Tuesday, June 2, 2020

कथावाचकों के लिए।

ये पोस्ट उन #कथावाचकों के लिए जो
अपने कथा में अल्लाह का गुणगान
करते है। इसे पढ़ने के बाद चुल्लू भर पानी में नाक
रगड़ के म'र जाना 

ईश्वर और अल्लाह एक नहीं हैं
ईश्वर    vs   अल्लाह
वेद      vs    कुरआन

१) ईश्वर सर्वव्यापक (omnipresent) है, 

जबकि अल्लाह सातवें आसमान पर रहता है।

२) ईश्वर सर्वशक्तिमान (omnipotent) है, वह कार्य करने में किसी की सहायता नहीं लेता। 

जबकि अल्लाह को फरिश्तों और जिन्नों की सहायता लेनी पडती है.

३) ईश्वर न्यायकारी है, वह जीवों के कर्मानुसार नित्य न्याय करता है। 

जबकि अल्लाह केवल क़यामत के दिन ही न्याय करता है, और वह भी उनका जो की कब्रों में दफनाये गए हैं।

४) ईश्वर क्षमाशील नहीं, वह दुष्टों को दण्ड भी अवश्य देता है अर्थात् न्यायकारी है।
 जबकि अल्लाह दुष्टों, बलात्कारियों के पाप क्षमा कर देता है अर्थात् मुसलमान बनने वाले के पाप माफ़ कर देता है।

५) ईश्वर कहता है, "मनुष्य बनों" मनु॑र्भव ज॒नया॒ दैव्यं॒ जन॑म् - ऋग्वेद 10.53.6,

जबकि अल्लाह कहता है, मुसलमान बनों. सूरा-2, अलबकरा पारा-1, आयत-134,135,136

६) ईश्वर सर्वज्ञ है, जीवों के कर्मों की अपेक्षा से तीनों कालों की बातों को जानता है।
 
जबकि अल्लाह अल्पज्ञ है, उसे पता ही नहीं था की शैतान उसकी आज्ञा पालन नहीं करेगा अन्यथा शैतान को पैदा क्यों करता?

७) ईश्वर निराकार होने से शरीर-रहित है। 

जबकि अल्लाह शरीर वाला है और एक आँख से देखता है।

८) ईश्वर ने इस कल्याणकारी वेदवाणी को सब लोगों के कल्याण के लिए दिया हैं- 
यजुर्वेद 26

''अल्लाह 'काफिर' लोगों (गैर-मुस्लिमो ) को मार्ग नहीं दिखाता''  (१०.९.३७ पृ. ३७४) (कुरान 9:37) .

९) ईश्वर कहता है 
सं गच्छध्वं सं वदध्वं सं वो मनांसि जानताम् ।
देवां भागं यथापूर्वे संजानाना उपासते।।-(ऋ० १०/१९१/२)
अर्थ:-हे मनुष्यो ! मिलकर चलो, परस्पर मिलकर बात करो। तुम्हारे चित्त एक-समान होकर ज्ञान प्राप्त करें। जिस प्रकार पूर्ण विद्वान, ज्ञानीजन सेवनीय प्रभु को जानते हुए उपासना करते आये हैं, वैसे ही तुम भी किया करो।

जबकि कुरान का अल्ला कहता है ''हे 'ईमान' लाने वालों! (मुसलमानों) उन 'काफिरों' (गैर-मुस्लिमो) से लड़ो जो तुम्हारे आस पास हैं, और उन्हे चाहिए कि वे तुममें सखती पायें।'' (११.९.१२३ पृ. ३९१) (कुरान 9:123) .

 १०) अज्येष्ठासो अकनिष्ठास एते सं भ्रातरो वावृधुः सौभाय। -(ऋग्वेद ५/६०/५)
अर्थ:-ईश्वर कहता है कि हे संसार के लोगों ! न तो तुममें कोई बड़ा है और न छोटा। तुम सब समान हो। सौभाग्य की प्राप्ति के लिए आगे बढ़ो।

जबकि ''हे 'ईमान' लाने वालो (केवल एक आल्ला को मानने वालो) 'मुश्रिक' (मूर्तिपूजक) नापाक (अपवित्र) हैं।'' (१०.९.२८ पृ. ३७१) (कुरान 9:28)

११) क़ुरान का अल्ला अज्ञानी है वे मुसलमानों का इम्तिहान लेता है तभी तो इब्रहीम से पुत्र की क़ुर्बानी माँगीं। 

जबकि वेद का ईश्वर सर्वज्ञ अर्थात मन की बात को भी जानता है उसे इम्तिहान लेने की अवशयकता नही।

१२) अल्ला जीवों के और काफ़िरों के प्राण लेकर खुश होता है।
 
लेकिन वेद का ईश्वर मानव मात्र व जीवों पर सेवा, भलाई ,दया करने से खुश होता है।

ऐसे अनेक प्रमाण हैं, किन्तु इतने से ही बुद्धिमान लोग समझ जायेंगे की ईश्वर और अल्लाह एक नहीं हैं!

इसी तरह नई जानकारी आप लोगो के साथ साझा करती रहूंगी।
केवल आप लोग समर्थन के रूप में पोस्ट #शेयर करते रहे।☺️🙏

ओ३म्  ओ३म्🌷🌷

No comments:

Post a Comment