इस्लाम ने दुनिया की बहुत सी सभ्यताओं को लील लिया और अंधकार युग में पहुंचा दिया। ऐसा हुआ तो विश्व से सभ्यताओं के साथ ही मानवता नष्ट हो जाएगी। ईरान को इस्लामी चंगुल से छुड़ाना होगा और भारत को इस्लाम से बचाना होगा।
क्या भारत में वही हो रहा है, जो ईरान में हुआ। इस्लाम दमनकारी है और यह मानव के जीवन में अतिक्रमण करता है.. निजता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता को नष्ट कर गुलामों जैसा जीवन व्यतीत करने पर मजबूर करता है.. दमन व अत्याचार के हथियार से ही ये अब तक सफलता प्राप्त करता रहा है। इन फोटो में देखिए, मजहबी कूरता का रूप। एक इस्लाम के कब्जे से पूर्व का ईरान है, जहां आनंद, स्वतंत्रता और सभ्यता है और दूसरी फोटो आज के इस्लामी अंधकार युग के ईरान की है। इसी तरह तीसरी फोटो भारत की मुसलमान महिलाओं की हैं, जिन्हें मजहबी दमन के कारण मनुष्य की तरह रहने, पहनने तक के अधिकार नहीं मिल रहे।
इस्लाम की यह रणनीति आज से नहीं, मुहम्मद के समय से है। है। काबा में 360 मूर्तियां थीं और ये मूर्तियां अलग-अलग जनजातियों के संरक्षकों की थीं। उस समय अरब में यहूदी, ईसाई, जोराष्ट्रियन, सैबियंस (लुप्त हो चुका अद्वैतवादी सम्प्रदाय) और सभी तरह के धर्मावलंबी रहते थे। ये सभी स्वंत्रतापूर्वक अपने-अपने धर्म को निभाते थे। इस्लाम के आने के साथ ही अरब में धार्मिक असहिष्णुता पैदा हुई। मुहम्मद की अगुवाई में अरब प्रायद्वीप की उन्नत सभ्यता को नष्ट कर इस्लामी अंधकार युग में डाल दिया गया। यही ईरान में हुआ और यही गजवा-ए-हिंद के रूप में भारत में भी हो रहा है।
ईरान अर्थात फारस की सभ्यता अति उन्नत थी। इस्लाम के कब्जे से पूर्व यह वही ईरान था, जहां कला, संस्कृति और ज्ञान-विज्ञान स्थापित था। डॉ शीरीन टी. हन्टर ने ‘ईरान डिवाइडेड: द हिस्टारिकल रूट्स ऑफ इरानियन डिबेट्स ऑन आइडेंटिटी, कल्चर...’ में लिखते हैं कि अतिवादी ईरानी स्कूल ऑफ थॉट का कहना है कि इस्लाम से पूर्व ईरान में असभ्यता और अंधकार था। जबकि सच यह है कि इस्लाम के आने के बाद ईरान अंधकारयुग में चला गया। देखते-देखते अरब और इस्लाम ईरान की महान सभ्यता को लील गए । ईसा पूर्व 550 में मदीना, बेबीलोनिया साम्राज्य को पराजित कर जिस सभ्यता को साइरस द ग्रेट ने स्थापित किया था, उसे इस्लाम ने चंद सालों में इस्लामी कू्ररता, दमन और चरमपंथ से लूट लिया। पर कहते हैं न कि जड़ें हमेशा अपनी ओर बुलाती हैं, शायद फारस के लोगों को उनकी जड़ें पुकार रही हैं और ईरान के निर्वासित क्राउन प्रिंस रजा पहलवी की उस स्वीकारोक्ति को जीना चाहते हैं, जिसमें उन्होंने कहा था कि हां, हम ईरानी आर्य हैं। आर्य भारत के लोग भी हैं और गजवा-ए-हिंद यहां भी आर्यों को समाप्त करने के लिए पूरा जोर लगा रहा है, सऊदी की वहाबी आतंकी मानसिकता की मदद से और पेट्रोडालर के टुकड़े डालकर।
