठाओ उन्हें उनका निर्धारित किया गया महर दे दो।

सन्तान हो जाने पर किसी ने तलाक दे दिया तो? फ़रमाया है-

बल बालिदातोयुरज़िअना औलादहुन्ना हौलैने कामिलीने, लिमन अरादा अन युतिम्मरज़ाअता व अललमौलूदे लहू रिज़ कहुन्न व कि सवतहुन्ना बिल मारुफ़े। -(सूरते बकर आयत २३३)
और माँऐ दूध पिलायें अपनी सन्तानों को पूरे दो वर्ष। और यदि वह (बाप) दूध पिलाने की अवधि पूरा कराना चाहे। और बाप पर (ज़रूरी है) उनका खिलाना, पिलाना और कपड़े-लत्तों का (प्रबन्ध) रिवाज के अनुसार माँ का रिश्ता इतना ही है औलाद से, इससे बढ़कर उनकी वह क्या लगती है?

फिर बहु विवाह की आज्ञा है। कहा है-
फ़न्किहु मताबालकुम मिनन्निसाए मसना व सलास वरूब आफ़इन ख़िफ्तुम इल्ला तअदिलू फ़वाहिदतन ओमामलकत ईमानुक़ुम। -(सूरते निसा आयत ३)
फिर निकाह करो जो औरतें तुम्हें अच्छी लगें। दो, तीन या चार, परन्तु यदि तुम्हें भय हो कि तुम न्याय नहीं कर सकोगे (उस दशा में) फिर एक (ही) करो जो तुम्हारे दाहिने हाथ की सम्पत्ति है। यह अधिक अच्छा है ताकि तुम सच्चे रास्ते से न उल्टा करो।

उपरोक्त प्रमाण द्वारा सिद्ध होता है कि इस्लाम केवल स्त्रीयों की रक्षा नहीं अपितु स्त्रीयों से व्यभिचार करना चाहता है अतः कुरान पढ़कर भी नारी की रक्षा नहीं हो सकेगी।

बाइबिल में स्त्रियों का अस्तित्व

बाइबिल में भी स्त्रियों को कलंकित कर दिया गया है। ईसाई धर्म में स्त्रियों के साथ व्यभिचार करना ही सिखाया गया है। यहां बाइबिल से भी प्रमाण देख लें-

बहिनों के साथ सम्बन्ध-
"काइन (आदम का प्रथम पुत्र) ने अपनी पत्नी के साथ सहवास किया। वह गर्भवती हुई और उसने हनोक को जन्म दिया।" -उत्पति ४:१७

पिता पुत्री का सम्बन्ध-
"दोनों पुत्रियों ने उस रात अपने पिता को मदिरा पिलाई और बड़ी पुत्री जाकर उसके साथ लेट गई।....."
उन्होंने उस रात भी अपने पिता को शराब पिलाई और छोटी पुत्री जाकर उसके साथ लेट गई....." -उत्पति १९:३३,३५,३६

ईसाईमत में बाप बेटी का विवाह जायज है। बाइबिल १ कुरैन्थियो ७ में लिखा है-
"और यदि कोई यह समझे कि मैं अपनी उस-कुंवारी का हक़ मार रहा हूँ, जिसकी जवानी ढल चली है, और प्रयोजन भी होए, तो जैसा चाहें वैसा करें, पाप नहीं, वे ब्याहे जायें"।।३७।।
In english- "Let them marry". अर्थात् "उन बाप बेटी का विवाह हो जाए या वे विवाह कर लें" ऐसा छपा हुआ है।
हर व्यक्ति स्वयं सोच सकता है कि जिस मत में ऐसी बात जायज़ मानी जाती हो, वह कैसा मजहब हो सकता है?

उपर्युक्त प्रमाणों से सिद्ध होता है कि बाइबल ने भी स्त्रियों को कलंकित कर रखा है।

वेदों में देवियों का महत्त्व

वेद ही ईश्वरीय ज्ञान है, वेद भगवान् ही हमें स्त्रियों के प्रति आदर करने का आदेश देते हैं। वेद नारी को अत्यन्त महत्त्वपूर्ण, गरिमामय स्थान प्रदान करते हैं। स्त्रियों के विषय में वेद से कुछ प्रमाण देखें-

यास्तेऽ अग्ने सूर्य्ये रुचो दिवमातन्वन्ति रश्मिभि:।
ताभिर्नोऽ अद्य सर्वाभी रुचे जनाय नस्कृधि।। -यजु० १३/२२
भावार्थ:- इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालंकार है। जैसे ब्रह्माण्ड में सूर्य्य की दीप्ति सब वस्तुओं को प्रकाशित कर रुचियुक्त करती हैं, वैसे ही विदुषी श्रेष्ठ पतिव्रता स्त्रियां घर के सब कार्य्यों का प्रकाश करती हैं। जिस कुल में स्त्री और पुरुष आपस में प्रितियुक्त हों, वहां सब विषयों में कल्याण ही होता है।

एषा ते कुलपा राजन्तामु ते परि दद्मसि।
ज्योक्पितृष्वासाता आ शीष्र्ण: समोप्यात्।। -अथर्व० १/१४/३
भावार्थ:- विवाह का प्रमुख उद्देश्य वंश का उच्छेद न होने देना ही है, अतः गृहस्थ एक अत्यन्त पवित्र आश्रम है। मस्तिष्क को ज्ञान से अलंकृत करने के पश्चात् ही एक युवती इसमें प्रवेश कर सकती है।
फिर उसी सूक्त के अगले मन्त्र में कहा है-

असितस्य ते ब्रह्मणा कश्यपस्य गयस्य च।
अन्त: कोशमिव जामयोऽपि नह्यामि ते भगम्।।४।।
भावार्थ:- पति 'असित, कश्यप व गय' होता है तो पत्नी उसके लिए 'अन्त: कोश' के समान होती है।
विशेष:- कुलवधू 'भग व वर्च' वाली हो। (१) वर नियमित जीवनवाला व संयमी हो। (२) वह विवाह का मूलोद्देश्य वंश-अविच्छेद ही समझे। (३) अवैषयिक, तात्त्विक-दृष्टिवाले, प्राणसाधक पुरुष के लिए पत्नी 'अन्तःकोश'-सी है। (४) इस प्रकार के घरों में ही प्रेम और मेल बना रहता है।

निम्नलिखित प्रमाणों ने स्पष्ट कर दिया कि सभी पुस्तकों में सर्वश्रेष्ठ पुस्तक वेद ही है क्योंकि इसमें सभी के प्रति आदर करना सिखाया है। इस लेख से आप अनुमान लगा सकते हैं कि निम्न में ईश्वरीय ज्ञान क्या है? जिसमें स्त्रियों को कलंकित किया गया हो या वह जिसमें स्त्रियों को देवी माना गया हो।

नोट:- आजकल के नवीन पुस्तक पढ़कर, चलचित्र देखकर, पाश्चात्य सभ्यता को अपनाकर स्त्रियां भी वेद मार्ग से भटक गयी हैं, जिसका प्रभाव उनके पीढ़ियों पर भी पड़ रहा है। यही कारण है कि उन्हीं के पुत्र उन्हें बुढापे में अकेला छोड़ देते हैं। प्राचीन समय में स्त्रियां विदुषी हुआ करती थीं एवं अपने पुत्रों को श्रेष्ठ शिक्षा दिया करती थीं-

शुद्धोसि! बुद्धोसि! निरन्जनोसि! संसारमाया परिवर्जितोसि।।
अर्थात्
माता अपने पुत्र से कहती हैं- "तू शुद्ध है! तू बुद्ध है! तू निरन्जन है! तू संसार की माया से सबसे अलग है।"
यही कारण है कि पहले के समय में पुत्र अपने माता की सदैव सेवा किया करते थे।

।।ओ३म्।।

टीकाकरण संघर्ष 1985।

नन्हें शिशुओं के टीकाकरण के विरोध में 40 दलीलें
-जगन्नाथ चटर्जी (टीकाकरण संघर्ष 1985 से)

1. इस बात का कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है कि टीकाकरण से वास्तव में रोगों की रोकथाम हुई है। बीमारियों के ग्राफ और आंकड़े दर्शाते हैं कि टीकाकरण की शुरूआत के समय अमुक बीमारियां स्वत: ही खत्म होने के कगार पर थी। जैसे कि चेचक के टीके से चेचक खत्म होने का दावा किया जाता है, लेकिन इससे पहले कि लोग इसके टीके का विरोध कर पाते, हजारों लोग इसके कारण मौत का शिकार हो चुके थे।

2. टीके सुरक्षित हैं या नहीं, इसके लिए कोर्इ दीर्घकालीन अध्ययन और प्रामाणिक शोध का प्रावधान नहीं है। बलिक बहुत ही छोटे एवं अवैज्ञानिक टेस्टप्रयोग किए जाते हैं, जिनमें टीका लगाए गए लोगों की तुलना उन लोगों से की जाती है, जिन्हें कोई टीके लगे होते हैं! जबकि असल में यह तुलना ऐसे लोगों के साथ की जानी चाहिए, जिन्हें कभी कोई टीके नहीं लगे हों। कोर्इ नहीं जानता कि कम्पनियों द्वारा प्रायोजित इन टीकों के प्रयोगों में किन नियमों और मापदण्डों का पालन किया जाता है।

3. आज तक कोई ऐसा क़दम नहीं उठाया गया है, जिसमें टीके लगे हुए लोगों और बिना टीके लगे हुए लोगों का तुलनात्मक अध्ययन यह जानने के लिए किया गया हो कि आखिर इन टीकों का बच्चों और समाज पर क्या असर हो रहा है।

4. एक बच्चे को केवल एक नहीं, अनेक टीके लगाए जाते हैं। इन अनेक टीकों का बच्चे पर क्या असर होता होगा, इसकी जांच का कोई प्रावधान नहीं है।

5. शिशुओं के टीकाकरण का कोई वैज्ञानिक आधार ही नहीं है। ”टाइम्स आफ इंडिया में प्रकाशित एक वरिष्ठ डाक्टर के कथनानुसार, ”टीकों से बचार्इ जाने वाली बीमारियों से ग्रसित होने की सम्भावना बच्चों में 2 प्रतिशत से भी कम होती है, लेकिन इन टीकों का हरज़ाना उन्हें 100 प्रतिशत भुगतना पड़ता है। यहां तक कि टीकों के आविष्कारकों ने भी टीकाकरण से पहले कर्इ सावधानियां बरतने की पेशकश की है तथा वे खुद भी विशाल स्तर पर टीकाकरण के पक्ष में कभी नहीं थे।

6. बच्चों का टीकाकरण इसलिए आसान होता है, क्योंकि उनके अभिभावकों में बीमारियों का डर पैदा करके उन्हें जबरदस्ती टीके लगाने के लिए तैयार किया जा सकता है। नवजात शिशुओं का टीकाकरण टीका-निर्माता कम्पनियों और डाक्टरों के लिए सबसे फायदेमन्द धन्धा है।

7. भारत सरकार ने ”द हिन्दू अखबार में प्रकाशित एक विज्ञापन के जरिये अभिभावकों को यह हिदायत देना शुरू किया है कि वे सिर्फ सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त टीके ही लगवाएं तथा प्राइवेट अस्पतालों में टीके नहीं लगवाएं।

8. ”भारतीय शिशु रोग विशेषज्ञ संघ के उड़ीसा चेप्टर में उड़ीसा के मुख्यमन्त्री को लिखे गए एक पत्र में यह उल्लेख किया गया है कि प्राइवेट क्लीनिकअस्पताल टीकों के सुरक्षित संग्रहण के लायक नहीं है तथा माता-पिताओं को यह चेतावनी दी है कि वे प्राइवेट अस्पतालों में टीके नहीं लगवाएं।

9. टीकों में इस्तेमाल होने वाली सभी चीजें अत्यन्त विषैली और खतरनाक है।

10. प्राय: सभी टीकों में – धातुएं, कैंसर पैदा करने वाले तत्व, खतरनाक रसायन, जीवित और जीन-परिवर्तित वायरस, जन्तुओं के वायरसों से युक्त सड़ा हुआ सीरम, बिना टेस्ट किए गए एंटीबायोटिक्स आदि होते हैं, जिनके दुष्प्रभाव होते ही हैं।

11. टीकों में इस्तेमाल होने वाला पारा (मरक्यूरी), एल्यूमिनियम और जीवित वायरस आटिज्म नामक महामारी (अमेरिकी डाक्टरों के अनुसार हर 50 में से 1 व्यकित आटिज्म से ग्रसित है) के मुख्य कारण है। यह एक ऐसा तथ्य है, जो अमेरिकी वैक्सीन कोर्ट ने भी स्वीकार किया है।

12. अमेरिकी संस्था ”सी.डी.सी. (सेंटर फार डिजीज़ कंट्रोल) ने यह खुले तौर पर स्वीकार किया है कि टीकाकरण और आटिज्म के बीच सम्बन्ध को नकारने वाली सन 2003 की प्रख्यात स्टडी गलत है। सी.डी.सी. प्रमुख डा. गेरबर्डिंग ने मीडिया (सी.एन.एन.) के समक्ष यह स्वीकार किया कि टीकों की वज़ह से आटिज्म के लक्षण पैदा हो सकते हैं। आटिज्म महामारी सिर्फ उन्हीं देशों में हुर्इ हैं, जहां विशाल स्तर पर टीकाकरण को स्वीकृति दे दी गर्इ है।

13. सन 1999 में अमेरिकी सरकार ने टीका-निर्माता कम्पनियों को ”तुरन्त प्रभाव के साथ टीकों में से  (पारा) हटाने के निर्देश दिए थे। लेकिन आज भी कई टीकों में पारे का इस्तेमाल ज्यों का त्यों हो रहा है। पारे युक्त टीकों पर कोर्इ कदम नहीं उठाया गया और ये टीके सन 2006 तक बच्चों को दिए जाते रहे। यहां तक कि तथाकथित ”पारे रहित टीकों में भी 0.05 माइक्रोग्राम पारा होता है, जो कि एक नन्हें शिशु को आजीवन विकलांग बनाने के लिए काफी होता है।

14. भारत में टीकों से पारा और अन्य धातुओं को हटाने के लिए कोई कदम नहीं उठाये गये, सिर्फ इसलिए कि ऐसा करने से टीकों की कीमत बढ़ जाएगी।

15. भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति श्री अब्दुल कलाम के पूछने पर स्वास्थ्य मंत्रालय का कहना था, ”टीकों को सुरक्षित बनाने के लिए पारे की जरूरत होती है। लेखकों के इस प्रश्न ”ये कैसे टीके हैं, जिन्हें सुरक्षित बनाए रखने के लिए दुनिया के दूसरे बड़े खतरनाक न्यूरोटाकिसन पारे की जरूरत होती है!? का कोर्इ जवाब नहीं था।

16. टीकों में इस्तेमाल किए जाने वाला पारा , यूरेनियम के बाद दूसरे नम्बर का घातक ज़हर है। यूरेनियम एक घातक रेडियोएकिटव पदार्थ है, जो कि बच्चे के सम्पूर्ण नाड़ी-तन्त्र को पल भर में नष्ट कर सकता है।

17. पारा चर्बी में एकत्रित होता है। और हमारा पूरा दिमाग ही चर्बी की कोशिकाओं से बना होता है। अधिकांश पारा वहीं जमा होता है और बच्चों में आटिज्म के लक्षणों को बढ़ाता है।
18. टीकों में इस्तेमाल होने वाला पारा, इथाइल पारा होता है, जो कि भारतीय डाक्टरों के अनुसार आमतौर पर प्रयुक्त मिथाइल पारे से 1000 गुना ज्यादा विषैली होती है।

19. टीकों में प्रयुक्त होने वाला एल्यूमिनियम, पारे को 100 गुना और अधिक विषैला बना देता है।

20. एक स्वतन्त्र अध्ययन के अनुसार टीकों में एल्यूमिनियम और फार्मलडिहाइड की मौजूदगी से मक्यर्ूरी 1000 गुना अधिक विषैला हो जाता है।

21. ‘तहलका में आटिज्म के बारे में प्रकाशित एक लेख के अनुसार बच्चों को उनके बर्दाश्त करने की क्षमता से 250 गुना अधिक पारा टीकों के जरिए मिल रहा है। इसी लेख में यह भी कहा गया है कि अगर कोई डब्ल्यू.एच.ओ. द्वारा तय की गई पानी में मक्यकरि की सीमा को आधार मानें, तो वे उस सीमा से 50000 गुना अधिक पारा टीकों के जरिए ग्रहण कर रहे हैं। जबकि यह सीमा भी वयस्कों के लिए निर्धारित की गई है, शिशुओं के लिए नहीं।

22. आटिज्म भारत में बच्चों में बहुत तेजी से फैलने वाली एक महामारी के रूप में उभर रहा है, जो प्रति 500 में से 1 बच्चे से बढ़कर आज यह प्रति 300 में से 1 बच्चे को है।

23. आटिज्म एक स्थायी विकलांगता है, जो बच्चे को शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रूप से प्रभावित करती है। इससे बच्चे का समाज

से सम्बन्ध टूट जाता है। यह बच्चे के शारीरिक और मानसिक विकास में रुकावट डालता है। यह बच्चे के दिमाग को क्षति पहुंचाता है, जिससे उसकी याददाश्त और ध्यान देने की क्षमता बहुत प्रभावित होती है। टीकों पर शोध करने वाले डाक्टर हेरिस काल्टर के अनुसार टीकाकरण से बच्चे विकृत और आपराधिक प्रवृतित के हो जाते हैं। अमेरिका में स्कूली बच्चों द्वारा हुई हत्या की घटनाएं आटिज्म से ग्रसित बच्चों द्वारा ही हुई है। टीके इतने घातक हो सकते हैं कि चिकित्सक समुदाय भी इसे अप्रत्यक्ष रूप से स्वीकार करने लगा है।

24. आटिज्म से ग्रस्त बच्चों को आंतों के बीमारियां भी झेलनी पड़ती है। डाक्टर एण्ड्रîू वेकफील्ड के अनुसार यह एम.एम.आर. टीके में मौजूद मीजल्स के जि़न्दा वायरस के कारण होता है। और इस टीके के बाद लगभग सभी बच्चे आटिज्म से ग्रस्त हो जाते हैं।

25. डी.पी.टी. का टीका भी बच्चों के विकास को रोकता है और यह भय पैदा करता है कि वे जीवित वायरस से युक्त टीके आटिज्म का प्रमुख कारण है। अगर तीन जि़न्दा वायरस वाले टीके से इतनी हानि हो सकती है, तो हम कल्पना कर सकते हैं कि आज पांच और सात वायरसों से युक्त टीकों से बच्चों पर क्या असर होता होगा।

26. आटिज्म से भी पहले, यह मालूम हो चुका है कि वर्तमान समाज में कैंसर नामक महामारी टीकाकरण की वजह से फैल रही है। चेचक और पोलियो दोनों के टीके बन्दर के सीरम से बनाए जाते हैं। इस सीरम में बन्दरों में कैंसर पैदा करने वाले कई वायरस होते हैं, 60 ऐसे वायरस पाये जा चुके हैं, जो इंसानों की रक्त-शिराओं में डाले जाते हैं।

27. यह भी विदित है कि टीकों में बन्दरों के सीरम के इस्तेमाल की वज़ह से ैप्ट (सिवियन इम्यून डेफिसिएंसी वायरस) का स्थानान्तरण बन्दरों से इंसानों में हुआ है। ैप्ट और भ्प्ट (जो कि एडस का कारण) दोनों बहुत समान हैं।

28. केवल एडस ही नहीं, बलिक बच्चों में रक्त-कैंसर (एक्यूट लिम्फोब्लासिटक ल्यूकेमिया), जो कि हजारों की तादाद में बच्चों को प्रभावित कर रहा है, उसका कारण भी टीकों में मौजूद अत्यन्त विषैले पदार्थ हैं।

29. शिशु अवस्था में होने वाले पीलिया और मधुमेह का भी इन विषैले टीकों के साथ गहरा सम्बन्ध है।

30. भारतीय चिकित्सा संघ के डाक्टरों के मतानुसार बच्चों को पिलार्इ जाने वाली पोलियो की दवा से 65000 से भी अधिक बच्चे ट।च्च् (वैक्सीन की वजह से होने वाला पैरेलाइटिक पोलियो) से ग्रसित हो चुके हैं। अमेरिका में पोलियो का टीका लगाने के 16 साल बाद भी पोलियो का केस सामने आया है।

31. टीकों में न केवल चिम्पैंजी और बन्दरों के सीरम, बलिक गाय, सूअर, मुर्गी, अण्डे, घोड़े और यहां तक कि इंसान के सीरम और भू्रण से निकाले ऊतकों (टिश्यू) का इस्तेमाल किया जाता है।

32. टीकाकरण से मृत्यु और स्थायी विकलांगता बहुत सामान्य बात है और स्वयं डाक्टर इस बात को जानते हैं। लेकिन वे सरकारी निर्देशों के अनुसार चुप रहने और इन केसों का सम्बन्ध टीकाकरण से नहीं जोड़ने के लिए बाध्य हैं।

33. कर्इ डाक्टर यह मानते हैं कि बचपन में होने वाली बीमारियां शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए होती हैं। इन बीमारियों को दबा देने से बच्चे का इम्यून सिस्टम अविकसित रह जाता है, जिससे मधुमेह और आर्थराइटिस जैसी आटो इम्यून रोग पैदा होते हैं, जो कि आज महामारी का रूप ले रहे हैं।

34. टीकाकरण से बच्चे की प्राकृतिक रोग-प्रतिरोधक क्षमता दब जाती है, जिससे शरीर में प्राकृतिक एंटीबाडीज नहीं बन पाती। इसी कारण मां के दूध में भी प्राकृतिक एंटीबाडीज नहीं होती और वो बच्चे में बीमारियों से लड़ने की क्षमता विकसित नहीं कर पाता।

35. अमेरिका में तो टीकों के विपरीत प्रभाव का रिकार्ड रखा जाता है और सरकार द्वारा पीडि़ताें को करोड़ों डालर का हर्जाना दिया जाता है (हाल ही के एक केस में वैक्सीन कोर्ट द्वारा तकरीबन 20 करोड़ डालर का हर्जाना दिया गया)। जबकि भारत सरकार इस बात को स्वीकार भी नहीं करती कि टीकों से कोर्इ मृत्यु या स्थायी विकलांगता हो सकती है।

36. यह बात वैज्ञानिक तौर पर प्रमाणित हो चुकी है कि टीके बीमारियों को रोकने में नाकामयाब रहे हैं। टीके तो केवल ”हयूमरल यानी रक्त सम्बन्धी प्रतिरक्षा पैदा करने की कोशिश भर करते हैं, जबकि प्रतिरोधक क्षमता का विकास हयूमरल और कोशिकीय सहित कर्इ स्तरों पर होता है। इंसानी इम्यून सिस्टम के बारे में हम आज भी बहुत सीमित ज्ञान रखते हैं, अत: हमें इसमें दखल नहीं देना चाहिए।

37. अमेरिका में बच्चों के अभिभावकों को टीकों के दुष्प्रभावों के बारे में सूचित किया जाता है और टीकाकरण से पहले उनकी सहमति ली जाती है। लेकिन भारत में विशाल स्तर पर विज्ञापनों और अभियानों के जरिये प्रचार किया जाता है कि टीकाकरण पूरी तरह से सुरक्षित है। जो अभिभावक इसका बहिष्कार करते हैं, उन्हें प्रशासनिक धमकियों का सामना करना पड़ता है।

38. टीकाकरण से क्षतिग्रस्त बच्चों के इलाज के लिए कोर्इ व्यवस्था नहीं है। अभिभावकों को एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल में चक्कर लगाने पड़ते हैं। सरकार भी ऐसे केस से आंखें फेर लेती है तथा टीकाकरण से इन केसों के सम्बन्ध को पूरी तरह नकार देती है।

39. कर्इ मेडिकल डाक्टर तो भारत सरकार द्वारा प्रमाणित टीकों को भी चुनौती दे रहे हैं। टी.बी. की रोकथाम के लिए लगाए जाने वाले बी.सी.जी. के टीके की जांच तो बहुत पहले सन 1961 में ही की जा चुकी थी और इसे पूरी तरह बेअसर पाया गया। पोलियो की दवा से पोलियो सहित कर्इ न्यूरोलोजिकल और आंतों से सम्बनिधत रोगों से ग्रसित 10 हजार से भी अधिक बच्चे पाए गए हैं। हाल ही में शुरू किया गया हैपेटाइटिस-बी का टीका बच्चों के लिए कतई नहीं है। यह टीका एक यौन सवंमित रोग के लिए है, जो सिर्फ वयस्कों के लिए है। टेटनस के टीके में टेटनस टाक्सायड के अलावा मक्यर्ूरी और एल्यूमिनियम दोनों होते हैं। डी.पी.टी. के टीके को खुद डाक्टर भी लगाना पसन्द नहीं करते हैं, क्योंकि यह सबसे अधिक घातक टीकों में से एक है। मीज़ल्स का टीका अकसर बहुत गम्भीर दुष्प्रभाव डालता है कि कर्ई स्वास्थ्यकर्मी भी इसे बन्द करने के पक्षधर हैं।

40. शिशु रोग चिकित्सक भारत में ऐसे सनिदग्ध टीके ला रहे हैं, जिनका अमेरिका और यूरोप में डाक्टरों, राजनेताओं और जनता द्वारा विरोध किया जा चुका है। रोटावायरस, हिब, एच.पी.वी. और कई अन्य मल्टीवायरस के टीकों को भारत में बिना परीक्षण के सिर्फ इसलिए लाया जा रहा है कि टीके बनाने वाली कम्पनियां और उनसे जुड़े डाक्टर इनसे बहुत पैसा कमा रहे हैं। विश्वभर में कई ईमानदार डाक्टर इन टीकों का विरोध कर रहे हैं।

उपर्युक्त सभी तथ्य संपूर्ण नहीं कहे जा सकते, फिर भी इन्हें पढ़ने के बाद भी, अगर आप को लगता है कि आपके बच्चों को टीके लगने चाहिये, तो आपकी मर्जी। आप निस्संदेह एक टीका त्रस्त शिशु के माता पिता कहलाने के हकदार हैं।