ईरानी लेखक व चिंतक Dr. Naila H Shirazi कहती हैं, "ईरान में लोगों के जीवन की बेहतरी में इस्लाम का नाममात्र का भी योगदान नहीं है। इस्लाम अत्याचारी और दमनकारी है। लोकतंत्र की पुनस्र्थापना करनी ही होगी। वहां के लोगों को और मजबूती से खड़ा होना होगा और इस्लामी शासन के खिलाफ बगावत करनी होगी, क्राउन प्रिंस रजा पहलवी को अपने आंदोलन के माध्यम से ताकतवर बनाना होगा।"
ईरान उस इस्लाम के अत्याचार, चरमपंथ और कू्ररता के आगे 1979 में आखिकार पराजित हो गया। पर भारत प्रारंभ से कू्रर, बर्बर और असभ्य इस्लाम से पिछले 1400 सालों से न केवल लड़ रहा है, बल्कि इस्लाम को पराजित कर रहा है। पर इधर, स्थितियां चिंताजनक हुई हैं, खासकर भारत की आजादी के बाद सत्ता हिंदू के रूप में वेश बदलकर आए मुगल नेहरू और उनके वंशजोंं के हाथों में जाने से। ये छद्मवेषी मुगल भारत की महान सभ्यता और संस्कृति को तोडऩे में बड़े पैमाने पर कामयाब भी हो चुके हैं और इन्हें यह कामयाबी इसलिए मिली कि इन्होंने गजवा-ए-हिंद यानी भारत का इस्लामीकरण सीधा करने के बजाय हिंदू होने का मुखौटा लगाकर किया। ईरान तो अंधकार युग में है और लोकतंत्र व स्वतंत्रता दमनकारी और अत्चायारी इस्लाम के चंगुल में बेडिय़ोंं में जकडक़र रखी गई है, पर भारत में अभी भी कांग्रेस व अन्य विपक्षी पार्टियों की भारतीय संस्कृति व सभ्यता के खिलाफ खतरनाक साजिशों के बावजूद लोकतंत्र का बड़ा परिमाण बचा हुआ है।
पर सवाल यह है कि कब तक? 1000 साल की गुलामी से आजादी के बाद भी भारतीय संस्कृति के प्रतीक और उसकी सबसे पवित्र भूमि प्रयाग काल्पनिक अल्लाह के नाम पर है। विश्व के आदर्श पुरुषोत्तम राम का उनके जन्म स्थान पर मंदिर तक बनाने की स्थिति नहीं है। विश्व को आलोकित करने वाले ज्ञान-विज्ञान का स्रोत वेद और गीता को सांप्रदायिक बताकर लुप्त प्राय बनाने का षडयंत्र किया जा रहा है। विश्व को ज्ञान का भंडार देने वाली संस्कृत भाषा और उसके साहित्य को लुप्त सा कर दिया गया है। जिहाद हर रूप में, भूमि जिहाद, जनसंख्या जिहाद, लव जिहाद जोरों पर चल रहा है...
विडम्बना यह है कि छद्म हिंदू (कोप्टिक मुसलमान) के सहयोग भारत की सभ्यता और संस्कृति को नष्ट कर दारुल-इस्लाम बनाने की मानवता के खिलाफ साजिश चल रही है। ईरान से रजा पहलवी भगाए गए, भारत से उस राजा दाहिर के वंशजों को ही मुसलमानों ने नष्ट कर दिया, जिसने मुहम्मद के परिवार के लोगों की जान बचाई थी। भारत में भी इस्लाम अपनी क्रूरता और बर्बरता का रूपरंग बदलकर अब उसी धोखेबाजी व चालबाजी से मानव सभ्यता को नष्ट करने की ओर बढ़ चला है, जो तब किया था, जब इस्लाम की शुरुआत हुई थी। भारत विरोधी व मानवता विरोधी दलों, बुद्धिजीवियों की साजिश कामयाब हुई तो इस्लाम पूरी दुनिया को निगल कर अंधकार में पहुंचा देगा। यदि भारत नाकाम हुआ तो पूरा विश्व नाकाम होगा और सभ्यता मिट जाएगी। इससे हमें लडऩा होगा, इस्लाम की साम्राज्यवादी आक्रामकता से भारतवासियों को लडऩा होगा। पूरा विश्व हमारी ओर देख रहा है, हमें बर्बर और महान सभ्यताओं को लील कर अंधकार युग में ले जाने को आतुर बर्बर, क्रूर व जेहादी इस्लाम से युद्ध जीतना ही होगा।
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