एकलव्य के कटे अँगूठे का भ्रांति निवारण।

मघा पाक्षिक में रामायण पर लिख रहे मित्र गिरिजेश राव ने वाल्मीकि रामायण की चर्चा के दौरान उल्लेख किया कि, "युद्ध में हर बार राम लक्ष्मण द्वारा गोह के चर्म से बने हस्त-त्राण पहनकर धनुष बाण चलाने का उल्लेख है। 
त्वरित गति से कम समय में ही अधिक बाण चला लेने की दक्षता और बाण चढ़ाने में अँगूठे के प्रयोग में सामंजस्य नहीं बैठता। कोई और तकनीक अवश्य रही होगी जो बारम्बारता के कारण अँगूठे को घायल होने से बचाती होगी। 
सम्भवत: आज की तरह ही अँगूठे का प्रयोग न होता रहा हो।"

पहला चित्र-

काँची के कैलाशनाथ मंदिर में अँगूठा बचाते धनुर्धर अर्जुन 

कितने ही लोगों ने रामायण पढ़ी है, कितने तो उसके विद्वान भी हैं। 
लेकिन सबकी दृष्टि अलग होती है और उनके अवलोकन भी। 
हम तमसो मा ज्योतिर्गमय की संस्कृति के वाहक हैं। 
हमारे अंक, अहिंसा, योग, शर्करा, हीरे, धातुकर्म, संगीत, शिल्प, शाकाहार, विश्व-बंधुत्व, शवदाह, और मानवमात्र से आगे बढ़कर, प्राणिमात्र के जीवन और अस्मिता के सम्मान जैसे कितने ही तत्व भारत के बाहर कभी आश्चर्य से देखे गए और कभी निरुत्साहित भी किये गए। लेकिन ज्यों-ज्यों अन्य क्षेत्र संस्कृति के प्रकाश से आलोकित हुए, भारतीय परम्पराओं की स्वीकृति और सम्मान दोनों ही बढ़ते चले गये।

गिरिजेश के रामायण अवलोकन से भारतीय शास्त्रों से संबन्धित एक कुटिल ग्रंथि निर्कूट होती है। यह ग्रंथि है महाभारत में एकलव्य और द्रोणाचार्य के संबंध का भ्रम। 
सामान्य समझ यह है कि द्रोणाचार्य ने अर्जुन को सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर बनाने के लिए उससे श्रेष्ठ धनुर्धर एकलव्य का अँगूठा ले लिया।

क्या संसार के सर्वश्रेष्ठ गुरु परशुराम के शिष्य और अपने समय के अजेय योद्धाओं के आचार्य द्रोण को छल से ऐसे किशोर का अँगूठा काटने की कोई ज़रूरत थी, जो उनके इशारे पर अपना सर काटकर रख देता? 
क्षणिक संवाद में एक अनजान शिष्य को एक दूर्लभ सूत्र दे देने की बात समझ आती है। 
माँगने का अर्थ सदा काटना भर नहीं होता। 
एक आचार्य को जानता हूँ जो गुरुदक्षिणा में अपने सिगरेटखोर शिष्यों की धूम्रपान की लत माँग लेते थे।

अथ गुणमुष्टयः
पताका वज्रमुष्टिश्च सिंहकणीं तथैव च। 
मत्सरी काकतुण्डी च योजनीया यथाक्रमम् ॥83॥
दीर्घा तु तर्जनी यत्र आश्रिताङ्गुष्ठमूलकम्। 
पताका  सा च विज्ञेया नलिका दूरमोक्षणे ॥84॥
तर्जनी मध्यमामध्यमङ्गुष्ठो विशते यदि। 
वज्रमुष्टिस्तु सा ज्ञेया स्थूले नाराचमोक्षणे ॥85॥
अङ्गुष्ठनखमूले तु तर्जन्यग्रं सुसंस्थितम्। 
मत्सरी सा च विज्ञेया चित्रलक्ष्यस्य वेधने ॥86॥
अङ्गुष्ठाग्रे तु तर्जन्या मुखं यत्र निवेशितम्। 
काकतुण्डी च विज्ञेया सूक्ष्मलक्ष्येषु योजिता ॥87॥ (धनुर्वेदः)

दूसरा चित्र-

आधुनिक धनुर्धरी शैलियाँ
आधुनिक धनुर्धरी में अंगूठा छूए बिना तर्जनी और मध्यमा अंगुली का प्रयोग कर तीर चलाने की विधि को मेडिटरेनियन बो ड्रा कहा जाता है। 
धनुर्वेद में स्पष्ट रूप से इंगित इस विधि के खोजकर्ता सम्भवतः आचार्य द्रोण ही हैं और एकलव्य का अँगूठा माँगने का प्रतीकात्मक अर्थ इतना ही है कि उसे अँगूठे के प्रयोग के कारण आने वाली बाधा से बचने का यह गुरुमंत्र दिया जाये। 
जब द्रोण ने एकलव्य का शिष्यत्व स्वीकार किया तो उसे यह विधि बताकर ऐसा सूत्र दिया, जो तब गुप्त और दुर्लभ था। 
वरना अँगूठा क्या, एकलव्य तो द्रोणाचार्य के संकेत मात्र से अपना शीश दे देता। 
अँगूठा लेने का सांकेतिक अर्थ यही है कि एकलव्य को अतिमेधावी जानकर द्रोणाचार्य ने उसे शिष्य स्वीकारते हुए अँगूठे के बिना धनुष चलाने की विशेष विद्या का दान दिया और गुरुदक्षिणा में अँगूठा देने के बाद एकलव्य तर्जनी और मध्यमा अंगुली का प्रयोग कर तीरंदाजी करने की आधुनिक भूमध्य शैली (Mediterranean bow draw) से तीर चलाने लगा। निःसन्देह यह बेहतर तरीका है। द्रोण के सभी धनुर्धारी शिष्य इस सूत्र से परिचित थे और आजकल तीरंदाजी इसी तरह से होती है।
तीसरा चित्र-

असीरिया शासक ऐतिहासिक धनुर्धर असुर बनिपाल (668 – 627 ई.पू.)

त्वरित धनुर्धरी के जिस रहस्य को एकलव्य अपनी लम्बी तपस्या में न जान सका था उसे गुरु द्रोण के स्पर्श ने, शिष्य के रूप में उनकी स्वीकृति ने, क्षणमात्र में उजागर कर दिया था।

अंगूठे के बिना धनुर्धरी करने वाला 'मेडिटरेनीयन बो ड्रा' आज सर्वमान्य है। 
काँची के कैलाशनाथ मंदिर में अँगूठा बचाते धनुर्धर अर्जुन दृष्टव्य हैं। 
वर्तमान ईराक के क्षेत्र के प्रसिद्ध ऐतिहासिक शासक असुर बनिपाल के पाषाण चित्रण में भी मेडिटरेनीयन बो ड्रा स्पष्ट दिखाई देता है।

भूमध्य क्षेत्र का भारत से क्या सम्बंध है? 
असुर वर्तमान असीरिया के वासी थे। 
असुरों के गुरु भृगुवंशी शुक्राचार्य थे। 
जामदग्नेय परशुराम शुक्राचार्य के वंश में जन्मे थे। 
द्रोणाचार्य ने धनुर्विद्या परशुराम से सीखी और एकलव्य के शिष्यत्व को मान्यता देने के लिये उसकी धनुर्विद्या से अँगूठे की भूमिका हटवा दी। 
पलभर के सम्पर्क में अपने शिष्य की दक्षता में ऐसा जादुई परिवर्तन करना आचार्यत्व की पराकाष्ठा है। 
भारतीय संस्कृति और संस्कृत भाषा से हम इतना कट गये हैं कि अपने अतीत की सरल सी घटना में भी अनिष्ट की आशंका, और गुरुत्व में छल ढूँढ़ते हैं। 
हमें यह भी ध्यान देना होगा कि भारतीय संस्कृति के प्राचीन भौगोलिक विस्तार को भारत के वर्तमान राजनैतिक-भौगोलिक क्षेत्र तक सीमित समझना भी हमारी दृष्टि को सीमित ही करेगा।

Thursday, July 16, 2020

भारत में न्यू वर्ल्ड आर्डर की शुरुआत।

भारत में न्यू वर्ल्ड आर्डर की शुरुआत 2014 में ही हो गयी थी : Yogesh Mishra

मई 26, 2014 को डॉ. मनमोहन सिंह के नेतृत्व की सरकार के पतन के साथ ही भारत में “न्यू वर्ल्ड आर्डर” की शुरुआत नवम्बर 2014 में ही हो गयी थी ! इसके लिये कोई भी व्यक्ति दोषी नहीं है ! इस काल में कोई भी व्यक्ति प्रधानमंत्री होता तो उसे इस व्यवस्था को लागू करना ही पड़ता !

इस न्यू वर्ल्ड आर्डर के कुछ चरण पूर्व निर्धारित हैं और यह सब एक साथ पूरी दुनियां में हो रहा है ! कुछ देश पहले चरण में हैं ! तो कुछ देश अंतिम चरण में ! लेकिन इस न्यू वर्ल्ड आर्डर के निर्देशों का पालन हर देश को करना ही पड़ेगा ! किन्तु अभी भी विश्व के मात्र 4 देश हैं ! जो न्यू वर्ल्ड आर्डर को नहीं मान रहे हैं ! वह जल्द ही विश्व के नक़्शे से मिट जायेंगे ! जिसमें से एक देश चीन भी है !

न्यू वर्ल्ड आर्डर के तहत चरण बध्य योजना :-

प्रथम चरण 
जनधन योजना के तहत हर व्यक्ति का एक बैंक खाता होना अनिवार्य है !
नोट बन्दी द्वारा घर में पड़े नोट को बैंक में जमा करवाना !
प्रत्येक नागरिक का एक अंतर्राष्ट्रीय विशेष पहचान पत्र आधार कार्ड जारी करना या उसका निर्माण करवाना !
आधार कार्ड को बैंक खातों से जोड़ना !

दूसरा चरण 
फिर कैश लैस सोसायटी निर्माण की प्रक्रिया का आरम्भ ! जिसमें डेबिट कार्ड, क्रेडिट कार्ड, पेटीएम, गूगल पे आदि पध्यति अपनायी जायेगी !
फिर सभी भुगतान R.F.I.D. चिप द्वारा किया जायेगा !
फिर विश्व की एक मुद्रा की स्थापना होगी !

तीसरा चरण 
फिर आबादी घटाने के लिये नये-नये विषाणु छोड़े जायेंगे !
विश्व की कुल अवादी मात्र 50 करोड़ होगी !
नयी आबादी विकसित न हो इसलिये वैक्सीनेशन द्वारा अगली पीढ़ी रोक दी जायेगी !

चौथा चरण 
फिर बचे हुये लोगों के मस्तिष्क में एक चिप इंप्लांट किया जायेगा !
जिसके द्वारा आपको निर्देश दिये जायेंगे !
निर्देश न मानने पर रेडियेशन द्वारा आपका मस्तिष्क हेंग आउट कर दिया जायेगा या उसी चिप में छुपे जहर द्वारा आपको मार दिया जायेगा !

इस तरह न्यू वर्ल्ड ऑर्डर के साथ आपकी हर गतिविधि नैनो चिप के द्वारा विश्व सत्ता द्वारा नियंत्रित होगी ! आपका आहार-विहार-विचार सब कुछ उनके नियंत्रण में होगा ! आपका धन, आपकी संपत्ति, आपका ज्ञान, आपकी संतान सब कुछ विश्व सत्ता के नियंत्रण में होगा ! 

समाज में कृतिम भुखमरी, कृतिम अज्ञानता, कृतिम आभाव, कृतिम निर्धनता, कृतिम मुद्रा और सम्पत्ति का अवमूलन, निष्क्रिय न्याय व्यवस्था, कृतिम प्रशासनिक निष्क्रियता, जगह-जगह धर्म-जाति-क्षेत्र-भाषा के आधार पर कृतिम गृह युद्ध, कृतिम अंतर्राष्ट्रीय षडयंत्र, खाद्यानों पर टैक्स  आदि आदि !

विश्व सत्ता की इच्छा के बिना आप किसी भी तरह का कोई भी निर्णय नहीं ले सकेंगे ! यहां तक कि आप क्या खायेंगे, किस रंग का कपड़ा पहनेंगे, किससे मिलेंगे, किससे नहीं मिलेंगे, किस से क्या बात करेंगे, यह सारी बातें उस विश्व सत्ता के नियंत्रण में होंगी ! जो व्यक्ति इसका विरोध करेगा ! पहले तो उसके मस्तिष्क को हैंग आउट कर दिया जायेगा फिर दुबारा गलती करने पर उसकी हत्या कर दी जायेगा !

क्योंकि विश्व सत्ता को पूरी दुनिया चलाने के लिये मात्र 50 करोड़ लोगों की आवश्यकता है जबकि आज विश्व की आबादी 700 करोड़ से अधिक है ! ऐसी स्थिति में 650 करोड़ लोगों को इस धरती से विदा लेना होगा ! विश्व सत्ता को मात्र वही विश्वसनीय आज्ञाकारी लोगों की आवश्यकता है जो उनके उद्देश्यों की पूर्ति के लिये कार्य करें ! शेष सभी लोगों को यह धरती छोड़ कर जाना होगा !

 इसके लिये समय-समय पर पूरी दुनिया में घातक विषाणु छोड़े जायेंगे ! जिन से बचने की दवा विश्व सत्ता के नियंत्रण में होगी ! जो व्यक्ति विश्व सत्ता के अनुरूप नहीं होगा ! उसे वह दवा उपलब्ध नहीं करवाई जायेगी !

 आज विश्व के कई देशों में विश्व सत्ता की योजना अपने तीसरे चरण से गुजर रही है ! वर्ष 2050 तक विश्व सत्ता अपना तीसरा चरण पूरा करने के उपरांत चौथे चरण में प्रवेश करेगी ! फिर इसके बाद पूरी दुनिया बदल जायेगी ! न तो कोई देश होगा, न ही कोई संविधान होगा और न ही किसी देश की कोई सत्ता होगी !

पूरी दुनिया में एक ही धर्म होगा, एक ही कानून होगा, एक ही मुद्रा होगी और एक ही सत्ता होगी ! जिस को नियंत्रित करने के लिये पूरे विश्व की एक ही सरकार होगी ! जो आधुनिक तकनीक के माध्यम से विश्व के हर कोने में अपने हर नागरिक को नियंत्रित करेगी ! जो नियंत्रण में नहीं आयेगा उसे ख़त्म कर दिया जायेगा ! यही है इस पृथ्वी पर मनुष्य का भविष्य !!

योगेश कुमार मिश्र 
संस्थापक 
सनातन ज्ञान पीठ 
ज्योतिष एवं आध्यात्मिक शोध संस्थान 
कुण्डली परामर्श हेतु सम्पर्क कीजिये 
मोबाईल : 9453092553

और अधिक जानकारी के लिये पढ़िये 
www.sanatangyanpeeth.in

Wednesday, July 15, 2020

सिख पंथ में अलगाववाद कैसे फैलाया गया?

सिख , हिन्दू नहीं होते है , इस फर्ज़ीवाड़े को सबसे पहले गढ़ने वाला मैक्स आर्थर मेकलीफ़ ( Max Arthur Macauliffe) था। यह गुरुमुखी का विद्वान भी था जिसने Guru Granth Sahib का English translation भी किया था ।
Max Arthur Macauliffe जिसे सिख पंथ को एक धार्मिक संस्था का रूप दिया था का हिंदूइस्म के विषय में क्या विचार थे जरा ध्यान दे-

It (Hinduism) is like the boa constrictor of the Indian forests. When a petty enemy appears to worry it, it winds round its opponent, crushes it in its folds, and finally causes it to disappear in its capacious interior....Hinduism has embraced Sikhism in its folds; the still comparatively young religion is making a vigorous struggle for life, but its ultimate destruction is, it is apprehended, inevitable without State support.

【 हिंदी अनुवाद - यह (हिंदू धर्म) भारतीय जंगलों का Boa Constrictor (उष्णकटिबंधीय अमेरिका का एक बड़ा और शक्तिशाली सर्प, कभी-कभी बीस या तीस फुट लंबा ) की तरह है। जब एक छोटा विरोधी इसकी चिंता करता प्रतीत होता है, तो यह अपने प्रतिद्वंद्वी के चारों ओर घूमता है, इसे अपने लपेटे में ले लेता है, और आखिरकार इसे अपने विशालता में गायब कर देता है .... हिंदू धर्म ने सिख धर्म को अपने लपेटे में लिया है; अभी भी तुलनात्मक रूप से यह युवा धर्म जीवन के लिए एक सशक्त संघर्ष कर रहा है, लेकिन इसका अंतिम विनाश यह है कि इसे राज्य समर्थन के बिना अपरिहार्य माना जाता है। 】

Max Arthur Macauliffe 1864 मे इंडियन सिविल सर्विसेज से पंजाब में आया था। 1882 में ये पंजाब का डिप्टी कमीशनर बना।
मेकलीफ़ वो पहला इंसान था जिसने सिख हिन्दू नहीं है कि परिकल्पना की थी। उसने देखा कि सिख एक मार्शल कौम है। इसलिए सिख आर्मी के लिए उपयुक्त है। इसलिए इन्होंने पंजाब मे आर्मी की नौकरी में सिखों के लिए आरक्षण लागु कर दिया। जिसके परिणाम स्वरूप कोई राम कुमार सरकारी नौकरी नही पा सकता था पर वही राम कुमार दाड़ी मूछ और पगडी रखकर राम सिंह बनकर नौकरी पा सकता था। उस समय तक इसे धर्म परिवर्तन नहीं माना जाता था।

इसका नतीजा ये हुआ कि पंजाब मे सिख population 1881 से 1891 के बीच 8.5% बढी।

1891 से 1901 के बीच 14% बढी।
1901 से 1911 के बीच 37% बढी।
1911 से 1921 के बीच 8% बढी।

इनके पंजाबी के ट्यूटर थे Kahn Singh Nabha जिन्होने 1889 मे "हम हिन्दू नहीं" नामक पुस्तक लिखी । जिसको Macauliffe जी ने फंड किया ।
1909 मे खुद Macauliffe साहब ने भी Sikh religion: Its Gurus, Sacred writings, and authors नामक पुस्तक लिखी । जिसकी भूमिका में इन्होंने ये भी बताया है कि किस तरह इन्होंने खालसा पूजा पद्यति आरम्भ की और सिखो के लिए आर्मी में अलग शपथ परम्परा की शुरुआत की ।

इस समय तक गुरूद्वारो ( दरबार) महंतो और साधुओं की देखरेख मे होते थे। गुरूद्वारो के लिए महंतो और हिन्दु पुरोहित की जगह खालसा सिखो की प्रबंधक कमेटी का विचार भी इन्हीं का था। इन गुरूद्वारो से जुड़ी हुई जमीन और सम्पत्ति भी थी।
1920 के शुरूआत से महंतो से गुरूद्वारो को छीनने का अकाली दल का सिलसिला चालू हुआ। इसके लिए महंतो पर तरह तरह के आरोप लगाकर( महिलाओ से दुष्कर्म, गलत कर्मकांड आदि) उन्हे बदनाम किया गया, जनता मे उनके खिलाफ छवि बनाई गयी।
सबसे पहले बाबे दी बेर गुरूद्वारा, सियालकोट जो एक महंत की विधवा की देखरेख मे था, बलपूर्वक कब्जाया गया।
फिर हरमंदिर साहिब ( स्वर्ण मंदिर) छीना गया। फिर गुरूद्वारा पंजा साहिब कब्जाया गया। इसका कब्जे के विरोध 5-6 हजार लोगो ने गुरूद्वारा घेर लिया जिन्हे पुलिस ने बलपूर्वक हटाया।

फिर गुरूद्वारा सच्चा सौदा, गुरूद्वारा तरन तारन साहिब आदि महंतो पर आरोप लगा पुलिस के सहयोग से कब्जाये गये।
इन कब्जो के लिए महंतो को पीटा गया उनकी हत्यारे की गई। जिसके लिए बाकायदा बब्बर अकाली नामक दल का गठनकर मूवमेंट चलाया गया।
ननकाना साहिब गुरूद्वारे पर कब्जा सबसे अधिक बडा खूनी इतिहास है। जिसमे दोनो के कई सैकडो लोग तक मारे गये।
फिर गुरूद्वारा गंजसर नाभा और कई अन्य हिसंक तरीके एवं पुलिस के सहयोग से महंतो से छीने गये।
1925 मे सिख गुरूद्वारा बिल पारित हुआ और कानून बना कर गुरूद्वारो के कब्जे खालसा सिखो को दिये गये। SGPC का गठन हुआ।
फिर एक रेहता मर्यादा बनाई गई जो तय करती है कि कौन सिख है और कौन नही। जिसका पूर्णरूपेण उद्देश्य सिख से हिन्दू विघटन निकाला है।
SGPC के तत्वावधान मे सिख इतिहास को नये सिरे से लिखा गया। हिन्दू परछाई को को सिख मे से जितना हो सके अलग किया गया। नये नये हिन्दू ( खासकर ब्राह्मण) विलेन कैरेक्टर सिख इतिहास में घड़े गए।
पंजाबी मे पारसी भाषा के शब्दो का अधिकधिक प्रयोग किया गया। गंगू बामन और स्वर्ण मंदिर की नीव मुसलमान के हाथो रखवाना, जिसका इससे पहले कोई प्रमाण और इतिहास नही है, घडे गये और इनका प्रचार किया गया ।

गुरू गोविंद सिंह जी की वाणी दशम ग्रंथ मे चंडी दी वार और विचित्र नाटक को इसमे ब्राह्मणी मिलावट घोषित किया गया।

हकीकत राय, सति दास, मति दास, भाई दयाल आदि के बलिदानों को सिखों के बलिदान बताकर प्रचारित किया गया। जबकि इनके वंशज तो आज की तारीख मे भी हिन्दू है।

बंदा बहादुर जिसका की उस समय तत खालसा बनाकर विरोध किया गया और मुग़लों से मिलकर मिलकर उसे पकड़वाया गया था। SGPC आज उसे सिख हीरो के रूप में बताती है। निर्मली अखाडा जोकि गुरू गोविंद सिंह जी का ही डाला हुआ है और संस्कृत एवं वेदांत के प्रचार प्रसार को समर्पित है हिन्दू विरोध की खातिर इस तक को SGPC ने सिख इतिहास से नकार दिया।
गुरू नानक के पुत्र थे श्रीचंद जोकि अपने समय कै महानतम और प्रसिद्ध योगी थे ने उदासीन पंथ की स्थापना की थी।
गुरू राम राय जोकि गुरू हर राय के बडे पुत्र थे ने देहरादून मे अपनी गद्दी स्थापित की। इनकी जगह इनके छोटे भाई कृष्ण राय ने पिता की गद्दी सम्भाली और अगले सिख गुरू कहलाये।
ये सभी अखाडे आज भी महंतो द्वारा संचालित है। समाज सेवा मे है।
आनंद मैरिज एक्ट पास कर सिखों के लिए अलग से विवाह पद्यति आरम्भ की गई। अन्यथा 1920 से पहले तक तो हिन्दू पुरोहित ही सिख घरों में विवाह आदि वैदिक संस्कार करवाने जाते थे।

पर Max Arthur Macauliffe की नीति जिससे एक अलग खालसा सिख पंथ की नीव पड़ी की परिणति खालिस्तान आन्दोलन के रूप में सामने आई। बब्बर खालसा उग्रवादियों ने करीब 50000 हजार निरपराध हिन्दुओं की हत्या कर दी। अवसरवादी राजनीती के चलते इन हत्याओ को इस देश ने भुला दिया।
सिखों का धार्मिक ग्रन्थ है "गुरु ग्रन्थ साहिब" इसको आप उठाकर पढ़ेंगे और देखेंगे तो इसमें "हरी" शब्द 8 हज़ार से भी अधिक बार इस्तेमाल किया गया है, वहीँ "राम" शब्द 2500 से अधिक बार, जबकि "वाहेगुरु" शब्द मात्र 17 बार गुरु ग्रन्थ साहिब को ही अब सिखों का गुरु माना जाता है, चूँकि सिख के आखिरी गुरु गोबिंद सिंह ने इसे ही आगे के लिए गुरु घोषित किया था।

गोविन्द सिंह का तो नाम भी "गोविन्द है" और "सिंह" हिन्दू उपनाम है, जो सिख समूह के बनने से पहले से ही हिन्दू इस्तेमाल करते आये है ।
खालिस्तानी वो लोग हैं जो श्री गुरु ग्रन्थ साहिब में दर्ज हिंदुओं की बानी के बावजूद अपने ही धर्म ग्रन्थ को झुठला कर कहते हैं कि "यह वो राम , वो। कृष्णा, वो जगदीश " नहीं हैं। अपने ही दसवें गुरु के लिखे चण्डी दी वार " चढ़ मैदान चण्डी महिषासुर नु मारे" को झुठलाते हैं। "देव शिवा वर मोहे इहे" को झुठलाते हैं। लाखों खालिस्तानी है आज, इनका पूरा गैंग सक्रिय है, कनाडा, ब्रिटैन जैसे देशों में तो इनका पूरा गैंग ही सक्रिय है, और पाकिस्तान से इनकी बड़ी मित्रता है
ये हिन्दुओ को गाली देते है । ये हिन्दुओ की ही संतान, इन सभी के पूर्वज हिन्दू ही थे, स्वयं गुरु नानक देव जी भी पैदा होते हुए हिन्दू थे। उनके पिता का नाम कालू चंद, (कालू, कल्याण मेहता) था ।

जो रात दिन एक ही माला जपते हैं कि सिक्ख हिन्दू नहीं हैं वह श्री गुरुग्रंथ साहिब पृष्ठ 1082 की ये पंक्तियों को ध्यान से पढ़ें.

अचुत पारब्रहम परमेसुर अंतरजामी ॥

मधुसूदन दामोदर सुआमी ॥

रिखीकेस गोवरधन धारी मुरली मनोहर हरि रंगा ॥१॥

मोहन माधव क्रिस्न मुरारे ॥

जगदीसुर हरि जीउ असुर संघारे ॥

जगजीवन अबिनासी ठाकुर घट घट वासी है संगा ॥२॥

धरणीधर ईस नरसिंघ नाराइण ॥

दाड़ा अग्रे प्रिथमि धराइण ॥

बावन रूपु कीआ तुधु करते सभ ही सेती है चंगा ॥३॥

स्री रामचंद जिसु रूपु न रेखिआ ॥

बनवाली चक्रपाणि दरसि अनूपिआ ॥

सहस नेत्र मूरति है सहसा इकु दाता सभ है मंगा ॥४॥

अर्थ सहित आगे की पंक्तियाँ निम्न लिंक पर देखे। 
http://www.srigranth.org/servlet/gurbani.gurbani?Action=Page&Param=1082

Tuesday, July 14, 2020

क्या अकबर महान था?

भारत में प्रचलित इतिहास के लेखक मुग़ल सल्तनत के सभी शासकों के मध्य अकबर को विशिष्ट स्थान देते हुए अकबर "महान" के नाम से सम्बोधित करते हैं। किसी भी हस्ती को "महान" बताने के लिए उसका जीवन, उसका आचरण महान लोगों के जैसा होना चाहिए। अकबर के जीवन के एक आध पहलु जैसे दीन-ए-इलाही मत चलाना, हिन्दुओं से कर आदि हटाना को ये लेखक बढ़ा चढ़ाकर बताने में कोई कसर नहीं छोड़ते मगर अकबर के जीवन के अनेक ऐसे पहलु है जिनसे भारतीय जनमानस का परिचय नहीं हैं। इस लेख के माध्यम से हम अकबर के महान होने की समीक्षा करेंगे।

व्यक्तिगत जीवन में महान अकबर

कई इतिहासकार अकबर को सबसे सुन्दर आदमी घोषित करते हैं । विन्सेंट स्मिथ इस सुंदरता का वर्णन यूँ करते हैं-

“अकबर एक औसत दर्जे की लम्बाई का था । उसके बाएं पैर में लंगड़ापन था । उसका सिर अपने दायें कंधे की तरफ झुका रहता था। उसकी नाक छोटी थी जिसकी हड्डी बाहर को निकली हुई थी। उसके नाक के नथुने ऐसे दीखते थे जैसे वो गुस्से में हो। आधे मटर के दाने के बराबर एक मस्सा उसके होंठ और नथुनों को मिलाता था। वह गहरे रंग का था।”

अबुल फज़ल ने अकबर के हरम को इस तरह वर्णित किया है- “अकबर के हरम में पांच हजार औरतें थी और हर एक का अपना अलग घर था।” ये पांच हजार औरतें उसकी 36 पत्नियों से अलग थी।

बाबर शराब का शौक़ीन था, इतना कि अधिकतर समय धुत रहता था। [बाबरनामा] हुमायूं अफीम का शौक़ीन था और इस वजह से बहुत लाचार भी हो गया था। अकबर ने ये दोनों आदतें अपने पिता और दादा से विरासत में ली थी।

नेक दिल अकबर ग़ाजी का आगाज़

6 नवम्बर 1556 को 14 साल की आयु में अकबर ने पानीपत की लड़ाई में भाग लिया था। हिंदू राजा हेमू की सेना मुग़ल सेना को खदेड़ रही थी कि अचानक हेमू को आँख में तीर लगा और वह बेहोश हो गया। उसे मरा सोचकर उसकी सेना में भगदड़ मच गयी। तब हेमू को बेहोशी की हालत में अकबर के सामने लाया गया और इसने बहादुरी से बेहोश हेमू का सिर काट लिया। एक गैर मुस्लिम को मौत के घाट उतारने के कारण अकबर को गाजी के खिताब से नवाजा गया। हेमू के सिर को काबुल भिजा दिया गया एवं उसके धड़ को दिल्ली के दरवाजे से लटका दिया गया। जिससे नए बादशाह की रहमदिली सब को पता चल सके। अकबर की सेना दिल्ली में मारकाट कर अपने पूर्वजों की विरासत का पालन करते हुए काफिरों के सिरों से मीनार बनाकर जीत का जश्न बनाया गया। अकबर ने हेमू के बूढ़े पिता को भी कटवा डाला और औरतों को शाही हरम में भिजवा दिया। अपने आपको गाज़ी सिद्ध कर अकबर ने अपनी “महानता” का परिचय दिया था[i]।

अकबर और बैरम खान

हुमायूँ की बहन की बेटी सलीमा जो अकबर की रिश्ते में बहन थी का निकाह अकबर के पालनहार और हुमायूँ के विश्वस्त बैरम खान के साथ हुआ था। इसी बैरम खान ने अकबर को युद्ध पर युद्ध जीतकर भारत का शासक बनाया था। एक बार बैरम खान से अकबर किसी कारण से रुष्ट हो गया। अकबर ने अपने पिता तुल्य बैरम खान को देश निकाला दे दिया। निर्वासित जीवन में बैरम खान की हत्या हो गई। पाठक इस हत्या के कारण पर विचार कर सकते है। अकबर यहाँ तक भी नहीं रुका। उसने बैरम खान की विधवा, हुमायूँ की बहन और बाबर की पोती सलीमा के साथ निकाह कर अपनी “महानता” को सिद्ध किया[ii]।

स्त्रियों के संग व्यवहार

बुंदेलखंड की रानी दुर्गावती की छोटी सी रियासत थी। न्यायप्रिय रानी के राज्य में प्रजा सुखी थी। अकबर की टेढ़ी नज़र से रानी की छोटी सी रियासत भी बच न सकी। अकबर अपनी बड़ी से फौज लेकर रानी के राज्य पर चढ़ आया। रानी के अनेक सैनिक अकबर की फौज देखकर उसका साथ छोड़ भाग खड़े हुए। पर फिर हिम्मत न हारी। युद्ध क्षेत्र में लड़ते हुए रानी तीर लगने से घायल हो गई। घायल रानी ने अपवित्र होने से अच्छा वीरगति को प्राप्त होना स्वीकार किया। अपने हृदय में खंजर मारकर रानी ने अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली। अकबर का रानी की रियासत पर अधिकार तो हो गया। मगर रानी की वीरता और साहस से उसके कठोर हृदय नहीं पिघला। अपने से कहीं कमजोर पर अत्याचार कर अकबर ने अपनी “महानता” को सिद्ध किया था[iii]।

न्यायकारी अकबर

थानेश्वर में दो संप्रदायों कुरु और पुरी के बीच पूजा की जगह को लेकर विवाद चल रहा था। दोनों ने अकबर के समक्ष विवाद सुलझाने का निवेदन किया। अकबर ने आदेश दिया कि दोनों आपस में लड़ें और जीतने वाला जगह पर कब्ज़ा कर ले। उन मूर्ख आत्मघाती लोगों ने आपस में ही अस्त्र शस्त्रों से लड़ाई शुरू कर दी। जब पुरी पक्ष जीतने लगा तो अकबर ने अपने सैनिकों को कुरु पक्ष की तरफ से लड़ने का आदेश दिया। और अंत में इसने दोनों तरफ के लोगों को ही अपने सैनिकों से मरवा डाला। फिर अकबर महान जोर से हंसा। अकबर के जीवनी लेखक के अनुसार अकबर ने इस संघर्ष में खूब आनंद लिया। इतिहासकार विन्सेंट स्मिथ अकबर के इस कुकृत्य की आलोचना करते हुए उसकी इस “महानता” की भर्तसना करते है[iv]।

चित्तौड़गढ़ का कत्लेआम

अकबर ने इतिहास के सबसे बड़े कत्लेआम में से एक चित्तौड़गढ़ का कत्लेआम अपने हाथों से अंजाम दिया था। चित्तोड़ के किले में 8000 वीर राजपूत योद्धा के साथ 40000 सहायक रुके हुए थे। लगातार संघर्ष के पश्चात भी अकबर को सफलता नहीं मिली। एक दिन अकबर ने किले की दीवार का निरिक्षण करते हुए एक प्रभावशाली पुरुष को देखा। अपनी बन्दुक का निशाना लगाकर अकबर ने गोली चला दी। वह वीर योद्धा जयमल थे। अकबर की गोली लगने से उनकी अकाल मृत्यु हो गई। राजपूतों ने केसरिया बाना पहना। चित्तोड़ की किले से धुँए की लपटे दूर दूर तक उठने लगी। यह वीर क्षत्राणीयों के जौहर की लपटे थी। अकबर के जीवनी लेखक अबुल फ़ज़ल के अनुसार करीब 300 राजपूत औरतों ने आग में कूद कर अपने सतीत्व की रक्षा करी थी। राजपूतों की रक्षा पंक्ति को तोड़ पाने में असफल रहने पर अकबर ने पागल हाथी राजपूतों को कुचलने के लिए छोड़ दिए। तब कहीं वीर राजपूत झुंके थे। राजपूत सेना के संहार के पश्चात भी अकबर का दिल नहीं भरा और उसने अपनी दरियादिली का प्रदर्शन करते हुए किले के सहायकों के कत्लेआम का हुकुम दे दिया। इतिहासकार उस दिन मरने वालों की संख्या 30,000 लिखते हैं। बचे हुए लोगों को बंदी बना लिया गया। कत्लेआम के पश्चात वीर राजपूतों के शरीर से उतारे गए जनेऊ का भार 74 मन निकला था। इस कत्लेआम से अकबर ने अपने आपको “महान” सिद्ध किया था[v]।

शराब का शौक़ीन अकबर

सूरत की एक घटना का अबुल फजल ने अपने लेखों में वर्णन किया हैं। एक रात अकबर ने जम कर शराब पी। शराब के नशे में उसे शरारत सूझी और उसने दो राजपूतों को विपरीत दिशा से भाग कर वापिस आएंगे और मध्य में हथियार लेकर खड़े हुए व्यक्ति को स्पर्श करेंगे। जब अकबर की बारी आई तो नशे में वह एक तलवार को अपने शरीर में घोंपने ही वाला था तभी अपनी स्वामी भक्ति का प्रदर्शन करते हुए राजा मान सिंह ने अपने पैर से तलवार को लात मार कर सरका दिया। अन्यथा बाबर के कुल के दीपक का वही अस्त हो गया होता। नशे में धूत अकबर ने इसे बदतमीजी समझ मान सिंह पर हमला बोल दिया और उसकी गर्दन पकड़ ली। मान सिंह के उस दिन प्राण निकल गए होते अगर मुजफ्फर ने अकबर की ऊँगली को मरोड़ कर उसे चोटिल न कर दिया होता। हालांकि कुछ दिनों में अकबर की ऊँगली पर लगी चोट ठीक हो गई। मजे अपने पूर्वजों की मर्यादा का पालन करते हुए "महान" अकबर ने यह सिद्ध कर दिया की वह तब तक पीता था जब तक उससे न संभला जाता था[vi]।

खूंखार अकबर

एक युद्ध से अकबर ने लौटकर हुसैन कुली खान द्वारा लाये गए युद्ध बंधकों को सजा सुनाई। मसूद हुसैन मिर्जा जिसकी आँखेँ सील दी गई थी की आँखें खोलने का आदेश देकर अकबर साक्षात पिशाच के समान बंधकों पर टूट पड़ा। उन्हें घोड़े,गधे और कुत्तों की खाल में लपेट कर घुमाना, उन पर मरते तक अत्याचार करना, हाथियों से कुचलवाना आदि अकबर के प्रिय दंड थे। निस्संदेह उसके इन विभित्स अत्याचारों में कहीं न कहीं उसके तातार पूर्वजों का खूंखार लहू बोलता था। जो उससे निश्चित रूप "महान" सिद्ध करता था[vii]।

अय्याश महान अकबर

अकबर घोर विलासी, अय्याश बादशाह था। वह सुन्दर हिन्दू युवतियों को अपनी यौनेच्छा का शिकार बनाने की जुगत में रहता था। वह एक "मीना बाजार" लगवाता था। उस बाजार में केवल महिलाओं का प्रवेश हो सकता था और केवल महिलाएं ही समान बेचती थी। अकबर छिप कर मीणा बाज़ार में आने वाली हिन्दू युवतियों पर निगाह रखता था। जिसे पसन्द करता था उसे बुलावा भेजता था। डिंगल काव्य सुकवि बीकानेर के क्षत्रिय पृथ्वीराज उन दिनों दिल्ली में रहते थे। उनकी नवविवाहिता पत्नी किरण देवी परम धार्मिक, हिन्दुत्वाभिमानी, पत्नीव्रता नारी थी। वह सौन्दर्य की साकार प्रतिमा थी। उसने अकबर के मीना बाजार के बारे में तरह-तरह की बातें सुनीं। एक दिन वह वीरांगना कटार छिपाकर मीना बाजार जा पहुंची। धूर्त अकबर पास ही में एक परदे के पीछे बैठा हुआ आने-जाने वाली युवतियों को देख रहा था। अकबर की निगाह जैसे ही किरण देवी के सौन्दर्य पर पड़ी वह पागल हो उठा। अपनी सेविका को संकेत कर बोला "किसी भी तरह इस मृगनयनी को लेकर मेरे पास आओ मुंह मांगा इनाम मिलेगा।" किरण देवी बाजार की एक आभूषण की दुकान पर खड़ी कुछ कंगन देख रही थी। अकबर की सेविका वहां पहुंची। धीरे से बोली-"इस दुकान पर साधारण कंगन हैं। चलो, मैं आपको अच्छे कंगन दिखाऊंगी।" किरण देवी उसके पीछे-पीछे चल दी। उसे एक कमरे में ले गई।

पहले से छुपा अकबर उस कमरे में आ पहुंचा। पलक झपकते ही किरण देवी सब कुछ समझ गई। बोली "ओह मैं आज दिल्ली के बादशाह के सामने खड़ी हूं।" अकबर ने मीठी मीठी बातें कर जैसे ही हिन्दू ललना का हाथ पकड़ना चाहा कि उसने सिंहनी का रूप धारण कर, उसकी टांग में ऐसी लात मारी कि वह जमीन पर आ पड़ा। किरण देवी ने अकबर की छाती पर अपना पैर रखा और कटार हाथ में लेकर दहाड़ पड़ी-"कामी आज मैं तुझे हिन्दू ललनाओं की आबरू लूटने का मजा चखाये देती हूं। तेरा पेट फाड़कर रक्तपान करूंगी।"

धूर्त अकबर पसीने से तरबतर हो उठा। हाथ जोड़कर बोला, "मुझे माफ करो, रानी। मैं भविष्य में कभी ऐसा अक्षम्य अपराध नहीं करूंगा।"

किरण देवी बोली-"बादशाह अकबर, यह ध्यान रखना कि हिन्दू नारी का सतीत्व खेलने की नहीं उसके सामने सिर झुकाने की बात है।"

अकबर किरण देवी के चरणों में पड़ा थर-थर कांप रहा था। उसने किरण देवी से अपने प्राणों की भीख मांगी और मीना बाजार को सदा के लिए बंद करना स्वीकार किया। इस प्रकार से मीना बाजार के नाटक पर सदा सदा के लिए पटाक्षेप पड़ गया था। भारत के शहंशाह अकबर हिन्दू ललना के पांव तले रुदते हुए अपनी महानता को सिद्ध कर रहा था[viii]।

एक कवि ने उस स्थिति का चित्र इन शब्दों में खींचा है

सिंहनी-सी झपट, दपट चढ़ी छाती पर,

मानो शठ दानव पर दुर्गा तेजधारी है।

गर्जकर बोली दुष्ट! मीना के बाजार में मिस,

छीना अबलाओं का सतीत्व दुराचारी है।

अकबर! आज राजपूतानी से पाला पड़ा,

पाजी चालबाजी सब भूलती तिहारी है।

करले खुदा को याद भेजती यमालय को,

देख! यह प्यासी तेरे खून की कटारी है।

ऐसे महान दादा के महान पोते स्वनामधन्य अकबर “महान” के जीवन के कुछ दृश्य आपके सामने रखे। इस काम में हम किसी हिन्दुवादी इतिहासकार के प्रमाण देते तो हम पर दोषारोपण लगता कि आप अकबर “महान” से चिढ़ते हैं। हमने प्रमाण रूप में अबुल फज़ल (अकबर का खास दरबारी) की आइन ए अकबरी और अकबरनामा के आधार पर अकबर के जीवन पर सबसे ज्यादा प्रामाणिक इतिहासकार विन्सेंट स्मिथ की अंग्रेजी की किताब “अकबर- द ग्रेट मुग़ल” से सभी प्रमाण लिए हैं। यहाँ याद रहे कि ये दोनों लेखक सदा यह प्रयास करते रहे कि इन्होने अकबर की प्रशंसा में अनेक अतिश्योक्ति पूर्ण बातें लिखी और अकबर की बहुत सी कमियां छुपाई। मगर अकबर के "महान" कर्मों का प्रताप ही कुछ ऐसा था कि सच्चाई सौ परदे फाड़ कर उसी तरह सामने आ जाती है जैसे कि अँधेरे को चीर कर उजाला आ जाता हैं।

अब भी अगर कोई अकबर को महान कहना चाहेगा तो उसे संतुष्ट करने के लिए महान की परिभाषा को ही बदलना पड़ेगा।

डॉ विवेक आर्य

[i] Akbar the Great Mogul- Vincent Smith page No 38-40

[ii] Ibid p.40

[iii] Ibid p.71

[iv] Ibid p.78,79

[v] Ibid p.89-91

[vi] Ibid p.89-91

[vii] Ibid p.116

[viii] Glimpses of glory by Santosh Shailja, Chap. Meena Bazar p.122-124

Friday, July 10, 2020

साईं भक्त और आर्य का संवाद।

आर्य: यह तुम्हारा साईं बाबा एक पाखंड से ज्यादा और कुछ नहीं है.

साईं भक्त: आप गलत कहते हो साईं बाबा भगवान् के अवतार हैं.स्वयं शिव के अवतार हैं.ब्रह्मा विष्णु

महेश तीनों साक्षात् साईं के रूप हैं.

आर्य: किसी धर्मग्रन्थ से यह अवतार वाली बात सिद्ध कर सकते हो ? साईं बाबा एक मुस्लिम फ़कीर थे यह बात तो साईं सत्चरित में सिद्ध हो चुकी है.उन्होंने खुद अपने मुंह से कहा है कि मैं एक यवन वंशी यानि मुस्लिम परिवार में पैदा हुआ हूँ.और वो नमाज़ भी पढ़ते थे.

साईं भक्त: साईं चालीसा में अवतार हैं यह कहा गया है.

आर्य: साईं चालीसा में यह किसने लिखा है?

साईं भक्त: साईं के एक भक्त ने.

आर्य: स्वयं साईं ने तो नहीं लिखा? तुम लोग साईं की बात मानोगे या भक्त की?

साईं भक्त: लेकिन साईं के चमत्कारों को देखकर तो सारी दुनिया उनके सामने झुकती है.

आर्य: ऐसे जादू भरे चमत्कार तो हमारी गली में तमाशा दिखने वाले कलाकार भी दिखाते हैं तो

क्या उनको भी ईश्वर कहोगे आप?

साईं भक्त: जी नहीं वो कहाँ और हमारे साईं बाबा कहाँ?

आर्य: देखिये श्रीमान जी जब सन १९५० के आस पास राम जन्मभूमि विवाद इलाहाबाद उच्च न्यायालय में दायर किया गया तब तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने हिन्दू मुस्लिम सौहार्द के लिए यह साईं बाबा का जिन्न बोतल से निकाला.क्योंकि उन्हें डर था कि देश में अराजकता फ़ैल सकती है और हमारी सरकार पर संकट आ सकता है.

साईं भक्त: आप गलत कह रहे हैं.साईं बाबा तो उससे पहले से पूजे जा रहे हैं.

आर्य: श्रीमान जी ध्यान से सुनिए! आर्य समाज नामक संस्था के पाखंड खंडन से आज तक कोई पाखंडी नहीं बचा है.किन्तु आर्य समाज के साहित्य में भी १९५० से पहले कहीं किसी साईं बाबा का नाम नहीं आता है.इससे पता चलता है कि १९५० से पहले आम जनमानस में साईं बाबा नाम की कोई चर्चा ही नहीं थी.

साईं भक्त: साहित्य में नाम नहीं आता तो क्या साईं बाबा नहीं थे?

आर्य: ऐसा मैंने नहीं कहा है मैंने कहा है कि जिस रूप में आज आप लोग मानते हो उस रूप में नहीं थे अर्थात धार्मिक जगत में कहीं उनका नाम नहीं था.

साईं भक्त: आखिर आपको साईं बाबा में क्या बुराई नजर आती है?

आर्य: क्या आपने साईं बाबा का जीवन चरित्र पढ़ा है?

साईं भक्त: हाँ पढ़ा है.तो?

आर्य: क्या उसमे नहीं लिखा कि साईं बाबा चिलम पीते थे? मांस खाते थे? नमाज़ पढ़ते थे?

साईं भक्त: हाँ लिखा है.तो?

आर्य: जिन देवताओं के साथ आपने साईं बाबा को बिठा रखा है उन देवताओं में कौन देवता चिलम पीता था और कौन नमाज़ पढता था कौन मांस खाता था? आप लोग साईं के साथ ईश्वर के मुख्य नाम ॐ को लगाते हो मर्यादा पुरुषोत्तम राम का नाम जोड़ते हो.क्या राम और साईं एक जैसे हो सकते हैं?

साईं भक्त: तो साईं के साथ राम का नाम जोड़ने में क्या बुराई है ?

आर्य: क्या आपके नाम के साथ मुहम्मद शब्द जोड़ा जा सकता है ? या बाद में अहमद लगाया जा सकता है ?

साईं भक्त: जी नहीं बिलकुल नहीं.

आर्य: इसी प्रकार किसी मुस्लिम फ़कीर के नाम के साथ राम का नाम जोड़ना गलत है.

साईं भक्त: भाई साहब आपकी बात सही है लेकिन......चलिए आप ही बताइए कि क्या साईं बाबा

भगवान् नहीं हैं?

आर्य: भगवान् ? जैसे लक्षण खुद साईं की पुस्तक में लिखे हैं ऐसे लक्षणों वाला तो मनुष्य भी नहीं कहलाता है और आप उसको भगवान् कहते हैं ? भगवान् तो निराकार है,साईं तो साकार है.भगवान् तो दयालु है,साईं तो जीभ के स्वाद के लिए मांस खाता है.भगवान् तो अजन्मा है,साईं तो जन्म लिया है.भगवान् तो अमर है,साईं तो मर गया.और हाँ सबसे बड़ी बात तो आप सभी साईं भक्त आज तक समझे ही नहीं.

साईं भक्त: वह क्या ?

आर्य: क्या आप लोग नमाज़ पढ़ते हैं ?

साईं भक्त:भाई साहब ये आप क्या कह रहे हैं? हम लोग नमाज़ क्यों पढेंगे?

आर्य: क्योंकि आपका साईं बाबा तो नमाज़ पढता था और किसी भी गुरु के चेले उसके ही मत या सम्प्रदाय के माने जाते हैं.इस नियम से आप सभी साईं भक्तों को भी नमाज़ पढनी चाहिए.शायद यही उद्देश्य पूरा करने के लिए साईं बाबा को भगवान् के रूप में प्रचारित किया गया है जिससे कि लोग इसके अनुयायी बनकर धीरे धीरे अपने धर्म को छोड़कर
मुसलमान बन जाएँ.धार्मिक रूप से बरगलाकर हिन्दुओं को मुसलमान बनाने की इस प्रक्रिया को अल तकिया के नाम से जाना जता है.

साईं भक्त: भाई साहब आप हैं कौन जिनको इतनी सब जानकारी है.जो भी हो आपके तर्कों का मेरे पास कोई जवाब नहीं है.आपकी बातों से मेरी आँखों पर पडा साईं नाम का पर्दा तो हट चुका है.अब कृपा करके मुझे अँधेरे में मत छोडिये मुझे सही रास्ता भी तो बताइये.

आर्य: मेरे भाई मैं ऋषि दयानंद का एक छोटा सा सिपाही हूँ.जिसने गुरु की आज्ञा को शिरोधार्य करते हुए समाज से पाखंड को उखाड़ने का संकल्प लिया है.अविद्या को दूर करके विद्या के प्रचार का कार्य करता हूँ.आर्य समाज के विद्वानों के साथ रहता हूँ.अपने धर्म ग्रन्थ वेदों को,दर्शनों को,उपनिषदों को पढता हूँ.जिससे सत्य को जानकर असत्य को छोड़ने में
सहायता होती है.साईं भक्त नहीं अब वेद भक्त: मेरे भाई वेद का मार्ग ही कल्याण का मार्ग है.जिस दिन संसार के सभी लोग आपकी तरह सत्य को जानकार वेद के मार्ग पर चलने लगेंगे उस दिन संसार सुख से परिपूर्ण हो जायेगा.और सब सुखी हो जायेंगे.

भाइयों बहनों यह चर्चा मेरे जीवन की एक सत्य घटना पर आधारित है.हम सबको चाहिए कि साईं बाबा जैसे अधर्मी व्यक्ति के अनुयायी न बनकर राम और कृष्णा के अनुयाई बनें.वेदों के मार्ग पर चलें.ईश्वर सबका कल्याण करे.

लेखक: पंडित रवींद्र आर्य कानपुर

Thursday, July 9, 2020

सुनील दत्त हिंदू था और उसकी पत्नी मुस्लिम।

#सुनील_दत्त हिंदू था और उसकी पत्नी #फातिमाराशिद यानी #नर्गिस एक #मुस्लिम थीं, जब इन दोनो के अफेयर की खबर अंडरवर्ल्ड मे गई तो सुनील दत्त को धमकी मिली तब
सुनील दत्त ने  नर्गिस से शादी करने के लिए हिंदू धर्म को छोड़कर इस्लाम कबूल कर लिया......लेकिन  अपना फिल्मी नाम नहीं बदला..।
जानते हैं क्यो...? 

क्योकि, ये वो एक दौर था, जब मुसलमान एक्टर हिंदू नाम इसलिए रखते थे क्योंकि उन्हें डर था कि अगर दर्शकों को उनके मुसलमान होने का पता लग गया तो उनकी फिल्म देखने कोई नहीं आएगा.....! 
ऐसे लोगों में सबसे मशहूर नाम युसूफ खान का है जिन्हें दशकों तक हम दिलीप कुमार समझते रहे...... 

महजबीन अलीबख्श मीना कुमारी बन गई और मुमताज बेगम जहाँ देहलवी मधुबाला बनकर हिंदू दिलों पर राज करतीं रहीं।

बदरुद्दीन जमालुद्दीन काजी को हम जॉनी वाकर समझते रहे और हामिद अली खान विलेन अजित बनकर काम करते रहे.....।
हममें से कितने लोग जान पाए कि अपने समय की मशहूर अभिनेत्री रीना राय का असली नाम सायरा खान था।

फिर ऐसा क्या हुआ कि अब ये मुस्लिम कलाकार हिंदू नाम रखने की जरूरत नहीं समझते बल्कि उनका मुस्लिम नाम उनका ब्रांड बन गया है.....! यह उनकी मेहनत का परिणाम है या हम लोगों के अंदर से कुछ खत्म हो गया है.....?

तो इस खेल को बारिकी से समझिये, ये कोई 1 दिन नहीं कई बरसों की साजिश का परिणाम है......! 

शुरू करते हैं शाहरुख़ खान से........ 
शाहरुख खान की पत्नी गौरी छिब्बर एक हिंदू है।

आमिर खान की पत्नियां रीमा दत्ता /किरण राव और सैफ अली खान की पत्नियाँ अमृता सिंह / करीना कपूर दोनों हिंदू हैं।
इसके पिता नवाब पटौदी ने भी हिंदू लड़की शर्मीला टैगोर से शादी की थी।
फरहान अख्तर की पत्नी अधुना भवानी और फरहान आजमी की पत्नी आयशा टाकिया भी हिंदू हैं।
अमृता अरोड़ा की शादी एक मुस्लिम से हुई है जिसका नाम शकील लदाक है।

सलमान खान के भाई अरबाज खान की पत्नी मलाइका अरोड़ा हिंदू हैं और उसके छोटे भाई सुहैल खान की पत्नी सीमा सचदेव भी हिंदू हैं।

अनेक उदाहरण ऐसे हैं कि हिंदू अभिनेत्रियों को अपनी शादी बचाने के लिए धर्म परिवर्तन भी करना पड़ा है।

आमिर खान के भतीजे इमरान की हिंदू पत्नी का नाम अवंतिका मलिक है। संजय खान के बेटे जायद खान की पत्नी मलिका पारेख है।

फिरोज खान के बेटे फरदीन की पत्नी नताशा है। इरफान खान की बीवी का नाम सुतपा सिकदर है। नसरुद्दीन शाह की हिंदू पत्नी रत्ना पाठक हैं।

जरा सोचिए कि हम कौनसी फिल्मों को बढ़ावा दे रहे हैं?
क्या वजह है कि बहुसंख्यक बॉलीवुड फिल्मों में हीरो मुस्लिम लड़का और हीरोइन हिन्दू लड़की होती है?

क्योंकि ऐसा फिल्म उद्योग का सबसे बड़ा फाइनेंसर दाऊद इब्राहिम चाहता है। टी-सीरीज का मालिक गुलशन कुमार ने उसकी बात नहीं मानी और नतीजा सबने देखा।

आज भी एक फिल्मकार को मुस्लिम हीरो साइन करते ही दुबई से आसान शर्तों पर कर्ज मिल जाता है। इकबाल मिर्ची और अनीस इब्राहिम जैसे आतंकी एजेंट सात सितारा होटलों में खुलेआम मीटिंग करते देखे जा सकते हैं।

सलमान खान, शाहरुख खान, आमिर खान, सैफ अली खान, नसीरुद्दीन शाह, फरहान अख्तर, नवाजुद्दीन सिद्दीकी, फवाद खान जैसे अनेक नाम हिंदी फिल्मों की सफलता की गारंटी बना दिए गए हैं।

सुभाष घई, राजकुमार संतोषी, सुनील दर्शन ,अनिलकुमार, मनोज कुमार और राकेश रोशन जैसे फिल्मकार इन दरिंदों की आंख के कांटे हैं।

तब्बू, हुमा कुरैशी, सोहा अली खान और जरीन खान जैसी प्रतिभाशाली अभिनेत्रियों का कैरियर जबरन खत्म कर दिया गया क्योंकि वे मुस्लिम हैं और इस्लामी आकाओ को उनका काम गैरमजहबी लगता है।

फिल्मों की कहानियां लिखने का काम भी सलीम खान और जावेद अख्तर जैसे मुस्लिम लेखकों के इर्द-गिर्द ही रहा जिनकी कहानियों में एक भला-ईमानदार मुसलमान, एक पाखंडी ब्राह्मण, एक अत्याचारी - बलात्कारी क्षत्रिय, एक कालाबाजारी वैश्य, एक राष्ट्रद्रोही नेता, एक भ्रष्ट पुलिस अफसर और एक गरीब दलित महिला होना अनिवार्य शर्त है।

इन फिल्मों के गीतकार और संगीतकार भी मुस्लिम हों तभी तो एक गाना मौला के नाम का बनेगा और जिसे गाने वाला पाकिस्तान से आना जरूरी है।

इन अंडरवर्ड के हरामखोरों की असिलियत को पहचानिये और हिन्दू समाज को संगठित करिये तब ही हम  अपने धर्म की रक्षा कर पाएंगे ।

यह रहा साईं बाबा का कच्चा चिट्ठा।

साईं का जन्म 1838 में हुआ था, पर कैसे हुआ और उसके बाद की पूरी कथा बहुत
ही रोचक है, साईं के पिता का असली नाम
था #बहरुद्दीन, जो कि अफगानिस्तान का एक #पिंडारी था, वैसे इस पर एक फिल्म भी आई थी जिसमे पिंडारियो को देशभक्त बताया गया है, ठीक वैसे ही जैसे गाँधी ने मोपला और नोआखली में हिन्दुओ के हत्यारों को स्वतंत्रता सेनानी कहा था.

औरंगजेब की मौत के बाद मुग़ल साम्राज्य ख़तम सा हो गया था केवल दिल्ली उनके अधीन थी, मराठा के वीर सपूतो ने एक तरह से हिन्दू साम्राज्य की नीव रख ही दी थी, ऐसे समय में मराठाओ को बदनाम करके उनके इलाको में लूटपाट करने का काम ये पिंडारी करते थे, इनका एक ही काम था लूटपाट करके जो औरत मिलती उसका बलात्कार करना!! आज एक का
बलात्कार कल दूसरी का, इस तरह से ये
मराठाओ को तंग किया करते थे, पर समय के साथ साथ देश में अंग्रेज आये और उन्होंने इन पिंडारियो को मार मार कर ख़तम करना शुरू किया.

#साईं_का_बाप जो एक पिंडारी ही था, उसका मुख्य काम था अफगानिस्तान से भारत के राज्यों में #लूटपाट करना!! एक बार लूटपाट करते करते वह महाराष्ट्र के अहमदनगर पहुचा जहा वह एक वेश्या के घर रुक गया, उम्र भी जवाब दे रही थी, सो वो उसी के पास रहने लग गया, कुछ समय बाद उस वेश्या से उसे एक लड़का और एक लड़की पैदा हुआ, लड़के का नाम उसने #चाँद_मियां रखा और उसे लेकर लूटपाट
करना सिखाने के लिए उसे अफगानिस्तान ले गया.
उस समय अंग्रेज पिंडारियो की ज़बरदस्त धर पकड़ कर रहे थे, इसलिए बहरुद्दीन भेस बदल कर लूटपाट करता था. उसने अपने सन्देश वाहक के लिए चाँद मिया को रख लिया|

चाँद मिया आज कल के उन मुसलमान
भिखारियों की तरह था जो चादर फैला कर
भीख मांगते थे, जिन्हें अँगरेज़ #blanket_beggar कहते थे, चाँद मिया का काम था लूट के लिए सही वक़्त देखना और सन्देश अपने बाप को देना, वह उस सन्देश को लिख कर उसे चादर के नीचे सिल कर हैदराबाद से अफगानिस्तान तक ले जाता था | पर एक दिन ये चाँद मियां अग्रेजो
के हत्थे लग गया और उसे पकडवाने में झाँसी के लोगो ने अंग्रेजो की मदद की जो अपने इलाके में हो रही लूटपाट से तंग थे.
उसी समय देश में पहली आजादी की क्रांति हुई और पूरा देश क्रांति से गूंज उठा| अंग्रेजो के लिए विकट समय था और इसके लिए उन्हें खूंखार लोगो की जरुरत थी, बहर्दुद्दीन तो था ही धन का लालची, सो उसने अंग्रेजो से हाथ मिला लिया और झाँसी चला गया वह. उसने लोगो से
घुलमिल कर झाँसी के किले में प्रवेश किया और समय आने पर पीछे से दरवाजा खोल कर रानी लक्ष्मी बाई को हराने में अहम् भूमिका अदा की|

यही चाँद मिया आठ साल बाद जेल से छुटकर कुछ दिन बाद शिर्डी पंहुचा और वह के सुलेमानी लोगो से मिला जिनका असली
काम था गैर-मुसलमानों के बीच रह कर
चुपचाप इस्लाम को बढ़ाना. चाँद मियां ने
वही से अल तकिया का ज्ञान लिया और
हिन्दुओ को फ़साने के लिए #साईं नाम रख कर शिर्डी में आसन जमा कर बैठ गया!! मस्जिद को जानबूझ कर एक हिन्दू नाम दिया और उसके वहा ठहराने का पूरा प्रबंध सुलेमानी मुसलमानों ने किया, एक षड्यंत्र के तहत साईं को #भगवान_का_रूप दिखाया गया और पीछे से ही हिन्दू मुस्लिम एकता की बाते करके स्वाभिमानी मराठाओ को #मुर्दा बनाने के लिए उन्हें उनके ही असली दुश्मनों से एकता निभाने का पाठ पढाया गया. पर पीछे ही पीछे साईं का असली मकसद था लोगो में #इस्लाम_को_बढ़ाना, इसका एक
उदाहरण साईं सत्चरित्र में है कि साईं के पास एक पोलिस वाला आता है जिसे साईं मार मार भगाने की बात कहता है, अब असल में हुआ ये की एक पंडित जी ने अपने पुत्र को शिक्षा दिलवाने के लिए साईं को सोंप दिया पर साईं ने उसका #खतना कर दिया. जब पंडित जी को पता चला तो उन्होंने कोतवाली में रिपोर्ट कर दी! साईं को पकड़ने के लिए एक पुलिस वाला भी आया जिसे साईं ने मार कर भगाने की बात कही थी।
मेरी साई बाबा से कोई निजी दुष्मनी नही है,
परतुं हिन्दू धर्म को नाश हो रहा है, इसलिए मै कुछ सवाल करना चाहता हूँ - 
हिन्दू धर्म एक सनातन धर्म है, लेकिन लोग आज कल लोग इस बात से परिचित नही है क्या? जब भारत मे अंग्रेजी सरकार अत्याचार और सबको मौत के घाट उतार रहे थे तब साई बाबा ने कौन से ब्रिटिश अंग्रेजो के साथ आंदोलन किया ? जिदंगी भीख मांगने मे कट गई? मस्जिद मे रह कर कुरान पढना जरूरी था. बकरे हलाल
करना क्या जरूरी था ? सब पाखंड है, पैसा
कमाने का जरिया है। ऐसा कौन सा दुख है कि उसे भगवान दूर नही कर सकते है. श्रीमद भगवत गीता मे लिखा है कि
श्मशान और समाधि की पुजा करने वाले मनुष्य राक्षस योनी को प्राप्त होते हैं.
साई जैसे #पाखंडी की आज इतनी ज्यादा
मार्केटिंग हो गयी है कि हमारे हिन्दू भाई
बहिन आज अपने मूल धर्म से अलग होकर #साई_मुल्ले कि पूजा करने लगे है। आज लगभग हर मंदिर में इस #जिहादी ने कब्जा कर लिया है।
हनुमान जी ने हमेशा सीता राम कहा और आज के मूर्ख हिन्दू हनुमान जी का अपमान करते हुए #सीता_राम_कि_जगह_साई_राम कहने लग गए ।
बड़ी शर्म कि बात है। आज जिसकी मार्केटिंग ज्यादा उसी कि पूजा हो रही है। इसी लिए कृष्ण भगवान ने कहा था कि कलयुग में इंसान पथ और धर्म दोनों से भ्रष्ट हो जाएगा। 100 मे से 99 को नहीं पता साई कौन था, इसने कौन सी किताब लिखी क्या उपदेश दिये पर फिर भी #भगवान_बनाकर_बैठे_है।
साई के माँ बाप का सही सही पता नहीं पर
मूर्खो को ये पता है कि ये किस किस के
अवतार है। अंग्रेज़ो के जमाने मे मूर्खो के साई भगवान पैदा होकर मर गए पर किसी भी एक महामारी भुखमरी मे मदद नहीं की। इसके रहते भारत गुलाम बना रहा पर इन महाशय को कोई खबर नहीं रही। शिर्डी से कभी बाहर नहीं निकला पर पूरे देश मे अचानक इनकी मौत के 90-100 साल बाद इसके #मंदिर_कुकरमूतते_की_तरह_बनने_लगे। चालीसा हनुमान जी की हुआ करती
थी आज साई की हो गयी। 
#राम_सीता_के_हुआ_करते_थे। आज साई ही राम हो गए। 
#श्याम_राधा_के_थे आज वो भी साई बना दिये गए।
#बृहस्पति_दिन_विष्णु_भगवान_का_होता_था आज साई का मनाया जाने लगा। #भगवान_की_मूर्ति_मंदिरो_में_छोटी_हो_गयी और साई विशाल मूर्ति मे हो गए। 
#प्राचीन_हनुमान_मंदिर_दान_को_तरस_गए और साई मंदिरो के तहखाने तक भर गए। 
#मूर्ख_हिन्दुओ अगर दुनिया मे सच मे
कलयुग के बाद भगवान ने इंसाफ किया तो याद रखना #मुँह_छुपाने_के_लिए_और_अपनी_मूर्ख_बुद्धि_पर_तरस_खाने_के_लिए_कही_शरण_भी_न_मिलेगी।
इसलिए भागवानो की तुलना #मुल्ले_साई_से_करके_पाप_मत_करो। 

और इस लेख को पढ़ने के बाद भी न समझ मे आए तो #अपना_खतना_करवा_के_मुसलमान_बन_जाओ।
साभार
👉 क्या करोगे शेयर करके...
https://youtu.be/MDnEl_ZWmn8

Wednesday, July 8, 2020

इस्लामिक जन्नत (बहिश्त)-एक समीक्षा।

समाचार पत्रों के माध्यम से रोजाना यह खबर मिलती है कि आज ISIS ने अनेक निर्दोष लोगों का क़त्ल कर दिया, आज तालिबान ने अफगानिस्तान या पाक में निर्दोष बच्चों पर गोलियाँ चला दी, आज पाकिस्तान में नमाज पढ़ते मुसलमानों को एक आत्मघाती ने बम से उड़ा दिया, आज मुंबई की सड़कों पर कसाब सरीखे कच्ची उम्र के लड़कों ने गोलियों से अनेक निर्दोषों के प्राण हर लिये।

क्या किसी ने सोचा की यह सब खून खराबा क्यों हो रहा है?
क्या किसी ने सोचा की सम्पूर्ण विश्व की शांति को ग्रहण लगाने वाले ऐसा क्यों कर रहे है?
क्या किसी ने सोचा की किसी भी निर्दोष की हत्या से हत्यारों को क्या मिलता हैं?

इस मनोवृति का मूल कारण इस्लामिक जन्नत (बहिश्त) को प्राप्त करने की आकांशा हैं। इस्लामिक मान्यता के अनुसार काफिर को मारने वाले को जन्नत नसीब होगी।

क़ुरान सूरा 2 आयत 25 में बहिश्त का वर्णन करते हुए लिखा है- जो लोग ईमान लाये और उन्होंने अच्छे काम किए उन्हें शुभ सुचना दे दो कि उनके लिए ऐसे बाग़ है जिनके नीचे नहरे बह रही होंगी, जब भी उनमें से कोई फल उन्हें रोजी के रूप में मिलेगा, तो कहेंगे ,'यह तो वही हैं जो पहले हमें मिला था" और उन्हें मिलना-जुलना ही (फल) मिलेगा; उनके लिए वहाँ पाक-साफ पत्नियाँ होंगी, और वे वहाँ सदैव रहेंगे।

कुरान में जन्नत का वर्णन ख़्वाजा हसन निज़ामी ने अपने कुरान के हिंदी अनुवाद के पृष्ठ 768 पर इस प्रकार से किया है-

'जन्नत (स्वर्ग) में ये लोग जड़ाऊ सिंहासनों तथा कामदार बिछौनों पर तकिया लगाये हुए बड़े आनंद मंगल के साथ विराजमान होंगे। गिल्मान जो सदा बहार फूल की तरह सर्वदा लड़का ही बने रहेंगे उनके पास (उत्तम-उत्तम शरबतों के भरे हुए) गिलास और कूजे और ऐसी पवित्र तथा स्वच्छ मदिरा के प्याले ला रहे होंगे कि जिसके पीने से न कुछ उन्माद होगा और न उन्माद उतरते समय जो सिर पीड़ा होती है न वह शिर पीड़ा होगी और न बुद्धि ख़राब होगी। और पीने की वस्तुओं के प्रतिरिक्त जो मेवा वह खाना पसंद करेंगे (वह उनके लिए विद्यमान होगा) और मेवा के अतिरिक्त आत्मा को प्रसन्न तथा प्रफुल्लित करने के लिए उनके लिए खजानों में सेतें हुए (चमकदार) मोतियों की तरह गोरी-गोरी और मृगनयनों के सदृश बड़े-बड़े नेत्रों वाली (रूपवती) स्त्रियां भी होंगी। वास्तव में यह सब कुछ उस मन मारने और उन शुभ कर्मों का प्रतिफल है जो दुनियां में किया करते थे। इत्यादि'

क़ुरान में वर्णित जन्नत की स्वामी दयानंद ने अमर ग्रन्थ सत्यार्थ प्रकाश के 14 वें सम्मुलास में बखूबी समीक्षा की हैं। स्वामी जी लिखते है -

भला यह कुरान का बहिश्त संसार से कौन सी उत्तम बात वाला है? क्यूंकि जो पदार्थ संसार में हैं वे ही मुसलमानों के स्वर्ग में है और इतना विशेष है कि यहां जैसे पुरुष जन्मते-मरते और आते-जाते हैं उसी प्रकार स्वर्ग में नहीं, किन्तु यहां की स्त्रियां सदा नहीं रहती और वहां बीबियां अर्थात उत्तम स्त्रियां सदा काल रहती हैं तो जब तक क़यामत की रात न आवेगी तब तक उन विचारियों के दिन कैसे कटते होंगे?
(सत्यार्थ प्रकाश 14 वां समुल्लास समीक्षा 9)

भला यह स्वर्ग है कि वा वेश्यापन? इसको ईश्वर कहना वा स्त्रैण? कोई भी बुद्धिमान ऐसी बातें जिसमें हो उसको परमेश्वर का किया पुस्तक मान सकता है? यह पक्षपात क्यों करता हैं? जो बीवियां बहिश्त में सदा रहती हैं वे यहाँ जन्म पाके वहां गई हैं वा वहीँ उत्पन्न हुई हैं? यदि यहां जन्म पाकर वहां गई हैं और जो कयामत की रात से पहले ही वहां बीवियों को बुला लिया तो उनके खाबिन्दों को क्यों न बुला लिया? और क़यामत की रात में सबका न्याय होगा इस नियम को क्यों तोड़ा? यदि वहीं जन्मी हैं तो क़यामत तक वे क्यूँकर निर्वाह करती हैं? जो उनके लिए पुरुष भी हैं तो यहां से बहिश्त में जाने वाले मुसलमानों को खुदा बीवियां कहां से देगा? और जैसे बीवियां बहिश्त में सदा रहने वाली बनाई वैसे पुरुषों को सदा रहने वाले क्यों नहीं बनाया?
(सत्यार्थ प्रकाश 14 वां समुल्लास समीक्षा 46)

क्यों जो मोती के वर्ण से लड़के किस लिए वहां रखे जाते हैं? क्या जवान लोग सेवा या स्त्रीजन उनको तृप्त नहीं कर सकती? क्या आश्चर्य है कि जो यह महा बुरा कर्म लड़कों के साथ दुष्ट-जन करते हैं उनका मूल यही क़ुरान का वचन है। और बहिश्त में स्वामी सेवक भाव होने से स्वामी को आनंद और सेवक को परिश्रम होने से दुःख और पक्षपात क्यों हैं? और जब खुदा ही मद्य पिलावेगा तो वह भी उनका सेवकवत् ठहरेगा फिर खुदा की बड़ाई क्यूँकर रह सकेगी? और वहां बहिश्त में स्त्री-पुरुष समागम और गर्भस्थित और लड़के वाले हैं व नहीं? यदि नहीं होते तो उनका विषय सेवन करना व्यर्थ हुआ और जो होते हैं तो वे जीव कहां से आए? और बिना खुदा की सेवा के बहिश्त में क्यों जन्मे? यदि जन्मे तो उनको बिना ईमान लाने और खुदा को भक्ति करने से बहिश्त मुफ्त मिल गया। किन्हीं विचारों लाने और किन्हीं को बिना धर्म के सुख मिल जाय इससे दूसरा बड़ा अन्याय कौन-सदा होगा?
(सत्यार्थ प्रकाश 14 वां समुल्लास समीक्षा 150)

स्वामी दयानंद के समान अनेक विचारकों ने इस्लामिक बहिश्त की समीक्षा अपने अनुसार की हैं। अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय के संस्थापक सर सैय्यद अहमद खान लिखते है-

यह समझना कि जन्नत (स्वर्ग) मिस्ल एक बाग़ में पैदा हुई है, उसमें संगमरमर के और मोती के जड़ाऊ महल हैं। बाग़ में शराब व सरसब्ज़ दरख़्त (वृक्ष) हैं, दूध व शराब व शहद की नदियां बह रही हैं, हर किस्म का मेवा खाने को मौजूद हैं। ग्राकी और साकिनें निहायत खूबसूरत चांदी के कंगन पहने हुए जो हमारे यहां की घोसिनें पहनती हैं शराब पिला रही हैं। एक जन्नती हूर के गले में हार डाले पड़ा है, एक ने रान पर सर धरा हैं, एक छाती से लिपटा रहा है, एक ने जानबख्श का बोस लिया है, कोई किसी कोने में कुछ कर रहा है, किसी कोने में कुछ ऐसा बेहूदापन है जिस पर ताज्जुब आश्चर्य होता हैं। अगर बहिश्त (स्वर्ग) यही है तो वे मुबालगा (बिना किसी अत्युक्ति के) हमारे ख़राबात (वेश्यालय) इससे हज़ार गुना बेहतर है। (सन्दर्भ- तफ़सीरुल क़ुरान भाग 1, पृष्ठ 44)
एक कूड़ा मग़ज मुल्ला या शहबत परस्त (विषय लम्पट) जाहिद यह समझता है कि दर हकीकत (वास्तव में) निहायत अनगिनत हूरें मिलेंगी, शराबें पियेंगे दूध व शहद की नदियों में नहायेंगे और जो चाहेंगे वो मजे उड़ाएंगे। इस लम्ब व बेहूदा ख्याल से दिन रात अवामीर के बजालाने की कोशिश करता है। (सन्दर्भ- तफ़सीरुल क़ुरान भाग 1, पृष्ठ 47)

मार्कस डोड्स (Marcus Dods M.A.D.D.) लिखते हैं ‘Such passages frequently occur in the early suras of Koran and I think a candid mind must own to being somewhat shocked and disappoint by the low ideally perfected human bliss set before the Mohomedans ’

अर्थात ऐसी पंक्तियाँ क़ुरान के पूर्व सुराओं में स्पष्ट रूप से प्रकट होती हैं और मैं समझता हूं कि मुसलमानों के सम्मुख पूर्ण मानव कल्याण के अधम आदर्शों के द्वारा निष्कपट व्यक्ति को आघात और निराशा की ही प्राप्ति होगी। (सन्दर्भ- Mohammed Buddha and Christ pp 49)

पादरी गैरिनडर नामक विद्वान इस्लामिक बहिश्त की समीक्षा में लिखते है

But the curse of the Koranic imagery is that it’s most direct and significant appeal is carnal, and that it stimulates that which in the Oriental stands in least need of being stimulated. A unique chance to uplift, to spiritualize was lost. On the contrary, it was turned into a unique means of standardizing the low level at which ordinary fallen human nature is all too content to live. The imagery of Hell, Jahannam, is similarly material, and its elaborate and terrible details are intended to be interpreted in a strictly material sense. All the descriptions of both Heaven and Hell, the Intermediate State, Resurrection, and Judgment are, then, thoroughly and frankly materialistic.

अर्थात क़ुरान की बुराई यह है कि इसकी सीधी और उद्बोधक प्रार्थना भोग-विलासी सम्बन्धी है। आत्मा को ऊँचा उठाने वा आध्यात्मिकता को बढ़ाने का अवसर इसने खो दिया। इसके विरुद्ध इसने ऐसे हीन परिणाम को सर्वथा अपना लिया जिस पर रहने में ही साधारण पतित मानवीय प्रकृति संतुष्ट रहती है। इसी प्रकार नरक की कल्पना भी सांसारिक है और इसके विस्तृत और भयंकर वर्णन बिलकुल शब्दश:लिए जाने के लिए हैं। स्वर्ग-नरक, माध्यमिक स्थिति, पुनरुत्थान और प्रलय के सब वर्णन स्पष्टरूप से भौतिक है।

सन्दर्भ Author Gairdner, W. H. T. (William Henry Temple) The reproach of Islam page 153.

उर्दू के प्रसिद्द ग़ालिब जन्नत के विषय में लिखते है-

'हमको मालूम है जन्नत की हकीकत लेकिन,दिल के बहलाने को ग़ालिब यह खियाल अच्छा है'

शेख इब्राहिम का कथन है-

'जिसमें लाखों बरस ही हूरें हो, ऐसी जन्नत को क्या करे कोई'
इस प्रकार से अनेक विचारकों ने इस्लामिक बहिश्त की समीक्षा की हैं।

इस्लामिक बहिश्त के आकर्षण में संसार की शांति भंग हो गई है। संसार के युद्धक्षेत्र बनने से यह साक्षात नरक बन गया हैं।

स्वामी दयानंद स्वर्ग-नरक को किसी स्थान विशेष पर नहीं मानते थे अपितु स्वमन्तव्यामन्तव्यप्रकाश में स्वामी जी स्वर्ग नाम सुख विशेष भोग और उसकी सामग्री प्राप्ति को मानते है और नरक जो दुःख विशेष भोग और उसकी सामग्री प्राप्ति को मानते है। अर्थात जो व्यक्ति संसार में अपने कर्मों द्वारा सुख की प्राप्ति कर रहा है वह स्वर्ग में है और जो दुःख की प्राप्ति कर रहा है वह नरक में है। इसलिए श्रेष्ठ कर्म करने का संकल्प लीजिये जिससे यह धरती ही स्वर्ग बन जाये। इस्लामिक बहिश्त के विचार के त्याग से ही आतंकवाद समाप्त हो सकता हैं जिसका परिणाम इस धरती को जन्नत बनने से कोई नहीं रोक सकता।